From vineetdu at gmail.com Fri Jan 1 12:54:31 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Fri, 1 Jan 2010 12:54:31 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSG4KSHIOCktQ==?= =?utf-8?b?4KSo4KS+IOCkq+CklSDgpK/gpYIg4KSV4KWHIOCkrOClgOCkmiDgpJw=?= =?utf-8?b?4KWLIOCkieCkpuCkvuCkuCDgpLngpYvgpKjgpYcg4KSo4KS54KWA4KSC?= =?utf-8?b?IOCkpuClh+CkpOClhw==?= Message-ID: <829019b0912312324t1b44b276pebfc6cf96d8db5e8@mail.gmail.com> इस दिल्ली शहर में जो दारु नहीं पीता हो और साथ में कोई चमचमाती लडकी नहीं हो उसके लिए नए साल का क्या मतलब रह जाता है डॉक्टर साहब? नया साल क्या आधे दर्जन से ज्यादा उत्सवों का कोई मतलब नहीं रह जाता। ऐसे मौके हमें घर की याद नहीं दिलाते बल्कि बीए और एम.ए.की याद दिलाते हैं कि हमने बाकियों जैसा ही किसी के साथ कुछ क्यों नहीं किया? अगर किए होते तो बंड़े नहीं घूमते। यकीन मानिए ऐसे मौके पर बहुत टूअर-टापर फील कर रहे हैं। माल रोड़ पर दस रुपये जोड़ी के दो उबले अंडे खाकर जैसे ही उसने दोना फेंका तो यही सब कहने लगा। फिर अपने उपर गर्व होने का बोध कि हम दारु नहीं पीते हैं, औरों की तरह एम्स जा रहे हैं बोलकर बन-ठनकर लड़कियों के साथ मस्ती नहीं करते। इस वक्त मैं बौद्धिक होना नहीं चाहता था। मेरा कुछ भी बोलने का मन नहीं कर रहा था। वैसे भी आज दोपहर में कोठारी हॉस्टल के सीनियरों ने बहुत दिनों बाद मिलने के नाम पर पकड़कर बहुत पकाया। विश्वविद्यालय की पॉलिटिक्स से लेकर मीडिया को गरियाने का काम और एक-एक प्रोफेसर के नाम पर मां-बहन करके बुरी तरह फ्रस्ट्रेट कर दिया था। मैं उस मनहूस महौल से निकलने के लिए छटपटा रहा था। वहां से भागा तो किस्मत देखिए कमरे पर आए दोस्त ने फिर से वही सब चर्चा छोड़ दी। नौकरी,फ्लैट,गाड़ी शादी। हम एक-एक करके अपने उन दोस्तों को याद करने लग गए जो अब सेटल्ड हो गए हैं। कुछ तो पलटकर कभी फोन तक नहीं करते। ओह..यार पहले कमरे से निकलो। आज हम ये सब क्यों डिस्कश कर रहे हैं। चलो बाहर चलते हैं। बाहर कहां,वही मियां की दौड़ मस्जिद पर। अब यहां भी फिर से...मूड नहीं था। मैं बस माल रोड पर बुके खरीदती लड़कियों,लड़के को कोहनी मारते हुए..ज्यादा बनो मत,यू नो,आइ मीन की गिटपिट अंग्रेजी सुनना चाह रहा था। मैंने कहा- दोस्त,ऐसा करते हैं,घूमते हैं। उसने पूछा कहां- मैंने कहा,आसपास। कमलानगर के शोरुम्स में चक्कर लगाते हैं।..तो चलिए फिर और हम निकल पड़े। उस पर थोड़ा प्रेशर डाला और लिवाइस की एक कार्गो खरीदने के लिए राजी कर लिया। उसे कार्गो तो बहुत पसंद आ गया। अंदर से खुश भी हो रहा था कि चलो बहुत दिनों बाद कुछ कायदे का पसंद आया। लेकिन फिर कहा-आपके साथ आने से यही दिक्कत है,आप सीधे जेब पर चोट करते हैं। अब आप भी कुछ खरीदिए..ऐसे कैसे होगा। चलो खरीदते हैं और फिर कन्वर्ज की स्लीपर खरीदकर वापस हॉस्टल की तरफ। चारो तरफ हॉस्टलों में डीजे की बहुत ही तेज आवाजें,तेज धुनें। वो एक बार फिर से उदास हो गया। कार्गो खरीदने से हासिल खुशी गायब। बार-बार एक ही बात कहने लगा। आज पता नहीं बाबूजी को क्या हो गया है? सुबह ही फोन करके कहा कि बारह बजे फोन ऑन रखना,नए साल पर फोन करेंगे। हमें डर लगने लगा कि कहीं हम एक बार फिर उदासी की तरफ तो नहीं जा रहे हैं। मैं उससे एकदम से उबरना चाह रहा था। मैं देर रात टीवी देखना चाहता था। उसने फिर उदासी से कहा- डॉक्टर साहब, स्टार वन पर महाभारत खत्म हो गया। मतलब साफ था कि अब क्या करके मन बहलाए....। मेरा मन उसके साथ बिताने का था लेकिन शर्त थी कि मैं किसी भी हालत में सीरियस नहीं होना चाहता था,उदास भी नहीं,नए साल में मां याद नहीं आती कि कोई संस्मरण लिख लिया जाए। ये अपने ढंग का मेरे लिए अकेला उत्सवी महौल है जिसे कि अपने दम पर खेपना होता है। मैंने उसे बाय-बाय कहा और कहा कि रात में धावा बोलते हैं तुम्हारे यहां। तय कर लिया था कि क्या करना है। फ्लासक में खौलता हुआ पानी भरा। बगल में टी बैग और शक्कर पॉट। लैपटॉप ऑन कर लिया। मुझे कुछ नहीं करना है। जमकर टीवी देखनी है और लगातार फेसबुक पर कुछ न कुछ लिखते जाना है। हॉस्टल के इस कमरे में ढाई साल से रह रहा हूं। बहुत ही संयमित होकर टीवी,सीडी और रेडियो बजाता आया हूं। लेकिन आज मैंने तीनों रिमोट के फुल वाल्यूम किया। फेसबुक को दूहने की तैयारी शुरु। बिना इस बात की चिंता किए कि लोग इतनी जल्दी-जल्दी स्टेटस बदलने पर कमेंट करेंगे या नहीं। मैं धीरे-धीरे टीवी में डूबता चला जाता हूं। फेसबुक पर स्टेटस बदलना शुरु- टीवी को चलाने के मेरे पास तीन रिमोट हैं- एक टीवी का,दूसरा टीवी रिकार्डर का और तीसरा टाटा स्काई का। दो साल में आज पहली बार मैंने तीनों को लास्ट पर लाकर बजा रहा हूं। एम टीवी फुल..है लव मेरा हिट,हिट...तौबा मेरी तौबा कुड़ी है तू सेक्सी. शू शू के लिए कमरे से बाहर निकलता हूं। चारो तरफ डीजे की आवाज और शोर से घिरा मेरा हॉस्टल। वापस आकर टीवी की आवाज कम करता हूं। एफ.एम का हाल समझना चाहता हूं। फेसबुक पर लिखता हूं- आइ वना फक यू,आइ वना किस यू, आहूं,आहूं,आहूं...बारी बरसी खटन गियासी..हॉस्टल के चारो के हॉस्टल की आवाजें। मेरे हॉस्टल की ऑथिरिटी ने पढ़ने-लिखने की जगह पर डीजे लगवाने से मना कर दिया। पड़ोस के कमरे से पापा कहते हैं बेटा नाम करेगा और मेरे कमरे में लगातार एफ एम...मन का रेडियो बजने दे जरा।.. तभी मुंबई से अजय ब्रह्मात्मज का फोन। हुलसती आवाज। कैसे हो,नए साल पर क्या कर रहे हो। मैं जबाब देता हूं-कुछ नहीं सर,पिछले आठ दिनों से किसी न किसी बहाने बाहर डिनर कर रहा हूं। बहुत मिलना-जुलना हो गया लोगों से। आज नहीं सिर्फ और सिर्फ टीवी और हॉस्टल में खाना। और आप क्या कर रहे है। मैं-मैंने आज कटहल बिरयानी बनवायी है,रास्ते में उतरकर कहीं छेने की मिठाई लूंगा,केक खाने से ज्यादा नुकसान है। दिल्ली से एक बहुत अच्छी दारु लाया हूं। दोनों बच्चे अपने दोस्तों के साथ मस्ती कर रहे हैं। मैंने सोसाइटी के बुजुर्गों को अपने यहां बुलाया है। जमकर होगी पार्टी। अजय एक ऐसे शख्स हैं जो किसी भी इंसान को कभी बूढ़ा होने नहीं देते,थका महसूस होने नहीं देते। पिछले सप्ताह तीन दिन बिताए हैं उनके साथ मैंने,मेमरेबल डेज इन माई लाइफ। मैंने चुटकी ली,आप तो दुनियाभर के जवान और लौंडों से मिलते हैं,आज बुजुर्गों के साथ क्यों। वो उत्साहित हो जाते हैं,अरे तुम नहीं समझते. बहुत मजा आएगा। मानो सबों को जवान होने का एहसास कराने जा रहे हों।..और सुनो,एक खुशखबरी,मुझे मदर इंडिया का ऑरिजिनल पोस्टर मिल गया। मेरे बच्चों ने इसे अगर संभाल कर रख लिया तो एक प्रोप्रटी हो जाएगी।...और आप एकदम अकेले हो,एकाकीपन ठीक है लेकिन अकेलापन नहीं। मैंने कहा जी। फिर ढेर सारी बातें। सिनेमा पर,पोस्टरों पर,लोगों पर। मैं हंस-हंसकर दोहराता जाता हूं। वो ठहाके लगाते हैं..यानी ऑल इज वेल की टिप्स। मैं जोशिया जाता हूं। रेडियो की आवाज मेरी इस खुशी में साथ नहीं देगा। फिर से टीवी फुल करना होगा।...एम टीवी पर नगाड़ा बजा..नगाड़ा बजा...। तभी न्यूज चैनलों का हाल जानने की इच्छा। एक और फेसबुक पर स्टेटस- नया साल शुरु होने के पहले एक खुशखबरी- सज्जन कुमार के खिलाफ फिर चलेगा मुकदमा।..मुझे जरनैल सिंह और उसके प्रयास याद आते हैं। सभी न्यूज चैनलों ने अपने-अपने स्तर से मोर्चा संभाल लिया है। जी गानों के पीछे पड़ा है। आजतक राजू श्रीवास्तव का मौगापन लगातार दिखाए जा रहा है। न्यूज24 पर गंगूबाई। आइबीएन7 गोवा की पार्टी में मैनेजमेंट स्टूडेंट की मौत पर लगा हुआ है। एनडीटीवी पर रवीश का व्ऑइस ओवर। अच्छा लगता है सुनना। ठहर जाता हूं। रवीश का थोड़ा व्यंग्यात्मक अंदाज है। राजनीति,जीरो फीगर,चांद-फिजा को लेकर। विनोद दुआ भी ऐसे ही होते जा रहे हैं। एनडी के लोग आजकल व्यंग्यकार हो गए हैं। 09 की नौटंकी का एंकर भी खुद ही व्यंग्य बनकर आया है। फेसबुक पर स्टेटस बदलता हूं- बार्बी के जीरो साइज पर रवीश कुमार के जबरदस्त शब्द..2009 का लेखा-जोखा दे रहे हैं रवीश..सिर्फ व्ऑइस ओवर का मजा मिल रहा है।..। तभी एक और खुशखबरी- जमीन पर अवैध कब्जे के मामले में आसाराम बापू पर खबर,हटाने के आदेश।. आजतक ने घड़ी लगा रखी है। श्वेता सिंह बताती है कि आज एग्जैक्ट टाइम पर विश कर सकें इसलिए ये घड़ी चलती रहेगी। बहुत हो गया न्यूज चैनल। अब एक नजर मनोरंजन चैनलों पर- सोनी पर टेली अवार्ड। सारे टेलीविजन कलाकारों की मौजूदगी। जो बसंत की तीसरी पत्नी गहना बालिका वधू में दिन-रात रोती रहती है,यहां जबरदस्त तरीके से नाच रही है। यूटीवी बिंदास पर लगातार 50 गाने एक के बाद एक जारी है। स्टार वन पर राजू श्रीवास्तव। पवित्र रिश्ता का पुराना राग जारी है। डांस पर डांस में जज की फटकार- ये किसका कॉन्सेप्ट था। लड़की जबाब देती है-सर मैं। जज- बहुत ही घटिया आइडिया है। जूनियर दोस्तों ने दरवाजा पीटना शुरु कर दिया। घड़ी देखी,बारह बज गए। फेसबुक पर 2009 का अंतिम स्टेटस अपडेट- लो भइया,अब 2009 गया तेल लेने। अब जो भी जोर-जबरदस्ती करनी हो,2010 के खाते में जाएगा।..। जल्दी लकड़ियों को घेरे हुए मेरे हॉस्टलर दोस्त। मुझे देखते ही चिल्लाते हैं-अरे विनीत आ गया। अब जमेगी महफिल। जमकर होगी बकचोदी। मैंने कहा- सुनो,अपने यहां तो डीजे आया नहीं है। पीजी मेन्ज वालों को बोलो कि आवाज थोड़ी तेज कर दे,हम दो चार सौ रुपये दे देंगे। सब ठहाके लगाते हैं। मैंने कहा-यार एक बार उधार की धुन पर नाचकर तो देखो। फिर ठहाके। तभी एमबीए का एक प्यारा बंदा नहीं। नहीं सर,इंतजाम है। कमरे से साउंड बॉक्स ले आया है। लैप्टॉप से जोड़कर गाने बजने शुरु होते है- पैसा,पैसा क्यों करती है,पैसे पे क्यों मरती है। पीछे से जोर से- पूजा आइ लव यू..मिस यू। आग को पार करता है..आइ वना फक यू आइ वना फक यू। सब एक-दूसरे को काटकर केक खिलाते हैं। अमित सबसे प्यारा जूनियर दोस्त है। गाल पर केक मलता है। मैं कहता हूं-अबे चूतिए,बर्बाद मत कर,मेस बिल ज्यादा आएगा। जबरदस्ती में थोड़े ठुमके लगाता हूं। बाकी के हॉस्टल का हाल लेने के लिए गेट के बाहर। पीजी मेन्ज में ज्यादा रौनक है। रंग-बिरंगी लाइटों के बीच थिरकते रिसर्चर। एक भी हिन्दी गाना नहीं,खालिस पंजाबी औऱ हरयाणवी। जुबली हॉल में मेरे दोस्त इंतजार में हैं। पहुंचते ही एक स्वर में- तोहफा कबूल करें डॉक्टर साहब। लेकिन स्साले सब ललचाकर कॉफी का कप पकड़ा देते हैं। फिर नाचने की जिद। मेरी शॉल एक के गिरफ्त में आ जाती है और मुझे जबरदस्ती नाचना होता है। यहां गानों का मामला अलग है। भोजपुरी पॉपुलर बज रहा है यहां। पूरबिया रंग जमा है। सानिया मिर्जा कट नथुनिया जान मारे ले बीट के पीछे रिसर्चर दिवाने हो जाते हैं। पीछे से हॉस्टल ऑथिरिटी की तारीफ,वो भी यहां ठुमके लगाकर गयी है।...थककर चूर। फिर वीसी ऑफिस का एक चक्कर,वापस हॉस्टल। मीडिया पर लिखी जेम्स कर्रन और जीन सीटॉन की किताब पॉवर विदाउट रिस्पान्सिविलिटी पढ़ते-पढ़ते पता नहीं कब सो गया। ओह तो ये है नए साल की नई सुबह। किसी भी बाथरुम में जाने का मन नहीं कर रहा। बेसिन में सिर्फ उल्टियां। सारे ट्वायलेट से सिगरेट,वोमेटिंग और शराब की मिली-जुली बेचैन कर देनेवाली बदबू। बेतहाशा पानी मारता जाता हूं। वापस कमरे में आकर सकुचाते और लजाते हुए पुष्कर की दी हुई परफ्यूम को पुश करता हूं,अद्भुत..स्वर्ग सी अनुभूति। एक लड़की दोस्त का फोन,तुम दिनोंदिन कमीने होते जा रहे हो। स्साले एक फोन नहीं कर सकते हो,नए साल पर। एनी वे मुबारक हो ये नया साल और एक दिन बहुत बड़े,बहुत बड़े,बहुत ही बड़े.............बनो।. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100101/66ec5fee/attachment-0001.html From jha.brajeshkumar at gmail.com Fri Jan 1 13:55:38 2010 From: jha.brajeshkumar at gmail.com (brajesh kumar jha) Date: Fri, 1 Jan 2010 13:55:38 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSt4KS+4KSc4KSq?= =?utf-8?b?4KS+IOCkrOCkqOCkvuCkriDgpJfgpYvgpLXgpL/gpILgpKbgpL7gpJo=?= =?utf-8?b?4KS+4KSw4KWN4KSv?= Message-ID: <6a32f8f1001010025w4294ef30y65dba9649513c25b@mail.gmail.com> भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन से जो चर्चा शुरू हुई, उसमें गोविंदाचार्य का नाम खूब सुनने में आया। कई खबरें आईं। इससे खबरारोपन का फार्मूला भी समझ में आया। गोविंदाचार्य से लंबी बातचीत के बाद जो नई-पुरानी बातें पहली दफा निकलकर आईं, उसे इस आलेख से जाना जा सकता है। वैसे, यह आलेख आप *प्रथम प्रवक्ता* के नए अंक में भी पढ़ सकते हैं। *आखिर भाजपा में क्यों जाऊं** **? **गोविंदाचार्य* *ब्रजेश झा* दलीय राजनीति से परे हो गए के.एन. गोविंदाचार्य जवाबी सवाल पूछ रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी में मैं क्यों जाऊं ? इसमें उनका जहां सवाल है वहीं जवाब भी है। सवाल यह कि भाजपा जिसे उन्होंने सोच-समझकर नौ साल पहले छोड़ दिया, वहां अब क्यों जाना चाहिए ? जाहिर है कि वे महसूस कर रहे हैं कि मुद्दों और मूल्यों से भटकी भाजपा को पटरी पर नहीं लाया जा सकता। वैसे तो पिछले एक दशक में न जाने कितनी बार लोगों की जिज्ञासा जगी और वे यह पूछते पाए गए कि क्या गोविंदाचार्य भाजपा में आ रहे हैं ? इससे इतना तो साफ होता है कि गोविंदाचार्य के बिना भाजपा अधूरी लगती है। इसके बावजूद न भाजपा ने पहल की और न ही गोविंदाचार्य ने वहां जाने की इच्छा जताई। भाजपा के नए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने ही इस बार नई तान छेड़ी। एक दिन उन्होंने बयान देकर चौंकाया कि वे गोविंदाचार्य, उमा भारती और कल्याण सिंह को पार्टी में लाने की कोशिश करेंगे। यही नई बात पाई गई। उनसे पहले किसी अध्यक्ष ने खुलेआम इस तरह का बयान नहीं दिया था। हालांकि कई अध्यक्ष इसका मंसूबा पालते रहे थे। प्रमोद महाजन ने तो अपने आखिरी दिनों में इसकी कोशिश भी शुरू कर दी थी। वे अध्यक्ष बन जाते तो इसे अंजाम देने की कोशिश करते। नितिन गडकरी ने उनके नक्शे कदम पर एक पग बढ़ाया। लेकिन जब उनकी पहली प्रेस-कांफ्रेंस में पत्रकारों ने पूछा तो उन्हें जवाब देते नहीं बना। जो कहा उनके सीमित शब्दकोष का ऐसा कथन था जो अपने आपमें भाजपा की अंदरूनी तलवार बाजी का जायजा बन गई। वे पीछे हटते नजर आए। कहा कि उन लोगों की ओर से जब कोई प्रस्ताव आएगा तो विचार करेंगे। यह बड़बोलापन ही है। वे जानते हैं कि इनमें से कोई भी अर्जी लेकर भाजपा के दरवाजे पर नहीं जाने वाला है। वैसे, यह भी तो हो सकता है कि वे सिर मुड़ाते ओले पड़ने से बचना चाहते हों। नितिन गडकरी के पहले बयान से दो तरह की प्रतिक्रिया हुई है। भाजपा के मित्रों और शुभचिंतकों में उम्मीद जगी कि गोविंदाचार्य के आ जाने से उसका सुधार होगा। इसका एक बड़ा कारण भी है। भाजपा जिन दिनों सत्ता में थी, तब गोविंदाचार्य पार्टी के महामंत्री थे। संगठन की कमान उनके हाथ में थी। वे संगठन की सरकार पर सर्वोच्चता का प्रश्न हर सही मंच पर उठाते थे। साथ ही वे सवाल भी उठाते थे जो वाजपेयी सरकार के एजेंडे से निकल गए थे, लेकिन भाजपा जिनसे वादा खिलाफी नहीं कर सकती थी। इसी तकरार ने वह हालत पैदा की जब गोविंदाचार्य को भाजपा से निकलने के लिए खुद उपाय खोजने पडे़। जिसे वे अपना `अध्ययन अवकाश´ कहते हैं। तब से उन्होंने लंबा फासला तय कर लिया है। इसीलिए वे गडकरी के बयान को एक झटके में खारिज कर दे रहे हैं। वे कहते हैं, “गडकरी के पहले बयान में कोई गंभीरता नहीं है।” इसे लोग अलग-अलग तरीके से देख रहे हैं। भाजपा अभी पूरी तरह बदलाव के लिए तैयार नहीं है। वह आत्मनिरीक्षण से कतरा रही है। दूसरी प्रतिक्रिया भाजपा में हुई है। जो गोविंदाचार्य को मानने वाले हैं वे उनसे कह रहे हैं कि अगर भाजपा सिर के बल चलकर आए और आपको पार्टी में लाने की कोशिश करे तो आप मंजूर मत करिएगा। जाहिर है यहां संकट भाजपा का है। ऐसी पार्टी बड़े फैसले कैसे ले सकती है ? गोविंदाचार्य को भाजपा में लाना अवश्य ही एक निर्णायक कदम होगा। जो इस भाजपा के बूते का नहीं है। भाजपा की अंदरूनी राजनीति का एक नमूना `इंडियन एक्सप्रेस´ में दिखा। जब उसके संवाददाता सुमन झा ने एक रिपोर्ट इस तरह लिखी कि गोविंदाचार्य अपनी पहल पर इन्हीं दिनों लालकृष्ण आडवाणी से मिले। इसे पढ़ते हुए पाठक यह समझता है कि गोविंदाचार्य को भाजपा में लाने का समर्थन अब लालकृष्ण आडवाणी भी कर रहे हैं। यह खबर राजनीतिक जोड़तोड और खबरारोपण का उदाहरण है। सच यह है कि अक्टूबर महीने में गोविंदाचार्य लालकृष्ण आडवाणी से मिलने गए थे, वह इसलिए कि उन्हें वह दस्तावेज दे सकें जो उन्होंने बनाया है। वहां इस पर ही थोड़ी बहुत बातचीत हुई। लेकिन `इंडियन एक्सप्रेस´ ने जो खबर छापी उसमें यह बात छिपा दी गई कि यह मुलाकात करीब दो महीने पहले की है। गोविंदाचार्य ने भाजपा से निकलने के बाद लालकृष्ण आडवाणी से कभी मिलने की कोशिश नहीं की। एक बार फोन पर जरूर यह कहा कि भाजपा को आप विसर्जित कर दीजिए। इस मुलाकात में उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी को सलाह दी कि अपनी खैर चाहते हैं तो भाजपा से निकलने का रास्ता खोजिए। इसी तरह एक बार गोविंदाचार्य ने अटल बिहारी वाजपेयी से भेंट की थी। तारीख है 25 नवंबर 2003। तब उन्हें यह बताना था कि राजनीति की दलदल से निकलने का मेरे पास साहस भी है और हिकमत भी। वाजपेयी व्यंग्य में अक्सर कहा करते थे कि लोग कहते तो हैं कि राजनीति छोड़ देंगे, लेकिन कोई छोड़ता नहीं। इसका ही जीता जागता उदाहरण बनकर गोविंदाचार्य उनसे मिलने पहुंचे थे। तब भाजपा से निकले हुए उन्हें तीन साल हो गए थे। वे अब राष्ट्रवादी नजरिए का एक दस्तावेज बना चुके हैं। यह दस्तावेज राष्ट्रीय समस्याओं को समझने और समझाने का एक प्रयास है। जो व्यक्ति ऐसे तमाम प्रयासों में लगा हुआ हो उसे भाजपा में कोई आकर्षण दिखेगा ? क्या इसकी उम्मीद की जा सकती है ? -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100101/9b581692/attachment-0001.html From =?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?= Fri Jan 1 17:02:45 2010 From: =?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?= (=?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?=) Date: Fri, 1 Jan 2010 17:02:45 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS54KS/4KSC4KSm?= =?utf-8?b?4KWAIOCkrOCljeCksuClieCkl+Ckv+CkguCklyDgpKrgpLAg4KSP4KSV?= =?utf-8?b?IOCkqOCkiCDgpJXgpL/gpKTgpL7gpKwuLi4u4KSs4KWN4KSv4KWL4KSw?= =?utf-8?b?4KS+IOCkmuCkvuCkueCkv+Ckjy4=?= Message-ID: सभी ब्लॉगर बंधु *नए साल पर नई सूचना...* **हिंदी ब्लॉगिंग पर एक महत्वपूर्ण किताब का प्रकाशन हो रहा है. मार्च तक किताब प्रकाशित होने की पूरी संभावना है. पुस्तक में शामिल करने के लिए कृपया ये जानकारी मुहैया कराएं. अपना विवरण / परिचय फ़ोटो मूल व्यवसाय ब्लॉगिंग में चुनौती, टिप्पणीकारों का महत्व आपकी नज़र में टॉप-10 ब्लॉग आपके ब्लॉग का विषय संदेश कहां से मिली प्रेरणा (इसके साथ कोई *शुल्क नहीं है*) धन्यवाद, *चण्डीदत्त शुक्ल* मेरा नबर है *09873779183.* *www.chauraha1.blogspot.com* * * -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100101/b34743b3/attachment.html From ashishkumaranshu at gmail.com Sat Jan 2 14:10:56 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Sat, 2 Jan 2010 14:10:56 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSu4KS54KSk4KWN?= =?utf-8?b?4KS14KSq4KWC4KSw4KWN4KSjIOCkuOClguCkmuCkqOCkvi4uLuCkrA==?= =?utf-8?b?4KWN4KSy4KWJ4KSX4KS/4KSC4KSXIOCkquCksCDgpLngpL/gpILgpKY=?= =?utf-8?b?4KWAIOCkruClh+CkgiDgpK7gpLngpKTgpY3gpLXgpKrgpYLgpLDgpY0=?= =?utf-8?b?4KSjIOCkleCkv+CkpOCkvuCkrC4uLuCkrOCljeCkr+Cli+CksOCkviA=?= =?utf-8?b?4KSa4KS+4KS54KS/4KSP?= In-Reply-To: References: Message-ID: <196167b81001020040l140fc68evb4e45ebd7cd284ee@mail.gmail.com> सभी ब्लॉगर बंधु *नए साल पर नई सूचना...* **हिंदी ब्लॉगिंग पर एक महत्वपूर्ण किताब का प्रकाशन हो रहा है. मार्च तक किताब प्रकाशित होने की पूरी संभावना है. पुस्तक में शामिल करने के लिए कृपया ये जानकारी मुहैया कराएं. ब्योरा कृपया मेरे ई-मेल chandiduttshukla at gmail.com पर भेजें. अपना विवरण / परिचय फ़ोटो मूल व्यवसाय ब्लॉगिंग में चुनौती, टिप्पणीकारों का महत्व आपकी नज़र में टॉप-10 ब्लॉग आपके ब्लॉग का विषय और लिंक... कहां से मिली प्रेरणा नए ब्लॉगर्स को आपका संदेश (इसके साथ कोई *शुल्क नहीं है*) महत्वपूर्ण 1. कृपया ई-मेल की सब्जेक्ट लाइन में ज़रूर लिखें....blog-book : (*your name)* *जैसे- blog-book : chandiduttshukla* 2. विवरण यूनिकोड में भेजें और इसके लिए तीन दिन का समय ही लें. पुस्तक में कुछ इनपुट जोड़ना बाकी रह गया है और किताब इसी माह के अंत में प्रोडक्शन के लिए चली जाएगी. -- एक अनुरोध और है. मेरे पास जितने ब्लॉगर्स का मेल आईडी है, मैं उन्हें तो सूचना भेज ही रहा हूं. यदि आपके परिचय सूत्र में कोई अन्य साथी हैं, तो उन्हें भी कृपया ये ई-मेल फारवर्ड कर दें. धन्यवाद, *चण्डीदत्त शुक्ल* टेलिविजन पत्रकार नोएडा मेरा मोबाइल नंबर है *09873779183.* *www.chauraha1.blogspot.com* * * -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100102/0988ff56/attachment.html From beingred at gmail.com Sat Jan 2 17:22:06 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Sat, 2 Jan 2010 17:22:06 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KSo4KSk4KS+?= =?utf-8?b?IOCkleCliyDgpJfgpYHgpK7gpLDgpL7gpLkg4KSV4KSw4KSo4KS+IA==?= =?utf-8?b?4KS24KSw4KWN4KSu4KSo4KS+4KSVIOCkueCliA==?= Message-ID: <363092e31001020352m27ce9c25rae202b0e86fb6688@mail.gmail.com> जनता को गुमराह करना शर्मनाक है *पी साईनाथ* *आप* सोचते होंगे कि अख़बारों में सिर्फ़ एक पेज 3 होता है? लेकिन महाराष्ट्र के अख़बार ऐसा नहीं मानते। हाल के चुनाव में उनके पास कई पेज 3 थे, जिन्हें वो लगातार कई दिनों तक छापते रहे। उन्होंने सप्लिमेंट के भीतर सप्लिमेंट छापे। इस तरह मुख्य अख़बार में भी आपको पेज 3 पढ़ने को मिले। फिर उन्होंने मेन सप्लिमेंट में अलग से पेज थ्री छापा। उसके बाद एक और सप्लिमेंट जिसके ऊपर रोमन में पेज थ्री लिखा था। यह मतदान से ठीक पहले के दिनों में बहुत ज़्यादा हुआ क्योंकि व्यग्र उम्मीदवार “ख़बरों” को खरीदने के लिए हर क़ीमत चुकाने को तैयार थे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि “टेलीविजनों पर बुलेटिन्स की संख्या बढ़ गई और प्रिंट में पन्नों की संख्या।” मांगें पूरी करनी थीं। कई बार तो आखिरी पलों में अतिरिक्त पैकेज आए और उन्हें भी जगह देनी थी। उन्हें वापस लौटाने का कोई कारण नहीं था? मराठी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू – राज्य के तमाम अख़बारों में चुनाव के दौरान आप ऐसी कई आश्चर्यजनक चीजें देखेंगे जिन्हें छापने से इनकार नहीं किया गया था। एक ही सामाग्री किसी अख़बार में “ख़बर” के तौर पर छपी तो किसी अख़बार में “विज्ञापन” के तौर पर। “लोगों को गुमराह करना शर्मनाक है” – यह शीर्षक है नागपुर (दक्षिण-पश्चिम) से निर्दयील उम्मीदवार उमाकांत (बबलू) देवताले की तरफ़ से खरीदी गई ख़बर की। यह ख़बर लोकमत (6 अक्टूबर) में प्रकाशित हुई थी। उसके आखिरी में सूक्ष्म तरीके से एडीवीटी (एडवर्टिजमेंट यानी विज्ञापन) लिखा हुआ था। द हितवाद (नागपुर से छपने वाले अंग्रेजी अख़बार) में उसी दिन यह “ख़बर” छपी और उसमें कहीं भी विज्ञापन दर्ज नहीं था। देवताले ने एक बात सही कही थी – “लोगों को गुमराह करना शर्मनाक है।” *पूरा पढ़िए : जनता को गुमराह करना शर्मनाक है * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100102/c299040d/attachment-0001.html From beingred at gmail.com Sat Jan 2 17:22:06 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Sat, 2 Jan 2010 17:22:06 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KSo4KSk4KS+?= =?utf-8?b?IOCkleCliyDgpJfgpYHgpK7gpLDgpL7gpLkg4KSV4KSw4KSo4KS+IA==?= =?utf-8?b?4KS24KSw4KWN4KSu4KSo4KS+4KSVIOCkueCliA==?= Message-ID: <363092e31001020352m27ce9c25rae202b0e86fb6688@mail.gmail.com> जनता को गुमराह करना शर्मनाक है *पी साईनाथ* *आप* सोचते होंगे कि अख़बारों में सिर्फ़ एक पेज 3 होता है? लेकिन महाराष्ट्र के अख़बार ऐसा नहीं मानते। हाल के चुनाव में उनके पास कई पेज 3 थे, जिन्हें वो लगातार कई दिनों तक छापते रहे। उन्होंने सप्लिमेंट के भीतर सप्लिमेंट छापे। इस तरह मुख्य अख़बार में भी आपको पेज 3 पढ़ने को मिले। फिर उन्होंने मेन सप्लिमेंट में अलग से पेज थ्री छापा। उसके बाद एक और सप्लिमेंट जिसके ऊपर रोमन में पेज थ्री लिखा था। यह मतदान से ठीक पहले के दिनों में बहुत ज़्यादा हुआ क्योंकि व्यग्र उम्मीदवार “ख़बरों” को खरीदने के लिए हर क़ीमत चुकाने को तैयार थे। एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि “टेलीविजनों पर बुलेटिन्स की संख्या बढ़ गई और प्रिंट में पन्नों की संख्या।” मांगें पूरी करनी थीं। कई बार तो आखिरी पलों में अतिरिक्त पैकेज आए और उन्हें भी जगह देनी थी। उन्हें वापस लौटाने का कोई कारण नहीं था? मराठी, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू – राज्य के तमाम अख़बारों में चुनाव के दौरान आप ऐसी कई आश्चर्यजनक चीजें देखेंगे जिन्हें छापने से इनकार नहीं किया गया था। एक ही सामाग्री किसी अख़बार में “ख़बर” के तौर पर छपी तो किसी अख़बार में “विज्ञापन” के तौर पर। “लोगों को गुमराह करना शर्मनाक है” – यह शीर्षक है नागपुर (दक्षिण-पश्चिम) से निर्दयील उम्मीदवार उमाकांत (बबलू) देवताले की तरफ़ से खरीदी गई ख़बर की। यह ख़बर लोकमत (6 अक्टूबर) में प्रकाशित हुई थी। उसके आखिरी में सूक्ष्म तरीके से एडीवीटी (एडवर्टिजमेंट यानी विज्ञापन) लिखा हुआ था। द हितवाद (नागपुर से छपने वाले अंग्रेजी अख़बार) में उसी दिन यह “ख़बर” छपी और उसमें कहीं भी विज्ञापन दर्ज नहीं था। देवताले ने एक बात सही कही थी – “लोगों को गुमराह करना शर्मनाक है।” *पूरा पढ़िए : जनता को गुमराह करना शर्मनाक है * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100102/c299040d/attachment-0002.html From vineetdu at gmail.com Sun Jan 3 12:13:21 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Sun, 3 Jan 2010 12:13:21 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KWN4oCN4KSv?= =?utf-8?b?4KS+IElCTiA3IOCkleClhyDgpI/gpILgpJXgpLAg4KS44KSC4KSm4KWA?= =?utf-8?b?4KSqIOCkmuCljOCkp+CksOClgCDgpK7gpYfgpIIg4KSt4KS+4KS34KS+?= =?utf-8?b?4KSIIOCktuCkiuCksCDgpKjgpLngpYDgpIIg4KS54KWIPw==?= Message-ID: <829019b1001022243k21c88b6du7d31d980ea5103cd@mail.gmail.com> मूलतः प्रकाशित *मोहल्लाLIVE* [image: Sandeep Chaudhary]IBN7 के एंकर संदीप चौधरी के आक्रामक अंदाज़ का मैं कायल हूं। उनके इस अंदाज़ का असर मुझ पर कुछ इस कदर है कि अगर पहले से लेटकर टीवी देख रहा होता हूं तो उनके आते ही उठ कर सीधे बैठ जाता हूं। एक-एक वाक्य और उस हिसाब से चेहरे और नसों के खिंचाव को समझने औऱ महसूस करने की कोशिश करता हूं। लेकिन सच की आवाज़ हमेशा ऊंची होती है या फिर सच बोलने के लिए ज़रूरी है कि ऊंची आवाज़ में ही बात की जाए, इस फार्मूले पर भरोसा रखनेवाले संदीप चौधरी हमें कई बार व्‍यथित भी कर जाते हैं। कई बार महसूस होता है कि इस अंदाज़ को बरक़रार रखने में भाषाई स्तर पर वो बेहद खोखले और हल्के हो जाते हैं। भारतीय टेलीविज़न में व्यक्ति आधारित समीक्षा या आलोचना की परंपरा विकसित नहीं हुई है। साहित्य या दूसरी विधाओं में एक कवि, कथाकार या आलोचक के ऊपर दर्जनों थीसिस लिखी जाती रही हैं। इसी अनुपात में उन पर शोध-पत्र और किताबें भी लिखी जाती रही हैं लेकिन भारतीय टेलीविज़न समीक्षा चंद मुहावरों, जार्गन और जुमले के बीच ही विश्लेषित कर दिये जाते हैं। आज संदीप चौधरी पर लिखकर टेलीविज़न के भीतर मैं व्यक्ति आधारित समीक्षा की न तो कोई शुरुआत करने जा रहा हूं और न ही साहित्यिक परंपराओं की कलम रोपने की कोशिश कर रहा हूं। मैं तो ऑडिएंस की उस समझ को सामने रख रहा हूं जो टेलीविज़न से हमेशा चैनल के नाम पर जुड़ने के बजाय उस पर आनेवाले लोगों के स्तर पर जुड़ता है। मसलन अगर IBN7 पर आशुतोष, संदीप चौधरी और ऋचा आना बंद कर दें तो मैं ख़बर देखने के लिए तो इस चैनल पर नहीं ही आऊंगा। उसी तरह प्राइम टाइम पर विनोद दुआ, अभिज्ञान और रवीश जैसे लोग आना छोड़ दें, तो एनडीटीवी इंडिया देखकर शाम ख़राब करने का कोई मतलब नहीं है। कहना सिर्फ इतना चाहता हूं कि आज न्‍यूज़ चैनलों की जो स्थिति है, उसमें लोग चैनलों के ब्रैंड से ज़्यादा व्यक्तिगत तौर पर आनेवाले एंकरों के हिसाब से जुड़ते हैं। ये बात पुण्य प्रसून जैसे एंकर के साथ आजमा कर देख लीजिए। पूरी ऑडिएंस का एक बड़ा हिस्सा है, जो कि इनके हिसाब से चैनल देखता है। ये जिस भी चैनल में जाएंगे, वो उन्हें देखेगी। वो पुण्य प्रसून को पहले देखती है, चैनल को बाद में। [image: mudda]बहरहाल, जिस संदीप चौधरी के अंदाज़ के हम कायल होते रहे हैं, वही संदीप चौधरी ने अपने भाषाई प्रयोग के स्तर पर हमें परेशान किया। हमें इस बात को अफ़सोस रहेगा कि एक अच्छा एंकर आक्रामक दिखने के लिए लगातार अपनी भाषा खोता जा रहा है। चेतन भगत और 3 इडियट्स को लेकर क्या कुछ चल रहा है, ये दुनिया जान रही है। दो जनवरी की रात मुद्दा कार्यक्रम के अंतर्गत संदीप चौधरी ने इसी मुद्दे पर बहस चलायी। उस बहस में क्या था और कौन लोग शामिल थे, इसकी तफसील में जाने से बेहतर है कि हम जो बात करना चाहते हैं, वही करें। आगे लिखने से पहले साफ कर दूं कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे चेतन भगत की राइटिंग पसंद नहीं है। आज के हवाले से कहूं तो एक हद तक उनका अंदाज़ भी नहीं। लेकिन मेरे ऐसा कहने से चेतन भगत की हैसियत तय नहीं होती। मेरी क्या, शायद संदीप चौधरी के कहने से भी तय नहीं होती। ये अलग बात है कि मेरे कहने और संदीप चौधरी के कहने के असर में आसमान ज़मीन का फर्क है। लेकिन संदीप चौधरी के साथ देश के किसी भी मीडियाकर्मी को इस बात का एहसास होना चाहिए कि चेतन भगत का एक बड़ा पाठक वर्ग है। टेलीविज़न एंकरों को तो अपनी हार्डकोर ऑडिएंस पता करने में वक्त लग जाए लेकिन एक लेखक को मोटे तौर पर उसकी रीडरशिप की जानकारी होती है। इस हिसाब से बात करें तो चेतन भगत के पीछे रीडर्स का एक ज़बर्दस्त बैकअप है। इस हिसाब से चेतन भगत की हैसियत किसी भी मीडियाकर्मी से कम नहीं है। [image: chetan bhagat] चेतन भगत क्या लिख रहे हैं, उससे हमारी कितनी सहमति-असहमति है, इस बहस में न जाकर इतना मानने में क्या परेशानी है कि वो इस देश के एक सेलेब्रेटी लेखक हैं। एक ऐसे लेखक हैं, जो दुनिया के आगे साबित कर चुके हैं कि लिख कर आप कहां तक जा सकते हैं? देश का बच्चा-बच्चा (लिखने-पढ़नेवाला) उन्‍हें जानता है। आप सिर्फ कंटेट पर टिककर न बात करके ओवरऑल बात करें, तो वो एक सम्मानित और लोगों के चहेते लेखक हैं। पॉपुलरिटी के मामले में वो किसी भी पेशे के सिलेब्रेटी को टक्कर देने की हैसियत रखते हैं। पिछले साल जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अमिताभ बच्चन से मिलने के बाद जिसके लिए सबसे ज़्यादा होड़ मची थी, वो यही चेतन भगत थे। इसलिए उनकी राइटिंग से मानें या न मानें, पॉपुलरिटी से तो उन्‍हें बड़ा लेखक मान ही सकते हैं। अब देखिए, मुद्दा में ज़ोर-शोर से बहस चल रही है। चेतन भगत नॉर्मल अंदाज़ में अपनी बात रख रहे हैं। इसी बीच संदीप चौधरी ने दूसरी ही तान छेड़ दी। हैलो फिल्म जब आयी थी तब भी आपको क्रेडिट नहीं दिया गया था, तब तो आप चुप थे लेकिन अब आप हल्ला कर रहे हैं। क्या 3 इडियट्स फिल्म अगर इतनी पॉपुलर नहीं होती तब भी आप ऐसा ही करते। मुझे याद आ रहा कि संदीप ने शायद ये भी कहा, पक्का नहीं कह सकता लेकिन भाव यही थे कि तब भी आप इसी वाल्यूम में बात करते। इसी के जवाब में चेतन ने कहा कि मैं कौन-सा छत पर जाकर चिल्ला रहा हूं। एक लेखक को अपनी बात रखने का हक़ है। लेकिन संदीप उन्‍हें सुनते ही नहीं, चिल्लाते हैं, अपनी ही रौ में बहे चले जाते हैं। सवाल ये है कि संदीप चौधरी या फिर देश का कोई भी मीडियाकर्मी जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करता है, क्या उसमें लेखक को अपनी बात रखने की आज़ादी शामिल नहीं है। फिर वो चिल्लाना कैसे हो गया? संदीप चौधरी का ये भाषाई प्रयोग जायज़ है? इस पर बात होनी चाहिए। चेतन भगत ने ऐसा कौन सा अपराध कर दिया कि उसके लिए इस तरह की भाषा इस्तेमाल की जाए? तब फिर आपके ऊपर हमले होते हैं और दिन भर स्टोरी चलती है – लोकतंत्र पर हमला तो वो चिल्लाने से किस रूप में अलग है? बेबाकी और आक्रामक अंदाज़ का मतलब ये तो बिल्कुल भी नहीं कि आपके सामने जो पड़ जाए, उसकी उतार कर रख दें। यही काम उन्होंने आगे भी किया। चेतन भगत के ये बार-बार कहे जाने पर कि राजू (राजकुमार हीरानी, प्रोड्यूसर : 3 इडियट्स) सिर्फ इतना कह दें कि वो तीसरे नंबर पर यानी अभिजीत जोशी और स्वयं राजकुमार हीरानी के बाद मेरा नाम डाल देंगे, तो सारा झंझट ही ख़त्म हो जाएगा। संदीप चौधरी ने प्रोड्यूसर से पता करके बताया कि वो उठ कर चले गये हैं। कुछ ही देर बाद राजकुमार हीरानी का फोनो चलता है, जिसमें वो बताते हैं कि मेरी पत्नी टीवी पर ये सब देख कर शॉक्ड है। मैं घर पर टीवी देख रहा हूं और मैं भी शॉक्ड हूं कि मैं तो लाइव था ही नहीं, फिर आपने कैसे कह दिया कि मैं उठ कर चला गया? संदीप चौधरी बस इतना भर कहते हैं कि हम कोई ग़लती करते हैं तो इज़हार कर लेते हैं। अब देखिए, जब वो चेतन भगत से बात करते हैं, तो लगता है कि वो पूरी तरह से हीरानी के फेवर में बात कर रहे हैं क्योंकि चेतन के प्रति बहुत ही बेरुखी भाषा अपनाते हैं। लेकिन हीरानी की बात आने पर उठकर चले गये, फिर उनके प्रति भी यही रवैया। हीरानी अपनी पूरी बात करते, इसके पहले संदीप चौधरी शो समेट-समाट कर चल देते हैं। इसी क्रम में हीरानी बता जाते हैं कि चैनल ने उनके साथ क्या किया? मतलब ये कि अगर कोई कॉन्शस न रहे तो लाइन, दो लाइन के प्रयोग से किसी की भी बत्ती लगाने में चैनल को दो मिनट का भी समय नहीं लगता। सवाल ये कि क्या तटस्थ होने या ऑडिएंस को दिखलाने के लिए भाषाई स्तर पर अपने को ख़त्म कर लेना ज़रूरी है? ऐसा लोगों को वाजिब सम्मान देते हुए नहीं किया जा सकता क्या? ये ज़रूरी है कि एंकर हर शो में ये साबित करे कि वो एंकर है और उससे बात करनेवाले जो भी लोग हैं, उनसे नीचे की कतार में खड़े हैं। देखा-देखी में पूरी की पूरी पीढ़ी तटस्थ होने का मतलब भाषाई स्तर पर लोगों की उतार देना समझा करेगी। लोगों को सम्मान देने और भाषाई स्तर पर सभ्य होने का हुनर क्यों खत्म कर रहे हैं हमारे एंकर, जरा सोचिए। -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100103/562ee559/attachment-0001.html From ashishkumaranshu at gmail.com Mon Jan 4 12:20:45 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Mon, 4 Jan 2010 12:20:45 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSG4KSu4KSC4KSk?= =?utf-8?b?4KWN4KSw4KSj?= Message-ID: <196167b81001032250l23378ae0ka6f2fa5790c35b9a@mail.gmail.com> प्रिय मित्रों, पांचवां गोरखपुर फिल्म फेस्टिवल ४ फरवरी से शुरू हो रहा है जो ७ फरवरी तक चलेगा. इस बार प्रमुख भारतीय फिल्मकार रंजन पालित की नई फिल्म IN CAMERA का प्रीमिअर भी गोरखपुर में होगा. इसके अलावा अनुपमा श्रीनिवासन की नई फिल्म I WONDER और देबरंजन सारंगी की फिल्म THE CONFLICT:WHOSE GAIN WHOSE LOSS भी दिखाई जायेंगी . जैसा कि आप जानते हैं यह पूरा आयोजन फेस्टिवल स्मारिका में छपने वाले विज्ञापनों और लोगों के निजी सहयोग से सम्पन्न होता है. आपसे अनुरोध है कि हमारी हरसंभव मदद कर इस सिनेमा आन्दोलन को सशक्त करैं. २००९ में जन संस्कृति मंच के फिल्म समूह THE GROUP ने गोरखपुर के अलावा लखनऊ, भिलाई, नैनीताल और पटना में भी प्रतिरोध के सिनेमा के फिल्म उत्सव आयोजित किये. आपको जल्द ही फेस्टिवल काSCHEDULE भेजा जायेगा. मेहरबानी करके हमारे लिए कुछ विज्ञापन उपलब्ध करवाएं और अपना निजी सहयोग इस खाते में जमा करवाएं . मेहरबानी करके इस अपील को अपने दोस्तों और सिनेमा आन्दोलन के समर्थक मित्रों को forward करैं. हमारा खाता है-- Expression- Gorakhpur Film Society Account No. 558802010007442, Union Bank of India Branch: 26 Battalion PAC, Bichia, Gorakhpur आप अपने चेक या ड्राफ्ट सीधे गोरखपुर भेज सकते हैं. गोरखपुर का पोस्टल पता है. Shri Manoj Singh Convener, Gorakhpur Film Society MIG 71, Rapti Nagar Phase I Gorakhpur, UP- 273003 Phone: 09415282206 -- Regards, Sanjay Joshi Convener THE GROUP Film group of Jan Sanskriti Manch C-303 Jansatta Apartments Sector 9, Vasundhara, Ghaziabad, Uttar Pradesh, India- 201012 Contacts: 91-9811577426, 91-120-2885017 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100104/7abcec3e/attachment.html From ashishkumaranshu at gmail.com Mon Jan 4 16:59:22 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Mon, 4 Jan 2010 16:59:22 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?J+CkruClgOCkoQ==?= =?utf-8?b?4KS/4KSv4KS+IOCkuOCljeCkleCliOCkqCcg4KSV4KS+IOCknOCkqA==?= =?utf-8?b?4KS14KSw4KWAIOClqOClpuClp+ClpiDgpIXgpILgpJU=?= Message-ID: <196167b81001040329x7640062bga7bb56637148d17d@mail.gmail.com> 'मीडिया स्कैन' का जनवरी २०१० अंक अतिरिक्त ०४ पृष्ठों के साथ. इस बार ०४ पृष्ठों में वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पाण्डेय का प्रभाष जोशी जी के ऊपर लिखा विशेष आलेख. छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रमेश नय्यर का साक्षात्कार और भी बहूत कुछ अपनी प्रतिक्रया से अवगत कराना ना भूलें. आपकी प्रतिक्रिया हमें साहस देती है. *आप अपनी प्रतिक्रया हमें भेज सकते हैं-* 07mediascan at gmail.com http://docs.google.com/fileview?id=0BzudX_4WgcEvNzg0ZWVlNmUtMjMzYi00MDcxLTllMDgtMGRlMjVlMTcyYWEz&hl=en -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100104/0bc5accb/attachment.html From anant7akash at gmail.com Wed Jan 6 12:58:21 2010 From: anant7akash at gmail.com (Journalist ANANDMANI TRIPATHI 9017333047) Date: Tue, 5 Jan 2010 23:28:21 -0800 (PST) Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Invitation to connect on LinkedIn Message-ID: <1193487549.18699680.1262762901523.JavaMail.app@ech3-cdn12.prod> LinkedIn ------------ I'd like to add you to my professional network on LinkedIn. - Journalist ANANDMANI Confirm that you know Journalist ANANDMANI TRIPATHI 9017333047 https://www.linkedin.com/e/isd/971782153/G0gSKrAY/ Every day, millions of professionals like Journalist ANANDMANI TRIPATHI 9017333047 use LinkedIn to connect with colleagues, find experts, and explore opportunities. ------ (c) 2009, LinkedIn Corporation -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100105/113c949f/attachment.html From ravikant at sarai.net Wed Jan 6 18:43:49 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Wed, 06 Jan 2010 18:43:49 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?MyDgpIjgpKHgpL8=?= =?utf-8?b?4KSv4KSf4KWN4KS4IOCkquCksCDgpLDgpLXgpYDgpLYg4KSV4KWB4KSu4KS+?= =?utf-8?b?4KSw?= Message-ID: <4B448C8D.1030708@sarai.net> नई दिल्ली फ़िल्म सोसायटी के आशीष सिंह का शुक्रिया अदा करते हुए, और रवीश कुमार का भी, जिनसे मैं क़तई सहमत नहीं हूँ. पर अपनी असहमति को मैं थोड़े लंबे लेख की शक्ल में पेश करूँगा. फ़िलहाल इतना कह दूँ कि राजू हिरानी और आमिर ख़ान अपनी जो बात पिछली कई फ़िल्मों में अलग-अलग कह रहे थे, उसको साथ आकर और मुकम्म्ल ढंग से यहाँ कह पाए हैं. ये फ़िल्म मेरी सूची में बेहतरीन ठहरती है, और फ़िल्म इतिहास में इसका नाम आएगा. जल्द मिलते हैं, पर पहले धीर-गंभीर रवीश की गंभीरता पर थोड़ा हँस लेने को जी चाहता है! रविकान्त Hi, Take another look at 3 idiots with Ravish Kumar. Visit http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ And dont forget to post your comments. Best, Ashish K Singh (for New Delhi Film Society: An e film society) सिस्टम में फिट थ्री इडियट्स - रवीश कुमार साढ़े चार स्टार्स की फ़िल्म देख रहा था। तारे छिटकते थे और फिर कहीं कहीं जुड़ जाते थे। साल की असाधारण फिल्म की साधारण कहानी चल रही थी। चार दिनों में सौ करोड़ की कमाई का रिकार्ड बज रहा था और दिमाग के भीतर कोई छवि नहीं बन पा रही थी। थ्री इडियट्स की कहानी शिक्षा प्रणाली को लेकर हो रही बहसों के तनाव में कॉमिक राहत दिलाने की सामान्य कोशिश है। कामयाबी काबिल के पीछे भागती है। संदेश किसी बाबा रणछोड़दास का बार बार गूंज रहा था। पढ़ाई का सिस्टम ख़राब है लेकिन विकल्प भी बहुत बेकार। इसी ख़राब सिस्टम ने कई प्रतिभाओं को विकल्प चुनने के मौके दिये हैं। इसी खराब सिस्टम ने लोगों को सड़ा भी दिये हैं। लेकिन यह टाइम दूसरा है। हम विकल्पों के लिए तड़प रहे हैं। लेकिन क्या हम वाकई विकल्प का कोई मॉडल बना पा रहे हैं? सवाल हम सबसे है। मद्रास प्रेसिडेंसी में सबसे पहले इम्तहानों का दौर शुरू हुआ था। अंग्रेजों ने जब विश्वविद्यालय बनाकर इम्तहान लिये तो सर्वण जाति के सभी विद्यार्थी फेल हो गए। उसी के बाद पहली बार थर्ड डिविज़न का आगमन हुआ। हिंदुस्तान में सर्टिफिकेट आधारित प्रतिभा की यात्रा यहीं से शुरू होती है। डेढ़ सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में परीक्षा को लेकर हमने एक समाज के रूप में तनाव की कई मंज़िलें देखी हैं। ज़िला टॉपर और पांच बार मैट्रिक फेल अनुभव प्राप्त प्रतिभावान और नाकाबिल हर घर परिवार में रहे हैं। दिल वाले दुल्हनियां ले जायेंगे में अनुपम खेर अपने खानदान के सभी मेट्रिक से पास या फेल पूर्वजों की तस्वीरें लगा कर रखते हैं। शाह रूख खान को दिल की सुनने के लिए भेज देते हैं। पंद्रह साल पहले आई यह कहानी सुपरहिट हो जाती है। अनुपम खेर शाहरूख खान से कहता है कि जा तू मेरी भी ज़िंदगी जी कर आ। शिक्षा व्यवस्था से भागने के रास्ते को लेकर कई फिल्में बनीं हैं। भागने का रास्ता भी है। थ्री इडियट्स फिल्म पूंजीवादी सिस्टम को रोमांटिक बनाने का प्रयास करती है। काबिलियत पर ज़ोर से ही कामयाबी का रास्ता निकलता है। काबिल होना पूंजीवादी सिस्टम की मांग है। रणछोड़ दास का विकल्प भी किसी अमेरिकी कंपनी की कामयाबी के लिए डॉलर पैदा करने की पूंजी बन जाता है। कामयाबी के बिना ज़िंदा रहने का रास्ता नहीं बताती है यह फिल्म। शायद ये किसी भी फिल्म की ज़िम्मेदारी भी नहीं होती। उसका काम होता है जीवन से कथाओं को उठाकर मनोरंजन के सहारे पेश कर देना। ताकि हम तनाव के लम्हों में हंसने की अदा सीख सकें। बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में ही प्रेमचंद की कहानी आ गई थी। बड़े भाई साहब। इम्तहान सिस्टम पर बेहतरीन व्यंग्य। बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई साहब को नए सिस्टम में ढालने के बड़े जतन करते हैं। छोटा भाई कहता है कि इस जतन में वो एक साल के काम को तीन तीन साल में करते हैं। एक ही दर्जे में फेल होते रहते हैं। लिहाजा खेलने-कूदने वाला छोटा भाई हंसते खेलते पास होने लगात है और बड़े भाई के दर्जे तक पहुंचने लगते हैं। कहानी में बड़े भाई का संवाद है। गौर कीजिएगा। "सफल खिलाड़ी वह है,जिसका कोई निशाना खाली न जाए। मेरे फेल होने पर न जाओ। मेरे दरजे में आओगे, तो दांतों पसीना आ जाएगा। जब अलजेबरा और ज्योमेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे. इंग्लिस्तान का इतिहास पढ़ना प़ड़ेगा। बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं, आठ-आठ हेनरी हुए हैं। कौन सा कांड किस हेनरी के समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो। हेनरी सातवें की जगह हेनती आठवां लिखा और सब नंबर गायब। सफाचट। सिफर भी न मिलेगा, सिफर भी। दर्जनों तो जेम्स हुए हैं, दर्जनों विलियम, कौ़ड़ियों चार्ल्स। दिमाग चक्कर खाने लगता है।" भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर ऐसे किस्से इसके आगमन से ही भरे पड़े हुए हैं। प्रेमचंद की यह कहानी बेहतरीन तंज है। उस वक्त का व्यंग्य है जब इम्तहानों का भय और रूटीन आम जीवन के करीब पहुंच ही रहा था। थ्री इडियट्स की कहानी तब की है जब इम्तहानों को लेकर देश में बहस चल रही है। एक सहमति बन चुकी है कि नंबर या टॉप करने का सिस्टम ठीक नहीं है। दिल्ली के सरदार पटेल में कोई टॉपर घोषित नहीं होता। किसी को नंबर नहीं दिया जाता। ऐसे बहुत से स्कूल हैं जहां मौजूदा खामियों को दूर किया गया है या दूर करने का प्रयास हो रहा है। इसी साल सीबीएसई के बोर्ड में नंबर नहीं दिये जायेंगे। उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में बोर्ड के इम्तहानों में करीब बीस लाख से ज़्यादा बच्चे फेल हो गए थे। इन सभी हकीकतों के बीच आमिर की यह फिल्म एजुकेशन के सिस्टम को कॉमिक में बदल देती है। जो मन करो वही पढ़ो। यही आदर्श स्थिति है लेकिन ऐसा सिस्टम नहीं होता। न पूंजीवाद के दफ्तर में और न कालेज में। अभी तक कोई ठोस विकल्प सामने नहीं आया है। प्रतिभायें कालेज में नहीं पनपती हैं। यह एक मान्य परंपरा है। थ्री इडियट्स विकल्प नहीं है। मौजूदा सिस्टम से निकलने और घूम फिर कर वहीं पहुंच जाने की एक सामान्य फिल्म है। जिस तरह से तारे ज़मीन पर मज़ूबती से हमारे मानस पर चोट करती है और एक मकसद में बदल जाती है,उस तरह से थ्री इडियट्स नहीं कर पाती है। चंद दोस्तों की कहानियों के ज़रिये गढ़े गए भावुकता के क्षण सामूहिक बनते तो हैं लेकिन दर्शकों को बांधने के लिए,न कि सोचने के लिए मजबूर करने के लिए। फिल्मों के तमाम भावुक क्षण खुद ही अपने बंधनों से आजाद हो जाते हैं। तो सहपाठी आत्महत्या करता है उसका प्लॉट किसी मकसद में नहीं बदल पाता। दफनाने के साथ उसकी कहानी खतम हो जाती है। कहानी कालेज में तीन मसखरों की हो जाती है जो इस सिस्टम को उल्लू बनाने का रास्ता निकालने में माहिर हैं। ऐसे माहिर और प्रतिभाशाली बदमाश हर कालेज में मिल जाते हैं। चेतन भगत की दूसरी किताब पढ़ी है। टू स्टेट्स। थ्री इडियट्स की कहानी अगर पहली किताब फाइव प्वाइंट्स समवन से प्रभावित है तो यह साबित हो जाता है कि फिल्म आईआईटी में गए एक कामयाब लड़के की कहानी है जो आईआईटी के सिस्टम को एक नॉन सीरीयस तरीके से देखता है। चेतन भगत का इस विवाद में उलझना बताता है कि उसकी कहानियों का यह किरदार लेखक एक चालू किस्म का बाज़ारू आदमी है। क्रेडिट और पैसा। दोनों बराबर और ठीक जगह पर चाहिए। विधु विनोद चोपड़ा का जवाब बताता है कि कामयाबी के लिए क्या-क्या किये जा सकते हैं। परदे पर चेतन को क्रेडिट मिली है। लेकिन कितनी मिली है उसे इंच टेप से नापा जाना बताता है कि फिल्म अपने मकसद में कमज़ोर है। इसीलिए इस फिल्म की कहानी लगान और तारे ज़मीं पर जैसी नहीं है। हां दोस्ती के रिश्तों को फिर से याद दिलाने की कोशिश ज़रूर है। आमिर खान किसी कहानी में ऐसे फिट हो जाते हैं जैसे वो कहानी उन्हीं के लिए बनी हो। आमिर अपने किरदार में सही नाप के जूते में पांव की तरह फिट हो जाते हैं। कहानी इसलिए अपनी लगती है क्योंकि कंपटीशन अब एक व्यापक सामाजिक दायरे में हैं। शिक्षा और उससे पैदा होने वाली कामयाबी का विस्तार हुआ है। हम भी कामयाब हैं और आमिर भी कामयाब है। पहले ज़िले में चार लोग कामयाब होते थे, अब चार हज़ार होते हैं। मेरे ही गांव में ज़्यादातर लोगों के पास अब पक्के के मकान है। पहले तीन चार लोगों के होते थे। कामयाबी के सार्वजनिक अनुभव के इस युग में यह फिल्म कई लोगों के दिलों से जुड़ जाती है। भारत महान के प्रखर चिंतकों के लेखों में एक कामयाब मुल्क बनने की ख्वाहिश दिखती है। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी का भारत या अगला दशक भारत का। भारत एक मुल्क के रूप में कंपटीशन में शामिल हो गया है। ज़ाहिर है नागरिकों के पास विकल्प कम होंगे। सब रेस में दौ़ड़ रहे हैं। आत्महत्या करने वालों की कोई कमी नहीं है। दिमाग फट रहे हैं। सिस्टम क्रूर हो रहा है। काश थ्री इडियट्स के ये किरदार मिलकर इसकी क्रूरता पर ठोस प्रहार करते। लेकिन ये क्या। ये तीनों कहानी की आखिर में लौटते हैं कामयाब ही होकर। अगर कामयाब न होते तो कहानी का मामूली संदेश की लाज भी नहीं रख पाते। बड़ी सी कार में दिल्ली से शिमला और शिमला से मनाली होते लद्दाख। साधारण और सिर्फ सर्जनात्मक किस्म के लोगों की कहानी नहीं हो सकती। ये कामयाब लोगों की कहानी है जो काबिल भी हैं। कामयाब चतुर रामालिंगम भी है। दोनों अंत में एक डील साइन करने के लिए मिलते हैं। एक दूसरे की सलामी ठोंकते हैं। थोड़ा मज़ा भी लेते हैं। वो सिस्टम से बगावत नहीं करते हैं, एडजस्ट होने के लिए टाइम मांग लेते हैं। सिस्टम का विकल्प नहीं देती है यह फिल्म। न ही तारे ज़मीं की तरह सिस्टम में अपने किरदार के लिए जगह देने की मांग करती है। मनोरजंन करने में कामयाब हो जाती है। शायद किसी फिल्म के लिए यही सबसे बड़ा पैमाना है। साढ़े चार स्टार्स की फिल्म। From RAVISH at NDTV.COM Wed Jan 6 23:48:22 2010 From: RAVISH at NDTV.COM (Ravish Kumar) Date: Wed, 6 Jan 2010 23:48:22 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= [?????]3 ??????? ?? ???? ????? References: <4B448C8D.1030708@sarai.net> Message-ID: <00682802BF86B74395257E1EABF5DB6A218BF784@DEL-BE1.ARCHANA.NDTV.COM> ???? ?? ???? ?? ???? ? ??? ??? ????? ?????? ????? ?? ??? ??? ??? ????? ?? ??? ?? ???????? ??? ???? ????? ?? ????? ?? ??? ??? ????? ???? ???? ??? ???? ???? ?? ????? ??? ???? ???? ????? ?? ????? ?? ??? ????? ???? ??? ????? ???? ??? ?? ??? ??? ??? ?? ???? ????????? ?????? ?????? ?? ?????? ??? ??? ???! ?????? ?? ???? ???? ????? ??????? ?? ??? ?????? ?? ?????? ???? ??? ???????? ?? ?? ???????? ?? ???? ?????? ????? ?? ??? ???? ???? ??? ??? ?????? ?? ???? ???? ?? ??? ????? ???? ???? ?? ????? ??????? ??? ????? ??????? ???????? ???? ?? ???? ????? ?? ??? ???? ????? ??????? ?????? ?? ????? ???? ???? ?? ????? ????? ?? ??? ??? ??? ??????? ?? ???????? ???? ???? ?? ??????? ?????? ???????? ??? ???? ?? ??? ?? ??????? ???? ??? ?? ?????? ????? ?? ???? ???? ?????? ??? ?? ??? ???????? ???? ?? ?????? ???? ??? ?? ??? ???? ??? ?? ?? ?? ????? ?? ??? ??? ???? ??? ???? ?? ???? ?? ?????? ????? ????? ?????? ??? ?? ?? ??? ????????? ?? ?????? ???, ???? ???? ?? ??? ?? ???? ??????? ?? ????? ???????? ???? ?????? ?? ?? ????? ??? ??? ?? ?????? ??? ???? ???. ???? ?? ????? ?? ?? ????? ??? ?? ??????? ??? ??? ???????? ??????? ???? ???? ????? ?? ?????? ??? ????? ??, ?? ??? ??? ??? ???? ?????? ????? ________________________________ From: deewan-bounces at mail.sarai.net on behalf of ravikant Sent: Wed 1/6/2010 6:43 PM To: deewan at sarai.net; filmashish at gmail.com Subject: [?????]3 ??????? ?? ???? ????? ?? ?????? ?????? ??????? ?? ???? ???? ?? ???????? ??? ???? ???, ?? ???? ????? ?? ??, ????? ??? ???? ???? ???? ???. ?? ???? ?????? ?? ??? ????? ???? ??? ?? ???? ??? ??? ??????. ??????? ???? ?? ??? ?? ???? ?????? ?? ???? ???? ???? ?? ??? ????? ?? ???????? ??? ???-??? ?? ??? ??, ???? ??? ??? ?? ???????? ??? ?? ???? ?? ??? ???. ?? ?????? ???? ???? ??? ??????? ????? ??, ?? ?????? ?????? ??? ???? ??? ????. ???? ????? ???, ?? ???? ???-????? ???? ?? ??????? ?? ????? ??? ???? ?? ?? ????? ??! ???????? Hi, Take another look at 3 idiots with Ravish Kumar. Visit http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ And dont forget to post your comments. Best, Ashish K Singh (for New Delhi Film Society: An e film society) ?????? ??? ??? ???? ??????? - ???? ????? ????? ??? ??????? ?? ?????? ??? ??? ??? ???? ?????? ?? ?? ??? ???? ???? ???? ???? ??? ??? ?? ??????? ????? ?? ?????? ????? ?? ??? ??? ??? ????? ??? ?? ????? ?? ???? ?? ??????? ?? ??? ?? ?? ????? ?? ???? ??? ??? ???? ?? ?? ??? ??? ???? ??????? ?? ????? ?????? ??????? ?? ???? ?? ??? ????? ?? ???? ??? ????? ???? ?????? ?? ??????? ????? ??? ??????? ????? ?? ???? ????? ??? ????? ???? ???? ????????? ?? ??? ??? ???? ??? ??? ????? ?? ?????? ????? ?? ????? ?????? ?? ???? ?????? ??? ????? ?????? ?? ?? ????????? ?? ?????? ????? ?? ???? ???? ???? ??? ???? ?????? ?? ????? ?? ???? ?? ???? ???? ????? ?? ???? ????? ??? ?? ???????? ?? ??? ???? ??? ???? ????? ???? ?? ???? ?????? ?? ??? ???? ??? ?? ??? ???? ???? ?? ???? ??? ?????? ??????????? ??? ???? ???? ????????? ?? ??? ???? ??? ??? ????????? ?? ?? ????????????? ????? ??????? ???? ?? ????? ???? ?? ??? ?????????? ??? ?? ??? ??? ?? ??? ???? ??? ???? ??????? ?? ???? ???? ?????????? ??? ?????????? ?????? ??????? ?? ?????? ???? ?? ???? ???? ??? ???? ?? ??? ?? ??????? ?? ?????? ??? ??????? ?? ???? ???? ?? ???? ?? ??? ??? ???? ?? ?? ???????? ???? ???? ????? ???? ?? ???? ??? ??????? ??? ????? ??????? ?????????? ?? ??????? ?? ?? ?????? ??? ??? ???? ??? ???? ?????????? ?? ??????? ??? ????? ??? ???? ?????? ?? ??? ??????? ?? ??? ?? ??? ???????? ?? ???????? ??? ?? ???? ???? ??? ??? ??? ?? ??? ?? ????? ?? ??? ??? ???? ???? ?????? ??? ???? ?? ?? ????? ??????? ?? ???? ??? ????? ??? ?????? ??? ?? ???? ?? ?? ?? ?? ???? ?? ??????? ?? ?? ?? ?????? ???????? ?? ????? ?? ?????? ?? ???? ?? ??????? ???? ???? ????? ?? ?????? ?? ??? ???? ??????? ????? ????????? ?????? ?? ???????? ????? ?? ?????? ???? ??? ???????? ?? ???? ?? ?? ??????? ?? ?????? ?????? ??? ????? ???? ????????? ?????? ?? ???? ??? ?????? ??? ?? ?????? ?? ???? ??????? ????? ?? ??????? ?? ??? ???? ???? ???? ?? ????? ?? ???? ??? ??????? ?? ???? ?????? ???? ?? ?????? ???? ????? ?? ?? ?????? ???? ?? ???? ?? ????? ?? ??????????? ?? ???? ????? ???? ??? ???? ?? ???? ?? ????? ?? ????? ??????? ?? ????? ??? ?? ????? ???? ?? ???? ?? ?????? ??? ????? ?? ??? ??? ????? ?????? ??? ?? ??????? ????? ??? ?? ???????? ?? ????? ? ?? ??? ???? ??? ????? ??????? ?????? ?? ??????? ???????? ???? ??? ???? ???? ???? ??? ???? ?? ?? ?????? ??? ????? ?? ???? ??? ???? ???? ???? ??? ???? ?? ?? ?? ??? ??? ?? ?? ??? ?? ??? ?? ??? ??? ??? ??? ???? ???? ?? ?? ????? ??? ??? ???? ???? ???? ?????? ?????-????? ???? ???? ??? ????? ????? ??? ???? ???? ?? ?? ???? ??? ?? ????? ?? ??????? ???? ???? ????? ??? ???? ??? ?? ????? ??? ??? ???????? "??? ??????? ?? ??,????? ??? ?????? ???? ? ???? ???? ??? ???? ?? ? ???? ???? ???? ??? ????, ?? ?????? ????? ? ?????? ?? ??????? ?? ?????????? ?? ???? ?? ??? ????? ???????. ??????????? ?? ?????? ????? ???????? ???????? ?? ??? ??? ???? ???? ????, ??-?? ????? ??? ???? ??? ?? ???? ??? ????? ?? ??? ??? ???, ???? ?? ??? ?? ???? ???? ????? ??? ????? ?????? ?? ??? ????? ????? ???? ?? ?? ???? ????? ?????? ???? ?? ? ??????, ???? ??? ??????? ?? ????? ??? ???, ??????? ??????, ????????? ???????? ????? ????? ???? ???? ???" ?????? ?????? ??????? ?? ???? ??? ?????? ???? ???? ?? ?? ??? ???? ??? ???? ???????? ?? ?? ????? ??????? ??? ??? ?? ???? ?? ??????? ?? ?? ????????? ?? ?? ?? ????? ?? ???? ?? ???? ????? ?? ??? ??? ???? ??????? ?? ????? ?? ?? ?? ?? ????????? ?? ???? ??? ??? ??? ?? ??? ??? ?? ????? ?? ???? ?? ?? ???? ?? ??? ???? ?? ?????? ??? ???? ??? ?????? ?? ????? ???? ??? ??? ???? ????? ???? ????? ???? ?? ???? ???? ???? ????? ??? ???? ?? ????? ??? ???? ?????? ??????? ?? ??? ???? ??? ?? ?? ??? ???? ?? ?????? ?? ??? ??? ??? ??? ??????? ?? ????? ??? ???? ???? ???? ???????? ????? ?????? ?? ?????????? ??? ????? ?? ????????? ??? ???? ??? ??? ?? ??????? ????? ??? ?? ?? ??? ?? ??? ??????? ?? ??? ???? ?? ?? ????? ??????? ?? ?????? ?? ????? ??? ??? ???? ??? ?? ?? ??? ??? ????? ??? ????? ?????? ?? ????? ??? ?????? ???? ????? ? ???????? ?? ????? ??? ?? ? ????? ???? ??? ?? ??? ??? ?????? ????? ???? ??? ??? ?????????? ????? ??? ???? ????? ???? ?? ?? ????? ?????? ??? ???? ??????? ?????? ???? ??? ?????? ?????? ?? ?????? ?? ??? ??? ?? ???? ????? ???? ?? ?? ??????? ????? ??? ??? ??? ?? ???? ????? ?? ??????? ?? ????? ???? ?? ??? ???? ?? ?? ?? ???? ??? ??? ???? ??,?? ??? ?? ???? ??????? ???? ?? ???? ??? ??? ??????? ?? ???????? ?? ?????? ???? ?? ??????? ?? ???? ??????? ???? ?? ??? ????? ??????? ?? ?????? ?? ???,? ?? ????? ?? ??? ????? ???? ?? ???? ??????? ?? ???? ????? ???? ??? ?? ???? ?????? ?? ???? ?? ???? ???? ?? ?????? ????????? ???? ?? ???? ????? ???? ???? ??? ???? ??? ????? ?????? ?? ??? ???? ????? ??? ?? ???? ??? ????? ????? ??? ??? ?????? ?? ?? ???? ?? ?? ?? ?????? ?? ????? ????? ?? ?????? ??????? ??? ????? ???? ??? ????? ?? ??????????? ????? ?? ????? ??? ??? ???? ???? ???? ??? ?? ????? ????? ???? ??? ?? ???????? ???? ??????? ?? ????? ??? ???? ????? ???? ????????? ???? ?? ???????? ?? ?? ?? ????? ?? ???? ?? ?? ????? ?????? ??? ?? ?? ?????? ????? ?? ????? ?? ?? ?????? ?? ?????? ?? ?? ??? ?????? ????? ?? ????? ??? ???? ??? ?? ?? ????? ??? ????? ????? ?? ?? ???? ???????? ?? ?? ?????? ???? ?? ???? ????? ?? ??????? ???? ??? ??????? ?? ????? ????? ????? ?? ??? ??? ?? ?????? ???? ????? ?????? ?? ???? ????? ?? ?? ??????? ?? ??? ????-???? ???? ?? ???? ???? ???? ?? ???? ?? ??????? ???? ??? ????? ????? ???? ?? ??? ??? ??? ?? ???? ???? ????? ?? ?? ????? ???? ???? ??? ?????? ??? ?????? ?? ????? ?? ????? ???? ?? ???? ????? ?? ???? ???? ??? ??? ?????? ?? ??????? ?? ??? ?? ??? ?????? ?? ????? ????? ??? ???? ??? ???? ????? ??? ??? ??? ?? ???? ??? ???? ?? ????? ?????? ?? ??? ??? ??? ???? ???? ?????? ??? ??? ??? ?? ???? ??? ???? ?? ??? ??? ?? ???? ???? ????? ????? ???? ???? ?? ??????? ??????? ?? ?? ?????? ??????? ????? ??? ???? ?????? ?? ???? ???? ???? ???? ??????? ?? ??????? ??? ??? ?? ?? ?????? ??? ?? ???? ?? ?????? ??? ???? ????? ??? ??? ??? ?????? ???? ??, ?? ??? ????? ???? ???? ???? ?? ???? ??? ????????? ????? ?? ??? ?? ????? ?? ???? ??? ???? ??? ??? ????? ?? ???? ??? ??????? ?? ????????? ????? ?? ?? ??? ??? ?? ????? ?? ????? ?? ????? ?? ???? ???? ??? ???? ???? ?? ????? ??????? ?? ????? ??? ?? ?????? ????? ???? ?? ??????? ????? ??? ?????? ?? ????????? ??? ?? ???? ?? ???? ??? ???? ??? ???? ?? ????? ?? ??? ??? ??????? ??? ????? ?? ??? ??? ?????? ?? ???????? ?? ??? ?????? ?? ?????? ?? ??? ??? ????? ??? ???? ????????? ???? ????? ?? ??? ??? ???? ??? ????? ?? ??? ???? ?????? ????? ?? ??? ??? ??? ???? ??????? ?? ?? ?????? ????? ???? ??????? ?? ??? ?????? ????? ????? ?? ????? ?? ????? ????? ?? ???? ??? ????? ??? ?????? ?? ????? ??? ?????? ? ???? ?? ????? ?? ?????? ????? ?? ??? ?? ???? ?? ????? ???? ?? ??? ??? ?????? ?? ????? ?? ????? ?? ????? ???? ??????? ?????? ?? ????? ?????????? ????? ?? ????? ?? ????? ???? ?? ????? ?? ?????? ????? ?? ????? ?? ?? ????? ?? ???? ?????? ???? ????????? ?? ??? ????? ??? ??? ?? ??? ???? ???? ?? ??? ????? ???? ?? ????? ?? ????? ?????? ???? ????? ???? ?? ???? ???? ?? ?????? ?? ????? ???? ???? ???, ?????? ???? ?? ??? ???? ???? ???? ???? ?????? ?? ?????? ???? ???? ?? ?? ?????? ? ?? ???? ????? ?? ??? ?????? ??? ???? ?????? ?? ??? ??? ???? ?? ???? ???? ??? ??????? ???? ??? ?????? ?? ???? ??? ???? ???? ????? ?? ??? ??? ???? ???? ?????? ??? ????? ??? ??????? ?? ?????? _______________________________________________ Deewan mailing list Deewan at mail.sarai.net http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100106/c00cc9c0/attachment-0001.html From =?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?= Wed Jan 6 23:53:48 2010 From: =?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?= (=?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?=) Date: Wed, 6 Jan 2010 23:53:48 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KSC4KSn4KWB?= =?utf-8?b?4KS14KSwLi4u4KSv4KWHIOCksuCkv+CkquCkvyDgpLjgpK7gpJ0g4KSu?= =?utf-8?b?4KWH4KSCIOCkqOCkueClgOCkgiDgpIbgpIguLi4=?= Message-ID: On Wed, Jan 6, 2010 at 11:50 PM, wrote: > Send Deewan mailing list submissions to > deewan at mail.sarai.net > > To subscribe or unsubscribe via the World Wide Web, visit > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > or, via email, send a message with subject or body 'help' to > deewan-request at mail.sarai.net > > You can reach the person managing the list at > deewan-owner at mail.sarai.net > > When replying, please edit your Subject line so it is more specific > than "Re: Contents of Deewan digest..." > > > Today's Topics: > > 1. Re: [दीवान] [?????]3 ??????? ?? ???? ????? > (Ravish Kumar) > > > ---------------------------------------------------------------------- > > Message: 1 > Date: Wed, 6 Jan 2010 23:48:22 +0530 > From: "Ravish Kumar" > Subject: Re: [दीवान] [?????]3 ??????? ?? ???? ????? > To: "ravikant" , , > > Message-ID: > <00682802BF86B74395257E1EABF5DB6A218BF784 at DEL-BE1.ARCHANA.NDTV.COM> > Content-Type: text/plain; charset="iso-8859-1" > > ???? ?? ???? ?? ???? ? ??? ??? ????? ?????? ????? ?? ??? ??? ??? ????? ?? > ??? ?? ???????? ??? ???? ????? ?? ????? ?? ??? ??? ????? ???? ???? ??? ???? > ???? ?? ????? ??? ???? ???? ????? ?? ????? ?? ??? ????? ???? ??? ????? ???? > ??? ?? ??? ??? ??? ?? ???? ????????? ?????? ?????? ?? ?????? ??? ??? ???! > ?????? ?? ???? ???? ????? ??????? ?? ??? ?????? ?? ?????? ???? ??? ???????? > ?? ?? ???????? ?? ???? ?????? ????? ?? ??? ???? ???? ??? ??? ?????? ?? ???? > ???? ?? ??? ????? ???? ???? ?? ????? ??????? ??? ????? ??????? ???????? ???? > ?? ???? ????? ?? ??? ???? ????? ??????? ?????? ?? ????? ???? ???? ?? ????? > ????? ?? ??? ??? ??? ??????? ?? ???????? ???? ???? ?? ??????? ?????? > > ???????? ??? ???? ?? ??? ?? ??????? ???? ??? ?? ?????? ????? ?? ???? ???? > ?????? ??? ?? ??? ???????? ???? ?? ?????? ???? ??? ?? ??? ???? ??? ?? ?? ?? > ????? ?? ??? ??? ???? ??? ???? ?? ???? ?? ?????? ????? ????? ?????? ??? ?? > ?? ??? ????????? ?? ?????? ???, ???? ???? ?? ??? ?? ???? ??????? ?? ????? > ???????? ???? ?????? ?? ?? ????? ??? ??? ?? ?????? ??? ???? ???. ???? ?? > ????? ?? ?? ????? ??? ?? ??????? ??? ??? ???????? ??????? ???? ???? ????? ?? > ?????? ??? ????? ??, ?? ??? ??? ??? > ???? > > ?????? ????? > > ________________________________ > > From: deewan-bounces at mail.sarai.net on behalf of ravikant > Sent: Wed 1/6/2010 6:43 PM > To: deewan at sarai.net; filmashish at gmail.com > Subject: [?????]3 ??????? ?? ???? ????? > > > > ?? ?????? ?????? ??????? ?? ???? ???? ?? ???????? ??? ???? ???, ?? ???? > ????? ?? > ??, ????? ??? ???? ???? ???? ???. ?? ???? ?????? ?? ??? ????? ???? ??? ?? > ???? ??? ??? > ??????. ??????? ???? ?? ??? ?? ???? ?????? ?? ???? ???? ???? ?? ??? ????? > ?? > ???????? ??? ???-??? ?? ??? ??, ???? ??? ??? ?? ???????? ??? ?? ???? ?? ??? > ???. ?? ?????? > ???? ???? ??? ??????? ????? ??, ?? ?????? ?????? ??? ???? ??? ????. > > ???? ????? ???, ?? ???? ???-????? ???? ?? ??????? ?? ????? ??? ???? ?? ?? > ????? ??! > > ???????? > > > Hi, > > Take another look at 3 idiots with Ravish Kumar. > > Visit http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ > > And dont forget to post your comments. > > Best, > > Ashish K Singh > > (for New Delhi Film Society: An e film society) > > > ?????? ??? ??? ???? ??????? > > > - ???? ????? > > > ????? ??? ??????? ?? ?????? ??? ??? ??? ???? ?????? ?? ?? ??? ???? ???? > ???? ???? ??? > ??? ?? ??????? ????? ?? ?????? ????? ?? ??? ??? ??? ????? ??? ?? ????? ?? > ???? ?? ??????? ?? ??? ?? ?? ????? ?? ???? ??? ??? ???? ?? ?? ??? ??? ???? > ??????? ?? ????? ?????? ??????? ?? ???? ?? ??? ????? ?? ???? ??? ????? ???? > ?????? ?? ??????? ????? ??? ??????? ????? ?? ???? ????? ??? ????? ???? ???? > ????????? ?? ??? ??? ???? ??? ??? > ????? ?? ?????? ????? ?? ????? ?????? ?? ???? ?????? ??? ????? ?????? ?? ?? > ????????? > ?? ?????? ????? ?? ???? ???? ???? ??? ???? ?????? ?? ????? ?? ???? ?? ???? > ???? ????? ?? > ???? ????? ??? ?? ???????? ?? ??? ???? ??? ???? ????? ???? ?? ???? ?????? > ?? ??? > ???? ??? ?? ??? ???? ???? ?? ???? ??? > > ?????? ??????????? ??? ???? ???? ????????? ?? ??? ???? ??? ??? ????????? ?? > ?? ????????????? > ????? ??????? ???? ?? ????? ???? ?? ??? ?????????? ??? ?? ??? ??? ?? ??? > ???? > ??? ???? ??????? ?? ???? ???? ?????????? ??? ?????????? ?????? ??????? ?? > ?????? ???? > ?? ???? ???? ??? ???? ?? ??? ?? ??????? ?? ?????? ??? ??????? ?? ???? ???? > ?? ???? ?? ??? > ??? ???? ?? ?? ???????? ???? ???? ????? ???? ?? ???? ??? ??????? ??? ????? > ??????? > ?????????? ?? ??????? ?? ?? ?????? ??? ??? ???? ??? ???? ?????????? ?? > ??????? ??? ????? > ??? ???? ?????? ?? ??? ??????? ?? ??? ?? ??? ???????? ?? ???????? ??? ?? > ???? ???? ??? > ??? ??? ?? ??? ?? ????? ?? ??? ??? ???? ???? ?????? ??? ???? ?? ?? ????? > ??????? ?? > ???? ??? ????? ??? ?????? ??? ?? ???? ?? ?? ?? ?? ???? ?? ??????? ?? ?? ?? > ?????? ???????? ?? ????? ?? ?????? ?? ???? ?? ??????? ???? ???? ????? ?? > ?????? ?? ??? ???? > ??????? ????? ????????? ?????? ?? ???????? ????? ?? ?????? ???? ??? > ???????? ?? > ???? ?? ?? ??????? ?? ?????? ?????? ??? ????? ???? ????????? ?????? ?? ???? > ??? > ?????? ??? ?? ?????? ?? ???? ??????? ????? ?? ??????? ?? ??? ???? ???? ???? > ?? > ????? ?? ???? ??? ??????? ?? ???? ?????? ???? ?? ?????? ???? ????? ?? ?? > ?????? > ???? ?? ???? ?? ????? ?? ??????????? ?? ???? ????? ???? ??? ???? ?? ???? ?? > ????? > ?? ????? ??????? ?? ????? ??? ?? ????? ???? ?? ???? ?? ?????? ??? ????? ?? > ??? ??? ????? > > ?????? ??? ?? ??????? ????? ??? ?? ???????? ?? ????? ? ?? ??? ???? ??? > ????? ??????? > ?????? ?? ??????? ???????? ???? ??? ???? ???? ???? ??? ???? ?? ?? ?????? > ??? ????? ?? > ???? ??? ???? ???? ???? ??? ???? ?? ?? ?? ??? ??? ?? ?? ??? ?? ??? ?? ??? > ??? ??? > ??? ???? ???? ?? ?? ????? ??? ??? ???? ???? ???? ?????? ?????-????? ???? > ???? ??? ????? ????? > ??? ???? ???? ?? ?? ???? ??? ?? ????? ?? ??????? ???? ???? > > ????? ??? ???? ??? ?? ????? ??? ??? ???????? "??? ??????? ?? ??,????? ??? > ?????? > ???? ? ???? ???? ??? ???? ?? ? ???? ???? ???? ??? ????, ?? ?????? ????? ? > ?????? ?? > ??????? ?? ?????????? ?? ???? ?? ??? ????? ???????. ??????????? ?? ?????? > ????? ???????? > ???????? ?? ??? ??? ???? ???? ????, ??-?? ????? ??? ???? ??? ?? ???? ??? > ????? ?? > ??? ??? ???, ???? ?? ??? ?? ???? ???? ????? ??? ????? ?????? ?? ??? ????? > ????? > ???? ?? ?? ???? ????? ?????? ???? ?? ? ??????, ???? ??? ??????? ?? ????? > ??? ???, > ??????? ??????, ????????? ???????? ????? ????? ???? ???? ???" > ?????? ?????? ??????? ?? ???? ??? ?????? ???? ???? ?? ?? ??? ???? ??? ???? > ???????? ?? ?? > ????? ??????? ??? ??? ?? ???? ?? ??????? ?? ?? ????????? ?? ?? ?? ????? ?? > ???? ?? > ???? ????? ?? ??? ??? ???? ??????? ?? ????? ?? ?? ?? ?? ????????? ?? ???? > ??? ??? > ??? ?? ??? ??? ?? ????? ?? ???? ?? ?? ???? ?? ??? ???? ?? ?????? ??? ???? > ??? > ?????? ?? ????? ???? ??? ??? ???? ????? ???? ????? ???? ?? ???? ???? ???? > ????? > ??? ???? ?? ????? ??? ???? ?????? ??????? ?? ??? ???? ??? ?? ?? ??? ???? ?? > ?????? ?? > ??? ??? ??? ??? ??????? ?? ????? ??? ???? ???? ???? ???????? ????? ?????? > ?? ?????????? ??? > ????? ?? ????????? ??? ???? ??? ??? ?? ??????? ????? ??? ?? ?? ??? > > ?? ??? ??????? ?? ??? ???? ?? ?? ????? ??????? ?? ?????? ?? ????? ??? ??? > ???? ??? > ?? ?? ??? ??? ????? ??? ????? ?????? ?? ????? ??? ?????? ???? ????? ? > ???????? ?? > ????? ??? ?? ? ????? ???? ??? ?? ??? ??? ?????? ????? ???? ??? ??? > ?????????? ????? ??? > ???? ????? ???? ?? ?? ????? ?????? ??? ???? ??????? ?????? ???? ??? ?????? > ?????? ?? > ?????? ?? ??? ??? ?? ???? ????? ???? ?? ?? ??????? ????? ??? ??? ??? ?? > ???? ????? > ?? ??????? ?? ????? ???? ?? ??? ???? ?? ?? ?? ???? ??? ??? ???? ??,?? ??? > ?? ???? > ??????? ???? ?? ???? ??? ??? ??????? ?? ???????? ?? ?????? ???? ?? ??????? > ?? ???? > ??????? ???? ?? ??? ????? ??????? ?? ?????? ?? ???,? ?? ????? ?? ??? ????? > ???? ?? ???? > ??????? ?? ???? ????? ???? ??? ?? ???? ?????? ?? ???? ?? ???? ???? ?? > ?????? ????????? > ???? ?? ???? ????? ???? ???? ??? ???? ??? ????? ?????? ?? ??? ???? ????? > ??? ?? > ???? ??? ????? ????? ??? ??? ?????? ?? ?? ???? ?? ?? ?? ?????? ?? ????? > ????? ?? > ?????? ??????? ??? ????? ???? ??? ????? ?? ??????????? ????? ?? ????? ??? > ??? ???? ???? > > ???? ??? ?? ????? ????? ???? ??? ?? ???????? ???? ??????? ?? ????? ??? ???? > ????? > ???? ????????? ???? ?? ???????? ?? ?? ?? ????? ?? ???? ?? ?? ????? ?????? > ??? ?? > ?? ?????? ????? ?? ????? ?? ?? ?????? ?? ?????? ?? ?? ??? ?????? ????? ?? > ????? > ??? ???? ??? ?? ?? ????? ??? ????? ????? ?? ?? ???? ???????? ?? ?? ?????? > ???? > ?? ???? ????? ?? ??????? ???? ??? ??????? ?? ????? ????? ????? ?? ??? ??? > ?? > ?????? ???? ????? ?????? ?? ???? ????? ?? ?? ??????? ?? ??? ????-???? ???? > ?? > ???? ???? ???? ?? ???? ?? ??????? ???? ??? ????? ????? ???? ?? ??? ??? ??? > ?? ???? > ???? ????? ?? ?? ????? ???? ???? ??? ?????? ??? > > ?????? ?? ????? ?? ????? ???? ?? ???? ????? ?? ???? ???? ??? ??? ?????? ?? > ??????? > ?? ??? ?? ??? ?????? ?? ????? ????? ??? ???? ??? ???? ????? ??? ??? ??? ?? > ???? ??? > ???? ?? ????? ?????? ?? ??? ??? ??? ???? ???? ?????? ??? ??? ??? ?? ???? > ??? ???? ?? > ??? ??? ?? ???? ???? ????? ????? ???? ???? ?? ??????? ??????? ?? ?? ?????? > ??????? ????? ??? ???? ?????? ?? ???? ???? ???? ???? ??????? ?? ??????? ??? > ??? ?? > ?? ?????? ??? ?? ???? ?? ?????? ??? ???? ????? ??? ??? ??? ?????? ???? ??, > ?? ??? > ????? ???? ???? ???? ?? ???? ??? ????????? ????? ?? ??? ?? ????? ?? ???? > ??? ???? ??? ??? > ????? ?? ???? ??? ??????? ?? ????????? ????? ?? ?? ??? ??? ?? ????? ?? > ????? ?? ????? ?? > ???? ???? ??? > > ???? ???? ?? ????? ??????? ?? ????? ??? ?? ?????? ????? ???? ?? ??????? > ????? ??? > ?????? ?? ????????? ??? ?? ???? ?? ???? ??? ???? ??? ???? ?? ????? ?? ??? > ??? > ??????? ??? ????? ?? ??? ??? ?????? ?? ???????? ?? ??? ?????? ?? ?????? ?? > ??? ??? ????? > ??? ???? ????????? ???? ????? ?? ??? ??? ???? ??? ????? ?? ??? ???? ?????? > ????? ?? ??? > ??? ??? ???? ??????? ?? ?? ?????? ????? ???? ??????? ?? ??? ?????? ????? > ????? ?? > ????? ?? ????? ????? ?? ???? ??? ????? ??? ?????? ?? ????? ??? ?????? ? > ???? ?? > ????? ?? ?????? ????? ?? ??? ?? ???? ?? ????? ???? ?? ??? ??? ?????? ?? > ????? ?? > ????? ?? ????? ???? ??????? ?????? ?? ????? ?????????? ????? ?? ????? ?? > ????? > ???? ?? ????? ?? ?????? ????? ?? ????? ?? ?? ????? ?? ???? ?????? ???? > ????????? > ?? ??? ????? ??? ??? ?? ??? ???? ???? ?? ??? ????? ???? ?? ????? ?? ????? > ?????? ???? > ????? ???? ?? ???? ???? ?? ?????? ?? ????? ???? ???? ???, ?????? ???? ?? > ??? ???? ???? > ???? ???? ?????? ?? ?????? ???? ???? ?? ?? ?????? ? ?? ???? ????? ?? ??? > ?????? ??? ???? > ?????? ?? ??? ??? ???? ?? ???? ???? ??? ??????? ???? ??? ?????? ?? ???? ??? > ???? > ???? ????? ?? ??? ??? ???? ???? ?????? ??? ????? ??? ??????? ?? ?????? > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > > -------------- next part -------------- > An HTML attachment was scrubbed... > URL: > http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100106/c00cc9c0/attachment.html > > ------------------------------ > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > > End of Deewan Digest, Vol 176, Issue 2 > ************************************** > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100106/daa94af4/attachment.html From pheeta.ram at gmail.com Thu Jan 7 05:31:32 2010 From: pheeta.ram at gmail.com (Pheeta Ram) Date: Thu, 7 Jan 2010 05:31:32 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?MyDgpIjgpKHgpL8=?= =?utf-8?b?4KSv4KSf4KWN4KS4IOCkquCksCDgpLDgpLXgpYDgpLYg4KSV4KWB4KSu?= =?utf-8?b?4KS+4KSw?= In-Reply-To: <4B448C8D.1030708@sarai.net> References: <4B448C8D.1030708@sarai.net> Message-ID: <5bedab661001061601o596b2c50w391b508ed5da9f9e@mail.gmail.com> भाई jan, जब सब लोग तालिआं बजानें लगें तो मामला गड़बड़ समझो. रविकांत से मैं इस बात पर सहमत हूँ की फिल्म का नाम 'फ़िल्मी इतिहास' मैं आयेगा ही; यह अलग बात है की वो इतिहास कौन लिखता है. रविश का लेख फिल्म मैं समस्या के दिल को टटोल लेता है, इसके लिये वह प्रशंशा का पात्र है. एक बदनाम साधू का कहा याद आता है जो कहता था "हसिबा खेलिबा करीबा धयानं"; अगर फिल्म के संधर्ब में मैं यह कहूं की "हसिबा खेलिबा करीबा ideology " तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. कॉमेडी और ideology का गहरा सम्बन्ध है. ( नाम नहीं लूँगा, गेस karo) फिल्म के बारे मैं लोगों के विचार उन लोगों की 'स्थिति' के बारे मैं जयादा बताते हैं बजाई की फिल्म के. यह सभ पर लागू होता है, मुझ पर भी. जब मुझे 'lays चिप्स' बहुत स्वाद लगने लगते है तो यह सोचनें पर मजबूर हो जाता हूँ की क्यों कर यह इतने स्वाद बनाए गये है. फिर यह सोचता हूँ की स्वाद आलू मैं है या पकेट में या जहाँ से खरीदा है वहां या फिर सैफ अली खान के प्रोमो में - आखिर कहाँ? लेकिन इन सब के बाबजूद 'स्वाद' और 'सत्य' में फर्क तो है. ज़रूरी नहीं की जो चीज़ मुझे स्वाद लगे वोह मेरे हित में भी हो. सुना है की बहुत से खतरनाक ज़हर बहुत मीठे होते हैं. जिस तरह की विषमताएं हमारे समाज में हैं यह कहना की फिल्म 'सबको' पसंद आयी है क्यों की इसने इतने दिनों में इतने करोर कमा लिये हैं एक भद्दा और अश्लील व्यंग्य है, किस पर यह सबको पता hai. फिल्म ka critique बहु आयामी होना चाहिये ( यह रविश के लिये: लोग सीधी-सीधी दो टूक बात पसंद नहीं करते, सच भी लाग लपेट कर बोलना परता है, इस तरह की लोग समझ न पायें और प्रशंशा भी कर dain). Ideology से लेकर एक्टिंग तक. फिल्म main आमिर की एक्टिंग प्रशंश्यनिया है ( जैसे की और लोगों की), फोटोग्राफी भी बढ़िया है, lighting और sound भी (यद्यपि किन्हीं शोट्स पर लगा की कुछ अलग और barhiya हो सकती है), 'प्लाट' ऐसा ki लगता था जैसे की लोगों पर टोटका कर दिया गया हो, सीट से 'बांध' दिये गये हो जैसे: और यह खतरनाक बात है! रविकांत भाई, इतिहास तो लिखा जायेगा लेकिन यह किस शकल में होगा और इसके व्याकरण में कोन से अलंकार होंगे यह टाइम ही बताएगा या फिर दिल्ली की सर्दी में रात को ठिठुरते फूटपाथ के अँधेरे kone में दुबका कुछ इंसानों का दहकता ज़लज़ला. कुछ लोग अलग विचार रखने के लिए ही अलग आलाप लगाते हैं, shayad मेरे jaisae. वाके में फिल्म बहुत स्वाद थी, लेस चिप्स jaise! ज़रा पूछना भाई आप kaun सी अखबार चाट-tae हैं..... रविकांत के विचारों की बाट जोहता फीता ram 2010/1/6 ravikant > नई दिल्ली फ़िल्म सोसायटी के आशीष सिंह का शुक्रिया अदा करते हुए, और रवीश > कुमार का > भी, जिनसे मैं क़तई सहमत नहीं हूँ. पर अपनी असहमति को मैं थोड़े लंबे लेख की > शक्ल में पेश > करूँगा. फ़िलहाल इतना कह दूँ कि राजू हिरानी और आमिर ख़ान अपनी जो बात पिछली > कई > फ़िल्मों में अलग-अलग कह रहे थे, उसको साथ आकर और मुकम्म्ल ढंग से यहाँ कह पाए > हैं. ये फ़िल्म > मेरी सूची में बेहतरीन ठहरती है, और फ़िल्म इतिहास में इसका नाम आएगा. > > जल्द मिलते हैं, पर पहले धीर-गंभीर रवीश की गंभीरता पर थोड़ा हँस लेने को जी > चाहता है! > > रविकान्त > > > Hi, > > Take another look at 3 idiots with Ravish Kumar. > > Visit http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ > > And dont forget to post your comments. > > Best, > > Ashish K Singh > > (for New Delhi Film Society: An e film society) > > > सिस्टम में फिट थ्री इडियट्स > > > - रवीश कुमार > > > साढ़े चार स्टार्स की फ़िल्म देख रहा था। तारे छिटकते थे और फिर कहीं कहीं > जुड़ जाते थे। > साल की असाधारण फिल्म की साधारण कहानी चल रही थी। चार दिनों में सौ करोड़ की > कमाई का रिकार्ड बज रहा था और दिमाग के भीतर कोई छवि नहीं बन पा रही थी। थ्री > इडियट्स की कहानी शिक्षा प्रणाली को लेकर हो रही बहसों के तनाव में कॉमिक राहत > दिलाने की सामान्य कोशिश है। कामयाबी काबिल के पीछे भागती है। संदेश किसी बाबा > रणछोड़दास का बार बार गूंज रहा था। > पढ़ाई का सिस्टम ख़राब है लेकिन विकल्प भी बहुत बेकार। इसी ख़राब सिस्टम ने कई > प्रतिभाओं > को विकल्प चुनने के मौके दिये हैं। इसी खराब सिस्टम ने लोगों को सड़ा भी दिये > हैं। लेकिन यह > टाइम दूसरा है। हम विकल्पों के लिए तड़प रहे हैं। लेकिन क्या हम वाकई विकल्प > का कोई > मॉडल बना पा रहे हैं? सवाल हम सबसे है। > > मद्रास प्रेसिडेंसी में सबसे पहले इम्तहानों का दौर शुरू हुआ था। अंग्रेजों ने > जब विश्वविद्यालय > बनाकर इम्तहान लिये तो सर्वण जाति के सभी विद्यार्थी फेल हो गए। उसी के बाद > पहली > बार थर्ड डिविज़न का आगमन हुआ। हिंदुस्तान में सर्टिफिकेट आधारित प्रतिभा की > यात्रा यहीं > से शुरू होती है। डेढ़ सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में परीक्षा को लेकर हमने > एक समाज के रूप > में तनाव की कई मंज़िलें देखी हैं। ज़िला टॉपर और पांच बार मैट्रिक फेल अनुभव > प्राप्त > प्रतिभावान और नाकाबिल हर घर परिवार में रहे हैं। दिल वाले दुल्हनियां ले > जायेंगे में अनुपम > खेर अपने खानदान के सभी मेट्रिक से पास या फेल पूर्वजों की तस्वीरें लगा कर > रखते हैं। शाह > रूख खान को दिल की सुनने के लिए भेज देते हैं। पंद्रह साल पहले आई यह कहानी > सुपरहिट हो > जाती है। अनुपम खेर शाहरूख खान से कहता है कि जा तू मेरी भी ज़िंदगी जी कर आ। > शिक्षा व्यवस्था से भागने के रास्ते को लेकर कई फिल्में बनीं हैं। भागने का > रास्ता भी है। थ्री > इडियट्स फिल्म पूंजीवादी सिस्टम को रोमांटिक बनाने का प्रयास करती है। > काबिलियत पर > ज़ोर से ही कामयाबी का रास्ता निकलता है। काबिल होना पूंजीवादी सिस्टम की मांग > है। > रणछोड़ दास का विकल्प भी किसी अमेरिकी कंपनी की कामयाबी के लिए डॉलर पैदा करने > की > पूंजी बन जाता है। कामयाबी के बिना ज़िंदा रहने का रास्ता नहीं बताती है यह > फिल्म। > शायद ये किसी भी फिल्म की ज़िम्मेदारी भी नहीं होती। उसका काम होता है जीवन से > कथाओं > को उठाकर मनोरंजन के सहारे पेश कर देना। ताकि हम तनाव के लम्हों में हंसने की > अदा सीख सकें। > > बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में ही प्रेमचंद की कहानी आ गई थी। बड़े भाई > साहब। इम्तहान > सिस्टम पर बेहतरीन व्यंग्य। बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई साहब को नए सिस्टम > में ढालने के > बड़े जतन करते हैं। छोटा भाई कहता है कि इस जतन में वो एक साल के काम को तीन > तीन साल > में करते हैं। एक ही दर्जे में फेल होते रहते हैं। लिहाजा खेलने-कूदने वाला > छोटा भाई हंसते खेलते > पास होने लगात है और बड़े भाई के दर्जे तक पहुंचने लगते हैं। > > कहानी में बड़े भाई का संवाद है। गौर कीजिएगा। "सफल खिलाड़ी वह है,जिसका कोई > निशाना > खाली न जाए। मेरे फेल होने पर न जाओ। मेरे दरजे में आओगे, तो दांतों पसीना आ > जाएगा। जब > अलजेबरा और ज्योमेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे. इंग्लिस्तान का इतिहास > पढ़ना प़ड़ेगा। > बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं, आठ-आठ हेनरी हुए हैं। कौन सा कांड किस > हेनरी के > समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो। हेनरी सातवें की जगह हेनती > आठवां > लिखा और सब नंबर गायब। सफाचट। सिफर भी न मिलेगा, सिफर भी। दर्जनों तो जेम्स > हुए हैं, > दर्जनों विलियम, कौ़ड़ियों चार्ल्स। दिमाग चक्कर खाने लगता है।" > भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर ऐसे किस्से इसके आगमन से ही भरे पड़े हुए हैं। > प्रेमचंद की यह > कहानी बेहतरीन तंज है। उस वक्त का व्यंग्य है जब इम्तहानों का भय और रूटीन आम > जीवन के > करीब पहुंच ही रहा था। थ्री इडियट्स की कहानी तब की है जब इम्तहानों को लेकर > देश में > बहस चल रही है। एक सहमति बन चुकी है कि नंबर या टॉप करने का सिस्टम ठीक नहीं > है। > दिल्ली के सरदार पटेल में कोई टॉपर घोषित नहीं होता। किसी को नंबर नहीं दिया > जाता। > ऐसे बहुत से स्कूल हैं जहां मौजूदा खामियों को दूर किया गया है या दूर करने का > प्रयास हो > रहा है। इसी साल सीबीएसई के बोर्ड में नंबर नहीं दिये जायेंगे। उत्तर प्रदेश > और मध्यप्रदेश में > बोर्ड के इम्तहानों में करीब बीस लाख से ज़्यादा बच्चे फेल हो गए थे। > > इन सभी हकीकतों के बीच आमिर की यह फिल्म एजुकेशन के सिस्टम को कॉमिक में बदल > देती है। > जो मन करो वही पढ़ो। यही आदर्श स्थिति है लेकिन ऐसा सिस्टम नहीं होता। न > पूंजीवाद के > दफ्तर में और न कालेज में। अभी तक कोई ठोस विकल्प सामने नहीं आया है। > प्रतिभायें कालेज में > नहीं पनपती हैं। यह एक मान्य परंपरा है। थ्री इडियट्स विकल्प नहीं है। मौजूदा > सिस्टम से > निकलने और घूम फिर कर वहीं पहुंच जाने की एक सामान्य फिल्म है। जिस तरह से > तारे ज़मीन > पर मज़ूबती से हमारे मानस पर चोट करती है और एक मकसद में बदल जाती है,उस तरह > से थ्री > इडियट्स नहीं कर पाती है। चंद दोस्तों की कहानियों के ज़रिये गढ़े गए भावुकता > के क्षण > सामूहिक बनते तो हैं लेकिन दर्शकों को बांधने के लिए,न कि सोचने के लिए मजबूर > करने के लिए। > फिल्मों के तमाम भावुक क्षण खुद ही अपने बंधनों से आजाद हो जाते हैं। तो > सहपाठी आत्महत्या > करता है उसका प्लॉट किसी मकसद में नहीं बदल पाता। दफनाने के साथ उसकी कहानी > खतम हो > जाती है। कहानी कालेज में तीन मसखरों की हो जाती है जो इस सिस्टम को उल्लू > बनाने का > रास्ता निकालने में माहिर हैं। ऐसे माहिर और प्रतिभाशाली बदमाश हर कालेज में > मिल जाते हैं। > > चेतन भगत की दूसरी किताब पढ़ी है। टू स्टेट्स। थ्री इडियट्स की कहानी अगर पहली > किताब > फाइव प्वाइंट्स समवन से प्रभावित है तो यह साबित हो जाता है कि फिल्म आईआईटी > में गए > एक कामयाब लड़के की कहानी है जो आईआईटी के सिस्टम को एक नॉन सीरीयस तरीके से > देखता > है। चेतन भगत का इस विवाद में उलझना बताता है कि उसकी कहानियों का यह किरदार > लेखक > एक चालू किस्म का बाज़ारू आदमी है। क्रेडिट और पैसा। दोनों बराबर और ठीक जगह > पर > चाहिए। विधु विनोद चोपड़ा का जवाब बताता है कि कामयाबी के लिए क्या-क्या किये > जा > सकते हैं। परदे पर चेतन को क्रेडिट मिली है। लेकिन कितनी मिली है उसे इंच टेप > से नापा > जाना बताता है कि फिल्म अपने मकसद में कमज़ोर है। > > इसीलिए इस फिल्म की कहानी लगान और तारे ज़मीं पर जैसी नहीं है। हां दोस्ती के > रिश्तों > को फिर से याद दिलाने की कोशिश ज़रूर है। आमिर खान किसी कहानी में ऐसे फिट हो > जाते हैं > जैसे वो कहानी उन्हीं के लिए बनी हो। आमिर अपने किरदार में सही नाप के जूते > में पांव की > तरह फिट हो जाते हैं। कहानी इसलिए अपनी लगती है क्योंकि कंपटीशन अब एक व्यापक > सामाजिक दायरे में हैं। शिक्षा और उससे पैदा होने वाली कामयाबी का विस्तार हुआ > है। हम > भी कामयाब हैं और आमिर भी कामयाब है। पहले ज़िले में चार लोग कामयाब होते थे, > अब चार > हज़ार होते हैं। मेरे ही गांव में ज़्यादातर लोगों के पास अब पक्के के मकान > है। पहले तीन चार > लोगों के होते थे। कामयाबी के सार्वजनिक अनुभव के इस युग में यह फिल्म कई > लोगों के दिलों से > जुड़ जाती है। > > भारत महान के प्रखर चिंतकों के लेखों में एक कामयाब मुल्क बनने की ख्वाहिश > दिखती है। > बीसवीं और इक्कीसवीं सदी का भारत या अगला दशक भारत का। भारत एक मुल्क के रूप > में > कंपटीशन में शामिल हो गया है। ज़ाहिर है नागरिकों के पास विकल्प कम होंगे। सब > रेस में दौ़ड़ > रहे हैं। आत्महत्या करने वालों की कोई कमी नहीं है। दिमाग फट रहे हैं। सिस्टम > क्रूर हो रहा > है। काश थ्री इडियट्स के ये किरदार मिलकर इसकी क्रूरता पर ठोस प्रहार करते। > लेकिन ये > क्या। ये तीनों कहानी की आखिर में लौटते हैं कामयाब ही होकर। अगर कामयाब न > होते तो > कहानी का मामूली संदेश की लाज भी नहीं रख पाते। बड़ी सी कार में दिल्ली से > शिमला और > शिमला से मनाली होते लद्दाख। साधारण और सिर्फ सर्जनात्मक किस्म के लोगों की > कहानी > नहीं हो सकती। ये कामयाब लोगों की कहानी है जो काबिल भी हैं। कामयाब चतुर > रामालिंगम > भी है। दोनों अंत में एक डील साइन करने के लिए मिलते हैं। एक दूसरे की सलामी > ठोंकते हैं। > थोड़ा मज़ा भी लेते हैं। वो सिस्टम से बगावत नहीं करते हैं, एडजस्ट होने के > लिए टाइम मांग > लेते हैं। सिस्टम का विकल्प नहीं देती है यह फिल्म। न ही तारे ज़मीं की तरह > सिस्टम में अपने > किरदार के लिए जगह देने की मांग करती है। मनोरजंन करने में कामयाब हो जाती है। > शायद > किसी फिल्म के लिए यही सबसे बड़ा पैमाना है। साढ़े चार स्टार्स की फिल्म। > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100107/f7e2a6a5/attachment-0001.html From beingred at gmail.com Thu Jan 7 12:14:54 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Thu, 7 Jan 2010 12:14:54 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSG4KSw4KWN4KSl?= =?utf-8?b?4KS/4KSVIOCkruCkguCkpuClgCDgpK7gpYfgpIIg4KSV4KWN4KSv4KS+?= =?utf-8?b?IOCkleCksCDgpLDgpLngpYcg4KS54KWI4KSCIOCkheCksOCljeCkpQ==?= =?utf-8?b?4KS24KS+4KS44KWN4KSk4KWN4KSw4KWAID8=?= Message-ID: <363092e31001062244r18769d94u3acfb2b2f96ec225@mail.gmail.com> आर्थिक मंदी में क्या कर रहे हैं अर्थशास्त्री ? *वैश्विक आर्थिक मंदी में अर्थशास्त्र क्या कर रहा है? कौन सी हलचले हैं वहां? बता रहे हैं अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार विजेता जॉर्ज एकेरलोफ़, जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले में प्रोफ़ेसर हैं, और कोलंबिया विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर जोसेफ़ स्टिग्लिट्ज जिन्हें 2001 में नोबेल पुरस्कार मिला था. दोनों प्रोफ़ेसर वैश्वीकरण के शिल्पकारों में से हैं और साम्राज्यवादी लूट की अहम रणनीतियों के लिए पुरस्कृत किये गए हैं. * *अर्थशास्त्रियों *के पेशे के लिए आर्थिक व वित्तीय संकट एक महत्वपूर्ण क्षण रहा है. क्योंकि इन संकट ने इसके समक्ष कई दीर्घकालिक विचारों को बतौर परीक्षण रखा है. यदि विज्ञान को भविष्य के आकलन की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है, तो अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेशन ने संकट को एक बहुत बड़ी चिंता के रूप में देखा है. हालांकि इसके बावजूद इस पेशे में विचारों की भारी विविधता है, जैसा कि प्राय: देखा-समझा जाता है. इस साल अर्थशास्त्र में नोबेल विजेता दोनों शख्सियतों ने अपना जीवन वैकल्पिक विचार की खोज में लगा दिया है. अर्थशास्त्र ने विचारों की संपदा पैदा किया है, जिसमें से कई दलील देते हैं कि बाजार न तो आवश्यक रूप से दक्ष और न ही स्थिर. और अर्थव्यवस्था या हमारा समाज अर्थशास्त्रियों के बड़े तबके के द्वारा इस्तेमाल में लायी जानेवाली प्रतिस्र्धात्मक समानता के विभिन्न मानकों से वर्णित नहीं किया जाता. उदाहरण के लिए व्यवहारवादी अर्थशास्त्री जोर देते हैं कि बाजार में भागीदार प्राय: कुछ इस तरह से कार्य करते हैं कि उसे आसानी से तार्किकता से सुलझाया नहीं जा सकता. इसी तरह आधुनिक सूचना अर्थशास्त्र दिखाता है कि यदि बाजार प्रतिस्पर्धात्मक है, तो वे तब कार्यदक्ष नहीं होते, जब सूचना अपूर्ण हो या पूर्वाग्रही हो (जैसे कि वित्त संकट के मूल के बारे में कुछ जानते हैं, कुछ नहीं), जैसा कि हमेशा होता है. शोध-रिसर्च की कड़ी ने दिखाया है कि यहां तक कि तथाकथित तार्किक उम्मीदें के मानक की ओर्थक विचारधारा का इस्तेमाल करके भी बाजार स्थिर व्यवहार नहीं करता और कभी भी प्राइस बबल यानी मूल्य बुलबुले पैदा हो सकते हैं. संकट ने दरअसल में भरपूर साक्ष्य उपलब्ध कराया है कि निवेशक शायद ही तार्किक होते हैं, लेकिन तार्किक उम्मीदों की धारा, इस छिपी धारणा के साथ कि सभी निवेशक के पास वही सूचना है, के बावजूद यह संकट पहले से ही गहराता गया था. चूंकि संकट ने नियामक तंत्र की जरूरत को फ़िर से खड़ा किया है. इसलिए इसने नये वैकल्पिक विचार व सोच की खोज को आधार दिया है, जिससे पता चल पाये कि यह ओर्थक व्यवस्था किस जटिल तंत्र में काम करती है और यह भी सूत्र मिल जाये कि कैसे हालिया वित्त संकट की पुनरावृत्ति को टाला जा सकता है. सौभाग्य से कई अर्थशास्त्री आत्म-नियंत्रण और पूर्ण कार्यदक्ष बाजार व्यवस्था की वकालत करते दिख रहे हैं, जो पूर्ण रोजगार की दशा में हमेशा रहे. वहीं कुछ अर्थशास्त्री और समाजविज्ञानी अन्य तरह के वैकल्पिक विचार व उपागम भी टटोल रहे हैं. ये एजेंट आधारित ये मॉडल परिस्थितियों की विविधता यानी नेटवर्क मॉडल पर खासा जोर देते हैं. यह मॉडल फ़र्मो की जटिल अंतरसंबद्धता व अंतरनिर्भरता पर केंद्रित करता है. इसी तरह एक सरसरी निगाह हाइमन मिंस्की के नजरअंदाज किये काम पर भी देनी जरूरी है, जिसने तीन दशक पहले संकट की पुनरावृति पर काम किया था. इसके साथ ही अभिनव मॉडल भी है, जो विकास की गतिशीलता को समझाने से जुड़ा है. *पूरा पढ़िए : **आर्थिक मंदी में क्या कर रहे हैं अर्थशास्त्री ?* * *-- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100107/c07498c4/attachment.html From filmashish at gmail.com Thu Jan 7 10:52:12 2010 From: filmashish at gmail.com (ashish k singh) Date: Thu, 7 Jan 2010 10:52:12 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?MyDgpIjgpKHgpL8=?= =?utf-8?b?4KSv4KSf4KWN4KS4IOCkquCksCDgpLDgpLXgpYDgpLYg4KSV4KWB4KSu?= =?utf-8?b?4KS+4KSw?= In-Reply-To: <5bedab661001061601o596b2c50w391b508ed5da9f9e@mail.gmail.com> References: <4B448C8D.1030708@sarai.net> <5bedab661001061601o596b2c50w391b508ed5da9f9e@mail.gmail.com> Message-ID: <1d663bd1001062122u5d378e09q8c565b91165e07e6@mail.gmail.com> HI, THANKS FOR THE REACTIONS. ONCE AGAIN I REQUEST TO PUT THESE REFLECTIONS ON THE BLOG. PRIMARILY RAVIKANTJI, AND THEN PHEETA RAM JI. IT DOES MATTER A LOT FOR US. REGARDS, ASHISH 2010/1/7 Pheeta Ram > भाई jan, > जब सब लोग तालिआं बजानें लगें तो मामला गड़बड़ समझो. > रविकांत से मैं इस बात पर सहमत हूँ की फिल्म का नाम 'फ़िल्मी इतिहास' मैं > आयेगा ही; यह अलग बात है की > वो इतिहास कौन लिखता है. रविश का लेख फिल्म मैं समस्या के दिल को टटोल लेता > है, इसके लिये वह प्रशंशा का पात्र है. > एक बदनाम साधू का कहा याद आता है जो कहता था "हसिबा खेलिबा करीबा धयानं"; अगर > फिल्म के संधर्ब में मैं यह कहूं > की "हसिबा खेलिबा करीबा ideology " तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. कॉमेडी और > ideology का गहरा सम्बन्ध है. ( नाम नहीं लूँगा, गेस karo) > फिल्म के बारे मैं लोगों के विचार उन लोगों की 'स्थिति' के बारे मैं जयादा > बताते हैं बजाई की फिल्म के. यह सभ पर लागू होता है, मुझ पर भी. > जब मुझे 'lays चिप्स' बहुत स्वाद लगने लगते है तो यह सोचनें पर मजबूर हो जाता > हूँ की क्यों कर यह इतने स्वाद बनाए गये है. फिर यह सोचता हूँ की स्वाद आलू मैं > है या पकेट में या जहाँ से खरीदा है वहां या फिर सैफ अली खान के प्रोमो में - > आखिर कहाँ? लेकिन इन सब के बाबजूद 'स्वाद' और 'सत्य' में फर्क तो है. ज़रूरी > नहीं की जो चीज़ मुझे स्वाद लगे वोह मेरे हित में भी हो. सुना है की बहुत से > खतरनाक ज़हर बहुत मीठे होते हैं. जिस तरह की विषमताएं हमारे समाज में हैं यह > कहना की फिल्म 'सबको' पसंद आयी है क्यों की इसने इतने दिनों में इतने करोर कमा > लिये हैं एक भद्दा और अश्लील व्यंग्य है, किस पर यह सबको पता hai. > > फिल्म ka critique बहु आयामी होना चाहिये ( यह रविश के लिये: लोग सीधी-सीधी दो > टूक बात पसंद नहीं करते, सच भी लाग लपेट कर बोलना परता है, इस तरह की लोग समझ न > पायें और प्रशंशा भी कर dain). Ideology से लेकर एक्टिंग तक. फिल्म main आमिर > की एक्टिंग प्रशंश्यनिया है ( जैसे की और लोगों की), फोटोग्राफी भी बढ़िया है, > lighting और sound भी (यद्यपि किन्हीं शोट्स पर लगा की कुछ अलग और barhiya हो > सकती है), 'प्लाट' ऐसा ki लगता था जैसे की लोगों पर टोटका कर दिया गया हो, सीट > से 'बांध' दिये गये हो जैसे: और यह खतरनाक बात है! > > रविकांत भाई, इतिहास तो लिखा जायेगा लेकिन यह किस शकल में होगा और इसके > व्याकरण में कोन से अलंकार होंगे यह टाइम ही बताएगा या फिर दिल्ली की सर्दी में > रात को ठिठुरते फूटपाथ के अँधेरे kone में दुबका कुछ इंसानों का दहकता > ज़लज़ला. कुछ लोग अलग विचार रखने के लिए ही अलग आलाप लगाते हैं, shayad मेरे > jaisae. > > वाके में फिल्म बहुत स्वाद थी, लेस चिप्स jaise! ज़रा पूछना भाई आप kaun सी > अखबार चाट-tae हैं..... > रविकांत के विचारों की बाट जोहता > > फीता ram > > > > > 2010/1/6 ravikant > >> नई दिल्ली फ़िल्म सोसायटी के आशीष सिंह का शुक्रिया अदा करते हुए, और रवीश >> कुमार का >> >> भी, जिनसे मैं क़तई सहमत नहीं हूँ. पर अपनी असहमति को मैं थोड़े लंबे लेख की >> शक्ल में पेश >> करूँगा. फ़िलहाल इतना कह दूँ कि राजू हिरानी और आमिर ख़ान अपनी जो बात पिछली >> कई >> फ़िल्मों में अलग-अलग कह रहे थे, उसको साथ आकर और मुकम्म्ल ढंग से यहाँ कह >> पाए हैं. ये फ़िल्म >> मेरी सूची में बेहतरीन ठहरती है, और फ़िल्म इतिहास में इसका नाम आएगा. >> >> जल्द मिलते हैं, पर पहले धीर-गंभीर रवीश की गंभीरता पर थोड़ा हँस लेने को जी >> चाहता है! >> >> रविकान्त >> >> >> Hi, >> >> Take another look at 3 idiots with Ravish Kumar. >> >> Visit http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ >> >> And dont forget to post your comments. >> >> Best, >> >> Ashish K Singh >> >> (for New Delhi Film Society: An e film society) >> >> >> सिस्टम में फिट थ्री इडियट्स >> >> >> - रवीश कुमार >> >> >> साढ़े चार स्टार्स की फ़िल्म देख रहा था। तारे छिटकते थे और फिर कहीं कहीं >> जुड़ जाते थे। >> साल की असाधारण फिल्म की साधारण कहानी चल रही थी। चार दिनों में सौ करोड़ की >> कमाई का रिकार्ड बज रहा था और दिमाग के भीतर कोई छवि नहीं बन पा रही थी। थ्री >> इडियट्स की कहानी शिक्षा प्रणाली को लेकर हो रही बहसों के तनाव में कॉमिक >> राहत >> दिलाने की सामान्य कोशिश है। कामयाबी काबिल के पीछे भागती है। संदेश किसी >> बाबा >> रणछोड़दास का बार बार गूंज रहा था। >> पढ़ाई का सिस्टम ख़राब है लेकिन विकल्प भी बहुत बेकार। इसी ख़राब सिस्टम ने >> कई प्रतिभाओं >> को विकल्प चुनने के मौके दिये हैं। इसी खराब सिस्टम ने लोगों को सड़ा भी दिये >> हैं। लेकिन यह >> टाइम दूसरा है। हम विकल्पों के लिए तड़प रहे हैं। लेकिन क्या हम वाकई विकल्प >> का कोई >> मॉडल बना पा रहे हैं? सवाल हम सबसे है। >> >> मद्रास प्रेसिडेंसी में सबसे पहले इम्तहानों का दौर शुरू हुआ था। अंग्रेजों >> ने जब विश्वविद्यालय >> बनाकर इम्तहान लिये तो सर्वण जाति के सभी विद्यार्थी फेल हो गए। उसी के बाद >> पहली >> बार थर्ड डिविज़न का आगमन हुआ। हिंदुस्तान में सर्टिफिकेट आधारित प्रतिभा की >> यात्रा यहीं >> से शुरू होती है। डेढ़ सौ साल से ज़्यादा के इतिहास में परीक्षा को लेकर हमने >> एक समाज के रूप >> में तनाव की कई मंज़िलें देखी हैं। ज़िला टॉपर और पांच बार मैट्रिक फेल अनुभव >> प्राप्त >> प्रतिभावान और नाकाबिल हर घर परिवार में रहे हैं। दिल वाले दुल्हनियां ले >> जायेंगे में अनुपम >> खेर अपने खानदान के सभी मेट्रिक से पास या फेल पूर्वजों की तस्वीरें लगा कर >> रखते हैं। शाह >> रूख खान को दिल की सुनने के लिए भेज देते हैं। पंद्रह साल पहले आई यह कहानी >> सुपरहिट हो >> जाती है। अनुपम खेर शाहरूख खान से कहता है कि जा तू मेरी भी ज़िंदगी जी कर आ। >> शिक्षा व्यवस्था से भागने के रास्ते को लेकर कई फिल्में बनीं हैं। भागने का >> रास्ता भी है। थ्री >> इडियट्स फिल्म पूंजीवादी सिस्टम को रोमांटिक बनाने का प्रयास करती है। >> काबिलियत पर >> ज़ोर से ही कामयाबी का रास्ता निकलता है। काबिल होना पूंजीवादी सिस्टम की >> मांग है। >> रणछोड़ दास का विकल्प भी किसी अमेरिकी कंपनी की कामयाबी के लिए डॉलर पैदा >> करने की >> पूंजी बन जाता है। कामयाबी के बिना ज़िंदा रहने का रास्ता नहीं बताती है यह >> फिल्म। >> शायद ये किसी भी फिल्म की ज़िम्मेदारी भी नहीं होती। उसका काम होता है जीवन >> से कथाओं >> को उठाकर मनोरंजन के सहारे पेश कर देना। ताकि हम तनाव के लम्हों में हंसने की >> अदा सीख सकें। >> >> बीसवीं सदी के शुरूआती दशकों में ही प्रेमचंद की कहानी आ गई थी। बड़े भाई >> साहब। इम्तहान >> सिस्टम पर बेहतरीन व्यंग्य। बड़े भाई साहब अपने छोटे भाई साहब को नए सिस्टम >> में ढालने के >> बड़े जतन करते हैं। छोटा भाई कहता है कि इस जतन में वो एक साल के काम को तीन >> तीन साल >> में करते हैं। एक ही दर्जे में फेल होते रहते हैं। लिहाजा खेलने-कूदने वाला >> छोटा भाई हंसते खेलते >> पास होने लगात है और बड़े भाई के दर्जे तक पहुंचने लगते हैं। >> >> कहानी में बड़े भाई का संवाद है। गौर कीजिएगा। "सफल खिलाड़ी वह है,जिसका कोई >> निशाना >> खाली न जाए। मेरे फेल होने पर न जाओ। मेरे दरजे में आओगे, तो दांतों पसीना आ >> जाएगा। जब >> अलजेबरा और ज्योमेट्री के लोहे के चने चबाने पड़ेंगे. इंग्लिस्तान का इतिहास >> पढ़ना प़ड़ेगा। >> बादशाहों के नाम याद रखना आसान नहीं, आठ-आठ हेनरी हुए हैं। कौन सा कांड किस >> हेनरी के >> समय में हुआ, क्या यह याद कर लेना आसान समझते हो। हेनरी सातवें की जगह हेनती >> आठवां >> लिखा और सब नंबर गायब। सफाचट। सिफर भी न मिलेगा, सिफर भी। दर्जनों तो जेम्स >> हुए हैं, >> दर्जनों विलियम, कौ़ड़ियों चार्ल्स। दिमाग चक्कर खाने लगता है।" >> भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर ऐसे किस्से इसके आगमन से ही भरे पड़े हुए हैं। >> प्रेमचंद की यह >> कहानी बेहतरीन तंज है। उस वक्त का व्यंग्य है जब इम्तहानों का भय और रूटीन आम >> जीवन के >> करीब पहुंच ही रहा था। थ्री इडियट्स की कहानी तब की है जब इम्तहानों को लेकर >> देश में >> बहस चल रही है। एक सहमति बन चुकी है कि नंबर या टॉप करने का सिस्टम ठीक नहीं >> है। >> दिल्ली के सरदार पटेल में कोई टॉपर घोषित नहीं होता। किसी को नंबर नहीं दिया >> जाता। >> ऐसे बहुत से स्कूल हैं जहां मौजूदा खामियों को दूर किया गया है या दूर करने >> का प्रयास हो >> रहा है। इसी साल सीबीएसई के बोर्ड में नंबर नहीं दिये जायेंगे। उत्तर प्रदेश >> और मध्यप्रदेश में >> बोर्ड के इम्तहानों में करीब बीस लाख से ज़्यादा बच्चे फेल हो गए थे। >> >> इन सभी हकीकतों के बीच आमिर की यह फिल्म एजुकेशन के सिस्टम को कॉमिक में बदल >> देती है। >> जो मन करो वही पढ़ो। यही आदर्श स्थिति है लेकिन ऐसा सिस्टम नहीं होता। न >> पूंजीवाद के >> दफ्तर में और न कालेज में। अभी तक कोई ठोस विकल्प सामने नहीं आया है। >> प्रतिभायें कालेज में >> नहीं पनपती हैं। यह एक मान्य परंपरा है। थ्री इडियट्स विकल्प नहीं है। मौजूदा >> सिस्टम से >> निकलने और घूम फिर कर वहीं पहुंच जाने की एक सामान्य फिल्म है। जिस तरह से >> तारे ज़मीन >> पर मज़ूबती से हमारे मानस पर चोट करती है और एक मकसद में बदल जाती है,उस तरह >> से थ्री >> इडियट्स नहीं कर पाती है। चंद दोस्तों की कहानियों के ज़रिये गढ़े गए भावुकता >> के क्षण >> सामूहिक बनते तो हैं लेकिन दर्शकों को बांधने के लिए,न कि सोचने के लिए मजबूर >> करने के लिए। >> फिल्मों के तमाम भावुक क्षण खुद ही अपने बंधनों से आजाद हो जाते हैं। तो >> सहपाठी आत्महत्या >> करता है उसका प्लॉट किसी मकसद में नहीं बदल पाता। दफनाने के साथ उसकी कहानी >> खतम हो >> जाती है। कहानी कालेज में तीन मसखरों की हो जाती है जो इस सिस्टम को उल्लू >> बनाने का >> रास्ता निकालने में माहिर हैं। ऐसे माहिर और प्रतिभाशाली बदमाश हर कालेज में >> मिल जाते हैं। >> >> चेतन भगत की दूसरी किताब पढ़ी है। टू स्टेट्स। थ्री इडियट्स की कहानी अगर >> पहली किताब >> फाइव प्वाइंट्स समवन से प्रभावित है तो यह साबित हो जाता है कि फिल्म आईआईटी >> में गए >> एक कामयाब लड़के की कहानी है जो आईआईटी के सिस्टम को एक नॉन सीरीयस तरीके से >> देखता >> है। चेतन भगत का इस विवाद में उलझना बताता है कि उसकी कहानियों का यह किरदार >> लेखक >> एक चालू किस्म का बाज़ारू आदमी है। क्रेडिट और पैसा। दोनों बराबर और ठीक जगह >> पर >> चाहिए। विधु विनोद चोपड़ा का जवाब बताता है कि कामयाबी के लिए क्या-क्या किये >> जा >> सकते हैं। परदे पर चेतन को क्रेडिट मिली है। लेकिन कितनी मिली है उसे इंच टेप >> से नापा >> जाना बताता है कि फिल्म अपने मकसद में कमज़ोर है। >> >> इसीलिए इस फिल्म की कहानी लगान और तारे ज़मीं पर जैसी नहीं है। हां दोस्ती के >> रिश्तों >> को फिर से याद दिलाने की कोशिश ज़रूर है। आमिर खान किसी कहानी में ऐसे फिट हो >> जाते हैं >> जैसे वो कहानी उन्हीं के लिए बनी हो। आमिर अपने किरदार में सही नाप के जूते >> में पांव की >> तरह फिट हो जाते हैं। कहानी इसलिए अपनी लगती है क्योंकि कंपटीशन अब एक व्यापक >> सामाजिक दायरे में हैं। शिक्षा और उससे पैदा होने वाली कामयाबी का विस्तार >> हुआ है। हम >> भी कामयाब हैं और आमिर भी कामयाब है। पहले ज़िले में चार लोग कामयाब होते थे, >> अब चार >> हज़ार होते हैं। मेरे ही गांव में ज़्यादातर लोगों के पास अब पक्के के मकान >> है। पहले तीन चार >> लोगों के होते थे। कामयाबी के सार्वजनिक अनुभव के इस युग में यह फिल्म कई >> लोगों के दिलों से >> जुड़ जाती है। >> >> भारत महान के प्रखर चिंतकों के लेखों में एक कामयाब मुल्क बनने की ख्वाहिश >> दिखती है। >> बीसवीं और इक्कीसवीं सदी का भारत या अगला दशक भारत का। भारत एक मुल्क के रूप >> में >> कंपटीशन में शामिल हो गया है। ज़ाहिर है नागरिकों के पास विकल्प कम होंगे। सब >> रेस में दौ़ड़ >> रहे हैं। आत्महत्या करने वालों की कोई कमी नहीं है। दिमाग फट रहे हैं। सिस्टम >> क्रूर हो रहा >> है। काश थ्री इडियट्स के ये किरदार मिलकर इसकी क्रूरता पर ठोस प्रहार करते। >> लेकिन ये >> क्या। ये तीनों कहानी की आखिर में लौटते हैं कामयाब ही होकर। अगर कामयाब न >> होते तो >> कहानी का मामूली संदेश की लाज भी नहीं रख पाते। बड़ी सी कार में दिल्ली से >> शिमला और >> शिमला से मनाली होते लद्दाख। साधारण और सिर्फ सर्जनात्मक किस्म के लोगों की >> कहानी >> नहीं हो सकती। ये कामयाब लोगों की कहानी है जो काबिल भी हैं। कामयाब चतुर >> रामालिंगम >> भी है। दोनों अंत में एक डील साइन करने के लिए मिलते हैं। एक दूसरे की सलामी >> ठोंकते हैं। >> थोड़ा मज़ा भी लेते हैं। वो सिस्टम से बगावत नहीं करते हैं, एडजस्ट होने के >> लिए टाइम मांग >> लेते हैं। सिस्टम का विकल्प नहीं देती है यह फिल्म। न ही तारे ज़मीं की तरह >> सिस्टम में अपने >> किरदार के लिए जगह देने की मांग करती है। मनोरजंन करने में कामयाब हो जाती >> है। शायद >> किसी फिल्म के लिए यही सबसे बड़ा पैमाना है। साढ़े चार स्टार्स की फिल्म। >> _______________________________________________ >> Deewan mailing list >> Deewan at mail.sarai.net >> http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan >> > > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100107/c22624fa/attachment-0001.html From aamachimaharashtra at gmail.com Fri Jan 1 12:44:52 2010 From: aamachimaharashtra at gmail.com (JAI MAHARASHTRA) Date: Fri, 1 Jan 2010 12:44:52 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?J+CkruClgOCkoQ==?= =?utf-8?b?4KS/4KSv4KS+IOCkuOCljeCkleCliOCkqCcg4KSV4KS+IOCknOCkqA==?= =?utf-8?b?4KS14KSw4KWAIOClqOClpuClp+ClpiDgpIXgpILgpJU=?= In-Reply-To: References: Message-ID: 'मीडिया स्कैन' का जनवरी २०१० अंक अतिरिक्त ०४ पृष्ठों के साथ. इस बार ०४ पृष्ठों में वरिष्ठ पत्रकार दयानंद पाण्डेय जी का प्रभाष जोशी जी के ऊपर लिखा विशेष आलेख. छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार रमेश नय्यर जी का साक्षात्कार और भी बहूत कुछ अपनी प्रतिक्रया से अवगत कराना ना भूलें. आपकी प्रतिक्रिया हमें साहस देती है. *आप अपनी प्रतिक्रया हमें भेज सकते हैं-* 07mediascan at gmail.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100101/a4a6ecd0/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: media scan jan10.pdf Type: application/pdf Size: 1565588 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100101/a4a6ecd0/attachment-0001.pdf From shashikanthindi at gmail.com Thu Jan 7 21:30:55 2010 From: shashikanthindi at gmail.com (shashi kant) Date: Thu, 7 Jan 2010 08:00:55 -0800 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= For mediascan! Message-ID: <2b1ae99f1001070800x7d0c127es338b047b8481c7d3@mail.gmail.com> @mediascan addressed on @deevan "Jai maharashtra!" Indian treadition believe in VASUDHAIV KUTUMBKAM. Few days b4 daink bhaskar, new delhi published a good article- 'rashtra banam maharashtra!' please read it. "...punjaab, sindh, gujraat, maratha, dravid, utkal, banga...these lines of our netional song. I think first we are indian then marathi, gujrati, bengali, bihari....etc! ....But what you think about 'vasudhaiv kutumbakam' in contemprory globle time? Thank you. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100107/90505b9d/attachment.html From RAVISH at NDTV.COM Fri Jan 8 10:20:26 2010 From: RAVISH at NDTV.COM (Ravish Kumar) Date: Fri, 8 Jan 2010 10:20:26 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= babri bhawan mein ram mandir Message-ID: <00682802BF86B74395257E1EABF5DB6A218BF787@DEL-BE1.ARCHANA.NDTV.COM> http://naisadak.blogspot.com/2010/01/blog-post_3343.html photo ke liye click karen... ???? ???? ???? ?? ?? ?? ??? ?? ????? ?? ???? ???? ?????? ????? ?? ????? ?? ?? ???? ???? ?? ???? ??????? ?? ???? ?? ??? ??????? ??? ??? ????? ?????? ???? ?? ?? ???? ???? ????? ???,?? ????? ?? ?? ????? ?????? ??? ?? ?? ???? ???? ??? ???? ???? ???? ?????? ?? ?? ???? ??????? ?? ???? ? ??? ??????? ???? ????? ?? ??? ?? ???? ??? ????,?? ??? ???????? ??? ??? ???? ???? ????? ??? ?? ???? ?? ?? ?? ????? ??? ????? ??? ???? ???????? ????? ?? ???? ???? ???? ??????????? ?? ??? ?? ???? ?? ????? ??? ????? ??? ???? ?? ????? ???????? ???,???????? ?? ???? ???? ?? ??? ?? ???????? ???? ????? ??? ??????? ??? ????? ?? ??? ????? ????? ?? ?? ?????????? ???? ???? ????? ?? ????? ?? ????? ??? ?? ???? ?????? ?? ??? ????? ??? ????? ?? ???? ????? ?????? ?? ??? ????? ?? ?????? ???? ?? ???? ????? ????? ???????? ??????? ?? ??? ?? ??????? ???? ?? ???? ????? ?? ?? ????? ?????? ???? ???? ???? ?? ?????? ?? ??? ??? ???? ?? ???????????? ??????? ?? ???? ??? ???? ?? ?? ????? ??????? ??? ?? ??? ?? ??? ??? ??? ???? ??? ?? ??? ????? ???? ??? ?? ???? ??? ?? ????? ??????? ??? ?? ???? ?? ?? ?? ?? ?? ??? ???? ?????? ???? ?? ? ??? ?? ???? ???? ???? ?????? ???? ???? ??????? ?? ??????? ?? ??????? ????? ??? ??? ??? ?????? ?? ????? ???? ?? ????? ???? ???????? ??? ?????? ?? ?? ??????? ??? ?????? ?? ?? ???? ???? ???? ??? ???????? ?? ???? ????? ?? ????? ????? ???? ?? ??? ???? ??? ??? ??? ?? ??? ????? ?????? ????? ?? ??? ???? ??????? ?? ???? ?? ??????? ??? ???? ?? ????? ?? ??? ??? ???? ???? ??? ??,??? ???? ?? ???? ???? ???? ???? ?????? ??? ????? ??? ?? ?? ??? ??? ?? ?????? ??????? ?? ???? ???? ????? ???? ?? ???? ??????? ???? P -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100108/4fb0ee55/attachment.html From =?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?= Fri Jan 8 15:34:59 2010 From: =?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?= (=?UTF-8?B?4KSa4KSj4KWN4KSh4KWA4KSm4KSk4KWN4KSkIOCktuClgeCkleCljeCksi1jaGFuZGlkdXR0IA==?=) Date: Fri, 8 Jan 2010 15:34:59 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KWN4KSv4KS+?= =?utf-8?b?IOCkuOCkmuCkruClgeCkmiDgpKzgpL/gpLngpL7gpLAg4KSu4KWH4KSC?= =?utf-8?b?IOCkkOCkuOCkviDgpLngpYAg4KSh4KWN4KSw4KS+4KSH4KS14KS/4KSC?= =?utf-8?b?4KSXIOCksuCkvuCkh+CkuOClh+CkguCkuCDgpKvgpYngpLDgpY3gpK4g?= =?utf-8?b?4KSu4KS/4KSy4KSk4KS+IOCkueCliCwg4KSv4KS+IOCkq+Ckv+CksCA=?= =?utf-8?b?4KSv4KWHIOCkruCknOCkvOCkvuCklSDgpIngpKHgpLzgpL7gpKjgpYcg?= =?utf-8?b?4KSV4KWAIOCkleCli+CktuCkv+CktiDgpLngpYgsIOCkr+CkviDgpLg=?= =?utf-8?b?4KSa4KSu4KWB4KSaIOCksOCkguCkly3gpKjgpLjgpY3gpLIt4KSq4KWN?= =?utf-8?b?4KSw4KSm4KWH4KS2IOCkpuClgeCksOCljeCkreCkvuCkteCkqOCkviA=?= =?utf-8?b?4KSV4KS+IOCkquCljeCksOCkpOClgOCklSDgpLngpYg/IOCkh+CkuCA=?= =?utf-8?b?4KSq4KSwIOCkueCkguCkuOClh+Ckgiwg4KSw4KWL4KSP4KSCLCDgpJo=?= =?utf-8?b?4KS/4KSi4KS84KWH4KSCIOCkr+CkviDgpKjgpL7gpLDgpL7gpJzgpLwg?= =?utf-8?b?4KS54KWL4KSCPw==?= Message-ID: मैं बिहारवाला नहीं हूं...पड़ोसी प्रदेश का हूं....पर बिहार का होता तो भी *बिहारी *शब्द खुद के लिए कहकर, सुनकर बुरा नहीं लगता. या पता नहीं, शायद बुरा भी लगता। हां, तब ज़रूर लगता है, जब बिहार वालों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि उसका सेंस, अनुभूति और टोन क्या होता है---बताने की ज़रूरत नहीं। पिछले दिनों याहू के एक ग्रुप ने (दुर्भाग्य से, बेवकूफ़ी की वज़ह से, या किन्हीं गलत ख्वाहिशों या समय (तात्कालिकता) के फेर में---मैं जिसका सदस्य बन गया था) ये ई-मेल भेजा। एकबारगी हंसी आई...संभवतः ई-मेल लिखने वाले भाई ने उस तरह के नस्ल-रंग-जाति-प्रदेश दुर्भाव से इसे तैयार भी ना किया हो...लेकिन बाद में मुझे अपने हास्य पर खुद झल्लाहट हुई...लगा...ये कैसा मज़ाक है...इस पर हंसी क्यों आई? ये ई-मेल जैसे का तैसा मैं इस ग्रुप के साथियों को फारवर्ड कर रहा हूं...यही जानने के लिए कि जिस क़दर मैं भुनभुना रहा हूं, उसकी ज़रूरत है? या फिर इसे चुटकुला मानकर सिर्फ हंस लेना चाहिए! मेरा मार्गदर्शन करें...! Bihar Driving License ============ ========= ========= * ** DRIVING LICEN APPLIKASON PHOROM * ------------ --------- --------- --------- --------- --------- * ** NOTE: Please do not Soot the person at the applikason kounter. ** *He will give you the licen. For phurthar instructions, see bhottom applikason. 1. Last name: (_) Yadav (_) Sinha (_) Pandey (_) Misra (_) Dot no (Check karet box) 2. First name: (_) Ramprasad (_) Lakhan (_) Sivprasad (_) Jamnaprasad (_) Dot no (Check karet box) 3. Age: (_) Less than phipty (_) Greater than phipty (_) Dont no (Check karet box) 4. Sex:____ Male_____ Phimale_____ not sure_____not applicable 5. Chappal Size:____ Lepht____ Right 6.Occupason: (_) Politison (_) Doodhwala (_) Pehelwaan (_) Houze-wife (_) Un-employed (Check karet box) 7. Number of children libing in the houzehold:__ _ 8. Number that are yours:___ 9. Mather name:_______ _________ _______ 10. Phather Name: ____________ ________ (If not no, leave blank) 11. Ejjucason: 1 2 3 4 (Circle highest grade completed) 12. Dental rekard: (_) Ellow (_) Berownish-ellow (_) Berown (_) Belack (_) Other -__________ Give egjhakt color (Check karet box) 13.Your thumb imparesson : ____________ _________ _______ (** If you are copying from another applikason pharom, please do not copy thumb impression also. Please provide your own thumb impression .) PELEASE DO NOT USE PHINGERS OF YOUR LEGS . Use thumb on your lepht hand only. If you dont have lepht hand, use your thumb on right hand.. If you do not have right hand, use thumb on lepht hand. * NOTE * : IF YOU DONT HAVE BOTH HANDS, YOU CANNOT DRIVE. WE ARE VARY ISTRICT ABOUT THIS!!! -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100108/56b4a058/attachment-0001.html From abhaytri at gmail.com Fri Jan 8 16:41:03 2010 From: abhaytri at gmail.com (Abhay Tiwari) Date: Fri, 8 Jan 2010 16:41:03 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSG4KSyIOCkhw==?= =?utf-8?b?4KScIOCkqOCkvuCknyDgpLXgpYfgpLI6IOCkteClgCDgpIbgpLAg4KSq?= =?utf-8?b?4KWI4KSl4KWH4KSf4KS/4KSV?= Message-ID: <40FA5D24B9A643DCA4CEC594715704F7@AbhayTiwari> आल इज नाट वेल: वी आर पैथेटिक आज थ्री इडियट्स देख ली। अच्छा हुआ कि सुबह के शो में नब्बे रुपये दे के ही देख ली। शाम के शो में देखता तो १३५ रुपये और मेरी जेब से निकलकर विनोद चोपड़ा की जेब में पहुँच जाते। पहले ही कामयाबी के सारे रिकाड तोड़ती फ़िल्म १३५ रुपये और कामयाबतर हो जाती। वैसे तो थ्री इडियट्स बहुत ही कामयाब फ़िल्म है। कैसे है जी कामयाब? फ़िल्म पैसे बटोर रही है और शुहरत भी बटोर रही है। इतनी कि चेतन भगत जी को शिकायत है कि जो शुहरत उनके हिस्से की थी वो भी हीरानी जी, चोपड़ा जी और जोशी जो बटोर रहे हैं। और फ़िल्म ने इसी की कामना की थी जो उन्हे प्राप्त हो गया, सो हैं वो कामयाब (कामना-प्राप्ति)। जैसे की आम हिट फ़िल्में होती हैं वैसे ही हिट फ़िल्म हैं। लेकिन कुछ यार लोग गदगद हैं और अभिभूत हुए जा रहे हैं कि बड़ी साहसी फ़िल्म है और न जाने क्या-क्या। मेरी समझ में तो ये एक बेईमान और नक़ली फ़िल्म है। क्यों? फ़िल्म उपदेश तो ये देती है हमारी शिक्षा पद्धति ऐसी हो कि छात्र ए़क्सेलेन्स को पर्स्यू करे सक्सेज़ को नहीं। सक्सेज़ से यहाँ माएने पैसा और गाड़ी है, जो चतुर नाम के चरित्र के ज़रिये बार-बार हैमर किया जाता है। लेकिन ख़ुद फ़िल्म एक्सेलेन्स को नहीं सक्सेज़ के (मुन्नाभाई) समीकरण को लागू करती है। ये उस तरह के नक़ली बाबाओं के चरित्र जैसे है जो प्रवचन तो वैराग्य और त्याग का देते हैं, लेकिन खुद लोभ, और लालच के वासनाई दलदल में लसे रहते हैं। जिस तरह के मोटे चरित्र बनाए गए हैं, जिस तरह की सड़कछाप बैकग्राउन्ड स्कोर तैयार किया गया है, जिस तरह की छिछोरी, चवन्नीछाप, सैक्रीन स्वीट सिचुएशन फ़िल्म में हर दस मिनट बाद टांकी गई है, जिस तरह से ‘आल इज वेल’ के अश्लील इस्तेमाल में एक बच्चे तक का शोषण किया गया है, वो सब इसी ओर इशारा करते हैं। मैं ये नहीं मान सकता कि एफ़ टी आई आई में तीन साल तक वर्ल्ड सिनेमा का आस्वादन करने और उसके बाद लगातार करते रहने के बाद राजकुमार हीरानी और विनोद चोपड़ा का मानसिक स्तर इसी फ़िल्म का है। निश्चित ही यह फ़िल्म उन्होने एक दर्शकवर्ग को खयाल में रखकर बनाई है। ये है बेईमानी नम्बर वन। यानी आप श्रेष्ठता के अपने पैमाने से इसलिए नीचे उतर आएं क्योंकि आप के पैमाने पर बनी एक्सेलेन्ट फ़िल्म को देखने और समझने वाले की संख्या बहुत सीमित होगी। इसके जवाब में यह दलील आएगी कि जी नहीं हमने तो यह फ़िल्म दर्शक तक एक नोबेल मैसेज ले जाने के लिए बनाई है। सचमुच? अगर ऐसा है तो वो दर्शक आप की बात सुनते ही उसको लोक कैसे ले रहा है? यानी जिस बात को आप कम्यूनिकेट करने की कोशिश कर रहे हैं, उस बात से देखने वाले पहले से सहमत है; वो अपनी ही बात परदे पर देखकर ताली बजा रहा है। इसे राजनीति में पॉपुलिस्ट पॉलिटिक्स कहा जाता है, और लोकभाषा में ठकुर सुहाती। अगर कोई ये समझता है कि ये किसी की मानसिकता बदलने की कोई कोशिश है तो ग़लत समझता है, यह स्थापित मानसिकता को समर्पित फ़िल्म है, जिसे कॅनफ़ॉर्मिस्ट कहा जा सकता है। जिस सच्चाई को फ़िल्म में दिखलाया गया है अगर वो आज से बीस साल पहले दिखाई गई होती तो मैं फिर भी मान लेता कि फ़िल्म में कुछ वास्तवकिता है, और कुछ ईमानदारी भी है। ये तब होता था कि पेशे के नाम पर दो ही पेशों का ख़्याल आता था, इंजीनियर और डॉक्टर। ये सच्चाई तो कब की बदल चुकी। वाइल्डलाइफ़ फोटोग्राफ़र कितने पैसे कमा सकते हैं, वो एक इंजीनियर कभी नहीं कमा सकता। मुझे लगता कि ईमानदारी की बात हो रही है अगर आज कल के कॉल सेन्टर कल्चर में पैसा कमाने वाले बच्चों में ज्ञानार्जन को लेकर जो उदासीनता है उस की बात की जाती। लेकिन वो करने की हिम्मत फ़िल्ममेकर में नहीं थी क्योंकि अपने दर्शक को संशय में डालना मतलब बहुत बड़ा ख़तरा मोल लेना। और ये वैसी फ़िल्म है जिसने एक जगह भी ख़तरा नहीं उठाया। मुन्नाभाई फ़ार्मूले को जमकर इस्तेमाल किया। मेरे ज़ेहन में इस फ़िल्म को डिफ़ाइन करने के लिए जो सबसे उपयुक्त शब्द आता है वो है पैथेटिक। मेरी अपनी राय में यह फ़िल्म न सिर्फ़ फूहड़ और बेईमान है बल्कि शर्मनाक भी है मेरे लिए। राजकुमार हीरानी और विनोद चोपड़ा तो धंधे वाले लोग है, और कामयाब धंधेवाले हैं; मेरे धंधे वाले लोग हैं, उनको मेरी बधाईयां हैं। अफ़सोस और शर्म तो अपनी पीढ़ी और नौजवान पीढ़ी के लोगों से है जो अभी तक इस तरह के नौटंकीछाप सिनेमा को एक्सेलेंस समझ लेने की बकलोली कर सकते हैं। हमारे समाज का एक बड़ा वर्ग ग़रीबी रेखा के नीचे हैं उस से आप किसी तरह की नई ऊँचाईयों को छूने की उम्मीद नहीं कर सकते। पन्द्रह बीस प्रतिशत लोग मध्यम वर्ग हैं, उसमें से अधिकतर लोग नौकरी मिलते ही किताब को रद्दी में बेच कर नमक खरीद लेते हैं। जो चुटकी भर नमक जितने रह जाते हैं वे भी अगर समवेत स्वर से आल इज वेल गाने लगें तो समझ लीजिये कि अभी देश सुसुप्तावस्था में ही है, नेहरू जी को धोखा हुआ था कि इन्डिया विल अवेक टु लाइफ़ एन्ड फ़्रीडम, एट दि स्ट्रोक ऑफ़ मिडनाईट आवर, व्हेन दि वर्ल्ड स्लीप्स। मैं उम्मीद करता हूँ कि इस चुटकी के एक अच्छे हिस्से को फ़िल्म नहीं जंची है लेकिन वो चुप है। अगर हम इसी तरह की लैयापट्टी में कला की नफ़ासत खोजते रहे तो भारतीय महापुरुष के लिए काल्सेन्टर से अधिक उम्मीद नहीं है। जो दक्षिणभारतीय चतुर और रामलिंगम जो अमरीकादि में सफल हो गए हैं वही अपनी हद है और ये बांगडू और चाचड एक दिवास्वप्न से अधिक कुछ नहीं। जब मैं ने जामिया के एम सी आर सी में (हिन्दी फ़िल्मों) पर पेपर तैयार किया था तो उसकी आख़िरी लाइन थी, "हिन्दी फ़िल्में उसके दर्शक को अपनी आंकाक्षाओं के साथ हस्तमैथुन का खुला आमंत्रण है। तब से अब तक कुछ भी नहीं बदला है|" फ़िल्म के आख़िर में माधवन की आवाज़ आती है – काबिल बन जाओ कामयाबी अपने आप ही मिल जाएगी। ये धोखा देने वाला बयान है। इसी तरह का धोखा ‘तारे ज़मीन पर’ में भी दिया गया था। जो बच्चा सब से अलग, अनोखा है, उसे अपने अनोखेपन में ही स्वीकार किया जाना चाहिये, मगर उस फ़िल्म में अनोखे बच्चे को पेंटिग प्रतिस्पर्धा में जितवाया जाता है, उसे मुख्यधारा में कामयाबी दिलाई जाती है। यानी मुख्यधारा में कामयाबी ही असली पैमाना है। इस फ़िल्म में भी चतुर नाम का चरित आमिर के आग चूतिया सिद्ध हो जाता है क्योंकि आमिर को दुनियावी कामयाबी भी मिल जाती है। तो माधवन का संवाद आता है - काबिल बन जाओ कामयाबी अपने आप ही मिल जाएगी। ये भुलावा है, धोखा है। असली एक्सेलेन्स खोजने वाले के लिए काबिलियत ही कामयाबी है। हालांकि फ़िल्म तमाम सिनेमैटिक पैमानो से बेहद घटिया है फिर भी अगर उसे तमाम फ़िल्मी अवार्ड्स में कई सारे अवार्ड्स मिल जायं तो मुझे कोई हैरत नहीं होगी- पैसा पीटने वाली फ़िल्म ही कामयाबी और एक्सलेंस का असली पैमाना है। http://nirmal-anand.blogspot.com/ -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100108/10c928f0/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: Abhay Tiwari.vcf Type: text/x-vcard Size: 126 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100108/10c928f0/attachment-0001.vcf From vineetdu at gmail.com Sat Jan 9 10:13:58 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Sat, 9 Jan 2010 10:13:58 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSF4KSc4KWA4KSk?= =?utf-8?b?IOCkheCkguCknOClgeCkriDgpKjgpYcg4KSW4KWL4KSy4KS+IOCknw==?= =?utf-8?b?4KWH4KSy4KWA4KS14KS/4KSc4KSoIOCkheCkluCkvuCkoeCkvOCkvg==?= Message-ID: <829019b1001082043t469c156cg76442ac99217d2b5@mail.gmail.com> न्यूज24 के मैंनेजिंग एडीटर अंजीत अंजुम ने टेलीविजन विमर्श के लिए कोई ब्लॉग या साइट बनाने के बजाय फेसबुक को ही अखाड़े के तौर पर इस्तेमाल करने लगे हैं। कमेंट के लिहाज से देखें तो ये ब्लॉग या साइट से ज्यादा फायदेमंद सौदा है। ब्लॉग या साइट में अपनी बात लिखने और मॉडरेट करने के लिए कम से कम 20 से 25 मिनट चाहिए होते हैं। इस करीब आधे घंटे की माथापच्ची के बाद भी आपको कितने हिट्स मिलेंगे और कितने कमेंट इसके पीछे कई सारी चीजें काम करती हैं। जबकि फेसबुक में वनलाइनर थॉट देकर बहस की शुरुआत आसानी से की जा सकती है। पर्सनालिटी अगर दमदार हो तो इसी वन लाइनर में पचासों कमेंट बटोर ले जाएगा जिसके लिए ब्लॉग में दुनियाभर के पापड़ बेलने पड़ जाते हैं। अजीत अंजुमने इस फायदे और चोखे असर को समझते हुए चीप एंड बेस्ट के फार्मूले पर टेलीविजन के अलग-अलग मुद्दों को लेकर बहस छेड़नी शुरु की है। ये बहस टीआरपी की मारामारी के बीच बननेवाली समझ से अलग है और जिस तरह से लोगों के रिस्पांस मिल रहे हैं वो इस समझ का विस्तार भी करेगा। दिलचस्प बात है कि यहां कमेंट करनेवाले लोगों मेंibn7 के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष से लेकर वाशिंगटन में बैठे व्ऑइस ऑफ अमेरिका के सीनियर मीडियाकर्मी आमिष श्रीवास्तव और अलग-अलग चैनल, मीडिया संस्थानों के इन्टर्न और ट्रेनी भी शामिल हैं। इस बहस से कुछ छलककर हासिल हो इस लोभ से हम जैसे मीडिया के स्टूडेंट भी इस बहस में कूद पड़े हैं। अजीत अंजुम के इस टेलीविजन अखाडे में सारा मामला खुल्ला-खेल फरुर्खाबादी है। जिसको जो जी में आए वो कहे। शर्त सिर्फ इतनी है कि बहस को बीच में छोड़कर न जाए और किसी भी तरह की अभद्र भाषा का प्रयोग न करे। यहां चैनल,एंकर,कार्यक्रम,टीआरपी,टेलीविजन कल्चर के आसपास मंडराते कई मुद्दे बहस में शामिल हैं। बात कहीं से भी शुरु की जा सकती है। लेकिन फिलहाल मुद्दे उठाने का कामअजीत अंजुम ही कर रहे हैं। हां ये जरुर है कि हम जैसे लोग उस पर कमेंट कर-करके उसे और भी गर्मा दिए दे रहे हैं। आपको अगर टेलीविजन विमर्श में दिलचस्पी है तो बिना अग्गा-पीच्छा सोचे इस अखाड़े में कूद जाइए। क्या पता कुछ छलककर आपके हाथ भी लग जाए। इस बहस से किताब,लेख औऱ शोध के कई सूत्र मिलने की संभावना है,बशर्ते की खुला महौल कायम रहे। फिलहास बहस का ये नमूना आपकी सुविधा के लिए- Ajeet Anjum अंग्रेजी चैनल पर अगर किसी विषय पर घंटों बहस होती रहती है, उसे रेटिंग मिलती है. हिन्दी चैनल पर डिबेट के कार्यक्रम को रेटिंग नहीं के बराबर मिलती है . क्या हिन्दी चैनल के दर्शक गंभीर मुद्दों पर बहस नहीं देखना चाहते ? टाइम्स नाऊ पर अरनव हर रोज घंटे भर बहस करते हैं , राजदीप , सागरिका या बाकी एंकर्स भी करते हैं लेकिन हिन्दी चैनल पर प्रसून , आशुतोष या विनोद दुआ , अभिज्ञान या कोई और एंकर , बहस को टीआरपी नहीं मिलती , क्यों ? Yesterday at 10:51pm • Comment • Like 3 people like this. Ajit Anjum बुरी खबर , नहीं मिलती उसे टीआरपी . दिबांग के मुकाबला को भी नहीं . आईबीएन के मुद्दा को भी नहीं . मैं तुलनात्मक बात कर रहा हूं . क्या माना जाए कि अंग्रेजी के दर्शक न्यूज और डिबेट को लेकर ज्यादा सीरियस हैं ,हिन्दी की तुलना में . Yesterday at 10:57pm **Nabeel A. Khan I feel there are few factors which influences TRP- First-I dont think that the TRP is right approach to see weather a show is hit or not as I have strong reason for that as there over 134 million TV sets in India and TRP is calculated on few thousand sample TV sets. Second-Times Now's News Hour is popular because of its presentation and aggressive style, raise, guests and topic picked up are strictly for a defined target audience as if we see other such debate shows dont do that good just take Barkha's show We the ppl, Nidhi's show Left Right Centre, ... See More Third-English channel has mostly middle class viewer who are more interested in knowing about nationwide issues while Hindi speaking viewer who mostly reside in rural area or tier two cities and belong to lower middle class their more focus it to know about their region, or less serious issues which u have mentioned. The other reason hindi channel audience are more concerned about very base level issues of their region Yesterday at 11:18pm Nadim Akhter aap ye maan ke chaliye ke angrezi daan log serious hain aur hindi waale RAKHI SAWANT jaisi cheez dhoondhte hain...ek rickshawala ya chaya waala ghar jaa ke kya dekhna chahega bhala...EK BAAT AUR...YE ANGREZI WAALE JO BAHAS DEKHTE HAIN...WOH VOTE KARNE NAHIN JAATE.... Yesterday at 11:28pm Ajit Anjum नबील , टीआरपी के पैमाना को मैं कभी सही नहीं मानता . मैं खुद कहता हूं दस हजार लोग सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश की पसंद - नापसंद तय नहीं कर सकते . लेकिन इसी टीआरपी से अंग्रेजी चैनल के कार्यक्रम की लोकप्रियता तय होती है , जहां सीरियस डिबेट को लोग देखते हैं . हिन्दी चैनल पर उतना नहीं देखते . यही बात मुझे खटकती है . हिन्दी राज्यो के लोग राजनीतिक खबरों के प्रति जागरूक रहते हैं फिर खांटी राजनीतिक खबरें देखते क्यों नहीं ( नाच - गाना या कॉमेडी की तुलना में ) ...बहुत बड़ा सवाल है . Yesterday at 11:35pm Deepak Singh There is a massive and very substantial difference between the audiences of Hindi and English media. There is a bit rot that exists and the channels are as much responsible for the rot as the audiences themselves. We all know and have heard for ages -- "jo dikhta hai wo bikta hai"... and then we spoil the taste of the masses and then complain later on that it is something based on consumer demand... sadly but truly there are big factors behind this trend-- The difference between the ENGLISH and HINDI audiences is a big rift dividing the two. You like it or not, more of English viewers than Hindi are the ones closer to the issues, policies, development and global concerns; for their power, position, profession, money or the linkages with the global market. While largely the Hindi viewers are more interested in news, information, updates and scoops related to things closer to lives, personalities, entertainment and TV/showbiz etc..... Therefore, the attention span of the english audience will be higher than the hindi viewer when it comes to issues, themes and perspectives... An english viewer, for his/her certain level of knowledge, exposure and intellect won't tolerate nonsense as much a vernacular viewer will.. for example, stories like "bina driver ke chalne waali gaadi", "paani par chalne waale baba", "swarg ki seedhi", "chhajje mein fansi billo raani" and all the crap re-packaged cheap entertainment shows in the garb of news stories.. Yet, in terms of number of viewers, the actual eyeballs for hindi news channels will be very high... but hindi channels will need to cater to the taste and requirements of the hindi viewers in mind... NDTV is the biggest example how they brought themselves down by leaps and bounds in terms of content quality and formats... a show aiming at lower number of eyeballs but high quality (wealthy) viewers will need to be an english channel with quality content.. in the case of TRP of news channels it is always going to be a misleading show of statistics... as most of the locations with high viewership of hindi news channels are not really tapped by TAM data Yesterday at 11:41pm ** Ashish Jain मेले में भटके होता तो कोई घर तक पहुच देता ,हम अपने घर में भटके है ,ठोर ठिकाना कहा पायेंगे 17 hours ago Amitabh Bharti Please…sorry…excuse me …thank you….ye English ke sabd hai ..lekin hindi bolne wale bhi aksar iska istemaal kate paye jate hai…agar inhi sabdo ko hindi me translate karke kaha jaye to…sayad…utna asar nahi hoga…ye bhasa ki takat hai…ise hum branding bhi keh sakte hai…aaj English as a brand hindi se kafi age hai…English bolne wale …logon ko jayada credible…lagte hai…unhe ijjat milti hai…ek impression hai hamare desh me ..ki ...english me bolne wale intellectual hote hai. fir content ko lekar chahe kitni bhi badi galti ho koi fark nahi padta…log use ignore karte hai…khas kar woo..hindi bhasi …jo ..serious issues ko English channels par dekhna pasand karte hai…( halanki kuch log mahaj isliye English channels dekhte hai ki, isse english language par unki pakad badhegi ). Jahir hai hindi ke darshak bahash to dekhna chante hai..lekin English channels par…issue anhors, content, presentation aur guests ko lekar bhi hai…kai guests to English speakers hi hote hai..we ya to …hindi me badhiya discussion nahi kar pate ya fir…hindi news channels ko avoid karte hai…… Agar example ke liye… australia me Indian students par attack ke mamle ko le…to discussion me English channels par australiam embassy ke higher officials se lekar ….australia me wahan ke Pm ya deputy pm tak live..dikh jayenge….english channels par aisa akshar hota hai….lekin hindi news channels …yahan chuk jate hai…jahir hai..muddon ko bada banana me english channels ki takat jayada hai…wo serious issues ke liye agenda ..set kar sakte hai. 15 hours ago Yasser Usman i feel the english news channels maintained the seriousness since the beginning and never went away from it while the hindi counterparts initially did a few frivolous things n because of it a general perception got established in the psyche of the people that - Ye hindi waaley to rakhi sawant type cheezein kartey hain, serious toh english channels hain. Though I think this perception is not right but people think like this and somewhere they cud not be completely blamed because yes there were some programmes that were really frivolous.... 9 hours ago Ajay Sharma हो सकता है हिंदी भाषियों की बेल्ट विचारकों की बेल्ट न हो (उसने कई बार साबित किया है, हर तरह के चुनाव में करती है), हो सकता है कि हिंदीभाषी अंग्रेजीभाषी बेल्ट में स्थानांतरण की राह देखता रहा है उदारीकरण के बाद से, हो सकता है कि हिंदीभाषी बदलाव का हिमायती नहीं है, हो सकता है कि हिंदीभाषी हिंदी को भाषा मानता भी नहीं क्योंकि उसका काम अंग्रेजी से चलता है, हो सकता है कि हिंदीभाषी टीवी दर्शक हमेशा उत्तेजना चाहता है क्योंकि विचार की जगह उसने हमेशा मनोरंजन को दी है, हो सकता है और भी बहुत कुछ... 7 hours ago Amish Srivastava SPILIT PESONALITY SYNDROME हालाँकि मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है लेकिन कई मित्रों के सुझावों से मैं सहमत हूँ...लगभग तीन साल से मैं कोई भारतीय चेनल्स नहीं देख पाया हूँ...लेकिन २००७ मार्च तक अपने हिंदी चेनल्स का स्वरुप ये था कि वैसे तो दिन भर हम सारे चेनल्स ठोंक के मनोरंजक किस्म का चालू माल ढूंढते थे और दिखाते थे... और वो भी एक दुसरे की प्रतियोगिता में ,ताकि टी आर पी लूटी जा सके , कई बार तो बौसेस खुद खड़े होकर औसत feeds , जो की समाचार के नाम से कोसों दूर थीं और खुद उन अनुभवी boses के व्यक्तित्व से मेल नहीं खाती थी..काटो काटो चिल्लाते थे,.... शाम को वही बौसेस अपने अपने चेनल्स के बड़े चेहरों के साथ गंभीर कार्यक्रम या बहस पेश करने की कोशिश करते थे...इस चालूपने में सबकी आशा ये होती थी की दिन भर चालू और हल्का माल दिखाकर TRP लूटें और शाम को गंभीर बनकर...अब अपनी बनाई हुई split personality को हम चेनल्स तो नहीं समझ पाए लेकिन दर्शक ज़रूर समझ गए...हलके कार्यक्रमों की टी आर पी तो दी दर्शकों ने लेकिन गंभीर बहस पर गोल कर गए...सवाल है ऐसा क्यों हुआ ?? अब आप ही सोचिये की मनोरंजन स्टार राजू श्रीवास्तव भले हो लोगों का कितना ही बड़ा चहेता क्यों न हो लेकिन रात ९ बजे का कोई गंभीर खबर का कार्यक्रम कोई चेनेल हेड राजू से पढ्वायेगा क्या ? खबर कितनी ही गंभीर और सच्ची क्यों न हो...हम गंभीरता से नहीं लेंगे क्यों की राजू ने जो अपनी छवि बनाई है उसे देखते ही दिमाग कुछ और expect करता है,और जो राजू के चाहने वाले हैं वो उससे उसके उसी हलके अंदाज़ को बार बार देखना चाहते हैं ,गंभीर नहीं......अब आप ऐसा समझिये की हमने हिंदी चेनेल्स को राजू श्रीवास्तव बना दिया था...तो शाम के जिन कार्यक्रमों की चर्चा अजित जी ने की है उनमे से कुछ मैंने देखे हैं और वो शानदार भी थे लेकिन दर्शकों ने गंभीरता से नहीं लिया ....क्योंकि ज्यादा समय तो हमने अपने चेनेल की जो छवि बनाई उसमे सिर्फ मनोरंजक ख़बरें ही नहीं बल्कि गंभीर ख़बरों में भी हल्कापन ढूंढ कर और उन्हें मनोरंजन की तरह पॅकेज कर के दिखाया था...,तो हमारे चेनेल्स को चाहने वाले भी वैसे ही लोग इकठ्ठा हुए और जैसे ही उन्ही दर्शकों के सामने हमने अचानक गंभीर बनने की कोशिश की, उन्हें कहाँ समझ में आने वाला था ,वो खिसक लिए... उसी दौरान राखी सावंत ,क्राइम शोस जिसमे एंकर्स के पेश करने के ढंग की खास भूमिका होती थी..., भूत प्रेत ,और किसी भी entertainment channels (zee TV, sony,star plus ) जैसों के रिअलिटी लाइव शोस को काटे जाने के प्रचलन ने जन्म भी लिया था और ये परंपरा इन्ही दिनों पुष्ट भी हुयी ...मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि मैं भी इस दौर का एक हिस्सा रहा हूँ...तो मोटी बात ये है कि किसी इंसान की peronality या व्यक्तित्व की तरह ही हर चेनेल की एक personality होती है . हम उस व्यक्तित्व को जैसा विकसित करेंगे ,वैसे ही लोग उसे देखेंगे और चाहेंगे...मैंने देखा तो नहीं लेकिन जानना चाहता हूँ क्या और्नब ने वाकई Times Now का व्यक्तिव ऐसा तैयार किया है जिसपर गंभीर मुद्दों पर बहस ठीक लगती है ? और सबसे अच्छी खबर ये है कि उस व्यक्तित्व को बनाना हमारे ही हाथ में तो है...माफ़ कीजियेगा लगता है सन्देश थोडा लम्बा हो गया.. 6 hours ago Pramod Chauhan अजीत जी,मुझे लगता है कि हिन्दी के दर्शक भी बहस देखना चाहते है और वो रेटिंग भी देती है लेकिन विषय यदि बिकाऊ है तो ही रेंटिग आती है आजतक पर रविवार दस बजे बहस का कार्यक्रम है और जब भी इसमें राज ठाकरे,क्रिकेट या फिर आरुषि जैसे विषयों पर बहस हुई हमेशा बहुत अच्छी रेंटिग आई है.. हिन्दी का दर्शक भी डिबेट देखना चाहते है कई बार आईबीएन 7 का कार्यक्रम मुद्दा या फिर एनडीटीवी के कार्यक्रम मुकाबला ने अच्छी रेंटिग दी है..याद किजिए मुकाबला में जब हंसी के मुद्दे पर बहस हुई थी तो उस टाइम बैंड में वो नंबर वन पर पहुंच गया था.. शायद हिन्दी का दर्शक इतना जागरुक है कि उबाऊ विषयों पर बहस यहां नहीं बिकती है। 5 hours ago Vineet Kumar हिन्दी चैनलों पर लोग बहस करने के बजाय ज्ञान देने की मुद्रा में आ जाते हैं। वो प्रीचिंग के मूड में आ जाते हैं। उन्हें लगता है कि सामने जो ऑडिएंस देख रही है वो अंगूठा छाप है। यकीन मानिए अंग्रेजी चैनल के लोग समझते हैं कि वो जो कुछ भी कह रहे हैं,उसे पढ़ी-लिखी ऑडिएंस देख-सुन रही है।...दूसरी बात,हिन्दी चैनल के लोग अमेरिका की बात करते-करते मुनिरका आ जाते हैं। अब आप ही बताइए कि जब टीआरपी के पीपल मीटर अर्वन एरिया,मिडिल और अपर मिडिल क्लास इलाके में लगे हैं तो ऑडिएंस वेवकूफ कैसे हो गयी।.. 5 hours ago • Ajit Anjum विनीत मैं इस बात पूरी तरह असहमत हूं. हिन्दी चैनल पर अगर विनोद दुआ ,पंकज पचौरी , प्रसून , अभिज्ञान , आशुतोष , प्रभु चावला जैसे तमाम सीनियर पत्रकारों के लिए अगर आपकी ये राय है तो मैं उसे मानने को तैयार नहीं . राजदीप खुद भी कई बार आईबीएन -7...See More 5 hours ago Ajit Anjum अगर आप पहले से तय सोच और पूर्वग्रह के साथ ये मान लेंगे कि हिन्दी चैनल्स के पत्रकारों को बहस करने की तमीज नहीं तो हमें असहमति है . 5 hours ago Vineet Kumar आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि आपने जो मुद्दा उठाया है उस पर गंभीरतापूर्वक रिसर्च करने की जरुरत है।..संभवतः शुरुआती दौर पर हमने जो अनुभव किया है वो एक कारण तौर पर दिखायी देता है। हां ये जरुर है कि ये अकेले ही सबकुछ तय नहीं करता। ये पूरी तरह एक सोशियोलॉजिकल रिसर्च है। ऑडिएंस के मिजाज को जानन-समझने का मसला है। उसके बैग्ग्राउंड,वे ऑफ रिसीविंग का मामला है। इस पर काम होना चाहिए। अच्छा लग रहा है कि टेलीविजन पर लिखते-पढ़ते हुए मैं जिन सवालों पर बात करना चाह रहा हूं,उसे आगे ले जाना चाह रहा हूं वो सब आपकी तरफ से आ रहे हैं। मैं तो कई बार कह चुका हूं कि हमें सारे मामले को टीआरपी की छतरी के नीचे लाने के बजाय उन मुद्दों पर बात की जानी चाहिए जो कि सीधे-सीधे टीआरपी को लेकर होनेवाले बहस नहीं है। इस बहस को आगे ले जाने से हमें अंदाजा लग जाएगा कि हिन्दी टेलीविजन ने किस तरह की अभिरुचि का विकास किया है। इन सब बातों के अलावे एक बात तो है कि बहस और विमर्श को लेकर हिन्दी चैनलों के जो कार्यक्रम फिक्स हैं उसे तो ऑडिएंस देखती ही है। टीआरपी का तो साफ-साफ नहीं कह सकता लेकिन हां इतना जरुर है कि वो लोगों के बीच पॉपुलर कार्यक्रम हैं। इसलिए सब कुछ ऑडिएंस पर थोप देना,इस पर असहमति है। 5 hours ago • **Vineet Kumar एक बात और..ये बहस सिर्फ हिन्दी-अंग्रेजी चैनलों को लेकर नहीं है बल्कि पूरी नॉलेज इंडस्ट्री में है कि मनोरंजन के स्तर पर तो हिन्दी ठीक है लेकिन नॉलेज की भाषा अंग्रेजी होगी। ये टेलीविजन के भीतर भी है। अंग्रेजी आज भी प्रायमरी सोर्स की तरह काम करता है। बहस उसी का हिस्सा है। इसलिए इस बहस का एक सिरा भाषा को लेकर बननेवाली डेमोग्राफी से भी जुड़ती है। 5 hours ago • Ashutosh Ashu बहस को लोग तब देखते है जब समाज में कोई मुद्दा गरम हो और लोगों को छूता हो । ज्यादातर टीवी पर बहस सिर्फ बहस के लिये होती है । पाकिस्तान का उदाहरण ले । वहां सबसे ज्यादा लोकप्रिय शोज उनके टाक शोज है। लोग खूब बहस करते हैं और खूब देखते है क्योकि समाज संकट मे है , उसका अस्तित्व खतरे में है । लोग इन बहसों के जरिये संकट को समझना भी चाहते है और उसका निराकरण भी खोजना चाहते हैं । हिंदुस्तान का टीवी देखने वाला मिडिल क्लास इस समय फील गुड के मूड में है । उसकी चिंता अस्तित्व की नहीं है और समाज अपने को बेहतर महसूस कर रहा है। राजनीतिक आंदोलन और सामाजिक आलोढन कहां है तो बहस के लिये स्पेस कहां है । 5 hours ago Ajit Anjum आशुतोष जी , अच्छा लगा , आप इस बहस में आए . अंग्रेजी चैनल पर टॉक शो को लोग क्यों देखते हैं , हिन्दी चैनल पर क्यों नहीं , ये एक सवाल है , जिस पर विचार करने की जरूरत है . जब मैं कह रहा हूं नहीं देखते हैं तो पब्लिक एट लार्ज की बात कर रहा होता हूं . टीआरपी के एक ही पैमाने पर अंग्रेजी चैनल हिट है लेकिन हिन्दी चैनल के टॉक शो को उतनी रेटिंग नहीं मिलती है ....See More 4 hours ago -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/5e5feca9/attachment-0001.html From ravikant at sarai.net Sat Jan 9 11:52:45 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant at sarai.net) Date: Sat, 9 Jan 2010 11:52:45 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?RndkOiBbRC5NLkEu?= =?utf-8?b?LTozNzFdIEZXOiDgpKzgpYHgpLLgpL7gpLXgpL4g4KSq4KSk4KWN4KSw?= =?utf-8?q?_In___vitation?= Message-ID: <4e1593360fd9a343c811aad7338c0009@sarai.net> सूचनार्थ. रविकान्‍त ------ Original Message ------ Subject: [D.M.A.-:371] FW: बुलावा पत्र In vitation To: , From: RAMNIKA GUPTA Date: Fri, 8 Jan 2010 19:52:56 +0530 रमणिका फाउंडेशन और शिल्पायन बुलावा पत्र लोकार्पण समारोह में आप सादर आमंत्रित हैं आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग (पूर्वाग्रह, मिथक एवं वास्तविकताएं) लेखक : संजीव खुदशाह कार्यक्रम शनिवार, ९ जनवरी, २०१० चाय : सायं ४:३० बजे लोकार्पण : सायं ५:०० : स्थान : साहित्य अकादेमी सभागार रवीन्द्र भवन, ३५, फीरोज़शाऊ٠मार्ग, नई दिल्ली-११०००१ मुख्य अतिथि द्वारा लोकार्पण : राजेन्द्र यादव आलेख पाठ : रमेश प्रजापति विशिष्ट अतिथि : मैनेजर पाण्डेय विशिष्ट अतिथि : मस्तराम कपूर अध्यक्षता : रमणिका गुप्ता संचालन : सुधीर सागर लेखकीय वक्तव्य : संजीव खुदशाह धन्यवाद ज्ञापन : ललित शर्मा उत्तरापेक्षी रमणिका फाउंडेशन फोन : ०११-४६५७७७०४, २४३३३३५६, ९८७१८४२६५६ शिल्पायन फोन :०११-२२८२११७४ मो.-९८१०१०१०३६ हिन्दू धर्म में से यदि ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य को निकाल दें, तो शेष शूद्र वर्ण को हम पिछड़ा वर्ग कह सकते हैं। इसमें अतिशूद्र शामिल नहीं हैं। पिछड़ा वर्ग वर्षों से तिरस्कृत होता आया है, बल्कि यों कहें कि हाशिये पर रहा, तो ज्यादा बेहतर होगा। इसे सवर्ण न होने का क्षोभ है, तो अस्पृश्य न होने का गुमान भी। वर्षों से हिन्दू सभ्यता एवं संस्कृति को संजोए, यह वर्ण आज भी अपने हस्ताक्षर को बेताव है। यदि हम पिछड़ा वर्ग को रेखांकित करें, तो पाएंगे कि वर्ण-व्यʤՠĸ्था का एक शूद्र वर्ण ऐसा ऊ٠ň, जिसमें कुछ नई एवं उच्च समझी जाने वाली जातियां भी शामिल हैं और वे अपने सवर्ण होने का दावा भी करती हैं किन्तु सवर्ण इन्हें अपने में शामिल करने को तैयार नहीं हैं। विचार करने वाली बात यह है कि, क्या कारण है कि ये लोग जातीय आधार पर तिरस्कृत होने के बावजूद, समाज की मुख्यधारा से जुड़े होने पर भी, कई प्रख्यात समाजसेवी सन्तों, जैसे कबीर, फुले का इस समाज में जन्म होने के बावजूद आज तक कोई क्रांति नहीं कर सके? उलटे ये अपने कर्मकाण्डों को संजोए रहे। जबकि दलितों ने इन समाजसेवि यों के उपदेश को अंगीकार किऊϠľ तथा कथित झूठे कर्मकाण्डों का विरोध और प्रगति भी की। आज भी सुबह-सुबह एक तेली का मुंह देखना अशुभ माना जाता है। वेदों-पुराणो ं में पिछड़ा वर्ग को द्विज ʤ٠ŋने का अधिकार नहीं है, हालांकि कई जातियां अब खुद ही जनेउ+ पहनने लगी हैं। धर्मग्रन्थʥˠĂ ने इन शूद्रां को (आज यही श ूद्र पिछड़ा वर्ग में आते हैं) वेद मंत्रो को सुनने पर कानों में गरम तेल डालने का आदेश दिया है। पूरी हिन्दू सभ्यता में विभिन्न कर्मों के आधार पर उन्हीं नामों से पुकारे जाने वाली जातियां जिन्हें हम शूद्र भी कहते हैं ही पिछड़ी जातियां कहलाती हैं। इसी पुस्तक स _________________________________________________________________ Windows 7: Find the right PC for you. Learn more. http://windows.microsoft.com/shop -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/f088162d/attachment.html -------------- next part -------------- An embedded and charset-unspecified text was scrubbed... Name: message_2.txt Url: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/f088162d/attachment.txt From vineetdu at gmail.com Sat Jan 9 14:19:32 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Sat, 9 Jan 2010 14:19:32 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KSyIOCkuQ==?= =?utf-8?b?4KWIIOCkrOCljeCksuClieCkl+CksOCljeCkuCDgpK7gpYDgpJ8g4KSm?= =?utf-8?b?4KS/4KSy4KWN4KSy4KWAIOCkruClh+Ckgg==?= Message-ID: <829019b1001090049o464ccfel90ccb260b5f518f3@mail.gmail.com> बहुत ही कम समय की नोटिस में *सीएसडीएस-सराय* की ओर से कल यानी *10 जनवरी* को *ब्लॉगर्स मीट* का आयोजन किया किया गया है। फोन से इस खबर की सूचना देते हुए* रविकांत* ने बताया कि दरअसल हमलोगों के यहां और भी कई कार्यक्रम चल रहे हैं,ऐसे में अचानक हमें ख्याल आया कि क्यों न इसी रौ में एक मिनी ब्लॉगर्स मीट कराया जाए। मीट के पीछे के मकसद को साफ करते हुए उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि इसी बहाने ब्लॉगर्स और साहित्यकार,लेखक,विमर्शकार आमने-सामने हो लें। अपनी-अपनी समझ पर बेबाक होकर राय जाहिर कर सकें। ब्लॉगर्स मीट की खास बात होगी कि इसमें ब्लॉगर्स के अलावे उनलोगों की भी उपस्थिति होगी जिसनका कि ब्लॉग से सीधा-सीधा नाता नहीं है। जो भी राय बनी है वो ब्लॉग के बारे में दूसरे माध्यमों मसलन अखबार औऱ पत्रिकाओं को पढ़ते हुए बनी है। इस खबर के साथ रविकांत ने ये भी बताया कि अब तक जिन लोगों से इस संबंध में बात की गयी है उनमें से चर्चित कवि-कथाकार उदय प्रकाश,साहित्यकार प्रेमजन विजय और कविताकोश के संस्थापक सदस्य ललित का आना तय है। अपने स्तर से हम जितने लोगों को सूचित कर पाएं उतना ही अच्छा। उम्मीद है कि इतने कम समय में भी इस पोस्ट के जरिए जिन ब्लॉगर,पत्रकार और पाठकों तक ये खबर पहुंचेगी वो समय निकालकर आने की जुगत जरुर भिड़ाएंगे। स्थान- सीएसडीएस-सराय 29,राजपुर रोड (सिविल लाइन्स मेट्रो से 5 मिनट की पैदल वॉक) दिल्ली- 110054 समयः 2 बजे दोपहर सम्पर्क- ravikant at sarai.net * * नोटः- सराय में भाषा,तकनीक और साहित्य के अन्तर्संबंधों पर कार्यक्रम सुबह 11 बजे से ही शुरु हो जाएगा। आपलोगों में जिन किसी को इन विषयों में दिलचस्पी और समय है वो 11 बजे भी आ सकते हैं। -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/78736d0b/attachment-0001.html From ravikant at sarai.net Sat Jan 9 14:28:50 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant at sarai.net) Date: Sat, 9 Jan 2010 14:28:50 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KS14KS/4KS1?= =?utf-8?b?4KSwIOCkrOCkmuCljeKAjeCkmuCkqCDgpJXgpYcg4KS44KS+4KSl?= Message-ID: <4480235e785c93c89a18588f1585cf11@sarai.net> दोस्‍तो, नीचे मैं मशहूर कवि, लेखक व लोकप्रिय शिक्षक श्री अजित कुमार की हालिया किताब 'कविवर बच्‍चन के साथ' की विभास द्वारा की गई और हंस में प्रकाशित समीक्षा की नक़लचेपी कर रहा हूँ। काफ़ी पहले मैंने अजित बाबू का एक संस्‍मरण पढ़ा था 'मैं और मेरा समय' नामक नीलाभ द्वारा संपादित किताब में(जिसमें उदय प्रकाश का भी एक अच्‍छा आलेख था), तब से बच्चन जी से उनके अंतरंग संबंधों के बारे में वाक़िफ़ था। उस लेख में राजभाषा विभाग के कार्यकलापों के बारे में भी कुछ ज़बर्दस्‍त चुटकुले और तंज़ थे। सोचा था कभी अजित बाबू से इन चीज़ों पर बात करूँगा। वह तो अभी तक नहीं हो पाया है, पर जब मुझे यह किताब हिन्‍दी बुक सेन्‍टर में दिखी तो लगभग एक साँस में पढ़ गया। जिस तटस्‍थ गरिमा और संयम के साथ अजित बाबू ने बच्‍चन जी की रोज़ाना ज़िन्‍दगी को अंकित किया है, उसमें उनके दिल्‍ली के बौद्धिक व निजी जीवन की दिलचस्‍प छवियाँ उभरती है। कल निर्मला जैन की किताब: दिल्‍ली: शहर दर शहर(एक और अति पठनीय किताब) के लोकार्पण पर अजित बाबू को पकड़ा तो उन्‍होंने बताया कि वे दूसरा खंड भी लिखने की योजना बना रहे हैं। मेरी अपनी इल्‍तजा है कि वे भाषा को लेकर जो रचनात्‍मक उठा-पटक हो रही थी, उस पर भी तवज्जो दें। बस, अब एक ख़ूबसूरत किताब की ख़ूबसूरत समीक्षा पढ़ें, राय दें। रविकान्‍त समर्पित और तटस्थ अंकन विभास वर्मा (पुस्तक- कविवर बच्‍चन के साथ, प्रकाशन-भारतीय ज्ञानपीठ, 2009, मूल्य-250रु०) डेढ़-दो बरस पहले अभिषेक बच्‍चन और ऐश्वर्या राय की शादी के आसपास मीडिया चैनलों ने जब अमिताभ बच्‍चन और उनके परिवार के सदस्यों के मंदिरों के लगातार दौरे लगाने को देश की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया तो इसकी प्रतिक्रिया हंस समेत कुछ पत्र-पत्रिकाओं तथा ब्लॉगों पर देखी गई। साहित्यिक हलकों से उठनेवाली प्रतिक्रिया का सुर यह था कि "प्रार्थना मत कर, मत कर, मत कर : मनुज पराजय के स्मारक हैं मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर" लिखने वाले मधुशाला के अमर गायक बच्‍चन के पुत्र का यह कृत्य बच्‍चनजी की विरासत का अपमान है। अमिताभ बच्‍चन ने पत्र लिखकर और अपने ब्लॉग पर जवाब दिया कि बच्‍चन जी के धर्म और कर्म-कांड संबंधी विचारों से वे बेहतर परिचित हैं और ये पंक्तियाँ मानवीय कर्म में आस्था रखने की प्रेरणा देने के लिये लिखी गई थीं न कि प्रार्थनाघरों का बहिष्कार करने के लिए। इन पंक्तियों का जो अर्थ अमिताभ बच्‍चन ने लगाया उस को यदि छोड़ दें तो बच्‍चनजी के धर्म और कर्म-कांड संबंधी विचारों के बारे में अमिताभ बच्‍चन के विचारों की पुष्टि बच्‍चनजी के प्रिय शिष्य वरिष्ठ कवि अजितकुमार की नई पुस्तक "कविवर बच्‍चन के साथ" से हो जाती है। इस किताब में 21 अप्रैल 1960 के 'अंकन' के अनुसार बच्‍चनजी ने जब अपनी नीलम की अँगूठी के 'प्रताप' की लंबी-चौड़ी कहानी सुनाई तो अजितजी को लगा- “ जिन बच्‍चनजी ने मन्‍दिर-मस्जिद-पुजारी-पूजा - सबका मूलोच्‍छेद कर देने का उद्‍घोष किया था, वे ही अब व्रत, पाठ, साधु-सन्त, भाग्य आदि का गुण-गान करते हुए नहीं थकते"। इसी प्रकार बच्‍चनजी द्वारा 'ब्रह्मस्वरूप'/'भगवत्‍स्वरूप' मौनी बाबा की आराधना और स्वामी शिवानन्द के गुणगान को सुनकर अजितजी महसूस करते हैं "साधु-संतों के प्रति उनकी निष्ठा निरन्‍तर बढ़ती ही जाती है"। अपने पिता के धार्मिक विश्वासों के बारे में अमिताभ बच्‍चन की राय राजेन्द्र यादव से ज्यादा सही मालूम होती है। यह किताब जनवरी,1960 से अक्‍तूबर 1962 के बीच, जब अजितजी बच्‍चनजी के साथ भारत सरकार के विदेश मन्‍त्रालय के हिन्दी विभाग में कार्यरत थे,के दौरान ली गई टीपें हैं जो बच्‍चनजी को उनकी आत्मकथा लिखने में सहायता पहुँचाने के उद्देश्य से दर्ज़ की गई थीं। बच्‍चनजी ने इनको आद्यंत पढ़ा था और उनकी पहली प्रतिक्रिया थी कि ये प्रकाश्य नहीं हैं। इनको पढ़ते हुए यह समझा जा सकता है कि बच्‍चनजी ने इनको अप्रकाश्य क्यों समझा।दरअसल ये उस दौरान बच्‍चन जी के साथ अजितजी की बातचीत के नोट्स और उसपर अजितजी की प्रतिक्रियाओं का संकलन है। ये प्रतिक्रियाएँ इतनी बेबाक, निर्मम रूप से तटस्थ और पारदर्शी हैं कि बच्‍चनजी का शंकाकुल हो उठना स्वाभाविक जान पड़ता है। लेकिन यह बच्‍चनजी की सदाशयता का ही प्रमाण माना जाएगा कि आत्मकथा के सभी खंडों के छप जाने के बाद उन्होंने इसे प्रकाशित करने की 'प्रसन्न अनुमति' दे दी थी। किन्तु उनकी आरम्‍भिक आपत्ति के चलते उपजी दुविधा के कारण अजितजी ने इसे अब तक अप्रकाशित ही रखा।इसे इतने दिनों बाद छपाने का कारण था कि उपरोक्त विवाद की तरह ही अमिताभ बच्‍चन के किसी अन्य कार्य का बच्‍चनजी की विरासत का अपमान सिद्ध करके किसी साहित्यकार ने सारे बच्‍चन परिवार के लिए मृत्यु-दंड की आकांक्षा की। अजितजी के यह कहने पर भी वे जब नहीं माने कि अमिताभ जो कुछ कर रहे हैं वह बच्‍चनजी द्वारा किए गए कार्यों की परम्‍परा में ही है,तो अजितजी ने इन 'अंकनों' को प्रकाशित कराने का निर्णय लिया। इस किताब को बच्‍चनजी की उस दौर की आत्मकथा के स्थानापन्न के तौर पर भी पढ़ा जा सकता है। यह किताब जिसे स्वयं अजितजी ने 'अंकन' कहा है, विधागत दृष्टि से एक प्रकार की डायरी या रोज़नामचा है। मगर जिस प्रकार डायरी में विषय की सीमा तय नहीं होती या वह डायरी-लेखक के दैनंदिन क्रिया-कलाप या चिन्‍तन से ताल्लुक रखती है, वैसा इस किताब के साथ नहीं है। इस किताब में एक विशेष अवधि के दौरान बच्‍चनजी और अजितजी की बातचीत और उसपर अजितजी की प्रतिक्रियाएँ हैं।जिस अवधि की ये टीपें हैं उस दौरान अमिताभ बच्‍चन कॉलेज में पढ़ रहे थे और उस समय के अमिताभ पर अजितजी की टिप्पणी है- “…अमितजी की स्मार्टनेस, जीन्स, रंगीन कमीज़ों, अंग्रेज़ी से लगाव और अवधी से अपरिचय, फ़िल्मों और अंग्रेज़ी धुनों से अनुराग, टेडी ब्वायेज़ जैसी आदतों तथा अन्‍यान्‍य ऐसी ही बातों से मुझे यही लगता रहा है कि उनमें अपने पिता की-सी गम्‍भीरता, विचारशीलता और प्रतिभा के बीज नहीं हैं, बल्कि उन्होंने जीवन के प्रति अपनी माँ के आनन्द और सुविधावादी दृष्टिकोण को ही अधिक अपनाया है।"उसी अमिताभ द्वारा अपने पिता के पथ के अनुगमन का प्रमाण देने के लिए अजितजी ने यह पुस्तक प्रकाशित कराई है।संभवत: अबके अमिताभ के विषय में अजितजी की धारणा कुछ भिन्न हो। अजितकुमार बच्‍चनजी के प्रशंसक-शिष्य रहे हैं, स्वयं उनके शब्दों में बच्‍चनजी उनके गुरु ही नहीं अपितु 'पितु-मातु-सहायक-स्वामी-सखा' रहे हैं और प्रेरणा के प्रमुख स्रोत भी।अधिकांशत: शिष्य ऐसे गुरु को श्रद्धावश अक्सर एक ऐसे आदर्श व्यक्ति के रूप में देखते हैं जिसके आचरण और चरित्र में कोई दोष न हो। जब इस आदर्श मूर्ति में कहीं कोई कमी या दाग दिखता है तो शिष्य की चेतना पर एक झटका-सा लगता है। पर ऐसी प्रतिक्रिया किशोरावस्था की प्रतिक्रिया है। अजितकुमार इस पुस्तक में ऐसे कैशोर्य से मुक्त हैं यद्यपि उनके समर्पण या प्रशंसा-भाव में इससे कोई अंतर भी नहीं आने पाया है। पर किताब में कई जगह बच्‍चनजी के व्यवहार और विचारों की कड़ी और बेबाक आलोचना है।मसलन बच्‍चनजी की 'एसर्ट' करने की आदत का जिक़्र करते हुए वे कहते हैं- “'एसर्ट' करने को मैं एक तरह की असभ्यता और अशिष्टता समझता हूँ- गोकि व्यावहारिक दृष्टि से जीवन में सफल होने के लिए कदाचित् वह अधिक सहायक होता हो। बहरहाल, जब भी मैं बच्‍चनजी को 'एसर्ट' करते देखता हूँ, मुझे अनुभव होता है कि वे ज़्यादती कर रहे हैं और उस ऊँचे दर्जे से नीचे गिर रहे हैं _जिसे...मैं कवि का दर्जा कहना पसंद करूँगा।उस दर्जे पर पहुँचे व्यक्ति में 'अक्खड़पन' तो शायद सहन किया जा सके, यह नहीं। दुर्भाग्यवश 'एसर्ट' करना न सिर्फ़ उनकी आदत है, बल्कि जीवन का एक सिद्धान्‍त भी है।" इसी प्रकार उनके स्वभाव में निहित 'कैलस इनडिफ़रेंस' (निर्मम तटस्थता) का परिचय पाकर वे घबराते हैं क्योंकि- “किसी के भी लिए उनका हृदय कातर होता होगा, इसका विश्वास मुझे नहीं होता। उनकी सारी संवेदना, सहृदयता, 'सिन्‍सियरटी'(आत्मीयता) मुझे केवल ऊपरी दिखावा मालूम होती है, और यह मेरे लिए कष्टकर भी है।… यही लगता है कि परिस्थिति,वस्तुएँ ,व्यक्ति,घटनाएँ- सभी कुछ उनकी दृष्टि में महज़ सामग्रियाँ हैं, जिससे वे अपने निजी काम चला लें। दूसरे शब्दों में, वे केवल 'स्वार्थ' की सिद्धि करते हैं, 'परमार्थ' तो बस उनका एक पोज़'(भंगिमा) है।"ऐसी आलोचनाओं के बाद भी बच्‍चनजी के प्रति उनका श्रद्धाभाव उनकी कमियों को 'रेशनलाइज़' करता है या उन्‍हें दूसरे प्रकार से देखने का प्रयास करने लगता है। बच्‍चनजी से डॉ० अमरनाथ झा द्वारा आचरण से दूसरों को आतंकित करने के लिए किए गए आडम्‍बरों का जिक़्र सुनकर अजितजी की प्रतिक्रिया है- “जिन बातों को बच्‍चनजी झा साहब का आडम्‍बर कहते हैं, वह सामाजिक दृष्टि से सफल होने के लिए किसी-न-किसी मात्रा में सभी लोग करते हैं। यहाँ तक कि स्वयं बच्‍चनजी भी उनसे अछूते नहीं हैं। लेकिन उनमें और झा साहब में यह अन्तर ज़रूर है कि झा साहब पद-मर्यादा में उनसे कहीं बड़े होने के बावजूद प्रतिभा और कला के क्षेत्र में उनके पासंग भर भी न थे।यही कारण है कि झा साहब और बच्‍चनजी को एक कोटि में नहीं रखा जा सकता, गो शायद श्रीमती बच्‍चन को, एक अच्‍छे अर्थ में, झा साहब की कोटि में रख सकते हैं।" इस प्रकार की कई आलोचनाएँ और टिप्पणियाँ जगह-जगह किताब में मिलती हैं। इसके बावजूद उन्होंने यह किताब बच्‍चनजी को पढ़ने को दी और बच्‍चनजी ने कई टिप्पणियों या विचारों पर शंका भी व्यक्त की है और कई जगह दूसरे शब्दों का प्रयोग करने सुझाव भी दिया है। अजितजी ने उसके अनुसार बदलाव नहीं किए हैं। हाँ,उन कमेंट्स को यथावत् प्रकाशित कर दिया है। श्रीमती तेजी बच्‍चन ने भी इन्हें प्रकाशित करने देने की बच्‍चनजी की अनुमति पर अपनी मुहर लगाई थी। यह अजितजी और बच्‍चन-दम्पत्ति के संबंधों को दर्शाता है।इस संबंध के बारे में एक जगह किताब में टीप है- " भौतिक दृष्टि से वे मेरे बहुत ही अपने हैं। उनसे मेरे कितने ही नाते हैं।...इस सबके बावजूद मैं अपने और उनके बीच सदा एक बड़ी खाई पाता हूँ।मेरा तादात्म्य उनके साथ हो नहीं पाता।...इस विरोधाभास अथवा भावना के इन दो प्रतिकूल छोरों का कदाचित् एक लाभ भी है कि मैं उन्हें अपने से दूर रखकर और उनसे अपने को असम्‍बद्ध करके उनके तथा उनकी रचना के गुण-अवगुण समझने का तटस्थ यत्न कर पाता हूँ। मेरी दृष्टि में, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि राग-विराग से परे तथा उनमें सन्तुलन बिठलाकर मैं एक व्यक्ति को उचित परिप्रेक्ष्य में देख सकने की स्थिति में हूँ।" यह तटस्थता जीवनी या संस्मरणों के लिए सबसे आवश्यक तत्त्व है। अपने आदर्श व्यक्तियों या गुरू के ऊपर कई लोगों ने हिन्दी में लिखा है, पर मुझे कुंठारहित आकलन का इससे शालीन और तटस्थ दूसरा अकाउंट अभी ध्यान नहीं आ रहा। वैसे किताब में बच्‍चनजी की आलोचना मात्रा में अत्यल्प है । मुख्य रूप से किताब में बच्‍चनजी की कर्मठता,संघर्षशीलता,प्रतिभा, जीवट, दृढ़ निश्चय, अध्यवसाय और अन्य चारित्रिक गुणों का परिचय ही मिलता है। अपने साहित्य के विषय में बच्‍चनजी के विचार तथा उनकी रचना-प्रक्रिया के बारे में मिलने वाले कई संकेत इस किताब को बच्‍चनजी के शोधार्थियों को लिए एक अनिवार्य किताब बनाते हैं। किताब का रचनाकाल तब का है जब बच्‍चनजी कविता में अपना सर्वश्रेष्ठ दे चुके थे(हालांकि उस समय यह तय नहीं हुआ था), और अपनी आत्मकथा लिखने का मन बना रहे थे।उस समय बच्‍चनजी लोकधुनों पर आधारित गीत लिखकर 'कविता में रागतत्त्व की पुनर्स्थापना'का प्रयत्न कर रहे थे।बच्‍चनजी के ये प्रयत्न पंतजी के उन प्रयत्नों की याद दिलाते हैं जो उन्होंने अपने रचनाकाल के उत्तरार्ध में किए थे। अपने गीतों की रचना या महाभारत, कबीर, येट्‍स आदि के साहित्य पर या पंत और दिनकर प्रभृति साहित्यकारों पर बच्‍चनजी की टिप्पणियाँ रोचक हैं और बड़े बेसाख़्ता तरीके से व्यक्त हुई हैं। इस किताब में इस बात का परिचय भी मिलता है कि कवि-सम्मेलनों के इस बेताज बादशाह को भी लाल किले पर होनेवाले गणतंत्र दिवस के कवि-सम्मेलनों के वातावरण से क्षुब्ध होना पड़ा था और वे कवि-सम्मेलनों के वातावरण को सुधारने की ज़रूरत महसूस करने लगे थे क्योंकि इस संस्था को वे जनरुचि को जानने और निर्मित करने का सबसे अच्‍छा साधन मानते थे।साधु- सन्तों के प्रति अपनी आस्था के बावजूद उनका विचार था कि "हमारे देश में साधु- संन्‍यासी समाज पर बोझ बनकर रहते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि एक बार, जब इन लोगों ने समाज को छोड़ दिया तो फिर केवल अपने आध्यात्मिक चिन्तन-मनन में ही रत रहें, संन्‍यास लेने के बाद ये समाज को कुछ दे सकें तो दें, उससे कुछ ग्रहण न करें। पर स्थिति इससे बिलकुल उलटी है। ये लोग परोपजीवी बन कर समाज को चूसते रहते हैं।" इस प्रकार समाज, साहित्य और संस्कृति पर उनके कई अव्यवस्थित-से विचार इस किताब में मिलते हैं । किसी व्यक्ति को जानने के लिए कई बार ये अव्यवस्थित- से विचार अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। डायरी की शैली में तिथि के अलावा कोई क्रमबद्धता नहीं होती। उसमें बिखराव और दुहराव से बचा नहीं जा सकता। इस किताब के साथ भी ऐसा है शायद इसलिए भी कि लेखकीय ईमानदारी के तकाजे से इस किताब को उसी रूप में प्रस्तुत किया गया है जिस रूप में बच्‍चनजी ने इसे देखा था। बावजूद इसके इसे पढ़ते हुए कहीं अवरोध नहीं आता और रोचकता बराबर बनी रहती है तो इसका बड़ा कारण अजितजी का वह प्रांजल व प्रवाहपूर्ण गद्य है जो आजकल कम लेखकों में दिखाई देता है। पूरी किताब में इस प्रवाह का निर्वाह है। From avinashonly at gmail.com Sat Jan 9 15:26:08 2010 From: avinashonly at gmail.com (avinash das) Date: Sat, 9 Jan 2010 15:26:08 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Blogger Meet Information Message-ID: <85de31b91001090156s769e2496jeafdc27b3baac002@mail.gmail.com> Dear *All*, plz see http://mohallalive.com/2010/01/09/bloggers-meet-in-csds-sarai/ thanx & regards, *avinash* -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/e69f6d92/attachment.html From ravikant at sarai.net Sat Jan 9 15:34:15 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant at sarai.net) Date: Sat, 9 Jan 2010 15:34:15 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?RndkOiBSZTog4KSV?= =?utf-8?b?4KS14KS/4KS14KSwIOCkrOCkmuCljeKAjeCkmiAgIOCkqCDgpJXgpYcg?= =?utf-8?b?4KS44KS+4KSl?= Message-ID: <71a04dd96f0b86b0d1a6b436a756d43d@sarai.net> ------ Original Message ------ Subject: Re: [दीवान]कविवर बच्‍च न के साथ To: ravikant at sarai.net From: Hilal Ahmed Date: Sat, 9 Jan 2010 15:12:57 +0530 रविकांत भाई इस लेख के लिए शुक्रिया. मैं अजित जी के लेखन से परिचित हूँ. उन पर लिखा गया यह लेख उनके लेखन के उस पहलु को दर्शाता है जो अत्यंत सवेदनशील भी है और वास्तुपर क भी. उनकी पुस्तक *दूर वन मैं* इस बात का सशक्त प्रमाण है. पिछले सप्ताह उनसे फ़ोन पर बात हुई तो उन्होंनॊǠभी बच्चन के इन पहलुओं का ज़ऊߠĕ्र किया था. पुस्तक लैब्ररी में मंगवाने के लिए शुक्रिया. हिलाल 2010/1/9 > दोस्‍तो, > > नीचे मैं मशहूर कवि, लेखक व > लोकप्रिय शिक्षक श्री अजित > कुमार की हालिया किताब > 'कविवर > बच्‍चन के साथ' की विभास > द्वारा की गई और हंस में > प्रकाशित समीक्षा की > नक़लचेपी > कर रहा हूँ। काफ़ी पहले > मैंने > अजित बाबू का एक संस्‍मरण > पढ़ा > था 'मैं और मेरा समय' नामक > नीलाभ द्वारा संपादित > किताब > में(जिसमें उदय प्रकाश का > भी > एक अच्‍छा आलेख था), तब से > बच्चन जी से उनके अंतरंग > संबंधों के बारे में वाक़िफ़ > था। उस लेख में राजभाषा > विभाग > के कार्यकलापों के बारे में > भी कुछ ज़बर्दस्‍त चुटकुले > और > तंज़ थे। सोचा था कभी अजित > बाबू > से इन चीज़ों पर बात करूँगा। > वह > तो अभी तक नहीं हो पाया है, > पर > जब मुझे यह किताब हिन्‍दी > बुक > सेन्‍टर में दिखी तो लगभग > एक > साँस में पढ़ गया। जिस > तटस्‍थ > गरिमा और संयम के साथ अजित > बाबू ने बच्‍चन जी की > रोज़ाना > ज़िन्‍दगी को अंकित किया है, > उसमें उनके दिल्‍ली के > बौद्धिक व निजी जीवन की > दिलचस्‍प छवियाँ उभरती है। > कल निर्मला जैन की किताब: > दिल्‍ली: शहर दर शहर(एक और > अति > पठनीय किताब) के लोकार्पण > पर > अजित बाबू को पकड़ा तो > उन्‍होंने बताया कि वे > दूसरा खंड भी लिखने की > योजना बना > रहे हैं। मेरी अपनी इल्‍तजा > है कि वे भाषा को लेकर जो रचऊ> > Ƞľत्‍मक उठा-पटक हो रही > थी, उस पर भी तवज्जो दें। > > बस, अब एक ख़ूबसूरत किताब की > ख़ूबसूरत समीक्षा पढ़ें, राय > दें। > > रविकान्‍त > > समर्पित और तटस्थ अंकन > विभास वर्मा > > (पुस्तक- कविवर बच्‍चन के > साथ, प्रकाशन-भारतीय > ज्ञानपीठ, 2009, मूल्य-250रु०) > > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/4b6345e7/attachment-0001.html From beingred at gmail.com Sat Jan 9 16:46:52 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Sat, 9 Jan 2010 16:46:52 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KWL4KSq4KWH?= =?utf-8?b?4KSo4KS54KWH4KSX4KSoIOCkruClh+CkgiDgpIbgpJbgpL/gpLAg4KSV?= =?utf-8?b?4KWN4KSv4KS+IOCkueClgeCkhj8=?= Message-ID: <363092e31001090316l42d4321n97f319b6e3b0deee@mail.gmail.com> कोपेनहेगन में आखिर क्या हुआ? *फिदेल कास्त्रो* *(अनुवाद : अभिषेक श्रीवास्तव)* ** *युवा *किसी से भी ज्यादा भविष्य के बारे में दिलचस्पी लेते हैं। हाल-फिलहाल तक जो बातें होती थीं, उसमें इस पर चर्चा होती थी कि हमें किस किस्म का समाज चाहिए। आज सारी चर्चा इस बात पर होती है कि क्या इंसानी समाज बच पाएगा। ये बातें नाटकीय नहीं। हमें वास्तविक तथ्यों की आदत डाल लेनी चाहिए। हमारे पास अगर कोई आखिरी चीज है, तो वह है उम्मीद। अपने सच्चे तर्कों से हर उम्र के पुरुषों और स्त्रियों ने, और खासकर युवाओं ने शिखर सम्मेलन में जबरदस्त लड़ाई छेड़ी है और दुनिया को एक महान सबक सिखाया है। *पूरा पढ़िए : कोपेनहेगन में आखिर क्या हुआ? * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100109/253defd6/attachment.html From ravikant at sarai.net Sun Jan 10 11:50:05 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant at sarai.net) Date: Sun, 10 Jan 2010 11:50:05 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?RndkOiDgpIXgpKg=?= =?utf-8?b?4KWB4KSw4KWL4KSnOiBpaW1jIGpvdXJuYWwgb24gY2luZW1h?= Message-ID: <527306da84ab34e879a5b3c6133d083b@sarai.net> bhupen ji maine aapko deewan dak soochi par daal diya hai. shukriya ravikant ------ Original Message ------ Subject: अनुरोध To: ravikant at sarai.net From: bhupen singh Date: Sat, 9 Jan 2010 18:58:37 +0530 प्रिय रविकांत जी, भारतीय जन संस्थान अपने हिंदी जर्नल संचार माध्यम का एक अंक सिनेमा पर केंद्रऊߠĤ करने जा रहा है. इसके लिए भारतीय या विश्व सिनेमा के किसी भी पहलू पर क़रीब पांच हज़ार शब्दों के शोध पत्र आमंत्रित किए ज रहे हैं. कोशिश हो कि लेख जल्द से जल्द भेजे जाएं। इस सूचना को अगर आप दीवान पर डाल देंगे तो शोध पत्र एकत्र करने में आसानी हो जाएगी. लेख भेजने के लिए मेरे ईमेल पते या फोन नंबर पर बात की जा सकती है. आपसे अनुरोध है कि आप मुझे अपने दीवान की मेलिंग लिस्ट में भी शामिल कर दें. जर्नल- संचार माध्यम प्रकाशक- भारतीय जनसंचार संस्थान,नई दिल्ली सम्पर्क- भूपेन सिंह bhupens at gmail.com मोबाइल न. 09999169886 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100110/ba942cfa/attachment.html From pramodrnjn at gmail.com Sun Jan 10 22:37:59 2010 From: pramodrnjn at gmail.com (Pramod Ranjan) Date: Sun, 10 Jan 2010 22:37:59 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS/4KS54KS+?= =?utf-8?b?4KSwIOCkleCkviDgpIfgpJXgpYngpKjgpL7gpK7gpL/gpJUg4KSX4KWN?= =?utf-8?b?4KSw4KWL4KSlIOCksOClh+Cknw==?= Message-ID: <9c56c5341001100907g35b3c0e3y6878fadf559481c5@mail.gmail.com> * * (इस लेख से संबंधित कुछ और सामग्री यहां भी देख सकते हैं- http://sanshyatma.blogspot.com/2010/01/blog-post_8638.htmlहैं-) *ग्रोथ रेट को लेकर क्यों बरपा है हंगामा **?* *- विपेंद्र * बिहार इन दिनों आर्थिक संवर्धन (इकाॅनामिक ग्रोथ) को लेकर खासे चर्चा में है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़े में बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) काफी बढ़ गया है। आंकड़े के अनुसार 2004से 2009 के बीच राज्य के जीडीपी में औसतन 11.03 प्रतिशत का सालाना इजाफा हुआ है। यह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। पूरे देश में सिर्फ गुजरात के जीडीपी के ग्रोथ रेट का औसत बिहार से थोड़ा अधिक 11.06 प्रतिशत है। इस खबर के आने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनावी वर्ष में एक बड़ा हथियार मिल गया है। साथ ही उनकी मुरीद मीडिया को सुशासन का भोंपू और तेजी से बजाने का मौका हाथ लग गया है। दोनों इस अवसर को लेकर इतने मदांध हैं कि उन्हें सही-गलत और असलियत को जानने-समझने या समझाने की कोई जरूरत नहीं रह गई है। इसी का नतीजा है कि इकानामिक ग्रोथ को आर्थिक विकास ( इकानामिक डेवलपमेंट) बताने की मुहिम छेड़ दी गई है। दोनों शब्दों (इकानामिक ग्रोथ और इकानामिक डेवलपमेंट) को पर्यायवाची बना कर परोसा जा रहा है। जबकि इकानामिक ग्रोथ और इकानामिक डेवलपमेंट दो अलग-अलग चीजें हैं। सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वृद्धि को इंगित करने के लिए इकाॅनामिक ग्रोथ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इस इकाॅनामिक ग्रोथ को सकल घरेलू उत्पाद में होने वाले बदलाव की दर के आधार पर मापा जाता है। इकाॅनामिक ग्रोथ अपने आप में इकाॅनामिक डेवलपमेंट नहीं है। इकाॅनामिक ग्रोथ या सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर विकास को नहीं आंका जा सकता। दरअसल, इकाॅनामिक ग्रोथ सिर्फ उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के परिमाण को बताता है। इनका उत्पादन किस तरह हुआ , इसके बारे में यह कुछ नहीं बताता। इसके विपरीत आर्थिक विकास ( इकाॅनामिक डेवलपमेंट) वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के तरीके में होने वाले बदलावों को बताता है। सकारात्मक आर्थिक विकास के लिए ज्यादा कुशल या उत्पादक तकनीक या सामाजिक संगठन की जरूरत पड़ती है। इसी तरह प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद देश या राज्य के औसत आय को बताता है। इससे इस बात का पता नहीं चलता कि आय को किस तरह बांटा गया है या आय को किस तरह खर्च किया गया है। इस कारण प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अधिक होने के बावजूद आम जनता के विकास का सूचकांक नीचे रह सकता है। उदाहरण के लिए ओमानमें प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद बहुत अधिक है, लेकिन वहां शिक्षा का स्तर काफी नीचे है । इसके कारण उरग्वे की तुलना में ओमान का ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (एचडीआइ) नीचे है जबकि उरग्वे का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद ओमान की तुलना में आधा है। हकीकत तो यह है कि पिछले कुछ सालों में भारत का तीव्र इकाॅनामिक ग्रोथ हुआ है। इसके बावजूद देश के समक्ष गंभीर समस्याएं बनी हुई हैं। हालिया ग्रोथ ने आर्थिक विषमता को और ज्यादा चैड़ा किया है। इकाॅनामिक ग्रोथ का दर ऊंचा रहने के बावजूद देश की करीब 80 प्रतिशत आबादी बदहाली की जिंदगी जीने को विवश है। बिहार के तीन साल से कम उम्र के 56 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं। बिहार की आधी से अधिक आबादी गरीबी की सीमा रेखा के नीचे जीवन वसर करने को मजबूर है। यह सही है कि गरीबी उन्मूलन के साथ सकारात्मक विकास के लिए एक सीमा का इकाॅनामिक ग्रोथ जरूरी है। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इकाॅनामिक ग्रोथ होने से विकास हो ही जाएगा। इकाॅनामिक ग्रोथ इस बात की कोई गारंटी नहीं देता कि सभी लोगों को समान रूप से लाभ मिलेगा। यह ग्रोथ गरीब और हाशिए पर रहने वालों की अनदेखी कर सकता है। इसके कारण विषमता बढ़ सकती है। आर्थिक विषमता बढ़ने पर गरीबी उन्मूलन का दर घटेगा और अंततः इकाॅनामिक ग्रोथ भी घटेगा। राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक सौहार्द पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए विषमता को पाटना विकास नीति की प्रमुख चुनौती बनी हुई है और यही कारण है कि हाल के वर्षों में सम्मिलित संवर्धन (इनक्लूसिव ग्रोथ) पर जोर दिया जा रहा है। जिस ग्रोथ के तहत सामाजिक अवसर बढ़ेगे उसे इनक्लूसिव ग्रोथ कहा जाएगा। यह सामाजिक अवसर दो बातों, आबादी को उपलब्ध औसत अवसर और इस अवसर को आबादी के बीच किस तरह बांटा गया, पर निर्भर करता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ग्रोथ को लेकर स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर के जिस लेख की चर्चा बार-बार कर रहें हैं उसमें बिहार, केरल , ओड़िसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के ऊंचे ग्रोथ रेट का उल्लेख तो किया गया है, लेकिन इसका श्रेय केंद्र सरकार को श्रेय नहीं दिया गया है। लेख में कहा गया है कि 1980 के दशक और फिर 1991 से उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद केंद्र की नीतियों का लाभ तो इन राज्यों को मिला लेकिन हाल के वर्षों में इनका जो ग्रोथ बढ़ा है वह पूरी तरह राज्य सरकार की करामात है। लेकिन इस करामात को साबित करने के लिए स्वामीनाथन उसी लेख में बताते हैं कि इसके कारण ग्रामीण इलाकों में मोटर साइकिलों और ब्रांडेड उत्पादों की बिक्री बढ़ी है। उनके अनुसार ग्रोथ रेट बढ़ने का इससे भी बड़ा सबूत सेलफोन की क्रांति है। प्रति माह लगभग सवा करोड़( 12-15 मिलियन) सेलफोन की बिक्री हो रही है। बिहार और झारखंड में सेलफोन की बिक्री में 99.41 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन स्वामीनाथन साहब पहले टाइम्स आफ इंडिया ( 3 जनवरी, 2010) और फिर इकाॅनामिक टाइम्स (6 जनवरी, 2010) के अपने पूरे लेख में इससे अधिक और कोई सबूत नहीं दे पाए हैं, जो साबित करे कि सचमुच में विकास हो रहा है। स्वामीनाथन ने ग्रोथ के जो प्रमाण दिए हैं उससे हाल में एशियाई विकास बैंक के द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं को ही बल मिलता है। एशियाई विकास बैंक के एक अध्ययन दल ने रिपोर्ट दी थी कि ग्रोथ की मौजूदा प्रक्रिया ऐसे नए आर्थिक अवसरों को सृजित करती है जिनका बंटवारा असमान तरीके से होता है। आम तौर पर इन अवसरों से गरीब वंचित रह जाते हैं। साथ ही बाजार का प्रभाव उन्हें इन अवसरों का लाभ नहीं लेने देता। नतीजा होता है कि गैर गरीबों की तुलना में गरीबों को ग्रोथ का लाभ कम मिल पाता है। ऐसे में अगर ग्रोथ को पूरी तरह बाजार के हाथों में छोड़ दिया जाएगा तो इसका लाभ गरीबों को नहीं मिल पाएगा। ऐसी स्थिति नहीं बने इसके लिए सरकार को सजग रहना होगा और ऐसी नीतियां बनानी होगी जिसमें गरीबों की हिस्सेदारी बढ़े। ऐसा होने पर ही इनक्लूसिव ग्रोथ हो पाएगा। लेकिन बिहार सरकार की नीतिगत कार्रवाइयां इन पैमानों पर सकारात्मक नहीं दिखतीं। बिहार की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। इसके बावजूद राज्य में भूमि सुधार के लिए गठित भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से सरकार ने साफ तौर पर इंकार कर दिया है। तमाम दावों के बावजूद मात्र एक हजार करोड़ से कुछ ज्यादा का कुल निवेश पिछले चार साल में हुआ है। शिक्षण संस्थानों में तीस से चालीस प्रतिशत पद रिक्त हैं। राज्य में बिजली की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। अगले पांच साल तक कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। अभी बिहार में जो ग्रोथ हुआ है, उसमें क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ता नजर आ रहा है। विश्व बैंक अगर कहता है कि व्यापार करने के लिए दिल्ली के बाद पटना देश का सबसे उपयुक्त जगह है तो हमें इससे गौरवान्वित नहीं होना चाहिए। हम ग्रोथ के उस पैटर्न पर चल रहे हैं जिसमें ऐसी ही स्थिति उभरेगी। पैसा पटना में संकेद्रित हो रहा है। पटना में फ्लैटों के दाम एनसीआर के बराबर हो गए हैं। पटना में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों का औसत दिल्ली के बराबर है। हवाई यात्रा करने वालों की संख्या पटना में दिल्ली के बराबर हो रही है। राज्य के अंदर ही विषमता बढ़ रही है। लेकिन उत्तर बिहार, पूर्वी बिहार बदहाल है। आधी आबादी गरीबी की सीमा रेखा के नीचे है। इस तरह स्वामीनाथन हों या विश्व बैंक, उदारीकरण के हथियार से पूंजीवाद का साम्राज्य फैलाने की जुगत में लगे हर व्यक्ति और संस्था के लिए विकास का मानक यही, यानी उपभोक्तावाद और विषमता है। बिहार सरकार अपने कामकाज के पक्ष में बार-बार विश्व बैंक के प्रमाण पत्र का हवाला दे रही है, लेकिन वह भूल जाती है और लोगों से यह कहने की हिम्मत नहीं करती कि देश की गुलाम बनाने में ईस्ट इंडिया कंपनी की जो भूमिका थी वही भूमिका आज अमेरिकी साम्राज्यवाद को दुनिया पर लादने में विश्व बैंक अदा कर रहा है। इसलिए विश्व बैंक के प्रमाणपत्र पर आज बिहार या नीतीश जी को इठलाने की जरूरत नहीं , बल्कि चैकस होने की जरूरत है। लेकिन मुख्यमंत्री शायद चैकस नहीं हो पाएंगे। अभी तो वे कारपोरेट सेक्टर के हीरो बने हुए हैं। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए, एक समय में इसी कारपोरेट सेक्टर, विश्व बैंक और मीडिया के हीरो अटल बिहारी वाजपेई से लेकर चंद्राबाबू नायडू, दिग्गविजय सिंह और राम कृष्ण हेगड़े तक थे। लेकिन उनका हश्र क्या हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है। यह हर कोई बखूबी जानता है। जीडीपी के ग्रोथ को लेकर इतना हल्ला मचाने की कोई जरूरत नहीं। इसे लेकर सुशासन की ढोल बजाने जैसी कोई स्थिति नहीं बनती। ध्यान देने की बात है कि जिन आंकड़ों का हवाला दिया जा रहा है, उसी के अनुसार सभी पिछड़े राज्यों में जीडीपी का ग्रोथ रेट बढ़ा है। यहां तक कि झारखंड जैसे राजनीतिक रूप से अस्थिर और कुशासित राज्य में भी यह ग्रोथ रेट बढ़ा है। सवाल उठता है कि अगर बिहार में सुशासन और मुख्यमंत्री के कुशल नेतृत्व के कारण ग्रोथ रेट बढ़ गया तो आखिर झारखंड का ग्रोथ रेट कैसे बढ़ा। हकीकत तो यह है कि हाल के वर्षों में प्रायः सभी राज्यों में केंद्र प्रायोजित योजनाएं बड़े पैमाने पर शुरू की गई हैं। पिछड़े राज्यों का ग्रोथ रेट बढ़ने में उसका बड़ा योगदान है। फिर इसमें लो बेस इफेक्ट का भी योगदान है। राज्य सरकार का कामकाज पहले की अपेक्षा ठीक हुआ है, उसका भी निश्चित तौर पर योगदान है, लेकिन यह सिर्फ उसी का नतीजा नहीं है। क्योंकि सरकारी कामकाज में सुधार का जितना प्रचार मीडिया में तथाकथित विशेषज्ञों के द्वारा किया जा रहा है वह हकीकत नहीं है। हकीकत का पता लगाना है तो कोई दूरदराज की बात छोड़िए, पटना मुफस्सिल अंचल कार्यालय में जाकर कोई व्यक्ति निधार्रित समय के अंदर मामूली आय प्रमाण पत्र या निवास या जाति प्रमाण बनवा लें और फिर यह बात कहे तो मैं सुशासन की बात स्वीकार करने को तैयार हूं। और अंत में : एक सवाल और है। बिहार के ग्रोथ से अति उत्साहित मुख्यमंत्री और उनकी हमदर्द मीडिया गलतबयानी क्यों कर रहे हैं। इनके द्वारा बार-बार कहा जा रहा है कि जीडीपी का जो ग्रोथ रेट सामने आया है वह पूरी तरह प्रामाणिक है, क्योंकि इसे केंद्रीय संगठन सीएसओ ने तैयार किया है। क्या मुख्यमंत्री और मीडिया वालों को यह पता नहीं कि सीएसओ राज्यों के जीडीपी का आकंड़ा नहीं तैयार करता। राज्यों के जीडीपी का आंकड़ा संबंधित राज्य सरकार खुद तैयार करती हैं और उसे जारी करने के लिए सीएसओ को सौंप देती है। सीएसओ सभी राज्यों के इस आंकड़े को जारी भर करता है, वह इसे सत्यापित नहीं करता। इस संबंध में भारत सरकार के मुख्य सांख्यिकीविद् और केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव प्रणब सेन का बयान भी आया है कि , ‘‘ सीएसओ राज्यों के जीडीपी का डाटा नहीं उपलब्ध कराता है। सीएसओ और राज्यों के बीच एक व्यवस्था बनी हुई है जिसके तहत राज्य सरकारें खुद अपने जीडीपी का अनुमानित डाटा सीएसओ को देती हैं और सीएसओ उसे जारी करता है। इन डाटा को सीएसओ सत्यापित नहीं करता है। इसलिए इसे सीएसओ का डाटा कहना उचित नहीं है। ’’ इस संबंध में सही जानकारी के लिए भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम मंत्रालय की साइटhttp://www.mospi.nic.in/State-wise_SDP_1999-2000_20nov09.pdf को देखा जा सकता है, जहां से इस डाटा को जारी किया गया है। राज्यवार डाटा के नीचे स्पष्ट तौर पर स्रोत अंकित है। इसमें लिखा हुआ है कि राज्यों के आंकड़े संबंधित राज्य के वित्त एवं सांख्यिकी निदेशालय के हैं, जबकि राष्ट्रीय आंकड़े सीएसओ के है। -- http://janvikalp.blogspot.com/ http://sanshyatma.blogspot.com/ mo : 9234382621 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100110/15b1943e/attachment-0001.html From pramodrnjn at gmail.com Sun Jan 10 22:37:59 2010 From: pramodrnjn at gmail.com (Pramod Ranjan) Date: Sun, 10 Jan 2010 22:37:59 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS/4KS54KS+?= =?utf-8?b?4KSwIOCkleCkviDgpIfgpJXgpYngpKjgpL7gpK7gpL/gpJUg4KSX4KWN?= =?utf-8?b?4KSw4KWL4KSlIOCksOClh+Cknw==?= Message-ID: <9c56c5341001100907g35b3c0e3y6878fadf559481c5@mail.gmail.com> * * (इस लेख से संबंधित कुछ और सामग्री यहां भी देख सकते हैं- http://sanshyatma.blogspot.com/2010/01/blog-post_8638.htmlहैं-) *ग्रोथ रेट को लेकर क्यों बरपा है हंगामा **?* *- विपेंद्र * बिहार इन दिनों आर्थिक संवर्धन (इकाॅनामिक ग्रोथ) को लेकर खासे चर्चा में है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़े में बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) काफी बढ़ गया है। आंकड़े के अनुसार 2004से 2009 के बीच राज्य के जीडीपी में औसतन 11.03 प्रतिशत का सालाना इजाफा हुआ है। यह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। पूरे देश में सिर्फ गुजरात के जीडीपी के ग्रोथ रेट का औसत बिहार से थोड़ा अधिक 11.06 प्रतिशत है। इस खबर के आने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनावी वर्ष में एक बड़ा हथियार मिल गया है। साथ ही उनकी मुरीद मीडिया को सुशासन का भोंपू और तेजी से बजाने का मौका हाथ लग गया है। दोनों इस अवसर को लेकर इतने मदांध हैं कि उन्हें सही-गलत और असलियत को जानने-समझने या समझाने की कोई जरूरत नहीं रह गई है। इसी का नतीजा है कि इकानामिक ग्रोथ को आर्थिक विकास ( इकानामिक डेवलपमेंट) बताने की मुहिम छेड़ दी गई है। दोनों शब्दों (इकानामिक ग्रोथ और इकानामिक डेवलपमेंट) को पर्यायवाची बना कर परोसा जा रहा है। जबकि इकानामिक ग्रोथ और इकानामिक डेवलपमेंट दो अलग-अलग चीजें हैं। सकल घरेलू उत्पाद में होने वाली वृद्धि को इंगित करने के लिए इकाॅनामिक ग्रोथ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इस इकाॅनामिक ग्रोथ को सकल घरेलू उत्पाद में होने वाले बदलाव की दर के आधार पर मापा जाता है। इकाॅनामिक ग्रोथ अपने आप में इकाॅनामिक डेवलपमेंट नहीं है। इकाॅनामिक ग्रोथ या सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर विकास को नहीं आंका जा सकता। दरअसल, इकाॅनामिक ग्रोथ सिर्फ उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं के परिमाण को बताता है। इनका उत्पादन किस तरह हुआ , इसके बारे में यह कुछ नहीं बताता। इसके विपरीत आर्थिक विकास ( इकाॅनामिक डेवलपमेंट) वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन के तरीके में होने वाले बदलावों को बताता है। सकारात्मक आर्थिक विकास के लिए ज्यादा कुशल या उत्पादक तकनीक या सामाजिक संगठन की जरूरत पड़ती है। इसी तरह प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद देश या राज्य के औसत आय को बताता है। इससे इस बात का पता नहीं चलता कि आय को किस तरह बांटा गया है या आय को किस तरह खर्च किया गया है। इस कारण प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद अधिक होने के बावजूद आम जनता के विकास का सूचकांक नीचे रह सकता है। उदाहरण के लिए ओमानमें प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद बहुत अधिक है, लेकिन वहां शिक्षा का स्तर काफी नीचे है । इसके कारण उरग्वे की तुलना में ओमान का ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स (एचडीआइ) नीचे है जबकि उरग्वे का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद ओमान की तुलना में आधा है। हकीकत तो यह है कि पिछले कुछ सालों में भारत का तीव्र इकाॅनामिक ग्रोथ हुआ है। इसके बावजूद देश के समक्ष गंभीर समस्याएं बनी हुई हैं। हालिया ग्रोथ ने आर्थिक विषमता को और ज्यादा चैड़ा किया है। इकाॅनामिक ग्रोथ का दर ऊंचा रहने के बावजूद देश की करीब 80 प्रतिशत आबादी बदहाली की जिंदगी जीने को विवश है। बिहार के तीन साल से कम उम्र के 56 प्रतिशत बच्चे अंडरवेट हैं। बिहार की आधी से अधिक आबादी गरीबी की सीमा रेखा के नीचे जीवन वसर करने को मजबूर है। यह सही है कि गरीबी उन्मूलन के साथ सकारात्मक विकास के लिए एक सीमा का इकाॅनामिक ग्रोथ जरूरी है। लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं कि इकाॅनामिक ग्रोथ होने से विकास हो ही जाएगा। इकाॅनामिक ग्रोथ इस बात की कोई गारंटी नहीं देता कि सभी लोगों को समान रूप से लाभ मिलेगा। यह ग्रोथ गरीब और हाशिए पर रहने वालों की अनदेखी कर सकता है। इसके कारण विषमता बढ़ सकती है। आर्थिक विषमता बढ़ने पर गरीबी उन्मूलन का दर घटेगा और अंततः इकाॅनामिक ग्रोथ भी घटेगा। राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक सौहार्द पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए विषमता को पाटना विकास नीति की प्रमुख चुनौती बनी हुई है और यही कारण है कि हाल के वर्षों में सम्मिलित संवर्धन (इनक्लूसिव ग्रोथ) पर जोर दिया जा रहा है। जिस ग्रोथ के तहत सामाजिक अवसर बढ़ेगे उसे इनक्लूसिव ग्रोथ कहा जाएगा। यह सामाजिक अवसर दो बातों, आबादी को उपलब्ध औसत अवसर और इस अवसर को आबादी के बीच किस तरह बांटा गया, पर निर्भर करता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ग्रोथ को लेकर स्वामीनाथन एस अंकलेसरिया अय्यर के जिस लेख की चर्चा बार-बार कर रहें हैं उसमें बिहार, केरल , ओड़िसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ के ऊंचे ग्रोथ रेट का उल्लेख तो किया गया है, लेकिन इसका श्रेय केंद्र सरकार को श्रेय नहीं दिया गया है। लेख में कहा गया है कि 1980 के दशक और फिर 1991 से उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद केंद्र की नीतियों का लाभ तो इन राज्यों को मिला लेकिन हाल के वर्षों में इनका जो ग्रोथ बढ़ा है वह पूरी तरह राज्य सरकार की करामात है। लेकिन इस करामात को साबित करने के लिए स्वामीनाथन उसी लेख में बताते हैं कि इसके कारण ग्रामीण इलाकों में मोटर साइकिलों और ब्रांडेड उत्पादों की बिक्री बढ़ी है। उनके अनुसार ग्रोथ रेट बढ़ने का इससे भी बड़ा सबूत सेलफोन की क्रांति है। प्रति माह लगभग सवा करोड़( 12-15 मिलियन) सेलफोन की बिक्री हो रही है। बिहार और झारखंड में सेलफोन की बिक्री में 99.41 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लेकिन स्वामीनाथन साहब पहले टाइम्स आफ इंडिया ( 3 जनवरी, 2010) और फिर इकाॅनामिक टाइम्स (6 जनवरी, 2010) के अपने पूरे लेख में इससे अधिक और कोई सबूत नहीं दे पाए हैं, जो साबित करे कि सचमुच में विकास हो रहा है। स्वामीनाथन ने ग्रोथ के जो प्रमाण दिए हैं उससे हाल में एशियाई विकास बैंक के द्वारा व्यक्त की गई आशंकाओं को ही बल मिलता है। एशियाई विकास बैंक के एक अध्ययन दल ने रिपोर्ट दी थी कि ग्रोथ की मौजूदा प्रक्रिया ऐसे नए आर्थिक अवसरों को सृजित करती है जिनका बंटवारा असमान तरीके से होता है। आम तौर पर इन अवसरों से गरीब वंचित रह जाते हैं। साथ ही बाजार का प्रभाव उन्हें इन अवसरों का लाभ नहीं लेने देता। नतीजा होता है कि गैर गरीबों की तुलना में गरीबों को ग्रोथ का लाभ कम मिल पाता है। ऐसे में अगर ग्रोथ को पूरी तरह बाजार के हाथों में छोड़ दिया जाएगा तो इसका लाभ गरीबों को नहीं मिल पाएगा। ऐसी स्थिति नहीं बने इसके लिए सरकार को सजग रहना होगा और ऐसी नीतियां बनानी होगी जिसमें गरीबों की हिस्सेदारी बढ़े। ऐसा होने पर ही इनक्लूसिव ग्रोथ हो पाएगा। लेकिन बिहार सरकार की नीतिगत कार्रवाइयां इन पैमानों पर सकारात्मक नहीं दिखतीं। बिहार की 80 प्रतिशत से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। इसके बावजूद राज्य में भूमि सुधार के लिए गठित भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट को लागू करने से सरकार ने साफ तौर पर इंकार कर दिया है। तमाम दावों के बावजूद मात्र एक हजार करोड़ से कुछ ज्यादा का कुल निवेश पिछले चार साल में हुआ है। शिक्षण संस्थानों में तीस से चालीस प्रतिशत पद रिक्त हैं। राज्य में बिजली की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। अगले पांच साल तक कोई राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। अभी बिहार में जो ग्रोथ हुआ है, उसमें क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ता नजर आ रहा है। विश्व बैंक अगर कहता है कि व्यापार करने के लिए दिल्ली के बाद पटना देश का सबसे उपयुक्त जगह है तो हमें इससे गौरवान्वित नहीं होना चाहिए। हम ग्रोथ के उस पैटर्न पर चल रहे हैं जिसमें ऐसी ही स्थिति उभरेगी। पैसा पटना में संकेद्रित हो रहा है। पटना में फ्लैटों के दाम एनसीआर के बराबर हो गए हैं। पटना में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों का औसत दिल्ली के बराबर है। हवाई यात्रा करने वालों की संख्या पटना में दिल्ली के बराबर हो रही है। राज्य के अंदर ही विषमता बढ़ रही है। लेकिन उत्तर बिहार, पूर्वी बिहार बदहाल है। आधी आबादी गरीबी की सीमा रेखा के नीचे है। इस तरह स्वामीनाथन हों या विश्व बैंक, उदारीकरण के हथियार से पूंजीवाद का साम्राज्य फैलाने की जुगत में लगे हर व्यक्ति और संस्था के लिए विकास का मानक यही, यानी उपभोक्तावाद और विषमता है। बिहार सरकार अपने कामकाज के पक्ष में बार-बार विश्व बैंक के प्रमाण पत्र का हवाला दे रही है, लेकिन वह भूल जाती है और लोगों से यह कहने की हिम्मत नहीं करती कि देश की गुलाम बनाने में ईस्ट इंडिया कंपनी की जो भूमिका थी वही भूमिका आज अमेरिकी साम्राज्यवाद को दुनिया पर लादने में विश्व बैंक अदा कर रहा है। इसलिए विश्व बैंक के प्रमाणपत्र पर आज बिहार या नीतीश जी को इठलाने की जरूरत नहीं , बल्कि चैकस होने की जरूरत है। लेकिन मुख्यमंत्री शायद चैकस नहीं हो पाएंगे। अभी तो वे कारपोरेट सेक्टर के हीरो बने हुए हैं। लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए, एक समय में इसी कारपोरेट सेक्टर, विश्व बैंक और मीडिया के हीरो अटल बिहारी वाजपेई से लेकर चंद्राबाबू नायडू, दिग्गविजय सिंह और राम कृष्ण हेगड़े तक थे। लेकिन उनका हश्र क्या हुआ, यह बताने की जरूरत नहीं है। यह हर कोई बखूबी जानता है। जीडीपी के ग्रोथ को लेकर इतना हल्ला मचाने की कोई जरूरत नहीं। इसे लेकर सुशासन की ढोल बजाने जैसी कोई स्थिति नहीं बनती। ध्यान देने की बात है कि जिन आंकड़ों का हवाला दिया जा रहा है, उसी के अनुसार सभी पिछड़े राज्यों में जीडीपी का ग्रोथ रेट बढ़ा है। यहां तक कि झारखंड जैसे राजनीतिक रूप से अस्थिर और कुशासित राज्य में भी यह ग्रोथ रेट बढ़ा है। सवाल उठता है कि अगर बिहार में सुशासन और मुख्यमंत्री के कुशल नेतृत्व के कारण ग्रोथ रेट बढ़ गया तो आखिर झारखंड का ग्रोथ रेट कैसे बढ़ा। हकीकत तो यह है कि हाल के वर्षों में प्रायः सभी राज्यों में केंद्र प्रायोजित योजनाएं बड़े पैमाने पर शुरू की गई हैं। पिछड़े राज्यों का ग्रोथ रेट बढ़ने में उसका बड़ा योगदान है। फिर इसमें लो बेस इफेक्ट का भी योगदान है। राज्य सरकार का कामकाज पहले की अपेक्षा ठीक हुआ है, उसका भी निश्चित तौर पर योगदान है, लेकिन यह सिर्फ उसी का नतीजा नहीं है। क्योंकि सरकारी कामकाज में सुधार का जितना प्रचार मीडिया में तथाकथित विशेषज्ञों के द्वारा किया जा रहा है वह हकीकत नहीं है। हकीकत का पता लगाना है तो कोई दूरदराज की बात छोड़िए, पटना मुफस्सिल अंचल कार्यालय में जाकर कोई व्यक्ति निधार्रित समय के अंदर मामूली आय प्रमाण पत्र या निवास या जाति प्रमाण बनवा लें और फिर यह बात कहे तो मैं सुशासन की बात स्वीकार करने को तैयार हूं। और अंत में : एक सवाल और है। बिहार के ग्रोथ से अति उत्साहित मुख्यमंत्री और उनकी हमदर्द मीडिया गलतबयानी क्यों कर रहे हैं। इनके द्वारा बार-बार कहा जा रहा है कि जीडीपी का जो ग्रोथ रेट सामने आया है वह पूरी तरह प्रामाणिक है, क्योंकि इसे केंद्रीय संगठन सीएसओ ने तैयार किया है। क्या मुख्यमंत्री और मीडिया वालों को यह पता नहीं कि सीएसओ राज्यों के जीडीपी का आकंड़ा नहीं तैयार करता। राज्यों के जीडीपी का आंकड़ा संबंधित राज्य सरकार खुद तैयार करती हैं और उसे जारी करने के लिए सीएसओ को सौंप देती है। सीएसओ सभी राज्यों के इस आंकड़े को जारी भर करता है, वह इसे सत्यापित नहीं करता। इस संबंध में भारत सरकार के मुख्य सांख्यिकीविद् और केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव प्रणब सेन का बयान भी आया है कि , ‘‘ सीएसओ राज्यों के जीडीपी का डाटा नहीं उपलब्ध कराता है। सीएसओ और राज्यों के बीच एक व्यवस्था बनी हुई है जिसके तहत राज्य सरकारें खुद अपने जीडीपी का अनुमानित डाटा सीएसओ को देती हैं और सीएसओ उसे जारी करता है। इन डाटा को सीएसओ सत्यापित नहीं करता है। इसलिए इसे सीएसओ का डाटा कहना उचित नहीं है। ’’ इस संबंध में सही जानकारी के लिए भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम मंत्रालय की साइटhttp://www.mospi.nic.in/State-wise_SDP_1999-2000_20nov09.pdf को देखा जा सकता है, जहां से इस डाटा को जारी किया गया है। राज्यवार डाटा के नीचे स्पष्ट तौर पर स्रोत अंकित है। इसमें लिखा हुआ है कि राज्यों के आंकड़े संबंधित राज्य के वित्त एवं सांख्यिकी निदेशालय के हैं, जबकि राष्ट्रीय आंकड़े सीएसओ के है। -- http://janvikalp.blogspot.com/ http://sanshyatma.blogspot.com/ mo : 9234382621 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100110/15b1943e/attachment-0003.html From vineetdu at gmail.com Mon Jan 11 13:11:14 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Mon, 11 Jan 2010 13:11:14 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+?= =?utf-8?b?4KSoIOCkleClhyDgpLjgpL7gpKXgpL/gpK/gpYvgpII=?= Message-ID: <829019b1001102341h6b2cde88hd337ea2f2e3b2ee0@mail.gmail.com> कल सराय में हुई ब्लॉगर मीट की विस्तृत रिपोर्ट हमने अपने ब्लॉग http://taanabaana.blogspot.com/ पर लगा दी है लेकिन उसे हम दीवान मेलिंग लिस्ट पर टेक्ट्स फार्म में नहीं डाल रहे हैं। तकनीकी स्तर पर कुछ और दुरुस्त करने की कोशिशें जारी है। अगर आप अपने-आप को रोक नहीं पा रहे हैं तो सीधे ब्लॉग पर जाकर पढ़ सकते हैं। वैसे कंटेंट के स्तर पर फाइनली कुछ भी नहीं बदलेगा। कुछ तस्वीरें,परिचय औऱ लिंक बाद में ज्यादा दुरुस्त होकर दीवान पर प्रकाशित होगा। विनीत -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100111/569f8903/attachment.html From beingred at gmail.com Mon Jan 11 19:48:32 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Mon, 11 Jan 2010 19:48:32 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS/4KS54KS+?= =?utf-8?b?4KSwIDog4KSX4KWN4KSw4KWL4KSlIOCksOClh+CknyDgpJXgpYsg4KSy?= =?utf-8?b?4KWH4KSV4KSwIOCkleCljeCkr+Cli+CkgiDgpKzgpLDgpKrgpL4g4KS5?= =?utf-8?b?4KWIIOCkueCkguCkl+CkvuCkruCkvg==?= Message-ID: <363092e31001110618h174bfffen777fee577ec8137e@mail.gmail.com> *बिहार : ग्रोथ रेट को लेकर क्यों बरपा है हंगामा* *बिहार* इनदिनों आर्थिक संवर्धन (इकाॅनामिक ग्रोथ) को लेकर खासे चर्चा में है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) द्वारा जारी आंकड़े में बिहार का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) काफी बढ़ गया है। आंकड़े के अनुसार 2004से 2009 के बीच राज्य के जीडीपी में औसतन 11.03 प्रतिशत का सालाना इजाफा हुआ है। यह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है। पूरे देश में सिर्फ गुजरात के जीडीपी के ग्रोथ रेट का औसत बिहार से थोड़ा अधिक 11.06 प्रतिशत है। इस खबर के आने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चुनावी वर्ष में एक बड़ा हथियार मिल गया है। साथ ही उनकी मुरीद मीडिया को सुशासन का भोंपू और तेजी से बजाने का मौका हाथ लग गया है। दोनों इस अवसर को लेकर इतने मदांध हैं कि उन्हें सही-गलत और असलियत को जानने-समझने या समझाने की कोई जरूरत नहीं रह गई है। इसी का नतीजा है कि इकानामिक ग्रोथ को आर्थिक विकास ( इकानामिक डेवलपमेंट) बताने की मुहिम छेड़ दी गई है। दोनों शब्दों (इकानामिक ग्रोथ और इकानामिक डेवलपमेंट) को पर्यायवाची बना कर परोसा जा रहा है। जबकि इकानामिक ग्रोथ और इकानामिक डेवलपमेंट दो अलग-अलग चीजें हैं। *पूरा पढ़िए : **बिहार : ग्रोथ रेट को लेकर क्यों बरपा है हंगामा* -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100111/2e466577/attachment.html From vineetdu at gmail.com Tue Jan 12 15:43:16 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Tue, 12 Jan 2010 15:43:16 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?RndkOiDgpJzgpL4g?= =?utf-8?b?4KS44KSV4KWH4KSCIOCkpOCliyDgpJzgpLDgpYHgpLAg4KSc4KS+4KSH?= =?utf-8?b?4KSP?= In-Reply-To: <829019b1001120212m4990b6e3q97dd965da1787108@mail.gmail.com> References: <829019b1001120212m4990b6e3q97dd965da1787108@mail.gmail.com> Message-ID: <829019b1001120213m2836465fsf988fbf7e2ada8ac@mail.gmail.com> ---------- Forwarded message ---------- From: vineet kumar Date: 2010/1/12 Subject: जा सकें तो जरुर जाइए To: vineet kumar दीवान के साथियों ये आमंत्रण मुझे भेजा गया है लेकिन मुझे लगता है कि मीडिया में दिलचस्पी लेनेवाले किसी भी के लिए ये जरुरी है। इसलिए इसे सार्वजनिक निमंत्रण मानकर प्रेषित कर रहा हूं। समय हो तो आप जरुर जाएं- विनीत Dear Vineet CMS Academy organizes a series of colloquia (on a number of issues). In 2010, the first colloquium is on “paradigm shifts media”. The first in this series is on *sale of edit space* and will be on January 16, 2010 at our campus in Saket, New Delhi. Justice Rajendra Sachar will inaugurate this series, Ajit Bhattacharjee editor of CMS Transparency Review, will chair (please find latest issue is on the same topic). We are inviting Justice Ray of Press Council, Justice Verma and office holders of Editors Guild and Journalist bodies. CMS will present an analysis of larger picture summing up its years of research on the shift in the paradigm. I am writing to you to specially invite you to this CMS Academy colloquium on January 16, 2010 on our Saket campus. The programme will start at 3PM. I am sure you have already read P. Sainath’s writings on the subject, statement of Editors Guild and are aware of the Press Councils’s initiative. We intend on coming up at the end of the meet with specific initiatives needed to cope with the challenge. I look forward meeting you at this colloquium. You may like to inform any of your friends/colleagues who may be interested in topic. With warm regards, Prabhakar Head CMS Media Lab RESEARCH HOUSE, Saket Community Centre, New Delhi – 17 Ph. 26851660, 26864020; F. 011-26968282; w. www.cmsindia.org -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100112/0934dee9/attachment.html From pkray11 at gmail.com Wed Jan 13 11:50:02 2010 From: pkray11 at gmail.com (prakash ray) Date: Wed, 13 Jan 2010 11:50:02 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KWL4KS24KWB?= =?utf-8?b?4KSGIOCkrOClh+Cksg==?= Message-ID: <98f331e01001122220i3f4f12a8v1023c0d67e2d149b@mail.gmail.com> वाशिंगटन शहर का एक मेट्रो स्टेशन. 12 जनवरी 2007. सुबह के सात बजकर इक्यावन मिनट हुए हैं. अगले 43 मिनटों तक एक वायलिन वादक कुछ धुनों को बजाता है. इस दौरान 1097 लोग, अधिकतर मध्य-स्तर के सरकारी नौकरीपेशा वाले लोग हैं, वहां से गुजरते हैं. काम पर सही समय पर पहुँचने की आपाधापी में कुछ लोग क्षण भर ठिठकते हैं और आगे बढ़ जाते हैं. कुछ लोग वायलिन वादक के आगे कुछ सिक्के या नोट भी डाल देते हैं. आखिर अमेरिकी शहरों में सड़क पर गीत-संगीत सुना कर कुछ धन अर्जित करना कोई नई बात भी नहीं है. लेकिन शुक्रवार की सुबह मेट्रो स्टेशन का यह नज़ारा ख़ास है. एक कोने में वायलिन बजाता और अपने आगे वायलिन का खाली संदूक रख पैसे मांगने वाला यह आदमी जोशुआ बेल है जिसकी गिनती दुनिया के महानतम संगीतकारों में होती है. उसके वायलिन से निकलती धुनें दुनिया की छह बेहतरीन क्लासिक धुनें हैं जिनकी रचना बाक़, शूबर्त, पोंस, मैसेनेट जैसे संगीतकारों ने की है. जिस वायलिन पर जोशुआ ये धुनें बजा रहा है, उसे महान संगीतकार अंतोनियो स्त्रादिवारी ने 1713 में विशेष रूप से तैयार करवाया था. जोशुआ ने इस यन्त्र को कुछ वर्ष पूर्व साढ़े तीन मिलियन डॉलर दे कर खरीदा था. ऐसा नहीं है कि जोशुआ के इतने बुरे दिन आ गए हैं कि उसे सड़क पर बजा कर भीख मांगना पड़ रहा है. अभी कुछ दिन पहले ही उसने बोस्टन और लाइब्ररी ऑफ़ कांग्रेस में बजाया था तथा अगले कुछ महीने वह यूरोप के विभिन्न शहरों में कार्यक्रम प्रस्तुत करेगा. दरअसल मेट्रो स्टेशन का यह प्रदर्शन एक प्रयोग है जिसे वाशिंगटन पोस्ट अखबार के पत्रकार जिन विन्गार्टन ने कराया है. इसका उद्देश्य यह जानना है कि क्या सौन्दर्य अजीबोगरीब परिवेश में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा सकता है. इस कार्यक्रम की रिपोर्ट पर पत्रकार को पुलित्ज़र पुरस्कार मिला. आठ अप्रैल 2007 के वाशिंगटन पोस्ट में इसका विस्तृत विवरण है. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100113/bb347a53/attachment-0001.html From avinashonly at gmail.com Wed Jan 13 14:20:06 2010 From: avinashonly at gmail.com (avinash das) Date: Wed, 13 Jan 2010 14:20:06 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KWL4KS24KWB?= =?utf-8?b?4KSGIOCkrOClh+Cksg==?= In-Reply-To: <98f331e01001122220i3f4f12a8v1023c0d67e2d149b@mail.gmail.com> References: <98f331e01001122220i3f4f12a8v1023c0d67e2d149b@mail.gmail.com> Message-ID: <85de31b91001130050n30f5c153q26839a2f64f35872@mail.gmail.com> रिपोर्ट की लिंक ये रही http://www.washingtonpost.com/wp-dyn/content/article/2007/04/04/AR2007040401721.html 2010/1/13 prakash ray > वाशिंगटन शहर का एक मेट्रो स्टेशन. 12 जनवरी 2007. सुबह के सात बजकर इक्यावन > मिनट हुए हैं. अगले 43 मिनटों तक एक वायलिन वादक कुछ धुनों को बजाता है. इस > दौरान 1097 लोग, अधिकतर मध्य-स्तर के सरकारी नौकरीपेशा वाले लोग हैं, वहां से > गुजरते हैं. काम पर सही समय पर पहुँचने की आपाधापी में कुछ लोग क्षण भर ठिठकते > हैं और आगे बढ़ जाते हैं. कुछ लोग वायलिन वादक के आगे कुछ सिक्के या नोट भी डाल > देते हैं. आखिर अमेरिकी शहरों में सड़क पर गीत-संगीत सुना कर कुछ धन अर्जित > करना कोई नई बात भी नहीं है. लेकिन शुक्रवार की सुबह मेट्रो स्टेशन का यह > नज़ारा ख़ास है. एक कोने में वायलिन बजाता और अपने आगे वायलिन का खाली संदूक रख > पैसे मांगने वाला यह आदमी जोशुआ बेल है जिसकी गिनती दुनिया के महानतम > संगीतकारों में होती है. उसके वायलिन से निकलती धुनें दुनिया की छह बेहतरीन > क्लासिक धुनें हैं जिनकी रचना बाक़, शूबर्त, पोंस, मैसेनेट जैसे संगीतकारों ने > की है. जिस वायलिन पर जोशुआ ये धुनें बजा रहा है, उसे महान संगीतकार अंतोनियो > स्त्रादिवारी ने 1713 में विशेष रूप से तैयार करवाया था. जोशुआ ने इस यन्त्र को > कुछ वर्ष पूर्व साढ़े तीन मिलियन डॉलर दे कर खरीदा था. ऐसा नहीं है कि जोशुआ के > इतने बुरे दिन आ गए हैं कि उसे सड़क पर बजा कर भीख मांगना पड़ रहा है. अभी कुछ > दिन पहले ही उसने बोस्टन और लाइब्ररी ऑफ़ कांग्रेस में बजाया था तथा अगले कुछ > महीने वह यूरोप के विभिन्न शहरों में कार्यक्रम प्रस्तुत करेगा. दरअसल मेट्रो > स्टेशन का यह प्रदर्शन एक प्रयोग है जिसे वाशिंगटन पोस्ट अखबार के पत्रकार जिन > विन्गार्टन ने कराया है. इसका उद्देश्य यह जानना है कि क्या सौन्दर्य अजीबोगरीब > परिवेश में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा सकता है. > > इस कार्यक्रम की रिपोर्ट पर पत्रकार को पुलित्ज़र पुरस्कार मिला. आठ अप्रैल > 2007 के वाशिंगटन पोस्ट में इसका विस्तृत विवरण है. > > > > > > > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100113/3286991c/attachment.html From vineetdu at gmail.com Wed Jan 13 17:00:58 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Wed, 13 Jan 2010 17:00:58 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Fwd: survey form In-Reply-To: <829019b1001130328v7df3ec93nbe58d4bfabbe0e1a@mail.gmail.com> References: <72306e961001130130t6b7b6995k9a0d285f03fe5b1f@mail.gmail.com> <829019b1001130328o628de5dbu3585f43ebe26cb1@mail.gmail.com> <829019b1001130328v7df3ec93nbe58d4bfabbe0e1a@mail.gmail.com> Message-ID: <829019b1001130330v569fe74aje5f97445146b9768@mail.gmail.com> दीवान के साथियों मेरा दोस्त पराग इन दिनों टेलीविजन और उसके चैनलों की ऑफिशियल साइट को लेकर एक प्रोजेक्ट कर रहा है। ये उसके मीडिया कोर्स का हिस्सा है। उसने कुछ सवाल हमारे पास भेजें है,संभव हो तो आप उनके जबाब दें। बहुत उत्साहित होकर काम कर रहा है। आपके सुझाव उसे काम आएंगे,उसे अच्छा लगेगा। विनीत ---------- Forwarded message ---------- From: vineet kumar Date: Wed, Jan 13, 2010 at 4:58 PM Subject: Fwd: survey form To: prabhatgopal at gmail.com ---------- Forwarded message ---------- From: vineet kumar Date: Wed, Jan 13, 2010 at 4:58 PM Subject: Fwd: survey form To: "PUSHKAR (www.mediakhabar.com)" ---------- Forwarded message ---------- From: parag jyoti saikia Date: Wed, Jan 13, 2010 at 3:00 PM Subject: survey form To: vineetdu at gmail.com Dear Vineet I am doing a project on the "New Incarnation Of TV news channels through Internet" for which I need your help. Please fill up the form attached herewith. If you are a blogger do mention about it in the last column. Its little bit hasty affair so can you send it to me by today midnight. Thanks -- Warmth Parag -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100113/539ee9bc/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: survey form.doc Type: application/msword Size: 29696 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100113/539ee9bc/attachment-0001.doc From beingred at gmail.com Wed Jan 13 19:40:25 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Wed, 13 Jan 2010 19:40:25 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSo4KWH4KSq4KS+?= =?utf-8?b?4KSyIOCkleCkv+Ckp+CksCDgpJzgpL4g4KSw4KS54KS+IOCkueCliA==?= Message-ID: <363092e31001130610t15a89b3cl46de95f9622b7a2c@mail.gmail.com> नेपाल किधर जा रहा है *कुछ दिनों पहले खबर आई की नेपाल में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने अपने किशोर सैनिकों के पुनर्वास के लिए उन्हें यूएन के साथ हुए एक समझौते के तहत छोड़ दिया है. इसके साथ ही नेपाल के दूसरे घटनाक्रमों ने भी नेपाल में जनवाद और जनता के संघर्षों को लेकर बहुत सरे सवाल खड़े किये हैं. नेपाल में क्या हो रहा है? वह किधर जा रहा है. अपने इस आलेख में बता रहे हैं टी जी जैकब**. इसका अनुवाद किया है साथी* *अभिषेक श्रीवास्तव ने. * * * *नेपाल का राजनीतिक संकट और सामाजिक जनवाद* *नेपाल *का माओवादी आंदोलन करीब 40 साल पुराना हो चुका है। यह उतना ही पुराना है जितना भारत, बांग्लादेश या श्रीलंका के माओवादी आंदोलन। दक्षिण एशिया में जमीनी स्तर पर माओवादी आंदोलन का पहला सबसे बड़ा उभार पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव में हुआ था जहां के क्रांतिकारियों ने पारंपरिक वामपंथियों के सामाजिक जनवाद को खारिज कर दिया था तथा क्रांतिकारी किसानों और युवाओं ने वाम गठबंधन राजनीति की पोल खोल दी थी। नक्सलबाड़ी ने न सिर्फ भारत के विभिन्न हिस्सों में सकारात्मक क्रांतिकारी कार्रवाई की संभावनाओं को जागृत किया, बल्कि नेपाल में भी ऐसा ही किया। नक्सलबाड़ी से दक्षिण एशिया में 1967 में शुरू हुए माओवादी आंदोलन ने संसदीय लोकतंत्र को खारिज कर दिया और अर्द्धउपनिवेशवाद व अर्द्धसामंतवाद की प्रस्थापना की, जो उनके मुताबिक मुख्यधारा की वामपंथी पार्टियों की बुर्जुआ लोकतंत्र वाली परिकल्पना को अवैध ठहराता है। मजदूर वर्ग के नेतृत्व में सशस्त्र किसान संघर्ष को लोगों के सामने एक सच्चा लोकतांत्रिक सामाजिक-राजनीतिक तंत्र बनाने के इकलौते विकल्प के रूप में रखा गया है। नेपाल के संदर्भ में, जहां सामंती राजशाही तंत्र कायम था, यह विश्लेषण कहीं ज्यादा जटिल हो गया। नेपाल के माओवादी आंदोलन में शुरुआत से ही सामंतवाद का सामाजिक आधार लिए राजशाही को अपना प्राथमिक शत्रु बताया और अपने मुख्य शत्रुओं में भारतीय विस्तारवाद व वैश्विक साम्राज्यवाद को भी जोड़ा। इसी सैद्धांतिक आधार पर उन्होंने नवजनवादी क्रांति के घोषित लक्ष्य के तहत लोगों को संगठित करना शुरू किया, जो कि माओ का केन्द्रीय सिद्धांत था और चीन में जिसका कामयाब परीक्षण हो चुका था। *पूरा पढ़िए : नेपाल किधर जा रहा है * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100113/ac8b43f1/attachment.html From vineetdu at gmail.com Thu Jan 14 10:14:22 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Thu, 14 Jan 2010 10:14:22 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSa4KSw4KWN4KSa?= =?utf-8?b?4KS/4KSkIOCkj+CkguCkleCksOCli+CkgiDgpJXgpYsg4KSV4KWN4KSv?= =?utf-8?b?4KWL4KSCIOCkqOCkueClgOCkgiDgpK7gpL/gpLLgpKTgpYAg4KSf4KWA?= =?utf-8?b?4KSG4KSw4KSq4KWAPw==?= Message-ID: <829019b1001132044o5a712003y385037bcf5554ba5@mail.gmail.com> टेलीविजन अखाड़ों में इन दिनों टीआरपी को लेकर बहस जारी है। टेलीविजन और मीडिया के दिग्गज इस अखाड़े में विचारों की अपनी-अपनी पेंच भिड़ाने में जुटे हैं। सबों के पास कुछ न कुछ कहने को है और सबों ने इसके लिए अपनी-अपनी सुविधा के लिए मंचों का चुनाव कर लिया है। आइबीएन7 के आशुतोष ने जहां दैनिक हिन्दुस्तान में अपनी बात कही,रवीश कुमार ने अपने ब्लॉग पर ही इस मामले को उठाया तो वहीं न्यूज24 के मैनेजिंग एडीटर अजीत अंजुम ने फेसबुक पर ही टेलीविजन का अखाड़ा खोल दिया और लगातार अपनी बात कह रहे हैं। दिलीप मंडल ने टीआरपी की बात मीडियाखबर डॉट कॉम पर रखी है। यहां तक कि खुद एक टीवी चैनल ने इसके विरोध में मोर्चा खोलते हुए आधे घंटे का कार्यक्रम प्रसारित किया। कुल मिलाकर कहानी ये है कि प्रिंट,टेलीविजन,इन्टरनेट और उसी नयी विधाओं में टीआरपी का मामला गर्म है। जनतंत्र ने भी इस पूरी बहस को उठाने की कोशिश की है। टी प्लस की कोशिश है कि टीआरपी की पूरी बहस को गंभीरता से ले औऱ सारी बातों को आप तक पहुंचाने का काम करे। आपसे अपील है कि आप अपनी बेबाक राय जाहिर करें जिससे कि कुछ नतीजे निकलकर सामने आ सकें। ये अलग बात है कि इन सबके वाबजूददिलीप मंडल,अजय ब्रह्मात्मज सहित दूसरे कई बरिष्ठ मीडियाकर्मियों का मानना है कि टीआरपी पर बात करने के लिए एडीटर सहित हमलोग अनक्वालिफाइड लोग हैं। ऐसा इसलिए भी कि टीआरपी बाजार,बिजनेस और विज्ञापन का हिस्सा है जो कि सिर्फ भाषिक बहसबाजी से नहीं बदलनेवाला। मेरी अपनी समझ है कि जब आप टीआरपी की बात कर रहे हैं तो कंटेंट पर भी बात करें क्योंकि एक आम ऑडिएंस को इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि टेलीविजन का रेवन्यू मॉल क्या है? उसे इस बात से मतलब है कि उसका टेलीविजन कंटेंट के स्तर पर दुरुस्त हो रहा है कि नहीं? बहरहाल यहां हम फेसबुक पर इसी से जुड़ी एक बहस को आपके सामने पेश कर रहे हैं जिसे कि अजीत अंजुम ने उठाया है कि आखिर चर्चित एंकरों को टीआरपी क्यों नहीं मिलती? इस बहस में जो लोग शामिल यहां उन्हें हायपर लिंक नहीं कर रहा,बहुत टाइम टेकिंग का काम है। आप व्यक्तिगत तौर पर उन्के बारे में जानना चाहें तो इस लिंक पर चटकाकर जान सकते हैं:- तस्वीर- साभार- मीडिया मंत्र Ajit Anjum टीवी चैनल्स के जिन कार्यक्रमों को आप लोग पसंद करते हैं , उसे टीआरपी क्यों नहीं मिलती ? जिन चुनिंदा एंकर्स के बुलेटिन की आप तारीफ करते हैं , उसे अपेक्षित टीआरपी क्यों नहीं मिलती ? क्या दर्शकों का मिजाज बदला है ? क्या पब्लिक एट लार्ज वो नहीं देखती , जिसे आप पसंद करते हैं ? आपमें से बहुत लोग कह रहे हैं कि अगर कार्यक्रम बढ़िया होगा तो दर्शक जरूर देखेंगे लेकिन टीआरपी मीटर उसे अक्सर खारिज कर देता है,क्यों? Sachin Gaur public ko kya pasand hai kya nahi isse news channels ko matlab kahan hai. 2-3 mahine pahle global warming ka rag alapne wala media ab him yug ki wapsi par stories chala raha hai. shame on the electronic media. sirf trp ki parvah hai aap logo ko. aur kisi ki nahi.aam admi ke faer psychosis ko jitna exploit aap log kar rahe hain uski had hai. har mosam main chillana gala fadna bas yahi kam reh gaya hai news channels ka. 9 hours ago Sachin Gaur garmi jyada padi toglobal warming. thand jyada to him yug. rubbish. news 24 ki story main dava kar rahe hai ki gulf stream jam rahi hai scientist dava kar rahe hai ki ye him yug ki wapsi ke sanket hain. naam kya hain scinetists ke . aap batayenge jo ye dave kar rahe hain. 8 hours ago Sajid Khan mujhe yeh samjh nahi aata yeh trp meter lagte kin gharoo main hai aur in meter ko lagaane ka paimana kya hai..kya yeh midlle calss gharoo mai lagte hai ya uper calss ya ganv ke kacche gharoo main.ya nayee ki dukanoo par nayee ki dujanno par...aur rahi baat aache progrme ko ya acche anchor ke progrme ko trp milne ki..ab jab hum is trp khel par yaakin hi nahi karte to jawab mujhe sujh nahi rha..kyon ki acache progrme aur acche anchor ke progme loog dekhte hai .. 8 hours ago Ajit Anjum सचिन आपका गुस्सा बहुत हद तक जायज है लेकिन हम युग के बारे में आप जल्दी में नतीजे पर पहुंचकर गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं . पूरी दुनिया में तापमान जितना नीचे गिरा , उसे देखिए , समझिए . ये कोई मनगढंत कहानी नहीं है . पूरे यूरोप में रिकार्ड टूट गया है . दुनिया को कई कोनों में कोहराम मचा है . बाकी आपकी बात सर माथे पर . यही तो जानना चाहते हैं हम कि अगर एनडीटीवी इंडिया , जी न्यूज , स्टार न्यूज , आईबीएन , आजतक या कोई और चैनल कोई सार्थक कार्यकम बनाता है तो जनता उसे देखती क्यों नहीं है ... 8 hours ago Sachin Gaur seedhe sadhe sapt mosam ka majak bana diya hai trp ke chakkar main. jesi sardi aaj pad rahi hai. isse kahin jyada sardi kai bar pad chuki hai. aur jesi garmi is bar padi thi usse bahut jyada garmi pahle pad chuki hai. is bar highest tapman 44.8 jabki 10 saal pahle delhi main 47 tatah 45-46 kai bar ho chuka hai. lekin tab electronic media nahi tha isliye global warming nahi thi. 1degree 2-3 degree tak delhi ka tapman bahut baar pahle bhi ja chuka. 2006 ke december last 0 degree tak gaya tha delhi ka tapman. tab to himyug wapas nahi aaya. 8 hours ago Hasan Jawed आप ने मुद्दा सही उठाया है पर ये टीआरपी का रोना बेहद बेतुका है! कौन कहता है की हम बेहतर प्रोग्राम को बेहतर नहीं कहते! पहली बात ये की दर्शक अपनी बात कहे कैसे? जिस के आधार पर आप समझेंगे की लोगों ने हमें सराहा है! मेसेज और मेल करना आसान नहीं है और नाही लोगों के पास टाइम है आप के लिए क्यूंकि लोग समझते हैं की मनोरंजन चैनल का कंटेंट चुरा कर लोगों को दिखान... See More 8 hours ago Sachin Gaur us aur europe main aisi barfbari pahle bhi ho chuki hai. ye koi nai baat nahi. logo ko murkh banana chod dijiye. aisi news dekhkar log ghabra jate hain. unhe dariye mat normalzindagi jeene dijiye. 8 hours ago Ajit Anjum हमयुग कोई दिल्ली के संदर्भ में नहीं है , दुनिया के संदर्भ में है . पूरी दुनिया के तापमान पर नजर डालिए . चाहे तो गूगल पर सर्च कर लीजिए . 8 hours ago Sachin Gaur aise wahiyat aur fizul programmes ko trp isliye milti hai kyunki fear psychosis ki wajah se wo ise dekhte hain. unka dar unhe ye dekhne ko prerit karta hai. aur aapko trp mil jati hai. shame on news channls 8 hours ago Ajit Anjum वैसे बता दूं कि हम युग या आइस एज के नाम से कार्यक्रम हर चैनल पर चले हैं आप खामखा न्यूज 24 से नाराज हो रहे हैं . हर अखबार में खबरें छप रही है . फिर भी आपकी नाराजगी की मैं कद्र करता हूं . जहां तक रही टीआरपी की बात तो मैं तो कह ही रहा हूं टीआरपी मजबूरी और अभिशाप है . अगर अच्छे कार्यक्रमों से टीआरपी मिलने लगे तो चैनलों की तस्वीर बदलने लग जाएगी . 8 hours ago Nabeel A. Khan @Anjum ji I guess ye jo "AAP" hai yahee to public hai to jo "AAP" ko pasand wahi sabka baap-------all in one blunt but straight forward statement (Sincere apology for the harsh lingo) 8 hours ago Om Singh अंजुम सर, लगता है बहस की दिशा भटक गई है ... मुद्दे की बात नहीं हो रही है ... 8 hours ago Sachin Gaur ajeet ji 2 mahine pahle dunibhar main global warming ko lekar shor tha copenhegan main summit ho raha tha. how is it possible that with in 2 months an ice age can come. and its matter of happines if such a snow fall is occuring. glaciers pe barf jamegi. nadiyon ko pani milega. 8 hours ago Sachin Gaur aap gaon main jaiye wahan log normal zindagi ja rahe hain. agar thand pad rahi hai to pad rahi. garmi pad rahi hai to pad rahi hai. koi hangama nahi hai. kyonki wahan news channels nahi hain. weather cycle has just changed. niether its global warming nor ice age. may main ab utni garmi nahi padti jitni pahle padti thi garmi ab june se start hoti ... See More 8 hours ago Nabeel A. Khan @Anjum ji@ Sachin ji It is the over all character of an individual media matters-had it been done on BBC, NDTV or written in any newspaper without any doubt it would have been accepted but as the mentioned channel had been involved in some irrelevant stories now even the good and correct stories becomes tough to believe for the viewers, However, i dont have any evidence to prove the veracity of the story or prove it to be wrong 8 hours ago Om Singh सचिन गौर जी... आपकी पीड़ा को हमने समझ लिया .... 8 hours ago Sachin Gaur i tell u first panipat war was fought on30 april 1526. that time it was too hot in april . we cant expect such hot april now. 8 hours ago Sachin Gaur its a routine weather change which happens after every 5-600 years after. us main aisi barf 30 saaal pahle bhi padi thi. tab to ice age nahi aaya ab kese aa jayega. 8 hours ago Ajit Anjum नबील,आपकी जानकारी के लिए बता दूं कल रात साढ़े नौ बजे एनडीटीवी इंडिया ने भी आधे घंटे का कार्यक्रम किया था . संजय अहरवाल शायद एंकर कर रहे थे . कल मेल टुडे समेत कई अखबारों में आइस एज के नाम से ही खबरें छपी थी . आज भी छपी है . बिना फैक्ट चैक किए जजमेंट न दें . एपीटीएन से दिन भर में फूटेज की बारिश हो रही है . 8 hours ago http://www.blogger.com/img/blank.gif Ajit Anjum आप सिर्फ शीर्षक पर जा रहे हैं . हेडिंग या हेडलाइन का मतलब अगर उस तरह से निकालेंगे तो हर खबर बेकार है . 8 hours ago Nabeel A. Khan @Anjum ji didn't challenge the veracity of the news- moreover I don't say that this news is irrelevant but I think you should agree the way news is presented at times on some hindi channels which trivialises even the important aspect and for a class of viewers it forces them to create a partial perception. However, we all know that no one is ... See More 8 hours ago Nabeel A. Khan @Anjum ji But headline should ideally be the crux of story-let me share with u one incident -a report gives a headline -about two actors from Bollywood getting married(the name like A set to marry B ) which interested me to read the story - but when i read it i found that they r making film where they will play husband wife -it happened 2 years back in office-now should i consider it ideal ------no i will never 7 hours ago Ajit Anjum दोस्त क्या आपको लगता है कि इतनी ज्ञान भरी बातों के बारे में हमें पता नहीं है ? मैंने सात साल प्रिंट में भी काम किया है दोस्त और टीवी में तो कर ही रहा हूं . ऐसा नहीं है कि जो आप कह रहे हैं वो मैं समझता नहीं हूं . ऐसा भी नहीं कि जो टीवी में हो रहा है , उसे अतिप्रसन्न हूं . होता तो अपनी बात कहने यहां नहीं आता . यही तो मैं कह रहा हूं कि जिस तरह के कंटेंट की आप लोग तारीफ करते हैं ,उसे पब्लिक एट लार्ज नहीं देखती . या फिर 7 hours ago Hasan Jawed GUSSA AAP KO BHI AATA H 7 hours ago Ajit Anjum अरे मैं भी तो आदमी हूं यार . ओखल में सर दे दिया तो इसका मतलब ये तो नहीं कि चिल्लाने का अधिकार भी न रहा 7 hours ago Nabeel A. Khan I can never dare your knowledge- I salute your skill but the main issue is that an adroit person of great intellect knowledge like you and many other in the media can afford to be ruled by marketing gimmick--and compromise with our soul--Even in my office for that matter many seasoned journalists are happily ready to kill the essence of journalism to woo some market-I fear we will be soon loosing our sheen---- 7 hours ago Nabeel A. Khan In our own world we are allowing the aliens to set up the rules -------- at Ajit ji I apologies if i hurt u by any means- it was just for the discussion 7 hours ago Ranjan Rituraj मै मीडिया से नहीं हूँ . काफी दिनों से "बहस" का हिस्सा बन रहा हूँ . कुल मिला कर - यही पता चला की ...टी आर पी ..बकवास है ! टी वी न्यूज़ चैनल "रामायण" और " महाभारत" की तरह पुरे देश के सडकों को सुना नहीं कर सकता ! दर्शक कई वर्गों में बंटा है ! हर कोई सर्फ़ नहीं खरीदता है -"निरमा" और हिपोलिन भी बाज़ार में है - पुरे बाज़ार को "निरमा" और "हिपोलिन" की तर्ज़ प... See More 7 hours ago Nabeel A. Khan @Rituraj ji I agree --but nirma ho ya hipolin dono mein detergent hi hona chahiye aur uska kam bhi ek hi hona chahiye gandagi ko saaf karne -lekin aap detergent ke packet mein balu (sand) bhar kar bechenge to achhi baat to naheen hai?? 7 hours ago Sachin Gaur om singh ji aapne hamari pida ko smjha dhanyavad. aap ab chaplusi chod kar behas ka hissa baniye ya chup rahiye. 7 hours ago Sachin Gaur ajit ji kya aap ko lagta hai ravish kumar ya kamal khan ki special reports ko log nahi dekhte hain. chini ko ravish kumar ki report lajawab thi. unki sheli presentation sab kuch a one. kese ek aam admi usko chod him yug ki wapsi ko dekh sakta hai. 7 hours ago Sachin Gaur ruchika case ko news 24 ne bahut acche se follow kiya tha. i appreciate it. kese koi isko mana kar sakta hai. 7 hours ago Pravakar Chanchal सर, पहले के मुकाबले अब दर्शकों का नज़रिया काफी बदला है...मेरे ख्याल से अब दर्शक न्यूज़ चैनल पर न्यूज़ देखना ज्यादा पसंद करता है...और ये ज़रूरी है नहीं कि दर्शक एंकर का चेहरा देखकर ही आपका चैनल देखे...और ये भी सच है कि दर्शक जिन कार्यक्रम को ज्यादा पसंद करते हैं उसे टीआरपी नहीं मिलती ठीक वैसे ही जैसे कि कोई फिल्म जो दिल तो छू जाती है मगर वो हिट नहीं होती.... 6 hours ago Rahul Goel हम मीडिया से जुड़े लोग जब किसी कार्यक्रम को देखते हैं तो अलग नजरिये से ..अब कुछ हजार मीडिया वालों से टीआरपी आने से तो रही ...मेरे दोस्त जो पत्रकार नहीं है ..कॉल सेंटर में काम करते हैं ..या एम बी ए कर रहे हैं..या किसी दूसरे पेशे से जुड़े है..उन्हे बुंदेलखंड या सौराष्ट्र में भुख मरी और किसानों की मौत से जुड़ी खबर देखने में कोई मजा नही आता शायद उन्हे ... See More 6 hours ago Ajit Anjum चलिए अब फिर मुद्दे पर आते हैं सचिन जी , मैं पहले तो शुक्रिया अदा कर दूं कि आपने रूचिका पर न्यूज 24... See More 6 hours ago Rahul Goel मैं रंजन की बात से कुछ हद तक सहमत हूं 6 hours ago Diwan Singh Kathayat सर, माफ कीजिएगा पर मैं अक्सर देखता हूं की आप प्रोग्राम, एंकर्स और टीआरपी के बीच उलझे रहते हैं...एक चैनल का हैड होने के नाते वाजिब भी है...सर थोड़ी देर के लिए एक दर्शक की नजर से देखिए...आज हमारी गिनती से ज्यादा चैनल हमारे पास हैं...और ये हमारा भर्म है कि हमारे एंकर्स कोई स्टार हैं...चैनल के बाहर कोई किसी को नहीं जानता...जो रोज उसे देखने बैठे... 6 hours ago Diwan Singh Kathayat और सर दूसरी बात प्रोग्राम के कंटेंट में दम हो या ना हो प्रोमो जोरदार होना चाहिए...कहा भी गया है पैकिंग अच्छी होनी चाहिए...अंदर कुछ भी बेचो...लाइक इंडिया टीवी 6 hours ago Nabeel A. Khan I guess Ruchika case got worst on Times Now--------i ll support it tomorrow gud night 6 hours ago Richa Sakalley अजीत सर, सच तो यही है कि ज्यादातर दर्शक अच्छे कार्यक्रम ही देखना चाहते हैं, आप जिन चुनिंदा एंकर्स की बात कर रहे हैं उनके सभी कार्यक्रम लगभग सभी वर्ग के दर्शकों में सराहे जाते हैं...(टीन एजर्स, बच्चों को छोड़कर) इसका सबसे बड़ा उदाहरण 'समय' चैनल 'था'...जब सहारा समय का नेशनल चैनल 'समय' के रुप में दर्शकों के सामने आया तो हर जगह चर्चा में रहा...'समय' में उस दौरान हर वो फैसला हिम्मत के साथ लिया गया जिसे लेने में आज तमाम बड़े चैनल सौ बार सोचेंगे...मसलन, ज्योतिष कार्यक्रम नहीं चलाए गए...टीवी सीरियल, नाच गाना, कॉमेडी नहीं दिखाई गई। चैनल गंभीरता के ताने-बाने में बुना गया...6 महीने के भीतर चैनल के चर्चे हर ज़ुबान पर थे और टीआरपी भी मिल रही थी...खैर...मुझे लगता है सर बात थोड़े से धैर्य और थोड़े से विल पॉवर को दिखाने की है...सर टीआरपी से अभिशप्त होने या मजबूर होने का गाना गाने से अच्छा है क्यों न तमाम चैनल मिलकर कुछ क्रांति करें...टीआरपी को मजबूर करें....बाज़ार को मज़बूर करें...हिम्मत के साथ ये सच कहकर कि "भैया ये है हमारे पास बेचने को...जनता हमारे साथ है....हम यही बेचेंगे"....मुझे लगता है शायद हम जीत जाएं...टीआरपी का खेल रुक जाए...हालांकि मैं इन सब मामलों को और बड़े स्तर की मजबूरियों को उतना अच्छे से समझती नहीं हूं हो सकता है हाइपोथिटिकल बात कह रही हूं...लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों लगता है कि ऐसा कर सकते हैं... 5 hours ago Dinesh Mansera ajit ji, aapko yaad hoga ki manoher kahaniya, satya katha jaisi patrikaye bhi apne zamane me dharmyug,sapatahik hindustan se jayaada bikti thi wahi daur aaj bhi hai , jise aap TRP se jod kar dekhte ha , TRP unhe karykarmo ki jyaada ho jati joki india tv , sansani,jaise hote hai, jabki news point ya doosre progrme neeche khisak jate hai..humare yahan achche karykram dekhne wale deir raat tak partiyo me hote ha. बहस आगे भी जारी है... -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100114/74b29402/attachment-0001.html From water.community at gmail.com Mon Jan 11 08:11:28 2010 From: water.community at gmail.com (water community) Date: Mon, 11 Jan 2010 08:11:28 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=5BHindimedia=5D_?= =?utf-8?b?4KS14KS+4KSf4KSwIOCkleCkruCljeCkr+ClguCkqOCkv+Ckn+CkvyA=?= =?utf-8?b?4KSH4KSC4KSh4KS/4KSv4KS+IOCkleCliyDgpLXgpL7gpJ/gpLAg4KSh?= =?utf-8?b?4KS+4KSH4KSc4KWH4KS44KWN4KSfIOCkteCkvuCkn+CksCDgpIXgpLU=?= =?utf-8?b?4KS+4KSw4KWN4KShIDIwMDktMTAvIOCkuOCkvuCkpSDgpK7gpYfgpIIg?= =?utf-8?b?4KSV4KWB4KSbIOCkheCkmuCljeCkm+ClhyDgpLLgpYfgpJYg4KSt4KWA?= =?utf-8?b?IOCkueCliCwg4KSc4KS/4KSo4KWN4KS54KWH4KSCIOCkhuCkqiDgpJs=?= =?utf-8?b?4KS+4KSq4KSo4KS+IOCkmuCkvuCkueClh+CkguCkl+ClhywgMS0g4oCc?= =?utf-8?b?4KSs4KSk4KSw4KS44oCdIOCkuOCkvuCkruClgeCkpuCkvuCkr+Ckvw==?= =?utf-8?b?4KSVIOCktuCljOCkmuCkvuCksuCkryAuIC4gLiAu?= In-Reply-To: <8b2ca7431001101840m49375512o9491a69e450320e8@mail.gmail.com> References: <67c3afa81001101753p517c7126o95f4f6a4abaee3a6@mail.gmail.com> <8b2ca7431001101840m49375512o9491a69e450320e8@mail.gmail.com> Message-ID: <8b2ca7431001101841m1bdbc76dk513073bbaa0ff0b1@mail.gmail.com> मित्रों वाटर कम्यूनिटि इंडिया को हिन्दी पोर्टल के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड 2009-10 जल संरक्षण के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के सम्मान के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर पुरस्कार, 2006 में स्थापित किए गए थे। यह पुरस्कार यूनेस्को और भारत के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा समर्थित है। पुरस्कार का मुख्य फोकस लोग, नवीनता, प्रक्रिया और गैर सरकारी संगठन/ कॉर्पोरेट हैं जो लोगों के बीच काम कर रहे हैं। इस वर्ष के पुरस्कार के लिए 9 जनवरी 2010 को नई दिल्ली के पार्क होटल में आयोजन किया गया था, जिसमें केंद्रीय जल संसाधन मंत्री श्री पवन कुमार बंसल के हाथों पुरस्कार प्राप्तकर्त्ताओं को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर वाटर कम्युनिटी इंडिया को जल शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने और विशेषकर हिंदी पोर्टल के माध्यम से शिक्षा और ज्ञान का प्रसार करने के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड 2010 से सम्मानित किया गया। संस्था की ओर से संस्था की अध्यक्षा श्रीमती मीनाक्षी अरोड़ा और श्री सिराज केसर ने पुरस्कार प्राप्त किया। इस अवसर पर इंडिया वाटर पोर्टल के प्रसार प्रमुख दीपक मेनन की उपस्थिति भी रही। ज्ञातव्य हो कि इंडिया वाटर पोर्टल हिन्दी अर्घ्यम के जानकारी आधारित पोर्टलों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। निमंत्रण पानी-पर्यावरण और पत्रकारिता पर एक दिवसीय कार्यशाला * स्थानः माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल, म.प्र. तिथिः जनवरी 14, 2010 समयः प्रातः 9:30-5 बजे सांय इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी, भोपाल मेंमाखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहयोग से पानी- पर्यावरण और पत्रकारिता मुद्दे पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है। आप सभी से निवेदन है कि कार्यशाला में पहुंचकर अपने बहुमूल्य विचारों का आदान-प्रदान करें। आप सभी विद्वतजन कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं। Read more *** *आलेख* “बतरस” सामुदायिक शौचालय Author: अपर्णा पल्लवी वेब/संगठन: india environment portal org विदर्भ में महिलाओं के लिये विशेष… आज भी भारत के ग्रामीण इलाकों में लोग खुले में शौच जाते हैं, वे खुशी से नहीं जाते, बल्कि यह उनकी मजबूरी है। लेकिन खुले में शौच जाने की आदत सेनिटेशन और स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है। ऐसी ही सोच के साथ महिलाओं की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए आगे आए विकासखण्ड अधिकारी राजेन्द्र पाटिल.......यानी बीडीओ साहब। पर ये क्या! - - Read more - 29 reads रपट केरल की अथिरापल्ली पनबिजली परियोजना पर ब्रेक Author: बिपिन चन्द्र चतुर्वेदी Source: http://www.manoramaonline.com आखिर वह भी हुआ जो होना चाहिए था। जी हां, केरल में प्रस्तावित अथिरापल्ली पनबिजली परियोजना पर ब्रेक लग गया। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने गत 4 जनवरी 2010 को परियोजना को दी गई मंजूरी वापस लेने की सिफारिश कर दी। साथ ही मंत्रालय ने इस संबंध में केरल राज्य विद्युत बोर्ड से 15 दिनों में अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है। केरल में चालकुडी नदी पर प्रस्तावित इस 163 मेगावाट की पनबिजली परियोजना को जुलाई 2007 में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। केन्द्र ने अपनी मंजूरी रिवर वैली एंड हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्टस के विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति द्वारा अप्रैल 2007 में परियोजना स्थल पर भ्रमण करने के बाद दी गई सिफारिश के बाद दी थी। परियोजना को सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद विशेषज्ञ - - Read more -- Minakshi Arora hindi.indiawaterportal.org -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100111/e7d4ba63/attachment-0002.html -------------- next part -------------- _______________________________________________ Hindimedia mailing list Hindimedia at lists.indiawaterportal.org http://lists.indiawaterportal.org/cgi-bin/mailman/listinfo/hindimedia From water.community at gmail.com Mon Jan 11 08:11:28 2010 From: water.community at gmail.com (water community) Date: Mon, 11 Jan 2010 08:11:28 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=5BHindimedia=5D_?= =?utf-8?b?4KS14KS+4KSf4KSwIOCkleCkruCljeCkr+ClguCkqOCkv+Ckn+CkvyA=?= =?utf-8?b?4KSH4KSC4KSh4KS/4KSv4KS+IOCkleCliyDgpLXgpL7gpJ/gpLAg4KSh?= =?utf-8?b?4KS+4KSH4KSc4KWH4KS44KWN4KSfIOCkteCkvuCkn+CksCDgpIXgpLU=?= =?utf-8?b?4KS+4KSw4KWN4KShIDIwMDktMTAvIOCkuOCkvuCkpSDgpK7gpYfgpIIg?= =?utf-8?b?4KSV4KWB4KSbIOCkheCkmuCljeCkm+ClhyDgpLLgpYfgpJYg4KSt4KWA?= =?utf-8?b?IOCkueCliCwg4KSc4KS/4KSo4KWN4KS54KWH4KSCIOCkhuCkqiDgpJs=?= =?utf-8?b?4KS+4KSq4KSo4KS+IOCkmuCkvuCkueClh+CkguCkl+ClhywgMS0g4oCc?= =?utf-8?b?4KSs4KSk4KSw4KS44oCdIOCkuOCkvuCkruClgeCkpuCkvuCkr+Ckvw==?= =?utf-8?b?4KSVIOCktuCljOCkmuCkvuCksuCkryAuIC4gLiAu?= In-Reply-To: <8b2ca7431001101840m49375512o9491a69e450320e8@mail.gmail.com> References: <67c3afa81001101753p517c7126o95f4f6a4abaee3a6@mail.gmail.com> <8b2ca7431001101840m49375512o9491a69e450320e8@mail.gmail.com> Message-ID: <8b2ca7431001101841m1bdbc76dk513073bbaa0ff0b1@mail.gmail.com> मित्रों वाटर कम्यूनिटि इंडिया को हिन्दी पोर्टल के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड 2009-10 जल संरक्षण के लिए विभिन्न कंपनियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कार्य के सम्मान के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर पुरस्कार, 2006 में स्थापित किए गए थे। यह पुरस्कार यूनेस्को और भारत के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा समर्थित है। पुरस्कार का मुख्य फोकस लोग, नवीनता, प्रक्रिया और गैर सरकारी संगठन/ कॉर्पोरेट हैं जो लोगों के बीच काम कर रहे हैं। इस वर्ष के पुरस्कार के लिए 9 जनवरी 2010 को नई दिल्ली के पार्क होटल में आयोजन किया गया था, जिसमें केंद्रीय जल संसाधन मंत्री श्री पवन कुमार बंसल के हाथों पुरस्कार प्राप्तकर्त्ताओं को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर वाटर कम्युनिटी इंडिया को जल शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने और विशेषकर हिंदी पोर्टल के माध्यम से शिक्षा और ज्ञान का प्रसार करने के लिए वाटर डाइजेस्ट वाटर अवार्ड 2010 से सम्मानित किया गया। संस्था की ओर से संस्था की अध्यक्षा श्रीमती मीनाक्षी अरोड़ा और श्री सिराज केसर ने पुरस्कार प्राप्त किया। इस अवसर पर इंडिया वाटर पोर्टल के प्रसार प्रमुख दीपक मेनन की उपस्थिति भी रही। ज्ञातव्य हो कि इंडिया वाटर पोर्टल हिन्दी अर्घ्यम के जानकारी आधारित पोर्टलों की श्रृंखला का एक हिस्सा है। निमंत्रण पानी-पर्यावरण और पत्रकारिता पर एक दिवसीय कार्यशाला * स्थानः माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल, म.प्र. तिथिः जनवरी 14, 2010 समयः प्रातः 9:30-5 बजे सांय इंडिया वाटर पोर्टल हिंदी, भोपाल मेंमाखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के सहयोग से पानी- पर्यावरण और पत्रकारिता मुद्दे पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है। आप सभी से निवेदन है कि कार्यशाला में पहुंचकर अपने बहुमूल्य विचारों का आदान-प्रदान करें। आप सभी विद्वतजन कार्यक्रम में सादर आमंत्रित हैं। Read more *** *आलेख* “बतरस” सामुदायिक शौचालय Author: अपर्णा पल्लवी वेब/संगठन: india environment portal org विदर्भ में महिलाओं के लिये विशेष… आज भी भारत के ग्रामीण इलाकों में लोग खुले में शौच जाते हैं, वे खुशी से नहीं जाते, बल्कि यह उनकी मजबूरी है। लेकिन खुले में शौच जाने की आदत सेनिटेशन और स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है। ऐसी ही सोच के साथ महिलाओं की सुविधाओं का ध्यान रखते हुए आगे आए विकासखण्ड अधिकारी राजेन्द्र पाटिल.......यानी बीडीओ साहब। पर ये क्या! - - Read more - 29 reads रपट केरल की अथिरापल्ली पनबिजली परियोजना पर ब्रेक Author: बिपिन चन्द्र चतुर्वेदी Source: http://www.manoramaonline.com आखिर वह भी हुआ जो होना चाहिए था। जी हां, केरल में प्रस्तावित अथिरापल्ली पनबिजली परियोजना पर ब्रेक लग गया। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने गत 4 जनवरी 2010 को परियोजना को दी गई मंजूरी वापस लेने की सिफारिश कर दी। साथ ही मंत्रालय ने इस संबंध में केरल राज्य विद्युत बोर्ड से 15 दिनों में अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है। केरल में चालकुडी नदी पर प्रस्तावित इस 163 मेगावाट की पनबिजली परियोजना को जुलाई 2007 में केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने मंजूरी दी थी। केन्द्र ने अपनी मंजूरी रिवर वैली एंड हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्टस के विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति द्वारा अप्रैल 2007 में परियोजना स्थल पर भ्रमण करने के बाद दी गई सिफारिश के बाद दी थी। परियोजना को सैद्धांतिक मंजूरी मिलने के बाद विशेषज्ञ - - Read more -- Minakshi Arora hindi.indiawaterportal.org -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100111/e7d4ba63/attachment-0003.html -------------- next part -------------- _______________________________________________ Hindimedia mailing list Hindimedia at lists.indiawaterportal.org http://lists.indiawaterportal.org/cgi-bin/mailman/listinfo/hindimedia From beingred at gmail.com Thu Jan 14 21:49:58 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Thu, 14 Jan 2010 21:49:58 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?Li4u4KSk4KWLIA==?= =?utf-8?b?4KS54KSuIOCkleCkreClgCDgpKjgpLngpYDgpIIg4KSg4KS/4KSg4KSV?= =?utf-8?b?4KWH4KSC4KSX4KWH?= Message-ID: <363092e31001140819m7eedeb89o1c91e19eb167db77@mail.gmail.com> ...तो हम कभी नहीं ठिठकेंगे *देश अपने गणतंत्र के 60 वें वर्ष में अपने ही नागरिकों के खिलाफ छेड़े गए दर्जन भर से अधिक युद्धों, लगभग एक अघोषित आपातकाल, लाखों किसानी आत्महत्याओं और एक अदद इरोम शर्मीला के साथ दाखिल हो रहा ही. इरोम ने अपने अनशन के दस वर्षों में इस लोकतंत्र का रेशा-रेशा उजागर किया है, किसी अर्थशास्त्री, नेता, आन्दोलन, समाज विज्ञानी, ने नहीं किया है. इस शानदार प्रतिरोध पर शोमा चौधरी का यह शानदार आलेख, तहलका से साभार .* *कभी*-कभी हमें अपने जिद्दी और अड़ियल वर्तमान को ठीक से जानने के लिए अतीत में लौटना पड़ता है. इसलिए पहले एक फ्लैशबैक. यह 2006 है. नवंबर में दिल्ली की एक आम-सी शाम. तभी एक रुक-रुककर आती धीमी आवाज आपकी चेतना को चीरती हुई चली जाती है. 'मैं कैसे समझाऊं? यह सजा नहीं, मेरा कर्तव्य है.. अपने दर्द के कारण धीमी मगर फिर भी अपनी नैतिकता में डूबी हुई ऐसी जादुई आवाज और ऐसे शब्द, जिन्हें आप कभी नहीं भूल सकते. 'मेरा कर्तव्य.' आर्थिक प्रगति के उत्साह में गले तक डूबे भारत में 'कर्तव्य' का भला क्या मतलब होगा? आप कहीं दूर चले जाना चाहते हैं. आप व्यस्त हैं और उस आवाज में हिंसा का कोई संकेत भी नहीं है. लेकिन तभी एक चित्र बनने लगता है. अस्पताल के एक बिस्तर पर गोरे रंग की एक कमजोर औरत, बिखरे हुए काले बालोंवाला सिर, नाक में प्लास्टिक की एक ट्यूब, दुबले और साफ हाथ, दृढ़ और बादामी आंखें और रुक-रुक कर आती, कांपती आवाज, जो कर्तव्य की बात करती है. *पूरा पढ़िए : ...तो हम कभी नहीं ठिठकेंगे * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100114/62e75a56/attachment.html From beingred at gmail.com Mon Jan 18 12:35:16 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Mon, 18 Jan 2010 12:35:16 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?Li4u4KSV4KWN4KSv?= =?utf-8?b?4KWL4KSC4KSV4KS/IOCkteCkuSDgpIXgpK7gpYfgpLDgpL/gpJXgpL4g?= =?utf-8?b?4KSV4KS+IOCksOCkvuCkt+CljeCkn+CljeCksOCkquCkpOCkvyDgpKg=?= =?utf-8?b?4KS54KWA4KSCIOCkueCliA==?= Message-ID: <363092e31001172305q359be3b5ib1db01ff61847bb@mail.gmail.com> *...क्योंकि वह अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं है * *नोबेल पुरस्कार ने शांति को लेकर ओबामा की वचनबद्धता को इतना मजबूत किया है कि अफगानियों के लिए उन्हों ने और अधिक सैनिक भेज दिए हैं. क्या है ये नोबेल की राजनीति और उसका अर्थशास्त्र, बता रहे हैं फिदेल कास्त्रो. अनुवाद साथी अभिषेक श्रीवास्तव का है.* *एक* नस्ली समाज में अफ्रीकी मूल का अमेरिकी होने के बावजूद चुनाव जीतने पर यदि ओबामा को नोबेल पुरस्कार दिया गया है, तो इसके स्वाभाविक हकदार एवो भी हैं, भले ही वह उसी देश के हैं, लेकिन उन्होंने अपने वादे रखे हैं। ऐसा पहली बार हुआ है कि दोनों ही देशों में वहां की जातियताओं के दो सदस्यों ने राष्ट्रपति पद का चुनाव जीता है। मैं कई बार कह चुका हूं कि ओबामा एक स्मार्ट व्यक्ति हैं और वह उसी सामाजिक और राजनीतिक तंत्र में पले-बढ़े हैं जिसमें वह आस्था रखते हैं। उनकी सदिच्छा है कि पांच करोड़ अमरीकियों को स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, आसन्न संकट से अर्थव्यवस्था को बाहर निकाला जा सके तथा नरसंहार, युद्ध और शोषण के चलते बरबाद हो चुकी अमेरिका की छवि को सुधारा जा सके। वह अपने देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को बदलने के बारे में न तो सोचते हैं और न ही उनकी ऐसी कोई इच्छा है। जाहिर है वह ऐसा कर भी नहीं सकते। शांति के लिए नोबेल पुरस्कार तीन अमरिकी राष्ट्रपतियों को मिल चुका है। इसके अलावा एक पूर्व राष्ट्रपति और एक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को भी मिला है। पहला, 1901 में चुने गए रूजवेल्ट को मिला था जो 1898 में क्यूबा में अमेरिकी हस्तक्षेप के चलते हमारी आजादी को बचाने के लिए आए थे। उनके पास घुड़सवार तो थे, लेकिन घोड़े नदारद थे। दूसरे सज्जन रहे, थाॅमस वुडरो विल्सन, जिन्होंने दुनिया का बंटवारा करने के लिए अमेरिका को युद्ध में झोंक दिया। जर्मनी पर वर्सेल्स की संधि के माध्यम से बेहद प्रतिकूल स्थितियां थोपने वाले विल्सन ने फासीवाद के उभार और द्वितीय विश्व युद्ध की नींव रखी। तीसरे सज्जन हैं, बराक ओबामा। *पूरा पढ़िए : ...क्योंकि वह अमेरिका का राष्ट्रपति नहीं है * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100118/266767d7/attachment.html From beingred at gmail.com Mon Jan 18 12:40:37 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Mon, 18 Jan 2010 12:40:37 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSu4KS+4KSTIA==?= =?utf-8?b?4KSV4KWHIOCkrOCkvuCkpiDgpJXgpL4g4KSa4KWA4KSoIDog4KSu4KS/?= =?utf-8?b?4KSl4KSVIOCklOCksCDgpK/gpKXgpL7gpLDgpY3gpKU=?= Message-ID: <363092e31001172310r2584ad74u1b289d515d6657dc@mail.gmail.com> माओ के बाद का चीन : मिथक और यथार्थ *चीन की आर्थिक वृद्धि की दर सबको लुभा रही है. लेकिन चीन के पिछवाड़े में क्या है, यह जानने की कोशिश की है टी जी जैकब और पी बंधू ने इस लेख में. इस आलेख का अनुवाद किया है अभिषेक श्रीवास्तव ने. जल्दी ही हम चीनी मामलों के विशेषज्ञ राबर्ट वेल से हाशिया और रविवार की एक लम्बी बातचीत भी पढेंगे. * ‘हम कहते हैं कि चीन एक विशाल परिक्षेत्र वाला देश है, संसाधन संपन्न है और आबादी में विशाल; सचाई यह है कि वे हान राष्ट्रीयता के लोग हैं जिनकी आबादी विशाल है तथा वे लोग अल्पसंख्यक राष्ट्रीयता वाले हैं जिनकी विशाल जमीनें हैं और जिनके संसाधन काफी सम्पन्न हैं...’ *-सेलेक्टेड वक्र्स आफ माओ त्से-तुंग, अंक 5, फारेन लैंगवेजेज प्रेस, 1977, पृष्ठ 295* *चीनी *क्रांति और क्रांति के बाद के चीन के सबसे अग्रणी नेता माओ की उपर्युक्त उक्ति बिल्कुल सही और निरपेक्ष सूत्रीकरण है जिसकी वैधता क्रांति के 60 साल से ज्यादा वक्त के बाद भी बनी हुई है। दरअसल, यह वैधता 30 साल पहले चीन के वैश्विक नवउदारवादी तंत्र में शामिल हो जाने के बाद उन भौतिक परिवर्तनों के साथ ज्यादा से ज्यादा पुष्ट होती गई है जिनसे चीन गुजर रहा है। यह माओ की उपर्युक्त यथार्थवादी स्वीकारोक्ति थी और साथ ही चीन की पश्चिमी सीमाओं तथा मध्य एशिया व यूरोप के साथ व्यापार मार्गों को सुरक्षित करने के रणनीतिक सरोकार जिसने पहले से हान वर्चस्व वाली चीनी जन मुक्ति सेना को चीनी क्रांति की विजय के ठीक बाद विशाल और तथाकथित अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं वाले क्षेत्रों पर आक्रमण करने को प्रेरित किया। इन आक्रमणों को सामंती व साम्राज्यवादी दमनकारियों के शिकंजे से इन राष्ट्रीयताओं के गरीबों की ‘मुक्ति’ के लिहाफ में लपेट कर पेश किया गया। इस तरह का इतिहास लेखन किया गया जिसमें प्रचारित किया गया कि ये तमाम भौगोलिक क्षेत्र और इसमें रहने वाले लोग लंबे समय से चीन का अभिन्न हिस्सा थे। चीनी क्रांति के वक्त वर्तमान चीन का सिर्फ एक-तिहाई ही मुख्य चीन था जिसमें मोटे तौर पर मंदारिन बोलने वाले हान लोग रहा करते थे। इनमें कम वर्चस्व वाले क्षेत्रों में तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान, भीतरी मंगोलिया और मंचूरिया थे- ये सभी विभिन्न राष्ट्रीय इकाइयां थीं जिनके प्रशासन की प्रणाली, भाषाएं तथा प्राचीन सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक इतिहास अपने-अपने थे। लेकिन, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इन्हें अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताएं मानती थी जिन्हें चीनी गणराज्य के साथ स्वायत्त संघीय आधार पर एकीकृत किया जाना था। पूर्वी तुर्किस्तान के मामले में जैसा हुआ, सिल्क रूट पर इसके होने के कारण रणनीतिक महत्व के चलते 1912 की गणतांत्रिक क्रांति के बाद इसे पूर्ण प्रांत के रूप में चीन में शामिल कर लिया गया। इस क्षेत्र में सदियों से विद्रोहों और शासन परिवर्तन का लंबा सिलसिला रहा है। 1949 में कम्युनिस्ट सत्ता द्वारा इस पर कब्जे के बाद इसे एक बार फिर स्वायत्त दर्जा दे दिया गया, लेकिन यह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्ण नियंत्रण में रहा। पांच स्वायत्त क्षेत्रों को संविधान और स्थानीय स्वायत्ता कानून के तहत दिया गया स्वायत्ता का दर्जा मोटे तौर पर प्रतिकात्मक है। इन तथाकथित स्वायत्त क्षेत्रों में सभी प्रमुख नीतिगत फैसले चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा लिए जाते हैं और स्थानीय व क्षेत्रीय सीसीपी कमेटियों में तकरीबन सभी वरिष्ठ पदों पर हान चीनी काबिज हैं। *पूरा पढ़िए : माओ के बाद का चीन : मिथक और यथार्थ *El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100118/956d7d3c/attachment-0001.html From beingred at gmail.com Wed Jan 20 15:22:58 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Wed, 20 Jan 2010 15:22:58 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KS+4KS54KS/?= =?utf-8?b?4KSk4KWN4KSvLCDgpLjgpK7gpL7gpJwg4KSU4KSwIOCkqOCkvuCklw==?= =?utf-8?b?4KSw4KS/4KSVIOCkmuClh+CkpOCkqOCkviDgpJXgpYcg4KSa4KSC4KSm?= =?utf-8?b?IOCkuOCkteCkvuCksg==?= Message-ID: <363092e31001200152k4c62f90ak8806efeb5ac5844@mail.gmail.com> साहित्य, समाज और नागरिक चेतना के चंद सवाल *एक लोकतांत्रिक समाज का नागरिक होने के नाते हम नागरिक चेतना, सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों और लेखकीय दायित्व के भव्य सवालों के समक्ष खुद को पाते हैं। इसमें नागरिक कहां खड़ा है? लेखन क्या है? नागरिक चेतना और लेखन के आपसी सम्बंध क्या हैं? हमारे अपने समाज में लोकतन्त्र, लेखन और समाज के क्या रिश्ते हैं? उन्हें कैसा होना चाहिए? इन जटिल सवालों के सन्दर्भ में लेखक-संपादक पंकज बिष्ट का यह महत्वपूर्ण लेख। यह इस माह आजकल में प्रकाशित हुआ है। इसे लेखक की अनुमति से हाशिया पर साभार प्रस्तुत किया जा रहा है।* ** *नागरिक* चेतना और साहित्य पर बात करने से पहले नागरिक चेतना को समझ लेना आवश्यक है। नागरिक शब्द को अगर रूढ़ अर्थ में लें तो वह व्यक्ति को किसी एक राजनीतिक इकाई यानी राष्ट्र से जोड़ता है और इस तरह व्यक्ति की सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों को उसी इकाई तक सीमित कर देता है। इस सीमा में भी नागरिक होने का अर्थ एक ऐसा व्यक्ति होना है जो अपनी चेतना में आधुनिक, सहिष्णु और उदार है। वह जिस भूगोल और समाज में रहता है वह मात्रा उसकी जाति और धर्म के लोगों का बना नहीं होता बल्कि अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और यहां तक कि भौगोलिक सीमा में कई गुना ज्यादा व्यापक और विशाल होता है - देश विशेष की सीमाओं तक पहुंचा हुआ। इस अर्थ में कि वह उस देश की, जो कि एक भौगोलिक, राजनीतिक और आर्थिक इकाई है, सारी विविधता का प्रतिनिधित्व करता है। *पूरा पढ़िए : साहित्य, समाज और नागरिक चेतना के चंद सवाल * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100120/065413dc/attachment.html From vineetdu at gmail.com Wed Jan 20 21:49:19 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Wed, 20 Jan 2010 21:49:19 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KSv4KSq4KWB?= =?utf-8?b?4KSwIOCksuCkv+Ckn+CksOClh+CkmuCksCDgpKvgpYfgpLjgpY3gpJ8=?= =?utf-8?b?4KWA4KSs4KSy?= Message-ID: <829019b1001200819g36973025t35d6ccd6a1732f13@mail.gmail.com> दीवान के साथियों कल यानी 21 जनवरी से जयुपर लिटरेटर फेस्टीबल शुरु है। आयोजक की ओर से सात पन्ने की पीडीएफ फाइल में इसका मेल मेरे पास आया है। दीवान पर मेरे अलावे रविकांत,राकेश मिहिर और बाकी तमाम लोग लोकार्पण से लेकर परिचर्चा जैसे कार्यक्रमों का न्योता यहां प्रेषित करते आए हैं। लेकिन इस कार्यक्रम को लेकर जो प्रेस रिलीज मेरे पास आयी है उसे महज सूचना के स्तर पर प्रेषित कर रहा हूं। इसमें आनेवाले लोग पहले से निर्धारित हैं। आयोजकों की ओर से हमारे पास ऐसी कोई सूचना नहीं है जिससे कि इस बात की जानकारी मिल सके कि कोई अपने एफर्ट से जाना चाहे तो क्या करना होगा? बहरहाल मेरे पास प्रेस रिलीज पीडीएफ फार्मेट में है जिसे कि मैं अटैच करके आप तक भेज रहा हूं। संभवत: जानकारी के स्तर पर ये आपलोगों के काम आए। विनीत -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100120/00806a81/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: JLF session details hindi.pdf Type: application/pdf Size: 63303 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100120/00806a81/attachment-0001.pdf From beingred at gmail.com Thu Jan 21 18:29:41 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Thu, 21 Jan 2010 18:29:41 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KS/4KS44KWH?= =?utf-8?b?IOCkh+CkoeCkv+Ckr+CknyDgpKzgpKjgpL4g4KSw4KS54KWHIOCkuQ==?= =?utf-8?b?4KWI4KSCIOCkhuCkruCkv+CksCDgpJbgpL7gpKgh?= Message-ID: <363092e31001210459h6192750em1f9bd48e56d5cf4@mail.gmail.com> किसे इडियट बना रहे हैं आमिर खान! * पुण्य प्रसून वाजपेयी* *हैलो,* जी आमिर खान आपको इन्वाइट कर रहे हैं। इंटरव्यू देने के लिए। आप तो जानते हैं कि आमिर खान देश भ्रमण कर रहे हैं। जी.... '3 इडियट्स' को लेकर। हाँ, रविवार को वह चेन्नई में होंगे....तो आपको चेन्नई आना होगा। आप बीस दिसंबर यानी रविवार को चेन्नई पहुँच जाइए। वहीं आमिर खान से इंटरव्यू भी हो जाएगा। आमिर रविवार को तीन बजे तक चेन्नई पहुँचेंगे तो आपका इंटरव्यू चार बजे होगा। आप उससे पहले पहुँच जाएँ। और हाँ... आमिर खान चाहते हैं कि इंटरव्यू के बाद आप तुरंत दिल्ली ना लौटें बल्कि रात में साथ डिनर लें और अगले दिन सुबह लौटें। तो आप कब पहुँचेंगे। अरे अभी आपने जानकारी दी... हम आपको कल बताते हैं, क्या हो सकता है। नहीं-नहीं आपको आना जरूर है, हम केवल पाँच जर्नलिस्ट्स को ही इन्वाइट कर रहे हैं और आमिर खासतौर से चाहते हैं कि आप चेन्नई जरूर आएँ। ठीक है कल बात करेंगे।.....तभी बताएँगे। *पूरा पढ़िए : किसे इडियट बना रहे हैं आमिर खान! * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100121/36344b25/attachment.html From rajeev.ranjan.giri at gmail.com Thu Jan 21 21:34:24 2010 From: rajeev.ranjan.giri at gmail.com (Rajeev Ranjan Giri) Date: Thu, 21 Jan 2010 21:34:24 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Fwd: invitation for the poetry reading followed by a discussion! In-Reply-To: <72e2ea621001210742l47dbde3dq17234b259deca2e8@mail.gmail.com> References: <72e2ea621001210742l47dbde3dq17234b259deca2e8@mail.gmail.com> Message-ID: <5df7208d1001210804x6ba22c0doa60ccb75755c0c64@mail.gmail.com> ---------- Forwarded message ---------- From: sachida nand jha Date: Thu, Jan 21, 2010 at 9:12 PM Subject: invitation for the poetry reading followed by a discussion! To: aktiwaridu at gmail.com, ayesha_dsc at gmail.com, akshay_dse at yahoo.co.in, anita.anitacherian at gmail.com, arunabh16nov at gmail.com, ashu128 at gmail.com, shelly bhoil , babluray at gmail.com, bidyut_sarkar_2008 at yahoo.com, diwakar.jnu at rediffmail.com, joshi.maya at gmail.com, kamal_bhu at rediffmail.com, kishorkds at rediffmail.com, mrignayini at gmail.com, nupursamuel at gmail.com, patrickdasgupta at yahoo.co.uk, rajeev.ranjan.giri at gmail.com, rajkumarhindi at gmail.com, rana_purushottam at yahoo.com, satyaraghuvanshi at gmail.com, tyagi.alka at gmail.com, vibhasverma at rediffmail.com, rm_bharadwaj at yahoo.co.in, shivali_ojus at yahoo.co.in, shunjeev at yahoo.com, santoshk.du at gmail.com, utpalramjas at gmail.com -- Sachida nand jha -- Rajeev Ranjan Giri, B-5/302, Yamuna Vihar, Delhi-53. 9868175601 -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: hindi kavita.doc Type: application/msword Size: 56320 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100121/0e87be43/attachment-0001.doc From ravikant at sarai.net Mon Jan 25 16:55:12 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Mon, 25 Jan 2010 16:55:12 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= fw: All the Best Anusha Message-ID: <4B5D7F98.10209@sarai.net> Hamari duayein bhi joR liijiye. ravikant Hi, Delhi based filmmaker Anusha Rizvi's debut feature film is being screened today in the competition section of the reputed Sundance Festival, USA.The film has been produced by Aamir Khan. Read more at http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ Plz visit and post your comments and best wishes for Anusha. Best, Ashish K Singh From RAVISH at NDTV.COM Mon Jan 25 17:53:49 2010 From: RAVISH at NDTV.COM (Ravish Kumar) Date: Mon, 25 Jan 2010 17:53:49 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?fw=3A_All_the_Best?= =?utf-8?q?_Anusha?= Message-ID: <00682802BF86B74395257E1EABF5DB6A23489BAD@DEL-BE1.ARCHANA.NDTV.COM> All the best.... ----- Original Message ----- From: deewan-bounces at mail.sarai.net To: deewan at sarai.net ; ashish k singh Sent: Mon Jan 25 16:55:12 2010 Subject: [दीवान] fw: All the Best Anusha Hamari duayein bhi joR liijiye. ravikant Hi, Delhi based filmmaker Anusha Rizvi's debut feature film is being screened today in the competition section of the reputed Sundance Festival, USA.The film has been produced by Aamir Khan. Read more at http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ Plz visit and post your comments and best wishes for Anusha. Best, Ashish K Singh _______________________________________________ Deewan mailing list Deewan at mail.sarai.net http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100125/f70191de/attachment.html From zaighamimam at gmail.com Mon Jan 25 18:14:25 2010 From: zaighamimam at gmail.com (zaigham imam) Date: Mon, 25 Jan 2010 18:14:25 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?fw=3A_All_the_Best?= =?utf-8?q?_Anusha?= In-Reply-To: <4B5D7F98.10209@sarai.net> References: <4B5D7F98.10209@sarai.net> Message-ID: 'AM' honge kamyaab mann me hai vishwas poora hai vishwas!!!!! duayein aur shubhkamnayein Zaigham On Mon, Jan 25, 2010 at 4:55 PM, ravikant wrote: > Hamari duayein bhi joR liijiye. > > ravikant > > > Hi, > > Delhi based filmmaker Anusha Rizvi's debut feature film is being > screened today in the competition section of the reputed Sundance > Festival, USA.The film has been produced by Aamir Khan. > > Read more at http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ > > > Plz visit and post your comments and best wishes for Anusha. > > > > Best, > > Ashish K Singh > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100125/8b1eadef/attachment.html From abhay.news at gmail.com Tue Jan 26 00:45:36 2010 From: abhay.news at gmail.com (Abhay) Date: Tue, 26 Jan 2010 00:45:36 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS+4KSkIA==?= =?utf-8?b?4KSs4KS24KWA4KSwIOCkrOCkpuCljeCksCDgpJXgpYAgLS0=?= Message-ID: <510a3f31001251115m5c6cf5fbj4bd0ed53d4fc43e2@mail.gmail.com> बशीर बद्र से मुलाकात हमेशा खास होती है। एक माह में दो बार उनसे मुलाकात हुई। इस बार लंबी बातचीत हुई। यह मेरे बेहद खास पल थे। महान शायर और उनकी बेमिसाल अंदाज एक बयां को प्लीज पढ़ीएगा। मेरे लिए नहीं। बशीर साहब और उनकी पत्नी राहत बद्र के लिए । मेरे ब्लॉग पर ... नीचे लिंक मौजूद है। www.gulzarbagh.blogspot.com ____ बात बशीर बद्र की -- तो राहत को ढूंढता फिरेगा बशीर बद्र आज के गालिब या नए जामाने के मीर 'बशीर बद्र' से बातचीत शुरू करते वक्त हमने शेरो-शायरी या उर्दू लिट्रेचर से बजाए एक अलग सवाल पूछा। अगर बशीर बद्र एक बार फिर 17 साल के हो जाएं, तो क्या करेगें ? एक पल गंवाए बगैर उन्होंने कहा बद्र, राहत को ढूंढता फिरेगा। इतना बोलना था कि पीछे पीले पैराहन में बैठी राहत बद्र हंस पड़ी। शोख मुस्कुराहटों के उस दौर के बीच बशीर ने राहत को देखा। माहौल में शायरी घुल चुकी थी। मेरठ में होटल का वह कमरा शायरना हो चुका था। हमने दोबारा पूछा अगर राहत नहीं मिलतीं तो क्या बशीर मेरठ छोड़कर भोपाल चले जाते ? उन्होंने कहा कि जहां राहत होती वही पहुंच जाते। सवाल का अंदाज बदला तो उन्होंने कहा कि सारी दुनिया दे दीजिए तो भी उसे भोपाल ले आउंगा। प्यार से भटकते सवाल अब भाषा तक पहुंचने लगे थे। बशीर बोले, शायरी की जुबान दिल की जुबान होती है। जज्बात शायरी है। जिंदगी शायरी है। उन्होंने कहा कि उर्दू और हिंदी का सवाल नहीं। यह तो महज लिखने का तरीका है। जो नीरज हिंदी में लिखते हैं । और जो बशीर उर्दू में रचते हैँ। वहीं शायरी है। वहीं मुक्कमल कविता है। नए जमाने के शायरों के बारे में उन्होंने साफगोई से कहा कि शायरी के लिए उर्दू आनी चाहिए। शायरी के लिए हिंदी की जानकारी चाहिए। शायरी वह है इल्म है जिसके लिए जिंदगी आनी चाहिए। बात निकली तो बड़े शायर ने माना कि उनकी जितनी किताबें उर्दू में बिकती हैं उससे पांच गुणा किताब हिंदी में बिकती है। तय है शायरी किसी भाषा या किसी महजब की गुलाम नहीं। मौके पर उन्होंने अरबी और फारसी में कई शब्दों के न होने की दिक्कतों और उनके बहुत हद तक किताबी और आम-आवाम से दूर होने का हवाला भी दिया। करीब पौने घंटे के बाद माहौल घुल चुका था। उन्होंने माना कि सरहद के उस पार के राजनेता बेवकूफ है जो अपने लोगों को गलत तौर से बरगला रहे हैं। उन्होंने बताया की राजनीति काटना जानती है। जबकि शायरी दिलों को जोड़ती है। सरहद पार लाहौर में रहने वाले दोस्त की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चाहें दोनोंं मुल्क एक दूसरे के खिलाफ हो जाएं। वह दोस्त के लिए हमेशा दुआएं करेंगे। इस बीच उन्होंने पाकिस्तानी में छपी उनकी किताब की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने कहा कि वहां किसी प्रकाशक ने कुलयार बशीर बद्र किताब छापी है। जिसे हिंंदी में तीन अगल अलग पुस्तक फूलों की छतरीयां, सात जमीनें एक सितारा और मोहब्बत खुशबू हैं नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। तमाम बातों के बीच ना जाने कहां से शादी की बात छिड़ गई। बशीर गंभीर हो गए। गौर से देखा। चश्मा उतार कर टेबल पर रख दिया। बोले...मेरे छोटे दोस्त मेरे पास तीन कार है। जल्द ही चौथी कार खरीद रहा हूं। जिसे राहत को दे दूंगा। उसके बाद कभी कार नहीं खरीदूगां। दरअसल इस्लाम में चार शादियां करने की इजाजत है। उसके बाद नहीं। इसलिए चार कार। बातों ही बातों में मेरठ में दंगे के दौरान शास्त्रीनगर के डी-१२0 के जलाए जाने और उसके बात उनके जेहन में आई। बशीर बोल रहे थे कि - वे (प्रशासन और आम लोग, उनके प्रेमी सहयोगी) पैसे देने की बात करते थे। मैंने मना कर दिया। कहा कि दो चार मुशायरे पढ़ लूंगा। इससे भी अच्छा घर बन जाएगा । - इजाजत लेने से एेन पहले हमने उनसे खुराक और लज्जत की बात जानने की कोशिश की। तो नए जमाने के सबसे मशहूर शायर का कहना था, गोश्त छोड़कर सब पसंद है। उम्र के इस मुकाम पर उन्होंने बाकी बचे अरमान को उन्होंने बेमानी बताया हालांकि राहत की ओर देखकर बोले- भाई, बीबी डराती बहुत है। होटल के उस शायरान माहौल से उठने से पहले हम राहत से मुखातिब हुए। हमने पूछा कि आप लंबे समय से साथ है। कहीं न कहीं बशीर बद्र की इंस्पीरेशन हैं। आप क्या सोचती है। बशीर साहब के बारे में। खिलकर मुस्कुराने से पहले वह अचानक गंभीर हो गई। फिर हंसी तो देर तक हंसती रहीं। बोली, बशीर बिलकुल नहीं बदले। जो फर्क आया है उम्र की वजह से आया है। इस उम्र में कुछ याददाश्त कमजोर सी होनी लगी है। बस और बाकी सब वैसे ही है। बशीर साहब ने एक बार इश्क की चर्चा छेड़ दी। तब तक खाना आ चुका था। मजा देखीए काले लिबास में लिपटा बैरा दो थालियां लाया था। बशीर ने बीबी की ओर देखा और दोनों एक साथ ही बोले। एक ही थाली बहुत हैं। दूसरी ले जाओ। उन्होंने जिद की। आप भी साथ खाएं। पर दूसरे कमरे में अंजुम साहिबा (अंजुम रहबर) थी और तीसरे में डॉ कुंवर बैचेन थे। अब उन दोनों की बातें अगली किस्तों में । - परिचय की जरूरत ही नहीं - जो शायरी जानता है। समझता है। बशीर की इज्जत करता है। जो नहीं जानता वह बशीर को पूजता है। मेरे ख्याल से मैंने अपनी जिंदगी मंे एक शख्स एेसा नहीं देखा जिसने कभी बशीर साहब की कोई शायरी न पढ़ी या सुनी हो। -- बशीर बद्र , 15 फरवरी 19३५ 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे दर्जनों किताबें पसंद-ए-जायका- दाल रोटी और सब्जी - तेरह साल की उम्र में लिखी रचना उजाले अपनी यादों को हमारे साथ रहने दो ना जाने किसी गली मेंे जिंदगी की शाम हो जाए ---- -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100126/08d47c16/attachment-0001.html From zaighamimam at gmail.com Tue Jan 26 11:53:49 2010 From: zaighamimam at gmail.com (zaigham imam) Date: Mon, 25 Jan 2010 22:23:49 -0800 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS+4KSkIA==?= =?utf-8?b?4KSs4KS24KWA4KSwIOCkrOCkpuCljeCksCDgpJXgpYAgLS0=?= In-Reply-To: <510a3f31001251115m5c6cf5fbj4bd0ed53d4fc43e2@mail.gmail.com> References: <510a3f31001251115m5c6cf5fbj4bd0ed53d4fc43e2@mail.gmail.com> Message-ID: बशीर बद्र जैसे महान शायर के बारे में जितना भी लिखा जाए कम है। शुक्रिया ,आपने बद्र साहब के कुछ निजी पहलू हमसे बांटें। अगर तलाश करो कोई मिल ही जाएगा मगर हमारी तरह कौन तुमको चाहेगा।।। अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई कोई जाएगा तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो।।।। बशीर साहब को सलाम जैगम 2010/1/25 Abhay > बशीर बद्र से मुलाकात हमेशा खास होती है। एक माह में दो बार उनसे मुलाकात हुई। > इस बार लंबी बातचीत हुई। यह मेरे बेहद खास पल थे। महान शायर और उनकी बेमिसाल > अंदाज एक बयां को प्लीज पढ़ीएगा। मेरे लिए नहीं। बशीर साहब और उनकी पत्नी राहत > बद्र के लिए । मेरे ब्लॉग पर ... > > नीचे लिंक मौजूद है। > > www.gulzarbagh.blogspot.com > ____ > बात बशीर बद्र की -- > > तो राहत को ढूंढता फिरेगा बशीर बद्र > > आज के गालिब या नए जामाने के मीर 'बशीर बद्र' से बातचीत शुरू करते वक्त हमने > शेरो-शायरी या उर्दू लिट्रेचर से बजाए एक अलग सवाल पूछा। अगर बशीर बद्र एक बार > फिर 17 साल के हो जाएं, तो क्या करेगें ? एक पल गंवाए बगैर उन्होंने कहा बद्र, > राहत को ढूंढता फिरेगा। इतना बोलना था कि पीछे पीले पैराहन में बैठी राहत बद्र > हंस पड़ी। शोख मुस्कुराहटों के उस दौर के बीच बशीर ने राहत को देखा। माहौल में > शायरी घुल चुकी थी। मेरठ में होटल का वह कमरा शायरना हो चुका था। हमने दोबारा > पूछा अगर राहत नहीं मिलतीं तो क्या बशीर मेरठ छोड़कर भोपाल चले जाते ? उन्होंने > कहा कि जहां राहत होती वही पहुंच जाते। सवाल का अंदाज बदला तो उन्होंने कहा कि > सारी दुनिया दे दीजिए तो भी उसे भोपाल ले आउंगा। > प्यार से भटकते सवाल अब भाषा तक पहुंचने लगे थे। बशीर बोले, शायरी की जुबान > दिल की जुबान होती है। जज्बात शायरी है। जिंदगी शायरी है। उन्होंने कहा कि > उर्दू और हिंदी का सवाल नहीं। यह तो महज लिखने का तरीका है। जो नीरज हिंदी में > लिखते हैं । और जो बशीर उर्दू में रचते हैँ। वहीं शायरी है। वहीं मुक्कमल कविता > है। नए जमाने के शायरों के बारे में उन्होंने साफगोई से कहा कि शायरी के लिए > उर्दू आनी चाहिए। शायरी के लिए हिंदी की जानकारी चाहिए। शायरी वह है इल्म है > जिसके लिए जिंदगी आनी चाहिए। > बात निकली तो बड़े शायर ने माना कि उनकी जितनी किताबें उर्दू में बिकती हैं > उससे पांच गुणा किताब हिंदी में बिकती है। तय है शायरी किसी भाषा या किसी महजब > की गुलाम नहीं। मौके पर उन्होंने अरबी और फारसी में कई शब्दों के न होने की > दिक्कतों और उनके बहुत हद तक किताबी और आम-आवाम से दूर होने का हवाला भी दिया। > करीब पौने घंटे के बाद माहौल घुल चुका था। उन्होंने माना कि सरहद के उस पार के > राजनेता बेवकूफ है जो अपने लोगों को गलत तौर से बरगला रहे हैं। उन्होंने बताया > की राजनीति काटना जानती है। जबकि शायरी दिलों को जोड़ती है। > सरहद पार लाहौर में रहने वाले दोस्त की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चाहें > दोनोंं मुल्क एक दूसरे के खिलाफ हो जाएं। वह दोस्त के लिए हमेशा दुआएं करेंगे। > इस बीच उन्होंने पाकिस्तानी में छपी उनकी किताब की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने कहा > कि वहां किसी प्रकाशक ने कुलयार बशीर बद्र किताब छापी है। जिसे हिंंदी में तीन > अगल अलग पुस्तक फूलों की छतरीयां, सात जमीनें एक सितारा और मोहब्बत खुशबू हैं > नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। > तमाम बातों के बीच ना जाने कहां से शादी की बात छिड़ गई। बशीर गंभीर हो गए। > गौर से देखा। चश्मा उतार कर टेबल पर रख दिया। बोले...मेरे छोटे दोस्त मेरे पास > तीन कार है। जल्द ही चौथी कार खरीद रहा हूं। जिसे राहत को दे दूंगा। उसके बाद > कभी कार नहीं खरीदूगां। दरअसल इस्लाम में चार शादियां करने की इजाजत है। उसके > बाद नहीं। इसलिए चार कार। बातों ही बातों में मेरठ में दंगे के दौरान > शास्त्रीनगर के डी-१२0 के जलाए जाने और उसके बात उनके जेहन में आई। बशीर बोल > रहे थे कि - वे (प्रशासन और आम लोग, उनके प्रेमी सहयोगी) पैसे देने की बात करते > थे। मैंने मना कर दिया। कहा कि दो चार मुशायरे पढ़ लूंगा। इससे भी अच्छा घर बन > जाएगा । - > इजाजत लेने से एेन पहले हमने उनसे खुराक और लज्जत की बात जानने की कोशिश की। > तो नए जमाने के सबसे मशहूर शायर का कहना था, गोश्त छोड़कर सब पसंद है। उम्र के > इस मुकाम पर उन्होंने बाकी बचे अरमान को उन्होंने बेमानी बताया हालांकि राहत की > ओर देखकर बोले- भाई, बीबी डराती बहुत है। होटल के उस शायरान माहौल से उठने से > पहले हम राहत से मुखातिब हुए। हमने पूछा कि आप लंबे समय से साथ है। कहीं न कहीं > बशीर बद्र की इंस्पीरेशन हैं। आप क्या सोचती है। बशीर साहब के बारे में। खिलकर > मुस्कुराने से पहले वह अचानक गंभीर हो गई। फिर हंसी तो देर तक हंसती रहीं। > बोली, बशीर बिलकुल नहीं बदले। जो फर्क आया है उम्र की वजह से आया है। इस उम्र > में कुछ याददाश्त कमजोर सी होनी लगी है। बस और बाकी सब वैसे ही है। बशीर साहब > ने एक बार इश्क की चर्चा छेड़ दी। तब तक खाना आ चुका था। मजा देखीए काले लिबास > में लिपटा बैरा दो थालियां लाया था। बशीर ने बीबी की ओर देखा और दोनों एक साथ > ही बोले। एक ही थाली बहुत हैं। दूसरी ले जाओ। उन्होंने जिद की। आप भी साथ खाएं। > पर दूसरे कमरे में अंजुम साहिबा (अंजुम रहबर) थी और तीसरे में डॉ कुंवर बैचेन > थे। अब उन दोनों की बातें अगली किस्तों में । > - > > परिचय की जरूरत ही नहीं - > जो शायरी जानता है। समझता है। बशीर की इज्जत करता है। जो नहीं जानता वह बशीर > को पूजता है। मेरे ख्याल से मैंने अपनी जिंदगी मंे एक शख्स एेसा नहीं देखा > जिसने कभी बशीर साहब की कोई शायरी न पढ़ी या सुनी हो। > -- > > > बशीर बद्र , 15 फरवरी 19३५ > 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर > दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे > दर्जनों किताबें > पसंद-ए-जायका- दाल रोटी और सब्जी > - > तेरह साल की उम्र में लिखी रचना > > उजाले अपनी यादों को हमारे साथ रहने दो > ना जाने किसी गली मेंे जिंदगी की शाम हो जाए > > ---- > > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100125/ebe3b194/attachment-0001.html From miyaamihir at gmail.com Tue Jan 26 23:14:48 2010 From: miyaamihir at gmail.com (mihir pandya) Date: Tue, 26 Jan 2010 23:14:48 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSm4KWH4KS14KSm?= =?utf-8?b?4KS+4KS4IOCkleCliyDgpIbgpIjgpKjgpL4g4KSm4KS/4KSW4KS+4KSk?= =?utf-8?b?4KWAIOCkmuCkguCkpuCkviDgpJTgpLAg4KSq4KS+4KSw4KWLIDog4KS4?= =?utf-8?b?4KS+4KSyIOCkpuCliyDgpLngpJzgpLzgpL7gpLAg4KSo4KWMIOCkrg==?= =?utf-8?b?4KWH4KSCIOCkueCkv+CkqOCljeCkpuClgCDgpLjgpL/gpKjgpYfgpK4=?= =?utf-8?b?4KS+?= Message-ID: www.mihirpandya.com से ********** महीना था जनवरी का और तारीख़ थी उनत्तीस. ’तहलका’ से मेरे पास फ़ोन आया. तक़रीबन एक हफ़्ता पहले मैंने उन्हें अपने ब्लॉग का यूआरएल मेल किया था. ’आप हमारे लिए सिनेमा पर लिखें’. ’क्या’ के जवाब में तय हुआ कि कल शुक्रवार है, देखें कौनसी फ़िल्म प्रदर्शित होने वाली है. क्योंकि कल तीस तारीख़ भी है और अंक जाना है इसलिए किसी एक फ़िल्म की समीक्षा कर रात तक हमें भेज दें. अगले हफ़्ते हमें गोरखपुर फ़िल्म उत्सव के लिए निकलना था और हम उसकी ही तैयारियों में जुटे थे. ’विक्टरी’ का हश्र मैं पहले से जानता था, तय हुआ कि ज़ोया अख़्तर की ’लक बाय चांस’ देखी जाएगी. आज मैं इस घटना से तक़रीबन एक साल दूर खड़ा हूँ लेकिन इस साल आए लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा पर बात शुरु करते हुए बार-बार मेरा ध्यान इसी फ़िल्म पर जाता है. हाँ यह मेरे लिए इस साल की पहली उल्लेखनीय फ़िल्म है क्योंकि रोहन सिप्पी और कुणाल रॉय कपूर की बनाई बेहतरीन राजनीतिक व्यंग्य कथा ’दि प्रेसिडेंट इज़ कमिंग’ मैं बहुत बाद में देख पाया. बहरहाल ’लक बाय चांस’ इस साल की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म नहीं है. शायद मैं इस जगह ’देव डी’ को रखूँगा. हद से हद उसे हम औसत से थोड़ा ऊपर गिन सकते हैं. लेकिन ’देव डी’ तक पहुँचने का रास्ता इसी फ़िल्म से होकर जाता है. शायद इसके माध्यम से वो कहना संभव हो पाए जिसे मैं हिन्दी सिनेमा के एक बड़े बदलाव के तौर पर चिह्नित कर रहा हूँ. बेशक ’लक बाय चांस’ को एक ख़ास मल्टीप्लेक्स-यूथ श्रंखला की फ़िल्मों वाले खांचे में फ़िट किया जा सकता है और इसकी पूर्ववर्ती फ़िल्मों में ’दिल चाहता है’ से ’रॉक ऑन’ तक सभी को गिना जाता है लेकिन एक मूल अंतर है जो ’लक बाय चांस’ को अपनी इन पूर्ववर्ती फ़िल्मों से अलग बनाता है और वो है इसका अंत. जैसा मैंने अपनी समीक्षा में लिखा था, “लेकिन वो इसका अन्त है जो इसे ’दिल चाहता है’ और ’रॉक ऑन’ से ज़्यादा बड़ी फ़िल्म बनाता है. अन्त जो हमें याद दिलाता है कि बहुत बार हम एक परफ़ैक्ट एन्डिंग के फ़ेर में बाक़ी ’आधी दुनिया’ को भूल जाते हैं. याद कीजिए ’दिल चाहता है’ का अन्त जहाँ दोनों नायिकायें अपनी दुनिया खुशी से छोड़ आई हैं और तीनों नायकों के साथ बैठकर उनकी (उनकी!) पुरानी यादें जी रही हैं. या ’रॉक ऑन’ का अन्त जहाँ चारों नायकों का मेल और उनके पूरे होते सपने ही परफ़ैक्ट एन्डिंग बन जाते हैं. अपनी तमाम खूबियों और मेरी व्यक्तिगत पसंद के बावजूद ये बहुत ही मेल-शॉवनिस्टिक अन्त हैं और यहीं ’लक बाय चांस’ ख़ुद को अपनी इन पूर्ववर्तियों से बहुत सोच-समझ कर अलग करती है. ’लक बाय चांस’ इस तरह के मेल-शॉवनिस्टिक अन्त को खारिज़ करती है. फ़िल्मी भाषा में कहूं तो यह एक पुरुष-प्रधान फ़िल्म का महिला-प्रधान अन्त है. ज़्यादा खुला और कुछ ज़्यादा संवेदनशील. एक नायिका की भूली कहानी, उसका छूटा घर, उसके सपने, उसका भविष्य. आखिर यह उसके बारे में भी तो है. यह अन्त हमें याद दिलाता है कि बहुत दिनों बाद इस पुरुष-प्रधान इंडस्ट्री में एक लड़की निर्देशक के तौर पर आई है!” एक पुरुष-प्रधान फ़िल्म का एक महिला-प्रधान अन्त. यहाँ एक और गौर करने की बात है, मेरी इस समीक्षा को पढ़कर एक पाठक ने टिप्पणी की थी कि जिस अन्त की आप तारीफ़ कर रहे हैं वो तो फ़िल्म में अलग से जोड़ा हुआ लगता है. कहना होगा कि ख़ामी के बावजूद यह एक ईमानदार टिप्पणी है. सच है कि फ़िल्म की बाकी कहानी से फ़िल्म का अन्त अलग है. लेकिन यही ’जोड़े हुए अन्त’ वाला तरीका हमें एक झटके के साथ समझाता है कि हमारी मुख्यधारा सिनेमा की कहानियाँ कितनी ज़्यादा पुरुष केन्द्रित होती हैं. और हम इस सांचे में इतना गहरे ढल चुके हैं कि इससे परेशानी होना तो दूर की बात है, हमें यह अजीब भी नहीं लगता. हमारे सिनेमा में बीती हुई कहानियाँ (पास्ट स्टोरीज़) सिर्फ़ नायकों के पास होती हैं, नायिकाओं के पास नहीं. और इसी अंत की वजह से ’लक बाय चांस’ इस साल की दो सबसे महत्वपूर्ण फ़िल्मों अनुराग कश्यप की ’गुलाल’ और ’देव डी’ की पूर्वपीठिका बनती है. पहले बात ’गुलाल’ की. ’गुलाल’ इतनी आसानी से हजम होनेवाली फ़िल्म नहीं है. इस पर मेरी दोस्तों से लम्बी बहसें हुई हैं. गुलाल का समाज कैसा है? उसे क्या मानकर पढ़ा जाए – यथार्थ या फंतासी? लेकिन इन सवालों से अलग शुरुआत में मेरा फ़िल्म को लेकर मुख्य आरोप यह रहा कि मुख्य किरदार के साथ-साथ चलते हुए बीच में कहीं फ़िल्म भी यह समझ खो देती है कि इस व्यवस्था की असली शिकार आखिर में स्त्री है. तो क्या ’गुलाल’ स्त्री विरोधी फ़िल्म है और मधुर भंडारकर की फ़िल्मों की तरह क्या वो भी जिस समस्या के खिलाफ़ बनाई गई है उसे ही बेचने लगती है? मुझे खुशी है कि मैं यहाँ गलत था. ’गुलाल’ की बहुत सी समस्याएं तो उसे एक फंतासी मानकर पढ़ने से हल होती हैं. इस मायने में ’गुलाल’ का पुरुष-प्रधान समाज मुक्तिबोध की कविता ’अंधेरे में’ के डरावने अंधेरे की याद दिलाता है. यह निरंकुश व्यवस्था का चरम है. लेकिन मेरे आरोप का जवाब यहाँ भी फ़िल्म के अन्त में छिपा है. मेरे मित्र पल्लव ने ऐसी ही किसी उत्तेजक बहस के बीच में कहा था कि ’गुलाल’ का असल अर्थ वहाँ खुलता है जहाँ फ़िल्म के आखिरी दृश्य में नायिका गुलाल पुते चेहरों की भीड़ में खड़ी है और उसके भाई की ताजपोशी हो रही है. नायिका की आँख से बह निकले एक आँसू में सम्पूर्ण ’गुलाल’ का अर्थ समाहित है. व्यवस्था परिवर्तन होता है और एक स्त्री को माध्यम बनाकर होता है लेकिन इन तमाम परिवर्तनों के बावजूद इस पुरुष-प्रधान समाज का ढांचा ज़रा नहीं बदलता. माना कि ’गुलाल’ में स्त्री का दृष्टिकोण फ़िल्म में प्रत्यक्ष रूप से मौजूद नहीं है लेकिन आपको गुलाल के असल अर्थ तभी समझ आयेंगे जब आप उस स्त्री के नज़रिए को अपने साथ रख फ़िल्म देखेंगे. अनुराग कश्यप की ’देव डी’ पारंपरिक चरित्रों की नई व्याख्या के लिए मील का पत्थर मानी जानी चाहिए. अगर देवदास उपन्यास और उस पर बनी पहले की फ़िल्में (विशेष तौर से संजय लीला भंसाली का अझेल मैलोड्रामा) सिर्फ़ देवदास की कहानी हैं तो अनुराग की ’देव डी’ देवदास के साथ-साथ चंदा और पारो की भी कहानी है. देवदास दरअसल हिन्दी सिनेमा का सतत कुंठित नायक है. उसमें एक ’शहीदी भाव’ सदा से मौजूद रहा है. कभी उसके हाथ पर ’मेरा बाप चोर है’ लिख दिया गया है (दीवार में अमिताभ) तो कभी उसके पिता को उनके ही दोस्त ने धोखे से मार दिया है (बाज़ीगर में शाहरुख़). हिन्दुस्तानी सिनेमा का महानायक हमेशा ऐसी ’पास्ट लाइफ़ स्टोरीज़’ अपने साथ रखता है जिससे उसके आनेवाले सभी कदम जस्टीफाइड साबित हों. और नायिकाएं होती हैं जिनकी कोई पिछली कहानियाँ नहीं होती. लेकिन ’देव डी’ में चंदा की भी कहानी है और पारो की भी. और यही ’अन्य कहानियाँ’ हमारी ’मुख्य कथा’ को आईना दिखाती हैं. अपनी व्याख्या को ही अकेली व्याख्या मानकर चलने वाला हमारा फ़िल्मी नायक आखिर ’ख़ामोशी के उस पार’ की आवाज़ सुन पाता है. ’देव डी’ में जब चंदा देव को कहती है कि ’तुम किसी और से प्यार नहीं करते. तुम सिर्फ़ अपने आप से प्यार करते हो’ तो दरअसल वो यहाँ हिन्दुस्तानी सिनेमा के सबसे चहेते नायकीय किरदार को आईना दिखा रही है. यही अंतर है देवदास और ’देव डी’ में. अनुराग देव के पिता का किरदार इसीलिए बदल देते हैं. देव के पिता यहाँ एक नरम मिजाज़ लिबरल बाप की भूमिका में हैं ताकि कोई गलतफ़हमी न बाकी रहे. हमें यह मालूम होना चाहिए कि देव और पारो के न मिल पाने की वजह देव के पिता का सामंती व्यवहार नहीं था. देव द्वारा पारो को चाहने और उसकी याद में अपनी ज़िन्दगी जला लेने के दावे के बावजूद सच यह है कि देव के भीतर भी एक ऐसा पुरुष बैठा है जो अंत में पारो को उन्हीं कसौटियों पर कसता है जो इस सामंती और पुरुषसत्तात्मक समाज ने एक लड़की के लिए बनाई हैं. इस देवदास का थोड़ा सा हिस्सा हर हिन्दुस्तानी पुरुष के भीतर कहीं है. आपके भीतर भी, मेरे भीतर भी. जब ’लव आजकल’ में जय, वीर सिंह से सवाल करता है कि ’अब मीरा किसी और के साथ है और जब वो किसी और के साथ है तो फिर उनके बीच ’वो सब’ भी होगा, फिर मुझे बुरा क्यों लग रहा है?’ तो यह उसके भीतर कहीं बचा रह गया वही ’देवदास’ है जिसके लिए स्त्री एक ऑबजेक्ट पहले है और बाद में कुछ और. और जब फ़िल्म के आखिर में वो वापस मीरा के पास लौटता है तो उसका एक शादीशुदा लड़की को पहले हुए ’वो सब’ के बारे में पूछे बिना प्रपोज़ करना उसी ’देवदास’ पर एक छोटी सी जीत है. हमारी लड़ाई भी अपने भीतर के ’देवदासों’ से ही है. मुख्यधारा से अलग हटकर मैंने दो हज़ार नौ में जो सबसे बेहतरीन फ़िल्में देखी उनमें से ज़्यादातर आपके लिए दो हज़ार दस की फ़िल्में होने वाली हैं. इन्हीं में से एक ’खरगोश’ को मैं हिन्दी सिनेमा के सबसे संभावनापूर्ण प्रयासों में से एक गिन रहा हूँ. ’आदमी की औरत तथा अन्य कहानियाँ’ अपने विज़ुअल टेक्स्ट में चमत्कार पैदा करती है और इस सिनेमा माध्यम की असल विज़ुअल ताक़त का अहसास करवाती है. मराठी फ़िल्म ’हरिश्चंद्राची फैक्ट्री’ तो अपने ऑस्कर नामांकन के साथ अभी से चर्चा में आ गई है. इस फ़िल्म में ’लगे रहो मुन्नाभाई’ की ज़िन्दादिली और ’गांधी’ की सी प्रामाणिकता एक साथ मौजूद है. उम्मीद करें कि नए साल में परेश कामदार की ’खरगोश’, अमित दत्ता की ’आदमी की औरत तथा अन्य कहानियाँ’ और परेश मोकाशी की ’हरिशचंद्राची फैक्ट्री’ को बड़ा परदा नसीब हो और हमें इन फ़िल्मों को विशाल सार्वजनिक प्रदर्शन में देखकर एक बार फिर इस सिनेमा नामक जादुई माध्यम के जादू से चमत्कृत होने का मौका मिले. ********** *मूलत: मासिक पत्रिका 'समकालीन जनमत' के कॉलम ’बायस्कोप’ में प्रकाशित. जनवरी 2010*. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100126/98fb9a72/attachment-0001.html From rakeshjee at gmail.com Thu Jan 28 21:19:59 2010 From: rakeshjee at gmail.com (Rakesh Singh) Date: Thu, 28 Jan 2010 21:19:59 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS+4KSkIA==?= =?utf-8?b?4KSs4KS24KWA4KSwIOCkrOCkpuCljeCksCDgpJXgpYAgLS0=?= In-Reply-To: References: <510a3f31001251115m5c6cf5fbj4bd0ed53d4fc43e2@mail.gmail.com> Message-ID: <292550dd1001280749p1e9e3692n8bc7fbbf9db153fb@mail.gmail.com> बहुत बढिया लिखा दोस्‍त. याद नहीं रहती शायरी, पर वशीर का कायल हूं. किताब से कभी कभार पलट लेता हूं, मन हल्‍का हो जाता है. 2010/1/26 zaigham imam > बशीर बद्र जैसे महान शायर के बारे में जितना भी लिखा जाए कम है। शुक्रिया > ,आपने बद्र साहब के कुछ निजी पहलू हमसे बांटें। > > अगर तलाश करो कोई मिल ही जाएगा > मगर हमारी तरह कौन तुमको चाहेगा।।। > > अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई कोई जाएगा > तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो।।।। > > > बशीर साहब को सलाम > > जैगम > > > > 2010/1/25 Abhay > >> बशीर बद्र से मुलाकात हमेशा खास होती है। एक माह में दो बार उनसे मुलाकात >> हुई। इस बार लंबी बातचीत हुई। यह मेरे बेहद खास पल थे। महान शायर और उनकी >> बेमिसाल अंदाज एक बयां को प्लीज पढ़ीएगा। मेरे लिए नहीं। बशीर साहब और उनकी >> पत्नी राहत बद्र के लिए । मेरे ब्लॉग पर ... >> >> नीचे लिंक मौजूद है। >> >> www.gulzarbagh.blogspot.com >> ____ >> बात बशीर बद्र की -- >> >> तो राहत को ढूंढता फिरेगा बशीर बद्र >> >> आज के गालिब या नए जामाने के मीर 'बशीर बद्र' से बातचीत शुरू करते वक्त हमने >> शेरो-शायरी या उर्दू लिट्रेचर से बजाए एक अलग सवाल पूछा। अगर बशीर बद्र एक बार >> फिर 17 साल के हो जाएं, तो क्या करेगें ? एक पल गंवाए बगैर उन्होंने कहा बद्र, >> राहत को ढूंढता फिरेगा। इतना बोलना था कि पीछे पीले पैराहन में बैठी राहत बद्र >> हंस पड़ी। शोख मुस्कुराहटों के उस दौर के बीच बशीर ने राहत को देखा। माहौल में >> शायरी घुल चुकी थी। मेरठ में होटल का वह कमरा शायरना हो चुका था। हमने दोबारा >> पूछा अगर राहत नहीं मिलतीं तो क्या बशीर मेरठ छोड़कर भोपाल चले जाते ? उन्होंने >> कहा कि जहां राहत होती वही पहुंच जाते। सवाल का अंदाज बदला तो उन्होंने कहा कि >> सारी दुनिया दे दीजिए तो भी उसे भोपाल ले आउंगा। >> प्यार से भटकते सवाल अब भाषा तक पहुंचने लगे थे। बशीर बोले, शायरी की जुबान >> दिल की जुबान होती है। जज्बात शायरी है। जिंदगी शायरी है। उन्होंने कहा कि >> उर्दू और हिंदी का सवाल नहीं। यह तो महज लिखने का तरीका है। जो नीरज हिंदी में >> लिखते हैं । और जो बशीर उर्दू में रचते हैँ। वहीं शायरी है। वहीं मुक्कमल कविता >> है। नए जमाने के शायरों के बारे में उन्होंने साफगोई से कहा कि शायरी के लिए >> उर्दू आनी चाहिए। शायरी के लिए हिंदी की जानकारी चाहिए। शायरी वह है इल्म है >> जिसके लिए जिंदगी आनी चाहिए। >> बात निकली तो बड़े शायर ने माना कि उनकी जितनी किताबें उर्दू में बिकती हैं >> उससे पांच गुणा किताब हिंदी में बिकती है। तय है शायरी किसी भाषा या किसी महजब >> की गुलाम नहीं। मौके पर उन्होंने अरबी और फारसी में कई शब्दों के न होने की >> दिक्कतों और उनके बहुत हद तक किताबी और आम-आवाम से दूर होने का हवाला भी दिया। >> करीब पौने घंटे के बाद माहौल घुल चुका था। उन्होंने माना कि सरहद के उस पार के >> राजनेता बेवकूफ है जो अपने लोगों को गलत तौर से बरगला रहे हैं। उन्होंने बताया >> की राजनीति काटना जानती है। जबकि शायरी दिलों को जोड़ती है। >> सरहद पार लाहौर में रहने वाले दोस्त की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि चाहें >> दोनोंं मुल्क एक दूसरे के खिलाफ हो जाएं। वह दोस्त के लिए हमेशा दुआएं करेंगे। >> इस बीच उन्होंने पाकिस्तानी में छपी उनकी किताब की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने कहा >> कि वहां किसी प्रकाशक ने कुलयार बशीर बद्र किताब छापी है। जिसे हिंंदी में तीन >> अगल अलग पुस्तक फूलों की छतरीयां, सात जमीनें एक सितारा और मोहब्बत खुशबू हैं >> नाम से प्रकाशित किया जा रहा है। >> तमाम बातों के बीच ना जाने कहां से शादी की बात छिड़ गई। बशीर गंभीर हो गए। >> गौर से देखा। चश्मा उतार कर टेबल पर रख दिया। बोले...मेरे छोटे दोस्त मेरे पास >> तीन कार है। जल्द ही चौथी कार खरीद रहा हूं। जिसे राहत को दे दूंगा। उसके बाद >> कभी कार नहीं खरीदूगां। दरअसल इस्लाम में चार शादियां करने की इजाजत है। उसके >> बाद नहीं। इसलिए चार कार। बातों ही बातों में मेरठ में दंगे के दौरान >> शास्त्रीनगर के डी-१२0 के जलाए जाने और उसके बात उनके जेहन में आई। बशीर बोल >> रहे थे कि - वे (प्रशासन और आम लोग, उनके प्रेमी सहयोगी) पैसे देने की बात करते >> थे। मैंने मना कर दिया। कहा कि दो चार मुशायरे पढ़ लूंगा। इससे भी अच्छा घर बन >> जाएगा । - >> इजाजत लेने से एेन पहले हमने उनसे खुराक और लज्जत की बात जानने की कोशिश की। >> तो नए जमाने के सबसे मशहूर शायर का कहना था, गोश्त छोड़कर सब पसंद है। उम्र के >> इस मुकाम पर उन्होंने बाकी बचे अरमान को उन्होंने बेमानी बताया हालांकि राहत की >> ओर देखकर बोले- भाई, बीबी डराती बहुत है। होटल के उस शायरान माहौल से उठने से >> पहले हम राहत से मुखातिब हुए। हमने पूछा कि आप लंबे समय से साथ है। कहीं न कहीं >> बशीर बद्र की इंस्पीरेशन हैं। आप क्या सोचती है। बशीर साहब के बारे में। खिलकर >> मुस्कुराने से पहले वह अचानक गंभीर हो गई। फिर हंसी तो देर तक हंसती रहीं। >> बोली, बशीर बिलकुल नहीं बदले। जो फर्क आया है उम्र की वजह से आया है। इस उम्र >> में कुछ याददाश्त कमजोर सी होनी लगी है। बस और बाकी सब वैसे ही है। बशीर साहब >> ने एक बार इश्क की चर्चा छेड़ दी। तब तक खाना आ चुका था। मजा देखीए काले लिबास >> में लिपटा बैरा दो थालियां लाया था। बशीर ने बीबी की ओर देखा और दोनों एक साथ >> ही बोले। एक ही थाली बहुत हैं। दूसरी ले जाओ। उन्होंने जिद की। आप भी साथ खाएं। >> पर दूसरे कमरे में अंजुम साहिबा (अंजुम रहबर) थी और तीसरे में डॉ कुंवर बैचेन >> थे। अब उन दोनों की बातें अगली किस्तों में । >> - >> >> परिचय की जरूरत ही नहीं - >> जो शायरी जानता है। समझता है। बशीर की इज्जत करता है। जो नहीं जानता वह बशीर >> को पूजता है। मेरे ख्याल से मैंने अपनी जिंदगी मंे एक शख्स एेसा नहीं देखा >> जिसने कभी बशीर साहब की कोई शायरी न पढ़ी या सुनी हो। >> -- >> >> >> बशीर बद्र , 15 फरवरी 19३५ >> 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर >> दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे >> दर्जनों किताबें >> पसंद-ए-जायका- दाल रोटी और सब्जी >> - >> तेरह साल की उम्र में लिखी रचना >> >> उजाले अपनी यादों को हमारे साथ रहने दो >> ना जाने किसी गली मेंे जिंदगी की शाम हो जाए >> >> ---- >> >> >> _______________________________________________ >> Deewan mailing list >> Deewan at mail.sarai.net >> http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan >> >> > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > -- Rakesh Kumar Singh Media Researcher & Content Editor Delhi, India http://blog.sarai.net/users/rakesh/ http://haftawar.blogspot.com http://safarr.blogspot.com http://sarai.net http://safarindia.org Ph: +91 9811972872 ''सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना'' - पाश -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100128/616235dc/attachment-0001.html From beingred at gmail.com Fri Jan 29 11:52:26 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Fri, 29 Jan 2010 11:52:26 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSt4KS+4KSw4KSk?= =?utf-8?b?4KWA4KSvIOCkl+Cko+CkpOCkguCkpOCljeCksCDgpJTgpLAg4KSv4KWB?= =?utf-8?b?4KS14KS+?= Message-ID: <363092e31001282222u52e99c8ficd7d9d540b4fb277@mail.gmail.com> भारतीय गणतंत्र और युवा *प्रत्युष प्रशांत* *कोपेनहेगन* में पर्यावरण पर चिंता, देश में मंहगाई पर चिंता , थ्री इडियट के मनोरंजन और ज्योति बसु के निधन से अचानक हम देश के 61वें गणतंत्र दिवस पर चले आये हैं। यदि नजर दौड़ायें, तो साफ हो जाता है कि खनिज संपदा से भरपूर इस देश में गणतंत्र के सभी मायने बेकार साबित हो रहे हैं। आजादी तो मिली , लेकिन यहां के लोग आज भी मूलभूत समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं ,देश के गर्व, अपनी पहचान, उमंग, उत्साह के दिवस पर मात्र एक दिन का विभिन्न शासकीय स्तर पर कार्यक्रम, मीडिया में देशभक्ति पर हल्का-फुल्का शोरगुल। क्या करें आज के युवा पीढ़ी को इसके मायने और महत्व ठीक से नहीं पता। 15अगस्त को हम आजाद हुए और 26जनवरी को भारतीय संविधान में टांग दिए गए। कुछ लोगों के लिए यह स्वतंत्रता, स्वाधीनता और स्वशासन को आगे बढ़ाता एकदिवसीय शब्द सा हो गया है। बहरहाल असल मायने जो भी हो आज के हालात में उसके मायने और उपयोगिता बदलती जा रही है। असल में आज का युवा वर्ग ऐसे कार्यक्रम में आना नहीं चाहता । उसके लिए यह एक छुट्टी का दिन भर रह गया है। *पूरा पढ़िए : भारतीय गणतंत्र और युवा * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100129/e8efd060/attachment.html From filmashish at gmail.com Mon Jan 18 02:05:37 2010 From: filmashish at gmail.com (ashish k singh) Date: Sun, 17 Jan 2010 20:35:37 -0000 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= 'Dil to bachcha hai jee' Message-ID: <1d663bd1001171235r2250137dhfc3209eff4ac0@mail.gmail.com> *Check out:* ** *'गुलज़ार करेले की सब्ज़ी हैं, यार!'* * - Prabuddh* ** *at **http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/* ** *and* ** *know how a young journalist fell in love with the potry of Gulzar.* ** *Plz read and post your comments.* ** ** *Best,* ** *Ashish K Singh* -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100117/7876f0ae/attachment.html From filmashish at gmail.com Sun Jan 24 01:31:10 2010 From: filmashish at gmail.com (ashish k singh) Date: Sun, 24 Jan 2010 01:31:10 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= All the best Anusha! Message-ID: <1d663bd1001231201l48c0c76bkdcacdadedd1a199a@mail.gmail.com> Hi, Delhi based filmmaker Anusha Rizvi's debut feature film is being screened today in the competition section of the reputed Sundance Festival, USA.The film has been produced by Aamir Khan. Read more at http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ Plz visit and post your comments and best wishes for Anusha. Best, Ashish K Singh -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100124/c17898f1/attachment-0001.html From masijeevi at gmail.com Thu Jan 28 22:36:46 2010 From: masijeevi at gmail.com (masijeevi hindi) Date: Thu, 28 Jan 2010 09:06:46 -0800 (PST) Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Invitation to connect on LinkedIn Message-ID: <136371369.17778242.1264698406510.JavaMail.app@ech3-cdn12.prod> LinkedIn ------------ masijeevi hindi requested to add you as a connection on LinkedIn: ------------------------------------------ Journalist ANANDMANI, I'd like to add you to my professional network on LinkedIn. - masijeevi Accept invitation from masijeevi hindi http://www.linkedin.com/e/uT_ZuzIAB7mujqllua9tezkG1t8vbb3IyT/blk/I51964422_5/6lColZJrmZznQNdhjRQnOpBtn9QfmhBt71BoSd1p65Lr6lOfPlvcz8Qd3oVcjl9bQgUbmIQmntTbPwOdjgRdPAOc34LrCBxbOYWrSlI/EML_comm_afe/ View invitation from masijeevi hindi http://www.linkedin.com/e/uT_ZuzIAB7mujqllua9tezkG1t8vbb3IyT/blk/I51964422_5/dlYOczgQdzANdkALqnpPbOYWrSlI/svi/ ------------------------------------------ Why might connecting with masijeevi hindi be a good idea? People masijeevi hindi knows can discover your profile: Connecting to masijeevi hindi will attract the attention of LinkedIn users. See who's been viewing your profile: http://www.linkedin.com/e/wvp/inv18_wvmp/ ------ (c) 2010, LinkedIn Corporation -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100128/e6f85302/attachment-0001.html