From ashishkumaranshu at gmail.com Mon Feb 1 14:51:08 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Mon, 1 Feb 2010 14:51:08 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSq4KS+4KSC4KSa?= =?utf-8?b?4KS14KS+4KSCIOCkl+Cli+CksOCkluCkquClgeCksCDgpKvgpL/gpLI=?= =?utf-8?b?4KWN4KSuIOCkieCkpOCljeCkuOCktQ==?= Message-ID: <196167b81002010121s79744348i3dd35b24b82c215@mail.gmail.com> पांचवां गोरखपुर फिल्म उत्सव पांचवां गोरखपुर फिल्म उत्सव चार फरवरी से शुरू हो रहा है। जन संस्कृति मंच और गोरखपुर फिल्म सोसायटी के संयुक्त आयोजन में पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस शहर में होने वाले इस फिल्म उत्सव ने काफी कम समय में अपनी एक साख बनाई है। यहाँ है vistrit jaanakaari http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100201/bc403cb4/attachment.html From ashishkumaranshu at gmail.com Tue Feb 2 12:29:08 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Tue, 2 Feb 2010 12:29:08 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSH4KSs4KWN4KSo?= =?utf-8?b?4KSs4KSk4KWC4KSk4KS+Li7igJkg4KSV4KWAIOCkmuCli+CksOClgCA=?= =?utf-8?b?4KSV4KWN4KS34KSu4KWN4KSvIOCkqOCkueClgOCkgiDgpLngpYg6IA==?= =?utf-8?b?4KS44KSC4KSc4KSvIOCkpuCljeCkteCkv+CkteClh+CkpuClgA==?= Message-ID: <196167b81002012259p682bc6b8t7bd9c437f6816c65@mail.gmail.com> सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लिखी कविता के मुखड़े को आधार बनाकर फिल्म ‘इश्किया’ में गुलजार के गीत ‘इब्नबतूता, बगल में जूता..’ का बनना और विवाद में आने से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना चर्चा में आ गए है। प्रसिद्ध गीतकार गुलजार द्वारा फिल्म इश्किया के लिखे गीत पर साहित्य समाज भी दो फाड़ हो गया है कोई इसे साहित्यक चोरी बता रहा है तो कोई से मात्र प्रेरणा मान रहा है, कुछ ऐसे लोग भी है जिनका मानना है कि फिल्मकारों द्वारा साहित्य समाज पर इस तरह के हमले पहले भी होते रहे हैं। इन सब विवादों के बीच सर्वेश्वर के रचना संसार पर लघुशोध कर चुके पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के *रीडर संजय द्विवेदी *से इसी मुद्दे पर खास बातचीत। *सर्वेश्वरदयाल की रचना ‘इब्नबतूता. का फिल्म के गीत में मुखड़े के रूप में इस्तेमाल होने को आप किस प्रकार देखते हैं?* फिल्म के गीत में जिस मुखड़े का प्रयोग हुआ है वह बतूता का जूता से लिया गया है और यह उन्होंने 1971 में लिखी थी। बच्चों के लिए उन्होंने बेहद बेहतरीन रचनाएं लिखी थीं। अब फिल्म में उनके गीत का इस्तेमाल हो रहा है और क्रेडिट भी नहीं दिया जा रहा है यह चिंताजनक बात है। भाव का अपहरण क्षम्य है, शब्द का अपहरण क्षम्य है लेकिन कविता की आत्मा का अपहरण क्षम्य नहीं है। गुलजार साहब खुद एक बड़े साहित्यकार हैं कम से कम उनको तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए। *सर्वेश्वरदयाल के व्यक्तित्व और उनके रचना संसार के बारे में कुछ बताएं?* बड़े कवि थे, बचपन में गरीबी देखी, बाद में कवि अज्ञेय के संपर्क में आए और दिनमान से जुड़ गए। उसके बाद पराग पत्रिका के संपादक बने और हिंदी बाल पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया। दिल्ली आने के बाद वे फिर कभी उप्र के शहर बस्ती नहीं गए, बचपन में उन्होंने अपने घर और आस पास के इलाकों में जो गरीबी की पीड़ा देखी थी उससे वे दुखी रहते थे। उनकी दो बेटियां हैं और उन्होंने अपने इन दोनों का नाम विभा और सुभा रखा। कविता और पत्रकारिता पर वे समान पकड़ रखते थे। *कविता के नए रूपों और उसकी भाषा को नये स्वरूप देने वालों में वे एक खास कवि थे। वे एक बेहद संवेदनशील कवि थे। अपनी कविता और उसके उद्देश्य वे पूरी तरह स्वीकार करने वालों में से थे। मुझे उनकी लिखी एक खास लाइन याद आ रही है:* अब में कवि नहीं रह एक काला झंडा हूं । तिरपन करोड़ भौंहों के बीच मातम में खड़ी है मेरी कविता *आज समाज मे भाषा को लेकर विवाद फैल रहा है कहीं राजनीतिक है तो कहीं साहित्य की चोरी के रूप में सर्वेश्वरदयाल की कोई ऐसी रचना आपको याद आती है, जो इन दोनों बातों पर सटीक बैठ रही हो?* सर्वेश्वर की शब्दावली कमाल की थी, भाषा और शब्दों को लेकर वे बेहद संजीदा थे। अगर वे आज जिंदा होते और ताजा विवाद को सुनते तो शायद अपनी इस कविता के माध्यम से अपना विरोध जताते: और आज छीनने आए हैं वे हमसे हमारी भाषा यानी हमसे हमारा रूप जिसे हमारी भाषा ने गढ़ा है और जो इस जंगल में इतना विकृत हो चुका है कि जल्दी पहचान में नहीं आता। http://www.bhaskar.com/2010/02/02/100202044015_ibnbtuta_song.html -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100202/d5cec7b8/attachment-0001.html From ashishkumaranshu at gmail.com Tue Feb 2 12:29:08 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Tue, 2 Feb 2010 12:29:08 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSH4KSs4KWN4KSo?= =?utf-8?b?4KSs4KSk4KWC4KSk4KS+Li7igJkg4KSV4KWAIOCkmuCli+CksOClgCA=?= =?utf-8?b?4KSV4KWN4KS34KSu4KWN4KSvIOCkqOCkueClgOCkgiDgpLngpYg6IA==?= =?utf-8?b?4KS44KSC4KSc4KSvIOCkpuCljeCkteCkv+CkteClh+CkpuClgA==?= Message-ID: <196167b81002012259p682bc6b8t7bd9c437f6816c65@mail.gmail.com> सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लिखी कविता के मुखड़े को आधार बनाकर फिल्म ‘इश्किया’ में गुलजार के गीत ‘इब्नबतूता, बगल में जूता..’ का बनना और विवाद में आने से सर्वेश्वर दयाल सक्सेना चर्चा में आ गए है। प्रसिद्ध गीतकार गुलजार द्वारा फिल्म इश्किया के लिखे गीत पर साहित्य समाज भी दो फाड़ हो गया है कोई इसे साहित्यक चोरी बता रहा है तो कोई से मात्र प्रेरणा मान रहा है, कुछ ऐसे लोग भी है जिनका मानना है कि फिल्मकारों द्वारा साहित्य समाज पर इस तरह के हमले पहले भी होते रहे हैं। इन सब विवादों के बीच सर्वेश्वर के रचना संसार पर लघुशोध कर चुके पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के *रीडर संजय द्विवेदी *से इसी मुद्दे पर खास बातचीत। *सर्वेश्वरदयाल की रचना ‘इब्नबतूता. का फिल्म के गीत में मुखड़े के रूप में इस्तेमाल होने को आप किस प्रकार देखते हैं?* फिल्म के गीत में जिस मुखड़े का प्रयोग हुआ है वह बतूता का जूता से लिया गया है और यह उन्होंने 1971 में लिखी थी। बच्चों के लिए उन्होंने बेहद बेहतरीन रचनाएं लिखी थीं। अब फिल्म में उनके गीत का इस्तेमाल हो रहा है और क्रेडिट भी नहीं दिया जा रहा है यह चिंताजनक बात है। भाव का अपहरण क्षम्य है, शब्द का अपहरण क्षम्य है लेकिन कविता की आत्मा का अपहरण क्षम्य नहीं है। गुलजार साहब खुद एक बड़े साहित्यकार हैं कम से कम उनको तो इस बात का ध्यान रखना चाहिए। *सर्वेश्वरदयाल के व्यक्तित्व और उनके रचना संसार के बारे में कुछ बताएं?* बड़े कवि थे, बचपन में गरीबी देखी, बाद में कवि अज्ञेय के संपर्क में आए और दिनमान से जुड़ गए। उसके बाद पराग पत्रिका के संपादक बने और हिंदी बाल पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया। दिल्ली आने के बाद वे फिर कभी उप्र के शहर बस्ती नहीं गए, बचपन में उन्होंने अपने घर और आस पास के इलाकों में जो गरीबी की पीड़ा देखी थी उससे वे दुखी रहते थे। उनकी दो बेटियां हैं और उन्होंने अपने इन दोनों का नाम विभा और सुभा रखा। कविता और पत्रकारिता पर वे समान पकड़ रखते थे। *कविता के नए रूपों और उसकी भाषा को नये स्वरूप देने वालों में वे एक खास कवि थे। वे एक बेहद संवेदनशील कवि थे। अपनी कविता और उसके उद्देश्य वे पूरी तरह स्वीकार करने वालों में से थे। मुझे उनकी लिखी एक खास लाइन याद आ रही है:* अब में कवि नहीं रह एक काला झंडा हूं । तिरपन करोड़ भौंहों के बीच मातम में खड़ी है मेरी कविता *आज समाज मे भाषा को लेकर विवाद फैल रहा है कहीं राजनीतिक है तो कहीं साहित्य की चोरी के रूप में सर्वेश्वरदयाल की कोई ऐसी रचना आपको याद आती है, जो इन दोनों बातों पर सटीक बैठ रही हो?* सर्वेश्वर की शब्दावली कमाल की थी, भाषा और शब्दों को लेकर वे बेहद संजीदा थे। अगर वे आज जिंदा होते और ताजा विवाद को सुनते तो शायद अपनी इस कविता के माध्यम से अपना विरोध जताते: और आज छीनने आए हैं वे हमसे हमारी भाषा यानी हमसे हमारा रूप जिसे हमारी भाषा ने गढ़ा है और जो इस जंगल में इतना विकृत हो चुका है कि जल्दी पहचान में नहीं आता। http://www.bhaskar.com/2010/02/02/100202044015_ibnbtuta_song.html -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100202/d5cec7b8/attachment-0002.html From ravikant at sarai.net Wed Feb 3 11:45:17 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Wed, 03 Feb 2010 11:45:17 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSH4KSs4KWN4KSo?= =?utf-8?b?4KSs4KSk4KWC4KSk4KS+Li7igJkg4KSV4KWAIOCkmuCli+CksOClgCDgpJU=?= =?utf-8?b?4KWN4KS34KSu4KWN4KSvIOCkqOCkueClgOCkgiDgpLngpYg6IOCkuOCkgg==?= =?utf-8?b?4KSc4KSvIOCkpuCljeCkteCkv+CkteClh+CkpuClgA==?= In-Reply-To: <4B6911C4.3050102@sarai.net> References: <196167b81002012259p682bc6b8t7bd9c437f6816c65@mail.gmail.com> <4B6911C4.3050102@sarai.net> Message-ID: <4B691475.7010908@sarai.net> एक और: कम से कम गुलजार को तो बख्श दें Bhaskar से साभार: http://www.bhaskar.com/2010/02/02/100202004213_spare_at_least_to_allow_gulzar.htm स्लमडॉग मिलियनेयर के ‘जय हो’ के लिए ऑस्कर के बाद जो ग्रैमी एआर रहमान को मिला है, उसमें स्पैनिश शब्दों के लिए तन्वी शाह और हिंदुस्तानी शब्दों के लिए गुलजार का भी नाम आया। कैसी विडंबना है कि देश में गुलजार पर कविता चोरी करने के आरोप लग रहे हैं। उससे बड़ी विडंबना यह कि हम अपने देश के एक नामवर कवि की साख पर बेवजह बट्टा लगा रहे हैं। सोमवार को अखबारों और टीवी चैनलों पर गुलजार पर अभद्र टिप्पणियां की गईं और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता चुराने का आरोप लगाया गया। यह अनावश्यक विवाद फिल्म इश्किया के लिए गुलजार के गाने ‘इब्ने बतूता’ को लेकर है, जिसमें सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता से उठाए दो शब्द ‘इब्ने बतूता’ और ‘जूता’ तुक में आते हैं। इतने पर इलाहाबाद में प्रेस कांफ्रेंस हो गई और गुलजार की रचनाशीलता पर प्रश्न उठा दिए गए। प्रेरित रचना और रचना सृजन के बीच बेहद पतली लकीर होती है। हो सकता है गुलजार ने यह गाना सर्वेश्वर दयाल की रचना से प्रेरित होकर लिखा हो, पर उन्होंने उस लकीर को लांघा नहीं। कीचड़ उछालने से पहले कम से कम गुलजार से एक बार पूछ लेते, उन्हें सर्वेश्वर दयाल की कविता से प्रेरित होने की बात स्वीकारने से गुरेज नहीं होता। अगर ऐसा है तो फिर चल छैंया-छैंया के लिए बुल्ले शाह के साथ क्रेडिट बांटने की आवाज क्यों नहीं उठी? दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन गीत का मुखड़ा भी गालिब की मुद्दत हुई है यार को मेहमान किये हुए गजल का एक शेर है। यह बात गुलजार ने छिपाई नहीं, पर हिंदुस्तानी रचनाओं में गालिब के शब्दों में ‘अगले जमाने की’ कृतियों को आगे ले जाने की परंपरा है। उस हिसाब से ‘जय हो’ शब्द हमारे लोक काव्यों से लेकर कई साहित्यिक रचनाओं में इस्तेमाल हुआ है, फिर गुलजार किसके साथ इसका ऑस्कर बांटें? कुंवर महेंद्र सिंह बेदी ने फैज के काफिये को पकड़ पूरी गजल लिख दी और महान फैज ने भी गालिब की गजलों में अपने मजमून ढूंढ़े। हजरत मिर्जा ताहिर अहमद साहिब ने थॉमस मूर की कविता ‘द लाइट ऑफ अदर डेज’ का अनुवाद किया - ‘अक्सर शबे तन्हाई में’ जो मूर की कविता से अलग और कई मायनों में बेहतर हो गया। गुलजार के साथ फिल्मों में लिखने के कारण यह सुलूक हो रहा है। हमारे फिल्मवालों ने प्रेरणा के नाम पर इतनी चोरियां की हैं कि हमें यकीन नहीं होता कि काजल की कोठरी में किसी का कुर्ता सफेद बचा होगा। यकीन का मरना अच्छी बात नहीं है। स्लमडॉग मिलियनेयर के ‘जय हो’ के लिए ऑस्कर के बाद जो ग्रैमी एआर रहमान को मिला है, उसमें स्पैनिश शब्दों के लिए तन्वी शाह और हिंदुस्तानी शब्दों के लिए गुलजार का भी नाम आया। कैसी विडंबना है कि देश में गुलजार पर कविता चोरी करने के आरोप लग रहे हैं। उससे बड़ी विडंबना यह कि हम अपने देश के एक नामवर कवि की साख पर बेवजह बट्टा लगा रहे हैं। सोमवार को अखबारों और टीवी चैनलों पर गुलजार पर अभद्र टिप्पणियां की गईं और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता चुराने का आरोप लगाया गया। यह अनावश्यक विवाद फिल्म इश्किया के लिए गुलजार के गाने ‘इब्ने बतूता’ को लेकर है, जिसमें सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता से उठाए दो शब्द ‘इब्ने बतूता’ और ‘जूता’ तुक में आते हैं। इतने पर इलाहाबाद में प्रेस कांफ्रेंस हो गई और गुलजार की रचनाशीलता पर प्रश्न उठा दिए गए। प्रेरित रचना और रचना सृजन के बीच बेहद पतली लकीर होती है। हो सकता है गुलजार ने यह गाना सर्वेश्वर दयाल की रचना से प्रेरित होकर लिखा हो, पर उन्होंने उस लकीर को लांघा नहीं। कीचड़ उछालने से पहले कम से कम गुलजार से एक बार पूछ लेते, उन्हें सर्वेश्वर दयाल की कविता से प्रेरित होने की बात स्वीकारने से गुरेज नहीं होता। अगर ऐसा है तो फिर चल छैंया-छैंया के लिए बुल्ले शाह के साथ क्रेडिट बांटने की आवाज क्यों नहीं उठी? दिल ढूंढ़ता है फिर वही फुर्सत के रात दिन गीत का मुखड़ा भी गालिब की मुद्दत हुई है यार को मेहमान किये हुए गजल का एक शेर है। यह बात गुलजार ने छिपाई नहीं, पर हिंदुस्तानी रचनाओं में गालिब के शब्दों में ‘अगले जमाने की’ कृतियों को आगे ले जाने की परंपरा है। उस हिसाब से ‘जय हो’ शब्द हमारे लोक काव्यों से लेकर कई साहित्यिक रचनाओं में इस्तेमाल हुआ है, फिर गुलजार किसके साथ इसका ऑस्कर बांटें? कुंवर महेंद्र सिंह बेदी ने फैज के काफिये को पकड़ पूरी गजल लिख दी और महान फैज ने भी गालिब की गजलों में अपने मजमून ढूंढ़े। हजरत मिर्जा ताहिर अहमद साहिब ने थॉमस मूर की कविता ‘द लाइट ऑफ अदर डेज’ का अनुवाद किया - ‘अक्सर शबे तन्हाई में’ जो मूर की कविता से अलग और कई मायनों में बेहतर हो गया। गुलजार के साथ फिल्मों में लिखने के कारण यह सुलूक हो रहा है। हमारे फिल्मवालों ने प्रेरणा के नाम पर इतनी चोरियां की हैं कि हमें यकीन नहीं होता कि काजल की कोठरी में किसी का कुर्ता सफेद बचा होगा। यकीन का मरना अच्छी बात नहीं है। ravikant wrote: > आशीष जी, > > > मैंने भी जब गाना सुना तो सर्वेश्वर सक्सेना की मशहूर कविता याद आई. फिर ग़ौर से सुना > तो फ़र्क़ भी साफ़ नज़र आया. > > संजय द्विवेदी से कहिए कि अपनी मौलिकलता की खोह से निकलें. गुलज़ार ने ग़ालिब, और > मीर की पंक्तियाँ भी पहले इस्तेमाल की हैं. फ़िल्मी संदर्भों में इस्तेमाल से उनका नाम फैलता > ही है, सिकुड़ता नहीं है. और यहाँ गीत के भाव वही नहीं हैं जो स्वर्गीय सर्वेश्वर की > बाल-कविता के हैं. इसलिए इसे चोरी कहना ग़लत होगा. मेरा क़यास है कि गुलज़ार और > विशाल दोनों ही ने यह कविता पढ़ी होगी, और जानबूझकर उसी ज़मीन पर ये गाना रचा > होगा. जैसे मीर और ग़ालिब को श्रेय नही दिया गया, उन फ़िल्मों में, वैसे ही सर्वेश्वर को > यहाँ नही दिया गया है. इस मामले को इस तरह से ले उड़ना समझ में नहीं आया. > > रविकान्त > > आप लोगों ने पवन झा का ब्लॉग भी देखा होगा, वहाँ दोनों गीत साथ-साथ है. > > > इब्नबतूता का भूत [The ghost of Ibn-Batuta] > > > From filmashish at gmail.com Mon Feb 1 14:31:07 2010 From: filmashish at gmail.com (ashish k singh) Date: Mon, 1 Feb 2010 14:31:07 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Latest at NDFS blog Message-ID: <1d663bd1002010101n2cd8e998lc548398831bff4c4@mail.gmail.com> *1.**'The Female Nude' gets National Award* * * ** *The 56th National Film Awards have been announced and the documentary The Female Nude that we featured on this site in August 2009 itself has been declared the Best Non Feature Film on Social Issues. * ** *2. **पांचवां गोरखपुर फिल्म उत्सव* * * ** *पांचवां गोरखपुर फिल्म उत्सव चार फरवरी से शुरू हो रहा है। जन संस्कृति मंच और गोरखपुर फिल्म सोसायटी के संयुक्त आयोजन में पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस शहर में होने वाले इस फिल्म उत्सव ने काफी कम समय में अपनी एक साख बनाई है।* ** *Check out the details at **http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/* ** *and post your comments.* ** ** *Best,* ** *Ashish K Singh* ** *for New Delhi Film Society (An e Film Society)* -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100201/a1eb8ace/attachment-0001.html From sanjaysinghdu at gmail.com Mon Feb 1 16:33:57 2010 From: sanjaysinghdu at gmail.com (sanjay singh) Date: Mon, 1 Feb 2010 15:03:57 +0400 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= HI all Message-ID: <6034d9791002010303p16f25f2aq1fdee5e98c3928ba@mail.gmail.com> Dear friends, I Have joined Ministry of higher education, Sultanate of Oman last week only. For future Communication My address would be as under: Dr.Sanjay Singh Baghel Assistant Professor Department of Communication College of Applied Sciences Ministry of higher Education Post Box 14,Postal Code 515 IBRI,Sultanate of Oman cell: 00-968-98959739 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100201/ce100fd3/attachment-0001.html From ravikant at sarai.net Wed Feb 3 11:33:48 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Wed, 03 Feb 2010 11:33:48 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSH4KSs4KWN4KSo?= =?utf-8?b?4KSs4KSk4KWC4KSk4KS+Li7igJkg4KSV4KWAIOCkmuCli+CksOClgCDgpJU=?= =?utf-8?b?4KWN4KS34KSu4KWN4KSvIOCkqOCkueClgOCkgiDgpLngpYg6IOCkuOCkgg==?= =?utf-8?b?4KSc4KSvIOCkpuCljeCkteCkv+CkteClh+CkpuClgA==?= In-Reply-To: <196167b81002012259p682bc6b8t7bd9c437f6816c65@mail.gmail.com> References: <196167b81002012259p682bc6b8t7bd9c437f6816c65@mail.gmail.com> Message-ID: <4B6911C4.3050102@sarai.net> आशीष जी, मैंने भी जब गाना सुना तो सर्वेश्वर सक्सेना की मशहूर कविता याद आई. फिर ग़ौर से सुना तो फ़र्क़ भी साफ़ नज़र आया. संजय द्विवेदी से कहिए कि अपनी मौलिकलता की खोह से निकलें. गुलज़ार ने ग़ालिब, और मीर की पंक्तियाँ भी पहले इस्तेमाल की हैं. फ़िल्मी संदर्भों में इस्तेमाल से उनका नाम फैलता ही है, सिकुड़ता नहीं है. और यहाँ गीत के भाव वही नहीं हैं जो स्वर्गीय सर्वेश्वर की बाल-कविता के हैं. इसलिए इसे चोरी कहना ग़लत होगा. मेरा क़यास है कि गुलज़ार और विशाल दोनों ही ने यह कविता पढ़ी होगी, और जानबूझकर उसी ज़मीन पर ये गाना रचा होगा. जैसे मीर और ग़ालिब को श्रेय नही दिया गया, उन फ़िल्मों में, वैसे ही सर्वेश्वर को यहाँ नही दिया गया है. इस मामले को इस तरह से ले उड़ना समझ में नहीं आया. रविकान्त आप लोगों ने पवन झा का ब्लॉग भी देखा होगा, वहाँ दोनों गीत साथ-साथ है. इब्नबतूता का भूत [The ghost of Ibn-Batuta] सुबह सुबह अखबार ने जब दरवाजे पर दस्तक दी तो मालूम हुआ कि इब्नबतूता के भूत साथ में तशरीफ़ लाए हैं। आने का सबब पूछा तो पता चला कि कुछ चिलप्पों करने वाले तथाकथित साहित्यकारों ने शोर मचा कर उन्हें नींद से उठा दिया है। शोर ये कि गुलज़ार साब ने इब्नबतूता का जूता चुरा लिया है। [The Ghost of IbnBatuta] गुलज़ार ने चुराया इब्नबतूता पहन के जूता भूत जनाब बहुत परेशान लग रहे थे। वैसे भी अपने समय में पैदल इतना सारा जहाँ घूमे थे कि सदियों तक उसकी थकान खत्म ना हो। अच्छे खासे इतिहास के पन्नों में आराम फ़रमा रहे थे, नींद से उठा कर अखबार की सुर्खियों में यूं अलसुबह खड़ा कर देने के फ़रमान से तकलीफ़ किसको नहीं होगी। और उस पर ये भी कि ना सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के इब्नबतूता से उनका कोई वास्ता है और ना ही गुलज़ार के। बोले कि ये बिलावजह हंगामा क्युं है बरपा? हमने कहा जनाब, ये जूते का दौर है, हर तरफ़ जूते का जोर है, चाहे इराक़ हो या भारत, नेता हो या अभिनेता, राजनीति हो या साहित्य का अखाड़ा, विरोध का इन दिनो सबसे बड़ा औज़ार बन गया है जूता। अब यहाँ के साहित्यकारों के हाथ में आपका जूता पड़ गया है, तो उछालने की होड़ लगी हुई है। कुछ तथाकथित साहित्यकार जो अपनी रचनाओं से अपने लिये जगह नहीं बना सके, आपके जूते के विवाद को उछाल के अखबारों की सुर्खियों में जगह बनाने की कोशिश में जुटे हैं। उनको परेशानी इस बात से हो रही है कि गुलज़ार साब ने सर्वेश्वर जी की कविता से आपका नाम और जूता चुरा लिया है। "मगर मेरे नाम का कॉपीराईट क्या सर्वेश्वर जी के पास है? क्या मेरी पहचान सिर्फ़ उनकी कविता से है, क्या लोग ये भूल गये कि मेरे कई यात्रा वृतांत दुनिया की कई भाषाओं में छप चुके हैं?" भूत जनाब का प्रश्न था। "शायद भूल ही गये हैं" मैनें बोला तो नहीं वरना जनाब को बड़ी निराशा होती, बस मन ही मन सोचा । फिर सोचा कि शोर बरपाने वालों को इब्नबतूता से क्या लेना देना, उनका लेना देना तो सर्वेश्वर जी से भी नहीं है। हमेशा किसी ना किसी बात पे परेशान रहते हैं ये लोग। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी पर भी पत्थर (या जूता) उछालने की शायद आदत सी हो गयी है इक जमात को। गुलज़ार साब से कुछ खास शिकायतें रहती हैं, हिन्दी साहित्यकारों का एक तबका कहता है उर्दू के शायर हैं, उर्दू वाले कहते हैं आज़ाद हिन्दोस्तानी में लिखते हैं। शायर-साहित्यकार ये भी कहते हैं फ़िल्मों के गीतकार हैं। उनकी आर्ट की आज़ादपरस्ती, ऐसे शोर दबाने की बहुत कोशिश करते रहते हैं "वैसे इस बार इन लोगों को असल में किस बात से परेशानी है"? भूत जनाब का अगला प्रश्न था जनाब, इनका तर्क ये है कि सर्वेश्वर जी बच्चों के लिये कविता लिखी, गुलज़ार साब ने उस कविता को चुरा कर फ़िल्मी गीत का रूप दे दिया है। कुछ साहित्यकार लोगों को इसलिए परेशानी है कि आपका नाम साहित्य से उठा कर फ़िल्मी गीत में ले लिया है और कुछ साहित्यकारों को ये कि गुलज़ार साब ने बिना श्रेय दिये सर्वेश्वर जी की कविता में से आपका नाम और जूता कॉपी किया है। अब सर्वेश्वर जी की कविता या गुलज़ार साब के गीत दोनों में आप की उपस्थिति सिर्फ़ इसलिए है कि आपका नाम जूता के साथ अच्छा ’राइम’ होता है, आपके नाम के ’साउंड’ मॆं बहुत दम है, जो एक कविता या गीत में प्रभाव के लिये बहुत ज़रूरी है। जहाँ तक संदर्भ की बात है दोनों ने आपका और आपके जूते का उपयोग बिलकुल अलग तरीके से किया है। सर्वेश्वर जी की कविता जहां बच्चों के लिये मज़ेदार ’नॉनसेन्सिकल’ फ़ारमेट मे लिखी गई है वहीं गुलज़ार साब ने इसका उपयोग फ़िल्म की स्क्रिप्ट और सिचुएशन के आधार पे किया है। फ़िल्म की शुरुआत में जहां दो चोर, अपने बॉस के पिंजरे से फ़ुर्र हो रहे है, आज़ाद हो रहे हैं... इधर से उधर घुमक्कड़ों की तरह भाग रहे हैं, दबे पाँव निकल रहे हैं, उन्होने जूता पहना नहीं है, बल्कि बगल मे दबाया है क्युंकि पहनने के बाद जूता आवाज़ करेगा और उनका फ़ुर्र होना, भागना आसान नहीं होगा। वैसे मैं क्या फ़ैसला करूं, जनाब आप खुद ही दोनों (कविता और गीत) एकसाथ पढ़ लें और कि क्या ये वाकई में कॉपी है? सर्वेश्वर दयाल सक्सेना गुलज़ार इब्नबतूता पहन के जूता निकल पड़े तूफान में थोड़ी हवा नाक में घुस गई थोड़ी घुस गई कान में कभी नाक को कभी कान को मलते इब्नबतूता इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैरों का जूता उड़ते उड़ते उनका जूता पहुंच गया जापान में इब्नबतूता खड़े रह गये मोची की दूकान में इब्‍ने बतूता, बगल में जूता पहने तो करता है चुर्रर उड उड आवे, दाना चुगेवे उड जावे चिडिया फुर्रर अगले मोड पे, मौत खड़ी है अरे मरने की भी क्‍या जल्‍दी है होर्न बजाके, आ बगियन में हो दुर्घटना से देर भली है चल उड जा उड जा फुर फुर दोनों तरफ से बजती है ये आय हाय जिंदगी क्‍या ढोलक है हॉर्न बजाके आ आ बगियन में अरे थोड़ा आगे गतिरोधक है इब्‍ने बतूता.. "क्या कहते हैं जनाब"? "पहली बात तो दोनो रचनाओं के उपयोग और संदर्भ में कोई समानता मुझे तो नज़र नहीं आई । और अगर लोगों को ये आपति है कि गुलज़ार साब ने गीत के साथ सर्वेश्वर जी की कविता का ज़िक्र नहीं किया, तो वे ये नहीं कहते कि सर्वेश्वर जी ने कविता में मेरा नाम मेरे किस किस्से या किताब से पढ़ कर दिया है। उनके जेहन में मेरा नाम भी तो मेरा ही कोई किस्सा पढ़ कर आया होगा" जनाब का जवाब था। "बेवजह का मसला खड़ा किया है कुछ लोगों ने और मेरी नींद भी खराब कर दी। है अब मैं भी चिड़िया की तरह फ़ुर्र होता हूं" कह कर जनाब गायब हो गये। मैं सोच रहा था कि गुलज़ार साब पहले भी कई बार इस तरह के आरोपों के दौर से गुजरे हैं, और खासकर तब भी जब वो अपनी तरफ़ से चला कर घोषित करते रहे हैं कि मिसरा ग़ालिब का है और कैफ़ियत अपनी अपनी, या बुल्लेशाह और अमीर खुसरो की प्रेरणा को कभी नहीं नकारा बल्कि आगे बढ़ कर पहले लोगों को बताया। जबकि फ़िल्म उद्योग में अनेकोनेक, अनगिनत ऐसे उदाहरण रोज़ ही मिलते हैं जहां फ़िल्म, कहानी, गीत, दृश्य, स्क्रिप्ट, नृत्य आदि हूबहू उठा लिये जाते हैं मगर राष्ट्रीय दैनिकों में मुख्य-पृष्ठ पे चोरी के रूप मे उछाले नहीं जाते। आज की खबर निश्चित रूप से स्वार्थी तत्वों द्वारा इक निश्चित एजेंडा के तहत उछाला गया जूता है। शायद ऐसे ही वाकयों और लोगों के लिये गुलज़ार साब ने एक बार लिखा था कहने वालों का कुछ नहीं जाता सहने वाले कमाल करते हैं कौन ढूंढे जवाब ज़ख्मों के लोग तो बस सवाल करते हैं! [नोट : सर्वेश्वर जी की कविता बचपन में पराग में पढ़ी और स्कूल में गुनी-सुनी-सुनाई है। मेरे लिए सर्वेश्वर जी बहुत आदरणीय व्यक्तित्व और साहित्य के अविस्मरणीय हस्ताक्षर रहे हैं। मगर उन लोगों से तकलीफ़ हो रही है जो उनके नाम से इस तरह से जूते उछाल रहे हैं। इसिलिए ये एक रिएक्शन है आज की खबर पर] - पवन झा आशीष कुमार 'अंशु' wrote: > सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की लिखी कविता के मुखड़े को आधार बनाकर फिल्म ‘इश्किया’ में > गुलजार के गीत ‘इब्नबतूता, बगल में जूता..’ का बनना और विवाद में आने से सर्वेश्वर दयाल > सक्सेना चर्चा में आ गए है। प्रसिद्ध गीतकार गुलजार द्वारा फिल्म इश्किया के लिखे गीत > पर साहित्य समाज भी दो फाड़ हो गया है कोई इसे साहित्यक चोरी बता रहा है तो कोई > से मात्र प्रेरणा मान रहा है, कुछ ऐसे लोग भी है जिनका मानना है कि फिल्मकारों द्वारा > साहित्य समाज पर इस तरह के हमले पहले भी होते रहे हैं। > इन सब विवादों के बीच सर्वेश्वर के रचना संसार पर लघुशोध कर चुके पत्रकार और माखनलाल > चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के *रीडर संजय द्विवेदी *से इसी मुद्दे पर खास बातचीत। > > *सर्वेश्वरदयाल की रचना ‘इब्नबतूता. का फिल्म के गीत में मुखड़े के रूप में इस्तेमाल होने को > आप किस प्रकार देखते हैं?* > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100203/ca3f162a/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: 000001268dfdc57065f53095007f000000000001.EpaperImages_02022010_GULJAR-large.jpg Type: image/jpeg Size: 131396 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100203/ca3f162a/attachment-0001.jpg From beingred at gmail.com Thu Feb 4 19:21:50 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Thu, 4 Feb 2010 19:21:50 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KS+4KSk4KS/?= =?utf-8?b?4KS14KS+4KSmIOCkleCliyDgpKzgpL7gpJzgpL7gpLAg4KSs4KSw4KSV?= =?utf-8?b?4KSw4KS+4KSwIOCksOCkluClh+Ckl+CkviDgpJTgpLAg4KSs4KWH4KSa?= =?utf-8?b?4KWH4KSX4KS+?= Message-ID: <363092e31002040551x4924540do1e24eeca10cbaf65@mail.gmail.com> जातिवाद को बाजार बरकरार रखेगा और बेचेगा *उचक्का नाम से आई अपनी आत्मकथा के जरिए लक्ष्मण गायकवाड़ ने हिंदी पाठकों के बीच अपनी पहचान बनाई. मूलत: मराठी मे लिखनेवाले गायकवाड़ एक और पुस्तक पथरकटवाभी हिंदू में अनूदित हो चुकी है. कभी राजनीति के जरिए दलितों की मुक्ति के लिए कोशिश करनेवाले गायकवाड़ का मानना है कि राजनीति अब पूंजी बनाने का साधन हो गई है और उससे नए राजे-महाराजे पैदा हो रहे हैं. 1947 के बाद से हर तरह की सुविधाओं से वंचित खानाबदोशों के अधिकारों के लिए वे अभी संघर्ष कर रहे हैं. वे चाहते हैं कि उन्हें नागरिकता मिले, राशन कार्ड दिए जाएं. उनका अपना एक गांव हो और वे आजादी से जी सकें. इस पर हाल में मराठी में उन्होंने एक किताब ‘हे स्वातंत्रे कोणा आचे’ (यह आजादी किसकी है) लिखी है. उनसे हुई मेरी इस अनौपचारिक बातचीत के कुछ अंश तहलकापर भी प्रकाशित हुए हैं. * *पूरा पढ़िए : **जातिवाद को बाजार बरकरार रखेगा और बेचेगा.* * * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100204/6208e55d/attachment.html From beingred at gmail.com Fri Feb 5 16:28:44 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Fri, 5 Feb 2010 16:28:44 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSP4KSVIOCkrQ==?= =?utf-8?b?4KSvLCDgpI/gpJUg4KS54KWM4KSyIOCkquCliOCkpuCkviDgpJXgpLA=?= =?utf-8?b?4KSo4KWHIOCkteCkvuCksuClgCDgpJrgpYHgpKjgpYzgpKTgpYA=?= In-Reply-To: <363092e31002050233n72e4ace0wb6d93d89f4f1f4c5@mail.gmail.com> References: <363092e31002050233n72e4ace0wb6d93d89f4f1f4c5@mail.gmail.com> Message-ID: <363092e31002050258o3edcacf4w734e9f78587af62f@mail.gmail.com> *चुनौती * > विष्णु खरे इस कस्बानुमा शहर की इस सड़क पर सुबह घूमने जाने वाले मध्यमवर्गीय पुरुषों में हरिओम पुकारने की प्रथा है यदी यह लगभग स्वगत और भगवान का लेने की एकान्त विनम्रता से ही कहा जाता तब भी एक बात थी क्योंकि तब ऐसे घूमने वाले जो सुबह हरिओम नहीं कहना चाहते शान्ति से अपने रास्ते पर जा रहे होते लेकिन ये हरिओम पुकारने वाले उसे ऐसी आवाज़ में कहते हैं जैसे कहीं कोई हादसा वारदात या हमला हो गया हो उसमें एक भय एक हौल पैदा करने वाली चुनौती रहती है दूसरों को देख वे उसे अतिरिक्त ज़ोर से उच्चारते हैं उन्हे इस तरह जाँचते हैं कि उसका उसी तरह उत्तर नहीं दोगे तो विरोधी अश्रद्धालु नास्तिक और राष्ट्रद्रोही तक समझे जाओगे इस तरह बाध्य किए जाने पर अक्सर लोग अस्फुट स्वर में या उन्ही की तरह ज़ोर से हरिओम कह देते हैं शायद मज़ाक में भी ऐसा कर देते हों कुछ हरिओम कहलवाने वाले उसे एक ऐसे स्वर में कहते हैं जो पहचाना-सा लगता है एक सुबह उठकर कोठी जाने वाले इस ज़िला मुख्यालय मार्ग पर मैं प्रयोग करना चाहता हूँ कि हरिओम के प्रत्युत्तर में सुपरिचित जैहिन्द कहूँ या महात्मा गाँधी की जय या नेहरु ज़िन्दाबाद या जय भीम अथवा लेनिन अमर रहें -कोई इनमें से जानता भी होगा भीम या लेनिन को?- या अपने इस उकसावे को उसके चरम पर ले जाकर अस्सलाम अलैकुम या अल्लाहु अकबर बोल दूँ तो क्या सहास मतभेद से लेकर दंगे तक की कोई स्थिति पैदा हो जाएगी इतनी सुबह कि इतने में किसी सुदूर मस्जिद का लाउडस्पीकर कुछ खरखराता है और शुरू होती है फ़ज्र की अज़ान और मैं कुछ चौंक कर पहचानता हूँ कि यह मध्यमवर्गीय सवर्ण हरिओम बोला जाता है वह नमाज़क के वज़न पर है बरक्स शायद यह सिद्ध करने का अभ्यास हो रहा है कि मुसलमान से कहीं पहले उठता है हिन्दु ब्राह्म मुहूर्त के आसपास फिर वह जो हरिओम पुकारता है उसी के स्वर अज़ान में छिपे हुए हैं जैसे मस्जिद के नीचे मन्दिर जैसे काबे के नीचे शिवलिंग गूँजती है अज़ान दो-तीन और मस्जिदों के अदृश्य लाउडस्पीकर उसे एक लहराती हुई प्रतिध्वनि बना देते हैं मुल्क में कहाँ-कहाँ पढ़ी जा रही होगी नमाज़ इस वक्त कितने लाख कितने करोड़ जानू झुके होंगे सिजदे में कितने हाथ माँग रहे होंगे दुआ कितने मूक दिलों से उठ रही होगी सदा अल्लाह के अकबर होने की लेकिन क्या हर गाँव-कस्बे-शहर में उसके मुक़ाबिल इतने कम उत्साहियों द्वारा हरिओम जैसा कुछ गुँजाया जाता होगा सन्नाटा छा जाता है कुछ देर के लुए कोठी रोड पर अज़ान के बाद होशियार जानवर हैं कुत्ते वे उस पर नहीं भौंकते फिर जो हरिओम के नारे लगते हैं छिटपुट उनमें और ज़्यादा कोशिश रहती है मुअज़्ज़िनों जैसी लेकिन उसमें एक होड़ एक खीझ एक हताशा-सी लगती है जो एक ज़बर्दस्ती की ज़िद्दी अस्वाभाविक पावनतावादी चेष्टा को एक समान सामूहिक जीवंत आस्था से बाँटती है वैसे भी अब सूरज चढ़ आया है और उनके लौटने का वक्त है लेकिन अभी से ही उनमें जो रंज़ीदगी और थकान सुनता हूँ उससे डर पैदा होता है कि कहीं वे हरिओम कहने को अनिवार्य न बनवा डालें इस सड़क पर और फिर इस शहर में और अंत में इस मुल्क में -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com www.tehelka.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100205/a628ef2e/attachment-0001.html From aboutsandeep123 at gmail.com Sat Feb 6 21:13:12 2010 From: aboutsandeep123 at gmail.com (sandeep pandey) Date: Sat, 6 Feb 2010 21:13:12 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KS/4KS44KSV?= =?utf-8?b?4KS+IOCknOClguCkpOCkviwg4KSV4KS/4KS44KSV4KS+IOCkuOCksC4u?= =?utf-8?q?=2E?= Message-ID: किसका जूता, किसका सर... यह पहली बार नहीं हुआ है और हर बार नजरअंदाज किया गया हैं फर्क सिर्फ यह है कि इस मर्तबा ‘इस बार बार की गलती’ के साथ ऐसी शख्सियत का नाम जुड़ा है जिसे हम गुलजार के नाम से जानते हैं और जो हमारी नजरों में पाकीजा एहसास की तरह दर्ज रहा है। बिल्कुल उनके लिखे गीत की मानिंद हमने उन आंखों की महकती खुशबू देखी है हम उससे मुतासिर भी हुए र्हैं। बहरहाल इस दफा उस खुशबू में संदेह की परत चढ़ गई है। यह शक इतना पुख्ता जान पड़ता है कि उसने यकीन की शक्ल अख्तियार कर ली है। यकीन जो एक शख्सियत के लिए हमारी सिलसिलेवार मुहब्बत को छलनी कर रहा है। अब आप लाख दिलासा दें कि आपके गुलजार यकीनन हिंदी सिनेमा के अकेले चश्मो-चिराग हैं जिसकी रोशनी में हमने अपने गमों की चादर को धोया है लेकिन आज वह रोशनी ध्ब्बे में तब्दील हो गई है। हमारे गमों से ज्यादा उस रोशनी का सच तकलीफदेह लग रहा है। भले ही बहस के दो दालान में बिछी चारपाई कुछ समय बाद दो पैरों पर खड़ी कर दी जाने वाली है मगर यह जिद्दी सवाल तो तब भी जस का तस रहेगा कि एक आलातरीन अदीब ऐसा कैसे कर सकता है। अगर इलाहाबाद के कुछ जागरुक अदीबों ने यह मसला न उठाया होता तो साहित्य के ताबूत में एक कील और ठुक जाती। मार्क ट्वेन ने सच कहा है कि जब सच अपने जूते के तश्मे बांध रहा होता है तब तक झूठ के कदम कई मील दूर जाकर ठहर चुके होते हैं। लेकिन झूठ ने इस बार इब्नेबतूता के जूते पहने थे और जूते खुद अपना राज खोल गए। इब्नेबतूता हैं... उनका जूता है... सर्वेश्वररदयाल सक्सेना हैं और गुलजार हैं। सबकुछ तो धुले आसमान की तरह साफ है। कविता का जो इंद्रधनुष साठ - सत्तर के दशक में रचा गया उसमें रंगों का हेरफेर करके आप मालिकाना हक कैसे जता सकते हैं। गुलजार ने तो सफाई देने की जहमत तक नहीं उठाई वह अपने कद्दावर बुत के भरोसे समूचे आसमान को निगलने की फिराक में थे। गुलजार ने पहले भी गालिब का मतला उठाया था और तब गालिब तो इस कदर लाल-पीले नहीं हुए। जनाब! तब बाकायदा गुलजार ने इस उठाइगीरी की सूचना जाहिर की थी और कौन जाने उन्हें गालिब की लोकप्रियता का इल्म न होता तो शायद ऐसा न करते वे । सर्वेश्वरदयाल जैसे हिंदी के कवि के बारे में गलतफहमी उन्हें भारी पड़ गई। वह अरसा पहले लिखी इस कविता को शिनाख्त से कमतर मानकर चल रहे थे। यदि उन्होंन गीत के बाजार में आने के साथ ही मूल रचनाकार को याद कर लिया होता तो कोई बात ही नहीं थी। गुलजार इतने संजीदा शख्स हैं कि उनसे कोई सफाई देते भी नहीं बन रही। इस संजीदगी को रचना की आत्मा के साथ हेराफेरी के वक्त भी कायम रखा जाना चाहिए थे। इब्नेबतूता आम नाम नहीं है। इस नाम में एक लय है एक ताल है। ग्लैमर की दुनिया इसकी कीमत देती है। गुलजार इसे अपनी आत्मा बेचकर हासिल करना चाहते थे। उन्होंने जो किया उसे आप साहित्यिक बाल टेंपरिंग कह सकते हैं. (प्रभात किरण के इंदौर संस्करण के ६ फरवरी के सम्पादकीय पेज से साभार. लेखक - राहुल ब्रजमोहन ) नोट- मूल लेख को संपादित किया गया है. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100206/0139175b/attachment.html From ravikant at sarai.net Tue Feb 9 15:13:05 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Tue, 09 Feb 2010 15:13:05 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KSw4KS+4KSv?= =?utf-8?b?IOCkruClh+CkgSDgpKbgpL7gpLjgpY3gpKTgpL7gpKgg4KSG4KScIOCkpQ==?= =?utf-8?b?4KWL4KSh4KS84KWAIOCkpuClh+CksCDgpKzgpL7gpKYg4KS54KWI?= Message-ID: <4B712E29.1040908@sarai.net> दोस्तो सराय को हुए दस साल हो रहे हैं. हमने यह जश्न माना कल से ही शुरू कर दिया है. महमूद फ़ारूक़ी और दानिश हुसैन की दास्तान आज ही है, 6 बजे. और 12 तारीख़ को 2 बजे से कई किताबों का लोकार्पण, उनके इर्द-गिर्द बातचीत. ज़रूर आएँ. रविकान्त From reksethi at gmail.com Tue Feb 9 17:39:15 2010 From: reksethi at gmail.com (rekha sethi) Date: Tue, 9 Feb 2010 17:39:15 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= kavita pratiyogita Message-ID: <1c926b7c1002090409y3765d9ew8159a6fcc07e37cb@mail.gmail.com> सभी कवि साथियों के नाम इंदु जैन स्मृति युवा प्रतिभा पुरस्कार के लिए कवितायें आमंत्रित हैं पूरी जानकारी के लिए संलग्न फाइल देखें और जल्द से जल्द कवितायें भेजें रेखा सेठी -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100209/aa679718/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: kavita pratiyogita.pdf Type: application/pdf Size: 17614 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100209/aa679718/attachment-0001.pdf -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: 5.doc Type: application/msword Size: 32256 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100209/aa679718/attachment-0001.doc From vineetdu at gmail.com Wed Feb 10 13:32:05 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Wed, 10 Feb 2010 13:32:05 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Inclusive Media Fellowships for Journalists 2010 Message-ID: <829019b1002100002l18560481mf17cd32642d8c5c4@mail.gmail.com> दीवान के साथियों दिल्ली से दूर बैठे अहमदाबाद के एक साथी के जरिए जानकारी मिली है कि इन्क्लुसिव मीडिया फेलोशिप 2010 को लेकर आवेदन आमंत्रित है। ये फोरम csds से जुड़ा है। 6 सप्ताह के लिए किए जानेवाली पत्रकारिता के लिए 95,000 हजार रुपये और 55,000 हजार रुपये यात्रा और बाकी के खर्चे के लिए दिए जाएंगे। हमलोगों के बीच बहुत ऐसे साथी हैं जो कि मेनस्ट्रीम मीडिया से हटकर सरोकार की पत्रकारिता करना चाहते हैं लेकिन उनके पास साधन नहीं है। ये एक बेहतर मौका है कि वो इतनी रकम में एक बेहतर काम हमारे सामने ला सकेंगे। नीचे की साईट(दिए गए लिंक) में फेलोशिप से जुड़ी तमाम जानकारियां दी हुई है। आप उसे एक नजर पढ़कर 15 फरवरी तक अप्लाय कर सकते हैं। मिलना न मिलना तो बाद की बात होगी,कोशिश करने में क्या जाता है। अगर आपको जरुरत नहीं है तो कोशिश करें कि काबिल लोगों तक इसे प्रेषित करें साइट की लिंक है- http://im4change.org/staticPages.php?pageId=19A विनीत -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100210/c8cf584c/attachment.html From umashankar19mishra at gmail.com Thu Feb 11 11:01:12 2010 From: umashankar19mishra at gmail.com (umashankar mishra) Date: Thu, 11 Feb 2010 11:01:12 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Vacancy: Editor URDU SPAN New Delhi US Embassy Message-ID: Vacancy: Editor URDU SPAN New Delhi US Embassy AMERICAN EMBASSY, NEW DELHI, INDIA VACANCY ANNOUNCEMENT NUMBER: 10 - 010 The U.S. Embassy in New Delhi is seeking an individual for the position of Editor of Urdu Span in the Public Affairs Office. Applicants must apply on Form HR-01 (Application form for Employment) and specify the vacancy announcement number. Applications not completed on Form HR-01, or without reference to a specific vacancy number will not be accepted. Only completed forms will be accepted. (Refer to application procedure below) Only applicants who are selected for the interview will be contacted OPEN TO: All Interested Candidates POSITION: Editor of Urdu Span (Information Assistant), FSN-6105-09, DLA-730029, (Personal Services Agreement) OPENING DATE: February 04, 2010 CLOSING DATE: February 22, 2010 WORK HOURS: Full-time; 40 hours/week SALARY: Not Ordinarily Resident: Grade: FP-05 (Steps 1 through 4) Ordinarily Resident: Grade: FSN-9* *Starting salary and grade will be determined on the basis of qualifications and experience, and/or salary history. NOTE: ALL ORDINARILY RESIDENT APPLICANTS MUST BE RESIDING IN INDIA AND HAVE VALID WORK AND RESIDENCY PERMITS TO BE ELIGIBLE FOR CONSIDERATION (PLEASE ATTACH COPIES OF RELEVANT DOCUMENTATION). APPLICATIONS WITHOUT RELEVANT DOCUMENTATION WILL NOT BE ACCEPTED. BASIC FUNCTION OF POSITION • The Incumbent of this position edits, in consultation with the supervising Editor, the bi-monthly Urdu edition of SPAN magazine and is responsible for selecting and editing articles for Urdu SPAN and writing articles for use in all editions in SPAN. • Translate articles/content and ensures accuracy of contracted translations from English to Urdu. Supervises work of Urdu SPAN Copy Editor. • Responsible for securing new contacts, sources and subject matter for Urdu SPAN articles. • Assist and advise SPAN Editor in planning and paginating contents of magazine. • Serve as principal advisor to SPAN Editor and Assistant Information Office on magazine’s coverage of culture, the media, American trends, and U.S. India relations. • Represent Urdu SPAN at official events and as a guest speaker on panels as required. QUALIFICATIONS REQUIRED 1. Bachelor’s degree in Journalism, Literature, the Humanities, American Studies, International Relations or related fields. 2. Minimum five years of experience in newspaper and/or magazine operations. Three years of experience in translation between Urdu and English is required. The translation work may be included in the five-year related work requirement. 3. Level IV (fluency) in English and Level V (Interpreter) in Urdu. 4. Must have expertise journalism, publication and promotion. Must be experienced in translation, English to Urdu and vice versa. Knowledge of American government, society, culture, politics, economics and institutions. Must possess thorough knowledge of India’s media, government, politics, economics and history of relation with the United States. 5. Must be able to use Inpage and Unicode text on Microsoft Office Word. SELECTION PROCESS Qualified Eligible Family Members and applicants with U.S. Veteran Preference will be given preference. Therefore, it is essential that the candidate address the required qualifications above in the application. ADDITIONAL SELECTION CRITERIA 1. Management will consider nepotism/conflict of interest, budget, and residency status in determining successful candidacy. 2. Current employees serving a probationary period are not eligible to apply. 3. Eligible Family Members who currently hold a FMA appointment are ineligible to apply for advertised positions within the first 90 calendar days of that appointment. TO APPLY Interested applicants for this position should submit the following: 1. Application for Employment, Form HR-01 available on website http://newdelhi.usembassy.gov/job_opportunities.html 2. OPTIONAL: Any other documentation (e.g., essays, certificates, awards, copies of degrees earned) that addresses the qualification requirements of the position as listed above. 3. Candidates who claim U.S. Veterans preference must provide a copy of their Form DD-214 with their application. SUBMIT APPLICATION TO U. S. Embassy Human Resources Office Shantipath, Chanakyapuri New Delhi 110 021 FAX: 2419-8056 Or E-mail: NewDelhiVacancies at State.gov Please insert “VA# 10-010 (Vacancy Announcement Number) in the Subject of the E-mail. Applications without the Vacancy Number or with the incorrect Vacancy Number will not be accepted. DEFINITIONS 1. EFM: US Citizen spouse or US citizen child as referred to in 14 FAM 511.3 (1), who is at least age 18, and who, in either case, is on the travel orders of a US citizen Foreign or Civil service employee or military service member permanently assigned to or stationed at a US Foreign Service post or establishment abroad and under Chief of Mission authority. 2. Member of Household (MOH): Foreign born spouses, dependent children, unmarried partners of the same and opposite sex, parents, other relatives or adult children declared to the Chief of Mission who fall outside the Department’s current legal and statutory definition of EFM. 3. Ordinarily Resident (OR): A citizen of the host country or a citizen of another country who has shifted the main residency focus to the host country and has the required work and/or residency permit for employment in country. 4. Not-Ordinarily Resident (NOR): Typically NORs are US citizen EFMs and family members of FS, GS, and Military Personnel who are on the travel orders and under Chief of Mission authority, or other personnel having diplomatic privileges and immunities. All applications for the Subject announcement must be received in the Human Resources Office by close of business February 22, 2010. Cleared by: PA – LSwenarski Approved by: HRO – CManley -- Umashanakr Mishra Sopan Step room no.406, 49-50, red rose building Nehru place, New Delhi-110019 Ph.9968425219 umashankar19mishra at gmail.com www.ujjas.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100211/c7652aa4/attachment.html From beingred at gmail.com Thu Feb 11 12:33:24 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Thu, 11 Feb 2010 12:33:24 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KS/4KS44KS+?= =?utf-8?b?4KSo4KWL4KSCIOCkleClgCDgpIbgpKTgpY3gpK7gpLngpKTgpY3gpK8=?= =?utf-8?b?4KS+4KSDIOCkj+CklSAxMiDgpLjgpL7gpLIg4KSy4KSC4KSs4KWAIA==?= =?utf-8?b?4KSm4KS+4KSw4KWC4KSjIOCkleCkpeCkvg==?= Message-ID: <363092e31002102303g67ed74faj95164a7f445f42dd@mail.gmail.com> किसानों की आत्महत्याः एक 12 साल लंबी दारूण कथा *कुछ लोगों के लिए किसानी मुनाफे का धंधा हो सकती है, लेकिन देश की बहुसंख्यक आबादी के लिए यह घाटे का सौदा बना दी गई है. न सिर्फ घाटे का सौदा, बल्कि मौत का सौदा भी. और यह सिर्फ इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि खेती से महज कुछ लोगों का मुनाफा सुनिश्चित रहे. यही वजह है कि खेतिहरों के कर्जे की माफी का फायदा भी आम खेतिहरों को नहीं मिला बल्कि बड़े किसानों को मिला. हाशिया पर तभी इसकी आशंका जतायी गयी थी. किसानों की हालिया आत्महत्याओं और इस पूरे सिलसिले पर पी साइनाथ की रिपोर्ट. इसका अनुवाद किया है हमारे साथी मनीष शांडिल्य ने. मूल लेख यहां पढ़ें.* *2006-08* के बीच महाराष्ट्र में 12,493 किसानों ने आत्महत्या की. किसानों की आत्महत्या का यह आंकड़ा 1997-1999 के दौरान दर्ज किये गये आंकड़ों से 85 प्रतिशत अधिक है. 1997-1999 के दौरान 6,745 किसानों ने आत्महत्या की थी. किसी भी राज्य में तीन वर्षों के किसी भी अंतराल में इतनी बड़े पैमाने पर आत्महत्याएं नहीं की गयी थीं. *पूरा पढ़िए : किसानों की आत्महत्याः एक 12 साल लंबी दारूण कथा * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com www.tehelka.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100211/0baab244/attachment-0001.html From ravikant at sarai.net Thu Feb 11 18:49:07 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Thu, 11 Feb 2010 18:49:07 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KSw4KS+4KSv?= =?utf-8?b?IOCkpuCktuCklTogMTIg4KSr4KS84KSw4KS14KSw4KWAIDIg4KSs4KSc4KWH?= =?utf-8?b?IOCkuOClhy4=?= Message-ID: <4B7403CB.6000402@sarai.net> आप जानते हैं कि सराय के दस साल हो गए और हम जश्ने-दशक मना रहे हैं. आप में से कुछ ने उस दिन महमूद और दानिश की शानदार दास्तानगोई और शम्सुर्रहमान फ़ारुक़ी साहब को सुनने का आनंद लिया. सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए कल के कार्यक्रम की तफ़सील कुछ यूँ है: दोपहर 2.00: सराय का परिचय: अवधेन्द्र शरण 2.15: टिंकर.सोल्डर.टैप (भगवती प्रसाद, अमिताभ कुमार कृत कॉमिक बुक) पर बातचीत 3.15: 'सिटी ऐज़ स्टूडियो' का परिचय 4.15: पेंगुइन से आयी किताब 'ट्रिक्स्टर सिटी'('बहुरूपिया शहर' से आप वाक़िफ़ हैं, जो सराय-अंकुर के साझा कार्यक्रम - सायबरमोहल्ला - के लेखकों ने लिखी है -का अंग्रेज़ी तर्जुमा). अनुवाद श्वेता सारदा का है. 5.30: सराय अनुवाद शृंखला की दूसरी पेशकश, 'बेतिलिस्म रात: आधुनिक रोशनी का सफ़र' का लोकार्पण. मूल लेखक: वुल्फ़गैंग शिवेलबुश अंग्रज़ी से अनुवाद: योगेन्द्र दत्त. संपादन: रविकान्त/संजय शर्मा. प्रकाशक: वाणी प्रकाशन : Sarai Reader08: Fear का लोकार्पण 6.30: तीन और किताबों पर चर्चा: : Ravi Vasudevan: The Melodramatic Public: Film Form and Spectatorship in Indian Cinema, : Ravi Sundaram: Pirate Modernity: Media Urbanism in Delhi. : Raqs Media Collective(Monica , Shuddha, Jeebesh) : Seepage. 7.00: Launching BioScope, a journal on film and cultural studies. आख़िर में आशीष नंदी सराय-दशक पर बोलेंगे. तहख़ाने में आपके नयनसुख के लिए प्रदर्शनी भी सजाई गई है. वक़्त निकालकर ज़रूर आएँ. रविकान्त From ravikant at sarai.net Fri Feb 12 12:18:35 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Fri, 12 Feb 2010 12:18:35 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?QlVaWiDgpLLgpJc=?= =?utf-8?b?4KS+4KSP4KSX4KS+IOCkq+Clh+CkuOCkrOClgeCklSDgpJTgpLAg4KSf4KWN?= =?utf-8?b?4KS14KS/4KSf4KSwIOCkleClgCDgpKzgpL7gpJ8=?= Message-ID: <4B74F9C3.5000609@sarai.net> ** vineet ye lo forward kar raha hun. ravikant Friday, February 12, 2010 अगर आप दो दिनों से जीमेल खोल रहे हैं तो देख पा रहे होंगे कि इनबॉक्स के ठीक नीचे एक छुटपन में खेले गए चार रंगों वाला गेंद आ रहा होता है। इस पर क्लिक करते हुए ये फटा हुआ गेंद हो जाता है जिससे हवा नहीं शब्द और अभिव्यक्ति निकलते हैं। ये गेंद दरअसल फेसबुक और ट्विटर के अखाड़े में उतरकर इसकी बाट लगाने की तैयारी में है। इन दोनों सोशल साइटों से गूगल को अच्छा-खासा नुकसान होता आया है। हिन्दुस्तान में ट्विटर तो कम लेकिन फेसबुक की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है। मोबाईल कंपनियों ने तो बाकायदा इसके लिए विज्ञापन करने शुरु कर दिए हैं। अपने विज्ञापनों में तमाम सुविधाओं के साथ मोबाईल स्क्रीन पर फेसबुक को भी शामिल करते हैं। व्यक्तिगत तौर पर भी महसूस करें तो फेसबुक के आने से गूगल की सोशल साइट ऑर्कुट पर हम जैसे लोगों की गतिविधियां पहले के मुकाबले बहुत ही कम रह गयी है। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि शुरु से फेसबुक की ब्रांड इमेज एक इलीट क्लास की सोशल साइट के तौर पर बनी जबकि ऑर्कुट कहने से ही टाइमपास या खलिहर लोगों की साइट होने का आभास होता रहा। इसे लेकर एक देसी मुहावरा भी चल निकला- इस देश में दो लोगों की संख्या बहुत परेशान करती है-एक आर्कुट लोगों की और दूसरा चिरकुट लोगों की। आर्कुट की ब्रांड इमेज का नुकसान बाद में आनेवाली सोशल साइटों के आने से साफ तौर पर दिखने लगा। यानी साइबर स्पेस की दुनिया में गूगल के लिए ये एक कोना ऐसा बनने लग गया जहां कि उसे किसी ने शिकस्त देने का काम किया। लेकिन गूगल अपने को हारा हुआ मान ले,भला ये कैसे संभव है? इसलिए उसने 'BUZZ'नाम से एक ऐसी सेवा शुरु की जिसमें कि फेसबुक और ट्विटर दोनों का मजा मिल सके। मुहावरे की भाषा में कहें तो एक दोने में तेरह स्वाद। अब देखिए। जीमेल पर स्टेटस तो हमलोग पहले भी लिखते आए हैं। मैं जब शुरु-शुरु साइवर की दुनिया से जुड़ा और जीमेल फ्रैंडली हुआ तो देखा कि लोग स्टेटस के नाम पर किसी महान रचनाकार, चिंतक,कलाकार या हस्तियों के कथन डाला करते थे। जिसे पढ़ते हुए आपको बंदे के सरोकार का एहसास हो। आपको अंदाजा लग जाए कि उसकी पढ़ने-लिखने की रुचि किस तरह की है? बाद में लोगों ने इसे अपने ब्लॉग की हिट्स बढ़ाने के तौर पर इस्तेमाल करना शुरु किया। हम जैसे लोग आज भी इसके लिए बदस्तूर लगे हुए हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कि व्यक्तिगत रचनाओं से उपर उठकर दूसरे की रचनाओं और साइटों के लिंक डाले रहते हैं। एक तीसरी स्थिति ये भी है जिसका कि मैं सबसे ज्यादा इस्तेमाल करता हूं वो ये कि जितनी देर ऑनलाइन रहता हूं उतनी देर मूड और स्थिति के हिसाब से स्टेटस बदल देता हूं। मसलन पढ़ते हुए लिखता हूं- मत छेड़ो प्लीज। इसी बीच बारिश होने लग गयी तो- कॉफी पीने आ जाओ न प्लीज। वो मना करती है,मैं तो चला खाने,उसने कहा,जल्दी क्या है? इस तरह से जब भी मैं लिखता हूं तो साथ में जो लोग ऑनलाइन होते हैं अक्सर पोक करके पूछते हैं-किसके बारे में लिखा है,किसने मना कर दिया,कौन कहता/कहती है जल्दी क्या है जैसे सवाल करते हैं? कई बार रहा नहीं जाता तो फोन करके पूछते हैं,अरे किसे कॉफी पर बुला रहे हो? लेकिन ये सबकुछ 'इन्टरपर्सनल टॉक'का हिस्सा बनकर रह जाता। इसमें बाकी के लोग शेयर नहीं कर पाते। बड़ी ही व्यक्तिगत किस्म की बात बनकर रह जाती है ये सारी चीजें। फेसबुक और ट्विटर यहीं पर अपनी धाक जमाता चला गया है। मुझे लगता है कि गूगल ने इन सारी बातों को गंभीरता से समझा है और खासकर इन दोनों सोशल साइटों को बाट लगाने के मूड में आ गया। 'BUZZ' इसी का नतीजा है। अब देखिए,आप जीमेल पर काम करते रहिए। आप देखेंगे कि आपके लिखे स्टेटस पर कमेंट्स आ गए। हिन्दी समाज की बुनियादी विशेषता आपके स्टेटस से जुड़ती चली जाएगी कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी टाइप की। इसमें फेसबुक की तरह अलग से ब्राउसर खोलने की भी जरुरत नहीं। ये साइवेर स्पेस की हमारी कई तरह की गतिविधियों को एक जगह पर एसेम्बल कर देता है। अभी तो जुम्मा-जुम्मा तीन-चार ही दिन हुए हैं,मुझे लगता है कि आनेवाले समय में इसमें और भी कई सुविधाएं जुड़ जाएगी।..और फेसबुक औऱ ट्विटर तरीके से आमलोगों के बीच पॉपुलर हो इसके पहले ही 'BUZZ'अपने पैर पसार लेगा। इन तमाम तरह की अटकलों को लेकर हमारी चैट लिस्ट में जो लोग शामिल हैं उनके बीच विमर्श का दौर शुरु हो गया है। दिलीप मंडल के हिसाब से फेसबुक को ये गूगल का जवाब है। बढ़िया तो है, लेकिन किसी एक प्लेयर का इतना ताकतवर होना खतरनाक भी हो सकता है। मजेदार रहेगी ये भिड़ंत। वहीं अविनाश का सवाल है कि-कोई भी ऐसी नयी चीज़ आती है,तो लोग कविताएं पढ़ाना क्‍यों शुरू कर देते हैं? इस पर सुशांत झा की राय है कि-हमारे तमाम कवि आलोचकों के वार से लहूलुहान हो चुके हैं...मजे की बात ये है कि आलोचकों के गिरोह को इंटरनेट ऑपरेट करना नहीं आता...इसलिए कविता यहां आ गई है। 'BUZZ'को लेकर राय देने का सिलसिला जारी है। अभी मामला वही है- जितने मुंह उतनी बातें। कुछ और कमेंट आने दीजिए,कुछ और लोगों को इस विमर्श में शामिल होने दें तब विस्तार से इसकी चर्चा की जाएगी। फिलहाल इस बज को आप भी आजमाइए और बजबजाते हुए इस समाज में कुछ बचाने के लिए ये काम आएगा इस पर विचार कीजिए।.. Posted by विनीत कुमार at 10:56 AM Labels: BUZZ , CYBER JOURNALISM , CYBERSPACE , facebook , TWITTER 1 comments: Raviratlami said... बज को जुम्मा जुम्मा दो दिन हुए हैं और इसमें 90 लाख पोस्टें-टिप्पणियाँ हो गईं. 1लाख 60 हजार पोस्टें-टिप्पणियाँ प्रतिघंटे की दर से और ये एक्सपोनेंशियली बढ़ता जा रहा है. बज में देखते रहिए, कयास है कि गेम, गीत संगीत, वीडियो सब आने वाला है! February 12, 2010 11:56 AM -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100212/445bf7c1/attachment-0001.html -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: buzz-facebook.jpg Type: image/jpeg Size: 10625 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100212/445bf7c1/attachment-0001.jpg -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: icon18_email.gif Type: image/gif Size: 164 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100212/445bf7c1/attachment-0002.gif -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: icon18_edit_allbkg.gif Type: image/gif Size: 162 bytes Desc: not available Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100212/445bf7c1/attachment-0003.gif -------------- next part -------------- A non-text attachment was scrubbed... Name: raviratlami.JPG Type: image/jpeg Size: 1363 bytes Desc: http://3.bp.blogspot.com/_t-eJZb6SGWU/Sao3E_cXJnI/AAAAAAAAF3o/pRVtge-7rQE/S45/raviratlami.JPG Url : http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100212/445bf7c1/attachment-0001.jpe From chauhan.vijender at gmail.com Fri Feb 12 13:14:41 2010 From: chauhan.vijender at gmail.com (Vijender chauhan) Date: Fri, 12 Feb 2010 13:14:41 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS54KSwIOCkmA==?= =?utf-8?b?4KWH4KSf4KWLIOCkluClgeCkpiDgpLbgpLngpLAg4KSq4KSwIOCkjw==?= =?utf-8?b?4KSVIOCkuOCkteCkvuCksiDgpLngpYg=?= Message-ID: <8bdde4541002112344j5a0354beg7f9eaf8ce7b3e476@mail.gmail.com> *हर घेटो खुद शहर पर एक सवाल है * हिन्‍दी के मानूश हैं पर गणित से मो‍हब्‍बत रही है इतनी कि पहले भी कहीं कह चुके हैं कि गणित की याद उस प्रेमिका की तरह टीस देती है जिससे विवाह न हो पाया हो (कोई ये न माने कि हिन्‍दी से चल रहे गृहस्थिक प्रेम में हमें कोई असंतुष्टि है :) पर पुराने प्रेम की टीस इससे कम थोड़े ही होती है) खैर गणित में जब कोई सवाल अटक जाता था तो बस वो अटक जाता था और जितना सर भिडा़ओ हल न होकर देता था ..जल्द ही समझ आ गया कि ऐसे में कापी बंद कर घूमने चल देना चाहिए वापस आने तक सवाल का हल या अब तक की कोशिशों की गलती सूझ चुकी होती थी। जब पिछले दिनों तमाम कोशिशों के बावजूद छत्‍तीसगढ़ के ब्‍लॉगर साथियों की खुद से नाराजगी पकड़ में न आई तो हम कापी बंद कर इधर उधर टहलने निकल पड़े। इधर यानि अपने ही ब्‍लॉग पर अपने ही ब्‍लॉग पर दो साल पहले जनवरी 2008 की एक पोस्‍ट और उधर यानि कल मित्र बिल्‍लौरे के ब्‍लॉग पर अनूप के साक्षात्‍कार ... इन दोनों पोस्‍टों में ही हमें इस फिनामिना को और बेहतर समझने के सूत्र दिखे। जब हम ब्‍लॉगस्‍पेस को समझना चाहते हैं तो पब्लिक स्‍पेस की शब्‍दावली में ही समझना होगा। इसलिए अगर किसी शहर में घेटो तैयार हों तो इसके लिए खुद घेटो को या उसके बाशिंदो को दोष देना उनके खड़े होने की प्रक्रिया के प्रति उदासीनता को ही दर्शाता है। दिल्‍ली के ओखला या जाफराबाद में लोग घेटो इसलिए नहीं बसाते कि उन्‍हें असुविधाएं पसंद हैं या तंग गलियों में रहना उन्‍हें अच्‍छा लगता है वरन इसलिए कि बाकी शहर उनके प्रति या तो उदासीन हैं या उनकी उपेक्षा कर रहा है। *'घेटो' के घेटो होने में अपरिचित जगह में अपने जैसों को इकट्ठा कर अपनी असुरक्षाओं से कोप करने का भाव होता है। जो पूरे शहर में डरा डरा सा घूमता है क्‍योंकि वह वहॉं खुद को अजनबी सा पाता है, अल्‍पसंख्‍यक पाता है या शक की निगाह में पाता है वह जैसे ही अपनी बस्‍ती में आता है जो उसने बसाई ही है 'अपने जैसों' की वहॉं वह फैलता है कुछ ज्‍यादा ही फैलता है- गैर आनुपातिक होकर। पहली पीढ़ी के प्रवासी महानगर की सुखद एनानिमिटी के आदी नहीं होते और उससे बचकर भागते हैं और वह छोटी सी बस्ती ही उन्‍हें सुकून देती है जहॉं एनानिमिटी की जगह 'पहचान' की गुजाइश होती है इस तरह महानगर में घेटो बसते हैं- ओखला, तैयार होता है, जाफराबाद, बल्‍लीमारान और मुखर्जीनगर।* ये सही है कि ये प्रवृत्ति मूलत: फिजीकल स्पेस की है तथा इसे वर्च्‍युअल पर सीधे सीधे लागू करने के अपने जोखिम हैं। पर ये घालमेल हम हिन्‍दी ब्‍लॉगजगत में होता ही रहा है एक बार फिर सही। अगर छत्‍तीसगढ़ या किसी और क्षेत्र या समूह के ब्‍लॉगर इस पूरे ब्‍लॉगशहर को पूरा अपना न मानकर अपनी बस्‍ती बसाना चाहते हैं तो इसे कानूनी नुक्‍तेनजर से समझने की कोशिश इस एलियनेशन को और बढ़ाएगी ही इसलिए जरूरी है इसे पूरे ब्‍लॉग शहर की असफलता के रूप में देखे जो कुछ साथियों में इस एलियनेशन के पनपने को रोक नहीं पाई। गणित के उस बेहद उलझे सवाल के साथ सुविधा ये होती थी कि किताब के आखिर में दिए हल से मिलाने पर पता चल जाता था कि हमारा हल ठीक हे कि नहीं। काश ऐसी कोई सुविधा यहॉं भी होती -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100212/a83aaa7b/attachment.html From ravikant at sarai.net Sat Feb 13 19:52:14 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Sat, 13 Feb 2010 19:52:14 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS54KS/4KSo4KWN?= =?utf-8?b?4KSm4KWAIOCkuOCkruCkrzog4KSP4KSVIOCklOCksCDgpIbgpK3gpL7gpLg=?= =?utf-8?b?4KWAIOCkl+CljeCksOCkguCkpeCkvuCkl+CkvuCksA==?= Message-ID: <4B76B596.2060003@sarai.net> दीवान के पाठक सीडैक की ऐसी छिट-पुट कोशिशों, और कविताकोश की संगठित मुहिम से वाक़िफ़ हैं. ख़ुशख़बरी है कि एक और विश्वविद्यालय ने साहित्य का नेटीय ज़ख़ीरा बनाने की पहल शुरू कर दी है. आग़ाज़ अच्छा लगता है, उम्मीद है साज-सँवार सुधरेगा, और बहुत सारे लोग इसका फ़ायदा उठा पाएँगे. फ़िलहाल कुछ ई-किताबें हैं, कुछ कहानियाँ, निराला के कुछ पत्र, हरिशंकर परसाई के कुछ मशहूर व्यंग्य, अनुवाद में गुरुदेव टैगोर की कई रचनाएँ, आलोचना में रामचन्द्र शुक्ल की ग्रंथावली, और भी बहुत कुछ. देखें: *सं** लेखक ** 3686 रचना एँ http://hindisamay.com/*//*ा * * 103 लेखक ** 3686 रचना एँ * मनीषा कुलश्रेष्ठ का शुक्रिया जिन्होंने हमें ये सूचना भेजी. नीचे मैं लेखकों से अपील की भी नक़ल-चेपी कर रहा हूँ. रविकान्त महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से एक अपेक्षा यह भी की जाती है कि वह हिंदी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा बनने के लिए आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराए। यह तभी संभव हो सकता है जब हिंदी न सिर्फ गंभीर विमर्श का माध्यम बने बल्कि हिंदी में लिखा गया महत्वपूर्ण साहित्य अंतरराष्ट्रीय पाठक समुदाय तक पहुंचे। विश्वविद्यालय पिछले कुछ वर्षों से ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों में शिक्षा और अनुसंधान के अतिरिक्त स्तरीय पुस्तकें प्रकाशित करने का काम भी कर रहा है। इसी क्रम में हमने यह निर्णय लिया है कि हिंदी में जो कुछ महत्वपूर्ण लिखा गया है, उसे अगले कुछ वर्षों में *हिंदी समय डॉट कॉम * के जरिये दुनिया भर में फैले गंभीर पाठकों, शोधार्थियों और साहित्य प्रेमियों को उपलब्ध कराया जाए। *लेखकों से अनुरोध* हिंदी समय डॉट कॉम के जरिये हमारा यह प्रयास है कि भारतेन्दु काल से लेकर हिन्दी की अब तक की महत्वपूर्ण व लोकप्रिय पुस्तकों को हम इंटरनेट पर प्रकाशित कर पाठकों व पुस्तकों के बीच की दूरी पाट सकें। इस प्रयास के तहत हम पुस्तकों से विमुख होती युवा पीढी क़ो फिर पुस्तकों की तरफ आकर्षित कर पाने में समर्थ हों सकेंगे। इससे पुस्तकों की लोकप्रियता बढेग़ी ही। हिंदी के सभी प्रतिष्ठित *लेखकों से अनुरोध* है कि वे महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा की वेबसाइट * हिंदी समय डॉट कॉम * के लिए अपनी पुस्तकें उपलब्ध कराएं । लेखकों से हमारा अनुरोध है कि अपने कहानी संग्रह, उपन्यास, नाटक, निबंध संकलन, रिपोर्ताज, संस्मरण व आत्मकथाओं की सीडी हमें उपलब्ध करवाएं साथ ही हिंदी समय डॉट कॉम के नाम अपना सहमति पत्र भी भिजवाएं। From ravikant at sarai.net Sun Feb 14 13:46:24 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Sun, 14 Feb 2010 13:46:24 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSu4KS+4KSvIA==?= =?utf-8?b?4KSo4KWH4KSuIOCkh+CknOCkvCDgpJbgpLzgpL7gpKgg4KSq4KWHIOCksA==?= =?utf-8?b?4KS14KWA4KS2IOCkleClgeCkruCkvuCksA==?= Message-ID: <4B77B158.7020106@sarai.net> * *http://newdelhifilmsociety.blogspot.com/ aur http://naisadak.blogspot.com/ se sabhar. अब मत कहना ख़ान का मतलब...मुसलमान *- रवीश कुमार* माय नेम इज़ ख़ान हिन्दी की पहली अंतर्राष्ट्रीय फिल्म है। हिन्दुस्तान,इराक,अफ़गानिस्तान,जार्जिया का तूफान और अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव। कई मुल्क और कई कथाओं के बीच मुस्लिम आत्मविश्वास और यकीन की नई कहानी है। पहचान के सवालों से टकराती यह फिल्म अपने संदर्भ और समाज के भीतर से ही जवाब ढूंढती है। किसी किस्म का विद्रोह नहीं है,उलाहना नहीं है बल्कि एक जगह से रिश्ता टूटता है तो उसी समय और उसी मुल्क के दूसरे हिस्से में एक नया रिश्ता बनता है। विश्वास कभी कमज़ोर नहीं होता। ऐसी कहानी शाहरूख जैसा कद्दावर स्टार ही कह सकता था। पात्र से सहानुभूति बनी रहे इसलिए वो एक किस्म की बीमारी का शिकार बना है। मकसद है खुद बीमार बन कर समाज की बीमारी से लड़ना। मुझे किसी मुस्लिम पात्र और नायक के इस यकीन और आत्मविश्वास का कई सालों से इंतज़ार था। राम मंदिर जैसे राष्ट्रीय सांप्रदायिक आंदोलन के बहाने हिन्दुस्तान में मुस्लिम पहचान पर जब प्रहार किया गया और मुस्लिम तुष्टीकरण के बहाने सभी दलों ने उन्हें छोड़ दिया,तब से हिन्दुस्तान का मुसलमान अपने आत्मविश्वास का रास्ता ढूंढने में जुट गया। अपनी रिपोर्टिंग और स्पेशल रिपोर्ट के दौरान मेरठ, देवबंद, अलीगढ़, मुंबई, दिल्ली और गुजरात के मुसलमानों की ऐसी बहुत सी कथा देखी और लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की। जिसमें मुसलमान तुष्टीकरण और मदरसे के आधुनिकीकरण जैसे फालतू के विवादों से अलग होकर समय के हिसाब से ढलने लगा और आने वाले समय का सामना करने की तैयारी में शामिल हो गया। नुक़्ते के साथ ख़ान का तलफ्फ़ुज़ कैसे करें इस पर ज़ोर देकर बताता है कि आप मुसलमानों के बारे में कितना कम जानते हैं। मुझे आज भी वो दृश्य नहीं भूलता। अहमदाबाद के पास मेहसाणां में अमेरिका के देत्राएत से आए करोड़पति डॉक्टर नकादर। टक्सिडो सूट में। एक खूबसूरत बुज़ूर्ग मुसलमान। गांव में करोड़ों रुपये का स्कूल बना दिया। मुस्लिम बच्चों के लिए। लेकिन पढ़ाने वाले सभी मज़हब के शिक्षक लिए गए। नकादर ने कहा था कि मैं मुसलमानों की एक ऐसी पीढ़ी बनाना चाहता हूं जो पहचान पर उठने वाले सवालों के दौर में खुद आंख से आंख मिलाकर दूसरे समाजों से बात कर सकें। किसी और को ज़रिया न बनाए। इसके लिए उनके स्कूल के मुस्लिम बच्चे हर सोमवार को हिन्दू इलाके में सफाई का काम करते हैं। ऐसा इसलिए कि शुरू से ही उनका विश्वास बना रहे। कोशिश होती है कि हर मुस्लिम छात्र का एक दोस्त हिन्दू हो। स्कूल में हिन्दू छात्रों को भी पढ़ने की इजाज़त है। नकादर साहब से कारण पूछा था। जवाब मिला कि कब तक हमारी वकालत दूसरे करेंगे। कब तक हम कांग्रेस या किसी सेकुलर के भरोसे अपनी बेगुनाही का सबूत देंगे। आज गुजरात में कांग्रेस हिन्दू सांप्रदायिक शक्तियों के भय से मुसलमानों को टिकट नहीं देती है। हम किसी को अपनी बेगुनाही का सबूत नहीं देना चाहते। हम चाहते हैं कि मुस्लिम पीढ़ी दूसरे समाज से अपने स्तर पर रिश्ते बनाए और उसे खुद संभाले। बीते कुछ सालों की यह मेरी प्रिय सत्य कथाओं में से एक है। लेकिन ऐसी बहुत सी कहानियों से गुज़रता चला गया जहां मुस्लिम समाज के लोग तालीम को बढ़ावा देने के लिए तमाम कोशिशें करते नज़र आए। उन्होंने मोदी के गुजरात में किसी कांग्रेस का इंतज़ार छोड़ दिया। मुस्लिम बच्चों के लिए स्कूल बनाने लगे। रोना छोड़कर आने वाले कल की हंसी के लिए जुट गए। माइ नेम इज खान में मुझे नकादर और ऐसे तमाम लोगों की कोशिशें कामयाब होती नज़र आईं, जो आत्मविश्वास से भरा मुस्लिम मध्यमवर्ग ढूंढ रहे थे। फिल्म देखते वक्त समझ में आया कि इस कथा को पर्दे पर आने में इतना वक्त क्यों लगा। खुदा के लिए,आमिर और वेडनेसडे आकर चली गईं। इसके बाद भी ये फिल्म क्यों आई। ये तीनों फिल्में इंतकाम और सफाई की बुनियाद पर बनी हैं। इन फिल्मों के भीतर आतंकवाद के दौर में पहचान के सवालों से जूझ रहे मुसलमानों की झिझक,खीझ और बेचैनी थी। माइ नेम इज ख़ान में ये तीनों नहीं हैं। शाहरूख़ ख़ान आज के मुसलमानों के आत्मविश्वास का प्रतीक है। उसका किरदार रिज़वान ख़ान सफाई नहीं देता। पलटकर सवाल करता है। आंख में आंख डालकर और उंगलियां दिखाकर पूछता है। इसलिए यह फिल्म पिछले बीस सालों में पहचान के सवाल को लेकर बनी हिन्दी फिल्मों में काफी बड़ी है। अंग्रेज़ी में भी शायद ऐसी फिल्म नहीं बनी होगी। इस फिल्म में मुसलमानों के अल्पसंख्यक होने की लाचारी भी नहीं है और न हीं उनकी पहचान को चुनौती देने वाले नरेंद्र मोदी जैसे फालतू के नेताओं की मौजूदगी है। यह फिल्म दुनिया के स्तर पर और दुनिया के किरदार-कथाओं से बनती है। हिन्दुस्तान की ज़मीं पर दंगे की घटना को जल्दी में छू कर गुज़र जाती है। यह बताने के लिए कि मुसलमान हिन्दुस्तान में जूझ तो रहा ही है लेकिन वो अब उन जगहों में भेद भाव को लेकर बेचैन है जिनसे वो अपने मध्यमवर्गीय सपनों को साकार करने की उम्मीद पालता है। अमेरिका से भी नफरत नहीं करती है यह फिल्म। माय नेम इज़ ख़ान की कथा में सिर्फ मुस्लिम हाशिये पर नहीं है। यह कथा सिर्फ मुसलमानों की नहीं है। इसलिए इसमें एक सरदार रिपोर्टंर बॉबी आहूजा है। इसलिए इसमें मोटल का मालिक गुजराती है। इसलिए इसमें जार्जिया के ब्लैक हैं। अमेरिका में आए तूफानों में मदद करने वाले ब्लैक को भूल गए। लेकिन माइ नेम इज़ ख़ान का यह किरदार किसी इत्तफाक से जार्जिया नहीं पहुंचता। जब बहुसंख्यक समाज उसे ठुकराता है,उससे सवाल करता है तो वो बेचैनी में अमेरिका के हाशिये के समाज से जाकर जुड़ता है। तूफान के वक्त रिज़वान उनकी मदद करता है। उसके पीछे बहुत सारे लोग मदद लेकर पहुंचते हैं। फिल्म की कहानी अमेरिका के समाज के अंतर्विरोध और त्रासदी को उभारती है और चुपचाप बताती है कि हाशिये का दर्द हाशिये वाला ही समझता है। इराक जंग में मंदिरा के अमेरिकी दोस्त की मौत हो जाती है। उसका बेटा मुसलमानों को कसूरवार मानता है। उसकी व्यक्तिगत त्रासदी उस सामूहिक पूर्वाग्रह में पनाह मांगती है जो एक दिन अपने दोस्त समीर की जान ले बैठती है। इधर व्यक्तिगत त्रासदी के बाद भी रिज़वान कट्टरपंथियों के हाथ नहीं खेलता। मस्जिद में हज़रत इब्राहिम का प्रसंग काफी रोचक है। यह उन कट्टरपंथी मुसलमानों के लिए है जो यथार्थ के किसी अन्याय के बहाने आतंकवाद के समर्थन में दलीलें पेश करते हैं। रिज़वान उन्हें पकड़वाने की कोशिश करता है। वो कुरआन शरीफ से हराता है फिर एफबीआई की मदद मांगता है। घटना और किरदार अमेरिका के हैं लेकिन असर हिन्दुस्तान के दर्शकों में हो रहा था। जार्ज बुश और बराक हुसैन ओबामा के बीच के समय की कहानी है। ओबामा मंच पर आते हैं और नई उम्मीद का संदेश देते हैं। यहीं पर फिल्म अमेरिका का प्रोपेगैंडा करती नज़र आती है। मेरी नज़र से इस फिल्म का यही एक कमज़ोर क्षण है। बराक हुसैन ओबामा रिज़वान से मिल लेते हैं। वैसे ही जैसे काहिरा में जाकर अस्सलाम वलैकुम बोलकर दिल जीतने की कोशिश करते हैं लेकिन पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर उनकी कोई साफ नीति नहीं बन पाती। याद कीजिए ओबामा के हाल के भाषण को जिसमें वो युद्ध को न्यायसंगत बताते हैं और कहते हैं कि मैं गांधी का अनुयायी हूं लेकिन गांधी नहीं बन सकता। इसके बाद भी यह हमारे समय की एक बड़ी फिल्म है। हॉल में दर्शकों को रोते देखा तो उनकी आंखों से संघ परिवार और सांप्रदायिक दलों की सोच को बहते हुए भी देखा। जो सालों तक हिन्दू मुस्लिम का खेल खेलते रहे। मुंबई में इसकी आखिरी लड़ाई लड़ी गई। कम से कम आज तक तो यही लगता है। एक फिल्म से दुनिया नहीं बदल जाती है। लेकिन एक नज़ीर तो बनती ही है। जब भी ऐसे सवाल उठाये जायेंगे कोई कऱण जौहर,कोई शाहरूख के पास मौका होगा एक और माइ नेम इज़ ख़ान बनाने का। फिल्म देखने के बाद समझ में आया कि क्यों शाहरूख़ ख़ान ने शिवसेना के आगे घुटने नहीं टेके। अगर शाहरूख़ माफी मांग लेते तो फिल्म की कहानी हार जाती है। ऐसा करके शाहरूख खुद ही फिल्म की कहानी का गला घोंट देते। शाहरूख़ ऐसा कर भी नहीं सकते थे। उनकी अपनी निजी ज़िंदगी भी तो इस फिल्म की कहानी का हिस्सा है। हिन्दुस्तान में तैयार हो रही नई मध्यमवर्गीय मुस्लिम पीढ़ी की आवाज़ बनने के लिए शाहरूख़ का शुक्रिया। From beingred at gmail.com Mon Feb 15 22:36:25 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Mon, 15 Feb 2010 22:36:25 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSq4KWN4KSw4KWL?= =?utf-8?b?4KSq4KWH4KSX4KWH4KSC4KSh4KS+LCDgpKzgpL/gpJXgpYAg4KS54KWB?= =?utf-8?b?4KSIIOCkluCkrOCksOClh+Ckgiwg4KSu4KWA4KSh4KS/4KSv4KS+4KSD?= =?utf-8?b?IOCkj+CklSDgpIXgpKbgpYPgpLbgpY3gpK8g4KS44KSk4KWN4KSk4KS+?= Message-ID: <363092e31002150906r6b869692wd660ad9a0dec2cc2@mail.gmail.com> प्रोपेगेंडा, बिकी हुई खबरें, मीडियाः एक अदृश्य सत्ता *हमारे समय में चेतना की धार को कुंद करने वाले शब्दों को उसके सही और वास्तविक मायनों में व्याख्यायित करने वाले प्रख्यात पत्रकार जॉन पिल्गर ने यह व्याख्यानशिकागो में पिछली जुलाई में दिया था। इस व्याख्यान में वे विस्तार से बताते हैं कि कैसे प्रोपेगेण्डा हमारे जीवन की दिशा को प्रबलता से प्रभावित कर रहा है। इतना ही नहीं प्रोपेगेण्डा आज एक अद्रृश्य सत्ता का भी प्रतिनिधित्व करता है। अनिल का अनुवाद.इसे हमारे समय में बिकी हुई खबरों पर चली बहस के संदर्भ में पढ़िए और सोचिए कि हमारे देश में इसका प्रतिरोध कितना नाकाफी और वैचारिक रूप से कितना अधूरा है. * इस बातचीत का शीर्षक है आज़ादी; अगली बार, जो कि मेरी पुस्तक का भी शीर्षक है और यह पुस्तक पत्रकारिता का भेष धर कर किए जाने वाले दुष्प्रचार अभियान अर्थात प्रोपेगेंडा की असलियत तथा इससे रोकथाम के बारे में है। अतः मैने सोचा कि आज मुझे पत्रकारिता के बारे में, पत्रकारिता द्वारा युद्ध के बारे में, प्रोपेगेंडा और चुप्पी तथा इस चुप्पी को तोड़ने के बारे में बात करनी चाहिए। जनसंपर्क के तथाकथित जनक एडवर्ड बर्न्स ने एक अदृश्य सरकार के बारे में लिखा है जो हमारे देश में शासन करने वाली वास्तविक सत्ता होती है. वे पत्रकारिता, मीडिया को संबोधित कर रहे थे। यह क़रीब अस्सी साल पहले की बात है, जबकि कार्पोरेट पत्रकारिता की खोज हुए ज्यादा लंबा समय नहीं हुआ था। यह एक इतिहास है जिसके बारे में कुछ पत्रकार बताते हैं या जानते हैं और इसकी शुरुआत कार्पोरेट विज्ञापन के उद्‍भव से हुई। जब कुछ निगमों ने प्रेस का अधिग्रहण करना शुरू कर दिया तो कुछ लोग जिसे "पेशेवर पत्रकारिता" कहते हैं, उसकी खोज हुई। बडे़ विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करने के लिए नए कारपोरेट प्रेस को सर्वमान्य, स्थापित सत्ताओं का स्तंभ- वस्तुनिष्ठ, निष्पक्ष तथा संतुलित दिखना था। पत्रकारिता का पहला स्कूल खोला गया और पेशेवर पत्रकारों के बीच उदारवादी निरपेक्षता के मिथकशास्त्रों की घुट्टियां पिलाई जाने लगीं। अभिव्यक्‍ति की आज़ादी के अधिकार को नई मीडिया तथा बडे़ निगमों के साथ जोड़ दिया गया और यह सब, जैसा कि राबर्ट मैक्चेसनी ने कहा है कि 'पूरी तरह से बकवास' है। *पूरा पढ़िएः प्रोपेगेंडा, बिकी हुई खबरें, मीडियाः एक अदृश्य सत्ता * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com www.tehelka.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100215/beb9f7eb/attachment.html From beingred at gmail.com Wed Feb 17 13:48:21 2010 From: beingred at gmail.com (reyaz-ul-haque) Date: Wed, 17 Feb 2010 13:48:21 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSG4KSm4KS/4KS1?= =?utf-8?b?4KS+4KS44KS/4KSv4KWL4KSCIOCkleCkviDgpLbgpL/gpJXgpL7gpLAg?= =?utf-8?b?4KSs4KSC4KSmIOCkleCksOClhyDgpLjgpLDgpJXgpL7gpLA=?= Message-ID: <363092e31002170018j15123db7m451206a2c91c32ba@mail.gmail.com> आदिवासियों का शिकार बंद करे सरकार *भारत के किसी अखबार का शायद यह पहला संपादकीय है, जिसमें साफ-साफ शब्दों में सरकार से ऑपरेशन ग्रीन हंट को रोके जाने की मांग की गई है और माओवादियों से एक ईमानदार बातचीत शुरू करने का आह्वान किया गया है. डेक्कन हेराल्ड के इस संपादकीय को पढ़वाने के लिए भाई दिलीप मंडल का आभार. पेश है हाशिया पर इसका मेरे द्वारा किया गया अनुवाद.* *माओवादियों से बातचीत के प्रस्ताव में ईमानदारी होनी चाहिए* गृह मंत्री पी चिदंबरम द्वारा पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, झारखंड और बिहार के अधिकारियों के साथ माओवादियों के खिलाफ एक अंतरराज्यीय सुरक्षा अभियान शुरू करने के बारे में की गई बैठक के एक हफ्ते के भीतर ही माओवादियों ने यह साफ संदेश दे दिया है कि सरकार के ऐसे अभियानों का क्या नतीजा होनेवाला है. उन्होंने प बंगाल के मेदिनीपुर जिले में संयुक्त बलों के एक कैंप पर हमला किया और 24 जवानों की हत्या कर दी. अनेक सैनिक अब भी लापता हैं. कहा जा रहा है कि इस सुनियोजित हमले में दर्जनों माओवादियों ने भाग लिया और सुरक्षा बलों को घंटों उलझाए रखने में सफल रहे. सरकार द्वारा ऑपरेशन ग्रीन हंट को शुरु किए दो माह बीत चुके हैं लेकिन माओवादी इलाकों में नागरिकों के खिलाफ इस तरह की भयावह हिंसा छेड़ने के बावजूद इस ऑपरेशन की उपलब्धि बहुत कम रही है. अनेक जगहों पर तो आदिवासी जनता को युद्ध का सामना करने के लिए छोड़ कर माओवादी जंगलों में पैठ गए हैं. *पूरा पढ़िएः आदिवासियों का शिकार बंद करे सरकार * -- El pueblo unido jamás será vencido -------------------------------------------------- http://hashiya.blogspot.com www.tehelka.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100217/bbea0d72/attachment-0001.html From ravikant at sarai.net Thu Feb 18 18:18:57 2010 From: ravikant at sarai.net (ravikant) Date: Thu, 18 Feb 2010 18:18:57 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?W0Z3ZDog4KS24KS5?= =?utf-8?b?4KSwIOCkleClgCDgpKTgpLjgpY3gpLXgpYDgpLAgXQ==?= Message-ID: <4B7D3739.5090400@sarai.net> dosto, दिल्ली शहरी मंच (डेल्ही अर्बन प्लैटफ़ॉर्म: http://www.delhiurbanplatform.org/) की पहली सार्वजनिक बैठक सीएसडीएस पुस्तकालय में कल 4 बजे रखी गई है. यह एक खुला मंच है, जिसकी गतिविधियाँ साल-भर शहर के कई हिस्सों में चलेंगी. पहली बैठक को दिल्ली पर काम कर रहे ये विद्वान संबोधित करेंगे. रवि सुंदरम नारायणी गुप्ता अमिता बाविस्कर एजीके मेनन अवधेन्द्र शरण गौतम भान दिल्ली शहरी मंच कई भावी आयोजनों का एक संजाल है. इसमें शहर और इसके भविष्य से सरोकार रखने वाली बहुत सारी संस्थाएँ, व व्यक्ति हिस्सेदारी करेंगे. चूँकि शहर को लेकर ज़्यादा गंभीर बातचीत नहीँ हो पाती इसलिए मंच का ख़याल मायने रखता है. आगे से हम इस बात का ख़याल रखेंगे कि आपके पास सूचने काफ़ी समय रहते पहुँच पाए. शुक्रिया रविकान्त सराय-सीएसडीएस 29 राजपुर रोड दिल्ली - 110054. www.csds.in www.sarai.net From pkray11 at gmail.com Sat Feb 20 10:50:22 2010 From: pkray11 at gmail.com (Prakash K Ray) Date: Sat, 20 Feb 2010 10:50:22 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Mallika Sarabhai's letter to Amitabh Bachchan Message-ID: <98f331e01002192120mf5daa9fnc87230ea532ee896@mail.gmail.com> Text of Mallika Sarabhai's letter to Amitabh Bachchan: My dear Bachchanji, Greetings from a Gujarati. You are indeed a fine actor. You are an intelligent man and a shrewd businessman. But should I believe in your endorsements? Let’s take a brief look at what you proclaim you believe in (albeit for huge sums of money). BPL, ICICI, Parker and Luxor pens,Maruti Versa, Cadbury chocolates. Nerolac paints. Dabur, Emami, Eveready, Sahara City Homes, D’damas, Binani Cement and Reliance. And now Gujarat. I wonder how you decide what to endorse. Is your house built with Binani Cement? Do you really like Cadbury’s chocolates or do you have to resort to Dabar’s hajmola (whose efficacy you have earlier checked) after eating them? And having endorsed two pens, one very upmarket and one rather down, which one do you use? Have you, except perhaps for the shooting of the ad, ever driven or been driven in a Versa? Do you know whether the Nerolac paint in your home ( you do use it don’t you?) has lead in it that can poison you slowly as it does so many people? Or are the decisions entirely monetary? It has been reported that no direct fee will be paid to you for being my Brand Ambassador. So, with no monetary decision to guide you, how did you decide to say yes? Did you check on the state of the State? I doubt it, for the decision and the announcement came from one single meeting. And I somehow doubt that you have been following the news on Gujarat closely. So, as a Gujarati, permit me to introduce my State to you. Everyone knows of our vibrancy, of the billions and trillions pouring into our State through the two yearly jamborees called Vibrant Gujarat. But did you know that by the government’s own admission no more than 23% of these have actually moved beyond the MOU stage? That while huge subsidies are being granted to our richest business houses, over 75000 small and medium businesses have shut down rendering one million more people jobless? You know of Gujarat’s fast paced growth and the FDI pouring in, you have no doubt seen pictures of the Czars of the business world lining up to pour money to develop us. To develop whom? Did you know that our poor are getting poorer? That while the all India reduction in poverty between ’93 and 2005 is 8.5%, in Gujarat it is a mere 2.8%? That we have entire farmer families committing suicide, not just the male head of the household? You have heard of how some mealy mouthed NGO types have been blocking the progress of the Narmada project, how the government has prevailed, and water is pouring down every thirsty mouth and every bit of thirsty land. But did you know that in the 49 years since it was started, and in spite of the Rs.29,000 crores spent on it, only 29% of the work is complete? That the construction is so poor (lots of sand added to the you- know- which cement perhaps) that over the last 9 years there have been 308 breaches, ruining lakhs of farmers whose fields were flooded, ruining the poorest salt farmers whose salt was washed away? That whereas in 1999, 4743 of Gujarat’s villages were without drinking water, within two years that figure had gone up to 11,390 villages ? (I can not even begin to project those figures for today – but do know that the figure has gone up dramatically rather than down.) With our CM, hailed as the CEO of Gujarat, we have once again achieved number one status – in indebtedness. In 2001 the State debt was Rs.14000 crores. This was before the State became a multinational company. Today it stands at Rs.1,05,000 crores. And to service this debt we pay a whopping Rs7000 crores a year, 25% of our annual budget. Meanwhile our spending on education is down, no new public hospitals for the poor are being built, fishermen are going a begging as the seas turn turgid with effluents, more mothers die at birth per thousand than in the rest of India, and our general performance on the Human Development Index is nearly the first – from the bottom. One rape a day, 17 cases of violence against women, and , over the last ten years, 8802 suicides and 18152 “accidental “ deaths of women are officially reported. You can imagine the real figures. You have said that you are our Ambassador because we have Somnath and Gandhi. Somnath was built for people. Gandhiji was a man of the people. Do the people of this State matter to you? If they do, perhaps your decision will be different. I hope you will read this letter and decide. In warmth and friendship, Mallika -- Prakash K Ray 0 987 331 331 5 www.cinemela.youthv.com http://www.facebook.com/group.php?gid=118193556385&ref=ts http://twitter.com/cinemela -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100220/a8bc7afa/attachment.html From ashishkumaranshu at gmail.com Sat Feb 20 10:52:20 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Sat, 20 Feb 2010 10:52:20 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KS14KS/4KSk?= =?utf-8?b?4KS+IOCkleClgCDgpKrgpL7gpKDgpLbgpL7gpLLgpL4gKOCksOCkvg==?= =?utf-8?b?4KS34KWN4KSf4KWN4KSw4KWA4KSvIOCkuOCkueCkvuCksOCkvik=?= In-Reply-To: <196167b81002190410q1052dc98nf095f6ecb753444e@mail.gmail.com> References: <196167b81002190410q1052dc98nf095f6ecb753444e@mail.gmail.com> Message-ID: <196167b81002192122l2d600a58w2032cf5004325dcd@mail.gmail.com> कविता की पाठशाला राष्ट्रीय कवि संगम' दिल्ली में नियमित गोष्ठियों के माध्यम से चलाई जा रही है। इसमें देशभर के प्रतिष्ठित गीत, छंद, गजल, हास्य के उस्ताद आकर उभरते कवियों को इस क्षेत्र की बारीकियां सिखाते हैं। साथ ही नए कवियों को मंच पर प्रस्तुति का अवसर भी दिया जाता है क्या तुम ऐसी पाठशाला की कल्पना कर सकते हो, जहां किशोरों और युवाओं को कविता लिखना और मंच पर उसकी प्रस्तुति सिखाई जाती हो। ऐसी ही एक पाठशाला ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ दिल्ली में नियमित गोिष्ठयों के माध्यम से चलाई जा रही है। इसमें देशभर के प्रतििष्ठत गीत, छंद, गजल, हास्य के उस्ताद आकर उभरते कवियों को इस क्षेत्र की बारीकियां सिखाते हैं। यहां नए कवियों को इस बात का अवसर भी दिया जाता है कि वे वरिष्ठ कवियों के सामने अपने सवाल रख सकें। इस मंच के माध्यम से पद्मिनी शर्मा (19), प्रबल पोद्दार (18) प्रीति विश्वास (21) जैसे कई किशोर कवियों ने अपनी मंचीय पहचान बनाई है। 50 सेकेण्ड का प्रबंधन मंच पर लगातार जमे जमाए कवियों को ही बुलाए जाने की परंपरा रही है, इस तरह मंच पर अपार संभावनाओं के बावजूद नए कवियों के लिए ‘द्वार’ लगभग बंद ही थे। लेकिन नए कवियों के लिए मौका कवि संगम ने उपलब्ध कराया। वह नए प्रतिभावान कवियों के लिए पिछले तीन वर्षों से ‘दस्तक नई पीढ़ी की’ के नाम से कार्यक्रम कराता आ रहा है। इन तीन सालों में संगम ने तीन दर्जन से भी अधिक युवा कवियों को राष्ट्रीय पटल पर लाकर रखा। संगम से जुड़े शंभू शिखर और दीपक गुप्ता ने लाफ्टर चैलेन्ज-दो में दिल्ली का प्रतिनिधित्व भी किया है। मंच पर लाने से पहले ‘दस्तक युवा पीढ़ी की’ के मंच पर आने से पहले इसकी टीम में शामिल कवियों को पूरे एक साल तक प्रशिक्षित करने का काम ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ करता है। कवि संगम ने अपने जिम्मे यह बिल्कुल नए तरह का काम लिया है। देश भर में छुपे उन प्रतिभाओं को तलाशने और मंचीय प्रस्तुति के लिए दक्ष करने का, जिनमें जरा सी भी अंकुरित, पल्लवित, पुिष्पत होने की संभावना हो। मंचीय कविता के नए रंगरूटों को दंगल में उतरने से पहले राष्ट्रीय कवि संगम के मासिक गोष्ठी में अपने रचनाओं की जोर आजमाइश करनी होती है। कैसी हो कविता संगम से जुड़े कवियों का स्पष्ट मानना है, कविता किसी भी विधा में लिखी जाए, यदि वह समाज को कोई सार्थक संदेश नहीं देती, फिर उस कविता का होना या ना होना बराबर है। वर्तमान में यह मासिक गोष्ठियां राजधानी में आयोजित हो रहीं हंै। इन गोिष्ठयों में शामिल होने के लिए सिर्फ इतनी योग्यता चाहिए कि आप कविता लिखते हों और आपकी रूचि मंचीय कविता में हो। आने वाले समय में इस तरह की गोिष्ठयों को देश के दूसरे हिस्सों में शुरू करने की योजना संगम बना रहा है। सबके लिए खुला मंच कवि संगम की सबसे अच्छी बात यह है कि मंच वाया गोष्ठी की दूरी तय करने के लिए यहां न किसी की पैरवी चलती है, न आरक्षण। यदि आप में मंच पर अच्छा प्रदर्शन करने की योग्यता है तो समझिए राष्ट्रीय कवि संगम को आपकी तलाश है। Updated : Monday, 18 Jan 2010, 14:42 [IST] ( http://www.rashtriyasahara.com/NewsDetails.aspx?lNewsID=111466&lCategoryID=२८ ) -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100220/5be8a19d/attachment-0001.html From ashishkumaranshu at gmail.com Sat Feb 20 10:52:20 2010 From: ashishkumaranshu at gmail.com (=?UTF-8?B?4KSG4KS24KWA4KS3IOCkleClgeCkruCkvuCksCAn4KSF4KSC4KS24KWBJw==?=) Date: Sat, 20 Feb 2010 10:52:20 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KS14KS/4KSk?= =?utf-8?b?4KS+IOCkleClgCDgpKrgpL7gpKDgpLbgpL7gpLLgpL4gKOCksOCkvg==?= =?utf-8?b?4KS34KWN4KSf4KWN4KSw4KWA4KSvIOCkuOCkueCkvuCksOCkvik=?= In-Reply-To: <196167b81002190410q1052dc98nf095f6ecb753444e@mail.gmail.com> References: <196167b81002190410q1052dc98nf095f6ecb753444e@mail.gmail.com> Message-ID: <196167b81002192122l2d600a58w2032cf5004325dcd@mail.gmail.com> कविता की पाठशाला राष्ट्रीय कवि संगम' दिल्ली में नियमित गोष्ठियों के माध्यम से चलाई जा रही है। इसमें देशभर के प्रतिष्ठित गीत, छंद, गजल, हास्य के उस्ताद आकर उभरते कवियों को इस क्षेत्र की बारीकियां सिखाते हैं। साथ ही नए कवियों को मंच पर प्रस्तुति का अवसर भी दिया जाता है क्या तुम ऐसी पाठशाला की कल्पना कर सकते हो, जहां किशोरों और युवाओं को कविता लिखना और मंच पर उसकी प्रस्तुति सिखाई जाती हो। ऐसी ही एक पाठशाला ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ दिल्ली में नियमित गोिष्ठयों के माध्यम से चलाई जा रही है। इसमें देशभर के प्रतििष्ठत गीत, छंद, गजल, हास्य के उस्ताद आकर उभरते कवियों को इस क्षेत्र की बारीकियां सिखाते हैं। यहां नए कवियों को इस बात का अवसर भी दिया जाता है कि वे वरिष्ठ कवियों के सामने अपने सवाल रख सकें। इस मंच के माध्यम से पद्मिनी शर्मा (19), प्रबल पोद्दार (18) प्रीति विश्वास (21) जैसे कई किशोर कवियों ने अपनी मंचीय पहचान बनाई है। 50 सेकेण्ड का प्रबंधन मंच पर लगातार जमे जमाए कवियों को ही बुलाए जाने की परंपरा रही है, इस तरह मंच पर अपार संभावनाओं के बावजूद नए कवियों के लिए ‘द्वार’ लगभग बंद ही थे। लेकिन नए कवियों के लिए मौका कवि संगम ने उपलब्ध कराया। वह नए प्रतिभावान कवियों के लिए पिछले तीन वर्षों से ‘दस्तक नई पीढ़ी की’ के नाम से कार्यक्रम कराता आ रहा है। इन तीन सालों में संगम ने तीन दर्जन से भी अधिक युवा कवियों को राष्ट्रीय पटल पर लाकर रखा। संगम से जुड़े शंभू शिखर और दीपक गुप्ता ने लाफ्टर चैलेन्ज-दो में दिल्ली का प्रतिनिधित्व भी किया है। मंच पर लाने से पहले ‘दस्तक युवा पीढ़ी की’ के मंच पर आने से पहले इसकी टीम में शामिल कवियों को पूरे एक साल तक प्रशिक्षित करने का काम ‘राष्ट्रीय कवि संगम’ करता है। कवि संगम ने अपने जिम्मे यह बिल्कुल नए तरह का काम लिया है। देश भर में छुपे उन प्रतिभाओं को तलाशने और मंचीय प्रस्तुति के लिए दक्ष करने का, जिनमें जरा सी भी अंकुरित, पल्लवित, पुिष्पत होने की संभावना हो। मंचीय कविता के नए रंगरूटों को दंगल में उतरने से पहले राष्ट्रीय कवि संगम के मासिक गोष्ठी में अपने रचनाओं की जोर आजमाइश करनी होती है। कैसी हो कविता संगम से जुड़े कवियों का स्पष्ट मानना है, कविता किसी भी विधा में लिखी जाए, यदि वह समाज को कोई सार्थक संदेश नहीं देती, फिर उस कविता का होना या ना होना बराबर है। वर्तमान में यह मासिक गोष्ठियां राजधानी में आयोजित हो रहीं हंै। इन गोिष्ठयों में शामिल होने के लिए सिर्फ इतनी योग्यता चाहिए कि आप कविता लिखते हों और आपकी रूचि मंचीय कविता में हो। आने वाले समय में इस तरह की गोिष्ठयों को देश के दूसरे हिस्सों में शुरू करने की योजना संगम बना रहा है। सबके लिए खुला मंच कवि संगम की सबसे अच्छी बात यह है कि मंच वाया गोष्ठी की दूरी तय करने के लिए यहां न किसी की पैरवी चलती है, न आरक्षण। यदि आप में मंच पर अच्छा प्रदर्शन करने की योग्यता है तो समझिए राष्ट्रीय कवि संगम को आपकी तलाश है। Updated : Monday, 18 Jan 2010, 14:42 [IST] ( http://www.rashtriyasahara.com/NewsDetails.aspx?lNewsID=111466&lCategoryID=२८ ) -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100220/5be8a19d/attachment-0002.html From miyaamihir at gmail.com Sat Feb 20 15:00:15 2010 From: miyaamihir at gmail.com (mihir pandya) Date: Sat, 20 Feb 2010 15:00:15 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSq4KSw4KSm4KWH?= =?utf-8?b?IOCkquCksCDgpKrgpY3gpK/gpL7gpLAg4KSV4KWHIOCkr+CkvuCkpg==?= =?utf-8?b?4KSX4KS+4KSwIOCksuCkruCkueClh+Ckgi4=?= Message-ID: Sorry for late posting. This article was published in Navbharat times on 14th fab 2010. Here is the online link. http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5569713.cms ...miHir. हर दौर की अपनी एक प्रेम कहानी होती है. और हमें वे प्रेम कहानियाँ हमारी फ़िल्मों ने दी हैं. अगर मेरे पिता में थोड़े से ’बरसात की रात’ के भारत भूषण बसते हैं तो मेरे भीतर ’कभी हाँ कभी ना’ के शाहरुख़ की उलझन दिखाई देगी. हमने अपने नायक हमेशा चाहे सिनेमा से न पाए हों लेकिन प्यार का इज़हार तो बेशक उन्हीं से सीखा है. हिन्दी सिनेमा इस मायने में भी एक अनूठी दुनिया रचता है कि यह हमारी उन तमाम कल्पनाओं को असलियत का रंग देता है, जिन्हें हिन्दुस्तान के छोटे कस्बों और बीहड़ शहरों में जवान होते पूरा करना हमारे जैसों के लिए मुमकिन नहीं. सिनेमा और उसके सिखाए प्रेम के इस फ़लसफ़े का असल अर्थ पाना है तो इस महादेश के भीतर जाइए, अंदरूनी हिस्सों में. व्यवस्था के बँधनों के विपरीत जन्म लेती हर प्रेम कहानी पर सिनेमा की छाप है. किसी ने पहली मुलाकात के लिए मोहल्ले के थियेटर का पिछवाड़ा चुना है तो किसी ने एक फ़िल्मी गीत काग़ज़ पर लिख पत्थर में लपेटकर मारा है. हम सब ऐसे ही बड़े हुए हैं, थोड़े से बुद्धू, थोड़े से फ़िल्मी. 1. प्यासा. सिगरेट का धुआँ उड़ाते गुरुदत्त और दूर से उन्हें तकती वहीदा. यह एक साथ हिन्दी सिनेमा का सबसे इरॉटिक और सबसे पवित्र प्रेम-दृश्य है. अभी-अभी नायिका गुलाबो (वहीदा रहमान) को एक पुलिसवाले के चंगुल से बचाने के लिए नायक विजय (गुरुदत्त) ने अपनी पत्नी कहकर संबोधित किया है. नायिका जो पेशे से एक नाचनेवाली तवायफ़ है अपने लिए इस ’पवित्र’ संबोधन को सुनकर चकित है. न जाने किस अदृश्य बँधन में बँधी नायक के पीछे-पीछे आ गई है. नायक छ्त की रेलिंग के सहारे खड़ा सिगरेट का धुआँ उड़ा रहा है और नायिका दूर से खड़ी उसे तक रही है. कुछ कहना चाहती है शायद, कह नहीं पाती. लेकिन बैकग्राउंड में साहिर का लिखा, एस.डी. द्वारा संगीतबद्ध और गीता दत्त का गाया भजन ’आज सजन मोहे अंग लगा लो, जनम सफ़ल हो जाए’ बहुत कुछ कह जाता है. इस ’सभ्य समाज’ द्वारा हाशिए पर डाल बार-बार तिरस्कृत की गई दो पहचानें, एक कवि और दूसरी वेश्या, मिलकर हमारे लिए प्रेम का सबसे पवित्र अर्थ गढ़ते हैं. 2. मुग़ल-ए-आज़म. मधुबाला को टकटकी लगाकर निहारते दिलीप. कहते हैं कि मुम्बई फ़िल्म इंडस्ट्री में डाइरेक्टर से लेकर स्पॉट बॉय तक हर आदमी के पास सुनाने के लिए ’मुग़ल-ए-आज़म’ से जुड़ी एक कहानी होती है. के. आसिफ़ की मुग़ल-ए-आज़म हिन्दुस्तान में बनी पहली मेगा फ़िल्म थी जिसने आगे आने वाली पुश्तों के लिए फ़िल्म निर्माण के पैमाने ही बदल दिए. लेकिन मुग़ल-ए-आज़म कोरा इतिहास नहीं, हिन्दुस्तान के लोकमानस में बसी प्रेम-कथा का पुनराख्यान है. एक बांदी का राजकुमार से प्रेम शहंशाह को नागवार है लेकिन वो प्रेम ही क्या जो बंधनों में बँधकर हो. चहुँओर से बंद सामंती व्यवस्था के गढ़ में प्रेम की खुली उद्घोषणा स्वरूप ’प्यार किया तो डरना क्या’ गाती अनारकली को कौन भूल सकता है. यही याद बसी है हम सबके मन में. शहज़ादा सलीम (दिलीप कुमार) एक पँखुड़ी से हिन्दी सिनेमा की अनिन्द्य सुंदरी अनारकली (मधुबाला) के मुखड़े को सहला रहे हैं और बैकग्राउंड में तानसेन की आवाज़ बनकर ख़ुद उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ ’प्रेम जोगन बन के’ गा रहे हैं. मुग़ल-ए-आज़म सामंती समाज में विरोध स्वरूप तन-कर खड़े ’प्रेम’ का अमर दस्तावेज़ है. 3. दिल चाहता है. एक बार घूँसा, दूसरी बार इक़रार. एक ही डायलॉग ’दिल चाहता है’ के दो सबसे महत्वपूर्ण अंश रचता है. वो डायलॉग है एक कवितामय सा प्यार का इज़हार. पहली बार कॉलेज की पार्टी में यह फ़िल्म का सबसे हँसोड़ प्रसंग है तो दूसरी बार आने पर यह आपकी आँखें गीली कर देता है. बेशक आकाश (आमिर ख़ान) को शालिनी (प्रीटि ज़िन्टा) से प्यार है लेकिन बकौल समीर कौन जानता था कि उसे यह प्यार का इज़हार किसी दूसरे की शादी में दो सौ लोगों के सामने करना पड़ेगा! लेकिन क्या करें कि इस भागती ज़िन्दगी में रुककर प्यार जैसे मुलायम अहसास को समझने में अक़्सर ऐसी देर हो जाया करती है. ’दिल चाहता है’ ट्रेंड सैटर फ़िल्म थी. नई पीढ़ी के लिए आज भी नेशनल एंथम सरीख़ी है और यह ’इज़हार-ए-दिल’ प्रसंग उसके भीतर जड़ा सच्चा हीरा. 4. मि. एण्ड मिसेस अय्यर. एक हनीमून की कहानी जो कभी मनाया ही नहीं गया. कल्पनाएं हमेशा हमारे सामने असलियत से ज़्यादा रूमानी और दिलकश मंज़र रचती हैं. ख्वाब हमेशा ज़िन्दगी से ज़्यादा दिलफ़रेब होते हैं. एक दक्षिण भारतीय गृहणी मीनाक्षी अय्यर (कोंकणा सेन) ने अपने मुस्लिम सहयात्री (राहुल बोस) की दंगाइयों से जान बचाने के लिए उन्हें अपना पति ’मि. अय्यर’ घोषित कर दिया है और अब पूरी यात्रा उन्हें इस झूठ को निबाहना है. और इसी कोशिश में ’मि. अय्यर’ साथ सफ़र कर रही लड़कियों को अपने हनीमून की कहानी सुनाते हैं. नीलगिरी के जगलों में एक पेड़ के ऊपर बना छोटा सा घर. पूरे चाँद वाली रात. यह एक फोटोग्राफ़र की आँख से देखा गया दृश्य है. और पीछे उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का धीमे-धीम ऊँचा उठता संगीत. नायिका को पता ही नहीं चलता और वो इस नयनाभिराम मंज़र में डूबती जाती है. सबसे मुश्किल वक़्तों में ही सबसे मुलायम प्रेम कहानियाँ देखी जाती हैं. ’मि. एंड मिसेस अय्यर’ ऐसी ही प्रेम कहानी है. 5. स्पर्श. प्रेम की सुगंध-आवाज़-स्पर्श का अहसास. सई परांजपे की ’स्पर्श’ इस चयन में शायद थोड़ी अजीब लगे, लेकिन उसका होना ज़रूरी है. फ़िल्म के नायक अनिरुद्ध (नसीरुद्दीन शाह) जो एक ब्लाइंड स्कूल के प्रिसिपल हैं देख नहीं सकते. वे हमारी नायिका कविता (शबाना आज़मी) से जानना चाहते हैं कि वे दिखती कैसी हैं? अब कविता उन्हें बोल-बोलकर बता रही हैं अपनी सुंदरता की वजहें. अपनी आँखों के बारे में, अपनी जुल्फ़ों के बारे में, अपने रंग के बारे में. लेकिन इसका याद रह जाने वाला हिस्सा आगे है जहाँ अनिरुद्ध बताते हैं कि यह रूप रंग तो मेरे लिए बेकार है. मेरे लिए तुम इसलिए सुंदर हो क्योंकि तुम्हारे बदन की खुशबू लुभावनी है, निषिगंधा के फूलों की तरह. तुम्हारी आवाज़ मर्मस्पर्शी है, सितार की झंकार की तरह. और तुम्हारा स्पर्श कोमल है, मख़मल की तरह. यह प्रसंग हिन्दी सिनेमा में ’प्रेम’ को एक और आयाम पर ले जाता है. 6. सोचा न था. ईमानदार दुविधाओं से निकलकर इज़हार-ए-इश्क. आज की पीढ़ी के पसंदीदा ’लव गुरु’ इम्तियाज़ अली की वही अकेली प्रेम-कहानी को अपने सबसे प्रामाणिक और सच्चे फ़ॉर्म में आप उनकी पहली फ़िल्म ’सोचा न था’ में पाते हैं. नायक आधी रात नायिका की बालकनी फाँदकर उसके घर में घुस आया है और पूछ रहा है, “आखिर क्या है मेरे-तुम्हारे बीच अदिति?” दरअसल यह वो सवाल है जो उस रात वीरेन (अभय देओल) और अदिति (आयशा टाकिया) एक-दूसरे से नहीं, अपने आप से पूछ रहे हैं. और जब उस निर्णायक क्षण उन्हें अपने दिल से वो सही जवाब मिल जाता है तो देखिए कैसे दोनों सातवें आसमान पर हैं! इस इज़हार-ए-मोहब्बत के पहले नायिका जितनी मुख़र है, बाद में उतनी ही ख़ामोश. बरबस ’मुझे चाँद चाहिए’ की वर्षा वशिष्ठ याद आती है. इम्तियाज़ की प्रेम-कहानियों में प्यार को लेकर वही संशय भाव मिलता है जिसे हम मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास ’कसप’ में पाते हैं. उनकी इन दुविधाग्रस्त लेकिन हद दर्जे तक ईमानदार प्रेम-कहानियों ने हमारे समय में ’प्रेम’ के असल अर्थ को बचाकर रखा है. 7. दिलवाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे. पलट... “राज, अगर ये तुझे प्यार करती है तो पलट के देखेगी. पलट... पलट...” और बनती है मेरे दौर की सबसे चहेती प्रेम कहानी. उस पूरे दौर को ही ’डीडीएलजे’ हो गया था जैसे. हमारी प्रेमिकाओं के कोडनेम ’सिमरन’ होने लगे थे और हमारी पीढ़ी ने अपना बिगड़ैल नायक पा लिया था. हम लड़कपन की देहरी पर खड़े थे और अपनी देहभाषा से ख़ुद को अभिव्यक्त करने वाला शाहरुख़ हमारे लिए प्यार के नए फ़लसफ़े गढ़ रहा था. हर दौर की अपनी एक प्रेम-कहानी होती है. परियों वाली प्रेम-कहानी. मेरे समय ने अपनी ’परियों वाली प्रेम कहानी’ शाहरुख़ की इस एक ’पलट’ के साथ पाई. 8. दिल से. ढाई मिनट की प्रेम कहानी. हिन्दी सिनेमा में आई सबसे छोटी प्रेम-कहानी. नायक (शाहरुख़ ख़ान) रेडियो पर नायिका (मनीषा कोईराला) से अपनी पहली मुलाकात का किस्सा एक गीतों भरी कहानी में पिरोकर सुना रहा है और नायिका अपने कमरे में बैठी उस किस्से को सुन रही है, समझ रही है कि ये उसके लिए ही है. इस किस्से में सब-कुछ है, अकेली रात है, बरसात है, सुनसान प्लेटफ़ॉर्म है, दौड़ते हुए घोड़े हैं, बिखरते हुए मोती हैं. यही वो दृश्य है जिसके अंत में रहमान और गुलज़ार द्वारा रचा सबसे खूबसूरत और हॉन्टिंग गीत ’ए अजनबी’ आता है. नायक अभी नायिका का नाम तक नहीं जानता है लेकिन ये कमबख़्त इश्क कब नाम पूछकर हुआ है भला. 9. तेरे घर के सामने. कुतुब के भीतर ’दिल का भँवर करे पुकार’. दिल्ली की कुतुब मीनार के भीतर नूतन देव आनंद से पूछती हैं कि क्या तुम्हें ख़ामोशी की आवाज़ सुनाई देती है? और देव आनंद अपने चुहल भरे अंदाज़ में नूतन से कहते हैं कि हमें तो बस एक ही आवाज़ सुनाई देती है, ’दिल की आवाज़’. और हसरत जयपुरी का लिखा तथा एस. डी. बर्मन का रचा गीत आता है ’दिल का भँवर करे पुकार, प्यार का राग सुनो’. यह आज़ाद भारत की सपने देखती नई युवा पीढ़ी है. बँधनों और रूढ़ियों से मुक्त. इस प्रसंग में आप एक साथ दो प्रेम कहानियों को बनता पायेंगे. और गौर से देखें तो ये दोनों ही प्रेम-कहानियाँ सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ने वाली हैं. नए-नए आज़ाद हुए मुल्क की नई बनती राजधानी इस प्रेम का घटनास्थल है और कुतुब से देखने पर इस प्यार का कद थोड़ा और ऊँचा उठ जाता है. 10. शोले. माउथॉरगन बजाते अमिताभ और लैम्प बुझाती जया. क्या ’शोले’ के बिना लोकप्रिय हिन्दी सिनेमा से जुड़ा कोई भी चयन पूरा हो सकता है? वीरू और बसंती की मुँहफट और मुख़र प्रेमकहानी के बरक़्स एक साइलेंट प्रेमकहानी है जय और राधा की जिसके बैकग्राउंड में जय के माउथॉरगन का संगीत घुला है. हिन्दी सिनेमा की सबसे ख़ामोश प्रेमकहानी. अमिताभ नीचे बरामदे में बैठे माउथॉरगन बजा रहे हैं और जया ऊपर एक-एक कर लैम्प बुझा रही हैं. आज भी शोले का यह आइकॉनिक शॉट हिन्दुस्तानी जन की स्मृतियों में ज़िन्दा है. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100220/99ecb631/attachment-0001.html From vineetdu at gmail.com Tue Feb 23 16:02:22 2010 From: vineetdu at gmail.com (vineet kumar) Date: Tue, 23 Feb 2010 16:02:22 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= holi In-Reply-To: <829019b1002230225p135c5a6p408bc788570f167c@mail.gmail.com> References: <829019b1002230225p135c5a6p408bc788570f167c@mail.gmail.com> Message-ID: <829019b1002230232v54233b9ew27a4e56ec19315e8@mail.gmail.com> दीवान के साथियों ये मैने एक पत्रिका के लिए होली को लेकर कैंपस में क्या होता है वो लिखा था लेकिन दीवान पर कुछ भी लिखा भेजने का इतना अभ्यस्त हूं कि वो उस पत्रिका के पास न जाकर यहां मेल कर दिया। माफ करेंगे और मन करे तो मजे ले लेगें। वैसे बजट के इस महौल में होली पर लिखना कुछ ज्यादा ही एडवांस मामला हो गया। विनीत 2010/2/23 vineet kumar > दिल्ली यूनिवर्सिटी के जो हॉस्टलर सालभर आइएस,प्रोफेसर,वकील, सीइओ और > साइंटिस्ट जैसी शख्सीयत बनने के लिए किताबों में आंखे गड़ाए रहते हैं,सेमिनार > के पर्चे तैयार करते-करते तबाह रहते हैं और अपने को इन सबके लिए सबसे बड़ा > दावेदार मानते हैं,होली आते ही उनकी दावेदारी एकदम से बदल जाती है। इस दिन उनका > मिजाज एकदम से बदला-बदला सा होने को आता है। इसे आप फाल्गुनी हवा का असर कहें > या फिर हील-हुज्जत करके जुटाई गयी ठंडई का,लेकिन सच ये है कि कॉलेज,कचहरी और > मल्टीनेशनल कंपनियों के बीच सालभर में किसी भी दिन दावेदारी बनायी जा सकती है। > लेकिन होली के दिन की दावेदारी को वो किसी भी तरह से मिस नहीं करना चाहते। ये > एक दिन की लेकिन सबसे महत्वाकांक्षी और मजबूत दावेदारी होती है दूल्हा बनने की। > जिस पीजी वीमेन्स और मेघदूत हॉस्टल से वो नजर लड़ाते या बचाते हुए गुजर जाते > हैं होली के दिन उनकी इच्छा होती है कि वो अपनी बारात इन लड़कियों के हॉस्टल > में ले जाएं।..और यहीं से देश के बाकी विश्वविद्यालयों से अलग किस्म की होली > मनाने की बुनियाद पड़ जाती है। > मैं पिछले करीब चार साल से देख रहा हूं। जिस रेडी या ठेले पर एक आम मेहनतकश > चीकू या खरबूजे बेचने का काम करता है,मानसरोवर हॉस्टल के रेजीडेंट उसी पर अपने > मनोनित दूल्हे को सवार करते हैं। कई तरह की मालाएं(फूल से बनी मालाओं के अलावे > भी) पहने वो इन दोनों गर्ल्स हॉस्टल की तरफ कूच करते हैं। इसी तरह से ग्वायर > हॉल के लोग अपनी तरफ से एक दूल्हा मनोनित करते हैं। हमें हंसी आती है लेकिन > पिछली बार हमने सबसे बुजुर्ग हॉस्टलर को सर्वसम्मति से मनोनित दूल्हा बनाया और > लड़कियों के हॉस्टल के आगे पहुंचते ही सीनियर सिटिजन जिंदाबाद के नारे लगाने > शुरु किए। इसी तरह से जुबली हॉल औऱ कोठारी हॉस्टल के लोग अपने-अपने मनोनित > दूल्हे को लेकर इन हॉस्टलों की तरफ कूच करते हैं। > > आज से चार साल पहले उतनी भीड़ नहीं होती,बहुत ही कम लोग हुआ करते। बॉलकनी और > मुंडेर पर लड़कियां भी कम आती। लेकिन धीरे-धीरे ये एक रिवायत सी बनती चली गयी > कि इस दिन दूल्हे को मनोनित करना है और फिर गर्ल्स हॉस्टल के आगे उसे प्रोजेक्ट > करना है। पिछले दो सालों से लड़कियों ने भी गर्मजोशी दिखानी शुरु की है। > भीड़-भाड़ देखकर मौरिसनगर थाना भी चौकस हो जाया करता है।दर्जनों की संख्या में > पुलिस तैनात कर दिए जाते हैं। लेकिन इन पुलिसवाले के चेहरे पर इस दिन के अलावे > शायद ही कभी सार्वजनिक जीवन में हंसी आती होगी। हॉस्टल की सारी लड़कियां भाभी > हो जाती है,पूरबिया के हॉस्टलरों के लिए भौजी। जोर से नारे लगते हैं..हम आए हैं > तूफान से कश्ती निकाल के,इस भैय्या को रखना भौजी संभाल के। मनोनित दूल्हा हाफ > बाजू की शर्ट पहनने पर भी उसे औऱ मोड़ता है,पूरा दम लगाकर बॉडी को मछळी जैसा > आकार देना शुरु करता है। जो पत्ते-झाड़ हाथ लग जाए उसे अदा के साथ लड़कियों के > आगे करता है...बॉलकनी से लड़कियां हो-हो करना शुरु करती है। मेघदूत की > लड़कियां,दो साल का अनुभव है अपना कि हॉस्टल और कमरे के सारे कचरे हमारे उपर > फेंका करती है जिसे कि बुजुर्ग किस्म के रेसीडेंट उपहार समझकर अपनी देह पर > गिरने देते। फिर बाल्टी-बाल्टी पानी। चूंकि लड़कियों को हॉस्टल से बाहर निकलना > नहीं होता है इसलिए लड़कों के पूछे जाने पर कि कबूल है,कबूल है..वो जोर से > चिल्लाती हैं,हां कबूल है। कबूलनामें के बाद फिर आधे घंटे तक हुडदंगई। > > फिर वापस हॉस्टल की लॉन में पहुंचकर,अपनी-अपनी बौद्धिक क्षमता से मसखरई करने > और कथा गढ़ने का दौर शुरु। वो आपको देखकर सेंटिया गयी, मनोनित दूल्हे का बयान > कि जो बॉडी आज दिखाए हैं न कि उसको बार-बार सपना आएगा। सामूहिक स्तर पर प्रपोज > करने का जो काम होली के दिन यहां के स्टूडेंट करते हैं,वो शायद ही वेलेंटाइन डे > के दिन भी हुआ करता है। यहां गांव और कस्बे की होली से कई मायनों में अलग > किन्तु एक खास किस्म की लोकधर्मिता पैदा होती है। लॉन में पसरे लोग अलग-अलग > थाली में नहीं खाते,जिसको जिस थाली तक हाथ पहुंच जाए वहीं से शुरु। खाने के बाद > बाथरुम में इस बात को लेकर टेंशन नहीं कि टॉबेल और साबुन लेकर पहुंचे भी हैं या > नहीं। जो मिला उसी से निचोड़ लो,उसी से पोछ लो।...दूल्हे के तौर पर सुबह तो > लगता है कि दावेदारी बदल गयी लेकिन उसके बाद दिनभर लगता है कि किसी को किसी भी > चीज को लेकर दावेदारी रह ही नहीं गयी। एक ही लाइन कानों में गूंजते हैं..बुरा > मान गए दोस्त,फिर मान गए तो क्या कर लोग और फिर दमभर ठहाके। ये खुशी न तो फसल > के पकने की,फगुआ के चढ़ने की बल्कि सिर्फ इस बात की कि हम घर से दूर होकर भी > दमभर खुश होने की कोशिश करते हैं,सफल होते हैं।.. > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100223/fe09821e/attachment-0001.html From water.community at gmail.com Thu Feb 11 13:49:38 2010 From: water.community at gmail.com (water community) Date: Thu, 11 Feb 2010 08:19:38 -0000 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=5BHindimedia=5D_?= =?utf-8?b?4KSG4KS44KSu4KS+4KSCIOCkruClh+CkgiDgpLjgpYHgpLDgpL7gpJYg?= =?utf-8?b?4KS44KWHIOCkleCkriDgpKjgpLngpYDgpIIg4KSv4KS5IOCknOClgA==?= =?utf-8?b?4KSkLyDgpKrgpL7gpKjgpYAg4KSV4KWAIOCkleClgeCkmyDgpJXgpLk=?= =?utf-8?b?4KS+4KSo4KS/4KSv4KS+4KSCIC8g4KSG4KSqIOCkh+CkqOCljeCkuQ==?= =?utf-8?b?4KWH4KSCIOCkm+CkvuCkqiDgpLjgpJXgpKTgpYcg4KS54KWI4KSC?= Message-ID: <8b2ca7431002110018q39551562y65525f13acfe7d68@mail.gmail.com> आसमां में सुराख से कम नहीं यह जीत * * [image: अनशनकरी स्वामी यजनानंद : को जूस पिलाकर अनशन तुड़वाते अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर रामकृष्णानंद]*अनशनकरी स्वामी यजनानंद : *को जूस पिलाकर अनशन तुड़वाते अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर रामकृष्णानंद गंगा में खनन के कुछ मुद्दों पर मातृसदन के आंदोलन के आगे शासन झुका मातृसदन का आंदोलन अखिरकार रंग लाया। तमाम सख्ती के बाद शासन को अखिरकार झुकना पड़ा। शासन ने अधिसूचना जारी कर कुंभ क्षेत्र को मातृसदन की मांग के अनुसार जियापोता तक बढ़ाने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही 6 फरवरी को एडीएम ने मातृसदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद व उनके शिष्य यजनानंद ब्रह्मचारी का अनशन तो तुड़वा दिया, लेकिन क्षेत्र को खनन मुक्त कराने की मांग लेकर स्वामी दयानंद का अनशन अभी जारी है। ज्ञातव्य है कि सैकड़ों ट्रैक्टर, ट्रक, जेसीबी मशीन के भयंकर खनन से गंगा भयानक रूप से प्रदूषित हो रही है। गंगा के सुन्दर तटों एवं द्वीपों का विनाश हो रहा है। Raed More प्रयास. . . . . कहानी लदुना के पानी की... Author: सचिन कुमार जैन, भोपाल [image: पानी तेरे कितने रंग]पूरे देश-प्रदेश की भांति मंदसौर जिले ने भी पानी के गंभीर संकट को भोगा है, परन्तु इस ऐतिहासिक जिले के समाज ने जल संघर्ष की प्रक्रिया में नये-नये मुकाम हासिल करके अपनी विशेषता को सिद्ध कर दिया है। सूखे – अकाल के दौर में मंदसौर में दो सौ से ज्यादा जल संरक्षण की संरचनाओं का जनभागीदारी से निर्माण किया गया। जबकि एक हजार से ज्यादा जल स्रोतों का जीर्णोद्धार हुआ। करोड़ो रुपये का श्रमदान भी हुआ और पानी की कमी ने पानी की अद्भुद कहानी रची है। मूलतः इस गाँव की जलापूर्ति का सबसे बड़ा साधन पास का ही लदुना तालाब रही है। परन्तु यहां जल संकट ने उस वक्त भीषण रूप अख्तियार कर लिया जब य Read more गांववासियों द्वारा खुद जल आपूर्ति की मिसाल Author: सुश्मिता सेनगुप्त Source: www.downtoearth.org.in [image: खुद ही किया प्रबंध]*खुद ही किया प्रबंध* पानी के अभाव ने उड़ीसा के एक गांव को पानी का प्रबंधन करना सिखाया करीब 30 साल की गुलाब कुंजु उन दिनों को याद करती हैं जब अपनी प्यास बुझाने के लिए दूध पीना पड़ा क्योंकि उनके यहां पानी का अभाव था। उनके गांव धौराड़ा के चार बस्तियों में बसे 120 से ज्यादा परिवारों की जरूतों की पूर्ति के लिए सिर्फ तीन हैंडपंप थे। उनकी बस्ती के बाहरी इलाके में स्थित निकटतम हैंडपंप से पानी लाने के लिए दिन में कई बार चक्कर लगाना पड़ता था। इस खबर के स्रोत का लिंक: http://www.downtoearth.org.in/ - - Read more महिलाओं ने बदला पानपाट लेखक: मनीष वैद्य Source: पंचायत परिवार (मई-जून 2003) *घूंघट में रहने वाली महिलाओं ने देवास जिले के कन्नौद ब्लाक के गाँव ‘पानपाट’ की तस्वीर ही बदल दी है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि – कमजोर व अबला समझी जाने वाली महिलाएं यदि ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं। उन्हीं के अथक परिश्रम का परिणाम है कि आज पानपाट का मनोवैज्ञानिक, आर्थिक व सामाजिक स्वरुप ही बदल गया है। जो अन्य गाँवो के लिए प्रेरणादायक साबित हो रहा है। * पानपाट गाँव का 35 वर्षीय युवक ऊदल कभी अपने गांव के पानी संकट को भुला नहीं पाएगा। पानी की कमी के चलते गांव वाले दो-दो, तीन-तीन किमी दूर से बैलगाड़ियों पर ड्रम बांध कर लाते हैं। एक दिन ड्रम उतारते समय पानी से भरा लोहे का (200 लीटर वाला) ड्रम उसके - - Read more केसर - 9211530510 -- Minakshi Arora hindi.indiawaterportal.org -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100211/2922ac25/attachment-0002.html -------------- next part -------------- _______________________________________________ Hindimedia mailing list Hindimedia at lists.indiawaterportal.org http://lists.indiawaterportal.org/cgi-bin/mailman/listinfo/hindimedia From water.community at gmail.com Thu Feb 11 13:49:41 2010 From: water.community at gmail.com (water community) Date: Thu, 11 Feb 2010 08:19:41 -0000 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=5BHindimedia=5D_?= =?utf-8?b?4KSG4KS44KSu4KS+4KSCIOCkruClh+CkgiDgpLjgpYHgpLDgpL7gpJYg?= =?utf-8?b?4KS44KWHIOCkleCkriDgpKjgpLngpYDgpIIg4KSv4KS5IOCknOClgA==?= =?utf-8?b?4KSkLyDgpKrgpL7gpKjgpYAg4KSV4KWAIOCkleClgeCkmyDgpJXgpLk=?= =?utf-8?b?4KS+4KSo4KS/4KSv4KS+4KSCIC8g4KSG4KSqIOCkh+CkqOCljeCkuQ==?= =?utf-8?b?4KWH4KSCIOCkm+CkvuCkqiDgpLjgpJXgpKTgpYcg4KS54KWI4KSC?= Message-ID: <8b2ca7431002110018q39551562y65525f13acfe7d68@mail.gmail.com> आसमां में सुराख से कम नहीं यह जीत * * [image: अनशनकरी स्वामी यजनानंद : को जूस पिलाकर अनशन तुड़वाते अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर रामकृष्णानंद]*अनशनकरी स्वामी यजनानंद : *को जूस पिलाकर अनशन तुड़वाते अग्नि अखाड़े के महामंडलेश्वर रामकृष्णानंद गंगा में खनन के कुछ मुद्दों पर मातृसदन के आंदोलन के आगे शासन झुका मातृसदन का आंदोलन अखिरकार रंग लाया। तमाम सख्ती के बाद शासन को अखिरकार झुकना पड़ा। शासन ने अधिसूचना जारी कर कुंभ क्षेत्र को मातृसदन की मांग के अनुसार जियापोता तक बढ़ाने का ऐलान कर दिया। इसके साथ ही 6 फरवरी को एडीएम ने मातृसदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद व उनके शिष्य यजनानंद ब्रह्मचारी का अनशन तो तुड़वा दिया, लेकिन क्षेत्र को खनन मुक्त कराने की मांग लेकर स्वामी दयानंद का अनशन अभी जारी है। ज्ञातव्य है कि सैकड़ों ट्रैक्टर, ट्रक, जेसीबी मशीन के भयंकर खनन से गंगा भयानक रूप से प्रदूषित हो रही है। गंगा के सुन्दर तटों एवं द्वीपों का विनाश हो रहा है। Raed More प्रयास. . . . . कहानी लदुना के पानी की... Author: सचिन कुमार जैन, भोपाल [image: पानी तेरे कितने रंग]पूरे देश-प्रदेश की भांति मंदसौर जिले ने भी पानी के गंभीर संकट को भोगा है, परन्तु इस ऐतिहासिक जिले के समाज ने जल संघर्ष की प्रक्रिया में नये-नये मुकाम हासिल करके अपनी विशेषता को सिद्ध कर दिया है। सूखे – अकाल के दौर में मंदसौर में दो सौ से ज्यादा जल संरक्षण की संरचनाओं का जनभागीदारी से निर्माण किया गया। जबकि एक हजार से ज्यादा जल स्रोतों का जीर्णोद्धार हुआ। करोड़ो रुपये का श्रमदान भी हुआ और पानी की कमी ने पानी की अद्भुद कहानी रची है। मूलतः इस गाँव की जलापूर्ति का सबसे बड़ा साधन पास का ही लदुना तालाब रही है। परन्तु यहां जल संकट ने उस वक्त भीषण रूप अख्तियार कर लिया जब य Read more गांववासियों द्वारा खुद जल आपूर्ति की मिसाल Author: सुश्मिता सेनगुप्त Source: www.downtoearth.org.in [image: खुद ही किया प्रबंध]*खुद ही किया प्रबंध* पानी के अभाव ने उड़ीसा के एक गांव को पानी का प्रबंधन करना सिखाया करीब 30 साल की गुलाब कुंजु उन दिनों को याद करती हैं जब अपनी प्यास बुझाने के लिए दूध पीना पड़ा क्योंकि उनके यहां पानी का अभाव था। उनके गांव धौराड़ा के चार बस्तियों में बसे 120 से ज्यादा परिवारों की जरूतों की पूर्ति के लिए सिर्फ तीन हैंडपंप थे। उनकी बस्ती के बाहरी इलाके में स्थित निकटतम हैंडपंप से पानी लाने के लिए दिन में कई बार चक्कर लगाना पड़ता था। इस खबर के स्रोत का लिंक: http://www.downtoearth.org.in/ - - Read more महिलाओं ने बदला पानपाट लेखक: मनीष वैद्य Source: पंचायत परिवार (मई-जून 2003) *घूंघट में रहने वाली महिलाओं ने देवास जिले के कन्नौद ब्लाक के गाँव ‘पानपाट’ की तस्वीर ही बदल दी है। उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया है कि – कमजोर व अबला समझी जाने वाली महिलाएं यदि ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं। उन्हीं के अथक परिश्रम का परिणाम है कि आज पानपाट का मनोवैज्ञानिक, आर्थिक व सामाजिक स्वरुप ही बदल गया है। जो अन्य गाँवो के लिए प्रेरणादायक साबित हो रहा है। * पानपाट गाँव का 35 वर्षीय युवक ऊदल कभी अपने गांव के पानी संकट को भुला नहीं पाएगा। पानी की कमी के चलते गांव वाले दो-दो, तीन-तीन किमी दूर से बैलगाड़ियों पर ड्रम बांध कर लाते हैं। एक दिन ड्रम उतारते समय पानी से भरा लोहे का (200 लीटर वाला) ड्रम उसके - - Read more केसर - 9211530510 -- Minakshi Arora hindi.indiawaterportal.org -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... 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URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100214/a8bc3661/attachment-0001.html From dangijs at gmail.com Thu Feb 18 16:59:34 2010 From: dangijs at gmail.com (Jagdeep Dangi) Date: Thu, 18 Feb 2010 06:29:34 -0500 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KWC4KSa4KSo?= =?utf-8?b?4KS+Li4uLg==?= In-Reply-To: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> References: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> Message-ID: <1662afad1002180329v110d3cf3ja9535e72c2df0edb@mail.gmail.com> सम्माननीय महोदय/महोदया, नमस्कार!! प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नया वर्जन जारी किया है, जोकि लगभग 245 तरह के विभिन्न पूराने प्रचलित फ़ॉन्ट को यूनिकोड में बदलने में पूर्ण सक्षम है। Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.0.9.0) for 191 Fonts DEMO:- http://www.4shared.com/file/95233113/8580c800/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_Font_Parivartak.html?s=1 Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.1.1.0) for 245 Fonts DEMO:- http://www.4shared.com/file/221854247/4c1c9adc/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_F.html DOTNET Framework 1.1:- http://www.4shared.com/file/108500549/bbc7d4cc/dotnetfx.html धन्यवाद। सादर -जगदीप सिंह दाँगी -- Er. Jagdeep Dangi Ward No. 2, Behind Co-operative Bank, Station Area Ganj Basoda, Distt. Vidisha (M.P.) India. PIN- 464 221 Res. (07594) 222457 Mob. 09826343498 Profile: http://www.iiitm.ac.in/iiitm/Scientist_Eng/JDangi.htm -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100218/93029127/attachment-0002.html From dangijs at gmail.com Thu Feb 18 16:59:34 2010 From: dangijs at gmail.com (Jagdeep Dangi) Date: Thu, 18 Feb 2010 06:29:34 -0500 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KWC4KSa4KSo?= =?utf-8?b?4KS+Li4uLg==?= In-Reply-To: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> References: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> Message-ID: <1662afad1002180329v110d3cf3ja9535e72c2df0edb@mail.gmail.com> सम्माननीय महोदय/महोदया, नमस्कार!! प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नया वर्जन जारी किया है, जोकि लगभग 245 तरह के विभिन्न पूराने प्रचलित फ़ॉन्ट को यूनिकोड में बदलने में पूर्ण सक्षम है। Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.0.9.0) for 191 Fonts DEMO:- http://www.4shared.com/file/95233113/8580c800/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_Font_Parivartak.html?s=1 Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.1.1.0) for 245 Fonts DEMO:- http://www.4shared.com/file/221854247/4c1c9adc/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_F.html DOTNET Framework 1.1:- http://www.4shared.com/file/108500549/bbc7d4cc/dotnetfx.html धन्यवाद। सादर -जगदीप सिंह दाँगी -- Er. Jagdeep Dangi Ward No. 2, Behind Co-operative Bank, Station Area Ganj Basoda, Distt. Vidisha (M.P.) India. PIN- 464 221 Res. (07594) 222457 Mob. 09826343498 Profile: http://www.iiitm.ac.in/iiitm/Scientist_Eng/JDangi.htm -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100218/93029127/attachment-0003.html From water.community at gmail.com Fri Feb 26 10:08:28 2010 From: water.community at gmail.com (water community) Date: Fri, 26 Feb 2010 10:08:28 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=5BHindimedia=5D_?= =?utf-8?b?4KS54KWL4KSy4KWAIOCkleClgCDgpLbgpYHgpK3gpJXgpL7gpK7gpKg=?= =?utf-8?b?4KS+4KSP4KSCLyDgpLngpYvgpLLgpYAg4KSq4KSwIOCkleClgeCkmyA=?= =?utf-8?b?4KSG4KSy4KWH4KSW?= In-Reply-To: <8b2ca7431002251929r1111008dh29506e08cbaada19@mail.gmail.com> References: <8b2ca7431002251929r1111008dh29506e08cbaada19@mail.gmail.com> Message-ID: <8b2ca7431002252038i448d0488we2656f27dd63733@mail.gmail.com> इको फ्रैंडली होली प्लीज! Author: प्रतिभा वाजपेयी [image: इको फ्रैंडली होली]*इको फ्रैंडली होली*होली देश का एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसे देश के सभी नागरिक उन्मुक्त भाव और सौर्हादपूर्ण तरीके से मनाते है। यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें भाषा, जाति और धर्म का सभी दीवारें गिर जाती हैं। और बुरा न मानो होली है कह कर हम किसी भी अजनबी को रंगों से सराबोर कर देते है। सही मायने में यही इस त्योहार की विशेषता है। परंतु दुर्भाग्यवश, आधुनिक जीवन में होली अब उतनी खूबसूरत नहीं रही। दूसरे त्योहारों की तरह इस त्योहार पर भी बाजारवाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मुनाफा कमाने की आड़ में रसायनिक रंग बहुतायत से बाजार में बेचे जा रहे हैं। Read more होली के दिन दिल . . . Author: सिराज केसर [image: होली]*होली*फाल्गुन आते ही फाल्गुनी हवा मौसम के बदलने का एहसास करा देती है। कंपकपाती ठंड से राहत लेकर आने वाला फाल्गुन मास लोगों के बीच एक नया सुख का एहसास कराता है। फाल्गुन मास से शुरू होने वाली बसंत ऋतु किसानों के खेतों में नई फसलों की सौगात देता है। पतझड़ के बाद धरती के चारों तरफ हरियाली की एक नई चुनरी ओढ़ा देता है बसंत, हर छोटे–बड़े पौधों में फूल खिला देता है बसंत, ऐसा लगता है एक नये सृजन की तैयारी लेकर आता है बसंत। ऐसे में हर कोई बसंत में अपनी जिंदगी में भी हँसी, खुशी और नयापन भर लेना चाहता हैं। इसी माहौल को भारतीय चित्त ने एक त्योहार का नाम दिया होली। Read more केसर - 9211530510 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100226/e389ab51/attachment-0002.html -------------- next part -------------- _______________________________________________ Hindimedia mailing list Hindimedia at lists.indiawaterportal.org http://lists.indiawaterportal.org/cgi-bin/mailman/listinfo/hindimedia From water.community at gmail.com Fri Feb 26 10:08:28 2010 From: water.community at gmail.com (water community) Date: Fri, 26 Feb 2010 10:08:28 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=5BHindimedia=5D_?= =?utf-8?b?4KS54KWL4KSy4KWAIOCkleClgCDgpLbgpYHgpK3gpJXgpL7gpK7gpKg=?= =?utf-8?b?4KS+4KSP4KSCLyDgpLngpYvgpLLgpYAg4KSq4KSwIOCkleClgeCkmyA=?= =?utf-8?b?4KSG4KSy4KWH4KSW?= In-Reply-To: <8b2ca7431002251929r1111008dh29506e08cbaada19@mail.gmail.com> References: <8b2ca7431002251929r1111008dh29506e08cbaada19@mail.gmail.com> Message-ID: <8b2ca7431002252038i448d0488we2656f27dd63733@mail.gmail.com> इको फ्रैंडली होली प्लीज! Author: प्रतिभा वाजपेयी [image: इको फ्रैंडली होली]*इको फ्रैंडली होली*होली देश का एकमात्र ऐसा त्योहार है जिसे देश के सभी नागरिक उन्मुक्त भाव और सौर्हादपूर्ण तरीके से मनाते है। यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें भाषा, जाति और धर्म का सभी दीवारें गिर जाती हैं। और बुरा न मानो होली है कह कर हम किसी भी अजनबी को रंगों से सराबोर कर देते है। सही मायने में यही इस त्योहार की विशेषता है। परंतु दुर्भाग्यवश, आधुनिक जीवन में होली अब उतनी खूबसूरत नहीं रही। दूसरे त्योहारों की तरह इस त्योहार पर भी बाजारवाद का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। मुनाफा कमाने की आड़ में रसायनिक रंग बहुतायत से बाजार में बेचे जा रहे हैं। Read more होली के दिन दिल . . . Author: सिराज केसर [image: होली]*होली*फाल्गुन आते ही फाल्गुनी हवा मौसम के बदलने का एहसास करा देती है। कंपकपाती ठंड से राहत लेकर आने वाला फाल्गुन मास लोगों के बीच एक नया सुख का एहसास कराता है। फाल्गुन मास से शुरू होने वाली बसंत ऋतु किसानों के खेतों में नई फसलों की सौगात देता है। पतझड़ के बाद धरती के चारों तरफ हरियाली की एक नई चुनरी ओढ़ा देता है बसंत, हर छोटे–बड़े पौधों में फूल खिला देता है बसंत, ऐसा लगता है एक नये सृजन की तैयारी लेकर आता है बसंत। ऐसे में हर कोई बसंत में अपनी जिंदगी में भी हँसी, खुशी और नयापन भर लेना चाहता हैं। इसी माहौल को भारतीय चित्त ने एक त्योहार का नाम दिया होली। Read more केसर - 9211530510 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100226/e389ab51/attachment-0003.html -------------- next part -------------- _______________________________________________ Hindimedia mailing list Hindimedia at lists.indiawaterportal.org http://lists.indiawaterportal.org/cgi-bin/mailman/listinfo/hindimedia From neelimasayshi at gmail.com Sat Feb 27 00:03:21 2010 From: neelimasayshi at gmail.com (Neelima Chauhan) Date: Sat, 27 Feb 2010 00:03:21 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KWC4KSa4KSo?= =?utf-8?b?4KS+Li4uLg==?= In-Reply-To: <1662afad1002180329v110d3cf3ja9535e72c2df0edb@mail.gmail.com> References: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> <1662afad1002180329v110d3cf3ja9535e72c2df0edb@mail.gmail.com> Message-ID: <749797f91002261033q6c334fd3l254522e262cba8c6@mail.gmail.com> शुक्रिया डांगी साहब, जब इंस्‍टाल करने का प्रयास किया तो साफ्टवेयर डाट नेट 1 इंस्‍टाल करने की जिद करता है जबकि सिस्‍टम में पहले ही बाद के संस्‍करण का डाट नेट है...ये अतीतोन्‍मुखी क्‍यों हो रहा है :) विजेंद्र 2010/2/18 Jagdeep Dangi > सम्माननीय महोदय/महोदया, > नमस्कार!! > प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नया वर्जन जारी किया है, जोकि लगभग 245 तरह > के विभिन्न पूराने प्रचलित फ़ॉन्ट को यूनिकोड में बदलने में पूर्ण सक्षम है। > > Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.0.9.0) for 191 Fonts DEMO:- > > > http://www.4shared.com/file/95233113/8580c800/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_Font_Parivartak.html?s=1 > > Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.1.1.0) for 245 Fonts DEMO:- > > > http://www.4shared.com/file/221854247/4c1c9adc/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_F.html > > DOTNET Framework 1.1:- > > http://www.4shared.com/file/108500549/bbc7d4cc/dotnetfx.html > > धन्यवाद। > सादर > -जगदीप सिंह दाँगी > > -- > Er. Jagdeep Dangi > Ward No. 2, > Behind Co-operative Bank, > Station Area Ganj Basoda, > Distt. Vidisha (M.P.) India. > PIN- 464 221 > Res. (07594) 222457 > Mob. 09826343498 > Profile: http://www.iiitm.ac.in/iiitm/Scientist_Eng/JDangi.htm > > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > -- Neelima http://linkitmann.blogspot.com -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100227/20a57f6d/attachment.html From chauhan.vijender at gmail.com Sat Feb 27 00:05:50 2010 From: chauhan.vijender at gmail.com (Vijender chauhan) Date: Sat, 27 Feb 2010 00:05:50 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KWC4KSa4KSo?= =?utf-8?b?4KS+Li4uLg==?= In-Reply-To: <749797f91002261033q6c334fd3l254522e262cba8c6@mail.gmail.com> References: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> <1662afad1002180329v110d3cf3ja9535e72c2df0edb@mail.gmail.com> <749797f91002261033q6c334fd3l254522e262cba8c6@mail.gmail.com> Message-ID: <8bdde4541002261035l20066337i3560ad62988c08a1@mail.gmail.com> ऊपर की टिप्‍पणी मेरी ही गिनी जाए । लागइन भ्रम से नीलिमा के नाम से चली गई है। विजेंद्र 2010/2/27 Neelima Chauhan > शुक्रिया डांगी साहब, > > जब इंस्‍टाल करने का प्रयास किया तो साफ्टवेयर डाट नेट 1 इंस्‍टाल करने की जिद > करता है जबकि सिस्‍टम में पहले ही बाद के संस्‍करण का डाट नेट है...ये > अतीतोन्‍मुखी क्‍यों हो रहा है :) > > विजेंद्र > > 2010/2/18 Jagdeep Dangi > >> सम्माननीय महोदय/महोदया, >> नमस्कार!! >> प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नया वर्जन जारी किया है, जोकि लगभग 245 >> तरह के विभिन्न पूराने प्रचलित फ़ॉन्ट को यूनिकोड में बदलने में पूर्ण सक्षम >> है। >> >> Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.0.9.0) for 191 Fonts DEMO:- >> >> >> http://www.4shared.com/file/95233113/8580c800/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_Font_Parivartak.html?s=1 >> >> Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.1.1.0) for 245 Fonts DEMO:- >> >> >> http://www.4shared.com/file/221854247/4c1c9adc/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_F.html >> >> DOTNET Framework 1.1:- >> >> http://www.4shared.com/file/108500549/bbc7d4cc/dotnetfx.html >> >> धन्यवाद। >> सादर >> -जगदीप सिंह दाँगी >> >> -- >> Er. Jagdeep Dangi >> Ward No. 2, >> Behind Co-operative Bank, >> Station Area Ganj Basoda, >> Distt. Vidisha (M.P.) India. >> PIN- 464 221 >> Res. (07594) 222457 >> Mob. 09826343498 >> Profile: http://www.iiitm.ac.in/iiitm/Scientist_Eng/JDangi.htm >> >> >> _______________________________________________ >> Deewan mailing list >> Deewan at mail.sarai.net >> http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan >> >> > > > -- > Neelima > http://linkitmann.blogspot.com > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100227/fdedcc30/attachment.html From dangijs at gmail.com Sat Feb 27 09:01:28 2010 From: dangijs at gmail.com (Jagdeep Dangi) Date: Fri, 26 Feb 2010 22:31:28 -0500 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KWC4KSa4KSo?= =?utf-8?b?4KS+Li4uLg==?= In-Reply-To: <749797f91002261033q6c334fd3l254522e262cba8c6@mail.gmail.com> References: <1662afad1002140302k44e38e15je81441fa1983aae@mail.gmail.com> <1662afad1002180329v110d3cf3ja9535e72c2df0edb@mail.gmail.com> <749797f91002261033q6c334fd3l254522e262cba8c6@mail.gmail.com> Message-ID: <1662afad1002261931o7728c50fv3ecef87143cce059@mail.gmail.com> DOTNET Framework 1.1:- http://www.4shared.com/file/108500549/bbc7d4cc/dotnetfx.html धन्यवाद। सादर -जगदीप सिंह दाँगी 2010/2/26 Neelima Chauhan > शुक्रिया डांगी साहब, > > जब इंस्‍टाल करने का प्रयास किया तो साफ्टवेयर डाट नेट 1 इंस्‍टाल करने की जिद > करता है जबकि सिस्‍टम में पहले ही बाद के संस्‍करण का डाट नेट है...ये > अतीतोन्‍मुखी क्‍यों हो रहा है :) > > विजेंद्र > > 2010/2/18 Jagdeep Dangi > >> सम्माननीय महोदय/महोदया, >> नमस्कार!! >> प्रखर देवनागरी फ़ॉन्ट परिवर्तक का नया वर्जन जारी किया है, जोकि लगभग 245 >> तरह के विभिन्न पूराने प्रचलित फ़ॉन्ट को यूनिकोड में बदलने में पूर्ण सक्षम >> है। >> >> Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.0.9.0) for 191 Fonts DEMO:- >> >> >> http://www.4shared.com/file/95233113/8580c800/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_Font_Parivartak.html?s=1 >> >> Prakhar Devanagari Font Parivartak (Version 1.1.1.0) for 245 Fonts DEMO:- >> >> >> http://www.4shared.com/file/221854247/4c1c9adc/DangiSoft_Prakhar_Devanagari_F.html >> >> DOTNET Framework 1.1:- >> >> http://www.4shared.com/file/108500549/bbc7d4cc/dotnetfx.html >> >> धन्यवाद। >> सादर >> -जगदीप सिंह दाँगी >> >> -- >> Er. Jagdeep Dangi >> Ward No. 2, >> Behind Co-operative Bank, >> Station Area Ganj Basoda, >> Distt. Vidisha (M.P.) India. >> PIN- 464 221 >> Res. (07594) 222457 >> Mob. 09826343498 >> Profile: http://www.iiitm.ac.in/iiitm/Scientist_Eng/JDangi.htm >> >> >> _______________________________________________ >> Deewan mailing list >> Deewan at mail.sarai.net >> http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan >> >> > > > -- > Neelima > http://linkitmann.blogspot.com > -- Er. Jagdeep Dangi Ward No. 2, Behind Co-operative Bank, Station Area Ganj Basoda, Distt. Vidisha (M.P.) India. PIN- 464 221 Res. (07594) 222457 Mob. 09826343498 Profile: http://www.iiitm.ac.in/iiitm/Scientist_Eng/JDangi.htm -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20100226/b7889d1f/attachment-0001.html