From ravikant at sarai.net Sat Feb 3 16:59:31 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 3 Feb 2007 16:59:31 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= nai madhushala Message-ID: <200702031659.32350.ravikant@sarai.net> dosto, main pahle bhi sweekar kar chuka hoon ki kavita mein meri gati thoRi hai par net par ghoomte hue kuchh aise ratna mil jate hain ki aapse share kiye bina raha nahin jata. pesh hai Krishn Kalpit rachit EK Sharabi ki suktiyon ke kuchh ansh, baghair ijazat. peshi hogi toh main kah sakoonga, main nashe mein tha. baqui parhne ke liye yahan jayein: http://krishnakalpit.blogspot.com/ maze lein. ravikant (कृष्ण कल्पित का जन्म 30 अक्टूबर, 1957 को रेगिस्तान के एक कस्बे फतेहपुर शेखावटी में हुआ. हिंदी और टीवी के बहुत ही संजीदा नाम है. अब तक कविता की तीन किताबें और मीडिया पर समीक्षा की एक किताब छप चुकी है. ऋत्विक घटक के जीवन पर एक पेड की कहानी नाम से एक वृत्तचित्र भी बना चुके हैं. पर एक शराबी की सूक्तियों का वाकई जवाब नहीं. नेट से जुडी हमारी दुनिया के दोस्त इन सूक्तियों का इस्तेमाल कभी भी कहीं भी कर सकते हैं. पर इसके लिए इजाजत जरूरी है. ) 6. समकालीन कवियों में सबसे अच्छा शराबी कौन है? समकालीन शराबियों में सबसे अच्छा कवि कौन है? 19. सभी सरहदों से परे धर्म, मजहब, रंग, भेद और भाषाओं के पार शराबी एक विश्व नागरिक है. 21. सबने लिक्खा - वली दक्कनी सबने लिक्खे - मृतकों के बयान किसी ने नहीं लिखा वहां पर थी शराब पीने पर पाबंदी शराबियों से वहां अपराधियों का सा सलूक किया जाता था. 27. पुरस्कृत शराबियों के पास बचे हैं सिर्फ पीतल के तमगे उपेक्षित शराबियों के पास अभी भी बची है थोडी सी शराब. 34. पटना का शराबी कहना ठीक नहीं कंकडबाग के शराबी से कितना अलग और अलबेला है इनकमटैक्स गोलंबर का शराबी. 43. शराब ने मिटा दिये राजशाही, रजवाडे और सामंत शराब चाहती है दुनिया में सच्चा लोकतंत्र 52. शराब सेतु है मनुष्य और कविता के बीच. सेतु है शराब श्रमिक और कुदाल के बीच. 46. इंतजार में ही पी गये चार प्याले तुम आ जाते तो क्या होता? 49. तुम्हारे आने पर मुझे बताया गया प्रेमी तुम्हारे जाने के बाद मुझे शराबी कहा गया. 58. कलवारी में पीने के बाद मृत्यु और जीवन से परे वह अविस्मरणीय नृत्य 'ठगिनी क्यों नैना झमकावै' कफन बेच कर अगर घीसू और माधो नहीं पीते शराब तो यह मनुष्यता वंचित रह जाती एक कालजयी कृति से. 62. पीने दे पीने दे मस्जिद में बैठ कर कलवारियां और नालियां तो खुदाओं से अटी पडी हैं. न उनसे मिले न मय पी है' 63. 'ऐसे भी दिन आएंगे' काल पडेगा मुल्क में किसान करेंगे आत्महत्याएं और खेत सूख जाएंगे. 64. 'घन घमंड नभ गरजत घोरा प्रियाहीन मन डरपत मोरा' ऐसी भयानक रात पीता हूं शराब पीता हूं शराब! 67. 'गोरी सोई सेज पर मुख पर डारे केस' 'उदासी बाल खोले सो रही है' अब बारह का बजर पडा है मेरा दिल तो कांप उठा है. जैसे तैसे जिंदा हूं सच बतलाना तू कैसा है. सबने लिक्खे माफीनामे. हमने तेरा नाम लिखा है. 71. कितना पानी बह गया नदियों में 'तो फिर लहू क्या है?' लहू में घुलती है शराब जैसे शराब घुलती है शराब में. 72. 'धिक् जीवन सहता ही आया विरोध' 'कन्ये मैं पिता निरर्थक था' तरल गरल बाबा ने कहा 'कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास' शराबी को याद आयी कविता कई दिनों के बाद 73. राजकमल बढाते हैं चिलम उग्र थाम लेते हैं. मणिकर्णिका घाट पर रात के तीसरे पहर भुवनेश्वर गुफ्तगू करते हैं मजाज से. मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीडी एक शराबी मांगता है उनसे माचिस. 'डासत ही गयी बीत निशा सब'. 74. 'मौसे छल किए जाय हाय रे हाय हाय रे हाय' 'चलो सुहाना भरम तो टूटा' अबे चल लकडी के बुरादे घर चल! सडक का हुस्न है शराबी! 75. 'सब आदमी बराबर हैं यह बात कही होगी किसी सस्ते शराबघर में एक बदसूरत शराबी ने किसी सुंदर शराबी को देख कर.' यह कार्ल मार्क्स के जन्म के बहुत पहले की बात होगी! 76. मगध में होगी विचारों की कमी शराबघर तो विचारों से अटे पडे हैं. 77. शराबघर ही होगी शायद आलोचना की जन्मभूमि! पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा! 80. 'होगा किसी दीवार के साये के तले मीर' अभी नहीं गिरेगी यह दीवार तुम उसकी ओट में जाकर एक स्त्री को चूम सकते हो शराबी दीवार को चूम रहा है चांदनी रात में भीगता हुआ. 82. भंग की बूटी गांजे की कली खप्पर की शराब कासी तीन लोक से न्यारी और शराबी तीन लोक का वासी! 84. टेलीविजन के परदे पर बाहुबलियों की खबरें सुनाती हैं बाहुबलाएं! टकटकी लगाये देखता है शराबी विडंबना का यह विलक्षण रूपक भंते! एक प्याला और. 89. 'अंतर्राष्ट्रीय सिर्फ हवाई जहाज होते हैं कलाकार की जडें होती हैं' और उन जडों को सींचना पडता है शराब से! 90. जिस पेड के नीचे बैठ कर ऋत्विक घटक कुरते की जेब से निकालते हैं अद्-धा वहीं बन जाता है अड्डा वहीं हो जाता है बोधिवृक्ष! 93. (मंटो की स्मृति में) कब्रगाह में सोया है शराबी सोचता हुआ वह बडा शराबी है या खुदा! From ravikant at sarai.net Mon Feb 5 11:54:34 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 5 Feb 2007 11:54:34 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= nai madhushala - I Message-ID: <200702051154.35240.ravikant@sarai.net> One mail was a bit too much for the deewan list. so sending it in two parts. ravikant   dosto, main pahle bhi sweekar kar chuka hoon ki kavita mein meri gati thoRi hai par net par ghoomte hue kuchh aise ratna mil jate hain ki aapse share kiye bina raha nahin jata. pesh hai Krishn Kalpit rachit EK Sharabi ki suktiyon ke kuchh ansh, baghair ijazat. peshi hogi toh main kah sakoonga, main nashe mein tha. baqui parhne ke liye yahan jayein: http://krishnakalpit.blogspot.com/ maze lein. ravikant   (कृष्ण कल्पित का जन्म 30 अक्टूबर, 1957 को रेगिस्तान के एक कस्बे फतेहपुर शेखावटी में हुआ. हिंदी और टीवी के बहुत ही संजीदा नाम है. अब तक कविता की तीन किताबें और मीडिया पर समीक्षा की एक किताब छप चुकी है. ऋत्विक घटक के जीवन पर एक पेड की कहानी नाम से एक वृत्तचित्र भी बना चुके हैं. पर एक शराबी की सूक्तियों का वाकई जवाब नहीं. नेट से जुडी हमारी दुनिया के दोस्त इन सूक्तियों का इस्तेमाल कभी भी कहीं भी कर सकते हैं. पर इसके लिए इजाजत जरूरी है. ) 6. समकालीन कवियों में सबसे अच्छा शराबी कौन है? समकालीन शराबियों में सबसे अच्छा कवि कौन है? 19. सभी सरहदों से परे धर्म, मजहब, रंग, भेद और भाषाओं के पार शराबी एक विश्व नागरिक है. 21. सबने लिक्खा - वली दक्कनी सबने लिक्खे - मृतकों के बयान किसी ने नहीं लिखा वहां पर थी शराब पीने पर पाबंदी शराबियों से वहां अपराधियों का सा सलूक किया जाता था. 27. पुरस्कृत शराबियों के पास बचे हैं सिर्फ पीतल के तमगे उपेक्षित शराबियों के पास अभी भी बची है थोडी सी शराब. 34. पटना का शराबी कहना ठीक नहीं कंकडबाग के शराबी से कितना अलग और अलबेला है इनकमटैक्स गोलंबर का शराबी. 43. शराब ने मिटा दिये राजशाही, रजवाडे और सामंत शराब चाहती है दुनिया में सच्चा लोकतंत्र 52. शराब सेतु है मनुष्य और कविता के बीच. सेतु है शराब श्रमिक और कुदाल के बीच. 46. इंतजार में ही पी गये चार प्याले तुम आ जाते तो क्या होता? 49. तुम्हारे आने पर मुझे बताया गया प्रेमी तुम्हारे जाने के बाद मुझे शराबी कहा गया. 58. कलवारी में पीने के बाद मृत्यु और जीवन से परे वह अविस्मरणीय नृत्य 'ठगिनी क्यों नैना झमकावै' कफन बेच कर अगर घीसू और माधो नहीं पीते शराब तो यह मनुष्यता वंचित रह जाती एक कालजयी कृति से. 62. पीने दे पीने दे मस्जिद में बैठ कर कलवारियां और नालियां तो खुदाओं से अटी पडी हैं. न उनसे मिले न मय पी है' 63. 'ऐसे भी दिन आएंगे' काल पडेगा मुल्क में किसान करेंगे आत्महत्याएं और खेत सूख जाएंगे. 64. 'घन घमंड नभ गरजत घोरा प्रियाहीन मन डरपत मोरा' ऐसी भयानक रात पीता हूं शराब पीता हूं शराब! From ravikant at sarai.net Mon Feb 5 11:55:03 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 5 Feb 2007 11:55:03 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= nai madhushala -2 Message-ID: <200702051155.03893.ravikant@sarai.net> 67. 'गोरी सोई सेज पर मुख पर डारे केस' 'उदासी बाल खोले सो रही है' अब बारह का बजर पडा है मेरा दिल तो कांप उठा है. जैसे तैसे जिंदा हूं सच बतलाना तू कैसा है. सबने लिक्खे माफीनामे. हमने तेरा नाम लिखा है. 71. कितना पानी बह गया नदियों में 'तो फिर लहू क्या है?' लहू में घुलती है शराब जैसे शराब घुलती है शराब में. 72. 'धिक् जीवन सहता ही आया विरोध' 'कन्ये मैं पिता निरर्थक था' तरल गरल बाबा ने कहा 'कई दिनों तक चूल्हा रोया चक्की रही उदास' शराबी को याद आयी कविता कई दिनों के बाद 73. राजकमल बढाते हैं चिलम उग्र थाम लेते हैं. मणिकर्णिका घाट पर रात के तीसरे पहर भुवनेश्वर गुफ्तगू करते हैं मजाज से. मुक्तिबोध सुलगाते हैं बीडी एक शराबी मांगता है उनसे माचिस. 'डासत ही गयी बीत निशा सब'. 74. 'मौसे छल किए जाय हाय रे हाय हाय रे हाय' 'चलो सुहाना भरम तो टूटा' अबे चल लकडी के बुरादे घर चल! सडक का हुस्न है शराबी! 75. 'सब आदमी बराबर हैं यह बात कही होगी किसी सस्ते शराबघर में एक बदसूरत शराबी ने किसी सुंदर शराबी को देख कर.' यह कार्ल मार्क्स के जन्म के बहुत पहले की बात होगी! 76. मगध में होगी विचारों की कमी शराबघर तो विचारों से अटे पडे हैं. 77. शराबघर ही होगी शायद आलोचना की जन्मभूमि! पहला आलोचक कोई शराबी रहा होगा! 80. 'होगा किसी दीवार के साये के तले मीर' अभी नहीं गिरेगी यह दीवार तुम उसकी ओट में जाकर एक स्त्री को चूम सकते हो शराबी दीवार को चूम रहा है चांदनी रात में भीगता हुआ. 82. भंग की बूटी गांजे की कली खप्पर की शराब कासी तीन लोक से न्यारी और शराबी तीन लोक का वासी! 84. टेलीविजन के परदे पर बाहुबलियों की खबरें सुनाती हैं बाहुबलाएं! टकटकी लगाये देखता है शराबी विडंबना का यह विलक्षण रूपक भंते! एक प्याला और. 89. 'अंतर्राष्ट्रीय सिर्फ हवाई जहाज होते हैं कलाकार की जडें होती हैं' और उन जडों को सींचना पडता है शराब से! 90. जिस पेड के नीचे बैठ कर ऋत्विक घटक कुरते की जेब से निकालते हैं अद्-धा वहीं बन जाता है अड्डा वहीं हो जाता है बोधिवृक्ष! 93. (मंटो की स्मृति में) कब्रगाह में सोया है शराबी सोचता हुआ वह बडा शराबी है या खुदा! From rajeshkajha at yahoo.com Thu Feb 8 11:28:30 2007 From: rajeshkajha at yahoo.com (Rajesh Ranjan) Date: Wed, 7 Feb 2007 21:58:30 -0800 (PST) Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= yahoo hindi Message-ID: <284371.94852.qm@web52915.mail.yahoo.com> http://in.hindi.yahoo.com/ like msn yahoo aslo started... Regards, Rajesh ____________________________________________________________________________________ Don't get soaked. Take a quick peak at the forecast with the Yahoo! Search weather shortcut. http://tools.search.yahoo.com/shortcuts/#loc_weather -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070207/c6351bec/attachment.html From ravikant at sarai.net Thu Feb 8 18:02:24 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Thu, 8 Feb 2007 18:02:24 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?yahoo_hindi_-_?= =?utf-8?b?4KSV4KS14KS/4KSk4KS+ICwg4KSr4KWB4KSf4KSs4KWJ4KSyICwg4KSu4KSb?= =?utf-8?b?4KSy4KWAIOCklOCksCDgpK7gpL7gpLDgpYHgpKTgpL8=?= In-Reply-To: <284371.94852.qm@web52915.mail.yahoo.com> References: <284371.94852.qm@web52915.mail.yahoo.com> Message-ID: <200702081802.24396.ravikant@sarai.net> याहू की इसी नई हिन्दी साइट से. शुक्रिया, राजेश रविकान्त पुस्तक समीक्षा http://in.hindi.yahoo.com/Literature/BookReviews/0610/27/1061027006_1.htm बांग्ला के उत्कृष्ट निबंध हिन्दी में किसी साहित्य की श्रेष्ठता उसके पाठकों की संख्या से समृद्धि प्राप्त करती है। अन्य भाषाओं के अनुवाद से साहित्य की व्यापकता लाभान्वित होकर श्रेय प्रदान करती है। अनुवादित साहित्य की महिमा तो और अधिक गुणी है। बांग्ला से हिन्दी अनुवाद के प्रारंभिक दौर में बंकिमचंद्र, रवीन्द्रनाथ और शरत्‌कृतियों के अनुवाद ही प्रमुखता से किए गए। तब भी विचारात्मक अनुवाद कम थे। डॉ. रामशंकर द्विवेदी का नाम अनुवादकों में उल्लेखनीय है। प्रस्तुत संकलन में आपने निबंधों, लेखों, पत्रों आदि का प्रभावोत्पादक अनुवाद कर हिन्दी पाठकों को लाभान्वित किया है। कविता, फुटबॉल, मछली और मारुति में डॉ. नवनीता देव सेन ने बांग्ला कविता व कवियों की साम्प्रतिक दशा पर प्रकाश डाला है। इस निबंध की शैली व्यंग्य-विनोद की है। बांग्ला में ऐसी रचनाएँ रम्य रचना के अंतर्गत आती हैं। इसकी शैली अत्यंत चुटीली, हास्य, व्यंग्यपूर्ण है। फिर भी नवनीता के विनोद में व्यंग्य स्पष्ट है जिसका हिन्दी में अभाव है। अन्य कृतियों में पथेर पांचाली के लेखक विभूतिभूषण बंधोपाध्याय द्वारा 'साहित्य का मूल्य' भी अनुवादित है। विभूतिभूषण बंधोपाध्याय को हिन्दी जगत एक कथाकार के रूप में जानता है किंतु वे बड़े विचारक भी थे जिसे उनका भाषण साहित्य का मूल्य बखूबी व्यक्त करता है। साहित्य का मूल्य में उन्होंने साहित्य के मानदंड से जुड़ी कुछ ऐसी समस्याएँ उठाई हैं जो आज के दलित विमर्श के बहाने हमारे सामने उभरकर आ रही हैं। साहित्यिक विवेक आवश्यक है, साहित्य में प्रजातंत्र नहीं चल सकता। उनके इस भाषण को पढ़कर उनकी स्वच्छ और गतिमय गद्य रचना की शक्ति देखकर पाठक आश्चर्य से अभि भूत हो जाते हैं। इस संकलन में चार निबंध ऐसे हैं जो बांग्ला के तीन विख्यात और एक उदीयमान कवि के प्रेरणा स्रोत को बयान करते हैं। निबंधों का लहजा आत्मकथात्मक है। सृजन से जुड़ा हुआ एक चिरन्तन प्रश्न का उत्तर कि 'आखिर मैं क्यों लिखता हूँ।' अरुण मित्र, सुभाष मुखोपाध्याय, नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती तथा जय गोस्वामी ने अपनी तरह से कविता लिखने के कारणों की खोजबीन की तथा प्रथम कविता की सृजन गाथा लिखी। समरेश बसु की आत्मकथात्मक संघर्षपूर्ण कथाकार होने तक का सफर...। रवींद्र समीक्षा और भिन्न रुचि का अधिकार निबंध में शंख घोष ने रवींद्र साहित्य की विभिन्न समीक्षाओं के आधार पर इस प्रश्न के समाधान का प्रयास किया है कि समीक्षा में परमत सहिष्णुता का क्या स्थान है व भिन्न आयामी कृतियों की चि रन्तनता का प्रश्न, उनमें निहित अर्थ, समयसंगत होता है या भिन्न होता है। वजनी विचारों की स्पष्ट, सटीक, सुलिखित अभिव्यक्ति साहित्य की उत्कृष्टत्म कृतियों की श्रृंखला में संवर्धन करती है। पुस्तक : कविता, फुटबॉल, मछली और मारुति, लेखक : डॉ. रामशंकर द्विवेदी, प्रकाशक : रामकृष्ण प्रकाशन, विदिशा, मूल्य : 250 रुपए गुरुवार 08 फरवरी 2007 11:28 को, Rajesh Ranjan ने लिखा था: > http://in.hindi.yahoo.com/ > > like msn yahoo aslo started... > > Regards, > Rajesh > > > > > > ___________________________________________________________________________ >_________ Don't get soaked. Take a quick peak at the forecast > with the Yahoo! Search weather shortcut. > http://tools.search.yahoo.com/shortcuts/#loc_weather From ravikant at sarai.net Fri Feb 9 14:30:56 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Fri, 9 Feb 2007 14:30:56 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSo4KSv4KS+IA==?= =?utf-8?b?4KS24KSs4KWN4KSmIC0gc3VidmVydGlzaW5n?= Message-ID: <200702091430.57138.ravikant@sarai.net> subvertising: अंग्रेज़ी का एक मज़ेदार शब्द है, जिसका मतलब है किसी कॉरपोरेट या राजनीतिक विज्ञापन / मुहिम की पैरोडी करना, माख़ौल उड़ाना: http://en.wikipedia.org/wiki/Subvertising मैं सोच रहा था कि इसे हिन्दी में क्या कहेंगे. ख़याल आया कि हमारे यहाँ अवज्ञा की स्थापित परंपरा है, जैसे कि सिविल डिसॉबीडिएन्स के लिए सिविल नाफ़रमानी या सविनय अवज्ञा जैसे पद चलते आए हैं. तो उसी तर्ज़ पर सब्वर्टाइज़िंग के लिए 'अवज्ञापन' कैसा है? या कोई बेहतर लफ़्ज़ सूझता है आपको? रविकान्त From ravikant at sarai.net Fri Feb 9 18:42:04 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Fri, 9 Feb 2007 18:42:04 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSo4KSv4KS+IA==?= =?utf-8?b?4KS24KSs4KWN4KSmIC0gc3VidmVydGlzaW5n?= In-Reply-To: <8bdde4540702090110s2cb6863atd82ff79dac017704@mail.gmail.com> References: <200702091430.57138.ravikant@sarai.net> <8bdde4540702090110s2cb6863atd82ff79dac017704@mail.gmail.com> Message-ID: <200702091842.04422.ravikant@sarai.net> विजेन्द्र जी, शुक्रिया. क्रिया नहीं है, बल्कि क्रिया में आईएनजी लगकर संज्ञा ही बन गया है यह शब्द. अंग्रेज़ी व्याकरण में इसे में शायद gerund कहते हैं. और 'विज्ञापन' का संज्ञात्मक दृष्टांत तो अपन के पास है ही. अवज्ञाने में विज्ञापन के भाव का लोप हो जाता है, ये समस्या है. और प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा. रविकान्त शुक्रवार 09 फरवरी 2007 14:40 को, आपने लिखा था: > रविकांत, > मूल तो ठीक ही पकड़ा आपने पर subvertising तो क्रिया है इसलिए संज्ञा उसका > अनुवाद शायद ठीक न हो। अवज्ञाना कैसा रहेगा ? > विजेंद्र > > On 2/9/07, Ravikant wrote: > > subvertising: > > > > अंग्रेज़ी का एक मज़ेदार शब्द है, जिसका मतलब है किसी कॉरपोरेट या राजनीतिक > > विज्ञापन / मुहिम > > की पैरोडी करना, माख़ौल उड़ाना: > > > > http://en.wikipedia.org/wiki/Subvertising > > > > मैं सोच रहा था कि इसे हिन्दी में क्या कहेंगे. ख़याल आया कि हमारे यहाँ > > अवज्ञा की स्थापित परंपरा > > है, जैसे कि सिविल डिसॉबीडिएन्स के लिए सिविल नाफ़रमानी या सविनय अवज्ञा > > जैसे पद चलते आए > > हैं. तो उसी तर्ज़ पर सब्वर्टाइज़िंग के लिए 'अवज्ञापन' कैसा है? या कोई > > बेहतर लफ़्ज़ सूझता है > > आपको? > > > > रविकान्त > > _______________________________________________ > > Deewan mailing list > > Deewan at mail.sarai.net > > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan From girindranath at gmail.com Sat Feb 10 11:57:21 2007 From: girindranath at gmail.com (girindra nath) Date: Sat, 10 Feb 2007 12:12:21 +0545 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KWL4KS44KWA?= =?utf-8?b?IOCkleClgCDgpJfgpYHgpILgpKHgpL7gpJfgpLDgpY3gpKbgpYAg4KSt?= =?utf-8?b?4KWAIOCkrOCkpuCksuClgCDgpK3gpYjgpK/gpL4uLi4=?= Message-ID: <63309c960702092227u744304bfpf6b54b63e88668ab@mail.gmail.com> ... कोसी का इलाका बाढ और बालू से यदि अभिशप्त है तो यकिन मानिए यहा की गुडागर्दी भी क्लासिकल कैटोगरी मे बंटी है , इसमे लगातार बदलाव भी आ रहा है. यह वही इलाका है जिसके बारे मे कहा जाता था- "जहर न खाउ ,माहुर न खाउ, मरबाक हो तो पुर्णिया आउ." यहां अभी भी सैकडो एकड जमीन के मालिक बडे संख्या मे है.ये लोग खास जमीन्दारी स्टाइल मे जिंदगी गुजार रहे हैं.जिसकी जितनी जमीन वह उतना ही बलवान्...मतलब बाहुबली. ओमकारा के ओमी भैया तो यहां टोले-टोले मे मिल जायेगे आपको. दर असल यहा जमीन न केवल अन्न उपजाने का जरिया है अपितु जमीन की बहुलता से ही यहा के लोगो की सियासी तकदीर बनती और बिगड्ती है. हर गांव मे किसी खास बाबू के हाथो मे जमीन का बडा भाग है. चले अब आपको गुंडागर्दी के लाइन पर ले चलें- ७०-८० के दशक मे जहां संभ्रात बनकर गुंडागर्दी चला करती थी, वही ९० के बाद संभ्रांत तबका भी बाहुबली स्टाइल मे अपनी चाल चलने लगा है.यदि आपने बिहार के इस भाग के किसी भी इलाके का दौरा किया है तो तस्वीर समझ मे आ जायेगी. यहा व्यक्ति के नाम से गांव जाना जाता है, परेशान मत होइए न ! चूंकि गांव मे किसी एक परिवार के हाथो मे सैकडो एकड जमीन होती है, और वही होता है गांव का बाहुबली. उपज होती है-धान,पटसन. दलहन तो सुरक्षा के लिए अपनी सेना. जहां पहले ट्रेक्टर्..जीप ..राजदूत मोटरसाइकाल और पारंपरिक दो-नलिया बंदुक बाहुबलि परिवार का द्वेतक हुआ करता था, अब होता है-सूमो..बोलेरो..स्क्रपियो और ...हथियार की तो बत ही नहीं.पढते वक्त आपको यह वर्णन भले ही नकारात्मक लगता हो लेकिन यकिन मानिए सच्चाइ से आंख छिपाना बेईमानी होगी...मेरे लिए. धमदाहा, रुपोली,भवानीपुर कुछ ऐसे जगह है जो आपको चंबल से कम न लगेंगे. जमीन की बदौलत यहां की राजनीति काफी नमकीन होती है जनाब.. विधायक जी यदि अपने इलाके के विधायक है तो गांव मे कोई और ही विधायक होता है. द्ण्डवत प्रणाम की प्रथा तो यहां शुरु से ही है. ६०-७० के दशक मे नक्षत्र मालाकार नाम का डाकु यहा का सबसे बडा डकैत हुआ करता था...लेकिन बडे भुपतियो के साथ उसका रिश्ता मधुर हुआ करता था. संबध के अच्छे होने का कारण कुछ तो होगा हीं...ऐसी मेरी छोटी बुद्धी मानती है खैर ! उस समय ड्कैती गुंडागर्दी की सर्वोच्य शिखर होती थी..पर समय के बदलने के साथ ही यह अब निकृष्टतम समझने जाने लगी है. ड्राइंग रुम डील का चलन अब सबसे ज्यादा है. शायद इसी कारण जमीन्दारो की एक बडी जमात अब जिला मुख्यालय मे अपने आउट हाउस मे डेरा डाले रहती है.बदलाव का यह नया रुप आपको कई परतो के अंदर ले जायेगा.जमीन्दारो को अब अपने ही खास लोगो से डर सताने लगा है,ये वही लोग है जिसे इनलोगो ने अपने काम के लिए यूज किया था ..अब वे तो ओमी भैया बन गये है. बडे भूपति अब साप्ताहिक छुट्टी मे गांव आते हैं.....आखिर यही तो है नये बाहुबलियो का रौब ! पुर्णिया, सहरसा, मधेपुरा, किशनगंज आदि जिलो मे ये काम बखुबी चल रहे है,नेपाल,बंगलादेश नजदीक होने कारण वहां से भी लोग यहां आ रहे है...शायद यही है कोसी का नया रुप...खास मार्डन-लुक.अगर विशाल भारद्वाज इस इलाके को घुमे तो उनके लिए एक नयी स्क्रीप्ट तैयार मिलेगी. गिरीन्द्र नाथ झा. From ravikant at sarai.net Sat Feb 10 13:15:24 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 10 Feb 2007 13:15:24 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Fw: ek nazar Message-ID: <200702101315.25107.ravikant@sarai.net> एक नजर इधर भी-- www.bhartiyapaksha.com इनकेप्सुलेटेड संदेश का अंत From rakesh at sarai.net Mon Feb 12 12:50:24 2007 From: rakesh at sarai.net (rakesh at sarai.net) Date: Mon, 12 Feb 2007 08:20:24 +0100 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?=28no_subject=29?= Message-ID: <6e60afe7d30afa925d88fb43d7f6e622@sarai.net> Mitron Below is an article on 'Nayi Kahani' by my one very dear journalist (he works in a hindi newspaper) friend. It was published in The Economic Times on 10 Feb 2007. Hai na dilchasp? Bandhu kaam karte hain hindi akhbaar mein aur hindi kahani par jab likhne baithe to jagah diya angrezi walon nen .... An Absent Future? By Sorit "…He puts his hand over Nirmala…touches her smooth round shoulders…he is very familiar with this feeling …slowly he moves his hand over her body to feel her and tries to identify the slow noise of her breathings….. and suddenly he wakes her up, 'Nirmala…Niramala'..he shouts in madness…. 'Do you know me? Do you know me Nirmala?, Nirmala surprised looked at his face and then asked slowly 'What happened' ? And he keeps on looking at her. His eyes keep searching for something in her face….. In one of his most famous story titled "Khoyee Hui Dishayen ( The lost directions)" Kamaleswar , who demised a few days back, describes the utter loneliness of a person in the modern world which ultimately makes a person a complete stranger before himself. The above mentioned story is about a person , Chander, who belongs to a small town and resides in Delhi for his job. For obvious reasons he feels himself a complete stranger in this metropolitan . No one is known to him not he knows anyone, from office to Auto rickshaw driver and from colleagues up to the next door neighbor and at the end of the story he tries to recognize his wife and come to realize that both of them are strangers to one another as well. Kamaleshwar was one of the finest writer in the contemporary Hindi literature , the Nayi Kahani ( New Story) school to be precise , a movement in the Hindi story writing, initiated by the trio of Nirmal Verma, Rajendra Yadav and Mohan Rakesh. Like any literature the main dilemma of the writer of this school also can be seen in their positioning into the three sub strata of By the Human Of the Human and For The human .In other words it is the dilemma in between the writer as the story teller , writer as a character (if not the protagonist) in the story and thirdly writer as a part of very that society From rakesh at sarai.net Mon Feb 12 14:51:43 2007 From: rakesh at sarai.net (rakesh at sarai.net) Date: Mon, 12 Feb 2007 10:21:43 +0100 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= An article on Nayi kahani in Economics Times Message-ID: <18f52810c08e19b735686eba88a3d1be@sarai.net> Mitron muaf karen. Pichhle mail mein adhura lekha tha aur subject line khali. Ek baar fir se bhej raha hun "Nayi kahani" par ET mein chhape lekh ka mool jo mere mitra ne mujhe padhne bheja tha. shukriya rakesh An Absent Future Sorit …He puts his hand over Nirmala…touches her smooth round shoulders…he is very familiar with this feeling …slowly he moves his hand over her body to feel her and tries to identify the slow noise of her breathings….. and suddenly he wakes her up, 'Nirmala…Niramala'..he shouts in madness…. 'Do you know me? Do you know me Nirmala?, Nirmala surprised looked at his face and then asked slowly 'What happened' ? And he keeps on looking at her. His eyes keep searching for something in her face….. In one of his most famous story titled "Khoyee Hui Dishayen ( The lost directions)" Kamaleswar , who demised a few days back, describes the utter loneliness of a person in the modern world which ultimately makes a person a complete stranger before himself. The above mentioned story is about a person , Chander, who belongs to a small town and resides in Delhi for his job. For obvious reasons he feels himself a complete stranger in this metropolitan . No one is known to him not he knows anyone, from office to Auto rickshaw driver and from colleagues up to the next door neighbor and at the end of the story he tries to recognize his wife and come to realize that both of them are strangers to one another as well. Kamaleshwar was one of the finest writer in the contemporary Hindi literature , the Nayi Kahani ( New Story) school to be precise , a movement in the Hindi story writing, initiated by the trio of Nirmal Verma, Rajendra Yadav and Mohan Rakesh. Like any literature the main dilemma of the writer of this school also can be seen in their positioning into the three sub strata of By the Human Of the Human and For The human .In other words it is the dilemma in between the writer as the story teller , writer as a character (if not the protagonist) in the story and thirdly writer as a part of very that society From rakesh at sarai.net Mon Feb 12 15:44:12 2007 From: rakesh at sarai.net (rakesh at sarai.net) Date: Mon, 12 Feb 2007 11:14:12 +0100 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= nayi kahani wale lekh ke bache hisse Message-ID: <09ba07e47b66006bd6f484d4aaefefff@sarai.net> Like any literature the main dilemma of the writer of this school also can be seen in their positioning into the three sub strata of By the Human Of the Human and For The human .In other words it is the dilemma in between the writer as the story teller , writer as a character (if not the protagonist) in the story and thirdly writer as a part of very that society From rajeshkajha at yahoo.com Tue Feb 13 10:38:26 2007 From: rajeshkajha at yahoo.com (Rajesh Ranjan) Date: Mon, 12 Feb 2007 21:08:26 -0800 (PST) Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSo4KSv4KS+IA==?= =?utf-8?b?4KS24KSs4KWN4KSmIC0gc3VidmVydGlzaW5n?= Message-ID: <204054.9825.qm@web52902.mail.yahoo.com> नहीं, मुझे नहीं लगता कि विज्ञापन के भाव का किंचित भी लोप होता है क्योंकि विज्ञापन के मूल में ज्ञापन ही है एक विशेष ज्ञापन...ज्ञापन ही मुख्य है इसलिये अवज्ञापन काफी बढिया है... सादर राजेश ----- Original Message ---- From: Ravikant To: deewan at sarai.net Sent: Friday, February 9, 2007 6:42:04 PM Subject: Re: [दीवान]नया शब्द - subvertising विजेन्द्र जी, शुक्रिया. क्रिया नहीं है, बल्कि क्रिया में आईएनजी लगकर संज्ञा ही बन गया है यह शब्द. अंग्रेज़ी व्याकरण में इसे में शायद gerund कहते हैं. और 'विज्ञापन' का संज्ञात्मक दृष्टांत तो अपन के पास है ही. अवज्ञाने में विज्ञापन के भाव का लोप हो जाता है, ये समस्या है. और प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा. रविकान्त शुक्रवार 09 फरवरी 2007 14:40 को, आपने लिखा था: > रविकांत, > मूल तो ठीक ही पकड़ा आपने पर subvertising तो क्रिया है इसलिए संज्ञा उसका > अनुवाद शायद ठीक न हो। अवज्ञाना कैसा रहेगा ? > विजेंद्र > > On 2/9/07, Ravikant wrote: > > subvertising: > > > > अंग्रेज़ी का एक मज़ेदार शब्द है, जिसका मतलब है किसी कॉरपोरेट या राजनीतिक > > विज्ञापन / मुहिम > > की पैरोडी करना, माख़ौल उड़ाना: > > > > http://en.wikipedia.org/wiki/Subvertising > > > > मैं सोच रहा था कि इसे हिन्दी में क्या कहेंगे. ख़याल आया कि हमारे यहाँ > > अवज्ञा की स्थापित परंपरा > > है, जैसे कि सिविल डिसॉबीडिएन्स के लिए सिविल नाफ़रमानी या सविनय अवज्ञा > > जैसे पद चलते आए > > हैं. तो उसी तर्ज़ पर सब्वर्टाइज़िंग के लिए 'अवज्ञापन' कैसा है? या कोई > > बेहतर लफ़्ज़ सूझता है > > आपको? > > > > रविकान्त > > _______________________________________________ > > Deewan mailing list > > Deewan at mail.sarai.net > > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan _______________________________________________ Deewan mailing list Deewan at mail.sarai.net http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan ____________________________________________________________________________________ The fish are biting. Get more visitors on your site using Yahoo! Search Marketing. http://searchmarketing.yahoo.com/arp/sponsoredsearch_v2.php -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070212/c7b0b8d1/attachment.html From ravikant at sarai.net Tue Feb 13 12:32:42 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Tue, 13 Feb 2007 12:32:42 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?Fwd=3A_Re=3A_Fwd?= =?utf-8?b?OiBSZTogeWFob28gaGluZGkgLSDgpJXgpLXgpL/gpKTgpL4gLCDgpKvgpYE=?= =?utf-8?b?4KSf4KSs4KWJ4KSyICwg4KSu4KSb4KSy4KWAIOCklOCksCDgpK7gpL7gpLA=?= =?utf-8?b?4KWB4KSk4KS/?= Message-ID: <200702131232.42722.ravikant@sarai.net> हिन्दी अंतर्वस्तु की आउट सोर्सिंग और याहू का ठेका! रचनाकारों के नाम सिरे से ग़ायब हैं, यह भी नहीं कि यह विकिपीडिया जैसा हो. नीचे राजेश की टिप्पणी सटीक है. रविकान्त ---------- आगे भेजे गए संदेश ---------- Subject: Re: Fwd: Re: [दीवान]yahoo hindi - कविता , फुटबॉल , मछली और मारुति Date: मंगलवार 13 फरवरी 2007 10:34 From: Rajesh Ranjan To: ravikant at sarai.net जैसा हमें मालूम हुआ है यह सारा काम ठेके पर बो रहा है और वेब दुनिया यह काम कर रही है...msn का लिये भी उसी ने ठेका लिया हुआ है.... दोनों की हिन्दी की साइट देखियेगा तो एक ही जैसा लगेगा...कभी कभी लगता है कि कॉरपोरेट व बहुराष्ट्रीय संस्कृति एकरूपता व एकरसता को जन्म देने के लिये लिये बनी होती है क्योंकि सब अंततः एकाधिकार कायम करने पर ही अपनी आंखें रखती है... आपका राजेश ----- Original Message ---- From: Ravikant To: Rajesh Ranjan ; Mohan Rana Sent: Friday, February 9, 2007 6:47:40 PM Subject: Fwd: Re: [दीवान]yahoo hindi - कविता , फुटबॉल , मछली और मारुति ---------- आगे भेजे गए संदेश ---------- Subject: Re: [दीवान]yahoo hindi - कविता , फुटबॉल , मछली और मारुति Date: गुरुवार 08 फरवरी 2007 20:21 From: Mohan Rana To: ravikant at sarai.net बंधुवर , इस साइट का संपादन कौन कर रहा है? अगले सप्ताह मुलाकात होगी. कुशल से होंगे मोहन Ravikant wrote: > याहू की इसी नई हिन्दी साइट से. शुक्रिया, राजेश > > रविकान्त > > पुस्तक समीक्षा > > http://in.hindi.yahoo.com/Literat _____________________________________________________________________________ _______ Never Miss an Email Stay connected with Yahoo! Mail on your mobile. Get started! http://mobile.yahoo.com/services?promote=mail ------------------------------------------------------- From shahnawaz1980 at gmail.com Wed Feb 14 13:29:04 2007 From: shahnawaz1980 at gmail.com (Md Shahnawaz) Date: Wed, 14 Feb 2007 13:29:04 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= ek sher apke naam Message-ID: <282cc3f20702132359r29d95360x7c6356f8eba4495d@mail.gmail.com> बहुत दिनो बाद नजर से एक अच्छा शेर गुजरा, बेहद पसन्द आया. अब आपके सामने है. मोहतरमा परवीन शाकिर ने लिखा है-- तु बदलता है तो बेसाख्ता मेरी आखे अपने हाथो की लकीरो मे उलझ जाती है!! -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070214/b3969b4c/attachment.html From girindranath at gmail.com Wed Feb 14 16:34:24 2007 From: girindranath at gmail.com (girindra nath) Date: Wed, 14 Feb 2007 16:34:24 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS24KS54KSo4KS1?= =?utf-8?b?4KS+4KScIOCkreCkvuCkiCDgpJXgpYsg4KS24KWB4KSV4KWN4KSw4KS/?= =?utf-8?b?4KSv4KS+?= Message-ID: <63309c960702140304r1c88ab88mc4e4b32c9685b06b@mail.gmail.com> शहनवाज भाई को शुक्रिया, आप लगातार हमें अच्छी शायरी से परिचय कराते रहते हैं, इस बार भी आपकी खोज अच्छी लगी. वैसे अरसे बाद आप दिवान पर नज़र आए. आप क्या कोई ऐसी शायरी से रू-ब-रू करा सकते हैं जो ट्रेन (रेल गाडी)से जुडी हो.. ? यदि आपके नज़रो से गुजरी हो तो हमें बतायें. गिरीन्द्र नाथ झा. www.anubhaw.blogspot.comn From ravikant at sarai.net Wed Feb 14 18:45:03 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Wed, 14 Feb 2007 18:45:03 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS24KS54KSo4KS1?= =?utf-8?b?4KS+4KScIOCkreCkvuCkiCDgpJXgpYsg4KS24KWB4KSV4KWN4KSw4KS/4KSv?= =?utf-8?b?4KS+?= In-Reply-To: <63309c960702140304r1c88ab88mc4e4b32c9685b06b@mail.gmail.com> References: <63309c960702140304r1c88ab88mc4e4b32c9685b06b@mail.gmail.com> Message-ID: <200702141845.03423.ravikant@sarai.net> शहनवाज़ साहब को शुक्रिया, गिरीन्द्र के लिए वैलेंटाइन डे पर दुष्यंत की मशहूर लाइनें: तू किसी रेल सी गुज़रती है मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ. रेल यहाँ सीधे तो नहीं, उपमान-रूप में मौजूद है. कुछ और भेजूँगा. और आप तमाम लोगों के लिए ब्लैक फ़्राइडे की समीक्षाएँ: http://www.mohalla.blogspot.com/ रविकान्त बुधवार 14 फरवरी 2007 16:34 को, girindra nath ने लिखा था: > शहनवाज भाई को शुक्रिया, > आप लगातार हमें अच्छी शायरी से परिचय कराते रहते हैं, इस बार भी आपकी खोज > अच्छी लगी. वैसे अरसे बाद आप दिवान पर नज़र आए. > आप क्या कोई ऐसी शायरी से रू-ब-रू करा सकते हैं जो ट्रेन (रेल गाडी)से जुडी > हो.. ? यदि आपके नज़रो से गुजरी हो तो हमें बतायें. > गिरीन्द्र नाथ झा. > www.anubhaw.blogspot.comn > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan From ravikant at sarai.net Thu Feb 15 17:54:12 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Thu, 15 Feb 2007 17:54:12 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= muhaavre - angrezi shabdaarth ke sath Message-ID: <200702151754.12430.ravikant@sarai.net> dekhein: http://faculty.maxwell.syr.edu/jishnu/520/HindiIdioms.htm ravikant From ravikant at sarai.net Thu Feb 15 18:14:29 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Thu, 15 Feb 2007 18:14:29 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS44KWC4KSa4KSo?= =?utf-8?b?4KS+4KSw4KWN4KSl?= Message-ID: <200702151814.30080.ravikant@sarai.net> http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2006/12/061229_guestedit_third.shtml साहित्य से दोस्ती असग़र वजाहत अतिथि संपादक, बीबीसी हिंदी पत्रिका आपको आजकल हरियाणा की सड़कों पर एक विचित्र तो नहीं पर कुछ अलग किस्म की गाड़ी दिख सकती है. यह गाड़ी एक चलती-फिरती किताब की दुकान है और किताबों की यह चलती-फिरती दुकान चाहती है कि पाठक साहित्य से दोस्ती करें. इन प्रयासों के पीछे है 'साहित्य उपक्रम' नाम की संस्था जो साहित्य और समाज को केंद्र में रखकर फिलहाल हरियाणा में अपनी गतिविधियाँ चला रही है. बहुत संक्षेप में अगर कोई समझना चाहे तो संस्था यह चाहती है कि लोग साहित्य और कला के ज़रि ए अधिक जागरूक और संवेदनशील बनें. वे अपने समाज और परिवेश को समझें. समाज में आदमी से इंसान बनने की कोशिश तेज़ हो. किताबों की यह चलती-फिरती दुकान हरियाणा के शहरों, कस्बों के गाँवों के चक्कर लगाती रहती है. इस दुकान में सस्ती किताबें रहती हैं जिन्हें पाठक आसानी से ख़रीद सकते हैं. इनका मानना है कि किता बें लोगों के जीवन को बदल सकती हैं.समाज को एक बेहतर समाज बना सकती हैं. इसलिए ज़रूरी है कि किताबें इतनी सस्ती हों और इतनी आसानी से मिल सकती हों कि किसी पाठक को किताब तलाशना और उसे ख़रीदना ज़रा भी मुश्किल न लगे. इस चलती-फिरती दुकान का सबसे ज़्यादा स्वागत ग्रामीण इलाकों में होता है जहाँ न तो आमतौर पर पुस्तकालय है और न ही किताबों की दुकानें हैं. पुस्तकालय शहर में हैं जिसका लाभ गाँव में रहनेवालों को नहीं मिल सकता और दूसरी मुश्किल यह है कि किताबें बहुत महंगी हैं और मध्यवर्गीय परिवार इन्हें ख़रीद नहीं सकता. ऐसी स्थिति में इस चलती-फिरती दुकान की सस्ती किताबें ग्रामीण जनता के लिए कितनी उपयोगी हों गी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है. 'साहित्य उपक्रम' दरअसल एक आंदोलन है. इसका कार्यक्षेत्र केवल जनता तक सस्ती किताबें पहुँचाना ही नहीं है. यह संस्था भारतीय इतिहास के आइने में देश की समस्याओं को समझने-समझा ने का प्रयास करती है. उद्देश्य है कि किताबों के माध्यम से अपने समाज को समझा और फिर बदला जाए. संस्था ने 'भगत सिंह से दोस्ती' का कार्यक्रम चला रखा है जिसके अंतर्गत भगतसिंह के विचारों को समझने और फिर अपने परिवेश को समझने का प्रयास किया जाता है. संस्था के कार्यक्रमों के अंतर्गत 'प्रेमचंद से दोस्ती', 'अंबेडकर से दोस्ती' और 'सर छोटू राय से दोस्ती' जैसे कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं. अंबेडकर के माध्यम से जातिवादी समस्या और राजनीति के कई पक्ष उद्घाटित होते हैं. सर छोटू राय से किसान समस्या के विभिन्न मुद्दों पर विचार करने की प्रेरणा मिलती है. उर्दू के प्रसिद्ध कवि ख़्वा जा अल्ताफ़ हुसैन 'हाली' को केंद्र में रखकर संस्था ने 'हाली से दोस्ती' के अंतर्गत हिंदी-उर्दू भाषा और सांप्रदायिक सदभाव के मुद्दों को सामने रखा है. चलते-फिरते पुस्तकालय के अलावा यह संस्था करनाल में 'पाश पुस्तकालय' और साहित्यिक क्लब भी चलाती है जहाँ बराबर कार्यक्रम होते रहते हैं. जल्दी ही नाटकों के मंचन के साथ-साथ संस्था फ़िल्म प्रदर्शन आदि की सुविधा भी देने वाली है. किताबों का आंदोलन सामाजिक आंदोलन है और भारत में कोई भी आंदोलन महिला अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकता. यह संस्था भी लड़कियों के लिए 'इंकलाब ज़िंदाबाद' मुहिम चला रही है. संस्था का कहना है, "जैसे ही लड़कियाँ कुछ नया करना चाहती हैं, अकेली पड़ जाती हैं. " आंदोलन महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को बहुत महत्व देता है. हरियाणा की यह संस्था और इससे जुड़े मुद्दे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते हैं. सबसे पहली और बड़ी बात जो समझ में आती है वह यह है कि समाज में परिवर्तन अंदर से आते हैं, बाहर से आरोपित नहीं कि ए जा सकते हैं. लोगों में सार्थक परिवर्तन की इच्छा जगाना सबसे बड़ा काम है. ++++++++++++++++++++++++++++++++++++ From rajeevgirijnu at rediffmail.com Sun Feb 18 15:10:21 2007 From: rajeevgirijnu at rediffmail.com (Rajeev Giri) Date: 18 Feb 2007 09:40:21 -0000 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= abstract of reaserch work Message-ID: <20070218094021.15457.qmail@webmail62.rediffmail.com> १९०० ई. में इंडियन प्रेस इलाहाबाद ने सरस्वती नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया. इसका पहला अंक जनवरी १९०० में छपा. १९०३ में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपदक बने. सरस्वती के प्रकाशन से पहले इलाहाबाद, कुंभ नगरी एवं राजनीति के प्रमुख केन्द्र के रुप में जाना जाता था. इसके प्रकाशन के बाद बनारस के बरक्स इलाहाबाद एक साहित्यिक केन्द्र का रुप अख्तियार करता गया.महावीर प्रसाद द्विवेदी सरस्वती के जरिए हिन्दी भाषा को गढने का काम कर रहे थे.वह हिन्दी कैसी थी? आगे के हिन्दी साहित्य में प्रयुक्त भाषा का निर्धारण बहुत हद तक इसी दौर में हुआ. गद्य के रुप में हिन्दी को स्थापित करने के साथ्-साथ सरस्वती ने पद्य भाषा के तौर पर भी हिन्दी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. गौरतलब है कि उस दौर में मुख्य धारा की काव्य भाषा ब्रज भाषा थी. हिन्दी को काव्य भाषा के तौर पर स्थापित करने के लिए काफी बहसोमुबाहसा हुआ था.यह देखना वाजिब है कि खडी बोली के किस रूप को सरस्वती काव्य भाषा के तौर पर स्थापित कर रही थी? सरस्वती से पहले अयोध्या प्रसाद खत्री ने खडी बोली हिन्दी को काव्य भाषा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की थी. सरस्वती और अयोध्या प्रसाद खत्री द्वारा प्रस्तावित काव्य भाषा नीति में क्या रिश्ता था?   २० वी सदी के आरंभिक दशको के हिन्दी आन्दोलन के दौर में सरस्वती की क्या भूमिका थी.मैं इस शोध में सरस्वती की सार्वजनिक दुनिया का अध्यन करूंगा.सरस्वती अपने दौर की सबसे महत्वपूर्ण पत्रिका किन वजहो से बनी? मेरा शोध कार्य मूलतः इन्ही सवालो के अध्ययन को लेकर है. -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070218/511b7365/attachment.html From ravikant at sarai.net Mon Feb 19 13:56:55 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 19 Feb 2007 13:56:55 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?abstract_of_reaser?= =?utf-8?q?ch_work?= In-Reply-To: <20070218094021.15457.qmail@webmail62.rediffmail.com> References: <20070218094021.15457.qmail@webmail62.rediffmail.com> Message-ID: <200702191356.56207.ravikant@sarai.net> दोस्तो, राजीव का पाठ जो कूड़ा बनकर आया था दीवान सूची पर, उसे मैं http://lang.ojnk.net/hindi/unifix.html की मदद से ठीक करके पुनर्प्रस्तुत कर रहा हूँ. और इस कड़ी को यहाँ इसलिए डाल रहा हूँ कि आप भी इसका फ़ायदा उठा सकें. याद रखने की बात है कि कई बार याहू या रीडिफ़ पर या आपके अपने वर्ड आदि में लिखा हुआ युनिकोड में न संजोए जाने के चलते ऐसा ही दिखता है, जैसा राजीव का नीचे दीख रहा है. विश्वास न हो तो ऊपर के लिंक पर जाकर नीचे का कूड़ा पेस्ट करके फ़िक्स इट को क्लिक करें. तो पाठ ऐसा दिखेगा: रविकान्त ---- १९०० ई. में इंडियन प्रेस इलाहाबाद ने सरस्वती नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया. इसका पहला अंक जनवरी १९०० में छपा. १९०३ में महावीर प्रसाद द्विवेदी इसके संपदक बने. सरस्वती के प्रकाशन से पहले इलाहाबाद, कुंभ नगरी एवं राजनीति के प्रमुख केन्द्र के रुप में जाना जाता था. इसके प्रकाशन के बाद बनारस के बरक्स इलाहाबाद एक साहित्यिक केन्द्र का रुप अख्तियार करता गया.महावीर प्रसाद द्विवेदी सरस्वती के जरिए हिन्दी भाषा को गढने का काम कर रहे थे.वह हिन्दी कैसी थी? आगे के हिन्दी साहित्य में प्रयुक्त भाषा का निर्धारण बहुत हद तक इसी दौर में हुआ. गद्य के रुप में हिन्दी को स्थापित करने के साथ्-साथ सरस्वती ने पद्य भाषा के तौर पर भी हि न्दी को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. गौरतलब है कि उस दौर में मुख्य धारा की का व्य भाषा ब्रज भाषा थी. हिन्दी को काव्य भाषा के तौर पर स्थापित करने के लिए काफी बहसोमुबाहसा हुआ था.यह देखना वाजिब है कि खडी बोली के किस रूप को सरस्वती काव्य भाषा के तौ र पर स्थापित कर रही थी? सरस्वती से पहले अयोध्या प्रसाद खत्री ने खडी बोली हिन्दी को काव्य भाषा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की थी. सरस्वती और अयोध्या प्रसाद खत्री द्वारा प्रस्तावित काव्य भाषा नीति में क्या रिश्ता था? २० वी सदी के आरंभिक दशको के हिन्दी आन्दोलन के दौर में सरस्वती की क्या भूमिका थी.मैं इस शोध में सरस्वती की सार्वजनिक दुनिया का अध्यन करूंगा.सरस्वती अपने दौर की सबसे महत्वपूर्ण पत्रिका किन वजहो से बनी? मेरा शोध कार्य मूलतः इन्ही सवालो के अध्ययन को लेकर है. राजीव रंजन गिरी, स्वतंत्र शोधार्थी, 2006-7. रविवार 18 फरवरी 2007 15:10 को, Rajeev Giri ने लिखा था: > १९०० ई. में > इंडियन > From ravikant at sarai.net Mon Feb 19 14:19:03 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 19 Feb 2007 14:19:03 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Independent Fellows, March - November 2007 In-Reply-To: <749797f90702170816k4125b819nf01fe48f62b2e4ad@mail.gmail.com> References: <45ABF09F.1080800@sarai.net> <749797f90702081945s6ed091dcwe44d32c443beac07@mail.gmail.com> <749797f90702170816k4125b819nf01fe48f62b2e4ad@mail.gmail.com> Message-ID: <200702191419.03968.ravikant@sarai.net> नीलिमा जी, शुक्रिया. नीचे का पाठ मैंने आपके ब्लॉग से ही चेपा है. जब भी आप विषय पर कुछ नया लिखती हैं, कृपया एक प्रति दीवान पर भी डाल दें, ताकि हम सबको पता चला जाए. कुछ संयुक्ताक्षर उलटे-पलटे आ रहे हैं, इसी सूची पर रवि श्रीवास्तव हैं, आपकी मदद करेंगे, ऐसी गुज़ारिश है. रविकान्त जैसा कि वायदा था, शोध प्रस्ताव निम्‍नवत है। आपकी राय की प्रतीक्षा है। ब्लॉगित हिंदी जाति का लिंकित मन : ब्लॉगों में हिंदी हाईपरटेक्‍स्‍ ट का अध्‍यययन इंटरनेट पर हिंदी की चर्चा अब उतनी नई नहीं है, और हिंदी हाइपरटेक्स्ट अब एक यथार्थ है जिसके इरादे वेब जगत पर एक लंबी पारी खेलने के हैं। विशेषकर यूनेकोड के अवतरण के पश्चात हिंदी हाइपरटेक्स्ट ने नए प्रतिमान को प्राप्त कर लिया है। हिंदी ब्लॉग इसी प्रक्रिया का सहज विकास हैं। नारद, अक्षरग्राम, चिट्ठाचर्चा, हिंदी वेबरिंग जैसे नेटवर्कों के बाद तो हिंदी ब्लॉग जगत एक परिघटना बन गया है। रामविलास शर्मा की हिंदी जाति की अवधारणा हिंदी ब्लॉग जगत के संदर्भ में बेहद युक्तियुक्त बन जाती है क्योंकि देशकाल से परे ब्लॉगिया समुदाय जिस अस्मिता से आपस में जुडता है वह भाषीय अस्मिता (राष्ट्रीय ) ही है प्रस्तावित शोध हिन्दी ब्लॉगों में व्यक्त हिंदी हाइपरटेक्स्ट गद्य का एक ऑनलाइन अध्ययन है जो इस हाइपरटेक्स्ट की भाषा ,शैली ,रचनाकार ,टेक्स्ट ,रीडर टेक्नॉलजी के वृत्त विमर्श में परखना चाहता है। यह हिंदी में इक पूर्णतः ऑनलाइन अध्ययन होगा हो विद्यमान ब्लॉगों ,हिंदी नेटवर्कों ,ब्लॉग आर्काइवों और विद्यमान टिप्पणियों का अध्ययन करेगा ऑर्कुट व माइस्पेस जैसे नेटवर्कों में जारी संवादों की परख करेगा और अपनी पहलकदमी से हिंदी ऑनलाइन समुदाय से नेरेटिव्स इकट्ठे करेगा। हाइपरटेक्स्ट हिंदी गद्य की विषय वस्तु उसकी भाषा शैली पोस्टिंग टिप्प्णी संरचना का विशेष रुप से अध्ययन किया जाएगा ताकि यह समझा जा सके कि हिंदी ऑनलाइन समुदाय का विस्तृत आख्यान क्या है देश-परदेश हिंदी-अहिंदी रोमन-देवनागरी जैसी द्वंदात्मकता से यह कैसे दो-चार हो रहा है। पाठक समायोजित गद्य किस प्रकार अपनी विशिष्ट्ता बरकरार रख पाता है, इस आयाम को भी टटोला जा एगा। मल्टीमीडिया के सानिध्य में पलने वाला गद्य छवि ,संगीत ,और रंग की मातहती से कैसे दो-चा र होता है, यह भी हिंदी गद्य का एकदम नया अनुभव है जिसका अध्ययंन प्रस्तावित शोध करेगा। हिं दी की पहचान जो अपने भौगोलिक केंद्रों से निकट से संबंधित रही है वह आभासी स्पेस में कैसे अस्तित्‍ववान रह पाती है इस पर भी एक संक्षिप्त राय व्यक्त की जाएगी शोध की मूल पद्धति विद्यमान हाईपरटेक्स्ट को खंगालने, आर्काइवल नरैटिव्‍स को चुनने और उनसे वृत्‍तांत तय करने की होगी। आनलाइन विमर्श-समुदाय में इस विषय पर बहस की शुरूआत की जाएगी जिसमें निरंतर हस्तक्षेप कर इस वृत्तांत को पुष्‍ट किया जाएगा। कृपया नोट करें कि प्रस्‍ताव सहित शोध संबंधित मेरी प्रविष्टियॉं विशेष रूप > > से बनाए ब्‍लाग http://linkitmann.blogspot.com/ पर यूनीकोड में उपलब्‍ध > > हैं/रहेंगी नीलिमा चौहान शनिवार 17 फरवरी 2007 21:46 को, आपने लिखा था: > Raviji, > > kripya diwan ki sadasyati di jae taaki posting puran shuru ho sake > neelima > From ravikant at sarai.net Mon Feb 19 16:23:08 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 19 Feb 2007 16:23:08 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?Fwd=3A_Re=3A__Inde?= =?utf-8?q?pendent_Fellows_=2C_March_-_November_2007?= Message-ID: <200702191623.08242.ravikant@sarai.net> ---------- आगे भेजे गए संदेश ---------- Subject: Re: [दीवान] Independent Fellows, March - November 2007 Date: सोमवार 19 फरवरी 2007 17:36 From: Ravishankar Shrivastava To: ravikant at sarai.net Ravikant wrote: > नीलिमा जी, > > शुक्रिया. नीचे का पाठ मैंने आपके ब्लॉग से ही चेपा है. जब भी आप विषय पर कुछ > नया लिखती हैं, कृपया एक प्रति दीवान पर भी डाल दें, ताकि हम सबको पता चला > जाए. कुछ संयुक्ताक्षर उलटे-पलटे आ रहे हैं, इसी सूची पर रवि श्रीवास्तव हैं, > आपकी मदद करेंगे, ऐसी गुज़ारिश है. > > रविकान्त यह समस्या उनके इनपुट मेथड एडीटर के कारण आ रही है. संभवतः वे बारहा का कोई कुंजीपट औजार इस्तेमाल कर रही हैं, जिसमें अनावश्यक रूप से आधे अक्षरों के बाद नॉन जाइनर घुस आता है जिससे संयुक्ताक्षर बन नहीं पाते. उन्हें कोई दूसरा औजार आजमाना होगा. कोई दूसरा चारा नहीं है या फिर बारहा वालों को बग रपट देनी होगी - और जब वे सुधार दें तब काम बनेगा :( रवि From neelimasayshi at gmail.com Mon Feb 19 19:18:36 2007 From: neelimasayshi at gmail.com (Neelima Chauhan) Date: Mon, 19 Feb 2007 19:18:36 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?q?Fwd=3A_Re=3A_Indep?= =?utf-8?q?endent_Fellows_=2C_March_-_November_2007?= In-Reply-To: <200702191623.08242.ravikant@sarai.net> References: <200702191623.08242.ravikant@sarai.net> Message-ID: <749797f90702190548p70f59ce6y8492b43a5bc8ccc7@mail.gmail.com> रविकांत जी और रवि(रतलामी) जी, मैं टेकीज में से नहीं हूँ। शुद्ध हिंदीवाली हूँ इसलिए क्‍या गड़बड़ है यहीं नहीं समझ पाई। जो मेल आपने भेजी है उसके संयुक्‍ताक्षर जैसे इस संयुक्‍त का क्‍त बिल्‍कुल ठीक दिख रहा है मेरे ब्राउजर पर (जो IE 6.0) है। मैं बारहा नहीं indic IME का इस्‍तेमाल कर रही हूँ। क्‍या संयुक्‍ताक्षर मेरे ब्‍लॉग पर बदहाल है ? विजेंद्र की राय है कि ये आपके ब्राउजर (मोजेला या फायरफाक्‍स ...) की वजह से हो सकता है। आप बताऍं कि अब करना क्‍या है। नीलिमा On 19/02/07, Ravikant wrote: > > > > ---------- आगे भेजे गए संदेश ---------- > > Subject: Re: [दीवान] Independent Fellows, March - November 2007 > Date: सोमवार 19 फरवरी 2007 17:36 > From: Ravishankar Shrivastava > To: ravikant at sarai.net > > Ravikant wrote: > > नीलिमा जी, > > > > शुक्रिया. नीचे का पाठ मैंने आपके ब्लॉग से ही चेपा है. जब भी आप विषय पर > कुछ > > नया लिखती हैं, कृपया एक प्रति दीवान पर भी डाल दें, ताकि हम सबको पता चला > > जाए. कुछ संयुक्ताक्षर उलटे-पलटे आ रहे हैं, इसी सूची पर रवि श्रीवास्तव > हैं, > > आपकी मदद करेंगे, ऐसी गुज़ारिश है. > > > > रविकान्त > > यह समस्या उनके इनपुट मेथड एडीटर के कारण आ रही है. संभवतः वे बारहा का कोई > कुंजीपट औजार इस्तेमाल कर रही हैं, जिसमें अनावश्यक रूप से आधे अक्षरों के > बाद > नॉन जाइनर घुस आता है जिससे संयुक्ताक्षर बन नहीं पाते. उन्हें कोई दूसरा > औजार > आजमाना होगा. कोई दूसरा चारा नहीं है या फिर बारहा वालों को बग रपट देनी होगी > - > और जब वे सुधार दें तब काम बनेगा :( रवि > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > -- Neelima zakir Husain Post Graduate College -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070219/7755241a/attachment.html From neelimasayshi at gmail.com Mon Feb 19 19:22:42 2007 From: neelimasayshi at gmail.com (Neelima Chauhan) Date: Mon, 19 Feb 2007 19:22:42 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KS24KWL4KSnIA==?= =?utf-8?b?4KSq4KWN4KSw4KS44KWN4oCN4KSk4KS+4KS1IC0g4KSs4KWN4oCN4KSy?= =?utf-8?b?4KS+4KSX4KS/4KSkIOCkueCkv+CkguCkpuClgCDgpJzgpL7gpKTgpL8g?= =?utf-8?b?4KSV4KS+IOCksuCkv+CkguCkleCkv+CkpCDgpK7gpKggOiDgpKzgpY0=?= =?utf-8?b?4oCN4KSy4KS+4KSX4KWL4KSCIOCkruClh+CkgiDgpLngpL/gpILgpKY=?= =?utf-8?b?4KWAIOCkueCkvuCkiOCkquCksOCkn+Clh+CkleCljeKAjeCkuOCljQ==?= =?utf-8?b?4oCN4KSfIOCkleCkviDgpIXgpKfgpY3igI3gpK/gpK/gpKg=?= Message-ID: <749797f90702190552m2cacdcf8u899839600709614b@mail.gmail.com> शोध विषय : *ब्‍लागित हिंदी जाति का लिंकित मन : ब्‍लागों में हिंदी हाईपरटेक्‍स्‍ट का अध्‍ययन* ** इंटरनेट पर हिंदी की चर्चा अब उतनी नई नहीं है, और हिंदी हाइपरटेक्स्ट अब एक यथार्थ है जिसके इरादे वेब जगत पर एक लंबी पारी खेलने के हैं। विशेषकर यूनेकोड के अवतरण के पश्चात हिंदी हाइपरटेक्स्ट ने नए प्रतिमान को प्राप्त कर लिया है। हिंदी ब्लॉग इसी प्रक्रिया का सहज विकास हैं। नारद, अक्षरग्राम , चिट्ठाचर्चा, हिंदी वेबरिंग जैसे नेटवर्कों के बाद तो हिंदी ब्लॉग जगत एक परिघटना बन गया है। रामविलास शर्मा की हिंदी जाति की अवधारणा हिंदी ब्लॉग जगत के संदर्भ में बेहद युक्तियुक्त बन जाती है क्योंकि देशकाल से परे ब्लॉगिया समुदाय जिस अस्मिता से आपस में जुडता है वह भाषीय अस्मिता (राष्ट्रीय ) ही है प्रस्तावित शोध हिन्‍दी ब्लॉगों में व्यक्त हिंदी हाइपरटेक्स्ट गद्य का एक ऑनलाइन अध्ययन है जो इस हाइपरटेक्स्ट की भाषा ,शैली ,रचनाकार ,टेक्स्ट ,रीडर टेक्नॉलजी के वृत्त विमर्श में परखना चाहता है। यह हिंदी में इक पूर्णतः ऑनलाइन अध्ययन होगा हो विद्यमान ब्लॉगों ,हिंदी नेटवर्कों ,ब्लॉग आर्काइवों और विद्यमान टिप्पणियों का अध्ययन करेगा ऑर्कुट व माइस्पेस जैसे नेटवर्कों में जारी संवादों की परख करेगा और अपनी पहलकदमी से हिंदी ऑनलाइन समुदाय से नेरेटिव्स इकट्ठे करेगा। हाइपरटेक्स्ट हिंदी गद्य की विषय वस्तु उसकी भाषा शैली पोस्टिंग टिप्प्णी संरचना का विशेष रुप से अध्ययन किया जाएगा ताकि यह समझा जा सके कि हिंदी ऑनलाइन समुदाय का विस्तृत आख्यान क्या है देश-परदेश हिंदी-अहिंदी रोमन-देवनागरी जैसी द्वंदात्मकता से यह कैसे दो-चार हो रहा है। पाठक समायोजित गद्य किस प्रकार अपनी विशिष्ट्ता बरकरार रख पाता है, इस आयाम को भी टटोला जाएगा। मल्टीमीडिया के सानिध्य में पलने वाला गद्य छवि ,संगीत ,और रंग की मातहती से कैसे दो-चार होता है, यह भी हिंदी गद्य का एकदम नया अनुभव है जिसका अध्ययंन प्रस्तावित शोध करेगा। हिंदी की पहचान जो अपने भौगोलिक केंद्रों से निकट से संबंधित रही है वह आभासी स्पेस में कैसे अस्तित्‍ववान रह पाती है इस पर भी एक संक्षिप्त राय व्यक्त की जाएगी शोध की मूल पद्धति विद्यमान हाईपरटेक्‍स्‍ट को खंगालने, आर्काइवल नरैटिव्‍स को चुनने और उनसे वृत्‍तांत तय करने की होगी। आनलाइन विमर्श-समुदाय में इस विषय पर बहस की शुरूआत की जाएगी जिसमें निरंतर हस्‍तक्षेप कर इस वृत्‍तांत को पुष्‍ट किया जाएगा। -- Neelima zakir Husain Post Graduate College -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070219/541c6c53/attachment.html From avinashonly at gmail.com Mon Feb 19 19:54:33 2007 From: avinashonly at gmail.com (avinash das) Date: Mon, 19 Feb 2007 19:54:33 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSu4KSo4KWA4KS3?= =?utf-8?b?4KS+IOCkleClgCDgpKHgpL7gpK/gpLDgpYA=?= Message-ID: <85de31b90702190624q27c7a218vfb9fc1cbb7042c93@mail.gmail.com> http://mohalla.blogspot.com/2007/02/blog-post_19.html दीवाने आम को हमारा पहला सलाम। मोहल्‍ले में आने की दरख्‍वास्‍त के साथ। आज से हमने वेब दुनिया की सहायक संपादक मनीषा की डायरी शुरू की है। डायरी में हिंदुस्‍तान की नई स्‍त्री के कुछ अनखुले पन्‍ने आपको मिलेंगे। आपकी प्रतिक्रिया का हमें भी इंतज़ार है, और मनीषा को भी। शुक्रिया। अविनाश। From girindranath at gmail.com Tue Feb 20 15:28:17 2007 From: girindranath at gmail.com (girindra nath) Date: Tue, 20 Feb 2007 15:43:17 +0545 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSV4KWL4KSC4KSV?= =?utf-8?b?4KSj4KWAIOCkleCkteCkv+CkpOCkviDgpLDgpYDgpKTgpL8t4KSw4KS/?= =?utf-8?b?4KS14KS+4KSc4KWL4KSCIOCkleCkviDgpJXgpL/gpLLgpL4g4KSk4KWL?= =?utf-8?b?4KShIOCkleCksC4uLi4u?= Message-ID: <63309c960702200158v27dcfa8bn7cd959ab1fbedbd0@mail.gmail.com> कोंकणी कविता रीति-रिवाजों का किला तोड कर का यह हिन्दी अनुवाद है.लक्षमणराव सरदेसाय की यह कविता समाज के ताने बाने को हमारे सामने प्रकट करती है. पढें. आपका गिरीन्द्र नाथ www.anubhaw.blogspot.com रीति-रिवाजों का किला तोड कर मुक्त हुआ और सुख पाया छोटी-बडी परंपराओं की भयानाक भूतनियां भिन्न भिन्न प्रकार से नाचती थीं कोई मर गया रोने चलो कोई पैदा हुआ हंसने चलो किसी का ब्याह हुआ जल्दी जाकर काम का दिखवा करो किसी के माथे पर काली मिर्च का लेप लगा उठो, दौडो उसका हाल चाल पूछो हमें रिवाज के मुताबिक कोट पहनना चाहिए वैसी हीं धोती पहननी चहिए पवित्र वस्त्र ओढ्ना चाहिए नाते का कोई मर गया कडा सूतक रखना होगा सादा पत्र लिखना हो सप्रेम नमस्कार विनती विशेष लिखना होगा अगर मैं मंदिर गया तो गाल पीट कर माफी मांगनी होगी दोस्तो के जन्मदिन पर तोहफे देने होंगे घर मे कड्की है अमीर होने का दिखावा करना है इश्वर मे आस्था नही पक्का भक्त होने दावा करना है पत्नी के पास गले मे फूटी मणी भी नहीं उसके लिए फूलो का आभूषण खरीदना होगा कदम-कदम पर परंपराओ के नकाब ओढ्ने चाहिए सच्चा मनुष्य दफन हो गया हो तो उसे खोद कर निकालना चाहिए ऊपरी दिखावा न करें तो समाज -बाहर होना चाहिए जब मैं ने परंपराओ को छोडा तभी मैं सुखी हुआ. From sjoegabi at yahoo.com Wed Feb 21 22:54:42 2007 From: sjoegabi at yahoo.com (shelbi joseph) Date: Wed, 21 Feb 2007 09:24:42 -0800 (PST) Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Horrible Experience at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi Message-ID: <922697.19262.qm@web51404.mail.yahoo.com> Horrible Experience at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi Dear All, I want to share this horrific experience I had at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi. I am an OCI (Overseas Citizen of India). I enrolled for the MCSD.net course with New Horizons India Ltd at NBCC Place in New Delhi on November 3, 2006. The institute enrolled me without informing me that a basic knowledge of C++ was necessary to keep pace with the course. They later admitted this fact and advised me to join another institute (professionalism?) to learn the basics or attend a five-day Object-Oriented Programming basic concept class at the institute (I would have appreciated this advice at the time of my enrollment so that I would n’t have joined here for MCSD.net). So I started going to the institute for this short course, but they never bothered to conduct the classes as promised. In the next couple of weeks, there was no progress and I could hardly attend any class due to non-availability of teachers and frequent change of timings. Realising that I had been wasting my time after my arrival in India (I have come from Mexico) I requested the institute, on November 20, to cancel my registration and refund the fees (Rs. 21,000) which I had deposited at the beginning of the course. However, the head of the programme advisers, Mr. Neeraj Awasthi, assured me that they would start the classes seriously in January since I was going away for three weeks to Kerala. Later I called up a number of times to find out the new schedule for my classes. On every occasion I got different dates and there was no confirmation of any date. On January 22, I met Mr. Awasthi, after a prolonged wait. I pointed out to him that the programme advisers are not orienting well and that’s why I wrongly joined this course. His reply was that the programme advisers are more like sales representatives than advisers. (It is such a shame that they sell the education just like selling any commercial product in the market). He promised that my classes would start the very next day. But to my chagrin, I realised that I was put in a class for advanced course instead of the basic course. Mr. Awasthi wants to manage somehow with my class for another two months since he knew that I would be returning to Mexico by May 2007.I got fed up and informed the institute of my intention to discontinue and sought refund of money. However, the institute has not bothered to reply. He insisted that they can’t refund the money during my first attempt to cancel while nowhere in the receipts it says that they won’t refund the money. It only says registration fee and booking amount are not refundable. I have lost four months since I first visited the institute in October. Now it is impossible for me to join another institute for the same course as I have to leave India by May this year. Though I cannot get back my lost time, the least the institute can do is return my money. Thought it might be useful for you all to know this experience. Regards shelbi ____________________________________________________________________________________ Now that's room service! Choose from over 150,000 hotels in 45,000 destinations on Yahoo! Travel to find your fit. http://farechase.yahoo.com/promo-generic-14795097 -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070221/0cd0e632/attachment.html From ravikant at sarai.net Sat Feb 24 15:19:08 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 24 Feb 2007 15:19:08 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Hindi film stereotypes Message-ID: <200702241519.09716.ravikant@sarai.net> Manisha ke blog se saabhar, maze lein. ravikant http://hindibaat.blogspot.com/2007/02/blog-post_23.html हमारी हिंदी फिल्मों में कुछ ऐसे सीन होते हैं जो लगभग हर दूसरी फिल्म में शामिल होते हैं। ऐसे ही कुछ सीन यहां है: * हीरो हमेशा फर्स्ट क्लास फर्स्ट पास होता है और हमेशा BA करता है। MA तो कभी भी नहीं। आजकल की फिल्मों में थोड़ा परिवर्तन हुआ है अब हीरो MBA करता है। * अमीर प्रवासी भारतीय लड़के (हीरो) का नाम अधिकतर राज, आर्यन या राहुल होता है। * भारत के किसी भी जगह के गांव की कहानी हो, वहां की बोली हमेशा पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों की होती है। * गांव की गोरी (हीरोईन) हमेशा चोली घाघरा ही पहनती है और उस पर हमेशा ही जमींदार या उसके बेटे की गंदी निगाह होती है। * गांव में रिटार्यड फौजी होता है जो बात बात में डींगें मारता है। * कहानी अगर शहर की तो रिटार्यड फौजी न होकर रिटार्यड कर्नल होगा जिसकी घनी मूंछें होती हैं और वो बात बात में गोली मारने की बात करता है तथा बर्मा की लड़ाई (कब हुई थी?) की कहानी सुनाता है। * अगर फिल्म में दो हीरो हों तो दोनो एक ही लड़की को चाहेंगे, दोनों ही एक दूसरे के लिये अपना प्यार कुर्बान करने को तैयार रहते हैं। * दो हीरो वाली फिल्मों में, दोनों हीरों में एक बार गलतफहमी तथा लड़ाई अवश्य होगी, यह लड़ाई हमेशा बराबरी पर छूटती है। अगर चाकू का इस्तेमाल इस लड़ाई में हो रहा है तो पहले एक ही रो की आंख या गर्दन तक चाकू जायेगा, फिर दूसरे हीरो की आंख और गर्दन तक। * हीरो चाहे जो करता हो, वो कार चला सकता है तथा जरुरत पड़ने पर हैलीकॉप्टर तथा हवाई जहाज उड़ा सकता है। * पुलिस हमेशा फिल्म के अन्त के आती है। * विलेन पूरी फिल्म में मौज करता है तथा कोई भी बात करते समय या गलत काम करते समय जोर जोर से हंसता रहता है। * अगर विलेन ऊंचे से या खास तौर पर हैलीकॉप्टर से भागते हुये हीरो पर गोली बरसाता है तो गोलियां हीरो के दोनो ओर लाइन बनाती हई गिरती हैं लेकिन हीरो को एक भी नहीं लगती है, अगर हीरो नीचे हैलीकॉप्टर पर निशाना लगाये तो एकदम निशाना लगता है। ये बात हॉलीवुड की फिल्मों पर भी लागू होती है। * हिन्दी फिल्मों के विलेन को फाईटिंग नहीं आती है। * हीरो जब विलेन को मार मार कर बाजी जीत रहा होता है तभी पता नहीं क्यों हीरो की हीरोईन, बहन एवं मां वहां आ जाती हैं जिन्हे विलेन के आदमी पकड़ लेते हैं तथा बाजी पलट जाती है। * विलेन के नाम डागा, जेके, संग्राम, जगताप, शक्ति, राका, लॉयन होते हैं और उनके नीचे के गुन्डों के नाम शंकर, जग्गू, राबर्ट, माइकल, रघू, राजा इत्यादी होते हैं। विलेन की महिला साथियों के नाम रीटा, मोना, सोनिया तथा मोनिका होते हैं। ये महिलायें मन ही मन हीरो को चाहती हैं तथा जब विलेन हीरो पर गोली चलाता है तब बीच में आकर अपनी जान दे देती हैं। * दारु का अड्डा हमेशा माइकल का होता है। * विलेन का साथ देने वाले नेता कार्टून टाईप के होते हैं और हमेशा बिहारी बोलते हैं। * पुरानी फिल्मों में जज साहब कोई फैसला सुना रहे होते थे तभी अदालत के दरवाजे के पास से को ई जोर से चिल्लाता था "ठहरो! जज साहब..."। * विलेन की बहन या बेटी हीरो से प्यार करती है और इसको लेकर हीरो और विलेन में तनातनी रहती है। * अगर विलेन कोई खतरनाक काम के मंसूबे बना रहा होता है या कोई बड़ी प्रयोगशाला टाईप की जगह होती है तो विलेन हीरो को अपने जाल में फंसा हुआ जानकर अपना पूरा प्लान बता देता है, या पूरी प्रयोगशाला घुमाकर सब कुछ बता देता है। * विलेन हीरो को यह भी बता देता है कि उसके बाप का हत्या उसी ने की थी। * कॉलेज के प्रोफेसर हमेशा कार्टून टाईप के होते हैं जो कि साथी महिला प्रोफेसरों को पटाने की कोशिश करते रहते हैं। * कॉलेज का दादा हमेशा कॉलेज के ट्रस्टी का लड़का होता है, जो कि प्रिंसीपल को हमेशा धमकाता रहता है। * देवर हमेशा भाभी का लाड़ला होता है तथा अपना प्रेमिका के बारे में सब से पहले भाभी को ही बताता है, वो भी पहली बार में ही उस लड़की को पसन्द कर लेती है। * बुजुर्ग नौकर हमेशा रामू काका होता है। * सस्पेंस फिल्मों में जिस पर शक दिखाया जाता है, वो कभी अपराधी नहीं निकलता तथा कई बा र तो उसी का कत्ल हो जाता है। * सस्पेंस फिल्मों में या खौफनाक फिल्मों में एक बूढ़ा चौकीदार होता जो कंबल ओढ़े रहता है और हाथ में लालटेन लेकर इधर से उधर घूमा करता है। इसका भी कत्ल हो जाता है। * हीरो अगर पुलिस का इंस्पेक्टर होता है तो वो जेब में इस्तीफा निकाल कर कमिश्नर की मेज पर जब चाहे तब पटक देता है। * पुलिस का इंस्पेक्टर हीरो गुन्डों के अड्डों पर अकेला ही जाता है और सब को मारकर हवालात में बंद कर देता है। * शादी के सीन में छोटी लड़कियां हंसती हुई इधर से उधर भागती रहती हैं। * हीरोईन बहू सुबह सुबह भजन गाती है। जबकि घर की बिगड़ी हुई औलादें पॉप म्यूजिक सुनती हैं। * विलेन या उसके साथियों को यदि गोली लगती है तो तुरन्त ही मर जाते हैं, लेकिन यदि हीरो को गोली लगी और उसको मरना है तो वो बहुत देर तक डॉयलाग बोलता है। * हीरो को यदि गोली लगेगी तो अस्पताल में डाक्टर हीरो के शरीर से गोली निकाल कर टीन के डब्बे में जोर से गिरायेगा। और भी बहुत से ऐसे सीन हैं जो हमारी हिंदी फिल्मी में अक्सर दोहराये जाते हैं, सारे इस समय याद नहीं आ रहे हैं। याद आने पर यहां लिखती जाउंगी। यदि आप लोगों को भी ऐसे सीन पता हों तो बताइये, और यदि आप फिल्म बनाना चाहते हों तो यहां से कोई 10-15 सीन उठा लीजिये और अपनी फिल्म बना लीजिये। From ravikant at sarai.net Sat Feb 24 15:30:29 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 24 Feb 2007 15:30:29 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Fwd: jan vikalp Message-ID: <200702241530.29817.ravikant@sarai.net> pichhale ank se Bhasha aur varn vyavastha lekh bhi dilchasp hai. http://vikalpmonthly.googlepages.com/19-22.jpg cheers ravikant New issue!! Click this Link for Hindi Monthly Jan Vikalp (February) : http://vikalpmonthly.googlepages.com/feb07index (Give your evident comments.) This monthly is against the difference and inequality caused due to Caste, Sex, Religion and is committed for public opposition against the social evils, discrimination and atrocities on the weaker sections of our society. 'जन िवकल्प' भारत की वंिचत जितयों, समूहों का वैचािरक आन्दोलन है | Join Orkut community,if u like this : http://www.orkut.com/Community.aspx?cmm=25211177 -- -- जन िवकल्प(मािसक) सामािजक चेतना की वैचािरकी ........................................ Teacher's Calony Po : Bahadurpur Housing Calony Kumhrar, Patna - 800026 Mo : 9234251032, Res : 0612-2360369,2582573 -- Pramod Ranjan Gram Parivesh Teacher's calony Kumhrar Patna-800026.Mo : 9234251032,Res : 0612-2360369 ..................... Mohindra Pratap Singh Rana 114, P.C chamber Shimla-171001 ------------------------------------------------------- From ravikant at sarai.net Sat Feb 24 15:52:15 2007 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 24 Feb 2007 15:52:15 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= mulayam ke eklavya Message-ID: <200702241552.15892.ravikant@sarai.net> kal ke dainik hindustan aur Ravish ke blog http://naisadak.blogspot.com/ se. bhai maza aaya. AB ka fan bane rahna kitna mushkil hai, hai na! cheers ravikant मुलायम के एकलव्य एकलव्य फिल्म देख ली । फिल्म के साथ साथ इंटरवल में समाजवादी पार्टी का विज्ञापन भी देखा। पूरी फिल्म और विज्ञापन के अमिताभ में फर्क करना मुश्किल हो गया। दोनों ही जगहों पर अमिताभ सेवक यानी एकलव्य की तरह लग रहे थे। वैसे भी पर्दे के अमिताभ और असली ज़िंदगी के अमिताभ में फर्क करना मुश्किल होता है। सुपर स्टार भले ही इस अंतर को सहजता से जीते हों उनके दीवानों के लिए यह मुमकिन नहीं। महाभारत की परंपरा में एकलव्य का किरदार एक बेईमान गुरु और एक मूर्ख शिष्य की कहानी है। द्रोण ने कपट किया और कम प्रतिभाशाली अर्जुन को अमर करवाया। होनहार धनुर्धर एकलव्य के पास मौका था नई परंपना गढ़ने का। मगर वह द्रोण की चालाकी में फंस गया। आज के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले मास्टर भी द्रोण है। वो सवाल करने की शिक्षा नहीं देते बल्कि सवालों का दक्षिणा मांग लेते हैं। एकलव्य ने अपना अंगूठा देकर इतिहास और दलितों को एक महानायक देने का मौका गंवा दिया। वो परंपराओं के अहसान तले दब गया। फिल्म की शुरुआत में उस एकलव्य को चुनौती दी जाती है । एक बच्चा कहता है मैं नहीं मानता एकलव्य सही था। बच्चे की आवाज़ में एकलव्य की मानसिकता को चुनौती दी जाती है। एक संदेश है कि धर्म वो नहीं जो शास्त्र और परंपरा है। धर्म वो है जो बुद्धि है। अमर सिंह ने अमिताभ बच्चन का साथ दिया है। कांग्रेस ने भी अमिताभ की दोस्ती का इस्तेमाल किया है। समाजवादी पार्टी ने पहले मदद की अब इस्तेमाल कर रही है। फिल्म देखते देखते यही सब सवाल उठने लगते हैं। कि समाजवादी पार्टी के विज्ञापन वाले अमिताभ और एकलव्य के किरदार वाले अमिताभ में क्या फर्क है? क्या अमिताभ दोनों ही जगह अहसानों से दबे एकलव्य हैं? उनके सामने परंपरा मजबूरी खड़ी कर रही है। मदद करने वालों को भुला देने पर इतिहास कुछ और कहता है। इसलिए अमिताभ समाजवादी पार्टी के विज्ञापन में एक सेवक भाव की तरह नारे लगा रहे हैं। अहसान धर्म का भाव। एकलव्य भी यहीं मजबूर था। वो द्रोण की प्रतिमा का अहसानमंद हो गया। यहीं पर फिल्म और विज्ञापन का भेद मिटने लगता है। फिल्म का एकलव्य नौ पीढ़ियों के नाम पर धर्म की रक्षा करता है। हत्या करता है। सच को छुपाता है। झूठ के सहारे जीता है। सच कहने का साहस नहीं कर पाता। फिल्म के आखिर में पुलिस अफसर के झूठे चिट्ठी की बात पर भी धर्म का पालन कर सच नहीं बोलता। बल्कि झूठ के सहारे एक और ज़िंदगी जीने का रास्ता चुनता है। कहानी में एक जगह सैफ अली कहता है धर्म वो है जो बुद्धि है। मगर एकलव्य के रुप में एक सेवक बहादुरी से अपनी बुज़दिली को छुपाने की कोशिश करता है। सच से भाग जाता है। मुलायम के एकलव्य भी विधु विनोद चोपड़ा के एकलव्य की तरह हैं। राजनीति से दूर रहने की बात करने वाला हमारे समय के इस महानायक को राजनीतिक विज्ञापन से परहेज़ नहीं है। वो सेवक की तरह सच को सामने रखता है। सिस्टम की बुराइयों से लड़ने की कहानियों से अमर हुआ यह महानायक सिस्टम की बुराइयों को आंकड़ों से झूठलाने के सियासी खेल में सेवक बन गया है। निठारी के मासूम बच्चों की तरफ नहीं देखता। उसमें अब बगावत नहीं है। सियासत है। नेता के प्रति परंपरागत समर्पण। यह एंग्री यंग मैन नहीं हो सकता। क्लेवर ओल्ड मैन लगता है। अमिताभ ने एंग्री यंग मैन के किरदारों से लाखों लोगों को दीवाना बनाया अब समाजवादी पार्टी के विज्ञापन से दीवानों को वोटर बना रहे हैं। द्रोण मुलायम ने एकलव्य अमिताभ का अंगूठा मांग लिया है। मैं नहीं जानता कि विधु विनोद चोपड़ा ने महानायक के लिए सेवक का किरदार क्यों चुना? क्या उन्हों ने आज के अमिताभ की हकीकत को एक किरदार के ज़रिये पर्दे पर उतार दिया है? या चोपड़ा अमिता भ को एक रास्ता दिखाना चाहते हैं? एकलव्य मत बनिये। हर दीवार को गिरा देने वाली दीवार फि ल्म का विजय एकलव्य में सेवा की दीवार बनता है। यह एक महानायक का पतन तो नहीं? उससे कहीं ज़्यादा बड़ा किरदार संजय दत्त का है। एक दलित पुलिस अफसर का किरदार। वो देवीगढ़ के राणा के दो हज़ार साल के शाही विरासत को अपने पांच हज़ार साल के शोषण की मिसाल से चुनौती देता है। संजय दत्त के पुलिस अफसर ने एकलव्य की मजबूरी को निकाल फेंका है। यह एक दलित पुलिस अफसर का आत्मविश्वास नहीं बल्कि उसकी बुद्धि का इस्तेमाल है। वो प्रतिभा और परंपरा में फर्क करता है। अपनी प्रतिभा के बल पर वर्तमान में जगह बनाता है। आने वाली दलित पीढ़ियों के लिए एक परंपरा बनाता है । वो कह रहा है मैं एकलव्य का मुरीद हो सकता हूं क्योंकि उससे छल हुआ मगर एकलव्य नहीं हो सकता। मुझे कोई मेरी जाति के नाम से गाली नहीं दे सकता ।काश अमिताभ संजय दत्ता वाला किरदार करते तो मेरी ज़ेहन में महानायक ही रहते। यूपी में दम है क्योंकि जुर्म बहुत कम है। इस विज्ञापन को देख कर अपने अंदर रोता रहा जैसे अमिताभ एकलव्य के किरदार में अपनी साहचर्य के मौत पर सिसकते रहे। क्या वो एकलव्य की मानसिकता से निकलता चाहते हैं? एकलव्य को कौन याद करता है। एकलव्य एक सबक है। जो छला गया वो एकलव्य है। महानायक नहीं। From ved1964 at gmail.com Sat Feb 24 21:28:46 2007 From: ved1964 at gmail.com (ved prakash) Date: Sat, 24 Feb 2007 21:28:46 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Fwd: Welcome to the "Deewan" mailing list In-Reply-To: <3452482c0702240755s370aa290i7f9cc625ab877430@mail.gmail.com> References: <3452482c0702240755s370aa290i7f9cc625ab877430@mail.gmail.com> Message-ID: <3452482c0702240758r7ff83eceu5b0b3a425bf4934c@mail.gmail.com> ---------- Forwarded message ---------- -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070224/36817efd/attachment.html From neelimasayshi at gmail.com Sat Feb 24 22:26:57 2007 From: neelimasayshi at gmail.com (Neelima Chauhan) Date: Sat, 24 Feb 2007 22:26:57 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KS+4KSyIA==?= =?utf-8?b?4KSu4KWH4KSCIOCkq+CkgeCkuOClhyDgpKjgpL7gpK4sIC4uLi4uLg==?= =?utf-8?b?4KSn4KSB4KS44KWHIOCkqOCkvuCkriwuLi4uLi4g4KS54KSB4KS44KWH?= =?utf-8?b?IOCkqOCkvuCkriA64KSs4KWN4KSy4KWJ4KSX4KWL4KSCIOCkleClhyA=?= =?utf-8?b?4KSo4KS+4KSu4KWL4KSCIOCkquCksCDgpI/gpJUg4KSo4KSc4KSw?= Message-ID: <749797f90702240856l6a8ab70dp680786c32b329dcb@mail.gmail.com> *'ब्‍लॉगित हिंदी जाति का लिंकित मन : ब्‍लागों में हिंदी हाईपरटेक्‍स्‍ट का अध्‍ययन' विषय पर जारी शोध कार्य के अंतर्गत ब्लॉगों के नामों पर एक नजर* ब्‍लॉग जगत में काफी कुछ हो रहा है लोग पोस्टिया रहे हैं और टिप्पिया रहे हैं। कुछ पोस्‍टों पर टिप्पिया रहे हैं तो कुछ टिप्‍पणियों पर पोस्टिया रहे हैं कई तो टिप्‍पणियों पर ही टिप्पिया रहे हैं ऐसे में मुझे तो रिसर्चियाना है और जाहिर है यह अलग किस्‍म का काम है। इसलिए सोचा कि आज रिसर्च पर पोस्टियाआ जाए। ....तो मैने ब्‍लॉग शोध के पहले चरण में ब्‍लॉगों की सूची बनाई और सूची देखते हुए लगा कि पहला परचा तो ब्‍लागों के नाम की प्रकृति पर विचार करते हुए ही लिखा जाए। लगता है कि हिंदी के चिट्ठाकार नाम के महत्‍व और महिमा के बड़े गहरे मुरीद हैं। इन चिट्ठाकारों के लिए इनके चिट्ठे का नाम खालिस शब्‍द या संबोधन नहीं उनकी व उनके चिट्ठे की पहचान की विशिष्टिता को उभारने वाला अहम तत्‍व है। हिंदी चिट्ठों के नामकरण संस्‍कार के वक्‍त वक्‍त इन चिट्ठाकारों को किस प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने चिट्ठे की सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए एक आकर्षक, कौतुहल भरा, निराला-सा नाम ढूँढ कर निकाल लाना बड़ी मेहनत का काम रहा होगा इन चिट्ठाकारों के लिए। कुछ चिट्ठाकारों के चिट्ठे अपने लेखक के फुरसत के हल्‍के क्षणों, खामखां के वक्‍त बिताऊ चिंतन के महत्‍व क‍ो बताते हैं। यहॉं 'ये न थी हमारी किस्‍मत के दीदारे यार होता' वाले अंदाज में कुछ हल्‍की कुछ थोड़ी भारी बातों को पेश करने की बेतकल्‍लुफी नजर आती है। कहीं किसी ब्‍लॉग में मोहल्‍लेबाजी के बहाने दर्शनबाजी करता चिट्ठाकार विश्‍वग्राम की तरह विश्‍व को एक मोहल्‍लेके रूप में देखना चाहता है। 'कहना चाहने और कह न पाने' के द्वंद्व में फँसे लेखकीय व्‍यक्तित्‍व के दर्शन कराने वाले ब्‍लॉगों की अपनी अलग पहचान है। यहॉं लेखक की पीड़ा, द्वंद्व और सटीक अभिव्‍यक्ति न कर पाने की छटपटाहट दिखई पड़ती है। रचना में भावों और कल्‍पना की उड़ान का महत्‍व कुछ चिट्ठाकारों के लिए सबसे ज्‍यादा है। अपनी कल्‍पना रूपी उड़नतश्‍तरियोंपर बैठकर अनंत ब्रह्मांडों पर पहुँचने और नए जीवनों से मिल आने की चाह है शायद वहॉं। भावना और यथार्थ की टकराहट में भाव की जीत कभी-कभी भाव-सिंधु की उठती गिरती लहरों में प्रकट होती है। दूसरी ओर यथार्थ से टकराने की अदम्‍य इच्‍छा और साहस का संगम कुछ चिट्ठों के नामों में है। मानों कह रहे हों 'आइए हाथ उठाएं हम भी' और सामाजिक विषमताओं का एकजुट होकर सामना करें। रोजमर्रा की जिंदगी के अन्‍याय, शोषण व साम्राज्‍यवादी ताकतों के खिलाफ हमारी दैवीय भारतीय आत्‍माएं एक ही लोकमंच से युद्धरत हों। ऐसा मारक, प्रहारशील और तरकशवादी नामकरण अपने पाठक पर बहुत ही आह्वानकारी प्रभाव छोड़ता है। कुछ चिट्ठाकार अपने लेखन में छिपे अदनेपन, भदेसपन, जमीनीपन को उभारने के फेर में पड़े हैं। यहॉं वे सिद्ध करना चाहते हैं कि रचना महत्‍वपूर्ण है रचनाकार नहीं। आवारा बंजारा, बिहारी बाबू कहिन जैसे नाम जमीनी सच की मुखलफत करते दिखाई देते हैं। इससे ठीक उलट कई चिट्ठाकार देववाणी या प्रवचनात्‍मक शैली लिए हुए अपनी बात कहना पसंद करते हैं। पंडिताई (ई पंडित) मनसा वाचा कर्मणा (मानसी) वाली शैली या भविष्‍यवाणी (जोगिलिखी) में एक अलग ही अभिजातपना झलकता है। हिंदी-तकनीक-सृजन के त्रिकोण को संभाले साहित्‍य साधना पर अपना सबकुछ कुर्बान कर चुके रवि रतलामी का हिंदी ब्‍लॉग , मसिजीवी , शब्‍दशिल्‍प राजसमंद की हिंदी बेवसाईट के नाम निराले हैं। स्‍वनामधन्‍य ये चिट्ठे मानों कह रहे हों कि ' हम हिंदी, तकनीक और सृजन की शपथ लेकर ये संकल्‍प लेते हैं कि ......' (आप स्‍वंय जोड़ लें) कबीर ने सत्‍य को साक्षी मानकर साखियों की रचना की इससे प्रेरणा लेकर प्रत्‍यक्ष को साक्षी मानकर लगता है प्रत्‍यक्षा ने नामकरण किया है। वेसे कई रचनाकारों के नाम और उनके ब्‍लॉगों के नाम एक ही हैं मसलन मानसी, प्रत्‍यक्षा, शुएब प्रतीत होता है कि इन्‍हें अपनी पहचान पर कोई पट गवारा नहीं यहॉं व्‍यक्ति और रचना में सम भाव है। गालिबन यह सारी नामगाथा इस विचार से प्रेरित थी कि -'नाम में कुछ रखा है....' यदि इन चिट्ठाकारों ने अपने चिट्ठों के नाम यूँ ही आनन फानन में, खाम ख्‍याली में दे मारे थे तो मेरी इन अटकलों को बेतकल्‍लुफी की उपज मानकर क्षमा करें। पूर्ण पोस्ट एवं टिप्प्णियों के लिए पधारें http://linkitmann.blogspot.com/2007/02/blog-post_17.html -- Neelima zakir Husain Post Graduate College -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070224/38c8a87a/attachment.html From sjoegabi at yahoo.com Sun Feb 25 01:29:51 2007 From: sjoegabi at yahoo.com (shelbi joseph) Date: Sat, 24 Feb 2007 11:59:51 -0800 (PST) Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= Deewan Digest, Vol 29, Issue 4 Message-ID: <727621.70680.qm@web51404.mail.yahoo.com> Sir, Will this letter be on the website. If not, where can I send the letter which will be shown in website. Thanks shelbi ----- Original Message ---- From: "deewan-request at mail.sarai.net" To: deewan at mail.sarai.net Sent: Thursday, February 22, 2007 5:00:04 AM Subject: Deewan Digest, Vol 29, Issue 4 Send Deewan mailing list submissions to deewan at mail.sarai.net To subscribe or unsubscribe via the World Wide Web, visit http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan or, via email, send a message with subject or body 'help' to deewan-request at mail.sarai.net You can reach the person managing the list at deewan-owner at mail.sarai.net When replying, please edit your Subject line so it is more specific than "Re: Contents of Deewan digest..." Today's Topics: 1. [दीवान] Horrible Experience at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi (shelbi joseph) ---------------------------------------------------------------------- Message: 1 Date: Wed, 21 Feb 2007 09:24:42 -0800 (PST) From: shelbi joseph Subject: [दीवान] Horrible Experience at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi To: deewan mail Message-ID: <922697.19262.qm at web51404.mail.yahoo.com> Content-Type: text/plain; charset="iso-8859-1" Horrible Experience at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi Dear All, I want to share this horrific experience I had at New Horizons India Ltd. (Microsoft certified Computer Learning Centres) New Delhi. I am an OCI (Overseas Citizen of India). I enrolled for the MCSD.net course with New Horizons India Ltd at NBCC Place in New Delhi on November 3, 2006. The institute enrolled me without informing me that a basic knowledge of C++ was necessary to keep pace with the course. They later admitted this fact and advised me to join another institute (professionalism?) to learn the basics or attend a five-day Object-Oriented Programming basic concept class at the institute (I would have appreciated this advice at the time of my enrollment so that I would nt have joined here for MCSD.net). So I started going to the institute for this short course, but they never bothered to conduct the classes as promised. In the next couple of weeks, there was no progress and I could hardly attend any class due to non-availability of teachers and frequent change of timings. Realising that I had been wasting my time after my arrival in India (I have come from Mexico) I requested the institute, on November 20, to cancel my registration and refund the fees (Rs. 21,000) which I had deposited at the beginning of the course. However, the head of the programme advisers, Mr. Neeraj Awasthi, assured me that they would start the classes seriously in January since I was going away for three weeks to Kerala. Later I called up a number of times to find out the new schedule for my classes. On every occasion I got different dates and there was no confirmation of any date. On January 22, I met Mr. Awasthi, after a prolonged wait. I pointed out to him that the programme advisers are not orienting well and thats why I wrongly joined this course. His reply was that the programme advisers are more like sales representatives than advisers. (It is such a shame that they sell the education just like selling any commercial product in the market). He promised that my classes would start the very next day. But to my chagrin, I realised that I was put in a class for advanced course instead of the basic course. Mr. Awasthi wants to manage somehow with my class for another two months since he knew that I would be returning to Mexico by May 2007.I got fed up and informed the institute of my intention to discontinue and sought refund of money. However, the institute has not bothered to reply. He insisted that they cant refund the money during my first attempt to cancel while nowhere in the receipts it says that they wont refund the money. It only says registration fee and booking amount are not refundable. I have lost four months since I first visited the institute in October. Now it is impossible for me to join another institute for the same course as I have to leave India by May this year. Though I cannot get back my lost time, the least the institute can do is return my money. Thought it might be useful for you all to know this experience. Regards shelbi ____________________________________________________________________________________ Now that's room service! 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URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070224/01b25b57/attachment.html From girindranath at gmail.com Mon Feb 26 17:01:48 2007 From: girindranath at gmail.com (girindra nath) Date: Mon, 26 Feb 2007 17:01:48 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSc4KS+4KSyIA==?= =?utf-8?b?4KSu4KWH4KSCIOCkq+CkgeCkuOClhyDgpKjgpL7gpK4sIC4uLi4uLg==?= =?utf-8?b?4KSn4KSB4KS44KWHIOCkqOCkvuCkriwuLi4uLi4g4KS54KSB4KS44KWH?= =?utf-8?b?IOCkqOCkvuCkriA64KSs4KWN4KSy4KWJ4KSX4KWL4KSCIOCkleClhyA=?= =?utf-8?b?4KSo4KS+4KSu4KWL4KSCIOCkquCksCDgpI/gpJUg4KSo4KSc4KSw?= In-Reply-To: <749797f90702240856l6a8ab70dp680786c32b329dcb@mail.gmail.com> References: <749797f90702240856l6a8ab70dp680786c32b329dcb@mail.gmail.com> Message-ID: <63309c960702260331h286ffe33vddb2792cbd28fbdf@mail.gmail.com> ब्लाग जगत में अपने स्थान को लेकर नामकरण की जो स्थिती है वह सचमुच काफी रोचक है. हर कोई जो हिन्दी में ब्लागिंग कर रहे है, वे सब नाम को लेकर काफी गंभीर है. दर असल टाईट्ल रखते वक्त ब्लागर के मन में एक सवाल रहता है कि वह जो कुछ भी यहां रखेगा वह इसी टाईट्ल से ज़ुडा होगा. मुहल्ले की बात हो या फिर उड्न तश्तरी की स्थिती ,ये सब तो नाम के पदचिन्हो पर ही पोस्टीया रहे हैं. इसी कारण मैं आपकी(Neelima Chauhan wrote: > 'ब्‍लॉगित हिंदी जाति का लिंकित मन : ब्‍लागों में हिंदी हाईपरटेक्‍स्‍ट का > अध्‍ययन' विषय पर जारी शोध कार्य के अंतर्गत ब्लॉगों के नामों पर एक नजर > ब्‍लॉग जगत में काफी कुछ हो रहा है लोग पोस्टिया रहे हैं और टिप्पिया रहे > हैं। कुछ पोस्‍टों पर टिप्पिया रहे हैं तो कुछ टिप्‍पणियों पर पोस्टिया रहे हैं > कई तो टिप्‍पणियों पर ही टिप्पिया रहे हैं ऐसे में मुझे तो रिसर्चियाना है और > जाहिर है यह अलग किस्‍म का काम है। इसलिए सोचा कि आज रिसर्च पर पोस्टियाआ जाए। > ....तो मैने ब्‍लॉग शोध के पहले चरण में ब्‍लॉगों की सूची बनाई और सूची देखते > हुए लगा कि पहला परचा तो ब्‍लागों के नाम की प्रकृति पर विचार करते हुए ही लिखा > जाए। लगता है कि हिंदी के चिट्ठाकार नाम के महत्‍व और महिमा के बड़े गहरे मुरीद > हैं। इन चिट्ठाकारों के लिए इनके चिट्ठे का नाम खालिस शब्‍द या संबोधन नहीं > उनकी व उनके चिट्ठे की पहचान की विशिष्टिता को उभारने वाला अहम तत्‍व है। हिंदी > चिट्ठों के नामकरण संस्‍कार के वक्‍त वक्‍त इन चिट्ठाकारों को किस प्रसव पीड़ा > से गुजरना पड़ा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। अपने चिट्ठे की > सामग्री और अपनी लेखकीय क्षमताओं व दृष्टि पर विचार करते हुए एक आकर्षक, कौतुहल > भरा, निराला-सा नाम ढूँढ कर निकाल लाना बड़ी मेहनत का काम रहा होगा इन > चिट्ठाकारों के लिए। > > कुछ चिट्ठाकारों के चिट्ठे अपने लेखक के फुरसत के हल्‍के क्षणों , खामखां के > वक्‍त बिताऊ चिंतन के महत्‍व क‍ो बताते हैं। यहॉं 'ये न थी हमारी किस्‍मत के > दीदारे यार होता' वाले अंदाज में कुछ हल्‍की कुछ थोड़ी भारी बातों को पेश करने > की बेतकल्‍लुफी नजर आती है। कहीं किसी ब्‍लॉग में मोहल्‍लेबाजी के बहाने > दर्शनबाजी करता चिट्ठाकार विश्‍वग्राम की तरह विश्‍व को एक मोहल्‍ले के रूप में > देखना चाहता है। 'कहना चाहने और कह न पाने' के द्वंद्व में फँसे लेखकीय > व्‍यक्तित्‍व के दर्शन कराने वाले ब्‍लॉगों की अपनी अलग पहचान है। यहॉं लेखक की > पीड़ा, द्वंद्व और सटीक अभिव्‍यक्ति न कर पाने की छटपटाहट दिखई पड़ती है। > रचना में भावों और कल्‍पना की उड़ान का महत्‍व कुछ चिट्ठाकारों के लिए सबसे > ज्‍यादा है। अपनी कल्‍पना रूपी उड़नतश्‍तरियों पर बैठकर अनंत ब्रह्मांडों पर > पहुँचने और नए जीवनों से मिल आने की चाह है शायद वहॉं। भावना और यथार्थ की > टकराहट में भाव की जीत कभी-कभी भाव-सिंधु की उठती गिरती लहरों में प्रकट होती > है। दूसरी ओर यथार्थ से टकराने की अदम्‍य इच्‍छा और साहस का संगम कुछ चिट्ठों > के नामों में है। मानों कह रहे हों 'आइए हाथ उठाएं हम भी' और सामाजिक विषमताओं > का एकजुट होकर सामना करें। रोजमर्रा की जिंदगी के अन्‍याय, शोषण व > साम्राज्‍यवादी ताकतों के खिलाफ हमारी दैवीय भारतीय आत्‍माएं एक ही लोकमंच से > युद्धरत हों। ऐसा मारक, प्रहारशील और तरकशवादी नामकरण अपने पाठक पर बहुत ही > आह्वानकारी प्रभाव छोड़ता है। > कुछ चिट्ठाकार अपने लेखन में छिपे अदनेपन, भदेसपन, जमीनीपन को उभारने के फेर > में पड़े हैं। यहॉं वे सिद्ध करना चाहते हैं कि रचना महत्‍वपूर्ण है रचनाकार > नहीं। आवारा बंजारा, बिहारी बाबू कहिन जैसे नाम जमीनी सच की मुखलफत करते दिखाई > देते हैं। इससे ठीक उलट कई चिट्ठाकार देववाणी या प्रवचनात्‍मक शैली लिए हुए > अपनी बात कहना पसंद करते हैं। पंडिताई (ई पंडित) मनसा वाचा कर्मणा (मानसी) वाली > शैली या भविष्‍यवाणी (जोगिलिखी) में एक अलग ही अभिजातपना झलकता है। > हिंदी-तकनीक-सृजन के त्रिकोण को संभाले साहित्‍य साधना पर अपना सबकुछ कुर्बान > कर चुके रवि रतलामी का हिंदी ब्‍लॉग , मसिजीवी, शब्‍दशिल्‍प राजसमंद की हिंदी > बेवसाईट के नाम निराले हैं। स्‍वनामधन्‍य ये चिट्ठे मानों कह रहे हों कि ' हम > हिंदी, तकनीक और सृजन की शपथ लेकर ये संकल्‍प लेते हैं कि ......' (आप स्‍वंय > जोड़ लें) कबीर ने सत्‍य को साक्षी मानकर साखियों की रचना की इससे प्रेरणा लेकर > प्रत्‍यक्ष को साक्षी मानकर लगता है प्रत्‍यक्षा ने नामकरण किया है। वेसे कई > रचनाकारों के नाम और उनके ब्‍लॉगों के नाम एक ही हैं मसलन मानसी, प्रत्‍यक्षा, > शुएब प्रतीत होता है कि इन्‍हें अपनी पहचान पर कोई पट गवारा नहीं यहॉं व्‍यक्ति > और रचना में सम भाव है। > गालिबन यह सारी नामगाथा इस विचार से प्रेरित थी कि -'नाम में कुछ रखा है....' > यदि इन चिट्ठाकारों ने अपने चिट्ठों के नाम यूँ ही आनन फानन में, खाम ख्‍याली > में दे मारे थे तो मेरी इन अटकलों को बेतकल्‍लुफी की उपज मानकर क्षमा करें। > पूर्ण पोस्ट एवं टिप्प्णियों के लिए पधारें > http://linkitmann.blogspot.com/2007/02/blog-post_17.html > > > -- > Neelima > zakir Husain Post Graduate College > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > From neelimasayshi at gmail.com Mon Feb 26 20:34:28 2007 From: neelimasayshi at gmail.com (Neelima Chauhan) Date: Mon, 26 Feb 2007 20:34:28 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSH4KSC4KSh4KWA?= =?utf-8?b?4KSs4KWN4oCN4KSy4KWJ4KSX4KWA4KScIOCkmuClgeCkqOCkvuCktSA6?= =?utf-8?b?IOCkj+CklSAo4KSX4KWI4KSwKSDgpLjgpYjgpKvgpYngpLLgpYngpJw=?= =?utf-8?b?4KS/4KSV4KSyIOCkqOCknOCksA==?= Message-ID: <749797f90702260704i2ec75985tb336188b1d3e94c3@mail.gmail.com> हम तो ठहरे शोधार्थी और सच से शुरू करें कि इंडीब्‍लॉगीज चुनाव की आपाधापी में शामिल नहीं थे पर हॉं नजर जरूर रखे हुए थी। (अब इतना भी नहीं करेंगे क्‍या, पैसे किस बात के लेंगे सराय से :)) हॉं तो अपन ने किसी को भी वोट नहीं डाला पर इसका मतलब ये नहीं कि अपनी कोई राय ही न थी, थी और सच है कि हमारा प्रिय ब्‍लॉगर हार गया है। और इतने वोट से हारा है कि हम चाहते और वोट डालते भी तो जीत नहीं सकता था। इसका मतलब ये न माना जाए कि हमें समीरजी का बलॉग पसंद नहीं या उसके विषय में हमारी राय कोई बुरी है बल्कि उलटा हम तो समीर के ब्‍लॉग को हिंदी ब्‍लॉगिंग के ऐतिहासिक विकास में महत्‍वपूर्ण आयाम मानते हैं। कैसे इस पर चर्चा फिर की जाएगी। इस वर्ष के आंकड़ें हैं http://myjavaserver.com/~indibloggies/ib06/Tally2006.html और यह हुए पिछले साल के आंकड़े http://bp1.blogger.com/_qCbfUYmeGWQ/Rd6D2_jiOII/AAAAAAAAABk/4aRDc4qYy6E/s1600-h/Hindi05.gif अब सबसे पहले तो ये देखें कि पिछले साल का कुल आंकड़ा 90 है और इस बार विजयी ब्‍लॉग ही 128 पर है। कुल मिलाकर 334 मे अपने वोट का इस्‍तेमाल किया है। इसमें कुछ फर्जी वोटिंग भी शामिल होगी ही पर यह भी सच है कि हम जैसे भी हें जो यहॉं हैं पर वोट डाला नहीं.... यानि हिसाब बराबर। इस आधार पर कहा जा सकता है कि हिंदी ब्‍लॉग जगत (ब्‍लॉगोस्‍फेयर) के आकार में सालभर में खासी बढ़ोतरी हुई है। अंग्रेजी के लिए यह आंकड़ा विजेता 381 तथा कुल मत 1260 का है। पिछले साल यह क्रमश: 225 और 892। अंग्रेजी ओर हिंदी के ब्‍लागजगत के आकार में अभी भी अंतर है जो शायद रहेगा पर ये अंतर बढ़ नहीं रहा प्रतिशत में कम (पिछले साल 90/892= 0.1008 इस साल 334/1260= 0.2650 यानि कुल मत को आधार मानें तो हम भारतीय अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग के एक चौथाई हो गए हैं। लेकिन मेरी राय यह भी है कि शायद अंग्रेजी ब्‍लॉंगजगत ऐसे चुनावों को लेकर पठारी थकान पर पहुँच चुका है। खैर शेष विश्‍लेषण अन्‍य विश्‍लेषणों के आने के बाद। और हॉं मेरी पसंद सुनील दीपक का ब्‍लॉग था। उनके ब्‍लॉग पर चुनाव चर्चा को विजेता के ब्‍लॉग पर हुई चुनावचर्चा से तुलना करें। ग्राफिक्‍स सहित पूर्ण विश्‍लेषण ब्लॉग पर उपलब्‍ध है। http://linkitmann.blogspot.com/ शुक्रिया -- Neelima zakir Husain Post Graduate College -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070226/27f89d0e/attachment.html From neelimasayshi at gmail.com Tue Feb 27 15:41:22 2007 From: neelimasayshi at gmail.com (Neelima Chauhan) Date: Tue, 27 Feb 2007 15:41:22 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KWN4oCN4KSy?= =?utf-8?b?4KWJ4KSXLeCktuCli+CkpyDgpKrgpLAg4KSV4KWB4KSbIOCkrOClhw==?= =?utf-8?b?4KSk4KSw4KSk4KWA4KSsIOCkqOCli+Ckn+CljeCkuA==?= Message-ID: <749797f90702270211v75cd37f0lac85ef7eb88747dc@mail.gmail.com> कुछ साथियों ने हिंदी ब्‍लॉगिंग पर जारी मेरे काम को लेकर दिलचस्‍पी जाहिर की है और उसके परिणामों को लेकर उत्‍सुकता दिखाई है। कहना न होगा कि ये शोधकार्य बेहद आरंभिक चरण में है और परिणामों को लेकर कुछ भी कहने की स्थिति अभी मेरी नहीं है। वैसे इस कार्य को विद्वतजनों के समक्ष पेश करने का काम नवंबर में होगा जब सराय की शोधार्थी कार्यशाला में हम अपने काम को पेश करेंगे। मुझे पूरा विश्‍वास है कि तब कम से कम कुछ हिंदी चिट्ठाकार जरूर वहां उपस्थित होंगे। वैसे इसी प्रकार का काम मेरी एक सह शोधार्थी इंदिरापुरम निवासी गौरी पालीवाल भी कर रही हैं जिनके काम का शीषर्क है 'क्‍योंकि हर ब्‍लॉग कुछ कहता है.....' मेरी अभी उनसे भेंट नहीं हुई है पर मुझे आशा है कि उनके कार्य से इसी दुनिया को एक नए कोण से देखने का अवसर मिलेगा। अब तक अपनी रिसर्च नोटबुक में मैनें जो आड़ी तिरछी लकीरें खींचीं हैं उनसे कुछ इस प्रकार के बिंदु उभरते हैं------- (1) हिंदी ब्‍लॉग पहचान के मायने आखिर हैं क्‍या ? क्‍या ये हिंदी ब्‍लॉगरों की पहचानों का कुल योग है या उनके संश्‍लेषण से तैयार एक ऐसी पहचान है जो ब्‍लॉगरों की पहचानों से भिन्‍न सत्‍ता रखती है। इस सवाल का जमीनी रूप इस सवाल से जाहिर होगा कि आखिर ब्‍लॉगर ब्‍लॉग क्‍यों लिखतें हैं। और हिंदी ब्‍लॉगर, ब्‍लॉग क्‍यों लिखते हैं ? (2) ऐसा क्‍यों है कि हिंदी ब्लॉग समुदाय एक बंद समुदाय की तरह व्‍यवहार करता सा दिखाई देता है। मसलन लिंकिंग पैटर्न में वे क्‍यों केवल आपस में एक दूसरे से लिंकित होते अधिक दिखाई देते हैं और हिंदी के बाहर के ब्‍लॉगों से लिंक रखने की प्रवृत्ति कम दिखाई देती है। क्‍या इसे कथित 'अल्‍पसंख्‍यक घेटोआइजेशन' की प्रवृत्ति से समकक्ष देखा जा सकता है। (3) हिंदी ब्‍लॉग जगत इतना 'साफ सुथरा' क्‍यों है(यह आपत्ति नहीं है हैरानी है) अर्थात पोर्न, कीचड़बाजी आदि इसमें अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग की तुलना में नहीं के बराबर है। क्‍या यह ब्‍लागिंग परिदृश्‍य में बेहद असामान्‍य व्‍यवहार तो नहीं है ? (4) ब्‍लॉगर-ब्‍लॉग संबंध ब्‍लॉगर का अपने ब्‍लॉग से क्‍या संबंध है ? वह अपने ब्‍लॉग का 'मालिक' है (जैसे ये अमुक की कार है...) या ये संबंध अधिक जटिल है (जैसे रामायण राम की कथा है) (5) हिंदी ब्‍लॉगिंग गैर-अंग्रेजी कितु भारतीय अन्‍य ब्‍लॉगों की ओर कैसे देखती है ?(मसलन तमिल या मराठी ब्‍लॉगिंग) इसी प्रकार यह भी कि हिंदी चिट्ठाकारी का भारतीय अंग्रेजी ब्‍लॉगिंग को लेकर क्‍या रवैया रहा है ? (6) चिट्ठाकारी का ऐतिहासिक अध्‍ययन पितामह बिरादरी :) नारद की भूमिका (मजे की बात हे कि एक सहयोगी मित्र हिंदी पत्रकारिता में सरस्‍वती के योगदान पर शोध कर रहे हैं......मुझे दोनों के बीच मजेदार साम्‍य दिखाई देतो है) फांट प्रपंच यूनीकोड पुराण कमबख्‍त पॉडकास्‍ट विषयगत विविधता (या उसका अभाव) (7) चिट्ठाकार बिरादरी की उपजातियॉं प्रत्‍यक्षा और स्त्रियॉं कहॉं हैं (और पहली 'लड़की' है कहीं ) दलित ????? किशोर व बच्‍चे ???? इरफान और शुएब.... विकलांग (एक नेत्रहीन मित्र ने सरेआम कहा मुझे तो नेट पर हिंदी खोजने पर केवल पोर्न मिलता है.....मेरे लिए वहॉं कुछ है क्‍या) 1. दुनिया के अलग अलग कोनों में बैठे ये चिट्ठाकार क्‍या एक 'जाति' (संदर्भ रामविलास शर्मा ) का निर्माण करते हैं ? इस जाति के पहचान चिह्न क्‍या हैं ? कुछ और नोट्स भी हैं पर वे बाद में ओर हॉं ये सवाल नहीं हैं केवल मुद्दे हैं उत्‍तर नहीं खोज रही केवल नैरेटिव्‍स खोज रही हूँ। और हॉं एक बात और बलॉग शोध का मामला भी गरमा रहा है। इन दो शोधों के अलावा आगामी 7-8 मार्च को नई दिल्‍ली में हो रही एक नेशनल सेमीनार में पढ़े जाने के लिए परिचित मित्र का एक परचा स्‍वीकृत हुआ है विषय है 'Vernacularly Yours.......A Look at the question of complex linguistic identity on Hindi Blogosphere' देखा जाएगा कि उनका दृश्टिकोण क्‍या रहता है। -- Neelima zakir Husain Post Graduate College -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070227/7d41c3d0/attachment.html From avinashonly at gmail.com Tue Feb 27 15:47:39 2007 From: avinashonly at gmail.com (avinash das) Date: Tue, 27 Feb 2007 15:47:39 +0530 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= =?utf-8?b?4KSs4KS54KS4IA==?= =?utf-8?b?4KSX4KSw4KWN4KSuIOCkueCliA==?= Message-ID: <85de31b90702270217l26883275m7f1dd16a777d497@mail.gmail.com> पिछले दिनों मोहल्‍ले में मुसलमान प्रसंग पर बहस गर्म थी। अगर आप पूरी बहस एक सिलसिले में देखना चाहते हैं, तो http://mohalla.blogspot.com/search/label/%E0%A4%AC%E0%A4%B9%E0%A4%B8%20%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%20%E0%A4%B9%E0%A5%88 पर क्लिक करें। और इन सबके बाद जनार्दन भैया की पाती ( http://mohalla.blogspot.com/2007/02/blog-post_27.html ) पढ़ना न भूलें। शुक्रिया, अविनाश From kishorebudha at hotmail.com Tue Feb 27 16:55:32 2007 From: kishorebudha at hotmail.com (Kishore Budha) Date: Tue, 27 Feb 2007 11:25:32 -0000 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= corporate hospitals and media Message-ID: Hi, I am working on a paper on the coverage of Private (corporate) hospitals in the English language newspapers/magazines. Some intitial findings 1. HT 2. TOI 3. IE 4. Statesman 5. The Hindu 6. India Today Of these 21 were from HT. All the news reports serve as "institutional advertisements" for private hospitals. Except for two, none of the stories were about the hospitals but were instead lifestyle stories and the hospitals were used for "expert" opinions. The medical experts are inserted at strategic points into health-related stories, giving them publicity. In the reports/features the doctors strategically talk about the facilities offered by their hospital. Under normal circumstances, it may not be problematic, but the doctors have also been called upon to comment on public health and health policy related issues. On one occasion, a senior doctor from a private hospital had been asked to comment on a recently inaugurated government hospital in the north-east of India. The problematic of this proximity is highlighted in the way the private hospitals were portrayed during a strike by doctors. In the report, private hospitals were portrayed in a positive light in comparison to public hospitals, despite doctors from both hospitals taking part in the strike. Cheers Kishore http://ics.leeds.ac.uk/staff/kishore -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070227/ad9d6cc2/attachment.html From kishorebudha at hotmail.com Tue Feb 27 19:11:09 2007 From: kishorebudha at hotmail.com (Kishore Budha) Date: Tue, 27 Feb 2007 13:41:09 +0000 Subject: =?utf-8?b?W+CkpuClgOCkteCkvuCkqF0=?= revised - corporate hospitals and media Message-ID: Hi, Just noted that my previous post on the topic was incomplete. Here is the revised one. I am working on a paper on the coverage of Private (corporate) hospitals in the English language newspapers/magazines. Some intitial findings The following newspapers were studied, 1. HT2. TOI3. IE4. Statesman5. The Hindu6. India Today A total of 39 newsreports/features were identified. Of these 21 were from HT. All the news reports serve as "institutional advertisements" for private hospitals. Except for two, none of the stories were about the hospitals but were instead lifestyle stories and the hospitals were used for "expert" opinions. The medical experts are inserted at strategic points into health-related stories, giving them publicity. In the reports/features the doctors strategically talk about the facilities offered by their hospital. Under normal circumstances, it may not be problematic, but the doctors have also been called upon to comment on public health and health policy related issues. On one occasion, a senior doctor from a private hospital had been asked to comment on a recently inaugurated government hospital in the north-east of India. The problematic of this proximity is highlighted in the way the private hospitals were portrayed during a strike by doctors. In the report, private hospitals were portrayed in a positive light in comparison to public hospitals, despite doctors from both hospitals taking part in the strike. CheersKishore _________________________________________________________________ Explore the seven wonders of the world http://search.msn.com/results.aspx?q=7+wonders+world&mkt=en-US&form=QBRE -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20070227/c15ab0f8/attachment.html