From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Wed Nov 1 13:50:46 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Wed, 1 Nov 2006 00:20:46 -0800 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSV4KWB4KSbIOCkpOCknOClgeCksOCljeCkrOClhw==?= =?utf-8?b?4KSV4KS+4KSwIOCktuClh+CksCDgpKrgpYfgpLYg4KSV4KWH4KSw4KSo?= =?utf-8?b?4KWHIOCkleCkvyDgpIfgpJzgpL7gpJzgpKQg4KSa4KS+4KS54KSk4KS+?= =?utf-8?b?IOCkueClgiEh?= Message-ID: <282cc3f20611010020o7787db8fn91c7d2e598b2508c@mail.gmail.com> यह एक शेर जो नासिर काज्मी का है आपकी नज्र है. "दिल तो तेरा उदास है नासिर शहर क्यु साय साय करता है" !! एक शेर और देखे कि कितनी नजाकत है ख्याल मे "जलते है तेरे लिम्स की खाहिश कि आग मे (लिम्स, स्पर्श) हाथो के पास अश्क नही जो बहा सके" -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20061101/11e7f563/attachment.html From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Thu Nov 2 15:33:33 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Thu, 2 Nov 2006 15:33:33 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KS24KS54KSw4KWAIOCknOClgOCkteCkqCDgpKrgpLAg?= =?utf-8?b?4KS24KWL4KSnIOCkueClh+CkpOClgSDgpJvgpL7gpKTgpY3gpLAg4KS2?= =?utf-8?b?4KWL4KSn4KS14KWD4KSk4KWN4KSk4KS/LTIwMDc=?= Message-ID: *सराय कार्यक्रम**, **विकासशील समाज अध्ययन पीठ**, **दिल्ली * *शहरी जीवन पर शोध हेतु छात्र शोधवृत्ति-2007* पिछले कुछ सालों की तरह, किसी भी भारतीय विश्वविद्यालय या शोध संस्थान से जुड़े छात्र सराय, सीएसडीएस की शहर पर केंद्रित शोध हेतु छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करने को निमंत्रित किए जाते हैं। शोधवृत्ति की अवधि 9 माह (मार्च-नवंबर 2007) होगी। शोधवृत्ति में कुल 20,000 रुपए दिए जाते हैं और प्रस्तावित शोध पर विशेषज्ञों के साथ, व आपस में, बहस करने तथा शोध पत्र प्रस्तुत करने के लिए तीन कार्यशालाओं (मार्च, अगस्त एवं नवंबर) में भाग लेने का अवसर दिया जाता है। छात्र किसी भी विषय से हो सकते हैं। शोधवृत्ति के लिए सराय की दिलचस्पी के विषय:शहरी इतिहास व स्मृति; स्थापत्य और स्थानिक बदलाव; नगर योजना; शहर के वैकल्पिक सपने; शहरी परिवेश में श्रम; हिंसा; शहरी पर्यावरण और साहित्य; दृश्य संस्कृति; जनस्थानों का इतिहास; मीडिया के शहर, आदि हैं। आवेदक अपनी कर्म-कुंडली (CV) के साथ एक प्रस्ताव भेजें जिसमें शोध के महत्त्व, उसकी प्रकृति और कार्यविधि का सरलता से खुलासा किया गया हो। साथ में अपने प्रकाशित या अप्रकाशित निबंध/शोध-पत्र की एक प्रति इस पते पर भेजेंः सदन झा, सराय-सीएसडीएस 1. राजपुर रोड, दिल्ली-110054 फ़ोन नंः 23830065, 23983352 और 23928391 पूछताछः sadan at sarai.net अधिक जानकारी के लिए देखेंःhttp:www.sarai.net/community/student-stipend.htm *आवेदन की अंतिम तिथिः **15 **जनवरी **2007* -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20061102/a6884325/attachment.html From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Tue Nov 7 18:30:03 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Tue, 07 Nov 2006 18:30:03 +0530 Subject: [Deewan] Improving the performance of aspell in spellchecking Hindi Message-ID: <1162904403.15027.30.camel@anubis> Hello, Over the last couple of months, I have been working with a group of people at Indicus Analytics on getting a Hindi spellchecker to function properly. From their end, this will be deployed on http://raftaar.com but the improvements will also be contributed back to the open-source aspell spellchecker. There is a lot of work to be done in formulating the rules, and in testing them to come up with an optimal set. We also need to define a metric for the quality of a spellchecker. A beginning for this work has been written up on the Sarai CyberMohalla Wiki at http://cmwiki.sarai.net/index.php/SpellCheck . Please feel free to add to this, send me comments, or to discuss it online, preferrably on the prc list. The ideas that come out of such a discussion will also be applicable to spellchecking in other Indian languages. Regards, Gora From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Thu Nov 9 16:28:55 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Thu, 09 Nov 2006 16:28:55 +0530 Subject: [Deewan] How can i help you Message-ID: <455309EF.2020607@redhat.com> Hello, I am Sree Ganesh from Red Hat. I have interest in all these linguistics tools developments. I am doing PhD in linguistics. how can i help for you. Thanks & Regards Ganesh. From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Sat Nov 11 02:11:17 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Fri, 10 Nov 2006 12:41:17 -0800 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSs4KWL4KSyIOCkleClhyDgpKbgpYvgpLngpLDgpL4=?= =?utf-8?b?4KS1IOCkquCksCDgpKbgpYsg4KSs4KS+4KSk4KWH4KSCLQ==?= Message-ID: <6a32f8f0611101241k5b5dab27n9277fed1a7e5f7df@mail.gmail.com> दोस्तो- आज कल उमराव-जान बहुत चर्चा में है शायद इस वास्ते कुछ बातें याद आ गईं— "इन आंखों की मस्‍ती के दीवाने हजारों हैं" इस गीत को शहरयार ने उमराव-जान (1982) के लिए लिखकर बड़ा नाम कमाया था किन्तु, इक और पंक्ति याद आ रही है– "मस्ताना निगाहों के दीवाने हजारों हैं" फिल्म - गरीबी ( रणजीत मुवीटोन,मुम्बई) 1949 । गीतकार- शेवन रिजवी । यानी सब कुछ नया नहीं है। आगे फिल्‍मी गानों की कुछ ऐसी पंक्‍तियां जिसे गीत के तौर पर कई बार दुहराया-तिहराया गया– 1 चनेजोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार, चनाजोर गरम…………॥ फिल्‍म– बंधन ( बाम्‍बे टाकीज, मुम्‍बई) 1940 । गीतकार– प्रदीप । 2 जोर गरम बाबू मुलायम मजेदार, चनाजोर गरम……॥ फिल्‍म– छोर छोरी ,1955। गीतकार– केदार शर्मा । 3 चानाजोर गरम बाबू………… फिल्‍म- क्रान्‍ति । गीतकार- आनंद बख्‍शी। इन पंक्तियों में जरा सा बदलाव कर के बड़े हुनर का परिचय दिया गया है। ऐसे और भी उदाहरण हैं जिस पर काम जारी है। धन्यवाद ब्रजेश झा -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20061110/ec5b541a/attachment.html From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Sat Nov 11 14:41:05 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Sat, 11 Nov 2006 14:41:05 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSs4KWL4KSyIOCkleClhyDgpKbgpYvgpLngpLDgpL4=?= =?utf-8?b?4KS1IOCkquCksCDgpKbgpYsg4KSs4KS+4KSk4KWH4KSCLQ==?= In-Reply-To: <6a32f8f0611101241k5b5dab27n9277fed1a7e5f7df@mail.gmail.com> References: <6a32f8f0611101241k5b5dab27n9277fed1a7e5f7df@mail.gmail.com> Message-ID: <200611111441.06026.ravikant@sarai.net> लगे रहो ब्रजेश भाई. वैसे 'लगे रहो' भी अंग्रेज़ी के 'कैरी ऑन' का ही रचनात्मक अनुवाद है. रविकान्त शनिवार 11 नवम्बर 2006 02:11 को, शहर, फ़िल्‍म सहित संचार के नए व पुराने माध्‍यम, मुक्‍त सॉफ़्टवेयर व देसी कंप्‍यूटरी, भाषा व अनुवाद पर केंद्रित ने लिखा था: > दोस्तो- > आज कल उमराव-जान बहुत चर्चा में है शायद इस वास्ते कुछ बातें याद आ गईं— > "इन आंखों की मस्‍ती के दीवाने हजारों हैं" > इस गीत को शहरयार ने उमराव-जान (1982) के लिए लिखकर > बड़ा नाम कमाया था किन्तु, इक और पंक्ति याद आ रही है– > > "मस्ताना निगाहों के दीवाने हजारों हैं" > फिल्म - गरीबी ( रणजीत मुवीटोन,मुम्बई) 1949 । > गीतकार- शेवन रिजवी । > > यानी सब कुछ नया नहीं है। > आगे फिल्‍मी गानों की कुछ ऐसी पंक्‍तियां जिसे गीत के तौर पर कई बार > दुहराया-तिहराया > गया– > > 1 चनेजोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार, > > चनाजोर गरम…………॥ > फिल्‍म– बंधन ( बाम्‍बे टाकीज, मुम्‍बई) 1940 । > गीतकार– प्रदीप । > > 2 जोर गरम बाबू मुलायम मजेदार, > चनाजोर गरम……॥ > > फिल्‍म– छोर छोरी ,1955। > गीतकार– केदार शर्मा । > > > 3 चानाजोर गरम बाबू………… > > फिल्‍म- क्रान्‍ति । > गीतकार- आनंद बख्‍शी। > > इन पंक्तियों में जरा सा बदलाव कर के बड़े हुनर का परिचय दिया गया है। > > ऐसे और भी उदाहरण हैं जिस पर काम जारी है। > > धन्यवाद > > ब्रजेश झा From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Sat Nov 11 15:37:36 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Sat, 11 Nov 2006 11:07:36 +0100 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?MSDgpLXgpL/igI3gpLfgpK8g4KSq4KSwMeCkqOCkryAg?= =?utf-8?b?IOCkviDgpLjgpILgpKbgpYfgpLYtICAgIOCkoeCkvuCkh+CknOClhw==?= =?utf-8?b?4KS44KWN4oCN4KSf?= In-Reply-To: References: <4552eaf5.4585dcea.23d5.0299SMTPIN_ADDED@mx.google.com> Message-ID: <92d81859678c244e42f5ffaff8f99581@sarai.net> Dear Mr. Pansari, Thank you for your comments. Please note that while the initial mail was to inform a larger audience, the follow-up is restricted to the lists where I am sure that it is of direct relevance. Please feel free to forward this to hindi at googlegroups.com if you feel that it is topical there. On 12:13:06 pm 11/09/06 "Hariram Pansari" wrote: > Unique Standard spelling of words : > > In Hindi Language many alternative spellings of same words are being > used by different users. This creates lot of problems. The > Standardised Spellings in "मानक हिन्दी > वर्तनी" booklet by Department of Official Language,GOI > published in 1965(probably) became outdated in view of computing > (placement of standardised characters for forming a word instead of > mere glyph-pieces of characters as was in ordinary manual > typewriters). It needs to be revised. To quote Tannenbaum, the nice thing about standards is that there are so many of them to choose from. My view is that where there is a legitimate difference of spelling, the best thing to do is to choose the most prevalent one, from a survey of a large enough corpus of current usage in newspapers, online material, etc. > Many confusion occurs with alternative spelling. > > For example : > > (1) replacing the use of fifth consonant of a Varga with Vowel > Modifier 'Anuswar' (अंक=अङ्क, शंख=शङ्ख > .... संभाल=सम्भाल.) is scientifically and > logically wrong. But BIS ISCII document accepted this for matching with > old practice of Hindi typewriter. It creates lot of problems We have had this argument before, but I feel that arguments based on logic and science have little to do with language, which is defined by current practice. Witness the enormous differences between old English, and modern usage. The use of anusvara to replace न्, म्, and the ङ + first varga consonants is now established, and it is futile to try and change this. However, we should definitely allow ङ + first varga consonants in cases where it would otherwise be impossible to correctly spell the word, e.g., the English word congress, कॉङ्ग्रेस, where the anusvara cannot be combined with the ardha-candra. > Whereas as per alphabetical sorting order शंख will appear in a > dictionary at begining and शङ्ख will appear after hundreds of > more word. Some proprietory softwares spell check auto-changes > शङ्ख to शंख, which is not justified by the linguistics. Sorting order can be arbitrarily defined, independent of this, so let us not bring it up here. Plus, I am not concerned about fixing bugs in proprietary software. > (2) Right sequence of characters are to be inputed for rendering of > conjucts. In absence of any standards Many OT fonts uses different > sequences for conjuncts which creats problems in spell check. > Spell-checked/corrected words may appear wrongly. I thought that by and large, the order of storage of characters in a UTF-8 document was at least a de-facto standard, as per the Microsoft Indic OT specifications. This is followed by ICU, Pango, QT, etc. The only major exception I know of is the IndiX way of handling OpenType fonts, and while I agree that their treatment has a logic to it, and simplifies things, unless the accepted standard changes to include this, I see no way of supporting it. > (3) The use of ZWJ and ZWNJ for alternative rendering of conjucts also > creates great problem in Hindi and Indic spell checking. Whether > these two characters are to be ignored? If ignored, or if replaced > with said right word of spell checker, how the user's sequecences and > defined rendering could be kept intact? This is correct, but a minor point, in my opinion. > (4) Hindi Large corpora or word-list has to be collected and built, > proof-readed, stanadardised with correct spellings. For this users > personal dictionaries may be collected from time to time to enlarge > the Spell check dictionaries. Are you volunteering to do this? There are several efforts under way in this regard, and it would be great if someone coordinated the entire effort. > (5) Generally spell chekers are very boring, as they stop frequently > after only few words over a unknown word. There should be an option > 'replace all' so that once defined a 'word' all the forthcoming words > can be replaced automatically. Um, replace your software. gedit, kate, etc., can do find and replace, including a replace all. (On this issue, I sent a reply to an earlier message of yours, but there were some issues with my Yahoo account at the time, and it probably did not get through. Both gedit and kate act on characters, even when editing Indian language Unicode documents, i.e., the backspace key deletes a character at a time, instead of a syllable at a time.) > (6) As provided in CDAC products Leapoffice/ISM, option of > "user-defined settings" are must needed for a spell checker in Indian > Languages, as on different cases different form of spellings are > correct or wrong. [...] aspell allows a personal, user-defined word list. > (7) Hindi Corpora for spell check may be kept on a > website, where others can view and contribute new lists or contribute > in proof-reading, editing. This would be great, but we need people to volunteer to maintain, and add to such a site. We could provide hosting for such an effort. Regards, Gora From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Thu Nov 16 14:47:44 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Thu, 16 Nov 2006 14:47:44 +0530 Subject: [Deewan] mp three player ke liye kuchh nuskhe Message-ID: <200611161447.44442.ravikant@sarai.net> कुछ अंदरूनी बातें: एमपी3 प्लेयर के संबंध में - रविशंकर श्रीवास्तव http://abhivyakti-hindi.org/vigyan_varta/pradyogiki/2006/mp3.htm आप अपने लिए एक बढ़िया–सा नन्हा सा पोर्टेबल¸ पर्सनल एमपी3 प्लेयर ख़रीदना चाहते हैं? या ख़रीद चुके हैं? आइए¸ आज आपको कुछ युक्तियां बताते हैं ताकि आपकी ख़रीद बढ़िया हो और अगर आप ख़रीद चुके हों तो आप अपने प्लेयर का सर्वोत्तम इस्तेमाल कर सकें। पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर ख़रीदने से पहले निम्न बातों का ध्यान रखें– • आईपॉड नाम सबको ललचाता है। परंतु उससे बेहतर ख़रीद एक दो नहीं¸ कई कई हैं। • एमपी3 प्लेयर ऐसा ख़रीदें जिसमें बैटरी इनबिल्ट न हो। इनबिल्ट बैटरी युक्त प्लेयर में हो सकता है कि आप कोई बढ़िया सी ग़ज़ल सुन रहे हों और उसके दूसरे शेर में बैटरी ख़त्म हो जाए और आस-पास उसे चार्ज करने का साधन भी न हो। बदली जा सकने वाली बैटरी युक्त सेट में कम से कम आप पांच रुपए की बैटरी पास के पान दुकान या ड्रगस्टोर से ख़रीद कर काम तो चला ही सकते हैं। साथ ही¸ कोई भी रीचार्जेबल बैटरी अनंत काल तक रिचार्ज कर इस्तेमाल में नहीं ली जा सकती। अंतत: रीचार्जेबल बैटरी का भी नया सेट लेना ही पड़ता है। • हार्डडिस्क युक्त एमपी3 प्लेयर कतई नहीं ख़रीदें। साल भर के भीतर ही फ्लैश मेमोरी कार्ड 32 गी .बा .तक की क्षमता में मिलने लगेगा और सस्ता ही मिलने लगेगा। अभी ही 1–2 गी .बा .युक्त मेमोरी¸ फ्लैश कार्ड हज़ार-पंद्रह सौ रुपये में मिलने लगे हैं। मशीनी घूमने वाले उपकरणों युक्त हार्डडि स्क में घर्षण व क्षरण से अंतत: ख़राबी उत्पन्न होती ही है¸ जबकि स्टैटिक फ्लैश कार्ड मेमोरी में ख़राबी की संभावना तुलनात्मक रूप से अत्यंत कम होती है। ये कम बैटरी भी खाते हैं। • एमपी3 प्लेयर ऐसा ख़रीदें जिसमें अलग से या अतिरिक्त मेमोरी कार्ड डाली जा सकती हो। इससे आप अपनी मर्ज़ी के गानों युक्त दो-चार मेमोरी कार्ड भी साथ रख सकते हैं और इस तरह से आपके एमपी3 प्लेयर की मेमोरी कभी भी फुल नहीं होगी। साथ ही आपके पास विकल्प रहेगा कि आने वाले वर्षों में अधिक क्षमता युक्त तुलनात्मक रुप से सस्ते मेमोरी कार्ड के ज़रिए अपने पोर्टेबल संगीत भंडार को और विशाल बना सकें। आजकल 500–600 रुपयों में बिना मेमोरी कार्ड युक्त पोर्टेबल पर्सनल एमपी3 प्लेयर बिक रहे हैं। अगर इनके ऑॅडियोफ़ाइल पर ज़्यादा ज़ोर न दें तो यह सर्वोत्तम ख़रीद होगी। • नये पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर में वीडियो प्लेबैक की भी सुविधा मिल रही है और अंतर्निर्मित छोटे से वीडियो स्क्रीन के ज़रिए रंगीन वीडियो का भी आनंद लिया जा सकता है। ऐसा प्लेयर बेहतर तब हो ता है जब उसमें अंतर्निर्मित स्पीकर भी हो तथा टीवी आउट का भी फंक्शन हो। • अगर आप व्यावसायिक या अपने पेशे के कारण आमतौर पर दौरे पर रहते हैं तो अच्छा यह होगा कि आप ऐसा एमपी3 प्लेयर पसंद करें जो कि आपके मोबाइल फ़ोन में अंतर्निर्मित हो। अनावश्यक रूप से एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक गजेट लेकर घूमना तो मूर्खता है। परंतु ध्यान रहे कि एमपी3 युक्त मोबाइल फ़ो न में अतिरिक्त फ्लैश मेमोरी कार्ड जोड़ने की सुविधा हो¸ अन्यथा स्थिर मेमोरी युक्त पोर्टेबल एमपी 3 प्लेयर तो एक तरह से बेकार ही होता है। • इयरबड वाले इयरफ़ोन जो अकसर एमपी3 प्लेयर के साथ आते हैं¸ हो सकता है कि वे आपके कानों के आकार के अनुरूप न हों। इससे हो सकता है कि आपके कानों में दर्द या इन्फैक्शन की समस्या पैदा हो जाए। इसलिए बेहतर यह होगा कि अपने कान के लिए योग्य आकार वाले उच्च गुणवत्ता के इयरफ़ोन ख़रीदें। जहां तक संभव हो बडे. कान को ढंकने वाले इयरफ़ोन प्रयोग करें। इनसे बाहरी शोर से भी एक हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। • अगर आपके पास कार है और उसमें पहले से ही म्यूज़िक सिस्टम लगा है जिसमें एफएम रेडियो भी है¸ तो ऐसा पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर ख़रीदें जिसमें स्टीरियो एफएम ट्रांस्मीशन की भी सुविधा हो। इससे आप अपने पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर के ज़रिए बजाए जा रहे संगीत को बिना किसी तार के अपने कार के म्यूज़िक सिस्टम में भी सुन सकते हैं। • अब अंतत: आपने अपने लिए कोई बढ़िया¸ धांसू पोर्टेबल¸ पर्सनल एमपी3 पसंद कर ही लिया। आपके पास एमपी3 प्लेयर ख़रीदने का जो बजट अभी है¸ उसे दो बराबर हिस्से में बाटें। इसके आधे हिस्से से अभी कोई दूसरा सस्ता–सा पोर्टेबल पर्सनल एमपी3 प्लेयर ख़रीदें। बाकी बचे दूसरे आधे हिस्से से दो साल बाद आप जैसा धांसू प्लेयर ख़रीदना चाह रहे थे¸ उससे दस गुना ज़्यादा क्षमता और ख़ासियत वाला प्लेयर ख़रीदें। और अगर आपने अपना पसंदीदा पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर ख़रीद ही लिया है तो इसका बेहतर और सर्वोत्तम इस्तेमाल के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें- • एमपी3 फॉर्मेट में गानों के डाटा को संपीडित किया जाता है जिसके कारण उसमें सुनने में ऑॅडियो सी डी जैसी गुणवत्ता नहीं आ पाती। अत: घर पर जहां अन्य सुविधाएं उपलब्ध हों¸ ऑॅडियोफ़ाइल ग्रेड सी डीप्लेयरों युक्त म्यूज़िक सिस्टम से गीत संगीत सुनने का आनंद अलग ही होता है। • एमपी3 फॉर्मेट में गानों को अलग–अलग बिटरेट पर संपीड़ित किया जाता है। न्यूनतम 32 केबीप्रसे (खब्पस्) से लेकर 320 केबीप्रसे तक संपीडन आमतौर पर प्रचलित है। वैसे सामान्य रूप में उपलब्ध एमपी 3 फॉर्मेट में संगीत प्राय: 128 केबीप्रसे पर एनकोडिंग किया हुआ होता है। 32 केबीप्रसे से एनकोडि त फ़ाइल के संगीत की गुणवत्ता न्यूनतम होती है¸ वहीं 320 केबीप्रसे से एनकोडित फ़ाइल में उच्च गुणवत्ता का संगीत मिलता है। अत: यदि आप चाहते हैं कि संगीत की गुणवत्ता में कोई समझौता न हो तो उच्च बिटरेट वाली एमपी3 फ़ाइलें इस्तेमाल करें। वैसे¸ वेरिएबल बिटरेट भी कुछ मामलों में बेहतर होता है। • अगर आप लंबे समय के लिए बाहर जा रहे हैं और चाहते हैं कि आपके पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर (या फ्लैश मेमोरी कार्ड) में ज़्यादा से ज़्यादा संगीत आए तो आप अपने संगीत फ़ाइलों को न्यूनतम बिटरेट पर एनकोडिंग करें। यह भी देखें कि क्या आपका एमपी3 प्लेयर डब्ल्यूएमए फॉर्मेट को समर्थित करता है। अगर आपका प्लेयर डब्ल्यूएमए फॉर्मेट को समर्थित करता है तो आप डीबीपावरएंप के ज़रिए 128 केबीप्रसे से एनकोडित अपने एमपी3 संगीत फ़ाइलों को 20 केबीप्रसे युक्त डब्ल्यूएमए फॉर्मेट में एनकोडिंग कर रूपांतरित करें। इस तरह से सामान्य 128 केबी मेमोरी युक्त एमपी3 प्लेयर में जहां 20 से 25 एमपी3 गाने ही आ पाते हैं¸ आप 125 से अधिक गाने भर सकते हैं। 128 केबीपीएस वाला 5 मि नट का एमपी3 संगीत फ़ाइल लगभग 5 मे .बा .का होता है वहीं 20 केबीपीएस का डब्ल्यूएमए संगीत फ़ाइल 0 .6 मे .बा .जगह घेरता है। ठीक है¸ कम केबीपीएस एनकोडिंग से गुणवत्ता में थोड़ी–सी कमी आएगी¸ परंतु जब आप सफ़र पर हों¸ गाड़ी घोड़ों की आवाज़ें हों¸ तो वैसे भी संगीत सुनने में इतनी गुणवत्ता में कमी कोई ख़ास तौर पर नज़र नहीं आती। डीबीपावरएंप से संगीत को कम बिटरेट पर रूपां तरित करना अत्यंत आसान है। डीबीपावरएंप अपने कंप्यूटर पर संस्थापित करिए¸ तमाम आवश्यक एनकोडिंग इसकी साइट से उतार कर संस्थापित करिए¸ फिर किसी भी संगीत फ़ाइल को दायां क्लिक करिए। संगीत फ़ाइल को रूपांतरित करने के लिए पूछा जाएगा। हां करिए और वांछित जानकारी भरि ए। बस हो गया। • कम बिट रेट से सहेजे गए संगीत फ़ाइलों को बजाने में आपके एमपी3 प्लेयर को कम ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। अत: यह ज़्यादा देर तक और ज़्यादा संगीत फ़ाइलों उतनी ही बैटरी में बजा सकता है। इसी लिए जब आप सफ़र पर हों तो कम बिटरेट वाली संगीत फ़ाइलें ही लोड कर साथ ले जाएं। और जैसा कि ऊपर के अनुच्छेद में बताया गया है¸ कम बिटरेट वाली फाइलें कम जगह घेरती हैं¸ दुहरा फायदा – यानी आपके एमपी3 प्लेयर में ज़्यादा गाने समाएंगे। हो सकता है कि आपके मन में कोई शंका अब भी हो। हो सकता है कि आपके पास इनसे भी बढ़िया टि प्स¸ नुस्खे और युक्तियां हों। तो¸ उन्हें हमारे साथ यहां अवश्य साझा करें। 24 अक्तूबर 2006 From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Thu Nov 16 16:25:35 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Thu, 16 Nov 2006 16:25:35 +0530 Subject: [Deewan] mp three player ke liye kuchh nuskhe In-Reply-To: <200611161447.44442.ravikant@sarai.net> References: <200611161447.44442.ravikant@sarai.net> Message-ID: <455C43A7.4040500@sarai.net> ेेरवीशंकर, ‌‌आपका मेल बिढयां लगा. िदवान िलस्ट पर इस तरह की जानकािरयां होना िलस्ट को एक नया स्वरूप देगा जो सुखद है. आपकी बातों को बढाते हुए, मैं िजस mp3 का इस्तेमाल करता हूं वह digital recorder के साथ युक्त है. इसमे F.M. radio, storgae device, telephone book आिद भी है. दो साल पहले नेहरु प्लेस में 256 mv वाले इस िडवाईस की कीमत 2000 रु थी. कहने की जरुरत नही िक यह सोनी जैसे ब्रांड वाले की तुलना में बहुत सस्ती थी. आज इसकी कीमत और भी कम होगी. उन िदनों यह 128, 512 mv में भी आती थी. सदन. शहर wrote: > कुछ अंदरूनी बातें: एमपी3 प्लेयर के संबंध में > >- रविशंकर श्रीवास्तव > >http://abhivyakti-hindi.org/vigyan_varta/pradyogiki/2006/mp3.htm > >आप अपने लिए एक बढ़िया–सा नन्हा सा पोर्टेबल¸ पर्सनल एमपी3 प्लेयर ख़रीदना चाहते हैं? या ख़रीद >चुके हैं? आइए¸ आज आपको कुछ युक्तियां बताते हैं ताकि आपकी ख़रीद बढ़िया हो और अगर आप ख़रीद चुके >हों तो आप अपने प्लेयर का सर्वोत्तम इस्तेमाल कर सकें। > >पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर ख़रीदने से पहले निम्न बातों का ध्यान रखें– > >• आईपॉड नाम सबको ललचाता है। परंतु उससे बेहतर ख़रीद एक दो नहीं¸ कई कई हैं। >• एमपी3 प्लेयर ऐसा ख़रीदें जिसमें बैटरी इनबिल्ट न हो। इनबिल्ट बैटरी युक्त प्लेयर में हो सकता है >कि आप कोई बढ़िया सी ग़ज़ल सुन रहे हों और उसके दूसरे शेर में बैटरी ख़त्म हो जाए और आस-पास उसे >चार्ज करने का साधन भी न हो। बदली जा सकने वाली बैटरी युक्त सेट में कम से कम आप पांच रुपए > की बैटरी पास के पान दुकान या ड्रगस्टोर से ख़रीद कर काम तो चला ही सकते हैं। साथ ही¸ कोई >भी रीचार्जेबल बैटरी अनंत काल तक रिचार्ज कर इस्तेमाल में नहीं ली जा सकती। अंतत: रीचार्जेबल >बैटरी का भी नया सेट लेना ही पड़ता है। > >• हार्डडिस्क युक्त एमपी3 प्लेयर कतई नहीं ख़रीदें। साल भर के भीतर ही फ्लैश मेमोरी कार्ड 32 >गी .बा .तक की क्षमता में मिलने लगेगा और सस्ता ही मिलने लगेगा। अभी ही 1–2 गी .बा .युक्त >मेमोरी¸ फ्लैश कार्ड हज़ार-पंद्रह सौ रुपये में मिलने लगे हैं। मशीनी घूमने वाले उपकरणों युक्त हार्डडि >स्क में घर्षण व क्षरण से अंतत: ख़राबी उत्पन्न होती ही है¸ जबकि स्टैटिक फ्लैश कार्ड मेमोरी में > ख़राबी की संभावना तुलनात्मक रूप से अत्यंत कम होती है। ये कम बैटरी भी खाते हैं। > >• एमपी3 प्लेयर ऐसा ख़रीदें जिसमें अलग से या अतिरिक्त मेमोरी कार्ड डाली जा सकती हो। इससे आप >अपनी मर्ज़ी के गानों युक्त दो-चार मेमोरी कार्ड भी साथ रख सकते हैं और इस तरह से आपके एमपी3 >प्लेयर की मेमोरी कभी भी फुल नहीं होगी। साथ ही आपके पास विकल्प रहेगा कि आने वाले वर्षों में >अधिक क्षमता युक्त तुलनात्मक रुप से सस्ते मेमोरी कार्ड के ज़रिए अपने पोर्टेबल संगीत भंडार को और >विशाल बना सकें। आजकल 500–600 रुपयों में बिना मेमोरी कार्ड युक्त पोर्टेबल पर्सनल एमपी3 प्लेयर >बिक रहे हैं। अगर इनके ऑॅडियोफ़ाइल पर ज़्यादा ज़ोर न दें तो यह सर्वोत्तम ख़रीद होगी। > >• नये पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर में वीडियो प्लेबैक की भी सुविधा मिल रही है और अंतर्निर्मित छोटे से >वीडियो स्क्रीन के ज़रिए रंगीन वीडियो का भी आनंद लिया जा सकता है। ऐसा प्लेयर बेहतर तब हो >ता है जब उसमें अंतर्निर्मित स्पीकर भी हो तथा टीवी आउट का भी फंक्शन हो। >• अगर आप व्यावसायिक या अपने पेशे के कारण आमतौर पर दौरे पर रहते हैं तो अच्छा यह होगा कि >आप ऐसा एमपी3 प्लेयर पसंद करें जो कि आपके मोबाइल फ़ोन में अंतर्निर्मित हो। अनावश्यक रूप से एक >अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनिक गजेट लेकर घूमना तो मूर्खता है। परंतु ध्यान रहे कि एमपी3 युक्त मोबाइल फ़ो >न में अतिरिक्त फ्लैश मेमोरी कार्ड जोड़ने की सुविधा हो¸ अन्यथा स्थिर मेमोरी युक्त पोर्टेबल एमपी >3 प्लेयर तो एक तरह से बेकार ही होता है। > >• इयरबड वाले इयरफ़ोन जो अकसर एमपी3 प्लेयर के साथ आते हैं¸ हो सकता है कि वे आपके कानों > के आकार के अनुरूप न हों। इससे हो सकता है कि आपके कानों में दर्द या इन्फैक्शन की समस्या पैदा हो >जाए। इसलिए बेहतर यह होगा कि अपने कान के लिए योग्य आकार वाले उच्च गुणवत्ता के इयरफ़ोन > ख़रीदें। जहां तक संभव हो बडे. कान को ढंकने वाले इयरफ़ोन प्रयोग करें। इनसे बाहरी शोर से भी एक >हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। > >• अगर आपके पास कार है और उसमें पहले से ही म्यूज़िक सिस्टम लगा है जिसमें एफएम रेडियो भी है¸ तो >ऐसा पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर ख़रीदें जिसमें स्टीरियो एफएम ट्रांस्मीशन की भी सुविधा हो। इससे आप >अपने पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर के ज़रिए बजाए जा रहे संगीत को बिना किसी तार के अपने कार के >म्यूज़िक सिस्टम में भी सुन सकते हैं। >• अब अंतत: आपने अपने लिए कोई बढ़िया¸ धांसू पोर्टेबल¸ पर्सनल एमपी3 पसंद कर ही लिया। आपके > पास एमपी3 प्लेयर ख़रीदने का जो बजट अभी है¸ उसे दो बराबर हिस्से में बाटें। इसके आधे हिस्से से >अभी कोई दूसरा सस्ता–सा पोर्टेबल पर्सनल एमपी3 प्लेयर ख़रीदें। बाकी बचे दूसरे आधे हिस्से से दो > साल बाद आप जैसा धांसू प्लेयर ख़रीदना चाह रहे थे¸ उससे दस गुना ज़्यादा क्षमता और ख़ासियत >वाला प्लेयर ख़रीदें। और अगर आपने अपना पसंदीदा पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर ख़रीद ही लिया है तो > इसका बेहतर और सर्वोत्तम इस्तेमाल के लिए निम्न बातों का ध्यान रखें- > >• एमपी3 फॉर्मेट में गानों के डाटा को संपीडित किया जाता है जिसके कारण उसमें सुनने में ऑॅडियो सी >डी जैसी गुणवत्ता नहीं आ पाती। अत: घर पर जहां अन्य सुविधाएं उपलब्ध हों¸ ऑॅडियोफ़ाइल ग्रेड सी >डीप्लेयरों युक्त म्यूज़िक सिस्टम से गीत संगीत सुनने का आनंद अलग ही होता है। > >• एमपी3 फॉर्मेट में गानों को अलग–अलग बिटरेट पर संपीड़ित किया जाता है। न्यूनतम 32 केबीप्रसे >(खब्पस्) से लेकर 320 केबीप्रसे तक संपीडन आमतौर पर प्रचलित है। वैसे सामान्य रूप में उपलब्ध एमपी >3 फॉर्मेट में संगीत प्राय: 128 केबीप्रसे पर एनकोडिंग किया हुआ होता है। 32 केबीप्रसे से एनकोडि >त फ़ाइल के संगीत की गुणवत्ता न्यूनतम होती है¸ वहीं 320 केबीप्रसे से एनकोडित फ़ाइल में उच्च >गुणवत्ता का संगीत मिलता है। अत: यदि आप चाहते हैं कि संगीत की गुणवत्ता में कोई समझौता न हो >तो उच्च बिटरेट वाली एमपी3 फ़ाइलें इस्तेमाल करें। वैसे¸ वेरिएबल बिटरेट भी कुछ मामलों में बेहतर >होता है। >• अगर आप लंबे समय के लिए बाहर जा रहे हैं और चाहते हैं कि आपके पोर्टेबल एमपी3 प्लेयर (या फ्लैश >मेमोरी कार्ड) में ज़्यादा से ज़्यादा संगीत आए तो आप अपने संगीत फ़ाइलों को न्यूनतम बिटरेट पर >एनकोडिंग करें। यह भी देखें कि क्या आपका एमपी3 प्लेयर डब्ल्यूएमए फॉर्मेट को समर्थित करता है। >अगर आपका प्लेयर डब्ल्यूएमए फॉर्मेट को समर्थित करता है तो आप डीबीपावरएंप के ज़रिए >128 केबीप्रसे से एनकोडित अपने एमपी3 संगीत फ़ाइलों को 20 केबीप्रसे युक्त डब्ल्यूएमए फॉर्मेट में > एनकोडिंग कर रूपांतरित करें। इस तरह से सामान्य 128 केबी मेमोरी युक्त एमपी3 प्लेयर में जहां 20 >से 25 एमपी3 गाने ही आ पाते हैं¸ आप 125 से अधिक गाने भर सकते हैं। 128 केबीपीएस वाला 5 मि >नट का एमपी3 संगीत फ़ाइल लगभग 5 मे .बा .का होता है वहीं 20 केबीपीएस का डब्ल्यूएमए संगीत >फ़ाइल 0 .6 मे .बा .जगह घेरता है। ठीक है¸ कम केबीपीएस एनकोडिंग से गुणवत्ता में थोड़ी–सी कमी >आएगी¸ परंतु जब आप सफ़र पर हों¸ गाड़ी घोड़ों की आवाज़ें हों¸ तो वैसे भी संगीत सुनने में इतनी >गुणवत्ता में कमी कोई ख़ास तौर पर नज़र नहीं आती। डीबीपावरएंप से संगीत को कम बिटरेट पर रूपां >तरित करना अत्यंत आसान है। डीबीपावरएंप अपने कंप्यूटर पर संस्थापित करिए¸ तमाम आवश्यक >एनकोडिंग इसकी साइट से उतार कर संस्थापित करिए¸ फिर किसी भी संगीत फ़ाइल को दायां क्लिक >करिए। संगीत फ़ाइल को रूपांतरित करने के लिए पूछा जाएगा। हां करिए और वांछित जानकारी भरि >ए। बस हो गया। > >• कम बिट रेट से सहेजे गए संगीत फ़ाइलों को बजाने में आपके एमपी3 प्लेयर को कम ऊर्जा खर्च करनी >पड़ती है। अत: यह ज़्यादा देर तक और ज़्यादा संगीत फ़ाइलों उतनी ही बैटरी में बजा सकता है। इसी >लिए जब आप सफ़र पर हों तो कम बिटरेट वाली संगीत फ़ाइलें ही लोड कर साथ ले जाएं। और जैसा कि >ऊपर के अनुच्छेद में बताया गया है¸ कम बिटरेट वाली फाइलें कम जगह घेरती हैं¸ दुहरा फायदा – >यानी आपके एमपी3 प्लेयर में ज़्यादा गाने समाएंगे। > >हो सकता है कि आपके मन में कोई शंका अब भी हो। हो सकता है कि आपके पास इनसे भी बढ़िया टि >प्स¸ नुस्खे और युक्तियां हों। तो¸ उन्हें हमारे साथ यहां अवश्य साझा करें। > >24 अक्तूबर 2006 >_______________________________________________ >Deewan mailing list >Deewan at mail.sarai.net >http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Fri Nov 17 14:13:46 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Fri, 17 Nov 2006 14:13:46 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KS44KS+4KSu4KWB4KS/4KS54KSVIOCkv+CkueCkgg==?= =?utf-8?b?4KS44KS+IOCkuOClhyDgpLjgpILgpLXgpILgpL/gpKfgpKQg4KSV4KS/4KS1?= =?utf-8?b?4KSk4KS+4KSTJyDgpJXgpYcg4KS/4KSy4KSPIOCkuOClgeCkneCkvuCktSA=?= =?utf-8?b?4KSm4KWH4KSC?= Message-ID: <455D7642.4040206@sarai.net> दोस्तों, मैं िपछले कुछ समय से सामुिहक िहंसा पर सोचता, पढता रह रहा हूँ. क्या आप इस िवषय पर िहंदी की किवताओ' का सुझाव देंगे? इंतजार रहेगा, सदन. From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Fri Nov 17 13:22:12 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Fri, 17 Nov 2006 13:22:12 +0530 Subject: [Deewan] raag darbaari on net Message-ID: <200611171322.12413.ravikant@sarai.net> जिन लोगों ने श्रीलाल शुक्ल का मशहूर उपन्यास न पढ़ा हो, या फिर से पढ़ना चाह रहे हों, वे राग दरबारी के ब्लॉग-संस्करण का लुत्फ़ ले सकते हैं, ‌अभी काम शुरू हु‌आ है, ‌आप चाहें तो ख़ुद योगदान कर सकते हैं. http://ragdarbaari.blogspot.com/ मज़े लें रविकान्त From =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= Fri Nov 17 15:59:49 2006 From: =?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?= (=?utf-8?b?4KS24KS54KSwLCDgpZ7gpL/gpLLgpY3igI3gpK4g4KS44KS54KS/4KSk?=) Date: Fri, 17 Nov 2006 15:59:49 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSc4KS+4KSB4KSaIOCkuOClh+CkpuClh+CktiAtIA==?= =?utf-8?b?4KSF4KSo4KSm4KWH4KSW4KS+IOCkleCksOClh+Ckgg==?= Message-ID: <200611171559.49901.ravikant@sarai.net> जाँच संदेश अनदेखा करें From deewan at mail.sarai.net Fri Nov 17 16:02:14 2006 From: deewan at mail.sarai.net (=?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+4KSo?=) Date: Fri, 17 Nov 2006 16:02:14 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSc4KS+4KSB4KSaIOCkuOClh+CkpuClh+CktiAtIA==?= =?utf-8?b?4KSo4KSc4KS84KSw4KSF4KSC4KSm4KS+4KSc4KS8IOCkleCksOClh+Ckgg==?= Message-ID: <200611171602.15019.ravikant@sarai.net> जाँच संदेश नज़रअंदाज़ करें From deewan at mail.sarai.net Sat Nov 18 17:49:20 2006 From: deewan at mail.sarai.net (=?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+4KSo?=) Date: Sat, 18 Nov 2006 17:49:20 +0530 Subject: [Deewan] Fwd: Hindi Browser Message-ID: <200611181749.21034.ravikant@sarai.net> zara dekhein bbc par jakar yeh hai kya aur kya karta hai? cheers ravikant Subject: Hindi Browser Date: शनिवार 18 नवम्बर 2006 12:51 From: "Khadeeja Arif" To: ravikant at sarai.net सॉफ़्टवेयर इंजीनियर का नाम लिम्का बुक में <> जगदीप सिंह दाँगी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं मध्य प्रदेश में विदिशा ज़िले के कंप्यूटर इंजीनियर जगदीप सिंह दाँगी का नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है. जगदीप दाँगी को यह उपलब्धि दुनिया के पहले हिंदी इंटरनेट सॉफ़्टवेयर आई-ब्राउजर++ (हिंदी-एक्सप्लोरर) को विकसित करने के लिए मिली है. आई-ब्राउजर++ (हिंदी-एक्सप्लोरर) का संपूर्ण इंटरफ़ेस पूरी तरह हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि) में है. इसकी सहायता से कोई भी साक्षर हिंदी भाषी व्यक्ति इसका उपयोग अपनी भाषा में आसानी से कर सकता है. आई-ब्राउजर++ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुविधा अनुवाद की है, जिसकी मदद से वेब-पेज पर मौजूद अंग्रेज़ी शब्द का न केवल हिंदी में अर्थ और उच्चारण जाना जा सकता है, बल्कि उच्चारण सहित लगभग सभी समानार्थी शब्द भी देवनागरी लिपि में आ जाते हैं. विशेषता आवश्यकता सिर्फ़ होती है उस शब्द पर माउस से क्लिक करने की. इसके अलावा आई-ब्राउजर++ में और भी अन्य खूबियाँ हैं. जैसे एक साथ कई फ़ाइल खोलने की (उसी विंडो या अन्य विंडो में), एक साथ कई फ़ाइल को सुरक्षित करने की, एक साथ कई फ़ाइल सर्च कर अपने आप एक के बाद एक फ़ाइल खोलने की. इसमें हिंदी यूनिकोड आधारित पाठ लिखने, उसे इंटरनेट से सर्च करने, हिंदी ई-मेल लिखने और भेजने की सुविधाएँ प्रमुख हैं. इस सॉफ़्टवेयर में अनुवाद की सुविधा तो मिलती ही है, लगभग 38,500 शब्दों का शब्दकोश भी इसमें है, जिसकी सहायता से अंग्रेज़ी भाषा के वेब-पेज को हिंदी में समझने में सहायता मिलती है. यही नहीं इसके शब्दकोश में आप अतिरिक्त शब्दों को सम्मिलित कर इसे और भी समृद्ध बना सकते हैं. मई में जगदीप दाँगी को लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड के कार्यालय गुड़गांव में आमंत्रित किया गया था. यहाँ उन्होंने अपने सॉफ़्टवेयर का प्रदर्शन लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड की संपादक विजया घोष और अन्य पदाधिकारियों के सामने किया था. अब लिम्का बुक में नाम दर्ज होने संबंधित प्रमाण पत्र जगदीप दाँगी को मिला है. विदिशा के इंजीनियरिंग महाविद्यालय से 2001 में कम्प्यूटर इंजीनियर की उपाधि प्राप्त करने वाले दाँगी जब सात वर्ष के थे, उन्हें पोलियो हो गया और इलाज के क्रम में एक पैर के साथ-साथ एक आँख भी ख़राब हो गई. लिम्का बुक में नाम दर्ज होने के बाद उन्होंने बताया कि चार वर्ष की मेहनत के बाद उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है. दाँगी ने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद अपने निवास पर ही उन्होंने अपने 'भाषा-सेतु' प्रोजेक्ट के तहत हिंदी सॉफ़्टवेयर तैयार किया है. उनके इस कार्य को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की सूचना तकनीक से जुड़ी अनेक पत्र-पत्रिका From deewan at mail.sarai.net Sat Nov 18 18:22:21 2006 From: deewan at mail.sarai.net (=?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+4KSo?=) Date: Sat, 18 Nov 2006 12:52:21 +0000 Subject: [Deewan] Fwd: Hindi Browser In-Reply-To: <200611181749.21034.ravikant@sarai.net> References: <200611181749.21034.ravikant@sarai.net> Message-ID: <455F0205.7010901@rana.org.uk> यहाँ भी देखें http://raviratlami.blogspot.com/2004/12/blog-post_03.html दीवान wrote: > zara dekhein bbc par jakar yeh hai kya aur kya karta hai? > > cheers > ravikant > > Subject: Hindi Browser > Date: शनिवार 18 नवम्बर 2006 12:51 > From: "Khadeeja Arif" > To: ravikant at sarai.net > > सॉफ़्टवेयर इंजीनियर का नाम लिम्का बुक में > <> > जगदीप सिंह दाँगी सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हैं > मध्य प्रदेश में विदिशा ज़िले के कंप्यूटर इंजीनियर जगदीप सिंह दाँगी का नाम > लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज हो गया है. जगदीप दाँगी को यह उपलब्धि दुनिया > के पहले हिंदी इंटरनेट सॉफ़्टवेयर आई-ब्राउजर++ (हिंदी-एक्सप्लोरर) को विकसित > करने के लिए मिली है. आई-ब्राउजर++ (हिंदी-एक्सप्लोरर) का संपूर्ण इंटरफ़ेस > पूरी तरह हिंदी भाषा (देवनागरी लिपि) में है. इसकी सहायता से कोई भी साक्षर > हिंदी भाषी व्यक्ति इसका उपयोग अपनी भाषा में आसानी से कर सकता है. > आई-ब्राउजर++ में एक बहुत ही महत्वपूर्ण सुविधा अनुवाद की है, जिसकी मदद से > वेब-पेज पर मौजूद अंग्रेज़ी शब्द का न केवल हिंदी में अर्थ और उच्चारण जाना जा > सकता है, बल्कि उच्चारण सहित लगभग सभी समानार्थी शब्द भी देवनागरी लिपि में आ > जाते हैं. विशेषता > आवश्यकता सिर्फ़ होती है उस शब्द पर माउस से क्लिक करने की. इसके अलावा > आई-ब्राउजर++ में और भी अन्य खूबियाँ हैं. जैसे एक साथ कई फ़ाइल खोलने की (उसी > विंडो या अन्य विंडो में), एक साथ कई फ़ाइल को सुरक्षित करने की, एक साथ कई > फ़ाइल सर्च कर अपने आप एक के बाद एक फ़ाइल खोलने की. इसमें हिंदी यूनिकोड > आधारित पाठ लिखने, उसे इंटरनेट से सर्च करने, हिंदी ई-मेल लिखने और भेजने की > सुविधाएँ प्रमुख हैं. इस सॉफ़्टवेयर में अनुवाद की सुविधा तो मिलती ही है, लगभग > 38,500 शब्दों का शब्दकोश भी इसमें है, जिसकी सहायता से अंग्रेज़ी भाषा के > वेब-पेज को हिंदी में समझने में सहायता मिलती है. यही नहीं इसके शब्दकोश में आप > अतिरिक्त शब्दों को सम्मिलित कर इसे और भी समृद्ध बना सकते हैं. मई में जगदीप > दाँगी को लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड के कार्यालय गुड़गांव में आमंत्रित किया गया > था. यहाँ उन्होंने अपने सॉफ़्टवेयर का प्रदर्शन लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड की > संपादक विजया घोष और अन्य पदाधिकारियों के सामने किया था. अब लिम्का बुक में > नाम दर्ज होने संबंधित प्रमाण पत्र जगदीप दाँगी को मिला है. विदिशा के > इंजीनियरिंग महाविद्यालय से 2001 में कम्प्यूटर इंजीनियर की उपाधि प्राप्त करने > वाले दाँगी जब सात वर्ष के थे, उन्हें पोलियो हो गया और इलाज के क्रम में एक > पैर के साथ-साथ एक आँख भी ख़राब हो गई. लिम्का बुक में नाम दर्ज होने के बाद > उन्होंने बताया कि चार वर्ष की मेहनत के बाद उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है. > दाँगी ने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद अपने निवास पर ही उन्होंने अपने > 'भाषा-सेतु' प्रोजेक्ट के तहत हिंदी सॉफ़्टवेयर तैयार किया है. उनके इस कार्य > को अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर की सूचना तकनीक से जुड़ी अनेक > पत्र-पत्रिका > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan --  ================================================================ शुभकामनाओं के साथ हमेशा मोहन MOHAN RANA : http://wordwheel.blogspot.com/ =============================================================== From deewan at mail.sarai.net Sun Nov 19 10:46:09 2006 From: deewan at mail.sarai.net (=?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+4KSo?=) Date: Sun, 19 Nov 2006 10:46:09 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KS44KS+4KSu4KWB4KS54KS/4KSVIOCkueCkv+Ckgg==?= =?utf-8?b?4KS44KS+IOCkquCksCDgpJXgpLXgpL/gpKTgpL7gpJDgpII=?= Message-ID: <63309c960611182116t4dffdda0s38ed3d6be38356ca@mail.gmail.com> सामुहिक हिंसा पर कविताऐं पढने को मुझे बहुत कम मिली, लेकिन अटलबिहारी वाजपेयी की एक कविता मेरे जेहन मे है... टाइटल है-हिरोशिमा की पीडा.... किसी रात को मेरी नींद अचानक उचट जाती है, आँख खुल जाती है,मैं सोचने लगता हुँ कि जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का आविष्कार किया था वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण नरसंहार के समाचार सुनकर रात को सोए कैसे होगें? दांत में फंसा तिनका,आंख की किरकिरी पांव में चुभा कांटा,मन का चेन उडा देते हैं. सगे-संबंधी की मौत ,किसी प्रिय का न रहना, परिचित का उठ जाना.. यहाँ तक कि पालतू पशु का भी बिछोह . ....... करवटें बदलत रात गुजर जाती है, किन्तु जिनके आविष्कार से वह अंतिम अस्त्र बना जिसने छ्;अगस्त १९४५ की कालरात्रि को , में मौत का तांडाव कर दो लाख से अधिक लोगों की बलि ले ली हजारों को जीओअन भर के लिए अपाहिज कर दिया, क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही ,यह अनुभूति हुई कि उनके हाथों जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ...? From deewan at mail.sarai.net Sun Nov 19 10:53:49 2006 From: deewan at mail.sarai.net (=?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+4KSo?=) Date: Sun, 19 Nov 2006 10:53:49 +0530 Subject: [Deewan] samuhik hinsa par ek kawita Message-ID: <63309c960611182123o53a73b6y91967336cca9d4f5@mail.gmail.com> सामुहिक हिंसा पर कविताऐं पढने को मुझे बहुत कम मिली, लेकिन अटलबिहारी वाजपेयी की एक कविता मेरे जेहन मे है... टाइटल है-हिरोशिमा की पीडा.... किसी रात को मेरी नींद अचानक उचट जाती है, आँख खुल जाती है,मैं सोचने लगता हुँ कि जिन वैज्ञानिकों ने अणु अस्त्रों का आविष्कार किया था वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण नरसंहार के समाचार सुनकर रात को सोए कैसे होगें? दांत में फंसा तिनका,आंख की किरकिरी पांव में चुभा कांटा,मन का चेन उडा देते हैं. सगे-संबंधी की मौत ,किसी प्रिय का न रहना, परिचित का उठ जाना.. यहाँ तक कि पालतू पशु का भी बिछोह . ....... करवटें बदलत रात गुजर जाती है, किन्तु जिनके आविष्कार से वह अंतिम अस्त्र बना जिसने छ्;अगस्त १९४५ की कालरात्रि को , में मौत का तांडाव कर दो लाख से अधिक लोगों की बलि ले ली हजारों को जीओअन भर के लिए अपाहिज कर दिया, क्या उन्हें एक क्षण के लिए सही ,यह अनुभूति हुई कि उनके हाथों जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ...? गिरीन्द्र नाथ् www.anubhaw.blogspot.com From deewan at mail.sarai.net Wed Nov 22 01:52:44 2006 From: deewan at mail.sarai.net (=?utf-8?b?4KSm4KWA4KS14KS+4KSo?=) Date: Wed, 22 Nov 2006 01:52:44 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSV4KWB4KSbIOCklOCksCDgpJfgpYDgpKTgpYvgpIIg?= =?utf-8?b?4KSV4KWHIOCkuOCkvuCkpQ==?= Message-ID: <6a32f8f0611211222q37d5c76fy9435fb54398f244f@mail.gmail.com> *मोमिन *की एक पंक्ति लगातार दिमाग में चक्कर लगा रही है- * तुम मेरे पास होते हो गोया । जब कोई दूसरा नहीं होता ॥ * इसे पढ़ते ही एक गाना याद आता है- * ओ मेरे शाहे खुदा ओ मेरी जाने जनाना तुम मेरे पास होते हो कोई दूसरा नहीं होता * - हसरत जयपुरी (लव इन टोकियो) हकीम मुहम्मद मोमिन खां , गालिब के समकालीन थे। * मजाज *की भी एक पंक्ति देख लें- * अभी कमसिन हो, नादां हो, कहीं खो दोगे दिल मेरा…॥ * मेरा खयाल है कि यहां आप के मन में जरूर एक पंक्ति याद आ रही होगी। यदि ऐसा न हुआ तो याद दिलाना मेरे जिम्‍मे रहा। शुक्रिया रविकान्‍त सर आपने उत्साह बढ़या, बस सीना चौड़ा हो गया हमारा। -प्रणाम सदन जी के वास्ते- * किसने जलाई बस्तियां बाजार क्यों लुटे मैं चांद पर गया था, मुझे कुछ पता नहीं………॥ * -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... 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