From rakesh at sarai.net Fri Sep 16 14:18:41 2005 From: rakesh at sarai.net (Rakesh) Date: Fri, 16 Sep 2005 14:18:41 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSa4KSw4KSa4KS+IOCktuClgeCksOClgSDgpJXgpLA=?= =?utf-8?b?4KSk4KWHIOCkueCliOCkgg==?= Message-ID: <432A86E9.6090206@sarai.net> दोस्तो सलाम दीवान सूची पर आपके साथ चरचा करते हुए बड़ी खुशी हो रही है. इस फाँट से अभी मेरी नयी जान-पहचान है इसिलए धीमी गित से िलख रहा हूँ. और बाद में िलखूँगा. राकेश -- Rakesh Kumar Singh Sarai-CSDS Rajpur Road, Delhi 110054 Ph: 91 11 23960040 Fax: 91 11 2394 3450 web site: www.sarai.net web blog: http://blog.sarai.net/users/rakesh/ From rakesh at sarai.net Fri Sep 16 16:27:15 2005 From: rakesh at sarai.net (Rakesh) Date: Fri, 16 Sep 2005 16:27:15 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSH4KS4IOCkuOClguCkmuClgCDgpJXgpYcg4KS/4KSy?= =?utf-8?b?4KSPIOCkrOCkp+CkvuCkiA==?= Message-ID: <432AA50B.9080304@sarai.net> दोस्तो सूची से जुड़ने वाले दोस्तों को मेरी बधाई! आइए हम सब िमलकर अपने शहर के उन मुद्दों पर चरचा करते हैं जो हमारी रोज़मर्रा से जुड़े हैं. शहर में क्या हो रहा है, शहर हमसे क्या कहता है, हम शहर को कैसे देखते हैं, शहर हमें कैसे देखता है; शहर की बनती-िबगड़ती तस्वीरों से दो-चार होने अौर उन तस्वीरों पर बहस-मुबािहसे का अच्छा माध्यम बना सकते हैं हम इस िलस्ट को. हालाँिक अभी इस सूची को व्यापक होने में थोड़ी अड़चने हैं, जो ख़ास तौर से हमारे अभ्यास पर िनरभर करता है. तो आइए न करते हैं शुरुआत. सलाम राकेश ़ -- Rakesh Kumar Singh Sarai-CSDS 29, Rajpur Road Delhi-110054 Ph: 91 11 23960040 Fax: 91 11 2394 3450 web site: www.sarai.net web blog: http://blog.sarai.net/users/rakesh/ From rakesh at sarai.net Fri Sep 16 13:44:41 2005 From: rakesh at sarai.net (Rakesh) Date: Fri, 16 Sep 2005 13:44:41 +0530 Subject: [Deewan] subscribe Message-ID: <432A7EF1.4070604@sarai.net> -- Rakesh Kumar Singh Sarai-CSDS Rajpur Road, Delhi 110054 Ph: 91 11 23960040 Fax: 91 11 2394 3450 web site: www.sarai.net web blog: http://blog.sarai.net/users/rakesh/ From khadeeja at sarai.net Fri Sep 16 16:55:23 2005 From: khadeeja at sarai.net (khadeeja at sarai.net) Date: Fri, 16 Sep 2005 13:25:23 +0200 Subject: =?UTF-8?B?UmU6IFtEZWV3YW5dICDgpIfgpLgg4KS44KWC4KSa4KWAIOCkleClhyDgpL/gpLIgICDgpI8g4KSs4KSn4KS+4KSI?= In-Reply-To: <432AA50B.9080304@sarai.net> References: <432AA50B.9080304@sarai.net> Message-ID: <006c511ebe0c79b2195c13340c8bc58d@sarai.net> Salaam!! Khadeeja On September 16, 12:57 pm Rakesh wrote: > दोस्तो > > सूची से जुड़ने वाले > दोस्तों को मेरी बधाई! आइए > हम सब िमलकर अपने शहर के उन > मुद्दों पर चरचा करते हैं > जो हमारी रोज़मर्रा से > जुड़े हैं. शहर में क्या हो > रहा है, शहर हमसे क्या कहता > है, हम शहर को कैसे देखते हैं, > शहर हमें कैसे देखता है; शहर > की बनती-िबगड़ती तस्वीरों > से दो-चार होने अौर उन > तस्वीरों पर बहस-मुबािहसे > का अच्छा माध्यम बना सकते > हैं हम इस िलस्ट को. हालाँिक > अभी इस सूची को व्यापक होने > में थोड़ी अड़चने हैं, जो > ख़ास तौर से हमारे अभ्यास > पर िनरभर करता है. तो आइए न > करते हैं शुरुआत. > > सलाम > > राकेश > ़ > > -- > Rakesh Kumar Singh > Sarai-CSDS > 29, Rajpur Road > Delhi-110054 > Ph: 91 11 23960040 > Fax: 91 11 2394 3450 > web site: www.sarai.net > web blog: http://blog.sarai.net/users/rakesh/ > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan From lokesh at sarai.net Fri Sep 16 19:35:11 2005 From: lokesh at sarai.net (Lokesh) Date: Fri, 16 Sep 2005 19:35:11 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSs4KSn4KS+4KSI?= Message-ID: <432AD117.6000304@sarai.net> सािथयों ये एक अच्छा मौका है शहर, नेटवर्क, मीिडया जैसे कई नए - पुराने जनपदों के बारे में िहन्दीं में बातचीत करने का. मुझे उम्मीद है िक हम सब इस िलस्ट को भी reader-list और urbanstudy-list की तरह ही पूरे उत्साह के साथ चलाएगें. :-D शुभकामनाओं के साथ लोकेश From disha_jnu at rediffmail.com Fri Sep 16 19:40:24 2005 From: disha_jnu at rediffmail.com (Disha JNU) Date: 16 Sep 2005 14:10:24 -0000 Subject: [Deewan] subscribe Message-ID: <20050916141024.28113.qmail@webmail6.rediffmail.com> -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20050916/8754bf3b/attachment.html From lokesh at sarai.net Fri Sep 16 19:48:45 2005 From: lokesh at sarai.net (Lokesh) Date: Fri, 16 Sep 2005 19:48:45 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KS/4KS54KSo4KWN4KSm4KWA4KSCIOCknOCkqOCkqg==?= =?utf-8?b?4KSmIOCkruClh+CkgiDgpI/gpJUg4KSo4KSIIOCktuClgeCksOClguCkhg==?= =?utf-8?b?4KSkIA==?= Message-ID: <432AD445.8080006@sarai.net> सािथयों ये एक अच्छा मौका है शहर, नेटवर्क, मीिडया जैसे कई नए - पुराने जनपदों के बारे में िहन्दीं में बातचीत करने का. मुझे उम्मीद है िक हम सब इस िलस्ट को भी reader-list और urbanstudy-list की तरह ही पूरे उत्साह के साथ चलाएगें. :-D शुभकामनाओं के साथ लोकेश From ravikant at sarai.net Fri Sep 16 19:49:07 2005 From: ravikant at sarai.net (ravikant at sarai.net) Date: Fri, 16 Sep 2005 16:19:07 +0200 Subject: [Deewan] achchhi hindi Message-ID: <775c8bbfcba0dd29f2b83559141348fc@sarai.net> अच्छी हिन्दी अच्छी हिन्दी: स्टाइल शीट (संस्करण 0.1) हमारी कोशिश ये रहे कि भाषा में प्रवाह हो, जहाँ तक हो सके सुगमता हो. लेकिन पठनीयता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. हम अक्सर अंग्रेज़ी से अनुवाद करते हैं, जो रेडीमेड मायनों के अभाव में, हमेशा पाठकों के लिए आसान नहीं होता. इसलिए हिन्दी के वाक्य-विन्यास पर भी ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है. उसी तरह, ख़याल रहे कि भाषा मिली-जुली हो, संस्कृत या अरबी-फ़ारसी-बहुल नहीं. अलबत्ता, आमफ़हम लोकशैली का स्वागत है और अगर प्रयोग रचनात्मक हों तो क्या कहने! नीचे अपनी सुविधा के लिए हमने कुछ सूत्र बनाए हैं, जिनमें सुधारों की भरपूर गुंजाइश है. आपकी टिप्पणी, आपके योगदान का स्वागत है. 1. केवल रोमन अंकों का इस्तेमाल करें. जबकि पूर्ण विराम ही चलेगा. 2. नुक़्ते यथोचित जगह पर लगाए ही जाएँ, ख़ास तौर पर अरबी-फ़ारसी और अंग्रेज़ी के लफ़्ज़ों में. हिन्दी की कुछ टंकण प्रणालियों ने इसे त्याग ही दिया है. एक मिसाल लें: अगर कोई वक़्त लिखना चाहे और सिर्फ़ व+क+्+त टाइप करे तो बहुत संभव है कि उसे वक्त मिलेगा. अब ये तो क़िस्से वाली बात हो गई न: न रहा बाँस न बजे बाँसुरी? ढूँढ़ते रहिए नुक़्ते के लिए जगह! 3. उसी तरह चंद्र (बग़ैर बिंदु के) लगाया ही जाए - जैसे, ब्लॉक, फ़ुटबॉल, ऑफ़िस, आदि. बिंदु के साथ चंद्र यानी 'चंद्रबिंदु' के बारे में भी थोड़ी सावधानी की ज़रुरत है. जैसे: हंस(पक्षी) और हँसना(क्रिया) में कोई कैसे भेद करे अगर उसे प्रयोग का संदर्भ न मालूम हो. उसी तरह राँची को कई लोग रान्ची बोलते हैं भले ही उसे लिखते रांची हों. अख़बारों ने सहूलियत के लिहाज़ से चंद्र लगभग ग़ायब कर दिए हैं, लेकिन हमें ऐसा करने की कोई ज़रुरत नहीं महसूस होती. 4. लेखक का नाम लेख के शीर्षक के साथ जाएगा, जबकि अनुवादक का लेख के आख़िर में. 5. कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनमें अक्सर भ्रम होता है: पेरिस = पैरिस नहीं, हालाँकि सही शायद यही है युरोप = यूरोप नहीं, वैसे सही तो योरप है. अमेरिका = न कि अमरीका या अमरीकी ब्रैण्ड = न कि ब्राण्ड या ब्रांड ग्रैण्ड ट्रंक रोड = न कि ग्रांड ट्रंक ऐसे लफ़्ज़ों में अगर भ्रम की गुंजाइश है तो अंग्रेज़ी शब्द भी दे दिए जाएँ, ख़ासकर तकनीकी शब्दों के साथ-साथ. 6. कई बार आधे 'म', आधे 'न' या आधे 'ङ' के लिए लोग बिंदी लगाकर चल देते हैं. और यह चल भी रहा है. लेकिन ख़याल रहे कि कहीं भी अगर भ्रम की गुंजाइश है तो बिंदी का प्रयोग न करके आधे 'न' या 'म' का ही करें. लेकिन कुछ उलटे उदाहरण भी हैं: जैसे, 'संबंध'. तो यह चल ही रहा है. इसलिए भी अच्छा है कि देखने में अच्छा लगता है. इसलिए सम्बन्ध क्यों रखा जाए. उसी तरह, कुंजी अब कोई भी 'ञ' के साथ नहीं लिखता, हम क्यों लिखें? कुञ्जी न लिखकर कुंजी लिखना ही बेहतर है. यह टंकण के लगातार सरल होते जाने का नतीजा भी है, जिसका एक हद तक स्वागत होना चाहिए, लेकिन भ्रम फैलाने की सीमा तक नहीं. ऊपर के उदाहरण में आप देख सकते हैं कि ग्रैण्ड को हमने सरलीकृत नहीं किया है, और ब्रैण्ड को भी बदला है. न तो ब्रांड लिखा है न ही ब्राण्ड. इसमें एक सरल-सा नियम यह है कि अनुनासिक व्यञ्जन दो व्यञ्जनों के बीच पड़कर बाद वाले व्यंजन के वर्ग के आख़िरी अनुनासिक वर्ण की तरह पढ़ा जाएगा, भले ही लिखा जाए महज़ एक बिंदी से या फिर उस अनुनासिक वर्ण से. इस उदाहरण में व्यंजन को हमने दो तरह से लिखा है - दोनों सही हैं. लेकिन अगर आप सरल सूत्र चाहते हैं तो बिंदी लगाकर काम चलाइए. बस याद रहे कि पढ़ते वक़्त बिंदी 7. किताबों और पत्रों के नाम टेढ़े अक्षरों यानी italics में जाएँगे. 8. फ़ुटनोट वस्तुत: एण्डनोट होंगे यानी लेख के अंत में जाएँगे. 9. फ़ुटनोट में संदर्भ ग्रंथों या शोध-पत्रों के उद्धरण की शैली ऐसी होगी: क) लेखक का सीधा नाम, किताब का नाम, प्रकाशन स्थल, (प्रकाशक), वर्ष, पृष्ठ सं० . ख) लेखक का नाम, 'लेख'(जो एकल उद्धरण single quotes में होंगे), पत्र या पुस्तक का नाम , खंड, वर्ष, पृष्ठ सं. 10. मूल पाठ में उद्धरण देते समय: क) लंबे उद्धरण indented होंगे ख) छोटे उद्धरण double quotes में आएँगे ग) पद या पदबंध single quotes में आएँगे घ) मूल पाठ या फ़ुटनोट में किताबों या पत्रों के नाम यथासंभव देवनागरी लिप्यंतर करें, लेकिन जहाँ भ्रम या संदेह होने की गुंजाइश हो उसे रोमन में रहने दें. 11. एक चीज़ अक्सर देखने में आई है कि लोग आर्दशनगर या मुर्खजीनगर या आर्शीवाद लिखते हैं जबकि सही लिखा जाए तो ये शब्द क्रमश: आदर्शनगर, मुखर्जीनगर और आशीर्वाद होंगे. फ़ंडा ये है कि जिस अक्षर के बाद रेफ़ का उच्चारण होता है, वह उसके बाद के ही अक्षर पर आएगा. यानी अगर आपने रेफ़ उपर के उदाहरण में द पर डाला है तो उसे आ+र्+द+श+नगर पढ़ा जाएगा जो, आप समझ ही गए होंगे, ग़लत होगा. 12. शुरुआती दौर में हिन्दी के अपने विराम चिह्न बहुत कम थे - अंग्रेज़ी और दीगर भाषाओं से उसने उधार लेकर अपनी पठनीयता बढ़ाई है. लेकिन अभी भी अनावश्यक विराम चिह्न न लगाएँ तो प्रवाह बेहतर रहता है. दूसरी ओर, लोग हाइफ़न (-) या डैश (–) का बख़ूबी इस्तेमाल करें तो लंबे वाक्य भी पचने लायक हो जाते हैं. क) हाइफ़न अक्सर शब्द- युग्म बनाने के लिए इस्तेमाल होता है. जैसे: लोटा-डोरी, ऊँच-नीच तो स्पष्ट है, लेकिन मज़े की बात है कि आप कई विशेषण एक साथ जोड़ने के लिए भी हाइफ़न लगाते जा सकते हैं, बिल्कुल सलमान रुश्दी वाले अंदाज़ में. ख) डैश: अक्सर एक ही वाक्य के अंदर आए उपवाक्य को बाँधने और बाक़ी वाक्य से अलग करने के लिए प्रयुक्त होता है. उदाहरण देखें: हिंदुस्तानी संगीत कहें तो चलता है; या फिर मुकेश के इस प्रसिद्ध गाने – छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी – से आपको समस्या नहीं होती. ग़ौरतलब है कि हाइफ़न जहाँ दो शब्दों के बीच सटा-सा रहता है, वहीं डैश आगे-पीछे जगह लेना पसंद करता है. आपने यहाँ अर्द्धविराम का भी प्रयोग देखा ही होगा. From ravikant at sarai.net Fri Sep 16 20:04:26 2005 From: ravikant at sarai.net (ravikant at sarai.net) Date: Fri, 16 Sep 2005 16:34:26 +0200 Subject: [Deewan] achchhi hindi 2 Message-ID: <9f693a34b4d644a29c77ee0f88ea6522@sarai.net> अच्छी हिन्दी अच्छी हिन्दी: स्टाइल शीट (संस्करण 0.1) हमारी कोशिश ये रहे कि भाषा में प्रवाह हो, जहाँ तक हो सके सुगमता हो. लेकिन पठनीयता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. हम अक्सर अंग्रेज़ी से अनुवाद करते हैं, जो रेडीमेड मायनों के अभाव में, हमेशा पाठकों के लिए आसान नहीं होता. इसलिए हिन्दी के वाक्य-विन्यास पर भी ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है. उसी तरह, ख़याल रहे कि भाषा मिली-जुली हो, संस्कृत या अरबी-फ़ारसी-बहुल नहीं. अलबत्ता, आमफ़हम लोकशैली का स्वागत है और अगर प्रयोग रचनात्मक हों तो क्या कहने! नीचे अपनी सुविधा के लिए हमने कुछ सूत्र बनाए हैं, जिनमें सुधारों की भरपूर गुंजाइश है. आपकी टिप्पणी, आपके योगदान का स्वागत है. 1. केवल रोमन अंकों का इस्तेमाल करें. जबकि पूर्ण विराम ही चलेगा. 2. नुक़्ते यथोचित जगह पर लगाए ही जाएँ, ख़ास तौर पर अरबी-फ़ारसी और अंग्रेज़ी के लफ़्ज़ों में. हिन्दी की कुछ टंकण प्रणालियों ने इसे त्याग ही दिया है. एक मिसाल लें: अगर कोई वक़्त लिखना चाहे और सिर्फ़ व+क+्+त टाइप करे तो बहुत संभव है कि उसे वक्त मिलेगा. अब ये तो क़िस्से वाली बात हो गई न: न रहा बाँस न बजे बाँसुरी? ढूँढ़ते रहिए नुक़्ते के लिए जगह! 3. उसी तरह चंद्र (बग़ैर बिंदु के) लगाया ही जाए - जैसे, ब्लॉक, फ़ुटबॉल, ऑफ़िस, आदि. बिंदु के साथ चंद्र यानी 'चंद्रबिंदु' के बारे में भी थोड़ी सावधानी की ज़रुरत है. जैसे: हंस(पक्षी) और हँसना(क्रिया) में कोई कैसे भेद करे अगर उसे प्रयोग का संदर्भ न मालूम हो. उसी तरह राँची को कई लोग रान्ची बोलते हैं भले ही उसे लिखते रांची हों. अख़बारों ने सहूलियत के लिहाज़ से चंद्र लगभग ग़ायब कर दिए हैं, लेकिन हमें ऐसा करने की कोई ज़रुरत नहीं महसूस होती. 4. लेखक का नाम लेख के शीर्षक के साथ जाएगा, जबकि अनुवादक का लेख के आख़िर में. 5. कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनमें अक्सर भ्रम होता है: पेरिस = पैरिस नहीं, हालाँकि सही शायद यही है युरोप = यूरोप नहीं, वैसे सही तो योरप है. अमेरिका = न कि अमरीका या अमरीकी ब्रैण्ड = न कि ब्राण्ड या ब्रांड ग्रैण्ड ट्रंक रोड = न कि ग्रांड ट्रंक ऐसे लफ़्ज़ों में अगर भ्रम की गुंजाइश है तो अंग्रेज़ी शब्द भी दे दिए जाएँ, ख़ासकर तकनीकी शब्दों के साथ-साथ. 6. कई बार आधे 'म', आधे 'न' या आधे 'ङ' के लिए लोग बिंदी लगाकर चल देते हैं. और यह चल भी रहा है. लेकिन ख़याल रहे कि कहीं भी अगर भ्रम की गुंजाइश है तो बिंदी का प्रयोग न करके आधे 'न' या 'म' का ही करें. लेकिन कुछ उलटे उदाहरण भी हैं: जैसे, 'संबंध'. तो यह चल ही रहा है. इसलिए भी अच्छा है कि देखने में अच्छा लगता है. इसलिए सम्बन्ध क्यों रखा जाए. उसी तरह, कुंजी अब कोई भी 'ञ' के साथ नहीं लिखता, हम क्यों लिखें? कुञ्जी न लिखकर कुंजी लिखना ही बेहतर है. यह टंकण के लगातार सरल होते जाने का नतीजा भी है, जिसका एक हद तक स्वागत होना चाहिए, लेकिन भ्रम फैलाने की सीमा तक नहीं. ऊपर के उदाहरण में आप देख सकते हैं कि ग्रैण्ड को हमने सरलीकृत नहीं किया है, और ब्रैण्ड को भी बदला है. न तो ब्रांड लिखा है न ही ब्राण्ड. इसमें एक सरल-सा नियम यह है कि अनुनासिक व्यञ्जन दो व्यञ्जनों के बीच पड़कर बाद वाले व्यंजन के वर्ग के आख़िरी अनुनासिक वर्ण की तरह पढ़ा जाएगा, भले ही लिखा जाए महज़ एक बिंदी से या फिर उस अनुनासिक वर्ण से. इस उदाहरण में व्यंजन को हमने दो तरह से लिखा है - दोनों सही हैं. लेकिन अगर आप सरल सूत्र चाहते हैं तो बिंदी लगाकर काम चलाइए. बस याद रहे कि पढ़ते वक़्त बिंदी 7. किताबों और पत्रों के नाम टेढ़े अक्षरों यानी italics में जाएँगे. 8. फ़ुटनोट वस्तुत: एण्डनोट होंगे यानी लेख के अंत में जाएँगे. 9. फ़ुटनोट में संदर्भ ग्रंथों या शोध-पत्रों के उद्धरण की शैली ऐसी होगी: क) लेखक का सीधा नाम, किताब का नाम, प्रकाशन स्थल, (प्रकाशक), वर्ष, पृष्ठ सं० . ख) लेखक का नाम, 'लेख'(जो एकल उद्धरण single quotes में होंगे), पत्र या पुस्तक का नाम , खंड, वर्ष, पृष्ठ सं. 10. मूल पाठ में उद्धरण देते समय: क) लंबे उद्धरण indented होंगे ख) छोटे उद्धरण double quotes में आएँगे ग) पद या पदबंध single quotes में आएँगे घ) मूल पाठ या फ़ुटनोट में किताबों या पत्रों के नाम यथासंभव देवनागरी लिप्यंतर करें, लेकिन जहाँ भ्रम या संदेह होने की गुंजाइश हो उसे रोमन में रहने दें. 11. एक चीज़ अक्सर देखने में आई है कि लोग आर्दशनगर या मुर्खजीनगर या आर्शीवाद लिखते हैं जबकि सही लिखा जाए तो ये शब्द क्रमश: आदर्शनगर, मुखर्जीनगर और आशीर्वाद होंगे. फ़ंडा ये है कि जिस अक्षर के बाद रेफ़ का उच्चारण होता है, वह उसके बाद के ही अक्षर पर आएगा. यानी अगर आपने रेफ़ उपर के उदाहरण में द पर डाला है तो उसे आ+र्+द+श+नगर पढ़ा जाएगा जो, आप समझ ही गए होंगे, ग़लत होगा. 12. शुरुआती दौर में हिन्दी के अपने विराम चिह्न बहुत कम थे - अंग्रेज़ी और दीगर भाषाओं से उसने उधार लेकर अपनी पठनीयता बढ़ाई है. लेकिन अभी भी अनावश्यक विराम चिह्न न लगाएँ तो प्रवाह बेहतर रहता है. दूसरी ओर, लोग हाइफ़न (-) या डैश (–) का बख़ूबी इस्तेमाल करें तो लंबे वाक्य भी पचने लायक हो जाते हैं. क) हाइफ़न अक्सर शब्द- युग्म बनाने के लिए इस्तेमाल होता है. जैसे: लोटा-डोरी, ऊँच-नीच तो स्पष्ट है, लेकिन मज़े की बात है कि आप कई विशेषण एक साथ जोड़ने के लिए भी हाइफ़न लगाते जा सकते हैं, बिल्कुल सलमान रुश्दी वाले अंदाज़ में. ख) डैश: अक्सर एक ही वाक्य के अंदर आए उपवाक्य को बाँधने और बाक़ी वाक्य से अलग करने के लिए प्रयुक्त होता है. उदाहरण देखें: हिंदुस्तानी संगीत कहें तो चलता है; या फिर मुकेश के इस प्रसिद्ध गाने – छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी – से आपको समस्या नहीं होती. ग़ौरतलब है कि हाइफ़न जहाँ दो शब्दों के बीच सटा-सा रहता है, वहीं डैश आगे-पीछे जगह लेना पसंद करता है. आपने यहाँ अर्द्धविराम का भी प्रयोग देखा ही होगा. From ravikant at sarai.net Fri Sep 16 12:02:15 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Fri, 16 Sep 2005 12:02:15 +0530 Subject: Fwd: [Deewan] achchhi hindi 3 Message-ID: <200509161202.15672.ravikant@sarai.net> ---------- Forwarded Message ---------- Subject: [Deewan] achchhi hindi 2 Date: Friday 16 Sep 2005 8:04 pm From: ravikant at sarai.net To: deewan at sarai.net अच्छी हिन्दी अच्छी हिन्दी: स्टाइल शीट (संस्करण 0.1) हमारी कोशिश ये रहे कि भाषा में प्रवाह हो, जहाँ तक हो सके सुगमता हो. लेकिन पठनीयता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता. हम अक्सर अंग्रेज़ी से अनुवाद करते हैं, जो रेडीमेड मायनों के अभाव में, हमेशा पाठकों के लिए आसान नहीं होता. इसलिए हिन्दी के वाक्य-विन्यास पर भी ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है. उसी तरह, ख़याल रहे कि भाषा मिली-जुली हो, संस्कृत या अरबी-फ़ारसी-बहुल नहीं. अलबत्ता, आमफ़हम लोकशैली का स्वागत है और अगर प्रयोग रचनात्मक हों तो क्या कहने! नीचे अपनी सुविधा के लिए हमने कुछ सूत्र बनाए हैं, जिनमें सुधारों की भरपूर गुंजाइश है. आपकी टिप्पणी, आपके योगदान का स्वागत है. 1. केवल रोमन अंकों का इस्तेमाल करें. जबकि पूर्ण विराम ही चलेगा. 2. नुक़्ते यथोचित जगह पर लगाए ही जाएँ, ख़ास तौर पर अरबी-फ़ारसी और अंग्रेज़ी के लफ़्ज़ों में. हिन्दी की कुछ टंकण प्रणालियों ने इसे त्याग ही दिया है. एक मिसाल लें: अगर कोई वक़्त लिखना चाहे और सिर्फ़ व+क+्+त टाइप करे तो बहुत संभव है कि उसे वक्त मिलेगा. अब ये तो क़िस्से वाली बात हो गई न: न रहा बाँस न बजे बाँसुरी? ढूँढ़ते रहिए नुक़्ते के लिए जगह! 3. उसी तरह चंद्र (बग़ैर बिंदु के) लगाया ही जाए - जैसे, ब्लॉक, फ़ुटबॉल, ऑफ़िस, आदि. बिंदु के साथ चंद्र यानी 'चंद्रबिंदु' के बारे में भी थोड़ी सावधानी की ज़रुरत है. जैसे: हंस(पक्षी) और हँसना(क्रिया) में कोई कैसे भेद करे अगर उसे प्रयोग का संदर्भ न मालूम हो. उसी तरह राँची को कई लोग रान्ची बोलते हैं भले ही उसे लिखते रांची हों. अख़बारों ने सहूलियत के लिहाज़ से चंद्र लगभग ग़ायब कर दिए हैं, लेकिन हमें ऐसा करने की कोई ज़रुरत नहीं महसूस होती. 4. लेखक का नाम लेख के शीर्षक के साथ जाएगा, जबकि अनुवादक का लेख के आख़िर में. 5. कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनमें अक्सर भ्रम होता है: पेरिस = पैरिस नहीं, हालाँकि सही शायद यही है युरोप = यूरोप नहीं, वैसे सही तो योरप है. अमेरिका = न कि अमरीका या अमरीकी ब्रैण्ड = न कि ब्राण्ड या ब्रांड ग्रैण्ड ट्रंक रोड = न कि ग्रांड ट्रंक ऐसे लफ़्ज़ों में अगर भ्रम की गुंजाइश है तो अंग्रेज़ी शब्द भी दे दिए जाएँ, ख़ासकर तकनीकी शब्दों के साथ-साथ. 6. कई बार आधे 'म', आधे 'न' या आधे 'ङ' के लिए लोग बिंदी लगाकर चल देते हैं. और यह चल भी रहा है. लेकिन ख़याल रहे कि कहीं भी अगर भ्रम की गुंजाइश है तो बिंदी का प्रयोग न करके आधे 'न' या 'म' का ही करें. लेकिन कुछ उलटे उदाहरण भी हैं: जैसे, 'संबंध'. तो यह चल ही रहा है. इसलिए भी अच्छा है कि देखने में अच्छा लगता है. इसलिए सम्बन्ध क्यों रखा जाए. उसी तरह, कुंजी अब कोई भी 'ञ' के साथ नहीं लिखता, हम क्यों लिखें? कुञ्जी न लिखकर कुंजी लिखना ही बेहतर है. यह टंकण के लगातार सरल होते जाने का नतीजा भी है, जिसका एक हद तक स्वागत होना चाहिए, लेकिन भ्रम फैलाने की सीमा तक नहीं. ऊपर के उदाहरण में आप देख सकते हैं कि ग्रैण्ड को हमने सरलीकृत नहीं किया है, और ब्रैण्ड को भी बदला है. न तो ब्रांड लिखा है न ही ब्राण्ड. इसमें एक सरल-सा नियम यह है कि अनुनासिक व्यञ्जन दो व्यञ्जनों के बीच पड़कर बाद वाले व्यंजन के वर्ग के आख़िरी अनुनासिक वर्ण की तरह पढ़ा जाएगा, भले ही लिखा जाए महज़ एक बिंदी से या फिर उस अनुनासिक वर्ण से. इस उदाहरण में व्यंजन को हमने दो तरह से लिखा है - दोनों सही हैं. लेकिन अगर आप सरल सूत्र चाहते हैं तो बिंदी लगाकर काम चलाइए. बस याद रहे कि पढ़ते वक़्त बिंदी 7. किताबों और पत्रों के नाम टेढ़े अक्षरों यानी italics में जाएँगे. 8. फ़ुटनोट वस्तुत: एण्डनोट होंगे यानी लेख के अंत में जाएँगे. 9. फ़ुटनोट में संदर्भ ग्रंथों या शोध-पत्रों के उद्धरण की शैली ऐसी होगी: क) लेखक का सीधा नाम, किताब का नाम, प्रकाशन स्थल, (प्रकाशक), वर्ष, पृष्ठ सं० . ख) लेखक का नाम, 'लेख'(जो एकल उद्धरण single quotes में होंगे), पत्र या पुस्तक का नाम , खंड, वर्ष, पृष्ठ सं. 10. मूल पाठ में उद्धरण देते समय: क) लंबे उद्धरण indented होंगे ख) छोटे उद्धरण double quotes में आएँगे ग) पद या पदबंध single quotes में आएँगे घ) मूल पाठ या फ़ुटनोट में किताबों या पत्रों के नाम यथासंभव देवनागरी लिप्यंतर करें, लेकिन जहाँ भ्रम या संदेह होने की गुंजाइश हो उसे रोमन में रहने दें. 11. एक चीज़ अक्सर देखने में आई है कि लोग आर्दशनगर या मुर्खजीनगर या आर्शीवाद लिखते हैं जबकि सही लिखा जाए तो ये शब्द क्रमश: आदर्शनगर, मुखर्जीनगर और आशीर्वाद होंगे. फ़ंडा ये है कि जिस अक्षर के बाद रेफ़ का उच्चारण होता है, वह उसके बाद के ही अक्षर पर आएगा. यानी अगर आपने रेफ़ उपर के उदाहरण में द पर डाला है तो उसे आ+र्+द+श+नगर पढ़ा जाएगा जो, आप समझ ही गए होंगे, ग़लत होगा. 12. शुरुआती दौर में हिन्दी के अपने विराम चिह्न बहुत कम थे - अंग्रेज़ी और दीगर भाषाओं से उसने उधार लेकर अपनी पठनीयता बढ़ाई है. लेकिन अभी भी अनावश्यक विराम चिह्न न लगाएँ तो प्रवाह बेहतर रहता है. दूसरी ओर, लोग हाइफ़न (-) या डैश (–) का बख़ूबी इस्तेमाल करें तो लंबे वाक्य भी पचने लायक हो जाते हैं. क) हाइफ़न अक्सर शब्द- युग्म बनाने के लिए इस्तेमाल होता है. जैसे: लोटा-डोरी, ऊँच-नीच तो स्पष्ट है, लेकिन मज़े की बात है कि आप कई विशेषण एक साथ जोड़ने के लिए भी हाइफ़न लगाते जा सकते हैं, बिल्कुल सलमान रुश्दी वाले अंदाज़ में. ख) डैश: अक्सर एक ही वाक्य के अंदर आए उपवाक्य को बाँधने और बाक़ी वाक्य से अलग करने के लिए प्रयुक्त होता है. उदाहरण देखें: हिंदुस्तानी संगीत कहें तो चलता है; या फिर मुकेश के इस प्रसिद्ध गाने – छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी – से आपको समस्या नहीं होती. ग़ौरतलब है कि हाइफ़न जहाँ दो शब्दों के बीच सटा-सा रहता है, वहीं डैश आगे-पीछे जगह लेना पसंद करता है. आपने यहाँ अर्द्धविराम का भी प्रयोग देखा ही होगा. _______________________________________________ Deewan mailing list Deewan at mail.sarai.net http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan ------------------------------------------------------- From rakesh at sarai.net Sat Sep 17 11:19:58 2005 From: rakesh at sarai.net (Rakesh) Date: Sat, 17 Sep 2005 11:19:58 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSF4KSt4KWAIOCkleClgeCkmyDgpL/gpKbgpJXgpY0=?= =?utf-8?b?4KSV4KSk4KWH4KSCIOCkueCliOCkgg==?= Message-ID: <432BAE86.7080300@sarai.net> बंधुअों कुछ िमत्रों ने िहन्दी में िलखने की कोिशश की है लेिकन कुछ िदक्कतें आ रही हैं, क्या कोई िनदान है इसका? सलाम राकेश -- Rakesh Kumar Singh Sarai-CSDS 29, Rajpur Road Delhi-110054 Ph: 91 11 23960040 Fax: 91 11 2394 3450 web site: www.sarai.net web blog: http://blog.sarai.net/users/rakesh/ From ravikant at sarai.net Sat Sep 17 03:26:55 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 17 Sep 2005 03:26:55 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSF4KSt4KWAIOCkleClgeCkmyDgpL/gpKbgpJXgpY3gpJXgpKTgpYfgpII=?= =?utf-8?b?IOCkueCliOCkgg==?= In-Reply-To: <432BAE86.7080300@sarai.net> References: <432BAE86.7080300@sarai.net> Message-ID: <200509170326.55353.ravikant@sarai.net> अगर दिक़्क़त का नाम पता देंगे, तो कृपा होगी. रविकान्त On Saturday 17 Sep 2005 11:19 am, Rakesh wrote: > बंधुअों > > कुछ िमत्रों ने िहन्दी में िलखने की कोिशश की है लेिकन कुछ िदक्कतें आ रही > हैं, क्या कोई िनदान है इसका? > > सलाम > राकेश From ravikant at sarai.net Sat Sep 17 03:31:09 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 17 Sep 2005 03:31:09 +0530 Subject: [Deewan] Re: =?utf-8?b?4KS54KS/4KSo4KWN4oCN4KSm4KWAIOCksuCkv+CkuOCljQ==?= =?utf-8?b?4oCN4KSfIOCkleCkviDgpJXgpY3igI3gpK/gpL4g4KS54KWB4KSG?= In-Reply-To: <8bdde4540509161003583c7b58@mail.gmail.com> References: <8bdde4540509161003583c7b58@mail.gmail.com> Message-ID: <200509170331.09460.ravikant@sarai.net> लिस्ट चल चुकी है, आप deewan at sarai.net पर अंग्रेज़ी में सब्जेक्ट लाइन में सब्क्रास्इब लिखकर भेज दें, तो आप सदस्य बन जाएँगे. वैसे आज आ तो रहे हैं न? रविकान्त On Friday 16 Sep 2005 10:33 pm, Vijender chauhan wrote: > रविकान्‍त जी कैसे हैं? > मैं प्रतीक्षा करता रह गया। लिस्‍ट की व्‍यवस्‍था में लगता है समय लगेगा > अभी। क्‍या कहते हैं > > विजेंद्र From ravikant at sarai.net Sat Sep 17 04:03:35 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 17 Sep 2005 04:03:35 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSu4KWH4KSy4KS/4KSC4KSXIOCksuCkv+CkuOCljQ==?= =?utf-8?b?4KSfIOCkr+CkviDgpKHgpL7gpJUt4KS44KWC4KSa4KWAIOCkleClhyDgpKs=?= =?utf-8?b?4KS84KSC4KSh4KWH?= Message-ID: <200509170403.35710.ravikant@sarai.net> मेलिंग लिस्ट या डाक-सूची के फ़ंडे 1. यह ऑनलाइन विचार मंच होता है. अपनी बात उन तमाम लोगों से एकबारगी कहने का ज़रिया जो उस सूची के सदस्य हैं. चूंकि हर डाक सूची की सदस्यता आपकी इच्छा से तय होती है, इसलिए किसी भी सूची पर वैसे लोग ज़्यादा मिलेंगे जिनकी उस ख़ास दिलचस्पी उन विषयों में होगी, जो उस सूची के सरोकार हैं.   2. सदस्यता लेने के लिए आपको सब्जेक्ट के ख़ाने में अंग्रेज़ी में सब्सक्राइब लिखना होगा, बस. आपकी मेम्बरी बहाल कर दी जाएगी. उसी तरह सदस्यता ख़त्म करने के लिए आपको सब्जेक्ट ख़ाने में अनसब्स्क्राइब लिखकर मेल भेज देना है. 3. वैसे तो इस उम्मीद में कि सदस्य सभ्य चर्चा करेंगे, इस सूची को संचालन की आम पाबंदियों से आज़ाद रखा जाएगा, पर अवांछित मेल से बचने के लिए कभी-कभी इसके संचालक को अपने अधिकार इस्तेमाल करने होंगे. कभी-कभी किसी विषय पर बहस लंबी या निस्सार या आक्रामक हो जा सकती है, ऐसी स्थिति में भी संचालक को हस्तक्षेप करना होगा. 4. कुछ तकनीकी सावधानियां: यह लिस्ट युनिकोड/युटीएफ़-8 का इस्तेमाल करेगी, ताकि तमाम ओपन टाइप फ़ॉन्ट के बीच पूरी तरह बातचीत हो सके और हिन्दी में फ़ॉन्ट की अराजकता ख़त्म होने की दिशा में शुरुआत हो सके. इससे डेटा/पाठ को खोजने, उसे तरतीब देने आदि में काफ़ी सरलता होगी. विजेन्दर चौहान बताते हैं कि आज हिन्दी में तक़रीबन 130 ब्लॉग आबाद हैं, सब युनिकोड में ही. तीन-चार ऐसी डाक-सूचियों का सदस्य मैं ख़ुद हूँ जिन पर हिन्दी व उर्दू दोनों मज़े में चलती है. 5.तो आइए युनिकोड अपनाएँ, अगर फ़ॉन्ट,कुंजीपट संबंधी कोई मदद चाहिए तो http://devanaagarii.net या http://salrc.uchicago.edu/ पर जाएँ या हमें लिखें. रविकान्त From chauhan.vijender at gmail.com Tue Sep 20 00:34:36 2005 From: chauhan.vijender at gmail.com (Vijender chauhan) Date: Tue, 20 Sep 2005 00:34:36 +0530 Subject: [Deewan] Fwd: [Reader-list] gaanv, shahar, ravikant aur shaharnama In-Reply-To: <20050919050649.1906.qmail@web80909.mail.scd.yahoo.com> References: <20050919050649.1906.qmail@web80909.mail.scd.yahoo.com> Message-ID: <8bdde454050919120419d55cc4@mail.gmail.com> ---------- Forwarded message ---------- From: mahmood farooqui Date: Sep 19, 2005 10:36 AM Subject: [Reader-list] gaanv, shahar, ravikant aur shaharnama To: reader-list at sarai.net Humne kuchh dinon pahle ek mock documentary feature ka title rakha tha CHALE GAANV KI OR Maqsad kahne ka yeh, ki voh baat jo us roz Ravikant aur Sanjay ji ne uthayi thi aur jise Nandy ji ne sameta tha ki SHAHARNAMA isliye aur gaanvnaama isliye nahin, kyunki gaanv ab shahar bante ja rahe hain. Nandy ji is baat ke sakht khilaaf hain ki 'shahar banna hi gaanv ki niyati hai' magar shahar aur gaanv ke falsafiyana matlabon ko nazarandaaz karte hue mujhe kahna yeh hai ki sachhai to yahi hai ki chahe shahar vaale hon chahe gaanv vaale donon ke liye gaanv ki sarvottam parinati yahi hai ki voh shahar ban jaayen, ya shahar jaise ban jaayein. Lekin darasal bara mudda jo hai, hindi jagat aur gaanv ka masla jise bahut aasaani aur sahajta se sanjay aur Ravikant ne nipta diya, uska taalluq sirf isse nahin hai ki Hindi saahitya ab apni shahri parivesh mein aatmvishwaas se khara ho gaya hai, maano hindi saahitya koi gaanv se aaya hua mera dada hai jo ab teen pushton ke baad shahar mein apni jarein phaila chuka hai. Voh Nagarjun aur Nagar aur Nirala aur Premchand ab hamare paas nahin hain jo gaanv se nikle the. Gaanv jo kabhi Hindi ka shahar tha so isliye to tha hi ki Gandhi aur aazaadi ke rahnumaaon ne hindustan ki haqeeqat ka asli akas gaanv mein dhoondha tha aur Hindi srijan ek arse tak apne aaspaas ek naitik zimmedari dale hue tha, desh aur desh ke asli juz gaanv ke prati. Baat yeh bhi thi ki jo log voh saahitya parh rahe the aur jo log use likh rahe the voh khud gaanv se aaye the aur unka taalluq gaanv se bana rahta tha saalahasaal. SHuroo ki baat pe vaapas paltun to mere dada jo gaanv mein paida hue aur mere pitaji jinhein gaanv ki baharein dekhi thin, voh virasat mujhe nahin saunp sake, mera gaanv ab ya to aadha hai, ya premchand ke paas rah gaya hai aur usmein jo bacha use raagdarbari le gaya. To kahne ka matlab yeh ki hum yadi aaj gaanv ke baare mein nahin likhte hain aur uske baare mein nahin parhte hain to isliye ki shahron mein ek acchi khaasi taadaad un hindi parhne waalon aur likhne waalon ki hai jo gaanv se poori tarah naabalad hain. Hum gaanv ko isliye haashiye par rakh sakte hain ki voh ab hamara aaspaas nahin basta aur na hi hamare paathakon ke aaspaas basta hai. to hum kyun uspe likhein aur kyun uspe baat karein? Magar agar baat ko gaanv se hata ke kisanon ki taraf laaya jaye, yaani peasants ke, to phir maamla geographical aur spatial na rahke temporal ho jata hai. Voh isliye ki voh jo paanchveen class la lesson hum parhte the ki bharatvarsh kisanon ka desh hai ab usmein yun tarmeem kar di jaani chahiye ki bharatvarsh kisanon ka desh tha, jo ab abhi yahan qareeb saath pratishat ki taadaad mein hain, magar chunki GDP mein voh mahaz 25 percent ka yogdaan dete hain isliye humne yeh maan liya hai ki kuchh hi dinon mein sab kisan ya to shahar palaayan kar jaayenge ya gaanv shahar ban jaayenge aur kisanon ko kisaani ke abhishaap se mukti mil jaayegi. Phir hamara shaharnama aap hi aap poore mulk ka ahaata kar lega. Hum shahri log hain bhaiyya aur shahar ke baare mein likh rahe hain, hum choonki hindi waale hain isliye humko safai deni parti hai. Urdu waalon ne to shuroo se hi apne aap ko shahri zabaan waala banake saari samaajik zimmedariyon se mukt kar liya. To pahli baat to yeh ki kya hamein safaai dene ki zaroorat hai, doosri baat yeh ki hum agar safaai dein to phir dein, kanni na kataayein... Sammanpoorvak, GANWAAR. __________________________________ Yahoo! Mail - PC Magazine Editors' Choice 2005 http://mail.yahoo.com _________________________________________ reader-list: an open discussion list on media and the city. Critiques & Collaborations To subscribe: send an email to reader-list-request at sarai.net with subscribe in the subject header. List archive: From mahmoodfarooqui at rediffmail.com Thu Sep 22 13:56:24 2005 From: mahmoodfarooqui at rediffmail.com (mahmood farooqui) Date: 22 Sep 2005 08:26:24 -0000 Subject: [Deewan] gaanv, shahar, ravikant Message-ID: <20050922082624.22011.qmail@webmail10.rediffmail.com>   Kya meri gustakhiyan is qabil bhi nahin hain ki unpe kuchh sarzanish ho sake... gaavon ko chup lagi hai, shahar bolte nahin >jo bolte hain, baar-e digar bolte nahin???? > >PPS Kyun taairaan-e shaakh-e shajar bolte nahin -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20050922/4c3be34e/attachment.html From ravikant at sarai.net Wed Sep 21 22:47:36 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Wed, 21 Sep 2005 22:47:36 +0530 Subject: [Deewan] Re:[Reader-list] gaanv, shahar, ravikant aur shaharnama In-Reply-To: <8bdde454050919120419d55cc4@mail.gmail.com> References: <20050919050649.1906.qmail@web80909.mail.scd.yahoo.com> <8bdde454050919120419d55cc4@mail.gmail.com> Message-ID: <200509212247.36691.ravikant@sarai.net> Dear Mehmood, Thanks for coming up with a quick and as usual deliciuos response. I am sorry for the delay - was a bit preoccupied with the press, etc. Vijender had already forwarded this mail to the deewan, so let us move over to the deewan list and carry this conversation forward - in roman or nagri. (We need some interesting discussions on a newly inaugurated list!) I agree with a lot of what you have said but I guess we could not make oursleves clear so that even a perceptive reader/listener like you missed the point some place down the line. I agree with you that we have dismissed the country/city dichotomy rather summarily. You are also right that we are making a case for city as object of study. We were acutely aware of this while writing that small first intro to Sharanama - had we been writing in English, we would not have offered those clarifications, alibis, etc. So, please do not forget that we are also in conversation with a public that is used to consuming an overwhelming sense of disgust with the city. Also, there is more to how and how much and since when the city has been written about in Hindi or Urdu. It is interesting that village asserts itself as the sole source of inspiration in the writings of hindi writers known as chhaayavaadis or romantics(the quartet of Pant-Prasad-Mahadevi-Nirala) of early 20th century. And the reference to 'bharatmata graamvasini'(village dwelling mother India)is embedded there. Hindi Nationalism, like so many other Nationalisms elsewhere, established its moral and numerical authority/superiority precisely on the basis of its affinity, and claim to represent the real multitudes rather than the urbane, degenerate upper classes. 'Bazaaroo' is a common address of insult for Urdu, as you would know very well. The moral critique of hindi nationalism was loaded against the city and whatever the city represented, and that is something we wanted to question. The idea is not to present a preferential urban model over the essentialised rural or rural-develepmentalist paradigm, but see the city in itself. And there are many other twists to this city/country tale: At about the same time when the New Story emerges as the form for urban content and contempt, village reasserts itself against technological and urban dreams of Nehruvian modernization in the 50s and 60s. I am talking here about Renu's Regionalism, which interestingly becomes the template for Rahi Masoom Raza's Adha Gaon(first published in devanaagri). Raza chooses to write that novel in bhojpuri Urdu and in a polemical, mid-way introduction to the novel - asserts his, a Muslim's, right to stay in India because they chose to do so. To my mind he writes the novel in bhojpuri Urdu also because the space of modern standard hindi was by and large captured by Hindi/Hindu Nationalism and the assertion could come from a diffrent linguistic register. Since bharat has been captured by the Hindus, Gangauli, the village provides him the basis to critique Bharat. So what we are arguing against is the whole tradition of hollow, symbolic and moral romanticization of the village against the city. Notwithstanding the fact that Ambedkar at one point did present the city as a utopian escape for the Dalits, we are just saying that cities are as valid objects of analysis and imagination as villages have been. And by conjoining Urdu with the urban we are owning up both, while not disowning the village. aapka Ganvar hi, jo apne Ganv ko vapis jane layaq nahin samajhta (equally, a rustic who doesn't think his village is worth going back to) cheers ravikant On Monday 19 Sep 2005 10:36 am, mahmood farooqui wrote: > Humne kuchh dinon pahle ek mock documentary feature ka > title rakha tha CHALE GAANV KI OR > > Maqsad kahne ka yeh, ki voh baat jo us roz Ravikant > aur Sanjay ji ne uthayi thi aur jise Nandy ji ne > sameta tha ki SHAHARNAMA isliye aur gaanvnaama isliye > nahin, kyunki gaanv ab shahar bante ja rahe hain. > > Nandy ji is baat ke sakht khilaaf hain ki 'shahar > banna hi gaanv ki niyati hai' magar shahar aur gaanv > ke falsafiyana matlabon ko nazarandaaz karte hue mujhe > kahna yeh hai ki sachhai to yahi hai ki chahe shahar > vaale hon chahe gaanv vaale donon ke liye gaanv ki > sarvottam parinati yahi hai ki voh shahar ban jaayen, > ya shahar jaise ban jaayein. > > Lekin darasal bara mudda jo hai, hindi jagat aur gaanv > ka masla jise bahut aasaani aur sahajta se sanjay aur > Ravikant ne nipta diya, uska taalluq sirf isse nahin > hai ki Hindi saahitya ab apni shahri parivesh mein > aatmvishwaas se khara ho gaya hai, maano hindi > saahitya koi gaanv se aaya hua mera dada hai jo ab > teen pushton ke baad shahar mein apni jarein phaila > chuka hai. Voh Nagarjun aur Nagar aur Nirala aur > Premchand ab hamare paas nahin hain jo gaanv se nikle > the. > > Gaanv jo kabhi Hindi ka shahar tha so isliye to tha hi > ki Gandhi aur aazaadi ke rahnumaaon ne hindustan ki > haqeeqat ka asli akas gaanv mein dhoondha tha aur > Hindi  srijan ek arse tak apne aaspaas ek naitik > zimmedari dale hue tha, desh aur desh ke asli juz > gaanv ke prati. Baat yeh bhi thi ki jo log voh > saahitya parh rahe the aur jo log use likh rahe the > voh khud gaanv se aaye the aur unka taalluq gaanv se > bana rahta tha saalahasaal. > > SHuroo ki baat pe vaapas paltun to mere dada jo gaanv > mein paida hue aur mere pitaji jinhein gaanv ki > baharein dekhi thin, voh virasat mujhe nahin saunp > sake, mera gaanv ab ya to aadha hai, ya premchand ke > paas rah gaya hai aur usmein jo bacha use raagdarbari > le gaya. > > To kahne ka matlab yeh ki hum yadi aaj gaanv ke baare > mein nahin likhte hain aur uske baare mein nahin > parhte hain to isliye ki shahron mein ek acchi khaasi > taadaad un hindi parhne waalon aur likhne waalon ki > hai jo gaanv se poori tarah naabalad hain. > > Hum gaanv ko isliye haashiye par rakh sakte hain ki > voh ab hamara aaspaas nahin basta aur na hi hamare > paathakon ke aaspaas basta hai. to hum kyun uspe > likhein aur kyun uspe baat karein? > > Magar agar baat ko gaanv se hata ke kisanon ki taraf > laaya jaye, yaani peasants ke, to phir maamla > geographical aur spatial na rahke temporal ho jata > hai.  Voh isliye ki voh jo paanchveen class la lesson > hum parhte the ki bharatvarsh kisanon ka desh hai ab > usmein yun tarmeem kar di jaani chahiye ki bharatvarsh > kisanon ka desh tha, jo ab abhi yahan qareeb saath > pratishat ki taadaad mein hain, magar chunki GDP mein > voh mahaz 25 percent ka yogdaan dete hain isliye humne > yeh maan liya hai ki kuchh hi dinon mein sab kisan ya > to shahar palaayan kar jaayenge ya gaanv shahar ban > jaayenge aur kisanon ko kisaani ke abhishaap se mukti > mil jaayegi. > > Phir hamara shaharnama aap hi aap poore mulk ka ahaata > kar lega. > > Hum shahri log hain bhaiyya aur shahar ke baare mein > likh rahe hain, hum choonki hindi waale hain isliye > humko safai deni parti hai. Urdu waalon ne to shuroo > se hi apne aap ko shahri zabaan waala banake saari > samaajik zimmedariyon se mukt kar liya. > > To pahli baat to yeh ki kya hamein safaai dene ki > zaroorat hai, doosri baat yeh ki hum agar safaai dein > to phir dein, kanni na kataayein... > > Sammanpoorvak, > > GANWAAR. From ravikant at sarai.net Wed Sep 21 23:02:56 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Wed, 21 Sep 2005 23:02:56 +0530 Subject: [Deewan] gaanv, shahar, ravikant In-Reply-To: <20050922082624.22011.qmail@webmail10.rediffmail.com> References: <20050922082624.22011.qmail@webmail10.rediffmail.com> Message-ID: <200509212302.56267.ravikant@sarai.net> mehmood saheb, jaisa ki maine kaha, kuchh masroof tha, maaf kiijiyega. ab thoRa apne khoobsoorat alfaaz ke maani bhi bata dein taki main aur list ke deegar meherbaan maza le sakein. shukriya ravikant On Thursday 22 Sep 2005 1:56 pm, mahmood farooqui wrote: > � > Kya meri gustakhiyan is qabil bhi nahin hain ki unpe kuchh sarzanish ho > sake... > > gaavon ko chup lagi hai, shahar bolte nahin > > >jo bolte hain, baar-e digar bolte nahin???? > > > >PPS Kyun taairaan-e shaakh-e shajar bolte nahin From ravikant at sarai.net Sat Sep 24 16:15:45 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Sat, 24 Sep 2005 16:15:45 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSV4KSC4KSq4KWN4KSv4KWC4KSf4KSw?= , =?utf-8?b?4KS54KS/4KSo4KWN4KSm4KWAIOCknOCkqOCkquCkpiDgpJTgpLAg?= =?utf-8?b?4KSs4KS/4KSyIOCkl+Clh+Ckn+CljeCkuA==?= Message-ID: <200509241615.45636.ravikant@sarai.net> दोस्तो, यह लिंक या कड़ी इंडलिनक्स लिस्ट पर घूम रही थी, मैंने यहाँ पूरी कहानी नक़ल कर दी है. मौक़ा माइक्रोसॉफ़्ट के तीसवें जन्मदिन का है, पर प्रतिक्रियाएँ मज़ेदार हैं, और कंप्यूटर के साथ लोगों के गहरे जुड़ते रिश्ते की कहानी कहता है. वैसे कंप्यूटर = माइक्रोसॉफ़्ट का समीकरण हममें से काफ़ी लोगों को बुरा लग सकता है, जैसा कि रेड हैट के राजेश रंजन को भी लगा. आपका रविकान्त कंप्यूटर ने कितनी बदली है आपकी दुनिया? http://www.bbc.co.uk/hindi/forum/story/2005/09/050923_microsoft_forum.shtml कंप्यूटर सॉफ्टवेयर बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने तीस वर्ष पूरे कर लिए हैं. दुनिया के नब्बे प्रतिशत कंप्यूटरों को चलाने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम की निर्माता इस कंपनी का कारोबार पिछले तीस वर्षों में बहुत तेज़ी से बढ़ता रहा है. माइक्रोसॉफ़्ट मना रहा है तीसवाँ जन्म दिन आपका कितना समय कंप्यूटर के साथ बीतता है? आप उसे कितना उपयोगी मानते हैं? आपकी दुनिया में कंप्यूटर कब आया और इसने आपको किस तरह से और कितना प्रभावित किया है? अपने विचार साथ में दिए फ़ॉर्म का इस्तेमाल करते हुए हमें लिख भेजिए. अपने विचार यहाँ पढ़िए मैं कंप्यूटर पर 12 घंटे काम करता हूं, यह मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है, इसके बिना मेरा काम अधूरा है, पता नहीं अगर कंप्यूटर नहीं होता तो क्या होता. हाकिम शाकिर, इंदौर मैं वो दिन नहीं भूल सकता जब हमारे छोटे से शहर में हमारी कंपनी में पहली बार कंप्यूटर आया था, शहर के सारे डॉक्टर, इंजीनियर और बड़े लोग हमारा कंप्यूटर देखने आए थे. कंप्यूटर मेरा अच्छा दोस्त है. पीएच गढ़वी, कच्छ मैंने पंद्रह वर्ष पहले अपनी छोटी बहन को कंप्यूटर का कोर्स कराया था, उसी से सीखना भी शुरू कर दिया. अब कंप्यूटर के बिना मेरा कोई काम नहीं हो सकता क्योंकि मैं एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर काम करता हूँ. बीबीसी हिंदी.कॉम भी तो देख लेता हूँ. नरेंद्र शर्मा, फ़रीदाबाद बिल गेट्स ने कितने सारे लोगों की ज़िंदगी आसान कर दी, वे एक क्रांति लेकर आए. मैं याद करता हूँ कि छह वर्ष पहले मैं बिना कंप्यूटर के किस तरह पढ़ाई करता था. मैं माइक्रोसॉफ्ट को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने हमारे लिए इतना कुछ किया. बिल गेट्स को मेरी बधाइयाँ. राघव, ऑस्ट्रेलिया मैंने पहली बार कंप्यूटर का इस्तेमाल तब किया जब मैं अमरीका में पढ़ाई कर रहा था, अब तो मैं एक घंटे बिना इंटरनेट के नहीं रह सकता. कंप्यूटर ने इंसान को आज़ाद बना दिया है, वह बिना पैसा ख़र्च किए, बिना अपनी मेज़ से उठे, अपने विचारों को आगे बढ़ा सकता है. लोग एक दूसरे से बेहतर तरीक़ से जुड़ गए हैं. मोहिंदर पाल सिंह, अमरीका कंप्यूटर मेरे जीवन में 1990 में आया, मैंने 486 कंप्यूटर एक लाख रूपए में ख़रीदा था, अब कहीं बेहतर कंप्यूटर सिर्फ़ 35 हज़ार रूपए में मिल जाते हैं. मैंने अपनी ख़ूबसूरत और प्यारी पत्नी से भी इंटरनेट के ज़रिए ही मिला. कंप्यूटर अब मेरी दूसरी पत्नी की तरह है, मेरी ज़िंदगी का हिस्सा. मैं बिना कंप्यूटर के अपंग महसूस करता हूँ. नरिंदर कालिया, कनाडा मैं वह दिन नहीं भूल सकता जब मुझे बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के ज़रिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ से सवाल पूछने का मौक़ा मिला, यह कंप्यूटर की वजह से ही हो पाया. वर्ष 2000 में बारहवीं पास करने के बाद से एक दिन भी ऐसा नहीं गुज़रा है जब मैंने कंप्यूटर इस्तेमाल न किया हो. जीतेंद्र सिंह, जोधपुर, राजस्थान मैं कंप्यूटर पर तीन से चार घंटे काम करता हूँ. आज की दुनिया में कंप्यूटर के बिना कोई काम जल्दी नहीं हो सकता. हालाँकि कंप्यूटर की हार्ड डिस्क मानव मस्तिष्क का 0.1 प्रतिशत भी नही है लेकिन यह 0.1 प्रतिशत ही हमारे जीवन के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रहा है. कपिल मित्तल, हरियाणा मेरा कंप्यूटर से लगाव 1999 में शुरु हुआ और मैं 9-10 घंटे इसके साथ ज़रूर बिताता हूँ. यही मेरा अच्छा दोस्त है. हनुमंत बंसोडे, मुंबई कंप्यूटर से मेरा जुड़ाव तब से हुआ जब मैंने आईआईटी, कानपुर में कंप्यूटर इंजीनियरिंग कार्यक्रम में दाख़िला लिया. उसके बाद से तीन साल हो गए हैं और अब तो मैं एक दिन में 12-14 घंटे अपने लैपटॉप के साथ बिताता हूँ. उत्तम कुमार त्रिपाठी, कानपुर मैं एक ग्राफ़िक डिज़ायनर हूँ. मैंने 1993 में अपना कैरियर शुरु किया और मैं रोज़ लगभग 15 घंटे कंप्यूटर के सामने गुज़ारता हूँ. इसके बिना तो मैं एक क़दम भी नहीं उठा सकता. राजन शोरी, अमरीका मैं 1985 में बीए कर रहा था और साथ में कंप्यूटर सीख रहा था. फिर मैं एमए और एलएलबी किया. लेकिन कंप्यूटर की माया से नहीं भाग सका और अंत में सारी डिग्रियाँ फेल हो गईं और मैं अब शान के साथ कंप्यूटर से पैसा कमा रहा हूँ. अमानुल्ला ख़ां, महाराजगंज, उत्तर प्रदेश मैं एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति हूँ. पत्नी के बाद कंप्यूटर मेरा दूसरा जीवन साथी है. पिछले पाँच साल से प्रतिदिन लगभग पाँच घंटे मैं कंप्यूटर के साथ बिताता हूँ. समय बिताने और ज्ञानवर्धन के लिए कंप्यूटर मेरे लिए उपयोगी ही नहीं अपितु महत्वपूर्ण भी है. रमेश माधुर, अल्फ़ारेट्टा, अमरीका मैं जब प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी कर रहा था तब मैं टाइपिंग नहीं जानने के कारण फ़ॉर्म नहीं भर पाता था. लेकिन 1999 से मैं कंप्यूटर के ही पेशे से जुड़ा हुआ हूँ. कंप्यूटर ने मेरी ज़िंदगी बदल दी है. मुकेश कुमार, काठमांडू, नेपाल मैं सुबह उठते ही कंप्यूटर ऑन करता हूँ और बीबीसी समेत तमाम ज्ञानवर्धक वेबसाइट देखता हूँ. कॉलेज से वापस आकर सोने से पहले यानी देर रात तक कंप्यूटर से चिपका रहता हूँ. बेशक कंप्यूटर ने हम जैसे तमाम लोगों की ज़िंदगी में क्रांति ला दी है जो पर्याप्त जानकारी ग्रहण करना चाहते हैं. समीर जाफ़री, अंबाला, पंजाब मैंने 1997 में कंप्यूटर को पहली बार हाथ लगाया और अब मैं बिना कंप्यूटर के काम नहीं कर सकता. मैं कई प्रोग्रामिंग भाषाएँ और मरम्मत का काम जानता हूँ और कंप्यूटर मेरे लिए कमाई का एकमात्र ज़रिया है. हातिम अली, बांसवाड़ा, भारत मुझे यही कहना है कि आज की दुनिया में हम कंप्यूटर के बिना नहीं रह सकते. जय प्रकाश, रांची, झारखंड मैंने 2002 तक कंप्यूटर को हाथ भी नहीं लगाया था लेकिन आज मेरा 50 प्रतिशत काम कंप्यूटर से ही होता है. दुर्गाशंकर, काहिरा, मिस्र मैं मानता हूँ कि कंप्यूटर ने मनुष्य जाति के लिए पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है. इसने हमारे दैनिक जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिया है. आज से आठ साल पहले मुझे अच्छी तरह से याद है कि मुझे रेलवे आरक्षण की लाईन में घंटों खड़े रहना पड़ता था मगर अब मेरा काम महज़ मिनटों में हो जाता है. इसने ना केवल शहरी जीवन को प्रभावित किया है बल्कि ये ग्रामीण कृषकों के लिए भी सहायक साबित हो रहा है. कुमार विक्रम झा, मथुरा, उत्तर प्रदेश माइक्रोसॉफ़्ट ऑपरेटिंग सिस्टम सबसे आसान ऑपरेटिंग सिस्टम है. विद्यापति राय, ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश कंप्यूटर ने मुझे ही क्या सारी दुनिया को प्रभावित किया है. पर मेरी माइक्रोसॉफ़्ट से एक गुज़ारिश है कि वह कोई ऐसा कंप्यूटर बनाए जिससे कि संसार का हर ग़रीब, बच्चा, बूढ़ा, जवान, आदमी, औरत उसका लाभ उठा सकें. कुलवंत सिंह गिल, अलेस्सांद्रिया, इटली मैं जब भारत में 11वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा था तब अचानक मैं अपने मित्र के साथ साइबर कैफ़े गया जिसने मुझे कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल सिखाया. इसके बाद मैंने ना जाने कितने दोस्त बनाए और कंप्यूटर की ही सहायता से अमरीका पहुँचा. मैं अभी 20-20 घंटे कंप्यूटर का इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि मैं अमरीका में फ़ाइनेंस में अपनी दूसरी बैचलर डिग्री लेने की कोशिश कर रहा हूँ और प्रोफ़ेसर पढ़ाने के लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं. दलजीत सिंह गिल, बिलिंग्स, मोंटाना, अमरीका मैं समझता हूँ माइक्रोसॉफ़्ट ने दुनिया बदल दी है. आज अधिकतर लोग विंडोज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं. योगेश, नोएडा, उत्तर प्रदेश मैंने कंप्यूटर के बारे में हिंदुस्तान में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तब सुना था. मैं पिछले 14 वर्षों से यहाँ पर काम कर रहा हूँ और यहाँ पर 94 या 95 के बाद से एक तरह से कंप्यूटर क्रांति ही आ गई है. मेरे व्यक्तिगत जीवन में कंप्यूटर 2004 में आया, इससे पहले मैंने कंप्यूटर देखा ज़रूर था लेकिन उसे इस्तेमाल नहीं किया था. अब मेरी हालत ये है कि जब से मैंने इस वर्ष इंटरनेट लिया है तबसे मैं कंप्यूटर पर ही वक़्त बिताता हूँ. शब्बीर ख़न्ना, रियाद, सऊदी अरब वर्ष 2003 में जब मैंने पहली बार हक़ीक़त में कंप्यूटर देखा तो मुझे बहुत अच्छा लगा और उसी समय मैं अपने दोस्त के साथ कंप्यूटर सीखने भी गया था. आज मैं कंप्यूटर की ही नौकरी कर रहा हूँ और मेरा सपना साकार करने के लिए कंप्यूटर ही मेरा साथ दे रहा है. रामजीत शाह, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश मैंने सबसे पहले विंडोज़ 95 तब देखा जब मैं स्कूल में था और मैं चकित रह गया. तब मैंने तय कर लिया कि मैं इसी क्षेत्र में ही भविष्य बनाऊँगा. मैं तो बिना कंप्यूटर या माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज़ के जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकता. आमोघ फडके, मुंबई मेरे जीवन में कंप्यूटर चार साल पहले आया. मैं तो कुछ नहीं जानती थी लेकिन मैंने अपने बच्चों से सीखा. अब मुझे एक बड़ा फ़ायदा ये हुआ कि मैं अपने सब भाई बहन से बिछड़ गई थी तो कंप्यूटर आने से मैं उनसे बात करती हूँ, उन्हें देख सकती हूँ और अपने समय पर बीबीसी भी पढ़ सकती हूँ. आयशा, सूरत, गुजरात आज जीवन के हर क्षेत्र में कंप्यूटर बहुत-बहुत महत्वपूर्ण बन गया है. मैं 55 वर्ष की आयु में कंप्यूटर सीख रहा हूँ और मुझे अफ़सोस होता है कि मैंने इतनी देर क्यों की. इस्माईल हक़ीमुद्दीन शाजापुरवाला, मुंबई मैं सोनभद्र जनपद के एक छोटे से गाँव दोमा का रहने वाला हूँ. बारहवीं के बाद जब मैं इलाहाबाद में आईआईटी की तैयारी के लिए आया तो पता चला कि कंप्यूटर की दुनिया काफ़ी वृहद है. हालाँकि मुझे कंप्यूटर के उपयोग का मौक़ा 2002 में मिला जब मैंने बी. टेक. के लिए मथुरा आया. यों तो मैं ज़्यादातर इंटरनेट ही उपयोग करता हूँ लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि कंप्यूटर बहुत ही उपयोगी है. शैलेश भारतवासी, मथुरा कंप्यूटर मेरी ज़िंदगी में 2000 में आया लेकिन अब कंप्यूटर ही मेरी ज़िंदगी है. गौरव त्यागी, बंगलौर मैं 1996 से ही कंप्यूटर के साथ हूँ और रोज़ आठ घंटे काम करता हूँ. आप समझ सकते हैं कि जब कोई आठ घंटे तक कंप्यूटर पर काम करता हो तो क्या महत्वपूर्ण होगा. मो. उमर आज़म, दिल्ली कंप्यूटर को लेकर मैं पहली बार 1998 में जिज्ञासु बना और इसे सीखना शुरू किया. इसके बाद मैंने मेकेनिकल इंजीनियर से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर का रुख़ किया. आज मेरी रोज़ी-रोटी कंप्यूटर से चलती है. लेकिन जब मैं राजस्थान के अपने गाँव में जाता हूँ तो मुझे कंप्यूटर की ज़रूरत नहीं होती. हिमांशु, न्यू जर्सी, अमरीका मैंने जुलाई 2002 में कंप्यूटर का उपयोग शुरू किया. सबसे पहले समाचार के वेबसाइट के बारे में किसी से पूछा तो उसने बीबीसी हिंदी की जानकारी दी. मुझे कंप्यूटर ने ताज़े समाचारों की दुनिया के बारे में इतना प्रभावित किया कि इसका गुणगान शब्दों में नहीं किया जा सकता. हिम्मत सिंह भाटी, जोधपुर कंप्यूटर ने मेरी ज़िंदगी बदल डाली है. मैं रोज़ एक-दो घंटे कंप्यूटर को देता हूँ. सिमरनजीत, पंजाब मेरे लिए कंप्यूटर के बिना ज़िंदगी की कल्पना करना संभव नहीं. मैं परिवार से भी ज़्यादा कंप्यूटर के साथ समय बिताता हूँ. किशोर कुमार पाहूजा, उदयपुर मैं कंप्यूटर पर रोज़ 12 घंटे बिताता हूँ. यह बहुत ही फ़ायदेमंद है. मैं अपने कैरियर के लिए गूगल और माइक्रोसॉफ़्ट का शुक्रगुज़ार हूँ. मैंने 1997 में तकनीकी कोर्स पास किया लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली. फिर 1999 में मैंने एपटेक से एक साल का कंप्यूटर कोर्स किया और पहली छमाही में ही मुझे नौकरी मिल गई. अजय उपमन्यु, त्रिनगर, दिल्ली 1997 तक मैंने कंप्यूटर छुआ भी नहीं था लेकिन कंप्यूटर नाम की इस मशीन को छूने के बाद तो पूरी दुनिया ही बदल गई. अब मेरा रोज़गार और सबकुछ कंप्यूटर पर निर्भर है. बीबीसी से संपर्क भी कंप्यूटर के ज़रिए ही होता है. पवन कुमार, वर्जीनिया, अमरीका मैं बिना कंप्यूटर अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता, ख़ासतौर से माइक्रोसॉफ़्ट ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना. संतोष वर्मा, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश कंप्यूटर मेरी ज़िंदगी में क़रीब दस साल पहले आया लेकिन क़रीब चार साल से यह मेरे जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. ख़ासतौर पर लोगों से मेरा संपर्क ज़्यादातर ई-मेल के ज़रिए ही होता है. प्रमोद पाँडे, नोएडा, उत्तर प्रदेश माइक्रोसॉफ़्ट को बधाई. पीसी बस्तवार, बैरागढ़, भोपाल मैं तो कंप्यूटर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करता हूँ. ईमेल के अलावा गेम खेलने के लिए भी. राज, थाईलैंड मैं माइक्रोसॉफ़्ट को बहुत बहुत बधाई देना चाहता हूँ. पीसी बस्तावर, भोपाल From chauhan.vijender at gmail.com Sat Sep 24 20:51:32 2005 From: chauhan.vijender at gmail.com (Vijender chauhan) Date: Sat, 24 Sep 2005 20:51:32 +0530 Subject: =?UTF-8?B?UmU6IFtEZWV3YW5dIOCkleCkguCkquCljeCkr+ClguCkn+CksCAsIA==?= =?UTF-8?B?4KS54KS/4KSo4KWN4KSm4KWAIOCknOCkqOCkquCkpiA=?= =?UTF-8?B?4KSU4KSwIOCkrOCkv+CksiDgpJfgpYfgpJ/gpY3gpLg=?= In-Reply-To: <200509241615.45636.ravikant@sarai.net> References: <200509241615.45636.ravikant@sarai.net> Message-ID: <8bdde45405092408214a68fb56@mail.gmail.com> नमस्‍कार, रविकान्‍त की पोस्टिंग काफी कुछ कहती है हालांकि यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि प्रतिक्रियाएं अनूदित हैं अथवा मूल हिन्‍दी यूजर की ही हैं। मैं जानना चाहूंगा। काफी पहले जब मैं प्रौद्यौगिकी-सृजन सद्भाव पर विचार कर रहा ( वे अधूरी कहानियॉं.....) तभी से मुझे यह आश्‍चर्यजनक लगता है कि किस प्रकार प्रौद्योगिकी के मूर्त रूप (जैसे इस मामले में हार्डवेयर, सो भी तब जब बात माइक्रोसाफ्ट की हो रही है) सदैव स्‍मृति में तथा अनुभवों में अहम जगह रखतें हैं। विजेंद्र On 9/24/05, Ravikant wrote: > दोस्तो, > > यह लिंक या कड़ी इंडलिनक्स लिस्ट पर घूम रही थी, मैंने यहाँ पूरी > कहानी नक़ल कर दी है. मौक़ा माइक्रोसॉफ़्ट के तीसवें जन्मदिन का है, > पर प्रतिक्रियाएँ मज़ेदार हैं, और कंप्यूटर के साथ लोगों के गहरे जुड़ते रिश्ते > की कहानी कहता है. वैसे कंप्यूटर = माइक्रोसॉफ़्ट का समीकरण हममें से > काफ़ी लोगों को बुरा लग सकता है, जैसा कि रेड हैट के राजेश रंजन को भी > लगा. > > आपका > रविकान्त > > कंप्यूटर ने कितनी बदली है आपकी दुनिया? > > http://www.bbc.co.uk/hindi/forum/story/2005/09/050923_microsoft_forum.shtml > > > कंप्यूटर सॉफ्टवेयर बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपने > तीस वर्ष पूरे कर लिए हैं. > दुनिया के नब्बे प्रतिशत कंप्यूटरों को चलाने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम की निर्माता > इस कंपनी का कारोबार पिछले तीस वर्षों में बहुत तेज़ी से बढ़ता रहा है. > माइक्रोसॉफ़्ट मना रहा है तीसवाँ जन्म दिन > > आपका कितना समय कंप्यूटर के साथ बीतता है? आप उसे कितना उपयोगी मानते हैं? आपकी > दुनिया में कंप्यूटर कब आया और इसने आपको किस तरह से और कितना प्रभावित किया है? > > अपने विचार साथ में दिए फ़ॉर्म का इस्तेमाल करते हुए हमें लिख भेजिए. > > > अपने विचार यहाँ पढ़िए > मैं कंप्यूटर पर 12 घंटे काम करता हूं, यह मेरे जीवन का हिस्सा बन गया है, इसके > बिना मेरा काम अधूरा है, पता नहीं अगर कंप्यूटर नहीं होता तो क्या होता. हाकिम > शाकिर, इंदौर > > > मैं वो दिन नहीं भूल सकता जब हमारे छोटे से शहर में हमारी कंपनी में पहली बार > कंप्यूटर आया था, शहर के सारे डॉक्टर, इंजीनियर और बड़े लोग हमारा कंप्यूटर देखने > आए थे. कंप्यूटर मेरा अच्छा दोस्त है. पीएच गढ़वी, कच्छ > > > मैंने पंद्रह वर्ष पहले अपनी छोटी बहन को कंप्यूटर का कोर्स कराया था, उसी से > सीखना भी शुरू कर दिया. अब कंप्यूटर के बिना मेरा कोई काम नहीं हो सकता क्योंकि > मैं एक बड़ी कंपनी में उच्च पद पर काम करता हूँ. बीबीसी हिंदी.कॉम भी तो देख > लेता हूँ. नरेंद्र शर्मा, फ़रीदाबाद > > > बिल गेट्स ने कितने सारे लोगों की ज़िंदगी आसान कर दी, वे एक क्रांति लेकर आए. > मैं याद करता हूँ कि छह वर्ष पहले मैं बिना कंप्यूटर के किस तरह पढ़ाई करता था. > मैं माइक्रोसॉफ्ट को धन्यवाद देता हूँ कि उन्होंने हमारे लिए इतना कुछ किया. बिल > गेट्स को मेरी बधाइयाँ. राघव, ऑस्ट्रेलिया > > > मैंने पहली बार कंप्यूटर का इस्तेमाल तब किया जब मैं अमरीका में पढ़ाई कर रहा था, > अब तो मैं एक घंटे बिना इंटरनेट के नहीं रह सकता. कंप्यूटर ने इंसान को आज़ाद > बना दिया है, वह बिना पैसा ख़र्च किए, बिना अपनी मेज़ से उठे, अपने विचारों को > आगे बढ़ा सकता है. लोग एक दूसरे से बेहतर तरीक़ से जुड़ गए हैं. > मोहिंदर पाल सिंह, अमरीका > > > कंप्यूटर मेरे जीवन में 1990 में आया, मैंने 486 कंप्यूटर एक लाख रूपए में ख़रीदा > था, अब कहीं बेहतर कंप्यूटर सिर्फ़ 35 हज़ार रूपए में मिल जाते हैं. मैंने अपनी > ख़ूबसूरत और प्यारी पत्नी से भी इंटरनेट के ज़रिए ही मिला. कंप्यूटर अब मेरी > दूसरी पत्नी की तरह है, मेरी ज़िंदगी का हिस्सा. मैं बिना कंप्यूटर के अपंग > महसूस करता हूँ. > नरिंदर कालिया, कनाडा > > > मैं वह दिन नहीं भूल सकता जब मुझे बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के ज़रिए पाकिस्तान के > राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ से सवाल पूछने का मौक़ा मिला, यह कंप्यूटर की वजह से > ही हो पाया. वर्ष 2000 में बारहवीं पास करने के बाद से एक दिन भी ऐसा नहीं > गुज़रा है जब मैंने कंप्यूटर इस्तेमाल न किया हो. > जीतेंद्र सिंह, जोधपुर, राजस्थान > > > मैं कंप्यूटर पर तीन से चार घंटे काम करता हूँ. आज की दुनिया में कंप्यूटर के > बिना कोई काम जल्दी नहीं हो सकता. हालाँकि कंप्यूटर की हार्ड डिस्क मानव मस्तिष्क > का 0.1 प्रतिशत भी नही है लेकिन यह 0.1 प्रतिशत ही हमारे जीवन के लिए बहुत > उपयोगी साबित हो रहा है. कपिल मित्तल, हरियाणा > > > मेरा कंप्यूटर से लगाव 1999 में शुरु हुआ और मैं 9-10 घंटे इसके साथ ज़रूर बिताता > हूँ. यही मेरा अच्छा दोस्त है. हनुमंत बंसोडे, मुंबई > > > कंप्यूटर से मेरा जुड़ाव तब से हुआ जब मैंने आईआईटी, कानपुर में कंप्यूटर > इंजीनियरिंग कार्यक्रम में दाख़िला लिया. उसके बाद से तीन साल हो गए हैं और > अब तो मैं एक दिन में 12-14 घंटे अपने लैपटॉप के साथ बिताता हूँ. > उत्तम कुमार त्रिपाठी, कानपुर > > > मैं एक ग्राफ़िक डिज़ायनर हूँ. मैंने 1993 में अपना कैरियर शुरु किया और मैं रोज़ > लगभग 15 घंटे कंप्यूटर के सामने गुज़ारता हूँ. इसके बिना तो मैं एक क़दम भी नहीं > उठा सकता. राजन शोरी, अमरीका > > > मैं 1985 में बीए कर रहा था और साथ में कंप्यूटर सीख रहा था. फिर मैं एमए और > एलएलबी किया. लेकिन कंप्यूटर की माया से नहीं भाग सका और अंत में सारी डिग्रियाँ > फेल हो गईं और मैं अब शान के साथ कंप्यूटर से पैसा कमा रहा हूँ. अमानुल्ला ख़ां, > महाराजगंज, उत्तर प्रदेश > > > मैं एक अवकाश प्राप्त व्यक्ति हूँ. पत्नी के बाद कंप्यूटर मेरा दूसरा जीवन साथी > है. पिछले पाँच साल से प्रतिदिन लगभग पाँच घंटे मैं कंप्यूटर के साथ बिताता हूँ. > समय बिताने और ज्ञानवर्धन के लिए कंप्यूटर मेरे लिए उपयोगी ही नहीं अपितु > महत्वपूर्ण भी है. रमेश माधुर, अल्फ़ारेट्टा, अमरीका > > > मैं जब प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी कर रहा था तब मैं टाइपिंग नहीं > जानने के कारण फ़ॉर्म नहीं भर पाता था. लेकिन 1999 से मैं कंप्यूटर के ही पेशे से > जुड़ा हुआ हूँ. कंप्यूटर ने मेरी ज़िंदगी बदल दी है. मुकेश कुमार, काठमांडू, > नेपाल > मैं सुबह उठते ही कंप्यूटर ऑन करता हूँ और बीबीसी समेत तमाम ज्ञानवर्धक वेबसाइट > देखता हूँ. कॉलेज से वापस आकर सोने से पहले यानी देर रात तक कंप्यूटर से चिपका > रहता हूँ. बेशक कंप्यूटर ने हम जैसे तमाम लोगों की ज़िंदगी में क्रांति ला दी है > जो पर्याप्त जानकारी ग्रहण करना चाहते हैं. समीर जाफ़री, अंबाला, पंजाब > > > मैंने 1997 में कंप्यूटर को पहली बार हाथ लगाया और अब मैं बिना कंप्यूटर के काम > नहीं कर सकता. मैं कई प्रोग्रामिंग भाषाएँ और मरम्मत का काम जानता हूँ और > कंप्यूटर मेरे लिए कमाई का एकमात्र ज़रिया है. हातिम अली, बांसवाड़ा, भारत > > मुझे यही कहना है कि आज की दुनिया में हम कंप्यूटर के बिना नहीं रह सकते. > जय प्रकाश, रांची, झारखंड > > मैंने 2002 तक कंप्यूटर को हाथ भी नहीं लगाया था लेकिन आज मेरा 50 प्रतिशत काम > कंप्यूटर से ही होता है. दुर्गाशंकर, काहिरा, मिस्र > > > मैं मानता हूँ कि कंप्यूटर ने मनुष्य जाति के लिए पूरा परिदृश्य ही बदल दिया है. > इसने हमारे दैनिक जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन ला दिया है. आज से आठ साल > पहले मुझे अच्छी तरह से याद है कि मुझे रेलवे आरक्षण की लाईन में घंटों खड़े रहना > पड़ता था मगर अब मेरा काम महज़ मिनटों में हो जाता है. इसने ना केवल शहरी जीवन > को प्रभावित किया है बल्कि ये ग्रामीण कृषकों के लिए भी सहायक साबित > हो रहा है. कुमार विक्रम झा, मथुरा, उत्तर प्रदेश > > > माइक्रोसॉफ़्ट ऑपरेटिंग सिस्टम सबसे आसान ऑपरेटिंग सिस्टम है. विद्यापति राय, > ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश > > > कंप्यूटर ने मुझे ही क्या सारी दुनिया को प्रभावित किया है. पर मेरी > माइक्रोसॉफ़्ट से एक गुज़ारिश है कि वह कोई ऐसा कंप्यूटर बनाए जिससे कि संसार का > हर ग़रीब, बच्चा, बूढ़ा, जवान, आदमी, औरत उसका लाभ उठा सकें. कुलवंत सिंह गिल, > अलेस्सांद्रिया, इटली > > > मैं जब भारत में 11वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहा था तब अचानक मैं अपने मित्र के साथ > साइबर कैफ़े गया जिसने मुझे कंप्यूटर और इंटरनेट का इस्तेमाल सिखाया. इसके बाद > मैंने ना जाने कितने दोस्त बनाए और कंप्यूटर की ही सहायता से अमरीका पहुँचा. मैं > अभी 20-20 घंटे कंप्यूटर का इस्तेमाल करता हूँ क्योंकि मैं अमरीका में फ़ाइनेंस > में अपनी दूसरी बैचलर डिग्री लेने की कोशिश कर रहा हूँ और प्रोफ़ेसर पढ़ाने के > लिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं. दलजीत सिंह गिल, बिलिंग्स, मोंटाना, अमरीका > > मैं समझता हूँ माइक्रोसॉफ़्ट ने दुनिया बदल दी है. आज अधिकतर लोग > विंडोज़ का इस्तेमाल कर रहे हैं. योगेश, नोएडा, उत्तर प्रदेश > > > मैंने कंप्यूटर के बारे में हिंदुस्तान में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, तब > सुना था. मैं पिछले 14 वर्षों से यहाँ पर काम कर रहा हूँ और यहाँ पर 94 या 95 के > बाद से एक तरह से कंप्यूटर क्रांति ही आ गई है. मेरे व्यक्तिगत जीवन में > कंप्यूटर 2004 में आया, इससे पहले मैंने कंप्यूटर देखा ज़रूर था लेकिन उसे > इस्तेमाल नहीं किया था. अब मेरी हालत ये है कि जब से मैंने इस वर्ष इंटरनेट लिया > है तबसे मैं कंप्यूटर पर ही वक़्त बिताता हूँ. शब्बीर ख़न्ना, रियाद, सऊदी अरब > > > वर्ष 2003 में जब मैंने पहली बार हक़ीक़त में कंप्यूटर देखा तो मुझे बहुत अच्छा > लगा और उसी समय मैं अपने दोस्त के साथ कंप्यूटर सीखने भी गया था. आज मैं > कंप्यूटर की ही नौकरी कर रहा हूँ और मेरा सपना साकार करने के लिए कंप्यूटर ही > मेरा साथ दे रहा है. रामजीत शाह, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश > मैंने सबसे पहले विंडोज़ 95 तब देखा जब मैं स्कूल में था और मैं चकित रह गया. तब > मैंने तय कर लिया कि मैं इसी क्षेत्र में ही भविष्य बनाऊँगा. मैं तो बिना > कंप्यूटर या माइक्रोसॉफ़्ट विंडोज़ के जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकता. आमोघ > फडके, मुंबई > > मेरे जीवन में कंप्यूटर चार साल पहले आया. मैं तो कुछ नहीं जानती थी लेकिन मैंने > अपने बच्चों से सीखा. अब मुझे एक बड़ा फ़ायदा ये हुआ कि मैं अपने सब भाई बहन से > बिछड़ गई थी तो कंप्यूटर आने से मैं उनसे बात करती हूँ, उन्हें देख सकती हूँ और > अपने समय पर बीबीसी भी पढ़ सकती हूँ. आयशा, सूरत, गुजरात > > आज जीवन के हर क्षेत्र में कंप्यूटर बहुत-बहुत महत्वपूर्ण बन गया है. मैं 55 वर्ष > की आयु में कंप्यूटर सीख रहा हूँ और मुझे अफ़सोस होता है कि मैंने इतनी देर > क्यों की. इस्माईल हक़ीमुद्दीन शाजापुरवाला, मुंबई > > मैं सोनभद्र जनपद के एक छोटे से गाँव दोमा का रहने वाला हूँ. बारहवीं के बाद > जब मैं इलाहाबाद में आईआईटी की तैयारी के लिए आया तो पता चला कि कंप्यूटर की > दुनिया काफ़ी वृहद है. हालाँकि मुझे कंप्यूटर के उपयोग का मौक़ा 2002 में मिला > जब मैंने बी. टेक. के लिए मथुरा आया. यों तो मैं ज़्यादातर इंटरनेट ही उपयोग > करता हूँ लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि कंप्यूटर बहुत ही उपयोगी है. > शैलेश भारतवासी, मथुरा > > > कंप्यूटर मेरी ज़िंदगी में 2000 में आया लेकिन अब कंप्यूटर ही मेरी ज़िंदगी है. > गौरव त्यागी, बंगलौर > > > मैं 1996 से ही कंप्यूटर के साथ हूँ और रोज़ आठ घंटे काम करता हूँ. > आप समझ सकते हैं कि जब कोई आठ घंटे तक कंप्यूटर पर काम करता हो तो क्या > महत्वपूर्ण होगा. मो. उमर आज़म, दिल्ली > > > कंप्यूटर को लेकर मैं पहली बार 1998 में जिज्ञासु बना और इसे सीखना शुरू किया. > इसके बाद मैंने मेकेनिकल इंजीनियर से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर का रुख़ किया. आज मेरी > रोज़ी-रोटी कंप्यूटर से चलती है. लेकिन जब मैं राजस्थान के अपने गाँव में जाता > हूँ तो मुझे कंप्यूटर की ज़रूरत नहीं होती. हिमांशु, न्यू जर्सी, अमरीका > > > मैंने जुलाई 2002 में कंप्यूटर का उपयोग शुरू किया. सबसे पहले समाचार के वेबसाइट > के बारे में किसी से पूछा तो उसने बीबीसी हिंदी की जानकारी दी. मुझे कंप्यूटर ने > ताज़े समाचारों की दुनिया के बारे में इतना प्रभावित किया कि इसका गुणगान शब्दों > में नहीं किया जा सकता. हिम्मत सिंह भाटी, जोधपुर > > > कंप्यूटर ने मेरी ज़िंदगी बदल डाली है. मैं रोज़ एक-दो घंटे कंप्यूटर को देता > हूँ. सिमरनजीत, पंजाब > > मेरे लिए कंप्यूटर के बिना ज़िंदगी की कल्पना करना संभव नहीं. मैं परिवार से > भी ज़्यादा कंप्यूटर के साथ समय बिताता हूँ. किशोर कुमार पाहूजा, उदयपुर > > > मैं कंप्यूटर पर रोज़ 12 घंटे बिताता हूँ. यह बहुत ही फ़ायदेमंद है. मैं अपने > कैरियर के लिए गूगल और माइक्रोसॉफ़्ट का शुक्रगुज़ार हूँ. मैंने 1997 में तकनीकी > कोर्स पास किया लेकिन कोई नौकरी नहीं मिली. फिर 1999 में मैंने एपटेक से एक साल > का कंप्यूटर कोर्स किया और पहली छमाही में ही मुझे नौकरी मिल गई. अजय उपमन्यु, > त्रिनगर, दिल्ली > 1997 तक मैंने कंप्यूटर छुआ भी नहीं था लेकिन कंप्यूटर नाम की इस मशीन को छूने के > बाद तो पूरी दुनिया ही बदल गई. अब मेरा रोज़गार और सबकुछ कंप्यूटर पर निर्भर है. > बीबीसी से संपर्क भी कंप्यूटर के ज़रिए ही होता है. पवन कुमार, वर्जीनिया, > अमरीका > > मैं बिना कंप्यूटर अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता, ख़ासतौर से माइक्रोसॉफ़्ट > ऑपरेटिंग सिस्टम के बिना. संतोष वर्मा, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश > > कंप्यूटर मेरी ज़िंदगी में क़रीब दस साल पहले आया लेकिन क़रीब चार साल से यह मेरे > जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है. ख़ासतौर पर लोगों से मेरा संपर्क > ज़्यादातर ई-मेल के ज़रिए ही होता है. प्रमोद पाँडे, नोएडा, उत्तर प्रदेश > > > माइक्रोसॉफ़्ट को बधाई. पीसी बस्तवार, बैरागढ़, भोपाल > > > मैं तो कंप्यूटर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करता हूँ. ईमेल के अलावा गेम खेलने के लिए > भी. राज, थाईलैंड > > > मैं माइक्रोसॉफ़्ट को बहुत बहुत बधाई देना चाहता हूँ. पीसी बस्तावर, भोपाल > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > > From ravikant at sarai.net Mon Sep 26 14:26:01 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 26 Sep 2005 14:26:01 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?w6DCpMKVw6DCpMKCw6DCpMKqw6DCpcKNw6DCpMKv?= In-Reply-To: <20050924171909.17891.qmail@webmail7.rediffmail.com> References: <20050924171909.17891.qmail@webmail7.rediffmail.com> Message-ID: <200509261426.02089.ravikant@sarai.net> dosto, main yeh mail latin aksharon mein likh raha hun, taki jinhein bhi mehmood type ki samsya pesh aaye ve apni machine ko theek kar sakein: 1. agar aap hindi unicode nahin parh paa rahe hain, to aapko apni windows machine ke control panel mein jakar regional and language setting durust karna hoga, jiske tafseelat http://devanaagarii.net par hain. yad rakhiye ki aapki machine 2000 ya XP ka samatulya, ya usse oopar hona chahiye. linux ke naye sanskaraNon mein bhi unicode maze mein chalta hai. www.bbc.co.uk/hindi se ya http://salrc.uchicago.edu/resources/fonts/devanagarifonts.html se kam ke fonts download kar lein. 2. agar aap online mail dekhate hain, yani browser par hi webmail dekhate hain to aapko mail likhate aur dekhate vaqt View>encoding>unicode/utf-8 set karna hoga, browser ke view menu mein jakar. 3. agar aapko phonetic Dhang se likhane ka shauq hai, yani hindi vaise hi likhane ka shauq hai jaise aap angrezi likhate hain, to hamse keymap ki mang karein. hamare pas Winodows aur Linux donon ke liye hal hain. ya phir, web search larke apne man mafiq keymap download kar lein. 4. www.tavultesoft.com se keyman download karke aap khud apni kaymap bhi bana sakte hain. baharhal pareshani koi bhi ho, ham koshish karenge, ki unko door karein. kabhi kabhi vaqt lag sakta hai, isliye thoRa dheeraj rakhein. Mehmood saheb ko main rai doonga ki vo bbc ki neeche chhapi kaRii paR jakar dekhein - agar ve hindi text nahin parh paa rahe hain, to unhein ve sab upay karne honge jo hamne oopar bataye hain. cheers ravikant On Saturday 24 Sep 2005 10:49 pm, mahmood farooqui wrote: > �How do I make this eligible for me...whatever it is, looks angry... > > On Sat, 24 Sep 2005 Ravikant wrote : > >दोस्तो, > > > >यह लिंक या कड़ी इंडलिनक्स लिस्ट पर घूम रही थी, मैंने यहाँ पूरी > >कहानी नक़ल कर दी है. मौक़ा माइक्रोसॉफ़्ट के तीसवें जन्मदिन का है, > >पर प्रतिक्रियाएँ मज़ेदार हैं, और कंप्यूटर के साथ लोगों के गहरे जुड़ते > > रिश्ते की कहानी कहता है. वैसे कंप्यूटर = माइक्रोसॉफ़्ट का समीकरण हममें से > > काफ़ी लोगों को बुरा लग सकता है, जैसा कि रेड हैट के राजेश रंजन को भी लगा. > > > >आपका > >रविकान्त > > > >कंप्यूटर ने कितनी बदली है आपकी दुनिया? > > > >http://www.bbc.co.uk/hindi/forum/story/2005/09/050923_microsoft_forum.shtm > >l > > > > From ravikant at sarai.net Mon Sep 26 14:48:33 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 26 Sep 2005 14:48:33 +0530 Subject: Fwd: Re: [Deewan] =?utf-8?b?4KSV4KSC4KSq4KWN4KSv4KWC4KSf4KSw?= , =?utf-8?b?4KS54KS/4KSo4KWN4KSm4KWAIOCknOCkqOCkquCkpiDgpJTgpLA=?= =?utf-8?b?IOCkrOCkv+Cksg==?= =?utf-8?b?IOCkl+Clh+Ckn+CljeCkuA==?= Message-ID: <200509261448.34056.ravikant@sarai.net> ---------- Forwarded Message ---------- Subject: Re: [Deewan] कंप्यूटर , हिन्दी जनपद और बिल गेट्स Date: Monday 26 Sep 2005 2:47 pm From: Ravikant To: Vijender chauhan नमस्कार विजेन्दर, ये सारी प्रतिक्रियाएँ मूल हिन्दी में, बीबीसी की साइट पर उपलब्ध हैं. लोगों ने उनके द्वारा दिये गये फ़ॉर्म में लिखा है. आप अगर उस कड़ी को आगे पढें तो मेरी भी राय मिल जायेगी: मेरा भी काफ़ी वक़्त कंप्यूटर की संगति में बीतता है. पर मैं ग्नू-लिनक्स मशीन पर काम करता हूँ, क्योंकि लिनक्स मुक्त सॉफ़्टवेयर है, और मैं आज़ादीपसंद हूँ. मुझे यह भी लगता है कि हर ग़रीब देश/इंसान को जिस हद तक संभव हो, मुक्त सॉफ़्टवेयर ही इस्तेमाल करना चाहिए. आगे उनकी मर्ज़ी. रविकान्त, दिल्ली तो बात उस समीकरण की विडंबना की हो रही थी, जिसके तहत हम कंप्यूटर और माइक्रोसॉफ़्ट को एक दूसरे का पर्याय मानने लगे हैं. वही स्थिति है कि जैसे सर्फ़ ब्रैण्ड न होकर एक तरह की चीज़ हो जाए. रविकान्त On Saturday 24 Sep 2005 8:51 pm, Vijender chauhan wrote: > नमस्‍कार, > रविकान्‍त की पोस्टिंग काफी कुछ कहती है हालांकि यह स्‍पष्‍ट नहीं है कि > प्रतिक्रियाएं अनूदित हैं अथवा मूल हिन्‍दी यूजर की ही हैं। मैं जानना > चाहूंगा। > > काफी पहले जब मैं प्रौद्यौगिकी-सृजन सद्भाव पर विचार कर रहा ( वे अधूरी > कहानियॉं.....) तभी से मुझे यह आश्‍चर्यजनक लगता है कि किस प्रकार > प्रौद्योगिकी के मूर्त रूप (जैसे इस मामले में हार्डवेयर, सो भी तब जब > बात माइक्रोसाफ्ट की हो रही है) सदैव स्‍मृति में तथा अनुभवों में अहम > जगह रखतें हैं। > विजेंद्र > > On 9/24/05, Ravikant wrote: > > दोस्तो, > > > > यह लिंक या कड़ी इंडलिनक्स लिस्ट पर घूम रही थी, मैंने यहाँ पूरी > > कहानी नक़ल कर दी है. मौक़ा माइक्रोसॉफ़्ट के तीसवें जन्मदिन का है, > > पर प्रतिक्रियाएँ मज़ेदार हैं, और कंप्यूटर के साथ लोगों के गहरे जुड़ते > > रिश्ते की कहानी कहता है. वैसे कंप्यूटर = माइक्रोसॉफ़्ट का समीकरण हममें से > > काफ़ी लोगों को बुरा लग सकता है, जैसा कि रेड हैट के राजेश रंजन को भी लगा. > > > > आपका > > रविकान्त > > > > कंप्यूटर ने कितनी बदली है आपकी दुनिया? > > > > http://www.bbc.co.uk/hindi/forum/story/2005/09/050923_microsoft_forum.sht > >ml ------------------------------------------------------- From ravikant at sarai.net Mon Sep 26 15:51:11 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Mon, 26 Sep 2005 15:51:11 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSu4KWL4KS54KSo4KSc4KWL4KSm4KSh4KS84KWLIA==?= =?utf-8?b?4KSV4KWAIOCkhuCkteCkvuCknOCkvA==?= Message-ID: <200509261551.11121.ravikant@sarai.net> बीबीसी से ही एक और अच्छा सा लेख. मज़ा लें. वैसे अगर दिलचस्पी हो तो आज रात आठ बजे बीबीसी पर शुभा मुद्गल व आबिदा को सुन सकते हैं, साइट पर देख भी सकते हैं. रविकान्त मोहनजोदड़ो की आवाज़ http://www.bbc.co.uk/hindi/news/story/2005/09/050919_wryw_abida.shtml 1960 के दशक में जब पाकिस्तान में फ़रीदा ख़ानम और इकबाल बानो ग़ज़लों के जूड़ों में चमेली के माफिक गुंथ चुकी थी, सिंध की दरगाहों पर लरकाना के मुहल्ले अली गौहराबाद के हैदर शाह लोक तानें लगा कर सूफ़ियाना गायकी का जादू जगा रहे थे. हैदर शाह के साथ उसकी आठ नौ वर्ष की बच्ची भी होती थी जो चुप चाप एक ओर बैठी अपने पिता की कला के प्रदर्शन को देखती और दर्शकों के अभिवादन को दिल ही दिल में नापती तौलती रहती थी. यह उस समय की बात है जब रेडियो पर आवाज़ के आडिशन में सफल होना उतना ही महत्वपूर्ण समझा जाता था जितना कि यूरोप और अमेरीका में किसी नवयुवक को ड्राइविंग लाइसेंस मिलना. हैदर शाह की बेटी भी एक दिन रेडियो पाकिस्तान के ऑडिशन में सफल हो गई और उस से समय समय पर शाह अब्दुल लतीफ भटाई का कलाम गवाया जाता रहा. हैदराबाद स्टेशन पर शैख़ ग़ुलाम हुसैन म्युज़िक प्रोड्यूसर हुआ करते थे. यह उनकी नौकरी नहीं बल्कि उनका जुनून था जो उन्हें सदैव नए प्रयोग के लिए उन्हें बाध्य करता रहता था. हैदर शाह की बेटी की आवाज़ सुन कर शैख़ ग़ुलाम हुसैन को विचार आया कि क्यों न ग़ज़ल और लोक गायकी के बीच की जो दूरी है उसे समाप्त किया जाए और ग़ज़ल को दररी रंग से निकाल कर उस पर दरगाह वाला रंग चढ़ाया जाए. यह प्रयोग दोनों के लिए मील का पत्थर साबित हुई. ‘शाहजु रेसालू’ गाने वाली हैदर शाह की बेटी का आबिदा परवीन के नाम से प्रसंशा और लोकप्रियता के पथ पर पहला क़दम था जिस में उसे शैख़ ग़ुलाम हुसैन के रूप में एक ऐसे गीतकार पति का साथ मिल गया जो 24 घंटे का शिक्षक और मार्गदर्शक भी था. सूफ़ीयाना रंग में ग़ज़ल और कविता गाने वाली स्त्रियों का माइक के सामने बैठने का ढंग इस प्रकार हुआ करता था जैसे स्टेज पर नमाज़ के समय बैठा जाता है, एक हथेली फ़र्श पर और दूसरा हाथ शब्दों और सुरों के उतार-चढ़ाव के साथ लगातार सक्रिय. बैठने का यह अंदाज़ सैकड़ो वर्षों के दरबारी परंपरा का नतीजा है. आबिदा की पृष्ठभूमि आबिदा की पृष्ठभूमि दरबारी ना होकर दरगाह वाली गायकी से थी इस लिए उसने उठने और बैठने का भी वही ढ़ंग अपनाया जैसे कोई ध्यान की अवस्था में किसी मज़ार के सामने आलती-पालती मारकर बैठे. अपने आप से बेख़बर दोनों हाथ हरकत के लिए आज़ाद और सर का हिलना धमाली रचाने के अंदाज़ में. और इस अदा के साथ जब आबिदा ने झूम ‘चिर कड़ा साईयां दा, तेरी कत्तन वाली जीवे’ या ‘इक नुक्ते विच गल मकदी ए’ की तान छेड़ी तो पाकिस्तान के कोने कोने में यह अलाप संगीत के रसियाओं को मुड़ मुड़ कर देखने पर विवश करती चली गई. आबिदा की गायकी में हर एक के लिए कुछ न कुछ है. जो सीधे सरल श्रोता हैं उन के लिए ‘जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है, संग हर शख़्श ने हाथों में उठा रखा है’ जैसा कलाम ही सिर धुनने के लिए काफ़ी है. सीमा पार आबिदा 1984 में आबिदा परवीन हैदराबाद से स्थायी रूप से कराची चली गईं. यह वह समय है जब पाकिस्तान ने बाकी दुनिया को नुसरत फ़तेह अली ख़ान के हवाले कर दिया और कुछ ही समय में संगीत के एक दलाल पीटर गैबरियल द्वारा नुसरत की आवाज़ के शेयर संगीत के स्टॉक एक्सचेंज में तेज़ी से बिकने लगे. नुसरत के बाद आबिदा परवीन ऐसी दूसरी आवाज़ है जिसने सरकारी इलेक्ट्रानिक मीडिया और व्यवासायिक कैसेट मंडी के घेरे को तोड़ते हुए उत्तरी अमेरीका से सुदूर पूरब तक अपना जादू जगाया. कोई बीस वर्ष पूर्व तक भारत में तीन पाकिस्तानी नाम संगीत के दूत के रूप में जाने जाते थे—नूरजहां, मेह्दी हसन और ग़ुलाम अली. मगर नुसरत फ़तेह अली और आबिदा परवीन ने भारत में वही किया जो लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ ने पाकिस्तान में किया, अथवा हाईवेज़ पर चलने वाली बसों और टरकों, शहरों में एक दूसरे से रेस लगाती गाड़ियों, ड्रॉईंग रूम और ली-मुहल्ले के चायख़ानों पर क़ब्ज़ा कर लिया. यह वह दोतरफ़ा संगीत कूटनीति है जिस ने उस समय से लोगों के दिलों पर जमी बर्फ़ को पिघलाने का काम प्रारंभ किया जब क्रिकेट कटनीति और पर्दे के पीछे की कूटनीति जैसी शब्दावली से कोई परिचित नहीं था. हालांकि मोहनजोदड़ो की नृत्य करती हुई कन्या दिल्ली के अजायबघर में है लेकिन मोहनजोदड़ो की आवाज़ आबिदा परवीन के रूप में इस्लामाबाद में रहती है. 'ढ़ूंढोगे हमें मुल्कों मुल्कों, मिलने के नहीं नायाब हैं हम...' (यह लेख पाकिस्तान के प्रसिद्ध कवि नसीर तुराबी की सहायता से लिखा गया जिन्हें आबिदा परवीन मुर्शिद अथवा पीर कहती हैं) From gnj_chanka at rediffmail.com Tue Sep 27 18:39:08 2005 From: gnj_chanka at rediffmail.com (girindranath jha) Date: 27 Sep 2005 13:09:08 -0000 Subject: [Deewan] subscribe Message-ID: <20050927130908.27488.qmail@mailweb34.rediffmail.com> Main ne aapke deewan ko padha, kaphi aachha laga. mujhhe yeha janana hai ki main cafe se mail karta hun,isme hindi font nahi hai to main kyisa aapke pass apna bichar bhejun? -------------- next part -------------- An HTML attachment was scrubbed... URL: http://mail.sarai.net/pipermail/deewan/attachments/20050927/4cbd6b40/attachment.html From ravikant at sarai.net Wed Sep 28 19:58:33 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Wed, 28 Sep 2005 19:58:33 +0530 Subject: [Deewan] subscribe In-Reply-To: <20050927130908.27488.qmail@mailweb34.rediffmail.com> References: <20050927130908.27488.qmail@mailweb34.rediffmail.com> Message-ID: <200509281958.35163.ravikant@sarai.net> Huzoor Girindranath ji, shukriya. agar aap apne cafewale ko bata sakein ki unke windows/2000 system par indic. hindi enable karke likha ja sakta hai, to aap hindi mein likh sakte hain, lekin iske liye aapko apne kam ka keymap bhi lagana hoga. varna aap roman mein hi likhein, koi gal nahin. cheers ravikant On Tuesday 27 Sep 2005 6:39 pm, girindranath jha wrote: > Main ne aapke deewan ko padha, kaphi aachha laga. mujhhe yeha janana hai ki > main cafe se mail karta hun,isme hindi font nahi hai to main kyisa aapke > pass apna bichar bhejun? From raviratlami at gmail.com Thu Sep 29 12:16:50 2005 From: raviratlami at gmail.com (Ravishankar Shrivastava) Date: Thu, 29 Sep 2005 12:16:50 +0530 Subject: [Deewan] subscribe References: <20050927130908.27488.qmail@mailweb34.rediffmail.com> <433B82E4.5050602@gmail.com> Message-ID: <003501c5c4c1$e26e9f80$6b07013d@anvesh> ----- Original Message ----- From: "Ravishankar Shrivastava" To: "girindranath jha" Sent: Thursday, September 29, 2005 11:30 AM Subject: Re: [Deewan] subscribe > girindranath jha wrote: > > >Main ne aapke deewan ko padha, kaphi aachha laga. mujhhe yeha janana hai ki main cafe se mail karta hun,isme hindi font nahi hai to main kyisa aapke pass apna bichar bhejun? > > > > > > > > > >------------------------------------------------------------------------ > > > >_______________________________________________ > >Deewan mailing list > >Deewan at mail.sarai.net > >http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan > > > > जनाब गिरिन्द्र नाथ, आप ब्राउज़र के द्वारा ही हिन्दी में लिख कर पोस्ट कर सकते हैं. बस, इस वेब साइट ( http://hindini.com/tool/hug2.html ) को अलग विंडो में खोलें, और जैसा आपने अंग्रेजी फ़ोनेटिक में लिखा है, लगभग वैसा ही उसमें लिखें. वह हिन्दी में छपेगा. वहाँ ऑनलाइन मदद भी है. फिर उसे नक़ल कर चिपकाएँ और अपनी डाक/प्रविष्टियाँ हिन्दी में भेजें. यह आसान भी है! कोई समस्या आती हो तो निस्संकोच पूछें. रवि From ravikant at sarai.net Fri Sep 30 15:15:57 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Fri, 30 Sep 2005 15:15:57 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KS44KWN4KS14KS+4KSX4KSk4KSu4KWN?= In-Reply-To: <003501c5c4c1$e26e9f80$6b07013d@anvesh> References: <20050927130908.27488.qmail@mailweb34.rediffmail.com> <433B82E4.5050602@gmail.com> <003501c5c4c1$e26e9f80$6b07013d@anvesh> Message-ID: <200509301515.57967.ravikant@sarai.net> > जनाब गिरिन्द्र नाथ, > आप ब्राउज़र के द्वारा ही हिन्दी में लिख कर पोस्ट कर सकते हैं. बस, इस वेब > साइट ( > http://hindini.com/tool/hug2.html ) को अलग विंडो में खोलें, और जैसा आपने > अंग्रेजी > फ़ोनेटिक में लिखा है, लगभग वैसा ही उसमें लिखें. वह हिन्दी में छपेगा. वहाँ > ऑनलाइन मदद भी > है. फिर उसे नक़ल कर चिपकाएँ और अपनी डाक/प्रविष्टियाँ हिन्दी में भेजें. > > यह आसान भी है! > > कोई समस्या आती हो तो निस्संकोच पूछें. > > रवि धन्यवाद रवि, डेस्कटॉप से काम करते-करते मैं तो भूल ही गया था कि इतनी आसानी से कैफ़े से भी चीज़ें लिखी जा सकती हैं. दीवान-सूची पर आपका स्वागत है,इस उम्मीद के साथ भी कि इसे आप नेट व कंप्यूटरी की बाक़ी, वृहत्तर दुनिया से जोड़ेंगे, चूँकि आप अब तक पुराने खिलाड़ी हो चुके हैं. बाक़ी दोस्तों को बता दूँ कि रवि श्रीवास्तव सराय के मुक्त सॉफ़्टवेयर फ़ेलो रहे हैं,उन्होंने ग्नोम के कुछ अंश व केडीई का लगभग पूरा ही अनुवाद किया है, व अब रेड हैट के राजेश रंजन के साथ ओपन ऑफ़िस का अनुवाद पूरा कर रहे हैं. कवि भी हैं, व निरंतर नामक ब्लॉगज़ीन के संपादक भी. देखें: http://akshargram.com/nirantar/ शुक्रिया रविकान्त > > > > _______________________________________________ > Deewan mailing list > Deewan at mail.sarai.net > http://mail.sarai.net/cgi-bin/mailman/listinfo/deewan From ravikant at sarai.net Fri Sep 30 15:33:14 2005 From: ravikant at sarai.net (Ravikant) Date: Fri, 30 Sep 2005 15:33:14 +0530 Subject: [Deewan] =?utf-8?b?4KSP4KSVIOCkhuCkl+CljeCksOCkuQ==?= Message-ID: <200509301533.14639.ravikant@sarai.net> एक आग्रह - इंटरनेट में हिन्दी रचनाओं के प्रकाशनार्थ.... आज का युग इंटरनेट का है. अपनी रचनाओं को सम्पूर्ण विश्व के पाठकों के समक्ष रखने के लिए जालघर के व्यक्तिगत वेब पृष्ठों और ब्लॉग के अलावा दूसरा बढ़िया रास्ता और कोई नहीं है. इसी बात को विस्तृत रूप से समझाते हुए मैंने कोई 100 रचनाकारों को व्यक्तिगत रूप से पत्र लिखे थे कि अपनी रचनाएँ (अप्रकाशित हों या पूर्व प्रकाशित) इंटरनेट में ‘निरंतर/रचनाकार’ में प्रकाशनार्थ भेजें. मगर कुल जमा आधा दर्जन लोगों ने ही इसमें दिलचस्पी दिखाई. जबकि हर (जी हाँ, लगभग हर) रचनाकार, संपादकों - प्रकाशकों को गरियाता-लतियाता फिरता है कि उसकी रचनाओं को संपादक-प्रकाशक तवज्जो ही नहीं देते. लोग व्यक्तिगत आक्षेप लगाने से भी बाज नहीं आते कि संपादक तो अपने ही धड़े और अपनी ही कोटरी के रचनाकारों को प्रश्रय देकर उनकी ही रचनाओं को प्रकाशित कर उन्हें उपकृत करता रहता है! जबकि आज ‘यूनिकोड हिन्दी’ में इंटरनेट पर हिन्दी रचनाओं का सर्वथा अकाल है. और, जबकि नित्य, हर घड़ी, हर पल, एक रचना इंटरनेट पर प्रकाशित की जा सकती है! गूगल समर्थित ब्लॉगर और याहू!360° जैसी मुफ़्त ब्लॉग सेवाओं के द्वारा रचनाओं को व्यक्तिगत ब्लॉग (चिट्ठा) के जरिए बिना किसी खर्च के इंटरनेट पर प्रकाशित किया जा सकता है. इंटरनेट पर प्रकाशित होने के कारण रचनाओं को रायबरेली से लेकर रावलपिंडी और रेडमंड तक के, सम्पूर्ण विश्व के पाठक तो मिलते ही हैं, इंटरनेट पर प्रकाशित रचनाएँ अजर-अमर होती हैं, और हर समय, हर किसी के पठन पाठन के लिए सुलभ होती हैं. इंटरनेट पर रचनाओं का कोई संस्करण पुराना नहीं पड़ता तथा अप्राप्य जैसा नहीं होता. दरअसल, अपनी रचनाओं को दस्तावेज़ीकृत करने का यह तो सबसे नायाब साधन है. रचनाओं को इंटरनेट पर प्रकाशित करना आज अत्यंत आसान हो गया है – एक ईमेल एकाउन्ट खोलने जितना आसान. और इसी लिए तमाम रचनाकार जिनमें डॉ. जगदीश व्योम, महावीर शर्मा, डॉ. रति सक्सेना, पूर्णिमा वर्मन जैसी हस्तियाँ शामिल हैं, इंटरनेट पर अपने व्यक्तिगत जाल पृष्ठों और ब्लॉग के जरिए अपनी रचनाओं का प्रकाशन करने नित्य प्रति जुड़ते जा रहे हैं. इंटरनेट पर रचनाओं को कितनी आसानी से प्रकाशित किया जा सकता है इसका उदाहरण आप (http://rachanakar.blogspot.com ) में देख सकते हैं. हाँ, आपको इसके लिए विंडोज़ एक्सपी या लिनक्स का ताज़ा संस्करण चाहिए होगा. विंडोज़ 95/98 में इसे नहीं देखा जा सकता, क्योंकि इसमें नई तकनॉलाज़ी का, यूनिकोड फ़ॉन्ट है. जिन रचनाकार बंधुओं के पास इंटरनेट पर अपनी रचना प्रकाशित करने का साधन और ज्ञान उपलब्ध नहीं है, उनके लिए इंटरनेट पर रचनाकार (http://rachanakar.blogspot.com/ ) जैसे आयोजनों के जरिए यह सुविधा उन्हें प्रदान की जा रही है. इंटरनेट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का इससे अच्छा अवसर और क्या हो सकता है? इंटरनेट पर ‘रचनाकार’ में प्रकाशनार्थ अपनी रचनाओं को प्रेषित करने हेतु आपसे पुनः आग्रह किया जाता है. नियम निम्न हैं- रचनाओं के लिए अप्रकाशित-अप्रसारित जैसा कोई बंधन नहीं है. बल्कि अपनी पूर्व प्रकाशित श्रेष्ठ रचनाओं को इंटरनेट पर प्रकाशनार्थ भेजें तो उत्तम होगा. रचनाएँ ईमेल के ज़रिए भेजें तो हमें सुविधा होगी. रचना भेजने के लिए ईमेल पता है: rachanakar at gmail.com रचना हिन्दी के किसी भी फ़ॉन्ट या फ़ॉर्मेट में भेज सकते हैं. ईमेल के जरिए रचना भेजना संभव न हो तो डाक के निम्न पते पर भी रचनाएँ भेजी जा सकती हैं. मूल रचना टंकित हो, पूर्व प्रकाशित रचना की छायाप्रति भी स्वीकार्य है. डाक का पता- रचनाकार, द्वारा- रविशंकर श्रीवास्तव, 100, सुकृति, राजीव (कस्तूरबा) नगर, रतलाम मप्र 457001 चूंकि “निरंतर” का प्रकाशन अवैतनिक, अव्यावसायिक, सर्वजन हिताय किया जा रहा है, अत: किसी भी प्रकार का मानदेय इत्यादि प्रदान करना संभव नहीं होगा. शुभकामनाओं के साथ, आपका, रविशंकर श्रीवास्तव